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हम हैं राही प्यार के - Part 3 in  | undefined undefined मे |  Audio book and podcasts

हम हैं राही प्यार के - Part 3 in Hindi

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AuthorMixing Emotions
मैं पहली क्लास छोड़कर रिया से मिलने आई.एम.टी. जाना चाहता था। लेकिन इनसान जो करना चाहता है और जो करने की उससे अपेक्षा की जाती है, उसमें हमेशा अंतर होता है। मैंने सोचा कि मैं कक्षाओं के बीच मिलनेवाले दस-दस मिनट के अंतरालों में से एक में अपनी किस्मत आजमाऊँगा और उसके कॉलेज जाने की कोशिश करूँगा, सुनिए आखिर क्या है पूरी कहानी| writer: पार्थ सारथी सेन शर्मा Voiceover Artist : Shreekant Sinha Author : Parth sarthi Sen Sharma
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और आपने अपनी नई मोटर साइकिल या वहाँ ऍप्स वन हंड्रेड चलाकर उसके घर तक कहा था और उसे फिल्म देखने डिनर करने ले जाता हूँ । मैं खुश था ऑस्ट्रेलिया भी जी आर आई ऍम परीक्षाओं के लिए मुश्किल अंग्रेजी शब्दों की परिभाषाएं रटन हम दोनों ही के इंजीनियरिंग कॉलेजों के अंतिम वर्ष के छात्रों के लिए कोई बडा काम नहीं था लेकिन फिर भी मुझे थोडा शरीर हुआ जब रिया ने कोर्स की सामान्य किताबों के साथ अपनी नई खरीदी । जी । आर आई की किताबें भी कॉलेज लानी शुरू करती । आखिरकार डीआरआई का मतलब था स्नातकोत्तर पोस्ट ग्रेजुएशन की पढाई के लिए अमेरिका जाना हूँ क्योंकि मैं उस दिशा में नहीं सोच रहा था । इसलिए उसके जाने का मतलब था । कम से कम दो वर्षों की जुताई अगर या वाकई अपने प्रयास में गंभीर और सफल रही तो हाय है क्या तुम जी आ रही की परीक्षा देने की सोच नहीं हो । मैंने एक दिन कॉलेज आते समय उससे पूछ लिया । हम ऑटो रिक्शा में बैठे थे जो उस समय चौराहे से गुजर रहा था । हाँ परीक्षा देने में क्या नुकसान है? मैं तो जी ऍफ फल की परीक्षा में भी बैठी हूँ । अभी तो उसके लिए कुछ चलती है लेकिन एक अच्छे स्कोर के लिए मुझे शायद दो बार परीक्षा देनी पड सकती है । रिया ने जवाब दिया, मुझे नहीं पता था कि उसने जी आॅर्ट देने का फैसला कप लिया लेकिन उसके लिए ये एक स्वाभाविक विकल्प प्रतीत हो रहा था । क्या तुम अच्छी शिक्षा के लिए अमेरिका जाना चाहती हूँ? मैंने बेवकूफ की तरह पूछा । पाकिस्तान अच्छी आ रही देने का मतलब क्या कारण हो सकता था? बिल्कुल । दिल्ली के एक प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज से सिर्फ बीस डिग्री लेने से भविष्य का कुछ होने वाला नहीं है । मुझे लगता है तो मैं पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए अमेरिका के कॉलेजों में एडमिशन लेने के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए । रिया नहीं जवाब दिया है । लेकिन मुझे तो जल्दी ही कमाना शुरू करने की जरूरत है, अपने परिवार के लिए भी और अपना घर बसाने के लिए भी । मैंने कहा जब हमारा ऑटो रिक्शा सप्ताह चंद्र फ्लाईओवर से गुजरात रहा था, उसी समय स्पोर्ट्स बाइक प्लेन हवाईपट्टी को छूने जा रहे थे । लेकिन कमाना शुरू करना है और घर बसाने की जल्दी क्या है? मुझे तो लगता है तो मैं विदेश जाने के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए । तुम ऍफ हो, मुझे विश्वास है कि तुम्हें आसानी से एडमिशन में बैठ जाएगा और एक अच्छे से स्क्वाॅड या ने मेरे मूड को ठीक करने और हम को बढावा देने की कोशिश करते हुए कहा, अगले कुछ दिनों में या ने मुझे बहुत समझाने और बनाने की कोशिश की । मैं भी जी आर आई । जीमेट टॉफेल की परीक्षाएं तो पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए अमेरिका के किसी कॉलेज में एडमिशन लेने की कोशिश करूँ लेकिन मैं दृढता से अपनी बात पर टिका रहा । अमेरिका जाना कभी भविष्य की मेरे मूल योजना का हिस्सा नहीं था । मुझे तो कैंपस भर्ती में एक अच्छी सी नौकरी प्राप्त करके जल्दी से जल्दी कमाना शुरू करने का इंतजार था । मेरे माता पिता भी चाहते थे कि मैं जल्दी ही कमाना शुरू कर क्योंकि पिताजी अगले साल अपनी सरकारी नौकरी से रिटायर होने वाले थे । हालांकि अन्य सरकारी कर्मचारियों की तरह नहीं भी पेंशन मिलने वाली थी लेकिन हमें सरकारी आवास छोडकर दूसरा घर तलाश कर रहा था जिसकी वजह से पारिवारिक आय में कमी आ सकती थी । मेरी बहन को यूनिवर्सिटी में दाखिला लेना था और उच्च शिक्षा का हालिया उदारीकरण महंगा होना निश्चित था । मैं ये सभी बातें रिया को नहीं समझा सकता था क्योंकि ये सब इतना साफ था कि रिया खुद भी देख सकती थी । हमारे बीच की अंतरंगता प्रतिबद्धता और प्यार के बावजूद उसके साथ अपने परिवार की आर्थिक समस्याओं की चर्चा करने में मेरा अहम आहत होता था । मुझे इस बात की शंका भी थी कि मेरे कोशिश करने के बावजूद वो उन समस्याओं को पूरी तरह समझ नहीं पाएगी इस सच्चाई का कि मैंने अपने माता पिता से सलाह लिए बिना अपने लिए एक लडकी खुद पसंद की थी । अर्थ यह था कि उनकी अन्य अपेक्षाओं को पूरा करने के प्रति मेरी दोहरी जिम्मेदारी बनती थी । उन्होंने मेरे सामने अपनी कोई भी अपेक्षाएं नहीं रखी थी, कभी भी नहीं । लेकिन मैं देख सकता था की वर्तमान स्थिति में एक अतिरिक्त तन वहाँ का मेरे परिवार में खुले दिल से स्वागत हो । मैं जानता था कि मेरे पिताजी ने भी यही किया था बल्कि इससे अधिक किया था क्योंकि उस समय उनके युवा कंधों पर परिवार की अपेक्षाओं का स्पष्ट बूस्ट उनके दो भाई और चार पहने थी और एजुकेशन के कुछ समय बाद तक पूरे परिवार में वे अकेले कमाने वाले थे और उनके ही तनख्वाह से एक के बाद एक उनके बहनों की शादी हुई और मकान पक्का हुआ । उसके बाद ही उन्होंने खुद शादी करने का फैसला किया जब की उनकी उम्र भी अधिक हो चुकी थी । मुझे ऐसा करने के लिए किसी ने नहीं कहा था । लेकिन मैं खुद ही जल्दी से जल्दी कमाना शुरू करना अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझता था । मैं इसलिए भी शिखर नौकरी पाना चाहता था ताकि दिया से शादी करने के लिए आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो जाऊँ । लेकिन अब उसके विदेश जाकर पढाई करने का मतलब था की शादी अभी नहीं हो सकती थी तो इस सच्चाई से की दिया ने मुझसे सलाह लिए बिना ही विदेश में पढाई करने का फैसला कर लिया था । मुझे तकलीफ हुई थी हाँ हो सकता है की उसे लगा होगी । उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका जाना प्रगति का एक पात्र उपलब्ध रास्ता है और इसलिए उसने मुझसे सलाह देना जरूरी नहीं समझा । वो एक प्रकार से मेरे भी वैसा ही करने की जब भरी अनिच्छा देख कर दंग रह गई थी और मेरा निर्णय बदलने के लिए मुझे मनाने की कोशिश कर रही थी । देखो चाहे तुम कितने भी प्रतिभाशाली छात्र हूँ । आने वाले वर्षों में शीर्ष नौकरियों के लिए पोस्टग्रेजुएट या एमबीए की डिग्री न्यूनतम जो कैसा मानी जाएगी, मुझे समझ में नहीं आता कि इतने होशियार होने के बावजूद तुम खुद को और अपनी महत्वकांक्षाओं को इतना समितियों रखना चाहते हैं तो हैरान थी । हम एक नए कैसे में बैठे थे? काफी तेजी से भारतीय महानगरों के युवा और शिक्षित लोगों के लिए फैशनेवल पेय बंदी जा रहे हैं । हम नौकरी के साथ साथ दिल्ली यूनिवर्सिटी से पार्ट टाइम में भी कर सकते हैं । मैंने अपनी राय रखी छोडो तुम अच्छी तरह जानते हो कि ये अलग बात हो गया । पार्ट टाइम दिखती विदेश की समुचित एमबीए की डिग्री की बराबरी नहीं कर सकती । पैसे भी । मैं तो अपनी डिग्री के साथ भारत में एक अच्छी नौकरी मिलने की उम्मीद नहीं कर सकती हूँ । और फिर विदेश में पडने से मुझे हमें एक्सपोजर मिलेगा हूँ । अमेरिका में रहेंगे और पूरी दुनिया में रिया हमेशा की तरह की बात पर अडी नहीं देखो मुझे नहीं लगता कि जो लोग विदेशों में पढ रहे हैं वापस आकर यहाँ कोई योगदान दे पाएंगे । अमेरिका के कॉलेजों में अर्जित ज्ञान यहाँ ज्यादा काम नहीं आता तो हमारे काम करने का तरीका बहुत अलग है । दिया ये तो सारी समस्या है । हम कुछ नया सीखना ही नहीं चाहते हैं तो हम अपने छोटे छोटे कुल्लू के मेटर बने रहना चाहते हैं । नाराज, दुखी और परेशान दुनिया ने कैसे की बडी सी खिडकी की ओर मुख मालिया और बाहर का उन्मत्त ट्रैफिक देखने लगी । हो सकता है कि मैं ये काम बैठा हूँ । मुझे सच में नहीं लगता कि तुम्हारे सारे दोस्त अमेरिका जाने के लिए इसलिए मारे जा रहे हैं क्योंकि वे वहाँ जाकर ज्ञान और नहीं तकनीके सीखना चाहते हैं और फिर इंडिया वापस आकर उनका यहाँ उपयोग करना चाहते हैं । वो वहाँ प्रवास करने के उद्देश्य से जा रहे हैं । वहाँ जाकर नौकरी हासिल करेंगे, डॉलर कमाएंगे, ग्रीन कार्ड हासिल करेंगे और मजे बुलाएंगे । मैंने जवाब दिया तो मजाक उडाने में क्या खराबी है? एक अच्छे देश में एक अच्छी जिंदगी जीने की इच्छा करने में क्या बुराई तरक्की करने की कोशिश करते हैं? खुद के लिए एक अच्छी जिंदगी हासिल करने में क्या गलत है? क्या ये जरूरी है कि मैं कोटा राज और पागल लोक तंत्र के साथ इंडिया में रहूँ? क्या आप कुछ भी काम नहीं करता? रिया अब हमेशा की तरह प्रसन्नचित स्पोर्ट में नहीं थी । प्रधानमंत्री ने हाल ही में तथाकथित मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने की घोषणा की थी । अब अनुसूचित जातियों और जनजातियों से संबंधित छात्रों के लिए पहले से मौजूद आरक्षण के अलावा अन्य पिछडे वर्ग के संबंधित छात्रों के लिए नौकरियों और सरकारी कॉलेजों में अतिरिक्त कोटा होने वाला था । उस समय ये दिल्ली यूनिवर्सिटी के ऊंची जाति के छात्रों के बीच एक बहुत अलोकप्रिय निर्णय था । तुम से ऐसा कुछ करने के लिए किसने कहा? मैं जानता हूँ मैं तुम्हारे कॅरियर से संबंधित किसी योजना क्या तुम्हारे महत्वकांक्षा को बदल नहीं सकता और ऐसा करने का मेरा इरादा भी नहीं । मैंने वेटर को बिल लाने का इशारा करते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा, चलो घर चलते हैं, देर हो रही हूँ । हमारे मम्मी डैडी चिंता करेंगे । ये अलग बात है कि उससे पहले कई मौकों पर हम देना करके और भी देरी से घर लौटे थे । तो तुम ज्यादा ही नहीं तो गई हूँ और पढाई के लिए विदेश नहीं जाओ कर दिया नहीं । एक बार फिर मुझसे पूछा हम कनॉट प्लेस के पास रिवॉल्विंग रेस्टोरेंट में बैठे थे । रेस्टोरेंट घूमता नहीं था । उसका नाम परिक्रमा इस बात की याद दिलाता था कि दस वर्ष पहले उद्घाटन के तुरंत पार हो तो कुछ महीनों तक सस्ते हैं, घूमा करता था । तुम जानती होगी मैं नहीं जा सकता है । फिर जैसा कि तुम्हें मालूम है मुझे कैंपस इंटरव्यू में टाटा कंपनी में नौकरी मिल गई है और मैं वहाँ काम शुरू करने के लिए काफी उत्साहित । मैंने कहा ये तुम्हारी मासी और बेवकूफी भरी स्थित है । अच्छा मुझे बताओ । मैं जी आ रही तुम जा रही तो उससे पूछा जरूर हो तो देना चाहिए । मैं जानता था कि दिया पहले ही परीक्षा का फॉर्म भर चुकी थी । जो अगले रविवार को थी उसका सेंटर आईटीओ में पडा था । तीन । फिर हमारा क्या होगा पर यानी था उसने । पहली बार हमारे साझे भविष्य की बात ही नहीं देख । रिया मैंने टेबल पर रखें उसके हाथ थाम है और उसकी आंखों में देखते हुए कहा कोई भी रिश्ता त्याग के आधार पर नहीं टिक सकता ना तो अमेरिका जाओ, आगे की पढाई करो और अपने सपने पूरे करूं । मैं जानता हूँ दो साल का लंबा समय होगा, खासतौर से तुम्हारे बिताओ लेकिन अगर हमारा प्यार सच्चा है ना तो हम इस सुनाई को सही लेंगे और जब तक वापस लौट होगी तो मैं तुम्हारा इंतजार करता मिलेगा । मैंने कहा इस उम्मीद में कि मैं उसे आश्वस्त कर पाया था रिया मुस्कुराएं लेकिन उसके मुस्कुराहट हमेशा की तरह उत्साहपूर्ण नहीं थी । उसने अपनी उंगलिया मेरी उंगलियों में फंसा आते हुए मैं चाहती हूँ तीन फिर भी मैं तुम्हें समझ नहीं पा रही है । हम साथ में जी हाँ राइट दे सकते । फिर एक ही कॉलेज में एडमिशन लेने की कोशिश कर रहा हूँ तो स्कॉलरशिप लेकर और मैं अपने बेटे के पैसों सिंह कितना मजा आता । सोच करते को उसने लगभग प्रार्थना के स्वर में उत्कण्ठा से मुझे देखते हुए कहा । फिर बहुत कितनी अच्छी लग रही है कि यकीन करना मुश्किल है । घायल दो साल का समय इतना लंबा भी नहीं होता और तब तक हम बूढे क्या कंचे नहीं हो जाएंगे । मैंने उसका मन हल्का करने की असफल कोशिश करते हुए कहा अच्छा ये बताओ तो टाटा में कब से जाना है तो प्रिया ने विषय बदलते हुए पूछा पहले जुलाई अभी थोडा समय बाकी है । फॅसने दूसरी कंपनियां भी आ रहे हैं तो मुझे एक प्रस्ताव मिल चुका है इसलिए मैं उनके इंटरव्यू नहीं दे सकता हूँ । वैसे मुझे कोई शिकायत नहीं है क्योंकि ये नौकरी बहुत अच्छी है । मैंने कहा हाँ, लेकिन हिंदुस्तान लीवर भी अच्छे है ना हो तो उसने पूछा उसके कॉलेज में कोई कोई कंपनी कैंपस भर्ती के लिए नहीं आई थी । मैं अपनी पूरी जिंदगी साबुन और टूथपेस्ट बेचकर नहीं बताना चाहता हूँ । मैंने मुस्कुराते हुए कहा, मैंने इस कॉलेज के बारे में कुछ दिन पहले सुना था । इसका प्रयोग सभी बहुराष्ट्रीय, उप बच्चे, पदार्थ कंपनियों को बदनाम करने के लिए किया जाता था, चाहे वो वास्तव में साबुन बनाते हो या नहीं । विशेष रूप से उन छात्रों द्वारा चीजें, उच्च खरता अंकों की मांग के कारण हिंदुस्तान लीवर में नौकरी के लिए आवेदन करने का मौका नहीं मिलता था । मैं उनमें से एक नहीं था फिर भी वो एक अच्छा क्षेत्र था । काफी अच्छा, उसमें बुराई क्या है? हिंदुस्तान लीवर तेल को से दोगुना प्रीतम देती है और एक बहुराष्ट्रीय कंपनी है । रिया ने कहा, उसे पैसे कमाने और एक अच्छी जिंदगी जीने की अपनी स्वाभाविक इच्छा को स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं होती थी । मैंने ये भी जान लिया था कि उसके मन में विदेशी भूमि के प्रति अच्छा खासा आकर्षण था और विदेशी भूमि से मेरा था । पडे अफ्रीका नहीं है । वो पहले दुनिया सफेद दुनिया से जैसा की मैं कहता हूँ बहुत प्रभावित थी जैसे अमेरिका, इंग्लैंड और ऍम । शायद ऐसा उसके पिता के प्रभाव और उनकी विदेशी यात्राओं की चर्चा और उनके आयात निर्यात के व्यापार के कारण था । उसके लिए अंग्रेजी साहित्य भारतीयों द्वारा मातृ भाषा में लेकिन किसी भी चीज से श्रेष्ठ तो हॉलीवुड की फिल्में भारतीय फिल्मों से कहीं बेहतर थी । पश्चिमी संगीत हिंदी फिल्म संगीत से कहीं अधिक मत होता था । यहाँ तक कि पश्चिमी व्यंजन भी भारतीय पकवानों से बेहतर थे । मेरे लिए उसके इन बातों से सहमत होना बहुत मुश्किल होता था । खासतौर से अंतिम बात से । वैसे भी अब इस बात का कोई प्रश्न ही था क्योंकि टाटा द्वारा मेरा छह हो चुका है और मैं पहले जुलाई से उनके ग्रेजुएट ट्रेनिंग प्रोग्राम में शामिल होने के लिए तैयार हूँ । क्या पता तब तक तुम्हें विदेश जाने की तैयारी कर रही हूँ । मैंने कहा मुझे कहना अच्छा नहीं लग रहा था । हालांकि मैं ऊपर से बहादुर नर लगता देखने की कोशिश कर रहा था । कौन जानता है कि भविष्य में हमारे लिए क्या लिखा है? रिया ने अपनी आइसक्रीम खत्म करते हुए कहा, मैं उसके अंतिम वाक्य से थोडा चौंक गया । मैं तो सोच रहा था कि हम अपने भविष्य का फैसला पहले ही कर चुके थे । मॉनसून ने पूरी ताकत के साथ शहर में प्रवेश कर दिया था । चारों तरफ सबकुछ हरा भरा और चमक तार दिखाई दे रहा था । यहाँ तक कि उन फूल भरी और बंजर जमीनों में भी जीवन के लक्षण दिखाई देने लगे थे, जिनकी पांच छाती में जीवन छुपा होने की किसी नहीं किसी ने आशा नहीं की थी । रिया को न्यूयॉर्क स्टेट यूनिवर्सिटी में दाखिला मिल गया था और वो अगले शुक्रवार को अमेरिका के लिए निकलने वाली थी । उसके परिवार के अस्तर को देखते हुए भी उसके यूनिवर्सिटी की फीस बहुत अधिक थी और उसके ऊपर न्यूयार्क में रहने का खर्चा भी अमेरिका के अन्य हिस्सों से अधिक था । ये सब जानकारी बेशक मुझे दिया से ही मिलती थी क्योंकि इस प्रकार के खर्च की मैं तो कल्पना भी नहीं कर सकता था । हाँ, शुरुआत में बहुत पैसे खर्च हो में लेकिन एक बार मैं भी पढाई पूरी हो जाएगी तो मैं उससे कई गुना अधिक कमाल होंगे और अगर तुम उस नजरिये से देखो तो ये एक बुद्धिमानी भरा निवेश का निर्णय है । बरसात की एक शाम जब हम दक्षिण दिल्ली के एक्सिस फॉर्म्स की अपने को नहीं की टेबल पर बैठे थे तो दिया ने कहा वो कोई गुलाबी रंग का झाड था, शेख पी रही थी और मैं हमेशा की तरह काली एस्प्रेसो कॉफी पी रहा रहा? हाँ बिल्कुल । मैंने जवाब दिया काश तुम ने भी अमेरिका जाने का निर्णय लिया होता ऍम मुझे लगता है की विषय पर हम पहले भी बात कर चुके हैं दिया और वैसे भी अब बहुत देर हो चुकी है । मेरा जमशेदपुर की ट्रेन का टिकट अगले रविवार का बना था । रिया के जाने के दो दिन बाद का टाटा में नौकरी मिल जाने के बाद भी मुझे सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ अन्य सम्मानित कंपनियों से नौकरी के प्रस्ताव मिले थे । जैसे मारुती से जो दिल्ली के निकट स्थित एक प्रमुख ऑटोमोबाइल कंपनी थी और उस समय तक यानी विनिवेश के फैशनेबल बनने के पहले तक एक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी थी और इंडियन वालों से जो सरकारी क्षेत्र की सबसे बडी पेट्रोलियम कंपनी थी । लेकिन मैंने टाटा में नौकरी करने के अपने मूल निर्णय को बरकरार रखा था । सिर्फ टाटा समूह की काला तीस प्रतिष्ठा और ख्याति की वजह से नहीं बल्कि इसलिए भी कि उस नौकरी को करने का मतलब था मेरा स्वचालित स्थानांतरण । दिल्ली से दूर दराज के शहर जमशेदपुर जहाँ दिल्ली से ट्रेन द्वारा जाने में छत्तीस घंटे लगते थे । दिल्ली में रहकर रिया के बिना हूँ उन्नीस सडकों से गुजरना उन्हें दोस्तों से मिलना शायद मेरे लिए बहुत मुश्किल होता हूँ या शायद मुझे ऐसा लग रहा था जिस शुक्रवार को दिया को जाना था तो शाम मैं उसके घर उससे मिलने गया था । आपको बहुत व्यस्त थी और उसके हाथ और उसका दिमाग पूरी तरह अंतिम शरण की पैकिंग में उलझे हुए थे । वो एक ही समय में उत्साहित थी और चिंतित वो पहले भी विदेश जा चुकी थी । मेरी तरह नहीं थी जिससे कभी पासपोर्ट बनवाने कि भी जरुरत ना हो ना मौका मिला लेकिन ये पहली बार था कि वो अकेली विदेश यात्रा कर रही थी । पिछले दो महीनों में उसके बीच फॅस, मेडिकल चेकअप, विभिन्न आवेदनों और दुनिया भर के अन्य आवश्यक औपचारिकताएं पूरी करवाने के लिए मैं उसके साथ साथ घूमा था और विदा लेने का समय आ गया था । वह भारत से और मुझ से अधिक नहीं तो कम से कम छह महीने दूर रहने वाले थे । उसके मम्मी डैडी घर पर ही थे और उसकी तैयारियों का मुआयना करने के लिए आसपास मंडरा रहे थे । इसलिए उसने मुझे दुनिया से अकेले बात करने का मौका नहीं मिला । बस हमारे बीच कुछ विनम्र औपचारिक पाते हुई वो भी उसकी माफी मौजूद की । मैं चाय पीते हैं । मैंने तय किया था कि उसको विदा करने एयरपोर्ट नहीं जाऊंगा । एक तो आधी रात के बाद दिल्ली में कोई सार्वजनिक वाहन नहीं मिलता और दूसरे टैक्सी करने में बहुत पैसे खर्च होते हैं । इसलिए ये विचार मेरे दिमाग में आया ही नहीं और कर रिया ने भी मुझे एयरपोर्ट आने के लिए नहीं कहा था । शुक्रवार केदार, उसके मम्मी डैडी उसे विदा करने एयरपोर्ट गए और अगले सुबह जब तक पैसो कर उठा रिया मेरे देश की सीमाओं को पार करते अटलांटिक महासागर के ऊपर कहीं बोल रही थी । सुबह उठते ही सबसे पहले मुझे उसी का खयाल आया जैसा कि हमेशा होता था और मैं कल्पना कर रहा था कि वह भी मेरे बारे में सोच रही होगी । लेकिन मैं आज तक ये नहीं जानता है कि जो मैं सोच रहा था वो स्वच्छ था या नहीं । मेरा घर से जाना क्योंकि मुझे बाद में समझ आया कि हमेशा खेलता था । मेरी जिंदगी की एक महत्वपूर्ण घटना थी और मुझे लगता है कि औरों के लिए भी होती है । लेकिन उस समय न तो मुझे उस घटना का महत्व समझ में आया था और नहीं मेरे माता पिता को मैं दिया के जाने के दो दिनों बाद नीलांचल एक्सप्रेस के द्वितीय श्रेणी के डब्बे में बैठकर जमशेदपुर के छत्तीस घंटे के सफर पर निकल पडा । अब तक मैं अपने माता पिता के साथ कुछ यात्राएं कर चुका था लेकिन अकेले कभी नहीं रुक रुककर हो रही बारिश के बीच देश के दूरदराज के विस्तृत इलाकों और बदलते परिदृश्यों के बीच तीन यात्रा के रोमांच पर रिया की अनुपस्थिति से उत्पन्न मेरी हताशा की भावना भारी पड रही थी । उस पर से उसी के बारे में मेरे निरंतर सोचने स्थिति को और बदतर बना दिया था । रिया मेरे लिए एक आदत से बढकर हो गई थी । मेरे जीवन में अच्छे बुरे समय में, विचारों में अपने निरंतर मौजूदगी से वो एक प्रकार से मेरी दूसरी त्वचा की तरह हो गई थी हूँ । हालांकि इससे जुदाई बहुत कष्टप्रद थी लेकिन मेरा दिल उसे भूलने को भी तैयार नहीं था । अगली सुबह जब मेरी ट्रेन दो घंटे के विलंब से मेरे जागने के आधे घंटे पास टाटा रेलवे स्टेशन के प्रवेश कर रही थी तो बाहर की धरती नीचे छिपे लोहे के कारण लाल दिखने लगी थी । जब मैं टाटानगर स्टेशन से जिसका नाम पारिवारिक साम्राज्य के संस्थापक के नाम पर रखा गया था, बाहर निकला तो पहला दृश्य मुझे और अन्य यात्रियों को दिखा । वो था ऑटो रिक्शा चालकों और बस चालकों की लंबी कतार । वहाँ कोई टैक्सी नहीं थी । सभी चालक गला फाड कर चिल्ला रहे तेल को साथ बिष्टुपुर वे सभी अस्थल जिनसे वे संबद्ध थे और संभावित यात्रियों के लिए प्रचार कर रहे थे । जैसे ही मेरे ऑटो रिक्शा नहीं ऍफ की आबादी में प्रवेश किया जोकि मुश्किल से एक किलोमीटर आगे थी । सडकें और अन्य सभी चीजें नाटकीय रूप से सुधरने लगी तथा ऐसा महसूस होने लगा कि जैसे मैं अराजकता, भ्रम और गंदगी के वातावरण को छोड कर सुव्यवस्था, समझदारी और विवेक के द्वीपे प्रवेश कर गया । इस बीच ऐसी भावना ने जमशेदपुर मेरे पूरे प्रवास के दौरान मेरा साथ नहीं छोडा । हालांकि द्वीप की आकृति समय, परिस्थिति और मेरे विचारों के साथ बदलती रही । मुझे लगता है ऐसी ही भावना अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के कारखानों, विद्युत संयंत्रों और खानों के आसपास बनी कृत्रिम बस्तियों में रहने वालों के मन में भी उत्पन्न होती होगी और इन द्वीपों की कृत्रिमता और सतही पांच पन के बावजूद अन्य देशवासियों की तुलना में मारो ध्यान यहां के निवासियों के लिए आशीर्वाद के समाज थे । हालांकि उनमें से कई को इस बात का एहसास नहीं था । मेरे ऑटो रिक्शा नहीं टिस्को टाउनशिप को और साक्षी तथा विश्व कपूर जैसे इलाकों को पार कर लिया था । सिर्फ अपने दामों के कारण एक समय वहाँ उनका चीन आदिवासी गांवों के समान थे जिन्हें बाद में उस आधुनिक औद्योगिक नगर में सम्मिलित कर लिया गया था तो स्टील कारखाने के आस पास लगभग एक साडी पहले बताया गया था । हालांकि इन गांवों के आदिवासियों ने शायद आपने सबको पुराने जीने के पारंपरिक तरीके खो दिए होंगे फिर भी आधुनिक कारखानों में काम कर रहे हैं । इनके वंशज बेशक अधिकतर मजदूरों के रूप में या मिली कॉलर वाली नौकरियों में दुखी प्रतीत नहीं होते लेकिन फिर खुशी की पूरी अवधारणा ही इतने बेढब और अस्पष्ट होती है कि व्यक्ति खुद ही नहीं समझ पा कहा कि वह वास्तव में खुश है या नहीं हूँ ।

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मैं पहली क्लास छोड़कर रिया से मिलने आई.एम.टी. जाना चाहता था। लेकिन इनसान जो करना चाहता है और जो करने की उससे अपेक्षा की जाती है, उसमें हमेशा अंतर होता है। मैंने सोचा कि मैं कक्षाओं के बीच मिलनेवाले दस-दस मिनट के अंतरालों में से एक में अपनी किस्मत आजमाऊँगा और उसके कॉलेज जाने की कोशिश करूँगा, सुनिए आखिर क्या है पूरी कहानी| writer: पार्थ सारथी सेन शर्मा Voiceover Artist : Shreekant Sinha Author : Parth sarthi Sen Sharma
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