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कलम से हत्या - 19 in Hindi

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मैडम आज का अखबार देखा आपने नहीं क्या विशेष यादव आपकी बहादुरी और कामयाबी का डंका सभी अखबारों में बज रहा है मैडम जी सूचना ने कहा किस बात के लिए? किरण ने फाइल पर नजरें गडाए हुए ही पूछा, हमने पिछले दिनों दिन चार इनामी बदमाशों को पकडा है । उसके लिए सभी तरफ आपकी वाहवाही हो रही है । मैडम जी यादव ने कहा पर पत्रकारों तक खबर किसने पहुंचाई? किरण ने पूछा वो हूॅं वो वो क्या कर रहे हो तो नहीं बताया क्या? यादव जी मैडम वो वो वो यादव तो इतना डर क्यों रहे हो मैडम जब मैं चलान लेकर कोर्ट गया था तब पत्रकारों ने मुझे घेर लिया था तो मुझे बताना पडा । यादव ने कहा ठीक है । मैंने पत्रकारों को अनावश्यक जानकारी नहीं देने के लिए कहा है । एकदम से माना ही नहीं । उन का काम है समाचार एकत्रित करना । वो तो अपना काम करेंगे और फिर उन के माध्यम से हमारे भी तो बहुत सारे काम आसान हो जाते हैं । मस्त ध्यान रहेगी, व्यक्तिगत बातें प्रचारित हूँ ऐसी खबर हमें नहीं देना है । उन बदमाशों के पकडे जाने की बातें जनमानस तक पहुंचाना भी जरूरी है जिससे लोग उसके भय से मुक्त हो सके । आप पढना चाहेंगे । मैं पहली बार किसी पत्रकार से बात करने पर किरण द्वारा सकारात्मक बातें किए जाने पर यादव की जान में जान आई और उसने कहा और ये क्या? इसमें तो लिखा है कि हमने उन बदमाशों का पीछा करके पकडा । क्या तुम ने पत्रकारों से ऐसा कहा था? किरण ने अखबार को पढते हुए ही पूछा नहीं मैडम जी, मैंने तो बताया था कि आप को अगवा करने की कोशिश की गई थी । यादव ने हर बढाते हुए जवाब दिया किरण ने मुस्कुराते हुए आगे का अखबार वालों की माया भी अजीब है । जब जिसे चाहे अर्श से फर्श पर पटक दिया और जब जिसे चाहे फर्श से अर्श पर पहुंचाते । फौरन की यही बातें मुझे अच्छी नहीं लगती । मैं चाहती हूँ कि पूरा सच लोगों के सामने आना चाहिए । उसके लिए तो आप जैसे लोगों को पत्रकारिता करनी पडेगी । मैडम जी यादव ने हिम्मत जुटाकर कहा ये हुई ना तो मुस्कुराते हुए अच्छे लगते । यादव डरकर बातें करते हो तो मुझे लगता है कि या तो तुम गलत हो या फिर मैं तानाशाह हूँ । चलो कोई बात नहीं, अच्छा सुनो ये अखबार में लेकर जारी हूँ । मेरे आने तक तुम कहीं मत जाना । थाने की जिम्मेदारी तुम पर है कहते हुए किरण खडी हो गई तो ये खबर आपके द्वारा प्रायोजित किरण ने उसकी तारीख में लिखी गई खबर वाले अखबार के पन्ने को मोडकर नीरज को दिखाते हुए कहा, नहीं तो मुझे इन खबरों के बारे में कुछ भी मालूम नहीं है । यादव ने मुझे अगवा करने की बात कुछ पत्रकारों को बताई थी । इसके अतिरिक्त आप और मैं ही हूँ जिससे पत्रकारों को जानकारी मिल सकती है और मेरी किसी से बात हुई नहीं तो फिर हाँ पत्रकार साथी मुझसे मिलने आए थे । तब उनसे बात हुई थी । नीरज ने कहा तो मेरा शक सही था की इन खबरों के पीछे आप ये किरण ने जोर देकर कहा देखिए इंस्पेक्टर साहिबा । इस तरह पुलिसिया अंदाज से मुझे डर लगता है । मैं तो प्रेमी होगा और सिर्फ प्रेम की भाषा जानता हूँ । नीरज मुस्कुराया इसीलिए तो मुझे पत्रकारों पर भरोसा नहीं है । किरण ने आगे कहा, पत्रकारों से परहेज करने वाला ये अंदाज ठीक रहेगा । किरन भी हंसने लगी नहीं मैं तो आपका ये स्वरूप मजाक में भी देखना नहीं चाहता हूँ । नीरज के आगे कहा, इसलिए तुम्हारे नाराज होने से पहले ही बता दूँ कि मेरे पत्रकार साथ ही मुझसे मिलने आए थे । मुझ पर हुए हमले को गंभीरता से लेते हुए कहने लगे कि नीरज जी ये गोली आप पर नहीं, समाज के चौथे स्तंभ पर दागी गई है । फिर मजाक इस खबर को लेकर में अभी भी गंभीर नीरज जी मुझे सब जानना है । किरण ने कहा, सच्ची तो बता रहा हूँ कि मेरे पत्रकार साथ ही चिंतित होकर पूरी घटना की जानकारी मुझसे मांग रहे थे । तब मैंने अपने साथियों से कहा था कि मुझे गोली लगना दुर्घटना मात्र है और उन लोगों ने आपकी बात मान लीजिए । किरण ने पूछा मानते कैसे नहीं? नीरज ने कहा, तो आप ने उन लोगों को मुझे अगवा करने वाली बात क्यों नहीं बताई? किरण ने पूछा, क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि तुम्हारी अनुमति के बिना तुम्हारे बारे में कुछ लिखा जाए या कोई पत्रकार उस मामले को लेकर तुमसे कोई व्यक्तिगत सवाल जवाब करेंगे । नीरज ने कहूँ तो बात यही हुई कि अखबार में की गई मेरी तारीफ का कारण आप ही है । किरण ने कहा, हाँ और इसमें कुछ गलत भी नहीं है । नीरज ने कहा, आप लोगों की मायानगरी का भी कोई जवाब नहीं । अजीब चलाना आपकी मीडिया की दुनिया के हैं । किरण ने कहा, ठीक है तो लिखा है बिल्कुल उतना ही जितना जरूरी था । नीरज ने अखबार को पढने के बाद समेटते हुए कहा, आप से जुडने का फायदा देखिए, आपके साथियों ने तो मुझे हीरो ही बना दिया । मुझे पुलिस पदक दिए जाने की बात कर रहे हैं । किरण ने कहा, सही तो कहा गया है कि ऋण तुमने उसके लायक बहादुरी का काम भी तो क्या है? तुम्हारी कर्मठता पुरस्कार के लायक है तो आप ने अपने साथियों को आधा सच क्यों बताया? उनसे ये क्यों नहीं कहा कि मेरी इस कामयाबी के बीच आपका महत्वपूर्ण योगदान है? किरण ने पूछा क्योंकि मैं वहाँ पुलिस का सहयोग करने नहीं तो भारत पीछा करते हुए गया था । मेरा पीछा करना, माँ की देखभाल ये सब क्या है? नीरज जी कह तो दिया है मैंने और जितनी बार पूछ होगी कहता ही रहूंगा की प्रेम करता हूँ तुम से और मैंने भी बताया की तुम्हारी तुम जाने पर मैं तुमसे प्यार करता रहूँगा । ये मेरे मन की बात है और मेरे मन की बात मानने से तुम भी मुझे रोक नहीं सकती और फिर मैं तुम से कुछ मानते नहीं रहा हूँ । हो सके तो बस इतनी मेहरबानी कर दो कि जिससे मुझे खुशी मिलती है मैं वो कर रहा हूँ और तुम इसमें रुकावट डालने की कोशिश मत करूँ । नीरज ने कहा पुलिस को धमका रहे हो । किरण के होठों पर मुस्कान फैल गई । इसे धमकी नहीं प्यार कहते हैं । खैर छोडो प्यार मोहब्बत की बातें तो मुझे समझ नहीं आएंगे । मैं तो मैं विश्वास दिलाता हूं कि रन की मेरी मोहब्बत में कभी रुसवा नहीं करेगा और ना ही सनक और तुम्हारे रिश्तों को प्रभावित करेंगे । ये तो जाती है नियर जी ज्याति नहीं बेटा इसे ही प्यार कहते हैं । नीरज की माँ ने प्रवेश करते हुए आगे कहा, अपने बेटे की चेहरे पर जिस चमक को देखने के लिए मैं दर्ज गई थी वह चमक मैंने जख्मी होने के बाद देखिए वहाँ नहीं नीरज मुझे चुप रहने के लिए मत करो बेटा तेरी खुशी के साथ खुश होने का अधिकार मुझे भी है । फिर किरण के बालों पर हाथ फेरते हुए उन्होंने आगे कहा, नीरज ने मुझे सब बता दिया है और मैं नीरज की इस बात से सहमत दी हूँ कि जरूरी नहीं कि हम जिस से प्रेम करते हैं वो भी हम से प्रेम करें । प्रेम तो सिर्फ प्रेम होता हैं । इसमें लाभ हानि या आदान प्रदान नहीं देखा जाता हूँ । मैं सोचती थी कि आज के जमाने में दार्शनिक प्रेम की बातें नीरज जी कैसे कर रहे हैं । पर आपसे मिलकर पता चला कि नीरज जी ऐसे क्यों है । किरण ने कहा दिख कुमार किरण की प्रतिभा को हमारे ऊपर हमारी प्रशंसा करके हमारा वो बंद करने की कोशिश कर रही है । नीरज ने कहा, पर मैं तो कहूंगी । नीरज की माँ ने आगे कहा तुम तो सचमुच प्यार से भरी प्यारी हो । किरण मेरी भी बेटी है और मैंने उसे भी नीरज की तरह ही संस्कार दिए । पर उसे तो अपने पापा की तरह दुनिया की चकाचौंध ही पसंद है । तुम जैसी बेटी तो किस्मत वालों को मिलती है । किरण निशब्द हो गई । अच्छा तुम लोग बातें करूं मैं तुम्हारी माँ को भोजन करा देती हूँ । किरण कहकर नीरज की माँ जाने लगी नहीं आप रहने दीजिए, मैं तो माँ को खाना खिलाने ही आई हूँ । अच्छे बच्चे बडो की बात नहीं टालते । नीरज की माने डिफरेंस किरण का हाथ अलग करते हुए आगे कहा, हम उम्र वालों के साथ समय बिताने का भी अपना अलग मजा होता है तो हम माओ को भी कुछ मजा कर लेने दो और तुम दोनों भी अपनी उम्र की बातें करो । मैंने कुछ बातें करने के लिए कहा है और तुम हो की ऊपर ताला लगाकर बैठे हो । नीरज ने कहा, एक ही दुनिया में रहने वाले लोगों के बीच इतनी अधिक भिन्नता देखकर में अचंभित हूँ । इसी का नाम दुनिया है । मैं जानता हूँ कि तुम किस परिपेक्ष्य में कह रही हूँ । पर मैं भी तुमसे मिलकर यही सोचते रहता हूँ कि तुम जैसी लडकी भी आज के जमाने में होती है, जिनका जीवन माता पिता को समर्पित है । कोई मौका नहीं छोड दिया । बहुत मुश्किल है आपसे बातें कर पाना । किरण ने कहा पत्रकारों की बुराई करना हो तब तो पानी पी पीकर कोसती हूँ । नीरज ने मुस्कुराते हुए आगे कहा, जबकि अभी आपके सामने पत्रकार है और बात तक नहीं कर पा रही हूँ क्योंकि मैं किसी पत्रकार से नहीं मेरी जान बचाने वाले एहसानमंद व्यक्ति के पास बैठी हूँ । किरण ने कहा ये तो खुशी की बात है फिर तो तुम कुछ भी कह सकती हूँ । हम नतमस्तक है । नीरज ने सर झुकाते हुए कहा । वही तो समझ में नहीं आ रहा कि क्या बात करूँ । जो तुम्हारा मन कहे वही करूँ । नीरज ने का वो तो नहीं कह सकती । किरण ने अचानक ही कह दिया मतलब नीरज के दिल की धडकने तेज होने लगी । जी जी कुछ नहीं किरण जीत गई, कोई बात नहीं । जब तुम्हारा दिल कहे तभी मन की बात कर लेना । अभी ये तो बता दो कि पत्रकारों से तुम्हारी शिकायत दूर हुई कि नहीं । नीरज ने पूछा नहीं और कभी होंगे भी नहीं । किरण हो गई ये तो गलत है क्या सही गलत? मैं नहीं जानती पर जब भी पत्रकार या पत्रकारिता का जिक्र होता है मुझे आपकी अपमानजनक मृत्यु ज्यादा जाती है । शायद तुम्हारा सोचना भी सही होगा । पर इस बात पर भी तुम्हें गौर करना चाहिए कि जिस तरह तुम्हारे पुलिस विभाग में सभी पुलिस वाले बेईमान नहीं होते हैं, उसी तरह सभी पत्रकार भी सिर्फ पैसों के पीछे भागने वाले या ब्लैकमेलर नहीं होते हैं । अब ठीक रहनी दर्जी विषेशकर आपसे मिलने के बाद पत्रकारों के प्रति अपने मन में बैठी कडवी भावनाओं को दरकिनार करना चाहती हूँ और फिर मेरे सामने पापा का वह निष्कलंक चेहरा सामने आ जाता है जिस पर पत्रकारों ने कालिख पोत दी थी । जिन ब्लैकमेलरों ने पत्रकार का मुखौटा लगाकर मेरा अच्छी पापा को बुरी और असमायिक मौत दी है, उससे मैं बोल नहीं पा रही हूँ । उन दरिंदों को सजा दिलाकर ही शायद मेरे मन को शांति मिल सके । मैंने मन बना लिया है कि किसी वकील से बात करके मानहानि की याचिका दायर करूँ । किरण ने दृढतापूर्वक का मैं भी यही चाहता हूँ जिससे हमारी बिरादरी में छुपे शेर की खाल हो रहे भेडियों को पहचान सकें । नीरज भी दृढ थी पर किसके पास जाओ समझ नहीं आ रहा । किरण ने कहा ये भी अच्छी बात है की हमें सजा दिलवाने के लिए हमें गुनहगार साबित करने के लिए तुम हम से ही सलाह ले रही हूँ । नीरज ने कहा क्योंकि आप पत्रकार बाद में है, पहले अच्छे और सहयोगी मित्र है । किरण ने कहा और उससे भी पहले तुम्हारा दीवाना हूँ जब हमारे लिए कुछ भी कर सकता है । नीरज ने कहा इस तरह की बातें बार बार क्यों करते आप? किरण अब हो गई । ठीक है बाबा अब कोई मन की बात ही नहीं सिर्फ काम की ही बातें करूंगा प्लीज तुम अपना नाम मन मत खराब करूँ । नीरज नहीं कान पकड लीजिए । अब बताइए भी किस वकील के पास जाना चाहिए मुझे । किरण ने पूछा विक्रम शर्मा को जानती हूँ कौन? वो शालीमार बाग वाले हाँ मैं उन्हीं की बात कर रहा हूँ । नीरज ने कहा उनके बारे में मैंने भी सोचा था पर उनकी व्यस्तता और फीस के बारे में सुन कर चुप रह गई । मेरी सलाह है कि उनसे एक बार मिल लो । नीरज ने कहा, पर उनकी फीस बहुत मेरे लिए वहन कर पाना संभव नहीं है । मैंने कहा तो मैं एक बार उनसे मिल तो लोग । वो हमारे पारिवारिक वकील हैं । फीस के बारे में बाद में देखेंगे । नीरज ने कहा ठीक है पर पहले घर जाकर उन पुराने अखबारों की प्रति ले लेती हूँ । किरण ने कहा वो सब बाद में देख लेना । पहले उनसे मिल तो लोग । नीरज ने जोर देते हुए कहा ठीक है भी चली जाती हूँ । किरण ने कहा आपने आने में बहुत देर कर दी की रंजीत क्योंकि ये बात तो आप भी जानते हैं कि मानहानि की याचिका दाखिल करने के लिए समय निर्धारित होता है तो क्या कुछ नहीं हो सकता । किरन निराशा के समुन्दर में गोते लगाने लगी । आपने समय गंवा दिया है कि रंजीत पुलिस में रहकर भी इतनी बडी चूक कैसे कर दिया तो मैं चलती हूँ । वकील साहब किरन नहीं कहा । बैठे तो सही वकील ने मुस्कुराते हुए एक फाइल किरण के सामने बढाते हुए आगे कहा इससे पडेंगे । अरे आपने तो जनहित याचिका पहले से ही दाखिल कर रखा है । किरण की खुशी का ठिकाना नहीं रहा । मैं नीरज जी का पारिवारिक वकील हो । उन के कहने पर ही मैंने यह याचिका दाखिल की थी और इस मानहानि के केस को पिछले डेढ सालों से खींच रहा हूँ । नीरज जी इस विश्वास पर मुझे तारीख बढवाते रहे कि आप एक ना एक दिन मुझसे मिलने जरूर रहेंगे । पर अब और तारीख बढाना सही नहीं होगा । हमें आपकी एवं आपकी माँ की सहायता की जरूरत है । वकील ने कहा बहुत बहुत धन्यवाद वकील साहब, मैं धन्यवाद नहीं फीस लेता हूँ की रंजीत जब मुझे नीरज जी से मिल रही है । हाँ, अगली पेशी पर आपकी उपस्थिति जरूरी है । आपके सहयोग पर ही इस केस की जीत निर्भर है ।

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