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आज से नहीं कुक ऍम आरजे माया के साथ सुनी । जो मन चाहे जिम्मेदारी किसकी लेखक बाली स्तर सी गुज्जर माना कलयुग पर जिम्मेदार कौन? इसमें कोई संदेह नहीं है कि जमानी समाज कलयुग में हैं । वहीं सत्युग में भी था अगर कलयुग है तो ये कहीं न कहीं मानवीय सोच के कारण ही है । हमें इस बात से बिल्कुल सहमत हो सकते हैं कि वर्तमान का समय कलयुग रूपी समय है किंतु यहाँ प्रश्न खडा होता है कि इस कलयुग की उत्पत्ति कैसे हुई । ऐसी हमारे कौन सी क्रियाएं हैं जिन्होंने प्रारंभ से लेकर अभी तक निरंतर उसी गति से चलने वाले समय को कलयुग का नाम दे दिया है । सीधा सा जवाब यही है कि जो समय द्वापर युग, त्रेतायुग, सतयुग में था वहीं समय आज भी है जो सूरज चंद्रमा सतीश में थे वो आज भी मौजूद हैं । फिर कलयुग का असर इन सभी पर क्यों नहीं देखता मानवीय क्यों इससे पीडित समय चलता है । अगर कलयुग होता तो चंद्रमा गर्मी उत्पन्न करता तथा सूरज धुंधला सा नजर आता है । लेकिन यहाँ तो हमें सभी प्राकृतिक चीजें वैसे ही दिखाई देती हैं जो अन्य युवाओं में वित्तीय मान थी । हाँ इसके साथ एक ही ये जरूर कहा जा सकता है कि अगर कलयुग ने अपना असर डाला है तो सिर्फ प्राणियों पर ही डाला है वह भी उनकी गलतियों के कारण । क्योंकि कलयुग नाम को जन्म देने वाला तो मानव ही है । यही कारण है कि कल यू की काली छाया सिर्फ मानव जाति पर ही दिखाई देती है अन्य किसी अन्य किसी प्राणी जगत अथवा किसी प्राकृतिक चीज पर नहीं । सत्य में ऐसा माना जाता था कि मनुष्य का कर्तव्य होता है जो किसी को क्षति नहीं पहुंचाता हो तथा मानव द्वारा किया गया हर कार्य मानव कल्याण ही होना चाहिए था । इसी वजह से मानव की श्रीष्टि क्रियाओं के कारण सत्य युगीन समय सत्युग कहलाता था । जब मानव अपने कर्तव्य मार्ग से निरंतर भटक गया तब ये स्थिति उत्पन्न हुई । उसे एक नया नाम कलयुग दे दिया गया । फिर क्या था कलयुग का राग छेड छेड कर कुछ अच्छे लोग भी अपने स्वार्थ हित को जन्म देने लगे और धीरे धीरे आज ये स्थिति उत्पन्न होने लगी कि मानव चाहते हुए भी अपना अफसोस नहीं जानता । पार रहा है तथा निरंतर कल युगीन जाल में फंसता जा रहा है । आज स्थिति इस तरीके के उत्पन्न हो चुकी है कि कई धर्मात्मा भी अब अपने स्वार्थ के कारण अपनी नैतिकता को भूल बैठे हैं और सुर से सुर मिलाकर कलयुग के विनाशकारी पहलू को अपनी और खींच रहे हैं । मजबूरी की व्यवस्था का उदाहरण देने वाली फिसल पडे तो हर हर गंगे नामक कहावत आज लगभग सभी पर सटीक बैठती हुई नजर आती है । इसका साक्षात उदाहरण यही है कि कई जगह धर्म का चोला पहनने वाले कई पुजारी धर्म के नाम पर धंधा करते हैं तो कहीं जनता की सेवा करने वाले राजनीतिज्ञ अपने स्वार्थ ईटकी खाते, झूठा वादा करते झूठा वादा जनता से करते हुए नजर आते हैं तो कहीं अपना कर्तव्य ठीक ढंग से निभाने वाली मानव जाति चंद रुपयों की खाते झूठे राजनीतिज्ञों की बातों में आकर अपना ईमान तक बेचते हुए नजर आती हैं । यानी कि हम ये कह सकते हैं कि हमने कलयुग रूपी लहर में ईश्वर तक पर कि चढ उछालने में कोई कमी कोई कसर नहीं छोडी हैं । मानव का हित फिर बार की बात होती है । जिस ईश्वर को हम सभी हिरदय में रमा हुआ मानते हैं, आज हमने उसी के प्रति नफरत फैला रखी है । ये कोई नई बात नहीं है कि आज के समय हर धर्म का एक नया पेशेवर बन जाता है तथा सभी धर्म अपने ईश्वर को ही महत्व देने लगते हैं । इससे तो यही कहा जा सकता है कि शायद इस दुनिया के निर्माण में कई ईश्वरों की भूमि कर रही होगी । जो ज्ञान किसी संत महात्मा द्वारा मानव जाति को उनके कल्याण के हिस्से दिया जाता था, आज उसी ज्ञान का मूल्य धन के रूप में निर्धारित होते थे । शायद ईश्वर को भी शर्म आती होगी । जो काम एक राजनेता का जनता और देश के प्रति होता था आज वही काम राजनेता के स्वार्थ की हत्या चढ गया है । जिस जल को पहले लोग धरती की माँ का दूध मानते थे, आज वही जल अपने किए का पछतावा कर रहा है । और तो और जिस धरती को लोग अपनी माँ का दर्जा दिया करते थे, आज वही लोग उसी धरती पर कई तरह के अन्याय और अत्याचार कर रहे हैं । इससे यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि जितनी भी प्राकृतिक घटनाएं इस कलयुग में घटित होती है, वह शायद मानव को सुधारने के लिहाज से ही घटित होती होंगी कि तुम्हारे किए का परिणाम आज तुम्हारे सामने प्रत्यक्ष मौजूद हैं । जिस तरीके से प्रकृति अपना विनाशकारी रूप वर्तमान में हमें दिखा रही है, इससे पहले किसी भी युग ने उसने अपना ऐसा चेहरा नहीं दिखाया । अच्छा कहा यही जा सकता है कि ये कहीं न कहीं हमारी सोच का ही परिणाम है कि जो परिणाम हमने इससे पहले कभी नहीं देखी वह सब आज हमें देखने को मिल रहे हैं । ये कहीं ना कहीं सही साबित होगा कि हमारे बढते स्वार्थ का जो योगदान इस कलयुग बढावा देने में हैं, ऐसा योगदान हमारे किसी अन्य चीज का तो नहीं है । मान लो यदि हम अपने स्वार्थ की खाते पेडो को काटते हैं तो भूकंप तो नहीं है । ठीक इसी तरह से ऐसी कई बातें हैं जो कलयुग की व्याख्या करने में बिल्कुल सटीक बैठती हैं । कलयुग वास्तव में कोई पूरा युग नहीं है किन्तु हमारी बुरी आदतें कलयुग को भूरा बना देती हैं और इसका परिणाम भी हमारे सामने तुरंत मौजूद हो जाता है । आज चेन्नई के बाद ये है कि हम सब कुछ जानते हुए भी अपनी सोच में बदलाव नहीं करना चाहते हैं । यदि इसी तरह से हमारी सोच ठहरे हुए तालाब के जल की तरह रही तो हमारे हिरदय से प्रकृति को भी दुर्गंध आने लगेगी और अंतर कहा इसका परिणाम यही होगा कि हम अपने पूरे मानव समाज का अस्तित्व इस देश और दुनिया से मिटा चुके होंगे । कलयुग और राजनीति राजनीति का संचालन एक प्रकार से सामयिक क्रियाओं के अनुसार ही होता आया है । यही कारण है कि हर राजनीतिक पहलू समय के साथ साथ बदलते रहते हैं और यही एक वास्तविक राजनीति की हकीकत भी है । चाहे प्राचीन राजनीति हो चाहे आधुनिक राजनीति हर एक तरह की राजनीति हमेशा से ही समय की पगडंडियों पर ही चलती हुई आई है । जब प्राचीन सभ्यता हुआ करती थी उस समय भी राजनीति प्राचीन पहलुओं को मद्देनजर रखते हुए की जाती थी । लेकिन आज यदि आधुनिकता है तो राजनीति भी आधुनिक तरीके से ही की जाती रही है । इसीलिए यही कहना उचित होगा कि राजनीति का समय के साथ जो परिवर्तन का संबंध रहा है वह प्रारंभ से ही रहा है तथा हम चाहते हुए भी उसमें किसी प्रकार का कोई भी परिवर्तन नहीं कर सकते हैं । अगर हम राजनीति के तौर तरीको में वर्तमान को देखते हुए यदि कोई परिवर्तन करना चाहते हैं तो फिर इसके लिए सभी लोगों को एक मत रूप से सहमत होना पडेगा । तभी राजनीति में परिवर्तन संभव है अन्यथा जो तरीका प्रारंभ से चला रहा है उससे तो कोई कभी बादल ही नहीं सका । आज के समय की राजनीति जिस आधार पर की जा रही है उस आधार को हम यदि कलयुग इन आधार कहकर संबोधित करें तब भी हम कहीं से कहीं तक भी गलत साबित सिद्ध नहीं हो सकते हैं । इसकी वजह यही है कि राजनीति हमेशा से ही समय के साथ पेशी की जाती रही है । कल योगिन आधार वाली आज की राजनीति का साक्षात उदाहरण यही है कि आज के समय में बडे से बडे राजनेताओं पर लगने वाले कई तरह के आरोप यही साबित सिद्ध हो रहे हैं । जबकि एक राजनेता को तो हमेशा ही निष्कलंक इत होना चाहिए । आज का राजनीतिक इतिहास हमें यही शिक्षा दे रहा है कि यदि कोई राजनीति ये अपनी जिम्मेदारी ठीक तरह से निभा रहा होता है तो कई बदमाश राजनीतिज्ञ उस उस साफ छवि वाले राजनीतिज्ञ के रास्ते में कई तरह से अवरोध पैदा करते हैं और जनता चिपटा सारा का सारा खेल नोक दर्शक बनी देखती रहती हैं । इस तरीके से की जाने वाले राजनीति वास्तव में वो राजनीति मानी जाएगी जिसमें कि जनता द्वारा यदि एक बार नेता चन लिया गया तो फिर अगले पांच साल तक जनता का न तो राजनीति से कोई संबंध रह जाता हूँ और न ही अपने दिए गए मत का जनता को कोई मूल्य ज्ञात रहता हो । ये इसी का परिणाम है कि आज हम लोगों ने यदि वर्तमान समय को कलयुग कह दिया है तो हर चीज कलयुग के हिसाब से ही हो रही है । जबकि वास्तविकता तो यही है कि हमारे कर भी किसी भी काल का समय निर्धारित करते हुए आए हैं । ये सभी का मत है कि प्रकृति का अधिकांश संचालन मानव जाति के द्वारा होता है । फिर ये हमारे कर्तव्य को बनाती ही है कि हम वहीं काम करें जिससे इस प्रकृति पर अन्याय नहीं हो । हमारे बुद्धिमानी होने की ये जिम्मेदारी है कि हम अपनी जिम्मेदारी मानवता भरी सोच से निभाएं । ऐसी स्थिति में यही कहना उचित होगा कि इस संसार का कोई भी युग पूरा नहीं होता है । अगर कुछ पूरा होता है तो सिर्फ हमारी सोच । इसलिए यदि हम चाहे तो शत युग है और यदि हम चाहे तो कलयुग है ।
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