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भाग - 12 in Hindi

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AuthorMixing Emotions
सात वर्षों से चला आ रहा एक तरफा प्‍यार क्‍या दोनों तरफ होगा या अधूरा रह जाएगा? क्‍या दोस्‍ती प्‍यार में बदल सकती है या सिर्फ दोस्‍त ही बना जा सकता है? प्रेम और अंतरंगता के ताने-बाने में बुना बेहद रोचक उपन्‍यास है। Writer - Arvind Parashar
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अच्छा मैं बस अड्डे पर बैठा हुआ था । मैं लोगों को चलते हुए, खरीददारी करते हुए, बातें करते हुए और वो सब करते हुए देख रहा था । जो भी देखा जा सकता था, जो पुणे से बिल्कुल अलग था । ये मेरे लिए किसी खोज से भी पडा था । मालूम मुझे ये एहसास ही नहीं था कि मेरा देश मुझे क्या क्या दिखा सकता है । मेरा उद्देश्य मुझे यहाँ लेकर आया था । हालांकि मैं अपनी आखिरी मंजिल मैक्लॉडगंज से अभी भी तीन किलोमीटर था । मैं धर्मशाला में था । मुझे वहाँ तक पहुंचने में पांच दिन लगे थे । ऐसा नहीं था कि उन पांच दिनों में मेरे जीवन में कोई दिन फिर परिवर्तन आ गया था और मैं हिमाचल छुट्टियाँ मनाने गया था । अपना अंदाजा तो लगा ही सकता हूँ कि मेरा उद्देश्य कुछ अलग ही था । इससे भी महत्वपूर्ण वो था जो पांच दिन पहले उस रात पुणे से निकलने से पहले मेरे साथ हुआ था । मैं पुणे से हमेशा के लिए निकल गया था । गुलमोहर और अशोका से देवघर और सहयात्री पर्वत श्रृंखला सितौला था । श्रृंखला करते ये परिवर्तन किसी के लिए भी आसान नहीं होता है । मेरे लिए और कोई विकल्प नहीं रह गया था । मेरे अंदर सहत भरता जा रहा था । मुझे कुछ हो ही नहीं रहा था । मेरा मन दूसरी हो चुका था । मैं हर वक्त उसे बस उसे ही देख रहा था । वो भी मेरे लिए किसी वस्तु की तरह होती जा रही थी । ऐसी वस्तु जिसे मैं अपने मन की मासी से इस्तेमाल कर सकता था । ऐसी वस्तु जिसे मैं सहानुभूति से देखता था और इन सब से भी अधिक ऐसी वस्तु जिससे मैं अपना क्रोध शांत क्या करता था? अच्छा मेरे लिए ये बदलाव बहुत जरूरी हो गया था । ये बदलाव करने से पहले मेरे पास एक विकल्प था समर्पण, हार मान लेना । क्या कह रहा था मैं और हाँ, ये मुझे चिढा भी रहा था । जब मैं धर्मशाला के रास्ते पर था और कुछ ही मेडल दूरी पर था तो मैंने अपने आप को साथ वाले व्यक्ति से कुछ पूछने से रोक नहीं पाया । मुझे वो एक बहुत बृक्ष हो लगा और वह वही था । जब मैंने उसे ध्यान से देखा तो एक बार जो तय हो गई कि वह एक समय था महाशय मैं हार मानना चाहता हूँ । मैं परिस्थितियों के आगे समर्पण करना चाहता हूँ । मेरे जीवन में कोई उम्मीद, कोई आकांक्षा, कोई खुशी नहीं बची है । मैंने अपना जीवन दो हफ्ते पहले खो दिया है । पहले अपनी सारी कहानी उसे पांच मिनट के अन्दर सुनाती हूँ । मैं इतने दिनों से इससे बाहर आने का इंतजार कर रहा था तो मेरी ओर देखकर मुस्कुराया । उसने मुझे आशीर्वाद दिया और कहा हार चाहूँगा और समर्पण कर रहे हैं । इन सब को दे दो । मैं परिवर्तित करो । लोगों को देना शुरू करूँ । उनके चेहरे पर खुशी को देखो । प्रकृति को देना शुरू करूँगा और प्रमाण की खुशी होती हूँ । ईश्वर तुम्हारा भला करें । हम बस स्टॉप पर उतरें । मैंने उनका पीछा किया, वो किया और उसने मुझसे पूछा तुम यहाँ पर सारे जवाब फुंडे आए हो । एक बार जब मैं तुम्हें बता दूंगा तो तुम यहाँ सब कुछ मालूम है । मुझे कल मंदिर के पास हो । उसके बाद तो चला गया और मैं बस स्टॉप पर वापस लौट आया । वो मंदिर मैक्लॉडगंज था । मैं फोन भूत की और ऍम को फोन किया । वो फूट फूटकर रोने लगा । बहुत ज्यादा ही अच्छी और चाचा जी को भी हर दिन फोन कर लेना । हम सब तुम से बहुत प्यार करते हैं और सुनाओ मैं भी श्री के संपर्क में नहीं हूँ । मुझे मालूम है इससे उससे कोई फर्क नहीं पडता । मगर वो तुम्हारे बारे में ही पूछती रहती है । उसने मुझे कौन की सारी रिकॉर्डिंग दी है? क्या कह रहा है तो हम तो मुझे बस रुला रहा है । बहुत दुख होता है । मैं गौर से आगे नहीं पढ पा रहा हूँ । काश मैं को माफ कर पाता । मैं उसके साथ इतनी बता मेसी करने के लिए खुद को गुनहगार मानता हूँ । मैं बहुत चलकर तुमसे मिलने का बस एक बार पूछे । मेरा जवाब मिल जाए । हमने थोडी देर और बात की और उसके बाद मैंने फोन रख दिया । मैं मैक्लॉडगंज के लिए आखिरी बस पतला हालापुर धौलाधार श्रृंखला के पहाडियों में बसा मैक्लॉडगंज जिसके पीछे बहुत उनकी चोट किया है । कांगडा घाटे भी खुबसूरत तिब्बती परंपरा की एक बेदारी जगह दृष्यता में सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पर्यटकों की भरमार होती है । मैं इसे देखकर वशीभूत हो चुका था । मैंने पहले कुछ दिन वहाँ पे अलग अलग मठों की यात्रा की और सबको ढूंढने की कोशिश करता रहा । मैं नहीं आप का शुभ गलत हंग या दलाई लामा मंदिर में काफी समय बिताया । मेरा उद्देश्य बडा ही साधारण था । मैं अपने अंदर मौजूद हर किस्म के शैतानी ताकत से छुटकारा पाना चाहता था और मैं अध्यात्म को समझना चाहता था । यहाँ सब कुछ कितना शाम और आवेदन लग रहा था । ये जगह मुझे पूर्वोत्तर की याद दिला रही थी, जहाँ मेरा घर भी हैं । वहाँ कई दिन को जाने के बाद मुझे अपनी आवाज सुनाई थी । मैं बौद्ध पाठ्यक्रम में शामिल हो गया । मैं एक संत से मिला । उनका नाम था जिनको वो बहुत ही प्रतिभाशाली विद्वान थी और उन की हर बात का कहना मतलब होता था । हरमन भावना और कर्म के बारे में काफी तेज कर पाते करते रहे । डाॅ । मैंने दो पाठ्यक्रमों में हिस्सा लग गया था । मुझे ये एहसास हुआ कि बहुत धर्म एक धर्म से ज्यादा एक दर्शनशास्त्र हैं । ये जीवन जीने का एक तरीका है । मुझे ये पसंद आने लगा था । एक दिन जब मैं जो उनको से बात कर रहा था तब मैंने उन्हें इतिश्री के प्रति अपने गुस्से के बारे में बताया । उन्होंने मुझे गुस्से के बारे में एक सूरत कहानी सुनाई जिसे मैं कभी नहीं भूल पाता । एक औरत थी जो बहुत अमिताभ के नाम के उच्चारण का पार्ट करती थी मगर वो बहुत ही कठोर थी । वो नमो अमिताभ था के नाम का उच्चारण दिन में तीन बार करती थी । हालांकि वो ये काम पिछले दस सालों से भी ज्यादा समय से करती आ रही थी । फिर भी वह बुरी थी और लोगों पर हर वक्त चिल्लाती रहती थी । आपने प्रार्थना वो अगर बत्ती जलाकर शुरू करती थी और फिर वो एक छोटा सा घंटा बजाया करती थी । एक तो जो उसे सबक सिखाना चाहता था, उसके दरवाजे पर उसी वक्त आया जब अपनी प्रार्थना शुरू करने वाली थी और आकर चिल्लाया कुमारी यूएन कुमारी ऍम अब क्योंकि ये उसके प्रार्थना का समय था इस की वो बहुत छिड गई मगर उसने अपने आप से कहा मुझे अपने गुस्से से लडा है इसलिए मैं इसे अनसुना कर दूंगी । और फिर बोलना मूंग अमिताभ था । नमो अमिताभ था । लंबू अमिताभ था शक्ति नहीं मगर वो आदमी भी उसका राम चिल्लाता रहा । इससे वो और भी ज्यादा चिल्लाने लगी । धीरे धीरे उसके लिए की असर हो गया और उसने मन में सोचा की क्या वो अपनी प्रार्थना को थोडी देर के लिए रोक कर उस आदमी से बात करते हैं लेकिन फिर भी वो नमो अमिताभ था । नमो अमिताभ था नमो अमिताभ था जागती रही है । बाहर खडे उस व्यक्ति ने ये सुन लिया था और वो भी उसका नाम चिल्लाता रहा कुमारी नो एंड कुमारी नाॅन जब उस औरत से रहा नहीं गया तो वो उठी और मुख्य दरवाजे पर आई और उसने चिल्लाकर कहा तो मैं ऐसा बताओ करने की क्या जरूरत है? मैं आपकी प्राप्त कर रही हूँ और मेरा नाम लेकर बार बार चिल्ला रहे हो तो व्यक्ति मुस्कुराया और उसने कहा मैंने तो तुम्हारा नाम से दस पारलिया और तुम इतनी जल्दी गुस्से में आ गए । अमिताभ बुद्धा का राम तुम पिछले दस वर्षों से ले रही हो तो ज्यादा सोचो उसे तुम पर कितना गुस्सा आता होगा । ये कहानी सुन कर मैं रोमांचित हो रहा था । कितना साधारण था फिर भी उसका मतलब कितना कहना था? शिक्षण का मतलब भी तो यही था जो मैंने स्कूल में पढा था और जो मैंने कॉलेज में पढा था वो मुझे नौकरी दिला सकते थे । जो भी बहुत याद समझ रहा था, मुझे सफल बना सकते थे । मगर इन सब के बाहर की पढाई का भी अपना महत्व होता है । वे महत्व जिसे मैं आज से पहले नहीं जानता था, वहाँ के पार्ट पर ही विलक्षण थे । जो कुछ भी मुझे सिखाया गया वह बहुत ही प्रतिभाशाली था । मेरे बदलाव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी । मैं जानता था कि रास्ते में अच्छा नहीं भी आएंगे । ध्यान भंग भी होगा मगर फिर भी मैं आगे बढता रहा हूँ । यह उतना आसान नहीं था जितना लग रहा था । तो इस प्रमाण में कुछ शक्ति तो है और मैंने उन्हें मानना शुरू कर दिया था । ये शक्तियां आप को चंदा करती है मगर एक बार फिर मैं आपको बता दूँ । ऐसा नहीं होता कि आपने बात शुरू की और उसने अपना काम शुरू कर दिया । ये तभी काम करती है जब आप खुद ठीक होना चाहते हूँ । इसीलिए ये इतना आसान नहीं है जितना आसान लगता है । मजेदार बात ये है कि जब हम टूट चुके होते हैं और हम ये भूल जाते हैं की दुनिया में अभी भी ठीक करने वाली शक्तियां मौजूद हैं और यही वह समय जब संभाल अपना काम शुरू करता है । मैं उस से लगातार संपर्क में था । जैसे जैसे मैं नजदीक आता गया मुझे अन्य बौद्ध संतों से मिलने का मौका मिला । इन हरयाली में इन पर्वतों में चांद के निकट सितारों के निकट ऍम तो इसका मतलब है कि आपने ठीक हो रहा था । अगले कुछ दिनों में मैं किताबें पढने में दिलचस्पी लेने लगा । उनके पास ही का भूतपूर्व पुस्तकालय था । मैं उसे बहुत प्रभावित हुआ । उनके पास हर उस विषय की किताब थी जिसके बारे में हम बस कल्पना करते हैं, किताबें पढने से आपकी चेतना में जो शांति आती है वह अभूतपूर्व है । ऐसे आप ध्यान होते हैं । आप शांतचित्त होते हैं और भी बहुत कुछ होता है आपके साथ? यदि मैं यही कहूँ कि मैं खुद एक आध्यात्मिक गुरु बनता जा रहा था तो मेरी मूर्खता होगी । हालांकि लोगों की पहली नजर में ऐसा ही लगेगा । मगर मेरा विश्वास करेंगे । मैं उससे कोसों दूर था । बस एक बात थी कि मेरे पास एक दृढ इच्छा शक्ति थी । मैं प्रक्रिया के एक बहुत महीन स्वरूप में था । मैं इसमें ड्रम चुका था । जब मैं कोई किताब पढ लेता था तो मैं थोडा काम भी करता था । जैसे पुस्तकालय की सफाई करना, उस जगह पर झाडू पोछा लगाना इत्यादि प्रार था । वहाँ पर एक नित्यकर्म था, रात होने पर मैं सितारों को देखता रहेगा और मैं आपको पूरे विश्वास के साथ बता सकता हूँ कि गौरी अब और भेज ज्यादा खुश थी । ये मुझे जहाँ कहीं भी ले जा रहा था, इसमें कौरी का एक बहुत बडा हाथ था । उसने मुझे दोबारा सांस लेने की शक्ति दी थी । उसने मुझे डर से लडना सिखाया था तो मैं अपने आप को उस स्वरूप में डाल रहा था जिसमें वह मुझे देखना चाहती थी । मैंने उससे बात की, हाथ हिलाकर उसका अभिभादन किया और वापस अपने कमरे में लौट गया । मैंने यहाँ जो कुछ भी सीखा उससे मुझे अपने आप को इस प्रमाण से एक आध्यात्मिक स्तर पर जो ना आ गया था तो एक तरह से ये ब्रह्मांड के साथ एकाकार होने जैसा था । गौरी के साथ एकाकार होने चाहता हूँ क्योंकि वो भी संभाल थी । अब उससे बातचीत करते वक्त मैं ज्यादा सहज रहता था । यही कारण है कि पिछले तीस तीनों से मैं नहीं एक बार फिर उसके बारे में बात नहीं की थी । अब वो मुझ से जोड चुकी थी । हमारी बात अब तुमसे होती थी । वो भी बहुत खुश थी । वो भी आज सात लग रही थी । मैं ये आसपान में देख सकता था । सितारे मुझे देखकर टीम से बातें थे । मालूम अब वही वो सीतारा होगा । मेरे लिए अब उस सितारे को गिराने की कोई जरूरत नहीं थी । हो जाती थी मुझे वैसे ही पसंद थी । तीस दिन पहले मैंने उससे अपने साथ रहने को कहा था और अब वो मेरे साथ थी । हमारे बीच की दूरी कम हो चुकी थी । वो मेरे दिल में रहती थी । वो हमेशा ही मेरा प्याज रहेगी । पिछले तीस दिनों से मैं नहीं घर पर किसी से बात नहीं की थी । मगर वे सब मेरे मन में बसते थे । मेरे पास मेरे जीवन के हर व्यक्ति के लिए एक प्रार्थना थी । इसलिए मैंने सबसे एक एक करके बात करने का फैसला किया । ठीक है, संक्षेप में मैं परिस्थितियों को समझने लगा था । मैं ये समझने लगा था कि दर्द के बावजूद खुशी कैसे पाई जा सकती है और ये भी कि अच्छे कर्म करने का प्रयास कैसे किया जाता है । मैं ये नहीं कहूंगा की मैं जाकर के अस्तर पर पहुंच गया था मगर फिर भी मैंने कुछ दूरी तो तय कर ली थी । आज जब मैं सबसे बात करूंगा तो मैं और भी संयमित और अलग अलग दूंगा । मेरे पिताजी को मुझसे एक बेटे की आवाज सुनाई देगी । मेरी माँ को, एक अच्छे बेटे की, टॉम को एक अच्छे खास दोस्त की और भगवान को एक विश्वास पात्र की आवाज सुनाई देगी । मैं जैसे ही रोनबो तक पहुंचा मेरे हाथ पैर कांपने लगे हैं । मैं घबरा गया । मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है? मुझे लगा शायद मैंने जो कुछ भी सीखा है वह सब शर्ट था । अगर मैंने शांति का अनुभव कर लिया है तो ये छोटी छोटी खुशियां मुझ पर असर नहीं कर सकती है । इतना तो बिल्कुल भी नहीं की मैं भावनाओं में बह असम मैं जल्दी से भागकर मंदिर में लौट आया । मेरे संत गुरु बस मुस्कुरा रहे थे और उन्होंने मुझे कुछ भी नहीं पूछा । मैंने भी उन्हें कुछ नहीं बताया । मैं उन्हें कैसे बताता हूँ की मुझे ये लग रहा है कि मैं विफल हो गया हूँ । मैं उन्हें ये कैसे बताया था कि मैं अपने आप को सफल तभी मान पाता हूँ जब मैं उनके या उस मंदिर के आस पास होता हूँ । मैं उन्हें कैसे बताता की शायद मैंने उन्हें निराश किया है । एक ओर जहां ये सवाल मुझे भेज रहे थे वहीं दूसरी ओर मैं उनसे बेईमान भी नहीं कर सकता था । मैंने उनसे इसके बारे में अगले दिन बात करने की सोची । उस रात में सोने की बहुत कोशिश करता रहा मगर मुश्किल से मैं दो घंटे ही सूप आया था । अगले सुबह जब मैं उठा तो मैंने देखा की एक चिट्ठी मेरे पास रखी हुई है । उसने मुझे जो सिखाया वह जीवन में मैं कभी नहीं भूलूंगा । बहुत धर्म नहीं बताता है । ज्ञान का विकास प्रेम से होना चाहिए । एक छोड पर तुम एक कोमल हिरदे वाले बोर हो सकते हो तो दूसरे छोर पर तुम भावना हीन होकर ज्ञान प्राप्त कर सकते हो । बौद्ध धर्म में इन दोनों के बीच का रास्ता आपका आता है । सबसे बडा ज्ञान तो ये देख पाना है कि असलियत में हर प्रतिभाशली अधूरा है, क्षणिक है और किसी भी खास वस्तु से जुडा हुआ नहीं है । ज्ञान वो नहीं होता है जो हमें बताया जाए । हम उस पर विश्वास कर ली । बल्कि वह तो सत्य और वास्तविकता को समझने और परखने का नाम हैं । ज्ञान के लिए एक स्वतंत्र विषय मिस्टर और समावेशी मस्तिष्क की जरूरत होती है । बहुत खतरनाक की रात साहस खैर होता और नमिता मानती है इसलिए धैर्यवान बनाऊँ, सुनियोजित बनो, स्वतंत्र बनो, बाकी सब खुदबखुद तुम्हारे पास चला आएगा । और हाँ ये कभी ना भूलना की जो तुम सीख रहे हो वो तुम्हारा ही एक महान है । अपने जीवन के हर अनुभव में किसी ना किसी बोर्ड पर उसका प्रकटीकरण जरूरी होगा । बस लकी रहा हूँ । अब वापस आ जाओ जहाँ तुम्हें होना चाहिए । और हाँ, अंत में देना बंद कर तो जुनको । मैं उसे लेकर बाहर आ गया । मैंने लोगों से उनको के बारे में पूछा । किसी को कुछ भी नहीं पता था । कुछ नहीं जानता था कि मेरे अंदर और भी जिज्ञासा जकी है । इसीलिए मैं मंदिर गया और उस संत से मिला जो हमारे साथ प्रार्थना स्तर पर बैठा करते थे । उन्होंने मुझे बताया कि उन्होंने हमेशा मुझे अकेला ही देखा है । उन्होंने मुझे अकेला ही प्रार्थना करते हुए देखा है । इसलिए जो उनको नाम का कोई व्यक्ति नहीं है । हाँ, कोई भी व्यक्ति रही था । मैंने ऊपर आसमान की ओर देखा और कहा गौरी, मैं तब तक हार नहीं मानूंगा जब तक तुम हार नहीं मानी । मैं हमेशा ही चलता जाऊंगा । धन्यवाद शुरू । मैं इस बात में बहुत विश्वास करता हूँ कि जब जीवन आपको दर्द देता है कम या ज्यादा तो साथ ही साथ वो आपको उसे बर्दाश्त करने की शक्ति भी देता है । विकल्प हमेशा हमारे अंदर ही होता है । या तो हम एडी चोटी का जोर लगती क्या समर्पण करते हैं? कुछ लोग समर्पण करते थे, हैं । कुछ अपने दोस्तो, परिवारजनों से ही बात करते हैं और कुछ लोग इसे अनदेखा करते थे । अगर मुझे अपने बारे में बात करनी हो तो मैं इन में से किसी भी परिस्थिति में नहीं आता । मैंने अपनी हर पीडा का बहादुरी से सामना किया । क्या ये मुझे विलक्षण बना देता है? नहीं क्योंकि वो व्यक्ति अपनी पीडा को अनदेखा कर देते हैं । उन के दो पहलु होते हैं । पहला जो पीडा को सहते रहते हैं और उसके परिणाम से भयभीत रहते हैं । किसी तरह से ऐसे लोग भी होते हैं जो उसे इसलिए अनदेखा कर देते हैं क्योंकि भी इसे इस लायक नहीं समझते हैं कि उस पर ध्यान दिया जाएगा । वे उसका सामना कर पाते हैं और उस पर विजय पाते हैं । मानो वे मानसिक और भावनात्मक रूप से बहुत मजबूत है । मेरा लक्ष्य ये नहीं था दर्द बर्दाश्त करना नहीं बल्कि और भी अधिक मजबूत होना । मानसिक और भावनात्मक तौर पर ।

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सात वर्षों से चला आ रहा एक तरफा प्‍यार क्‍या दोनों तरफ होगा या अधूरा रह जाएगा? क्‍या दोस्‍ती प्‍यार में बदल सकती है या सिर्फ दोस्‍त ही बना जा सकता है? प्रेम और अंतरंगता के ताने-बाने में बुना बेहद रोचक उपन्‍यास है। Writer - Arvind Parashar
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