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हम हैं राही प्यार के - Part 8 in  | undefined undefined मे |  Audio book and podcasts

हम हैं राही प्यार के - Part 8 in Hindi

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AuthorMixing Emotions
मैं पहली क्लास छोड़कर रिया से मिलने आई.एम.टी. जाना चाहता था। लेकिन इनसान जो करना चाहता है और जो करने की उससे अपेक्षा की जाती है, उसमें हमेशा अंतर होता है। मैंने सोचा कि मैं कक्षाओं के बीच मिलनेवाले दस-दस मिनट के अंतरालों में से एक में अपनी किस्मत आजमाऊँगा और उसके कॉलेज जाने की कोशिश करूँगा, सुनिए आखिर क्या है पूरी कहानी| writer: पार्थ सारथी सेन शर्मा Voiceover Artist : Shreekant Sinha Author : Parth sarthi Sen Sharma
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वास्तव में मैं उतनी प्रशंसा के लायक भी नहीं था जो मुझे उन सीधी सरल गांव की महिलाओं से मिली थी जिनमें से कई को मैं नाम से जानने लगा था । उनमें से कई मुझे पंकज का कहना की थी एक सम्मानजनक संबोधन जिसका शाब्दिक अर्थ बडा भाई होता है । ये पहली बार था कि किसी ने मुझे ऐसे संबोधित किया था तो मार्च कलरिया के बारे में ज्यादा बात नहीं करते हैं । काजल ने तथ्य की तरह कहा वो इंतजार कर रहे प्यालों में अपनी कितनी से चाय डाल रही थी । हम सब के लिए ठीक है । हम उसके घर के ड्राइंग रूम में बैठे थे । ऐसी बात है क्या? अरे मैं क्रिसमस में उससे मिलने जा रहा हूँ । रिया अपने क्रिसमस न्यू ईयर की छुट्टियों में भारत आ रही है और काम के बहुत से बाहर के बावजूद मैं उस समय के लिए सात दिनों का आकस्मिक अवकाश मंजूर कराने में सफल हो गया । मैंने लगभग अपनी सफाई देते हुए कहा हाँ, मेरे पापा तो मैं मना नहीं कर पाते हैं बल्कि किसी को भी नहीं कर पाते । लेकिन मुझे लग रहा है कि काश वे इतने दयालु ना होते । काजल ने जैसे बिना कुछ सोचे कहा ऐसा लग रहा था कि वह अंतिम बात किए उसके मन से और सामान्य और बेसुद लापरवाही भरे एक पल में फिसल गया था । कोई से मजाक का रूप देने का प्रयास करते हुए हसने लगी । लेकिन वास्तव में वो मजाक नहीं था । मैं खुश, गौरवान्वित, अच्छी बात हमें सब एक साथ महसूस कर रहा था और बहुत सारे विचार वहाँ अपनाएं । अस्पष्ट रूप से एक साथ मेरे अंदर को मार नहीं लगी । मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ जब की मैं कुछ कहने के लिए बचा था । ऐसा कुछ जो काजल के अस्पष्ट दिखाई पड रही असहजता को दूर कर सके । मैं चुप रहा हूँ । जस्टिन मेरी ट्रेन वहां पहुंचीं । दिल्ली पे मौसम बारिश की बौछारों की चपेट में था । ऍम अंधेरा और नाम था । काले बादल छाए हुए थे और ठंड से कपकपी छूट रही थी । शाम को जब दिया और मैं मिले तो ठंड और पड गई थी । हम कनॉट प्लेस के स्वतंत्रता पूर्व युग के फॅमिली में बैठे थे । मैंने अपने लिए चाय मंगाई थी, ऑस्ट्रिया नहीं कैपेचीनो । उसी समय के आसपास पहली बार मेरा रिसोर्ट ध्यान जाना शुरू हुआ था की कॉपी की अनेक किस्म होती थी और जिसे हम एस्प्रेसो कॉफी कहते थे । दूध की छाडवा लिखो थी । वास्तव में उसे दुनिया एस्प्रेसो के नाम से नहीं जानती थी । रिया दो दिन पहले भारत आई थी और लगभग दो सत्ता बाद अमेरिका वापस जाने वाली थी तो मतलब कम से कम से कम दो हफ्ते की छुट्टी तो नहीं सकते थे । ये पहला वाला था जो दिया नहीं । उस शाम कहा था मैं इतनी दूर अमेरिका से आई हूँ । मैं नहीं जानता कि उसे इस बात का बुरा लग रहा था कि मैं उस की छुट्टियों के दौरान यहाँ नहीं रहूंगा या इस बात का की मैंने उसके लौटने से पहले दिल्ली से जाने का फैसला किया था । मैं भी इससे ज्यादा छुट्टियों के लिए नहीं कर सकता था । इस समय काम का बहुत बहुत ठीक है और वास्तव में सात दिनों की ये आपका सबका शुक्रिया देकर उन्होंने मुझ पर मेहरबानी की है । मैंने जवाब दिया क्यूँ ये तो तुम्हारा अधिकार है । रिया ने पूछा छुट्टी के मामले में अधिकार कभी नहीं आता है । वो हमेशा परिस्थितियों और काम की स्थिति पर निर्भर करती है । कम से कम यहाँ भारत में तो ऐसा ही है भाई । मैंने जवाब दिया क्यों न तुम मेरे साथ एक हफ्ते के लिए जमशेदपुर चलो और देखो कि मैं वहाँ कैसे रहता और काम करता हूँ । आखिरकार तो मैं भी तो पढाई पूरी करने के बाद वहाँ रहना पड सकता है । मैंने आगे का अब तो वहाँ प्राण खाती । सन्नाटा छा गया । मैंने उस विषय पर बात छेड दी थी अपने भविष्य की बात जिस पर हम पिछले कुछ महीनों से बात करने से कतरा रहे थे । मुझे तो संदेह भी होने लगा था कि हमारा एक साथ कोई भविष्य है यादव की क्या कभी दिया का जीवन, उसके सपने, महत्वकांक्षाएं और विचार मेरे दृश्यमान भविष्य के पूर्वानुमान स्वरूप के साथ एकाकार हो पाएंगे । लेकिन मैं अपने संशय का सामना नहीं करना चाहता था । लेकिन तुम तो पुरुषों के बैचलर्स हॉस्टल में रहते हो ना मैं वहाँ जाकर कहाँ होंगी । ये अमेरिका तो है नहीं कि मैं आसानी से जाकर तुम्हारे कमरे में रहने लगे । रिया मुख्य मुद्दे को टालते हुए हंसने लगी । मैं कह सकता धागे मिसल कुलकर्णी और काजल के घर में उसका खुले दिल से स्वागत होता लेकिन किसी चीज में मुझे रोक दिया । रिया के जमशेदपुर में रहने का विचार कुछ दिनों के लिए ही सही, अचानक मुझे असंगत, अतार्किक और यहाँ तक के विलक्षण भी लगने लगा । तो क्या हाल है तो हमारा काम कैसा चल रहा है । रिया ने पूछा तो आजकल अपने बारे में ज्यादा लिखते नहीं । काम बहुत ज्यादा और मेरा साथ दिया । मैंने स्पष्ट नहीं किया कि मैं अपनी नौकरी के बारे में बात कर रहा था । क्या अपने जीवन के बारे मैंने उसे संक्षेप में समझाने का प्रयास किया कि मैं अपनी आजीविका के लिए क्या करता था और कैसे हमारी कंपनी ने अमेरिका की एक कंपनी के साथ ज्वाइंट वेंचर संयुक्त उद्यम में प्रवेश किया था । क्या तुम्हारा ऍम में तबादला नहीं हो सकता है? हो सकता है तो मैं अमेरिका में पोस्टिंग भी मिल जाए । रिया ने अचानक दिलचस्पी लेते हुए पूछा, आप मैंने कभी इस दिशा में नहीं सोचा था । वैसे भी ये ऍम भारत में इंजन के निर्माण के लिए बनाया गया था । इसलिए भारतीय इंजीनियरों के अमेरिका जाकर काम करने की संभावना नहीं के बराबर थी । हाँ, ये हो सकता है कि उन्हें लघु अवधि के प्रशिक्षण के लिए भेजा जाये । मैंने दिया को ये बात बता दीजिए लेकिन मैं जानती हूँ तुम कोशिश भी नहीं करोगे । तुम उम्मीद करते हो तो वो सब चीजें हथेली पर मिल जाए तो दुनिया ऐसे नहीं चलती है । रिया ने तुरंत टिप्पणी की मैं जवाब में बहुत कुछ कह सकता था । मैं कह सकता था कि विदेश में बेहतर जीवन पाने के लिए खुद से समझौता करना मुझे पसंद नहीं था । मैं कह सकता था कि अमेरिका में रहना सत्ता सत्ता नहीं होता । मेरिया को निर्मला जी के बारे में बता सकता था जिन्होंने रिया से अधिक समय अमेरिका में बिताया था । अमेरिका को उससे ज्यादा देखा था और वहाँ के जीवन को हमेशा के लिए छोडकर भारत के सबसे वंचित गांवों में से कुछ में रहने और काम करने के लिए आ गई थी । लेकिन मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा । सर पिता कहा, हाँ मैं जानता हूँ कि मैं ऐसी हूँ और मुझे कोई महत्वकांक्षा नहीं है और तुम्हें इस बात को अपना गुण समझाते हैं । मुझे तो कुछ समझ में नहीं आता है लेकिन वास्तव में रिया समझता भी नहीं चाहते थे । मेरी चाहे और रिया की कैप चीजों बहुत पहले खत्म हो चुकी थी । बाहर बारिश भी दुःख चुकी थी । खिडकी के शीशों पर हूँ कि पानी की बन्दों के पीछे कनॉट प्लेस के शाम की रोशनी चमक रही थी । हम एक ही टेबल पर आमने सामने बैठे थे लेकिन ऐसा लग रहा था कि हमारी बातचीत बहुत दूर से हो रही है । जैसे अटलांटिक महासागर के पास है और हमारी आवाजें बीच में कहीं गुम हो रही हैं । मैं क्या के पापा से क्रिसमस करी । शाम को मिला पिस्टल मल्होत्रा हमेशा से गर्वीले व्यक्ति रहे थे और हर गर्वीले व्यक्ति की तरह खुद को गर्व करने का अधिकारी समझते थे । लेकिन अब वो दिया कि अमेरिका की पढाई और उसके वहाँ के जीवन के बारे में भी गर्व महसूस करने लगे थे । हम सब उनके ड्रॉइंग रूम में बैठे थे । फर्श पर एक नहीं कालीन जो कि मुझे बताया गया था । पश्चिम थी सचिन हुई थी कैप्टन शर्म की बात है कि हमारे नेता हमारी यूनिवर्सिटी को बर्बाद कर रहे हैं । इस समय में आप एक भारतीय यूनिवर्सिटी में पढकर भी एक अच्छा जीवन बिता सकते लेकिन अब तो सब कट्ठे की तरह हो गई है । मिस्टर मल्होत्रा बोले, मैंने कोई टिप्पणी नहीं की । मुझे किसी टिप्पणी की अपेक्षा भी नहीं की गई थी । मेरे पास कुछ नहीं था जिससे मैं भारतीय यूनिवर्सिटीज के अपने अनुभव की तुलना कर सकूँ । मैं कभी किसी विदेशी यूनिवर्सिटी में नहीं गया था । मैं सोचती लगा क्या मिस्टर मल्होत्रा गए थे? लेकिन उनकी बात एक हद तक सही थी और छात्र संघ ओके राजनीतिकरण के फलस्वरूप कैंपस जीवन के अस्तर में गिरावट देखी जा सकती थी । अनियंत्रित गुंडे राजनीति में अपने पांव जमाने के लिए राजनीतिक दलों से नजदीकियां बढाकर देश भर में छात्र राजनीति पर कब्जा जमाने का उपक्रम कर रहे थे और ऐसा भी नहीं था कि राजनीतिक दल इसके लिए तैयार नहीं तो तुम भविष्य में क्या करना चाहते हो? मिस्टर मल्होत्रा ने विदेशी ब्रांड का सिगरेट चलाते हुए पूछा मैं पहले से ही नौकरी करता हूँ और वो काफी अच्छी नौकरी है । मैंने जवाब दिया हाँ हाँ हाँ वो तो ठीक है लेकिन तो में एक तेज और जवान लडके हो तो मैं इससे कुछ बेहतर करना चाहिए । ऍम डिग्री लेने की कोशिश करो तो आज के समय में सिर्फ एक ग्रेजुएशन की डिग्री तो मैं बहुत आगे नहीं ले जाएगी । नहीं देखो समय बदल रहा है । मिस्टर मल्होत्रा बोली हो सकता है । उन्होंने ये सलाह ईमानदारी से दिया । रिया मेरी ओर देखते लगी । मैं जानता था कि मिस्टर मल्होत्रा को अच्छी तरह पता था कि वे रिया के पढाई और उसके अमेरिका में रहने खाने पर कितने रूपये खर्च कर रहे थे । और ये भी मेरे पास इतने पैसे नहीं थे । शायद वो मेरे किसी स्कॉलरशिप के लिए प्रयास करना है और उसे प्राप्त करने के बारे में सोच रहे थे । लेकिन मैं सच में विदेश ताकत नहीं पढना चाहता था । मुझे नहीं लगता था कि सामाजिक शास्त्रों और प्रबंधन की जो शिक्षा विदेशी यूनिवर्सिटीज में दी जाती थी वो भारतीय संदर्भ में प्रासंगिक होगी । और मैं ये भी सोचता था कि भारतीय छात्र जिनमें दिया भी शामिल थी, विदेश जाकर इसलिए पढना चाहते थे ताकि वे एक अलग तरह से जीवन को देखें । वह जी सके तो अधिक सुविधाजनक और संपन्न हूँ और अंतर था उस तथाकथित प्रथम दुनिया में ही पश्चिम मैं अपने देश, अपने परिवार और अपने दोस्त को हमेशा के लिए छोडकर विदेश में नहीं बसना चाहता था । लेकिन मैं अपनी सोच के बारे में बहुत स्पष्ट नहीं था । नहीं, अपने विचारों के प्रति बहुत आश्वस्त था और मैं खुद को अधिक निर्णायक नहीं जताना चाहता था इसलिए चुप रहा दिया और उसके मम्मी डैडी मेरी ओर से कोई प्रतिक्रिया था थे । उन्हें मेरी चुप्पी से शायद निराशा हुई होगी । हो सकता है उन्होंने मेरी चुप्पी को मेरी जब्तियां नहीं अशिष्टता समझा हूँ । लेकिन ऐसा नहीं था । मुझे लगता है तो मैं अपने अंदर थोडी महत्वकांक्षा थोडा जोर से पैदा करने की जरूरत है । यंग तो बहुत आसानी से संतुष्ट हो जाते हो । बहुत जल्दी असल में ये ठीक मध्यम वर्ग के विशेषता है । मिस्टर मल्होत्रा ने मुझसे खुशबुदार थोडा बाहर छोडते हुए भौंहे टेढी करके कहा मैं उनकी कहीं बात में संशोधन करना चाहता था कि वास्तव में उनके कहने का मतलब मध्यम आय वर्ग तथा मध्यम वर्ग नहीं । लेकिन फिर मुझे लगा कि ऐसा करना शिष्टता होगी । वो उसी भाषा में बात कर रहे थे जिसमें दो दिन पहले प्रिया बोल रही थी क्या ये मैं एयरटेल का आनुवंशिकी सिद्धांत था? सामान वातावरण में समान विचार उत्पन्न हो ना? या सिर्फ सर जो मैं नहीं जानता था । लेकिन मैं यह अवश्य जानता था की मुझे दुनिया का मिस्टर मल्होत्रा की तरह बात करना अच्छा नहीं लगता था । जी सर था शायद आप ठीक कह रहे हैं । मैंने पिया की ओर देखते हुए जवाब दिया, वार्तालाप जिस दिशा में जा रहा था वो मुझे पसंद नहीं आ रहा था और मैं आशा कर रहा था की मेरे मिस्टर मल्होत्रा की बात को स्वीकार कर लेने से बात खत्म हो जाएगी । मेरा अनुमान सही था । बात खत्म हो गयी कम से कम क्रिसमस कल शाम को मल्होत्रा परिवार ने उस साल आपने प्रांगण में क्रिसमस ट्री सजाया था उसमे नन्ने रंगबिरंगे पिछली के लखनऊ की लडकिया लगी थी । मेरे बचपन में हमारे पडोस के कृशन परिवार गत्ते के सितारे बनाकर उनके अंतरिक बिजली का लखनऊ चलाकर अपने बरामदे हूँ या बालकनियों से लगता देते थे तो क्रिसमस के आगमन का संकेत होता था । क्रिसमस बीच जाने के बाद ही वे सितारे टंगे रहते थे जब तक कि उनमें लगे बाल काम करना बंद नहीं करते थे और फिर एक दिन बहुत सितारा भी गायब हो जाता । अगले क्रिसमस तक के लिए जब उसका वारिस उसकी जगह ले लेता था, उस समय हम हिंदू बच्चों के लिए क्रिसमस का मतलब होता था कभी कभी स्थानीय चर्च में जाना । अगर वह बहुत दूर नहीं होता तो और ईसा मसीह के जन्म से संबंधित विभिन्न घटनाओं पर आधारित रिश्ते देखता हूँ जो उनके खुले प्रांगण में चल रहे होते थे । मिट्टी, कागज और धर्म कौन से बने मॉर्डल तथा छोटी छोटी गुडियाओं के माध्यम से जीसस के जन्म के दृश्य दिखाए जाते थे । राॅक क्रिसमस के भी बनवाया था और उसके साथ खाने के लिए रोस्ट चिकिन नंबर था । उनकी युवा किशोरवय की नौकरानी ट्रे में खाने की प्लेटें और चाय लेकर आई । अब जब की मेरा भविष्य चर्चा का विषय नहीं था । वार्तालाप ने अपनी धार खो दी थी और अब मिसेज मल्होत्रा भी हमारे साथ आ कर बैठ गई । हम लगभग सन्नाटे में बैठकर चाय पी रहे थे तो सिर्फ चम्मच चुके प्लेट क्या कब के टकराने की आवाज से भंग हो रहा था । किसी के भी जबरदस्ती इधर उधर की बातें करने की इच्छा नहीं हो रही थी । तभी पहली बार मैंने ध्यान दिया कि दया दें, अपने बाल विभिन्न रंगों में रखवा लेंगे तो बताओ तुम्हारे दिल्ली यात्रा कैसे रही? काजल ने मुझसे पूछा हम एक बार फिर काजल के अब अपने से लगने लगे । ड्राइंग रूम में बैठे हुए थे, अच्छी थी । मैंने जवाब दिया । मैं पिछले शाम ही जमशेदपुर लौटा था और नववर्ष की पूर्व संध्या थी और हॉस्टल के मेरे अधिकतर दोस्त ॅरियर के आप आधी हारे आत्मन् का उत्सव मनाने कंपनी के क्लब हुए थे । पिछले कुछ वर्षों में नववर्ष के आगमन के स्वागत से संबंधित उत्साह हूँ । परिवारों के शयन कक्षों और दूरदर्शन के कार्यक्रमों से निकलकर क्लब, होटलों, रेस्टोरेंटों की पार्टियों तक पहुंच गए, जिनमें इस अवसर पर विशेष तडक भडक वाले कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं । लेकिन उन दिनों ऐसी पार्टियां और उनके महंगे टिकट मॉडलो और टीवी या फिल्म के सितारों के डांस शो और ऐसी पार्टियों में देखे जाने का सामाजिक बदलाव नहीं था । हालांकि हॉस्टल में रहने वाले अविवाहित युवा अपरिहार्य और स्वाभाविक रूप से अपने दोस्तों, सहकर्मियों के साथ नया साल मनाने क्लबों में जाते थे तो एक्टिंग शराब की लेते थे और ऍम के नाम पर हाथ खिलाते थे । लेकिन अगर कोई अपने घर में शांति से एक शाम बिताना चाहता था तो किसी को फर्क भी नहीं पडता था । मिस्टर शुरू कर नहीं मतलब की न्यू इयर पार्टी में रह गया । मैंने पूछा मुझे उस शाम मिस्टर कुलकर्णी नजर नहीं आए थे । हालांकि दिन मैं वो ऑफिस में अवश्य मौजूद थे । बाबा ऐसी पार्टियों में कभी नहीं जाते हैं । कम से कम जब से मुझे आप हैं । हालांकि इसके पीछे उनका कोई उसूल नहीं है । वे सुभाष अंकल के घर गए होंगे, काजल नहीं । जवाब दिया । सुभाष अंकल भी हमारी कंपनी में काम करते थे । हमारे भी बाद में और मिस्टर कुलकर्णी की उम्र के ही है । दोनों में अच्छी दोस्ती थी । दोनों परिवार पडोस नहीं थे, इसलिए दोस्ती बहुत अच्छी नहीं रही थी । मैं तुम्हारे खाने के लिए कुछ लेकर आती हूँ तो ऑफिस से आ रहे हो भूख लगी होगी । काजल ने मुझसे पूछे बिना निर्णय लिया और किचन में जाने के लिए खडी हो गई । हालांकि मुझे खास भूख नहीं लगी थी फिर भी मैंने उसकी बात का विरोध नहीं किया और उसके पीछे पीछे जाकर किचन के दरवाजे पर खडा हो गया । मैंने जूते नहीं पहन रखे थे और किचन बहुत बडा था । फिर में किसी चीज ने मुझे उसके पीछे अंदर जाने से रोक दिया । काजल झालमुडी पूरे मसालों को हरी मिर्च और सरसों के तेल से बना एक चटपटा, तीखा, मिश्रन और पकौडे बनाने की तैयारी करने लगीं । ताजा उसे सब्जियाँ काटने के दौरान हमारी बातचीत चलते रही तो मैं पेच जी । एस । एस । गई थी । क्या निर्मला जी कैसी हैं? मैंने पूछा हाँ, तुम्हारे यहाँ होने के दौरान मैं तो बात लाल दी गई थी । निर्मला देवा जैसी थी, वैसे ही हैं । काजल ने जवाब दिया, मुझे सुन कर अच्छा लगता कि मेरी अनुपस्थिति के दौरान वहाँ के लोगों को मेरी कमी महसूस हुई । गांव वालों को जीएसएस के कार्यकर्ताओं को निर्मला देखो और काजल को । लेकिन मुझे ऐसा कुछ सुनने को नहीं मिला । क्या मैं कहीं आती जाती नहीं है? मैंने उत्सुकतावश पूछा । आखिर उन्होंने ये विशाल दुनिया देख रखी है । उनके भी तो दोस्त और परिचित होंगे । मैं कलकत्ता जाती है और में भी लेकिन कभी कबार मुझे लगता है उन्हें सबसे ज्यादा अच्छा इन गांवों में लगता है । इन गांव वालों के बीच काजल ले तैयार हो चुकी झालमूडी को दक्षता से उछालते हुए जवाब दिया, पता नहीं उन्होंने शादी क्यों नहीं की? मैंने आश्चर्य व्यक्त किया तो ये मान कर चल रहे हो ना कि उन्होंने शादी नहीं की है । काजल मेरी और देखकर मुस्कुराई तो मतलब शादी शुदा है । मैंने कुछ हैरानी से पूछा मैं तो उन्हें अविवाहित ही समझता था । मैं ऐसा नहीं कह रही हूँ और सच तो यह है कि मुझे भी नहीं मालूम हूँ । लेकिन हो सकता है कि उन्होंने शादी की हो । फिर विधवा हो गई हूँ । अपने पति से अलग हो गई हूँ, तलाकशुदा हूँ, कुछ भी हो सकता है । मेरे भी तो शादी हुई थी, काजल नहीं । जवाब दिया । अचानक एक अजीब सी खामोशी छा गए । काजल थी अल्पा बंदे की शादी और उसका चौंकानेवाला तो खदान ऐसा विषय था जो हमारी बातचीत से बाहर रहता था । वास्तव में कभी कभी तो मैं भूल भी जाता था की काजल की छाती हुई थी खासतौर से । इसलिए मैंने उसको विवाहित स्त्री के रूप में देखा ही नहीं था लेकिन मुझे लगता है कि उसकी पूर्व की वैवाहिक स्थिति उसके या उसके बाबा के दिमाग से बहुत देर तक दूर नहीं रहती थी । मैं नहीं जानता कि मुझे तुमसे ये बात पूछनी चाहिए या नहीं हूँ । लेकिन क्या तुम दोबारा शादी नहीं करना चाहती हूँ? अभी नहीं, पर भविष्य में कभी बिना सोचे समझे कि आपने इस प्रश्न से मैं भी हैरान था । कहीं में उसकी निजी जिंदगी में दखल को नहीं दे रहा था । लेकिन स्पष्ट रूप से काजल को ऐसा नहीं लगा । उसने मेरे साहसिक प्रश्न का बहुत सामान्य रूप से जवाब दिया, हाँ, मुझे लगता है कि एक व्यक्ति को साथ ही तब करनी चाहिए जब वो दूसरे के साथ अपना जीवन बिताने के बारे में पूरी शिद्दत के साथ सोचता हूँ । छत शादी करने के लिए या शादी सुदा कहलाने के लिए किसी भी शादी करना मेरे विचार से उचित नहीं है । उसने कहा, मैंने ध्यान दिया कि उसने अक्सर दोहराये जाने वाले शब्द प्यार का उपयोग नहीं किया था । लेकिन क्या परिवार की मासी से हुई शादियाँ सफल होती? कम से कम भारत में मैंने उसके सिद्धांत को चुराते थे । हालांकि मैंने कभी अपने लिए परिवार द्वारा तय की गई शादी की संभावना पर विचार नहीं किया था । देखो, मैं परिवार द्वारा तय की गई शादियों पर कोई नैतिक निर्णय नहीं सुना रही । हो सकता है उनमें से अधिकांश सफल रहती हूँ । हालांकि ये इस बात पर निर्भर करता है कि सफल शादी की आपकी परिभाषा क्या है । मैं तो सिर्फ वो कर रही थी जो मुझे सही लगता है । काजल ने जवाब दिया, उसने बेसन में चले आलू प्याज के कुछ सकूँ, आपको कडाही में डाला । कडाई से ठंड की तेज आवाज आई क्योंकि तेल बहुत गर्म हो चुका था । कई मामलों में मुझे काजल के विचार न सिर्फ आधुनिक और कुछ हद तक वो लगते थे बल्कि मुझे महसूस होता था कि वह उनमें पूरी तरह विश्वास भी करती है । वो एक न करेंगे लेकिन अपेक्षाकृत छोटे शहर में पली बढी थी जिनसे और पश्चिमी परिधान नहीं पहनती थी । लेकिन इन सबके बावजूद जीवन के प्रति उसका दृष्टिकोण वास्तव में आधुनिक था । एक शांत आश्वस्त तरीके से । लेकिन अपने विचारों की सच्चाई के प्रति आश्वस्त होने के बावजूद वो उन्हें सार्वभौम सिद्धांतों की तरह पकडे रहने का या दूसरों को उन के प्रति आश्वस्त करने का प्रयास नहीं करते थे । सही हो या गलत, भारत के अधिकांश हिस्सों में शादियाँ परिवार द्वारा चुने पात्रों से ही होती है । क्योंकि विवाह योग के उम्र के लडके, लडकियों को सामाजिक रूप से मिलने जुलने का अवसर नहीं मिलता है । कम से कम महानगरों के बाहर तो मैं ऐसा नहीं लगता । मैंने किचन के दरवाजे के सहारे टिकते हुए पूछा ये तो मैं मानती हूँ का चलने जवाब दिया अगर तुम यही रहना चाहते हो तो ड्राइंग रूम से कुर्सी क्यों नहीं ले आते हैं? ताजा ने मुस्कुराकर का उसकी मुस्कुराहट सरल और विश्वास से भरी हुई थी और उसमें किसी प्रकार की झिझक या संकोच नहीं था जैसा कि आमतौर पर देखा जाता है । मैंने ध्यान दिया कि उसकी मुस्कुराहट बहुत आकर्षक थी । हर एक नहीं नहीं मैं ठीक हूँ । मैं थोडा लक्षित हुआ जैसे की काजल ने किचन में खडे रहने की मेरी इच्छा को समझकर उस पर प्रश्न किया हो । जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं था तो मैं तो खाली होना हाँ, लेकिन मैं ऑफिस नहीं थी । काजल फिर मुस्कुराई, वैसे भी मेरा काम हो गया है । मैं चाय बना लेती हूँ । ऍम में चलकर बैठते हैं । उसमें पानी उबालने को रख दिया । वो चायपत्ती कभी पानी के साथ नहीं डालती थी । मैंने पहले भी ध्यान दिया था तो चाय पत्ती हमेशा इटली में डालकर ऊपर से उबलता पानी डालती थी और फिर कुछ देर उसे छोड देती थी ताकि उसका स्वाद और खुश हूँ । पानी में सुना जाए । जैसे ही हम काजल और मैं ड्राइंग रूम में आकर बैठे मिस्टर पुर करने भी आ गए । उन्होंने अंदर आने से पहले अपना छाता ध्यान से मोडकर पर आते में रख दिया । मैंने ध्यान नहीं दिया था कि बाहर बेमौसम की बरसात हो रही है और वो भी बूंदाबांदी से कुछ तेज । शायद पकौडे चलने की आवाज में बारिश की आवाज दब गई थी । आप बिल्कुल सही समय पर आए हैं । जेआईटी जस्टिन टाइम ऐसा की जापान में कहा जाता है । मैंने मिस्टर कुलकर्णी का उन्हीं के घर में स्वागत करते हुए कहा मिस्टर कुलकर्णी! दिल से मुस्कुराए लेकिन फिर सब हिलाते हुए बोले हरे नहीं नहीं मैंने खाना खा लिया है । हालांकि खाना खाने का समय नहीं हुआ था लेकिन हमेशा की तरह सुभाष की पत्नी ने मुझे बिना खाने आने नहीं दिया । मैं अंदर जाकर कपडे पता चलता हूँ तो आपने चाय नाश्ते का मजा लो । जमीन पर बिजली दरें की ली ना हो जाए । इस तरह से मिस्टर कुलकर्णी लगभग छलांग लगाते हुए अंदर चले गए फॅस ठंडा बढ जाएगी । वैसे भी ये सर्दियाँ काफी ठंडी रही हैं लेकिन तो मैं तो कोई फर्क नहीं पडेगा । तो तुम दिल्ली वाले जो ठहरे ताजन ने नीचे सेंटर टेबल पर प्लेटें कटोरिया और कब रखते हुए कहा पता नहीं क्यूँ, लेकिन मुझे दिल्ली वाला कहलाना अच्छा नहीं लगता था इसलिए नहीं कि मुझे अपना बचपन नौं व्यवस्था की शुरूआती साल दिल्ली में बिताने पर कोई शर्मिंदगी थी बल्कि इसलिए कि शब्द के अर्थ हमें बहुत सकारात्मक संकेत नहीं थे । किसी शब्द है या वाक्यांश से जुडे संकेतार्थ उनके शाब्दिक अर्थ से अधिक महत्वपूर्ण होते हैं । लेकिन मैंने कोई आपत्ती नहीं न सिर्फ इसलिए कि मुझे नहीं मालूम था कि अगर मैं दिल्ली वाला नहीं हूँ तो क्या हूँ । बल्कि ज्यादा इसलिए की अब तक मैं जान चुका था की काजल की सोच में संकीर्णता बिल्कुल नहीं थी और उसने शब्द का प्रयोग सिर्फ इसलिए किया था क्योंकि मैं सच में दिल्ली से आया था हूँ ।

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मैं पहली क्लास छोड़कर रिया से मिलने आई.एम.टी. जाना चाहता था। लेकिन इनसान जो करना चाहता है और जो करने की उससे अपेक्षा की जाती है, उसमें हमेशा अंतर होता है। मैंने सोचा कि मैं कक्षाओं के बीच मिलनेवाले दस-दस मिनट के अंतरालों में से एक में अपनी किस्मत आजमाऊँगा और उसके कॉलेज जाने की कोशिश करूँगा, सुनिए आखिर क्या है पूरी कहानी| writer: पार्थ सारथी सेन शर्मा Voiceover Artist : Shreekant Sinha Author : Parth sarthi Sen Sharma
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