Made with in India
दूसरा भाग विजय कलकत्ता जाकर अपनी पढाई में लग गया । वे इंजीनियरिंग कॉलेज के आखिरी साल में पढ रहा था । आज वह सवेरे उठ कर बाथरूम से नहाकर निकल ही रहा था कि पोस्ट मैंने आवाज दी । वह पोस्टमैन की आवाज सुनते ही उत्सुकता से बाहर आया और पत्र खोलते खोलते कुर्सी पर बैठ गया । लेकिन खतरे पढते ही चौक गया । विजय ने सोचा था कि वो खत उसके गांव से आया होगा । फिर उसने बहुत बार दिमाग पर जोर डालकर सोचा कि ये लडकी कौन हो सकती है । इस समय उसे सुमन की बिल्कुल याद नहीं आ रही थी । फिर इसी उधेडबुन में उल्टा ही था कि ये लडकी कौन होगी । जिसने मेरे पास पत्र भेजा है । उसने अपना नाम क्यों नहीं लिखा? वो अपने आप को बदसूरत मानने वाली लडकी कौन हो सकती है जो मुझे अपने मन का मीत मानती है । मुझे प्यार करती है । विजय खत के बारे में सोच रहा था कि उसका दोस्त विकास आ गया । विकास ने कहा हरे विजय ही दे यार, तेरे पापा का पत्र आया है । कल तेरह जन्मदिन है । आज ही शाम को तुझे बुलाया है । ये सुनकर विजय विकास से खत लेकर पडने लगा । उसमें बस इतना ही लिखा था, बेटे विजय दो मार्च को तुम्हारा जन्मदिवस है इसलिए तुम एक मार्च को घर जरूर आ जाना । इस समय हम तुम्हारे जन्मदिन में दोबारा खुशी मनाएंगे । अपने बाबूजी का खत्म पडने के बाद विजय का दिल थोडा बहला फिर भी वो उस खत को बोला नहीं पाया जिससे किसी अंजान लडकी ने लिखा था । विजय को खामोश देखकर विकास बोला क्यों यार विजय इतने मायूस क्यों नजर आ रहे हो? विकास की बात सुनकर विजय कुर्सी पर बैठते हुए कहता है विकास में एक लडकी से प्यार करता हूँ । कितने में विकास हसते हुए बोला हरी प्यार करता है तो शादी कर ली । विजय बोला वो तो ठीक है मगर पहले ना तो लडकी को देखा है और न ही लडकी का नाम जानता हूँ । विकास विजय की बात सुनकर हस पडा हरबोला कैसी अजीब बात करते हो या प्यार नजरों के मेल से होता है और तुमने उसे देखा तक नहीं । विकास की बात सुनकर विजय मायूसी से बोला कि विकास ये सच है कि प्यार नजरों के मेल से होता है । मगर तो मैं इस पत्र को पढकर ही बिहार करने लगे जबकि उसने स्पष्ट लिखा है कि मैं बदसूरत हूँ और तो मैं इतने हैंडसम और बडे लिखे व्यक्ति हो । तुम्हारे तो आगे पीछे कितनी सुंदरियों के पापा चक्कर काट रहे हैं । विकास की बात विजय को शायद अच्छी नहीं लगी और वह घर जाने की तैयारी करने लगा । इधर आज इतवार का दिन था । सुमन देर तक हुई थी । सात बज रहे थे । तभी चाची आई और सुमन की माँ के पास बैठ कर कहने लगे मालती दीदी, मुझे भतीजी की जन्मदिन पर जाना है । अब भतीजा हूँ या बेटा । यही तो सब कुछ है । मेरे लिए परीक्षा है । इस कारण लेने के लिए नहीं आ सका । मैं चाहती हूँ कि आप लोग मेरे साथ सुमन को भेज दीजिए । मैं विश्वास दिलाती हूँ की हमलोग परसो जरूर आ जाएंगे । चाची की बात सुनकर सुमन उठ गए और बातों में जा घुसी । तभी चाची ने फिर कहा क्यों गलती दीदी आपका क्या विचार है, भेजेंगे या नहीं? सुमन की मैंने कहा तुम तो जानती हो बहन, मैं तो सौतेली माँ हूँ । मेरा कहा तो वह मानती ही नहीं है, उसी से पूछूं । मालती की ये बात सुनते ही जांची । खुश होकर बोली मालती दीदी, वो आपके बाद भले ही नाम आने पर मेरी बात को वो टाल नहीं सकती है । सुमन चाची के पास आते हुए बोली कहाँ जाना है चाची तब चाची उत्सुकता से बोली चलोगे ना, मेरे भतीजे का जन्मदिन है । गांव चलना है । ज्यादा दूर नहीं है । शहर से थोडी ही दूर है । चाची की बात सुनकर सुमन बोली रुकी चाचीजी बाबूजी से पूछ कर बताती हूँ ये कहकर बाबू जी के कमरे में चली गई । सुबह के पूछने पर बाबू जी ने कहा तो जाना चाहती हो तो चली जाऊं नगर मेरा नाम मत लेना । तेरी माँ मेरी जान खा जाएगी । बाबू जी की बात सुनकर सुमन जाने के वास्ते कपडे वगैरह रखने लगे । सुमन और चाची दोनों शहर से टैक्सी में बैठ गई और गांव की ओर चल दिए । गांव पहुंचने पर सब लोगों ने उनका स्वागत किया । फिर चाची सुमन का परिचय अपने भैया भाभी से कराकर और इधर उधर देखते हुए बोली भावी विजय कहा है । विजय का नाम सुनते ही सुमन चौक पडी हर बोली ये विजय का घर है । चाची सुमन के चेहरे का पसीना देखकर बोली इतना घबरा रही है । अब सुमन संभलते हुए बोली नहीं चाची घबराने की कोई बात नहीं है । मैं पूछ रही थी उसी का घर है क्या? मगर अंदर उसके शरीर में बिजली दौड गयी । वो मन ही मन कहने लगी । क्या ये संयोग हमारे प्यार को सहारा देने के लिए है? हम फिर एक बार आमने सामने हो जाएंगे । वहीं पर खडी सोच रही थी कि उसे शोरगुल सुनाई दिया । उसने बाहर आकर देखा तो विजय के स्वागत में खडे सहारे गांव के लोग विजय से गले मिल रहे थे । चाची भी और विजय के मम्मी पापा भी । ये देख कर के मैं अचानक चाची के पास चली गई और विजय को नमस्ते किया जिससे सब चौंक गई । तब चौधरी ने कहा कि विजय मेरे घर गया था तब इन दोनों की मुलाकात हुई थी । ये कहते हुए सब लोगों ने घर में एक साथ प्रवेश किया । फिर चाय पीने के बाद विजय अपने कमरे में चला गया । वो सोचने लगा कहीं मुझे मन का मीत बनाने वाली और मुझे बिहार करने वाली वो लडकी सुमन ही तो नहीं है । वो कपडे बदलकर बैठा ही था कि उसके पापा और बुआ एक साथ कमरे में प्रवेश करते हुए बोले बिजी तुम तो हमें परेशान कर रखी हूँ । विजय चौक कर बोला पापा जी आपको परेशान कर रखा हूँ । पापाजी हस्कर बोले और नहीं तो क्या किसी ना किसी दिन लडकी के पिताजी आते रहते हैं । इस से छुटकारा पाने के लिए दो भारी सगाई हो जानी चाहिए । पापा जी की बात सुनकर विजय परेशान हो गया और बोला इतनी जल्दी सगाई क्यों? पापा दब । बुआ बोली जल्दी तुम ही नहीं बेटा, हमें है तो अभी सगाई हो जाने दो, शादी परीक्षा के बाद होगी । वैसे तुम्हारी शादी करना हमारा फर्ज है । तुम तो कहोगे नहीं मगर हम लोग तो लडकी पसंद कर लिए है इसलिए कल सगाई होगी । अच्छा चलो बेटा खाना खाएंगे । ये कहकर सब लोग खाने के लिए चले गए । फिर सभी एक साथ बैठकर खाना खाने लगे । सुमन भी थी और विजय भी था । परन्तु परेशान वो उस अंजान लडकी को प्यार करता था जिसने उसे मन का मीत बनाया था और उसे शक भी था कि शायद वो अनजान लडकी जिसे वह प्यार करता है, सुमन ही है । पी चुपचाप खामोशी से खाना खाकर अपने कमरे में आकर हो गए । विजय बिस्तर पर लेटा ही था कि उसकी माँ दूध लेकर आई और सात सात फोटो भी दिखाने लगी, जिसे सब लोगों ने विजय की बहु बनाने के लिए पसंद किए थे । तो फोटो दिखाते हुए बोली देख बेटा मेरी पसंद लाखों में एक है, सुंदर है, खूबसूरत है, धनवान है, हर गोरा रंग सबकुछ है । इसमें क्या कमी है? बोल तुझे पसंद आई ना? माँ की उत्सुकता को देखकर विजय बोला मैं आपकी पसंद तो मेरी पसंद है मगर इतनी जल्दी सगाई करने की क्या जरूरत है? माँ बोली कम से कम एक परेशानी दूर हो जाएगी बेटा जब लोग ये जान जाएंगे कि जमींदार एवं तहसीलदार के इंजीनियर बेटे की सगाई हो गई तो लडकी वाले आना बंद कर देंगे । ये कहकर विजय के माने विजय के गाल पर चुंबन जड दिया और चली गयी । माँ के जाने के बाद विजय खूबसूरत शब्द पर जोर देते हुए मन ही मन बडबडाया नहीं माँ नहीं, मैं खूबसूरत लडकी से शादी नहीं करूंगा । मैं तो उस अजनबी लडकी से जो अपने को बदसूरत मानती है, उसे प्यार करता हूँ । वो लडकी शायद सुमन ही है । यही सोचते सोचते उसे सुमन का चेहरा याद आ गया । रंग सामला भरा हुआ बदल और साधारण सुंदरता की मालकिन सुमन कितने अपनत्व की भावना से गोभी की सब्जी लाई थी उसके लिए । मगर एक बात उसके समझ में नहीं आई कि सो मैंने कॉलेज की छात्रा होते हुए भी एकदम गुमसुम रहती है, लडकों से जी सकती है और हमेशा उसका चेहरा मायूसियों से घेरा हुआ रहता है । हालांकि वह हमेशा खुश रहने की कोशिश करती है । फिर वह सुमन के बारे में जारी किया क्या सोचता रहा और रात को कब उसकी नींद लग गई, उसे खोज ही नहीं रहा । आज विजय का जन्मदिन है । सब लोग आए हुए है । सभी बैठे हुए थे । सभी के काउंटर के सामने नाश्ता रखा हुआ था । इस जन्मदिन की पार्टी में सुमन भी थी । सेट गुलाब चंद का इंतजार था कि उसी वक्त किसी ने जाकर बताया कि सेट, गुलाबचंद्र और रेट आ रहे हैं । ये सुनकर विजय के बुआ यानी कि सुमन की जांच जी ने कहा, भाइयों एवं बहनों एवं सभी सम्मानित अतिथियों कृपया आप लोग शांति बनाए रखें । थोडी देर शांत रहेगा । आज विजय के पच्चीस वर्षगांठ पर उसका सगाई समारोह भी होगा । चाची क्या ही रही थी कि सुमन के होश उड गए वो अभी तक इस बात से भी खबर थी कि विजय की सगाई होने वाली है । तभी हॉल में रीता और गुलाब चंद्र जी ने प्रवेश किया । हॉल में एक खलबली सी मच गई सबके मुझे यही निकल रहा था की क्या पसंद है । जमींदार साहब के पढी लिखी भी और सुंदर भी । जहाँ जहाँ से यही आवाज सुनाई दे रही थी । सुमन यह सब बाकी सुनकर के इतना घुटन महसूस करने लगी कि उसके लिए वहाँ रहना मुश्किल हो गया और वो बाथरूम जाने के बहाने घर से बाहर निकल गई । विजय का शक सही होता सा महसूस हुआ । अभी तक वह सिर्फ शक्कर रहा था कि जिस लडकी को वो प्यार करता है वह सुमन है । मगर अब उसे विश्वास हो गया । तभी उसके बाबू जी पास आए और बोले जल्दी करो बेटा के कार्डो पर सगाई की रस्म भी पूरी करनी है । तब ना जाने विजय क्यों झल्लास आ गया और बोला पापा जी! पहले देख तो लीजिए कि पूरे मेहमान है भी या नहीं । ये सुनकर विजय के पापा सभी मेहमानों के पास जाकर कहने लगे क्यों भाई, सब ठीक ठाक है ना । किसी के पास कोई चीज की कमी तो नहीं है । तभी विजय सुमन जिस काउंटर पर बैठी थी उसके पास गया और हॉल ऐसी चौक गया । वहाँ पर डाट पैंसे लिखा हुआ था । मन का मीत जन्मदिन मुबारक हो साथ में नई जिंदगी में प्रवेश करने के लिए अपनी जीवन संगिनी के साथ आज बंधन में बंद रहेगी भी बधाई । विजय ये सब पढते ही बुआ को जोर से आवाज देते हुए बोला बुआ जी सुमन कहा है । सुमन को ना पाकर वो चौक पडा और बाद उनकी और जाकर देखा तो बातों खुला पडा था । बेटा विजय बिचारी सौतेली माँ के कारण परेशान रहती है बेटा और इसी परेशानी के कारण उसे थोडा भी शोरगुल पसंद नहीं आता । आपका मतलब है कि वो अकेले ही घर चली गई । विजय ने घबराते हुए कहा न जाने की वो इस बार विजय के दिल में जोरों से हलचल मच रही थी और वह किसी अनजान भाई से कम पैसा गया तो बुआ शक प्रकट करती हुई बोले हो सकता है घर चली गई हूँ । गोवा के वाक्यों को सुनते ही विजय बाहर निकला और मोटर साइकल उठाकर शहर की तरफ बढ गया । सब चल ही रहे थे । विजय तो मत जाओ हम किसी और को भेज देंगे तो पहले के काट लो मगर विजय बिना किसी बात सुने स्टेशन की तरफ चलने लगा । वहाँ जाकर देखा सुमन जिस मोटर में बैठी थी वह मोटर विजय के देखते देखते ही छूट गई । ये देख विजय अपनी गाडी को तेज चलाकर बस के सामने लाकर खडा कर दिया । बस रुक गई तब विजय बस में चढकर सुमन का हाथ पकडकर उसे एक मुजरिम की तरह खींचते हुए नीचे उतार लिया और बस को जाने की इजाजत दे दी । सुमन कहती ही रह गई कि नहीं? विजय मैं तोहरे गांव नहीं जाऊंगी । मुझे घर जाना है । लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे? विजय खामों सुमन को लेकर के मोटर साइकिल पर चलता रहा । चलते चलते अचानक कोई गार्डन के पास रोका और सुमन को उतरने का आदेश दिया । सुबह गार्डन जाकर किसी मूर्ति के सामान खडी रही । उसकी आंखों में आंसू थे, मगर विजय थका हुआ था । इसीलिए बैठ गया और बोला सुमन मैं तुमसे प्यार करता हूँ । उस दिन से जिस दिन से तो महारा ये दुखों से मलीन चेहरा मैंने फूल तोडते समय देखा था और आज तो मुझे छोड कर जा रही हूँ । सिर्फ इसलिए कि तुम्हारी कारण मेरी सगाई में किसी प्रकार की बाधा न हो । सोचो सुमन सोचों में अपने दिल को महफिल से जाने दूं और के कार्ड दो ये मुझ से नहीं हो सकता । सुमन बोले तो बिना की काटे ही आए हैं । अब क्यों आए जाइए? जल्दी जाए । सब लोग आपका इंतजार कर रहे होंगे । फिर बिचारी । रीटर व्याकुल हो रही होगी । उसका प्यारा सा चेहरा मुरझाया होगा । विजय सुमन के ऊपर हाथ रखते हुए कहने लगा सुमन तुमने ही तो अपने खत में लिखा था कि प्यार एक नजर में होता है और तुम ये भी सुन लो सुमन की तो में भी मैंने अपने मन का मीत मान लिया है और मैं तुमसे प्यार करता हूँ । सुमन सिर्फ तुमसे ही मुझे प्यार है तुम्हारी सूरत से नहीं अच्छा बातें फिर कभी होगी । चलो मेहमान इंतजार कर रहे होंगे मैं तुम्हें लेने आया हूँ । विजय की बात सुनकर सुमन बोली मैं नहीं जा सकती विजय में मजबूर हूँ और ये भूल जाओ कि मैंने तुमसे प्यार किया है । मैं नहीं जानती थी कि तुम उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे हो और ये भी नहीं जानती थी कि तुम एक जमींदार के बेटे हो इसलिए मैंने तो उसे प्यार किया था । विजय मुझसे बहुत बडी भूल हुई थी । मुझे माफ कर दो और तुम अपनी गांव जाऊँ । मुझे अपने गांव जाने दो । ये कहकर सुमन जाने लगी । तब विजय ने सुमन का रास्ता रोकते हुए कहा सुमन तुमने मुझसे प्यार करके भूल की होगी लेकिन मैंने कोई भूल नहीं की है । मैं तुम्हें प्यार करता हूँ और करता होगा और एक भी उसी शर्त पर आज कटेगा जब तुम मेरे साथ घर चलोगे । सुमन बोली नहीं विजय, मैं इस लायक नहीं हूँ कि तुम्हारे घर की बहू बनो तो मुझे भूल जाओ । मैं एक साधारण परिवार की साधारण लडकी हो जिसके पास सुंदरता भी तो नहीं है । तब विजय ने गंभीर स्वर में कहा मैंने कहा ना सुमन कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ, तुम्हारी सूरत से नहीं चलो सुमन वरना आज से अपना जन्मदिन नहीं मना होगा तो मैं मेरी कसम सुमन चलो मेरे साथ विजय के प्यार को देखते हुए सुबह न चाहते हुए भी वापस विजय के साथ विजय के घर चली गई । जब भी लोग वहाँ गए तो सब लोग उन्हीं लोगों का इंतजार कर रहे थे । सब लोगों ने देख कर खुश हुए । विजय अंदर गया और मेहमानों की आतुरता को देखकर के के सामने आकर खडा हो गया । फिर सभी ने एक साथ हैप्पी बर्थ डे टू उच्च स्वरों में कहा । फिर विजय ने के काटा और सबसे पहले के का टुकडा सुमन की और बढा दिया । सुमन देखकर के घबरा गई और सब लोग आश्चर्य से सुमन की और देखने लगे । रेटा भी तिरछी नजर से सुमन को ही देख रही थी । जबकि सबको अपनी ही तरफ देखते देखकर सुमन की घबराहट और भी ज्यादा बढ गई थी । फिर विजय की डैडी ने ऊंची स्वस्थ्य विजय को अपने पास बुलाया और रीता को भी और अपनी जेब से दो सोने के चलने निकालकर एक विजय को दिया और दूसरा बेटा की और बढाते हुए विजय से बोले बेटी, इसको रीता को पहना दो, आज तुम दोनों की सगाई की रस्म पूरी हो ही जाएगी । विजय ने एक नजर सुमन को देखा फिर आगे बढकर अपनी माँ के पास जाकर छल्ला वहाँ को देते हुए बोला मैं भी अभी इसी लायक नहीं हुआ हूँ । जब मैं स्वयं कमाना सीट जाऊंगा तो अपने पैसों से छल्ला लेकर मैं मंगनी कर लूंगा और ये भी जरूरी नहीं है माँ की मेरे बेटा से ही शादी करूँ । ये सुनकर सबकी निगाहें विजय पर फिर सुमन पर टिक गई । सुबह ये देख नजरें नीचे कर बैठी रही । तब जल्दी से सुबह की घबराहट को देखते हुए विजय बोला आज की पार्टी का अब यही पर समापन होता है । चलिए चल कर के सब मेहमान खाना खा ले । खाना खाने के पश्चात सभी मेहमान अपने अपने घर को रवाना हो गए । जब सब लोग चले गए तो सुबह चाची से कहा चाची कल मुझे कॉलेज अटेंड करना है । क्यों ना हम आज ही घर चलते तो चाची अपनी स्वीकृति के साथ भैया भाभी के कमरे में चली गई । वहाँ पर विजय भी बैठा था और विजय को उसके पिताजी कह रहे थे कि विजय आज तुमने रीता से सगाई ना करके गुलाब चंदगी और हमारी बेज्जती की है । क्या सोचेंगे मेहमान लोग विजय अपने पिताजी के गुस्से को देखते हुए कुछ नहीं बोल पा रहा था । मगर बात जवाब पैसे बाहर हो तो बोल देना चाहिए । बोलना भी जरूरी हो जाता है । इसलिए उसने सरलता से कहा पिताजी में इतनी जल्दी अपने जीवन का फैसला कैसे कर दू शादी सादा ये सब जीवन भर का सवाल है और फिर अभी तो मैं पढाई कर रहा हूँ । फिर पिताजी मेरी भी तो कुछ पसंद होगी । मुझे अपना जीवन साथी पसंद करने का अधिकार है । विजय के बाद सुनगर उसके पापा और भी ज्यादा गुस्सा हो गए और बोले विजय ने बेझिझक होकर जवाब दिया की मैं नहीं चाहता की रीटा से तो इसका मतलब ये है कि तुम बेटा से शादी नहीं करोगे । मेरी इज्जत का तो मैं कोई खयाल नहीं । विजय सरलता से कहा मैं तो नहीं जानता बाबा की रीटा से शादी करूँ । अब उनकी आंखें लाल हो गई थी । इसी भयानक रूप से वे बोले अच्छा ये बात है क्या कमी है । बेटा में बताऊँ वो खूबसूरत है, स्वभाव से अच्छी है । अपने पापा की बात को बीच में ही काटते हुए विजय बोला पापा जी मुझे रेटा की खूबसूरती से नफरत है । विजय के मुझे ये बात सुनकर विजय के पापा अचानक बोल पडे रीता की खूबसूरती से नफरत है तो क्या सुमन की बदसूरती से प्रेम है तो पापा जी की बात सुनते हुए विजय हसते हुए बोला कि यही समझ लीजिए ये कहकर वह कमरे से बाहर निकल गया । सुमन जिस कमरे में थी विजय भी उसी कमरे में आ गया और बोला सुमन तुम घर जाना चाहती हो ना चलो मैं तुम्हें छोड आता हूँ । विजय की अजीब सी बातों को सुनकर सुमन डरते डरते बस इतना ही कह पाई मैं चाची के साथ आई हूँ और चाची के साथ होंगी ये बात । चाची दरवाजे पर प्रवेश कर दी हुई । सुनकर बोली अच्छा बेटा तेरह जाने का मन नहीं है तो चले जाते हैं । अब हम लोगों का रुकना भी यहाँ के वातावरण के अनुसार ठीक नहीं है । ये कहकर चाची अपना सामान समेटने लगी जाती । व्यक्ति सुमन और चाची विजय के पापा मम्मी से विदा ले रही थी । तभी वहीं पर विजय भी तैयार हो कर आ गया और पापाजी से बोला पापा जी, मेरे कारण अब की बेईज्जती हुई । उसके लिए मुझे दुख है और अफसोस की अब मैं जा रहा हूँ । परीक्षा भी नजदीक है और बुआ जी को भी उनके गांव छोडना है । मैम को गांव छोडने के बाद कलकत्ता के लिए रवाना हो जाऊंगा । ये कहकर विजय भी सुमन और चाची के साथ अपनी बुआ के गांव आ गया ।
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