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क्या और नीरज जी आप बहुत परेशान लग रहे हैं । क्या बताऊं? चिरंजीवी मैं तो अब आपको मोदी खाने के लायक भी नहीं रहता है । ऐसी बात हो गई । किरण ने पूछा सारी किरण मैं तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं कर पाए । कल सबूत के अभाव में हमारी जनहित याचिका खारिज हो जाएगी और माथुर सर के बारे में झूठी बात लिखने वाले ही सही हो जाएंगे । इस तरह वो बातें जैसे हम लोगों के सामने झूट कहते आए हैं । उस पर सच की मुहर लग जाएगी कोई बात नहीं । नीरज जी हमें तो इन्हें झूठ के दाग के साथ जीने की आदत पड गई पर दो किस बात का है कि सत्यमेव जयते इस सब से भरोसा उठ जाएगा । आप पत्रकार होकर भी अपने ही साथियों की खिलाफत करते हुए मेरा साथ दे रहे हैं और मेरे कारण बहुतों से पंगा मोल लिया है । पापा को कलंकित करने वालों के विरुद्ध लडाई में आप का साथ पाकर मुझे तो एक सच्चा मित्र मिल गया पर आप हर तरफ से सिर्फ नुकसान में ही रहे हैं । सर सरल मैंने तुमसे कहा था कि तुम से मुझे कोई बात नहीं करनी फिर भी तुम पीछा करते हुए यहाँ तक आ गए चलो किरण कहीं और चल कर बात करते हैं कहते हुए नीरज जाने लगा सर्कल में अदालत में स्वीकारना चाहता हूँ कि हमने माथुर सर को ब्लैक मिलकर के पैसों की मांग की थी और फिर अच्छा तुम सच करें । नीरज को जैसे आपने कानून पर विश्वास ही नहीं हुआ । हासिल मैंने मन बना लिया है । सरल ने कहा पर तुमने तो कहा था कि माथुर सर के घर पर तुम नहीं गए थे । नीरज ने कहा झूट कहा था सर, पहचाना कि परिवर्तन किया । नीरज ने आगे कहा, कल तक तो बडे हुए थे कि आप की बात ना सुनकर मैंने गलती की है । कल हुई घटना ने मेरी आंखें खोल दी है । सर कैसी? घटना? नीरज ने पूछा । मेरी दीदी भी जब झूठी पत्रकारिता की शिकार हुई तब मुझे मालूम हुआ कि थोडे पैसों के लिए या अहंकार के कारण लिखी जाने वाली झूठी खबर किसी के लिए कितना दुखदायी हो सकती है । क्या हुआ है दीदी के साथ? नीरज ने आशंका के साथ पूछा उन्हें नौकरी से निलंबित कर दिया । टीवी की बात सुनकर मैंने कलेक्टर मोटे से संपर्क किया तो उन्होंने कहा, आप जैसे किसी पत्रकार ने ही खबर अखबार में लिखी है । अब यदि हम कोई कार्यवाही नहीं करेंगे तो आप लोग हम पर उंगली उठाएंगे । फिर मैंने संबंधित लडकी के माध्यम से उस पत्रकार को ढूंढ निकाला जिसने दीदी के खिलाफ लिखा था और सच डलवाया । कैसा सच नीरज ने पूछा । उस पत्रकार ने अधिकारी के समक्ष ये माना कि पत्रकार होने के कारण मोहल्ले में उसका दबदबा है । ऐसे में उसकी एकलौती बहन को मोबाइल लाने जैसी छोटी सी बात के लिए उसकी शिक्षिका ने अनुशासन का पाठ पढाते हुए डांट लगाई तो बहुत बुरा लगा और फिर वो शिक्षिका को सबक सिखाने के लिए झूठी बातें लिखकर फसा दिया । फिर क्या हुआ? नीरज से पूछा । मैंने जैसे तैसे करके उस छुटभैया पत्रकार को कलेक्टर साहब के सामने प्रस्तुत किया । उस पत्रकार ने अपनी बहन के साथ सच कहते हुए क्षमा मांगने पर मेरे दीदी का निलंबन वापस ले लिया गया । अच्छा तो ये बात है । नीरज ने कहा हाँ और अब मैं भी आपसे एक सामान्य आया हूँ । आपने मुझे हमेशा से ही समझाने की कोशिश की । निष्पक्ष एवं सकारात्मक सोच के साथ पत्रकारिता करनी चाहिए । आपने मुझे ये भी कहा था कि हमें देश और समाज का चौथा स्तंभ माना जाता है तो हमें ये गरिमा बनाए रखनी चाहिए । लोगों को समस्या में डालना हमारा काम नहीं है । लोगों की समस्याओं को शासन प्रशासन तक पहुंचाना हमारा उत्तरदायित्व हैं । समस्याओं के लिए समाधान का रास्ता दिखाने का काम करने की जगह मैंने भी औरों को समस्याओं के घेरे में फंसाने का काम किया है । किसका मैं प्रायश्चित करना चाहता हूँ? अब मुझे जिंदगी का फंडा समझ में आ गया है । सर की पैसों की अतिरिक्त भी दुनिया है और ब्लैकमेलिंग कहीं से भी पत्रकारिता का हिस्सा नहीं हो सकती । ठीक है सर, कल मैं तुम्हें अदालत लेकर जाऊंगा । तैयार रहना दस बजे लेने आऊंगा । नीरज उत्साहित हो गए । तीन साल पहले प्रोफेसर की आत्महत्या के मामले में कोर्ट में नया मोड आया । इस शीर्षक से या इसी से मिलते जुलते शीर्षक के साथ अधिकांश अखबारों में ये खबर छपी की प्रोफेसर माथुर आदर्शवादी व्यक्ति रहे हैं जबकि शहर में पनपती उनकी लोकप्रियता को भुनाने के लिए कुछ स्वार्थी पत्रकारों द्वारा उन्हें ब्लैक मिल किया गया था । फॅमिली में सफल नहीं होने पर किसी आए हुए पत्रकारों ने माथुर सर के लिए ऐसा चक्रव्यू रचा की जिसमें प्रोफेसर साहब फसते ही चले गए और अभिमन्यु की तरह बाहर निकलने के रास्ते से अनभिज्ञ होने के कारण प्रोफेसर साहब की जान चली गई । पत्रकारों द्वारा रचित चक्रव्यूह ने न सिर्फ इंस्पेक्टर किरण माथुर कोई अनाथ किया बल्कि माथुर सर की मुंह बोली बहन को भी जान गंवाना पडा । इस तरह पैसों के लालची पत्रकारों के कारण दो इज्जतदार लोगों की जीवन लीला तो समाप्त हुई साथ ही मरनोपरांत उनके चरित्रहीन होने के दाग से पूरा परिवार कलंकित होता रहा । उपरोक्त बातों का खुलासा आज अदालत में उस समय हुआ जब ब्लैकमेलिंग में सम्मिलित सरल ने शपथपत्र के माध्यम से आज अदालत में हलफनामा दाखिल किया जिसमें सारी बातें लिखी हुई थी । अब तक झूठी खबरों के आतंक से गिरी हुई इंस्पेक्टर किरण किसी भी प्रकरण में पत्रकारों से कोई भी बात साझा नहीं करती थी क्योंकि उनकी नजरों में पत्रकारों का ब्लैकमेलर चेहरा ही रहा । अनिवार्य होने पर अपने अधीनस्थों को पत्रकारों के समक्ष भेज देती रही पर स्वयं अब तक पत्रकारों का बहिष्कार करती आई हैं । उम्मीद है किरण माथुर जी की भी शिकायत पत्रकारों से दूर हो गई होगी और अब पत्रकारों के प्रति उनका नजरिया भी बदलेगा । वैसे किरण जी एवं उनके जैसी सोच रखने वालों से कहना चाहते हैं कि जिस तरह उनके विभाग में सभी कर्मचारी रिश्वत लेने वाले नहीं होते उसी तरह सभी पत्रकार भी ब्लैक मिला नहीं होते हैं । किसी तरह अपने पाठकों से भी हम निवेदन करते हैं कि यदि कभी आपके विरुद्ध कुछ ऐसी बातें अखबारों में छप जाती है जिससे आप सहमत नहीं है तो उसका खंडन करने का आपको अधिकार होता है । अखबार में छपी खबरें पत्थर की लकीर नहीं होती है और यदि किसी व्यक्ति विशेष के द्वारा कभी आपको ब्लैकमेल किया जाता है तो उस पत्रकार की शिकायत लेकर आप संबंधित अखबार ये टीवी चैनल के मालिकों तक पहुंचे । फिर भी बात न बने तो अदालत का दरवाजा सबके लिए खुला है । जीवनमूल्य इसे किसी के अच्छा या बुरा कहने पर खत्म करने का अधिकार संवैधानिक नहीं है । अखबार को पढते पढते किरण की आंखे भराई वो तुरंत ही माँ के पास अस्पताल पहुंची और अखबारों की प्रतियां दिखाते हुए पडने लगी । अखबार पढते पढते ही किरण ने देखा कि माँ का पूरा शरीर थरथराने लगा है । घबराकर चिल्लाने लगी डॉक्टर साहब ऍफ फिर तुरंत ही बेहोश हो जाने पर किरण के साथ उपस् थित नर्स भी आवाज लगाते हुए डॉक्टर की ओर दौड लगाई । अब माँ की तबियत कैसी है? डॉक्टर साहब गहन चिकित्सा कक्ष के बाहर खडी । किरण ने पूछा आप के लिए खुशखबरी है । किरण मरीज के पूरे शरीर में रक्त का संचार होने लगा है और ऐसे रिएक्ट कर रही हैं जैसे उसे कुछ हुआ ही नहीं था । डॉक्टर ने कहा हूँ
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Sound Engineer