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भाग अठारह है । इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा नहीं दिल्ली में आपका स्वागत है । स्थानीय समय तेरे पचास है और तापमान बत्तीस डिग्री सेल्सियस है और हवा चौंतीस प्रतिशत नाम है अपनी सुरक्षा के लिए कृप्या अपनी कुर्सी की पेटी बांधे रखे । जब तक की कैप्टन फाॅल साइन बंद नहीं कर दी । आप का दिन शुभ हो । लोहित गहरी नींद था जब इस अनाउंसमेंट ने उसी जगह दिया हिंदुस्तान पहुंच गए उसी संतोष और शांति महसूस हुई । घर आखिर घर होता है चाहे कैसा भी हो । काश तृषा मुझे सरप्राइज देने के लिए हाथों में प्लेकार्ड लेकर एयरपोर्ट के बाहर खडी हो जिसमें लिखा हूँ मेरा होने वाला पति ये सोचकर लोहित खिलखिलाकर हंस पडा कहीं ना कहीं लोहित के दिमाग में ये अहसास तो था की कुछ बहुत ही बुरा हुआ है और वह नहीं आएगी लेकिन उसका दिल्ली के मानने को तैयार नहीं था । इमिग्रेशन काउंटर पर ये कन्फर्म करने के बाद की वो सब कुशल हिंदुस्तान वापस आ गया है । लो हिट एयरपोर्ट टर्मिनल से बाहर निकला लोहित देखा की कुछ दूरी पर तृषा हाथों में गुलदस्ता लिए खडी थी । उसे देखते ही लोहित के लंबे सफर की सारी थकान छूमंतर हो गई । उसके शरीर में एक नई एनर्जी भर गई । तेजी से चल के लोहित उसके पास गया तो उसने देखा की असल में वो तृषा नहीं बल्कि कोई और थी जो दूर से तृषा जैसी दिख रही थी । लोहित के मम्मी बातों से लेने आए थे । उन्हें देख कर लोग इतने सोचा लगता है तो क्या उसे सरप्राइज देने के लिए घर पर छुट्टी होगी और वह इतनी शैतान है कि उसने मम्मी पापा को भी अपने प्लान में शामिल कर लिया होगा । लोहित के पहले विदेश दौरे से उसका स्वागत करने के लिए उसने लिविंग रूम को सजाया होगा । हाँ और घर पर ही झुककर लोहित का इंतजार कर रही होगी । लोहित कमनीय मानने को तैयार ही नहीं था कि त्रिशा उससे बात नहीं कर रही है । अपने मम्मी पापा को देखते ही लोग इतने सीधे पूछा माँ तृषा कहा है जब से मैं अमेरिका गया हूँ उसने मुझसे बात नहीं की है । ये सुनते ही लोहित की माँ का चेहरा पीला पड गया । एक हफ्ते बाद अपनी बेटी को देखकर उनके चेहरे पर जो खुशी थी वो अचानक से भी की पड गई । चलो घर चलते हैं फिर इस बारे में आराम से बात करेंगे । पापा ने सख्त चेहरा बनाते हुए कहा ये सुनकर रोहित और भी आश्वस्त हो गया कि त्रिशा उसके घर में ही छिपे हैं । इसलिए तो पापा ने कहा कि घर चल फिर बात करते हैं । लोहित । मन ही मन मुस्कुराने लगा और कुछ भी नाम समझने का नाटक करने लगा । लोहित जानता है दिशा को सरप्राइज देना कितना पसंद है । राष्ट्रीय भरमाने लोहित से आंख नहीं मिलाई । पिताजी भी गंभीर लग रहे थे । उन्होंने लोहित से ये भी नहीं पूछा कि लोहित उनके लिए अमरीका से क्या लाया । लोहित ने सोचा कि दोनों कितना अच्छा नाटक कर लेते हैं । आधे घंटे बाद वे घर पहुंचे । लोहित ने अपने फ्लैट के दरवाजे को बडी उम्मीद के साथ खोला । लेकिन जैसा उसने सोचा था लिविंग रूम वैसा सजाया हुआ नहीं था । वो भाग कर अपने बेडरूम में गया । ये देखने की कहीं बैडरोल्स सजाया हुआ होगा । उसे सोचा कि काश तृषा उसकी दरवाजे के पीछे छुट्टी हो और जैसे ही वो अंदर जाएगा वो बाहर निकले और उसे एक जोर की झप्पी देते हैं । मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ । लोहित ने अपने दिल को झुठलाना बंद किया और मौके की गंभीरता को समझाते हुए पूछा, पापा तृषा के बारे में आप क्या बताने वाले थे? लोहित यहाँ बैठो पापा ने लोहित को बुलाकर सोफे पर बैठने को कहा । क्या हुआ माँ लोहित के लिए पानी लाने रसोई में गई । प्लीज बताओ क्या हुआ? लोहित ने लगभग रोते हुए पूछा । अब उसे एहसास हो गया कि उसे जो आभास हो रहा था कि कुछ बहुत बुरा हुआ है, वो सच है । अब उसके जलने उम्मीद छोड दी और दिमाग की बातें मानकर उदास हो गया । मैं पानी का ग्लास लेकर आई और लोहित के सामने टेबल पर रख दिया और उसके बाजू में बैठ गई । मम्मी और पापा ने लोहित के दोनों हाथों को अपने हाथों में पकड लिया । बाबा बताने लगे कि क्या हुआ था । र्इशा के पिताजी ने दो दिन पहले मुझे फोन किया और कहा कि वे लोग की शादी नहीं करना चाहते हैं और वे हमेशा के लिए ये शहर छोड कर जा रहे हैं । लोहित और तेज रोने लगा । लो हित की मामी रोने में लोहित का साथ देने लगी । पापा ने आगे कहा, मैंने इसका कारण पूछा लेकिन उन्होंने कहा कि उनके साथ कोई दुर्घटना घटती है जिसका जिक्र वो नहीं करना चाहते । लोहित के सर पे तो जैसे आसमान टूट पडा । उसने रोते हुए पूछा आप ने मुझे पहले बताया कि उन्हें लोहित ने सोचा कि कहाँ शीर्ष अर्पित बुरा सपना हूँ । उसने खुद को चिमटी काटी लेकिन कोई दर्द महसूस हुआ । पहले ही उसके दिल में बहुत दर्द भरा हुआ था । अगर वो मेरे साथ ऐसा इसलिए कर रही है क्योंकि मैंने उसे अमेरिका में रहने के लिए मजबूर किया तो मैं वादा करता हूँ सपने में भी कभी अमेरिका के बारे में नहीं सोचूंगा । रोहित भी बखूबी जानता था कि त्रिशा ये सब जानबूझ कर नहीं कर रही होगी । उसके परिवार के साथ कुछ बहुत बुरा हुआ होगा । कोई बहुत बडी मजबूरी होगी । लोहित को तृषा के ऊपर जरा भी गुस्सा नहीं आ रहा था बल्कि वो तो तृषा को लेकर कि चिंतित था । परिस्थितियों को समझने के लिए लोग इतने तृषा को फोन किया लेकिन उसका नंबर बंद था । लोहित ने उसके पापा मम्मी और उनके लैंडलाइन नंबर पर भी फोन किया लेकिन सभी नंबर बंद थे । लोहित की मम्मी ने अपने आंसू पहुंचती हुए कहा बेटा चिंता मत करो, हम तुम्हारे लिए उससे भी अच्छी लडकी ढूढेंगे । माताओं का विजय अति कोमल चिंता होती है तो सिर्फ अपने बच्चों की, फिर पडोस में चाहे आगे क्यों ना लगे हैं । मैं उसके घर जाकर देखता हूँ । शायद पता चल जाएगी आखिर ऐसा क्या हुआ जिसके कारण हम सबकी जिंदगी उजड गई । लोहित ने सोचा और लिविंग रूम की दराज में बाइक की चाबी तलाशने लगा और लोहित ने मेज पर रखे पानी के ग्लास को छुआ तक नहीं । बेटा कोई जरूरत नहीं है वहाँ जाने की । अगर उन्होंने शादी से इनकार किया है तो जरूर कोई वजह होगी । ये भी तो हो सकता है कि उन्हें कोई बेहतर लडका मिल गया हूँ अपनी बेटी के लिए जो उनकी ही बिरादरी का हूँ । लोहित के बाबा नाराज थे जोकि लाजमी था । भला वो थोडी ना लोहित की तरह प्यार में अंधे थे । लोहित का दिमाग सुनने था । उसे कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था और कई सारे सवाल उसके दिमाग को घेरे हुए थे । अपने मम्मी पापा को अनसुना कर लोहित घर से निकला और तेजी से बाइक चला गया । तृशा की सोसाइटी पहुंच गया । तृशा आठवीं मंजिल पर रहती थी लोग इतने लिफ्ट के बटन को लगातार कई बार दबाया मगर लिफ्ट नहीं आई । उससे इंतजार हुआ और तेजी से सांस रोकते हुए आठ मंजिल पर वो सीढियों से चढ गया । जैसे ही वह वहां पर पहुंचा उसने देखा कि उसके फ्लाइट के दरवाजे पर ताला लगा हुआ था । लोहित नब्बे किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से बाइक चलाकर वहां पहुंचा । एक सांस में आठ मंजिल सीढी चढ गया और उसे मिला क्या केवल एक डाला लोहित तृषा को अपने पूरे दिल से प्यार करता था पूरी ईमानदारी के साथ । लेकिन तृषा ने ईद बार फिर से वही किया जो उसने बचपन में किया था । क्या इस बार पहले से कहीं ज्यादा बदतर लोहित तृषा के फ्लैट के बाहर ही फर्श पर बैठ गया । उसका शरीर पसीने से भीगा हुआ था । उसने वहीं बैठ कर अनंतकाल तक तृषा के आने का इंतजार करने का फैसला किया । उसका फोन बज रहा था । उसके पापा मम्मी उसे कॉल कर रहे थे लेकिन लोहित उनसे बात नहीं करना चाहता था । लोहित त्रिशा की सेवा किसी और से बात नहीं करना चाहता था । करीब दो घंटे के इंतजार के बाद तृषा के पडोसी ने दरवाजा खोला । लोहित वहाँ एक शराबी की तरह जमीन पर पडा था । उस पारसी महिला ने पूछा दिख रहा तो मैं यहाँ क्या कर रहे हो? मैं उनका इंतजार कर । राव आंटी वो कहाँ गए क्या तो लोहित हो । आंटी ने पूछा । लोहित की आंखें आशा से भर गए । उसे लगा कि त्रिशा ने उसके लिए जरूर कोई संदेश छोडा होगा । हाँ आंटी मैं लोहित हूँ । लोहित ने खडे होकर कहा कहाँ गए हैं वो लोग वापस कब लौटेंगे? उन्होंने ये शहर जोड दिया ऍम वो कभी वापस नहीं आएंगे । मुझे नहीं पता कि अचानक क्या हुआ । उस लडकी की तो शादी भी तय हो गई थी । फिर भी वो अचानक यहाँ से चले गए । क्या उन्होंने आपको कुछ नहीं बताया कि वह कहा और क्यों जा रहे हैं? नहीं मैंने जाने का कारण पूछा लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया । वो बहुत ही दुखी लग रहे थे । वो लोग आपस में भी कुछ बात नहीं कर रहे थे । जाती जाती तृषा मेरे पास आई और मुझे लिफाफा दिया । उसने कहा कि कुछ दिनों के अंदर लोहित नाम का एक लडका मुझे ढूंढते हुए यहाँ पर जरूर आएगा । उस ये लिफाफा दे देना । रुको मैं लेकर आती हूँ कहकर वह अंदर चली गई । लोहित फिर से फर्श पर बैठ गया । खडे रहने की ताकत उसमें नहीं थी । कुछ पलों में आंटी आई और एक सफेद सीलबंद लिफाफा लोहित को सौंप दिया । लोग इतने ऐसे काटते हुए हाथों से वो लिफाफा पकडा जैसी कोई व्यक्ति जिससे बरसों से कुछ नहीं खाया हूँ उसे खाना मिल गया हो । उस लिफाफे में तृषा का लिखा एक पत्र था लोहित । उसकी लिखावट आसानी से पहचान सकता था । उस की लिखावट इतनी सुंदर है कि माइक्रोसॉफ्ट को उस की लिखावट का एक नया फोन लॉन्च कर देना चाहिए और उस पॉंड का नाम तृषा रख देना चाहिए । लोहित ने पत्र को आहिस्ते से पकडा और सहलाते हुए उसे पडने लगा लोग हैं मुझे पता है हमारे साथ जो कुछ हो रहा है वो हरगिज नहीं होना चाहिए था । लेकिन अफसोस की ऐसा हो रहा है । जीवन में ऐसी परिस्थिति आती है जिन्हें हम नियंत्रित नहीं कर सकती । शायद इसे ही हम नियति कहते हैं । जब तक तुम अपने सपनों के देश से वापस लौट होंगे और ये चिट्ठी पढ होगी । मैं इस दुनिया में जीवित नहीं रहूंगी । मैं आत्महत्या करने जा रहे हो । लोहित की आंखों के सामने अंधेरा छा गया । कुछ पलों के लिए वह आगे बढने सका । लोहित नहीं सुनिश्चित करने के लिए पिछली पंक्ति को कई बार पढा की उसने सही पढा है या नहीं । मुझे पता है कि इस बात पर यकीन करना तुम्हारे लिए जरा मुश्किल होगा । पर तो में सच्चाई को स्वीकार करना ही होगा । हमारी शादी में बस कुछ ही दिन बचे थे और मैं तुम्हें दहलीज पर छोडे जा रही हूँ लेकिन यकीन मानो में कभी ऐसा करना नहीं चाहती थी । सिर्फ तुम्हें क्या? मैं तो इस दुनिया को ही छोडकर जा रही हूँ क्योंकि ये दुनिया और मुझे गवारा नहीं । खासकर दिल्ली मुझे गवारा नहीं तुम सही थी । लोहित और मैं गलत भारत रहने के लिए अच्छी जगह नहीं है । अच्छा है कि तुम ने अमरीका में रहने का फैसला किया है । मैं तो मैं ऐसे अचानक छोड कर जा रही हूँ । तो मैं लगता होगा ना कि कितनी बुरी हूँ मैं । मगर मेरा यकीन करो लोहित बुरी मैं नहीं मेरे हालत है । किसी शीशे की तरह टूट गई हूँ मैं और तुम्हें चोपना जाऊँ इसलिए तुम से दूर जा रही हूँ तो मैं पता है जब हम स्कूल में पढती थी शायद तब मुझे तुमसे प्यार हो गया था । मगर उस वक्त ये मेरी समझ में नहीं आया । मैं इतनी छोटी थी कि मुझे पता ही नहीं था की यार क्या होता है । लेकिन अब मैं जानती हूँ मुझे जब भी हसी आती थी तो मैं तुम्हारे साथ रहना चाहती थी । जब मुझे रोना आता था तो मैं तुम्हारी कंधे पर सर रखकर होना चाहती थी । मैं अपना हर पल तुम्हारे साथ बिताना चाहती थी ही, प्यार नहीं तो और क्या है? इस तरह बेरुखी से पत्र लिखने की बजाय मैं तुमसे आखिरी बार मिलना चाहती थी । मैं तुम से रूबरू होकर जीभरकर होना चाहती थी । एक आखिरी बार तुम्हारे गले लगकर तो प्यार करना चाहती थी लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया । नहीं आई तुम्हारे सामने क्योंकि मुझे पता है अगर एक बार में तुम्हारे सामने आ गई तो तो मुझे हर किस जाने नहीं होंगे । इसीलिए मैं तुमसे मिले बिना ही जा रही हूँ । वैसी डिटो में अलविदा कहना मेरे लिए सबसे कठिन काम होता है । मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती क्योंकि मैं तुम्हें कभी भी वो खुशी नहीं दे सकती जो एक लडकी अपने जीवन साथी को देती है । मैं चाहती हूँ कि तुम हमेशा खुश रहो । मैं चाहती हूँ कि तो मैं फिर से किसी से प्यार हो जायेगा और उसके साथ तुम्हारी शादी हो जाएगी । मेरे एक छात्र हरप्रीत के पिता की मदद से हमने रातोरात अपना घर बेच दिया और अब हम यहाँ से हमेशा के लिए जा रहे हैं । कहीं दूर बहुत दूर मैं इस जीवन का बोझ उठाना नहीं चाहती है । मैंने अभी तक अपने माता पिता को ये नहीं बताया है लेकिन जब मैं उन्हें इस शहर की भीडभाड से दूर किसी शांत जगह पर ठहराते होंगी । तब एक दिन चुपके से मैं आत्महत्या कर लूंगी । इंडिया गेट पर हमारी आखिरी मुलाकात ही आधे तो में तुम अपनी गाडी में बैठे और मैंने कहा था कि मैं घर जाने के लिए सीधे टैक्सी ले रही हूँ । मैंने झूठ कहा था । टैक्सी से घर तक का किराया बहुत जाता था इसीलिए मैं घर ना जाकर मेट्रो स्टेशन पर उतर गई । वहाँ सिर्फ दो मिनट की देरी के कारण मेरी मेट्रो छूट गई और अगली ट्रेन एक घंटे बाद थी । मुझे लगा कि मैं रात ग्यारह बजे तक घर पहुंच जाओगे लेकिन उस रात में घर पहुंची ही नहीं ।
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