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कलम से हत्या - 22 in Hindi

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पत्रकारिता महाविद्यालय में अगले मौसम िनारे भैया व्याख्यान के लिए आपको आमंत्रित किया गया है । निमंत्रण कार्ड देते हुए लवली ने आगे कहा, इस बार मैं भी आप के साथ जाना चाहती हूँ, भैया नहीं तो ऐसा सोचना भी नहीं । नीरज ने कहा क्यों भैया, तुम पापा का कार्यालय संभालते हैं और पत्रकारिता से तो खुद को दूर ही रखो । नहीं तो पापा कहेंगे कि मैंने तुम्हें भी अपने साथ काम पर लगा लिया । मैं पापा के साथ ही थी । कुम्भ भैया, आपको जॉइन करने का मेरा कोई इरादा नहीं । लवली ने कहा फिर सेमिनार में क्यों आना चाहती हूँ? नीरज ने पूछा वो तुम को बताना चाहिए । नीरज की पत्रकारिता से लगाओ, भले ही ना हो पर पत्रकार से तो लगाव है । माने मुस्कुराते हुए कहा तो आखिर लवली की पसंद ने इस घर के सब लोगों के दिल में जगह बना ही लिया । हाँ भैया, आप के लिए तो दोहरी खुशी की बात है कि इस घर में एक और सदस्य आपके कार्यक्षेत्र में होगा । तुम लोग बातें करूं । मैं अभी आई कहकर मार चली गई । मैं जानती हूँ भैया की आप सरल को पसंद नहीं करते हैं इसलिए मैं आपसे कुछ बातें करना चाहती हूँ । लवली ने कहा, तुमने सही का अलग और कोई बात नहीं । धीरे धीरे हम सब एक दूसरे को समझने लग जाएंगे । नीरज ने कहा, समझने के लिए जरूरी है भैया की पुलिस वालों से हम सब दूर ही रहे हैं । उसे अपने आस पास मंडराने का अवसर ना दे । लवली ने मन की बात कही थी तो हमारा मतलब किरण से हैं । नीरज ने पूछा हाँ भैया फॅमिली, तुम लोग उस बेचारी के पीछे पडे हो । नीरज था खार कर पूछ लिया क्योंकि किरण पत्रकारों से नफरत करती है इसलिए आप से प्यार नहीं कर सकती । सिर्फ प्रेम के नाम पर आपसे धोखा कर रही है । भैया अपने पापा की ड्यूटी इज्जत का दम भरने के लिए आपके अपनेपन का फायदा उठाने की कोशिश कर रही है । लवली ने कहा वहाँ पे इतना बडा षड्यंत्र चल रहा मेरे खिलाफ हूँ और मुझे नहीं पता क्योंकि मैं तो बेवकूफी ठीक कह रहा हूँ । नीरज ने पूछा इस तरह तंज कसकर मेरी बातों को हवा में मथुरा भैया हम आपके अपने हैं इसलिए हमें आपकी चिंता है मेरे अपनों । तुम सबसे मेरी विनती है कि मुझ पर भी भरोसा करो । मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि अचानक ही तुम सबको मैं बेवकूफ क्यों लगने लगा हूँ । तुम सब लोग का एक ऐसी सीख देने लगी हो जैसे मैं तो छलकपट की भाषा को जानता ही नहीं हूँ । नीरज ने कहा ऐसी बात नहीं है भैया । यदि आप को इस संबंध में बात नहीं करनी है तो कोई बात नहीं । अच्छा ये तो बता दो, मुझे सेमिनार में ले जा होगी कि नहीं । लवली ने कहा मैं स्वयं नहीं जा रहा हूँ । नीरज ने सपाट शब्दों में जवाब दिया क्यों मैं वहाँ जाकर झूठ नहीं बोलना चाहता हूँ । नीरज ने कहा पर आप झूठ क्यों बोलेंगे? लवली ने पूछा क्योंकि तुम्हारी तरह मेरे साथ ही भी सच को पचा नहीं पाएंगे । सच को आने में निहार पाना हर एक के बस की बात नहीं होती । नीरज ने कहा ऐसा कौन से सच्चे भैया जिससे सब डरने लगे हैं हम पत्रकारों का वो सच जिसके कारण किरण जैसे न जाने कितने लोगों को दुखों का सामना करना पड रहा है । तो आपने ये मान लिया कि किरण ही अंतिम सत्य है । शेष सभा सत्य है । मानना के फॅमिली सच हर हाल में सच ही होता है । पर अब तक तो आप भी पत्रकार को सच का पर्याय मानते रहे हैं । भैया हाँ मानता रहा पर मुझे यह स्वीकारने में कोई सुविधा नहीं है कि मेरी आंखों पर भी काली पट्टी बंधी हुई थी । पर अब पत्रकारों का भी कलंकित सच मेरे सामने हैं और सब जानकर में सेमिनार में जाकर पत्रकारों की झूठी तारीफ नहीं कर पाऊंगा । जबकि सच कहने पर लोग तुम्हारी तरह ही सोचेंगे । इस सच को स्वीकार ना मुश्किल होगा कि सब जन चुका हूँ । क्या जान चुके भैया यही की पत्रकार भी झूठे हो सकते हैं और अखबारों में भी गलत खबर छप सकती है । नीरज ने कहा, और इसका कारण है । किरण लवली ने कहा नहीं कारण हमारे कुछ पत्रकार साथ ही है, जिन्होंने आम जनता के साथ विश्वासघात किया है । तो अब आप अपनी ही पत्रकार साथियों को कटघरे में खडा करेंगे क्या? लवली तो नहीं गई । हाँ, जो भी पत्रकार का नकाब पहनकर जनता के साथ धोखा करेगा, मैं उन सबको बेनकाब करूंगा । पत्रकारिता के नाम पर ब्लैकमेल करने वाले कलंक से पत्रकारिता को मुक्त कराने का प्रयास करूंगा । मैं भी । इसने काम में तुम्हारा मनोबल बढाने के लिए साथ हो । नीरज पापा आप भी नीरज अचंभित हुआ । मैं तो ठहरा व्यापारी तुम्हारी जैसी पत्रकारिता की बारीकियों को नहीं जानता हूँ । पर नीरज मैं तुमसे पूछना चाहता हूँ कि जिन पत्रकारों को झूठा बताकर तो उन्हें अदालत का दरवाजा खटखटाया है, उन पत्रकारों के बारे में क्या जानते हो हूँ? तापा नहीं पूछा मैं समझा नहीं पापा, आप क्या जानना चाह रहे हैं? नीरज ने आगे कहा, मैंने बताया तो कि व्यापारी हैं तो आमदनी के बारे में पूछ रहा हूँ । पापा ने जवाब दिया, मैं कैसे जान सकता हूँ? इसलिए कहता हूँ कि हर बात के पीछे पैसा होता है और हमें किसी भी व्यक्ति के लिए सजा या पुरस्कार की व्यवस्था करने से पहले उसकी आर्थिक स्थिति के बारे में अवश्य जान लेना चाहिए । पापा ने कहा, मतलब आप जानते हैं कि सरल सहित अन्य पत्रकारों के खिलाफ माथुर प्रकरण में मैंने जनहित याचिका दिलवाई है । नीरज ने कहा, आखिर बात होते रहे हो तो बताइए पापा की आपकी खुफिया जानकारी उन लोगों के संबंध में क्या कहती है? नीरज ने उत्सुकता से पूछा सरल के बारे में जानकारी लेने की कोशिश में मुझे मालूम हुआ कि अखबारों में खबर अंदरूनी इलाकों से भी मिल सके और अखबार का क्षेत्र विस्तार हो सके । इसके लिए छोटे शहरों से लेकर बडे शहरों के मोहल्लों तक मैंने पत्रकारों को नियुक्त किया है । ये तो तुम जानते ही हूँ । हूँ और खबरों की प्राप्ति के लिए जरूरी भी है । नीरज ने कहा, तो ये बताओ तुम लोग ऐसे पत्रकारों को वेतन कितना देते हैं? पापा ने पूछा ऐसे सबको वेतनभोगी रख पाना संभव नहीं है पापा तो फिर ये लोग तुम्हारे लिए काम क्यों करते हैं काम करने का सब का उद्देश्य तो रुपया ही होता होगा या फिर उन्हें और उनके परिवार को भोजन की आवश्यकता नहीं होती है । पापा ने पूछा, सब पत्रकारों को वेतन तो उपलब्ध नहीं हो पाएगा, पर अखबार में इनके द्वारा लाए गए विज्ञापन में कमीशन और अखबार के विक्रय पर कमीशन उनकी आमदनी का साधन होते हैं । नीरज ने कहा, क्या तुम दावे के साथ कह सकते होगी? इससे उन्हें पर्याप्त आमदनी हो जाती है । पापा ने पूछा शायद हाँ, नीरज ने कहा और नहीं भी तापा । नहीं कहा ये आप कैसे कह सकते हो । क्योंकि मेरे व्यवसाय में ऐसे पत्रकारों से मेरा सामना होता ही रहता है । ये लोग किसी भी बहाने से विज्ञापन लेने मेरे पास आते ही रहते हैं । पापा ने आगे कहा, एक दिन हमारी फैक्ट्री में उनके सामने ही एक मजदूर के दुर्घटनाग्रस्त होने की खबर आई तो विज्ञापन के लिए प्रेमपूर्वक पैंतरे आजमाने वाले पत्रकारों ने ये कहा किसान घायल के उपचार की तुरंत समुचित व्यवस्था कराइए । साथ ही उसके परिवार वाले एवं हमारे लिए भी खर्च की व्यवस्था करवा दीजिए । मैंने उसे डांटते हुए पुलिस को खबर करने की बात कही तो मुझे समझाने लगा आपकी इच्छा से । मैंने तो आपके और हम सबके भले के लिए सुझाव दिया था और फिर दोहराता हूं । पुलिस की कार्यवाही से ज्यादा जरूरी है कि घायल को त्वरित उपचार की व्यवस्था हो । वैसे भी आपको तो ये करना ही होगा । उसके परिवार जनों को मुआवजा भी कानून देता ही है । अदालत का खर्च अलग से देना होगा । वो सब तो ठीक है पर मैं तुम्हें पैसा करूँगा । मेरे सवाल पर उसने हाथ जोड दिया और कहा यदि मुझे कुछ नहीं देना चाहते हैं तो कोई बात नहीं सर, पर बिन मांगे सलाह की फीस तो मिल नहीं चाहिए । देखिए सर पत्रकार होने के कारण हमारा मान सम्मान तो है पर परिवार चलाने के लिए रुपयों की भी आवश्यकता होती है और इस दुर्घटना की खबर छापने का हमारा एक ही उद्देश्य होगा कि पीडित को न्याय दिलाना जो समझौते से भी हो सकता है तो मैं वेतन नहीं मिलता । क्या मैं आवेश में आ गया? कहाँ मिलता है सर वेतन तो बडे बडे पत्रकारों को मिलता है । हम तो विज्ञापन के सारे पेट पाल लेते हैं । वो मायूस हो गया तो क्यों काम कर रहे हो? छोड दो । मैंने सलाह के रूप में आदेश दिया बेरोजगारी के कारण कमी सही कुछ तो मिल रहा है, यही सोच कर काम कर रहे हैं । सर चलिए कोई बात नहीं मैं चलता हूँ । रुको मैंने अब की बार सहानुभूति से आदेश क्या? सच कहूँ तो कठिन परिस्थिति में उसने मुझे झंझट से बचाने का रास्ता सुझाया था । इसलिए मैंने उसे इनाम दे ही दिया । आप क्या कहना चाहते हैं? पापा, आपकी अवैतनिक होने के नाम पर पत्रकारों को ब्लैकमेलिंग की छूट दे देनी चाहिए । मैंने ऐसा तो नहीं कहा । नीरज पर मतलब तो वही हुआ पापा । मैं कहना चाहता हूँ कि यदि तुम्हारे अनुसार माथुर सर के साथ अन्याय हुआ है तो तुम जैसे प्रतिष्ठित मीडिया मालिकों को चाहिए कि छोटे से छोटे पत्रकारों के लिए भी आय का निश्चित साधन उपलब्ध हो ताकि भविष्य में किसी माथुर के साथ ऐसा नहीं हूँ । आप ने बहुत अच्छी बात कही है । पता है मैं अपने संगठन में ये प्रस्ताव अवश्य रखूंगा । लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है नीरज जिससे भी मेरा आए दिन सामना होता रहता है कि किसी के लिए पत्रकारिता भ्रष्ट तरीके से अपार धन कमाने का माध्यम होता है । ऐसे पत्रकारों से प्रभावित होने वाले लोगों का पर्दाफाश करने के लिए भी हम संगठन में व्यवस्था बनाएंगे और ब्लैकमेलरों का पर्दाफाश करने में भी सहयोग करेंगे । क्योंकि मैं नहीं चाहूंगा कि पत्रकारिता जो समाज का चौथा स्तंभ माने जाने वाली ये संस्था बदनाम हो या किसी भी व्यक्ति के साथ खिलवाड करेगी ।

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