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10. Gyan Ka Jharna  in  | undefined undefined मे |  Audio book and podcasts

10. Gyan Ka Jharna  in Hindi

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2 K Listens
Authorआर के डोगरा
This book is a compilation of short stories studded with several morals, thoughts filled with immortality and experience that should be passed on to every generation. The book will be eagerly sought after for its literary value as this is really a paragon of virtue. The compilation of many ingredients makes the book worthful so let’s taste with great relish. The title implies a strong connection between the permanent knowledge and reader’s mind. Based on reason , fact and logic, a great synchronization of radiance of different gems will make one’s life valuable. Voiceover Artist : RJ Bhagyashree Author : RK Dogra
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ऍम नहीं चिकित्सा विधि एक महिला अपनी परेशानी को लेकर अस्पताल गई थी महा उसने देखा कि पहले वाले डॉक्टर के स्थान पर कोई नया युवा डॉक्टर बैठा है । उसने अपनी समस्या नए डॉक्टर को भी बता दी हूँ । सिर्फ दो तीन मिनट की जांच के बाद लगभग घोषणा के अंदाज में उसे बताया कि वह गर्भवती है । यह सुना था की महिला जीत पडी । उसने डॉक्टर को हैरानी से देखा और भागती हुई बाहर निकली । वो भागी जा रही थी कि अस्पताल के गलियारे में मुझे पुराने डॉक्टर मिल गया । डॉक्टर ने भी मरीज को पहचान लिया तथा घबराहट का कारण पूछा तो उसने बताया मेरी उसी समस्या का कारण नए डॉक्टर ने मेरा गर्भवती होना बताया है । ये जानकर पुराने डॉक्टर के आश्चर्य का भी ठिकाना ना रहा । उसने महिला को शांत रहने को कहा तथा वहीं बेंच पर बिठाकर खुद नए डॉक्टर के पास चल पडा । कमरे में उसने देखा कि नया डॉक्टर कुछ लिखने में व्यस्त है । उसे देखते ही पुराना डॉक्टर बरस पडा । तुम्हारा दिमाग कर लिया है । जो महिला पैंसठ साल की है जो बच्चों की माँ तथा आठ बच्चों की दादी माँ है । उसे तुमने बताया कि वहाँ बनने वाली हो गई । तुम्हारी पढाई कहाँ चली गई । इतना सुनकर भी डॉक्टर ने अपना लिखना जारी रखा तथा सिर झुकाए झुकाए जवाब दिया सर ये वही महिला है ना जिसकी पिछले चार सप्ताह से हिचकी बंद नहीं हो रही थी । आप लोग सारे राज करके हार गए थे । क्या आपने ध्यान दिया के इलाज के मेरे नए तरीके से स्कीज की पूरी तरह से बंद हो चुकी है । सारांश डेवलॅप वाॅटर ऍम आयुष आफिॅस दादी नानी के नुस्खे ऍम डॉक्टर यूज से कार्यवाही मंजिल नहीं मिली तो कोई गम नहीं मंजिल की जिससे जू में मेरा कार्यवाही तो है चाॅस का इस फॅमिली फॅमिली मैनेज, डाॅक्टर हट ऍम ऍम ऍम ऍम ऍफ कार्ड महर्षि वेदव्यास महाभारत अठारह पुराण, श्रीमद्भागवत्, ब्रह्मसूत्र, मीमांसा जैसे अद्वितीय साहित्य दर्शन के प्रणेता वेद व्यास का जन्म आषाढ पूर्णिमा को लगभग तीन हजार ईस्वी पूर्व में हुआ । वेदव्यास तरीका लगे थे । उन्होंने जाना कि कलयुग में मनीष धर्मशील हो जाएगा । एक विशाल डिजिटल वेद को रोने चार भागों में विभाजन कर दिया तथा उनके नाम क्रमशः ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद रखे । चार्टर्ड नाइंटी थ्री लोग पर विजय एक दिन एक पादरी चर्च में नए नियुक्त हुए थे । एक दिन में बस द्वारा अपने गंतव्य को जा रहे थे । उन्होंने कंडक्टर को किराये के पैसे दिए और अपनी सीट पर बैठ गए । कलेक्टर ने जब पैसे वापस किए तो उन्होंने पाया कि उसने उन्हें गलती से दस सेंट अधिक दे दिए । वे चुपचाप अपनी जगह पर बैठ गए और सोचने लगे थोडी देर बाद अधिक पैसे मिले, मैं वापस कर दूंगा । कुछ समय बीता । उन्हें विचार आया कि मैं यही दस सेंट जैसी मामूली रकम के पीछे परेशान हो रहा हूँ । बेहतर है मैं अपने पास रख लो । ये बस कंपनियाँ भी करोडों का लाभ कमाती है । ये दस सेंट में भगवान की ओर से भेंट समझकर रख लेता हूँ और इसे मैं किसी अच्छे काम पर लगाऊंगा । इसी कशमकश में पादरी का गंतव्य स्थान आ गया । वे उतरने लगे तभी अचानक दरवाजे के पास उनके कदम झटके । उन्होंने जेब में हाथ डाला और दस सेंट निकालकर कंडक्टर को दे दिए तथा कहा, भाई, तुमने मुझे पैसे देते समय दस मिनट अधिक दे दिए । इन्हें तुम वापस रख लो । कंडक्टर मुस्कुराया और बोला क्या यहाँ के चर्च में आप ही नहीं फादर आए हैं? फादर ने हामी भरी । कंडक्टर बोला मैं कई दिन से चर्च में आपकी प्रविजन सुनने की इच्छा रखता था । आपको देखा तो मेरे मन में विचार आया कि चलो देखते हैं यदि आपको अधिक पैसे दे दो तो आप क्या करते हैं? फादर जी बस से उतरे तो उनके पास काम रहे थे । वे आकाश की ओर हाथ उठाकर कहने लगे ये प्रभु, आज तुमने मेरे इलाज रखने मुझे लोग से दूर रखा । नहीं तो दस सेंट में आज अच्छी शिक्षा की बोली लग जानी थी । सारांश ॅ नाॅन अननोन फ्रेंड्स चैप्टर नाइंटी फोर । सच्ची महानता स्वामी रामतीर्थ जब कॉलेज में प्राध्यापक थे, एक दिन कक्षा में छात्रों के सामने बोर्ड पर एक लकीर खींचकर कहने लगे इस लडकी को छोटा करूँ । छात्रों ने विचार किया कि इसमें कौन सी बडी बात है । एक छात्र उठा और लकीर को छोटा करने के लिए एक और सीमित एक छात्र उठा और लकीर को छोटा करने के लिए कोर्से मिटाने लगा । स्वामी जी ने उसे रोककर कहा लकीर को बिना मिठाई छोटा करना है । अब छात्र सोच में पड गए कि ये कैसे अद्भुत बात है । बिना मिटाए उसे कैसे छोटा किया जा सकता है । स्वामी जी बच्चों के चेहरे देख रहे थे । इतने में पीछे बैठे छात्र उधर बोर्ड की ओर बढा और चौक लेकर उस लकीर के ऊपर एक बडी लकीर खींच दी । स्वामी जी प्रफुल्लित हो उठे और कहा बिल्कुल भी । अब हमारी लकीर छोटी हो गई । अब उन दोनों की नीचे अब उन दोनों की नीचे बडी लकीर खींची । तब क्या देखा कि पहले वाली दोनों लकीरे छोटी हो गई । अब वह पहली वाली दोनों लकीरे मिटा दी तो तीसरी वो अंतिम लकीर का क्या बना? तब प्राध्यापक ने बताया अंतिम लकीर तब तक बडी थी जब तक दूसरी दोनों लकीरे थी । अच्छा हमारी पहचान भी दूसरों को साथ लेकर बनती है ना कि उन्हें मिटाकर शिक्षा किसी को मिटाकर महान बनने की कोशिश मत करूँ । महान कार्य करके महान बनो । जो सबको सुरक्षित रखकर तथा साथ लेकर महान बनता है । वही महान है । डिफाॅल्ट धरोहर एक बस परिवार में पति पत्नी को भगवान पर पूरा भरोसा था । उनका पुत्र कई दिन से बीमार चल रहा था । एक दिन पति किसी काम से बाहर गया हुआ था । उसी समय उनका एकलौता पुत्र चल बसा । पत्नी ने धैर्यपूर्वक पुत्र के शव को ढक दिया और पति के लिए भोजन बनाने लग गई । पति ने आते ही पूछा पुत्र की क्या दशा है? पत्नी आज वह पूरा विश्राम कर रहा है । अब भोजन करें । भोजन कराते हुए पति ने कहा पडोसन ने मुझे एक बर्तन मांगा था, जो मैंने उसे दे दिया । अब मैं अपना बरतन वापस मांग रही हूँ तो देना नहीं चाहती, उल्टे रोने चिल्लाने लगती है । पति ने कहा बडी मूर्ति है वो दूसरों की वस्तु लौटाने में रोने का क्या काम? तब तक पति भोजन कर चुका था । तभी पत्नी ने कहा अपना पुत्र भी प्रभु की धरोहर था । आज प्रभु ने अपनी वस्तु वापस ले ली है तो हम रोक अरमोर बने । पति ने गंभीरतापूर्वक अपनी पत्नी को देखा । सारा माजरा समझ में आने पर उसने कहा तुम ठीक कहती हूँ और दोनों ने अपने पुत्र का धैर्य के साथ दाह संस्कार किया । सारांश उस प्रभु की रचना में मैं और मेरा अर्थहीन है । गीता का ज्ञान भी तो यही संदेश देता है । तो महारा किया गया जो तुम रोते हो तो उन क्या लाए थे जो तुमने खो दिया । धरोहर ॅ आउट चैप्टर नाइंटी सिक्स महा चांडाल क्रोध एक समय की बात है । काशी में कोई सन्यासी रहते थे । रोज प्रातः जल्दी उठना, स्नानादि से निवृत होकर मंदिर जाना, पूजा पाठ करना, धर्मग्रंथों का पठन पाठन करना उनकी दिनचर्या में शामिल था । वे साफ सफाई और पवित्रता का भी बडा ध्यान रखते थे । गंगा स्नान से लौटते हुए को या पवित्रा व्यक्ति या वस्तु या प्राणियों ने छोले तो दोबारा स्नान करने के बाद ही मंदिर जाते थे । एक दिन सन्यासी गंगा स्नान कर घट से ऊपर जा रहे थे । भीड तो काशी में सादा ही रहती है । बचने का प्रयास करते हुए भी एक चांडाल का वस्त्र उनसे हो गया । संन्यासी का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा । उन्होंने तत्काल एक छोटा सा कंकड उठाकर चांडाल को मारा । डाटा अंधा हो गया है, देख कर नहीं चलता हूँ । अब मुझे स्नान करना पडेगा । चांडाल ने हाथ जोडकर कहा अपराध हो गया । शमा करें रही स्नान के बाद तो आप करेगा ना करें मुझे तो विश्व स्नान करना पडेगा । सन्यासी शरीर से पूछा तुझे स्नान करना पडेगा । चांडाल बोला सबसे अब पवित्रा महाजन डाल दूँ, क्रोध है तथा वास्के सर्चड बैठा है तथा मुझे छू लिया है । मुझे उसके मलिन स्पर्श से पवित्र होना है । चांडाल के बाद सुन सन्यासी का सिर लज्जा से झुक गया तथा शमा भी मांग ली । सारांश क्रोध क्या नेकोनाम है? हर धर्मशास्त्रों में इसको वर्ष में करने के उद्देश् दिए जाते हैं । इसका मूल है अहंकार । ऍम संकल्पशक्ति का कमाल एक लडका था, एकदम मूर्ख बेसमझ । उसे कोई भी बात समझ में नहीं आते । थे । साथ ही वह शिक्षा कहते हैं तेरे दिमाग में तो गोबर भरा है, पढना लिखना तेरे बस की बात नहीं तो मेरा मोर है तेरे दिमाग में विद्या नहीं आ सकती हूँ । कई बार समझाने पर भी जब उसे कुछ भी समझ में नहीं आया तो एक दिन शिक्षक महोदय ने छडी उठा ली और उससे हथेली खोलने को कहा । लडके ने तुरंत ही अपनी हथेली फैला दी । जैसे ही उसने हथेली फैलाई शिक्षक ने छडी किनारे रख दी तथा दुखी होकर बोले तुझे पीटने से भी कोई लाभ नहीं । तेरे हाथ में विद्या की रेखा ही नहीं फिर तुझे पढाई कैसे आ सकती है । लडके के हृदय की गहराइयों में शिक्षक के बाद उतर गई । छडी की पटाई से वो इतना दुखी न होता जितना उनके इस कथन से वो दुखी हुआ । वार शिष्य गुरु जी के पास आकर बोला गुरूजी विद्या की रेखा कौन सी होती है? शिक्षक ने अपनी हथेली खोल विद्या की रेखा दिखाई । सोच में डूबा लडका वहाँ से चला गया । जब लौटा तो उसकी दाहिनी हथेली लहुलुहान थी । हरेली गुरूजी को दिखाते हुए बोला गुरु जी, अब तो मुझे विद्या आयेगी ना । मैंने अपनी हथेली पर विद्या की रेखा बना ली है । समय के साथ घाव तो ठीक हो गया परंतु मन में ज्ञान के प्रति एक अमिट देखा खींच गई । विद्या की रेखा, लगन की रेखा दृढविश्वास की रेखा प्रकाश के देखा उसने दृढ निश्चय कर व्रत लिया । घोल परिश्रम कर दिन प्रतिदिन अपने संकल्प को पूरा करने में वो जुड गया और शीघ्र ही प्रवीणता के मार्ग पर बडने लगा । उसके माता पिता, सहपाठी मित्र तथा शिक्षक सभी आश्चर्यचकित थे । विद्या के प्रति अपनी निष्ठा के फलस्वरूप ही वह बडा होकर संसार के सर्वश्रेष्ठ व्याकरण पंडित पानी ने के नाम से विख्यात हुआ । सारांश गर्त करत अभ्यास के जडमति होत सुजान रसरी आवत जात तेज दिल पर पडत निशान टिट्यूट ऍम चाॅस मान जीते जीत इंग्लैंड के प्रधानमंत्री चर्चिल कार्य कर रहे थे कि अचानक पक्षाघात हो गया और उनका दाहिना हाथ निष्क्रिय हो गया । उनकी वृद्धावस्था के कारण किसी को भी आशा थी कि वे पूर्ववत स्वस्थ हो जाएंगे और अपना कार्यभार संभाल लेंगे । परंतु चर्चिल के मन में कुछ और ही विचार थे । मन के हारे हार मन के जीते जीत अच्छा दिन प्रतिदिन वो सारी शक्ति लगाकर पक्षाघात को ठीक करने में लगे रहे । धीरे धीरे उनके दाहिने हाथ में गति आने लगी । एक दिन ऐसा आया कि वे अपने दाहिने हाथ को मुंह तक ले जाने में समर्थ हुए और धीरे धीरे उनके मंत्रिमंडल के सदस्य पहले की तरह मिलने आने लगे तथा इस तरह से पहले की तरह स्वस्थ होकर अपने कार्यालय में जावे । राजे सारांश अपनी डायरी में उन्होंने लिखा मेरे पुणे स्वस्थ होने का कारण कोई नहीं । औषधि नहीं ये तो मेरे मन की जीत है । मैं हारा नहीं था । शक्ति के मूल में मेरा दृढ विश्वास रहा है । परमात्मा मुझ से कुछ काम और लेना चाहता है । काॅल गुड आॅड ऍम फूल लाॅगिन ड्यूटी फॅमिली ऍम जाॅन चैप्टर नाइंटी । नाइन अंदर की बात शाम का समय था । एक गांव के किनारे एक दूर जा रहा था । उसे ठोकर लगी और वो गिर गया । गिरते ही बेहोश हो गया । अंधेरा तो था ही । वहाँ से थोडी देर में झूमता हुआ शराबी निकला । उसे देखकर बोला अरे देखो इसमें अधिक पी ली है इसीलिए बेहोश हो गया है । मैं तभी होश में हूँ और आपकी बढ गया और समय गुजरा तथा अंधेरा बढ गया तो चोर उधर से निकला । वो चोरी करके आ रहा था । मनी मान कहने लगा कि देखो मेरे जैसा ही को जोर है परंतु ठोकर खाकर गिर गया । अब उसके पीछे पुलिस बाद में आते होंगे । मैं तो यहाँ से भर जब तीसरी बार एक भगवान का भक्त आया उसने देखा तो बोला के देखो यह भी कोई भक्त होगा । सर क्यों पर उसके हाथ जुडे हैं । यह भगवान के ख्याल में होगा और उसमें उस बुड्ढी को उठाया, उसकी सेवा की । उसको होश में लाया । सारा डिश उन तीनों ने वही देखा जो उन के अंदर था । मंदिर एक टिकट चेकर ट्रेन में चढा और चलते ही टिकट चेक करने लगा । चेक करते करते एक महोदय के पास पहुंचा । वो बडी घबराहट में अपनी जेब टटोल रहा था । ऊपर की जेब देखी । फिर पैंट की जेब में भी कटोली घबराहट में बैठ । किताब के बाद ऊपर की जेट की बारी फिर आ गई । इस तरह वो टिकट ढूंढते ढूंढते पांच मिनट बीत गए । लेकिन चक्कर कहने लगा भाई साहब रहने दीजिए । मैं मानता हूँ कि आपके पास टिकट है, आप व्यर्थ में परेशान ना हो । महोदय बोला धन्यवाद करण तो टिकट तो मुझे फिर भी ढूढना ही है । टिकट चेकर ने हैरान होकर पूछा लेकिन ऐसा क्या है टिकिट में महोदय उसी में तो लिखा है मैंने कौनसी स्टेशन पर उतरना है । सारांश बार ट्रेन व महोदय की मंजिल की ही नहीं यहाँ सभी का यही हाल है । कहाँ जाना है मालूम नहीं उद्देश्यहीन मंजिल, हिंदू उद्देश्यहीन मंजिल हीन जीवन व्यतीत कर रहे हैं वो चैप्टर हंड्रेड मैं तो कुछ भी नहीं देखा जब छह चाहते परिंदों को गर्म लू में भी सर्द हवा में भी तेज बारिश के थपेडों में भी धूल भरी आंधियों में भी तो लगा कितनी सहनशील है ये मैं तो कुछ भी नहीं देखा जब लहलहाती टहनियों को पत्तों के गिरने पर भी फूलों के टूटने पर भी फलों के छूटने पर भी कुल्हाडी से छिलने पर भी तो लगा कितने क्षमाशील ही मैं तो कुछ भी नहीं देखा । जवान चल फैलाती भूमि को इमारतों का बोझ उठाते जीवों के कदमों की रगड खाते वाहनों के क्रूर दौर सहते को डालों और हनों की मार सहते तो लगा कितना स्थिर अविचल है ये मैं तो कुछ भी नहीं सुना जब बच्चों की किलकारियों को बस एक ही वक्त खाते हुए भी अर्धनग्न बदन लिए फिरते हुए भी नंगे पांव चलते हुए भी कठोर सडकों पर सोते हुए भी तो लगा कितना जिंदादिल रहेंगे मैं तो कुछ भी नहीं देखा जब गरीबों को मुस्कुराते हुए मुठे वार चावल की पगार पानी पर अगले दिन काम मिल जाने पर किसी रोज काम शीघ्र निपटाने पर, फिर भी मालिक की डांट खाने पर तो लगा कितने दृण परिश्रमी हैं मैं तो कुछ भी नहीं अगर में खुश नहीं हूँ तीनों वक्त का खाना खाकर मनचाहे कपडों में खुद को सजाकर आराम के लिए नर्म गद्दी पाकर सुंदर घर में अपना सिर छिपाकर तो तो अच्छे हो मैं इन सब के आगे मैं तो कुछ भी नहीं लेकिन यू ऍम हूँ ।

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Sound Engineer

This book is a compilation of short stories studded with several morals, thoughts filled with immortality and experience that should be passed on to every generation. The book will be eagerly sought after for its literary value as this is really a paragon of virtue. The compilation of many ingredients makes the book worthful so let’s taste with great relish. The title implies a strong connection between the permanent knowledge and reader’s mind. Based on reason , fact and logic, a great synchronization of radiance of different gems will make one’s life valuable. Voiceover Artist : RJ Bhagyashree Author : RK Dogra
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