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Ep 2: ग्रामोफोन पिन का रहस्य - Part 4 in Hindi

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22 K Listens
AuthorHarish Darshan Sharma
ब्योमकेश बक्शी की रहस्यमयी कहानियाँ writer: सारदेंदु बंद्योपाध्याय Voiceover Artist : Harish Darshan Sharma Script Writer : Sardendu Bandopadhyay
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साइकिल सवार इस बात के लिए कतई तैयार नहीं था कि मेरे पीछे भी कोई होगा । फिर भी उसने ब्योमकेश को चकमा देने की कोशिश की लेकिन बच नहीं पाया । ब्योमकेश ने उसे झगडकर साइकिल से खींचा और एक खूंखार बात की तरह उस पर टूट पडा । जब मैं उठकर मदद के लिए आया तो देखा कि ब्योमकेश उसके हाथों को पकडे उस से जूझ रहा है । जब उसने मुझे देखा तो बोला अजीत मेरी पॉकेट से रेशम की रस्ते निकालकर इसके दोनों हाथों को बांधों कस करवा दो । मैंने उसकी पॉकेट से रेशम की रस्ते निकली और जमीन पर लेटे आदमी के दोनों हाथों को कसकर बांदिया । ब्योमकेश बोला ठीक है अजीत! तो तुम ने इन महानुभाव को नहीं बजा रहा । यहाँ है हमारे मित्र प्रफुल राय जो सुबह सुबह हमारे यहाँ आए थे और यदि पूरा ही जानना चाहते हो तो सुनो ग्रामोफोन पिन रहस्य के प्रणेता भी यही है । उसने उस व्यक्ति की आंखों से काला चश्मा हटा दिया । इन शब्दों को सुनकर मेरा क्या हाल हुआ? मैं वर्णन नहीं कर सकता । लेकिन प्रफुल राय एक विषैली हसी के बाद बोला, ब्योमकेश बाबू! आप मेरी छाती पर से अब तो हर सकते हैं । नया भार नहीं सकूंगा । ब्योमकेश ने कहा, अजीत, इसकी दोनों पॉकेट की ठीक से तलाशी । लोग उनमें कहीं कोई हथियार न हो । उसकी एक पॉकेट में आपेरा की मेहनत थी और दूसरी में पान की डिबिया थी । मैंने डिबिया को खोलकर देखा, उसमें चार पांच रखे हुए थे । ब्योमकेश ने जैसे ही उस पर अपनी पकडा छोडी, वहाँ उठा और बैठे बैठे ब्योमकेश को एक तक देखता रहा । फिर धीमी आवाज में बोला, ब्योमकेश बाबो! तुमने बाजी मार ली क्योंकि मैं तुम्हारी तीव्र बुद्धि का सही अनुमान नहीं लगा पाया और यहाँ तुम भी भाग गए । दुश्मन की शक्ति को कभी काम नहीं आना चाहिए । यहाँ सबका सीखने में मुझे कुछ विलम्ब हो गया । इसका लाभ उठाने का अब समय नहीं रहा । उसके चेहरे पर एक हारी हुई मुस्कान तैर गई । ब्योमकेश ने अपनी जेब से पुलिस की सीटी निकली और जोर जोर से बजाई । फिर बोला, अजीत साइकल को उठाकर एक और कर दो और ज्यादा सावधानी से साइकल की घंटे को हाथ नहीं लगाना वहाँ खतरनाक है । प्रफ्फुल राय हंसा देख रहा हूँ कि तुम सभी को जानते हो गए, जबकि बुड्ढी है । मुझे तुम्हारी बुद्धि से ही डर था और इसलिए मैंने आज का यह जाल बिछाया था । मैंने सोचा था कि तुम अकेले आओगे और हमारा मिलन निधि होगा, लेकिन तुमने सभी जगह मुझे मार दे दी । मैं अब तक अपने आप को अभिनय का सरताज समझता था, लेकिन तुम तो बहुत ऊंचे कलाकार निकले । आज सुबह ही तुमने मुझे बेनकाब करके मेरा दिमाग खाली कर दिया और मैं उल्टे तुम्हारे जाल में फंस गया । मेरा गला सूख रहा है । क्या मुझे पानी मिलेगा? बी उनके । इसने कहा, पानी यहाँ कहीं नहीं मिलेगा । पुलिस स्टेशन में ही पीस हो गए । प्रफुल रायने थकी हुई मुस्कान के साथ कहा, सच में कितना बेवकूफ वो मैं यहाँ पानी कहाँ मिलेगा? वहाँ कुछ देर रुका और पान की डिबिया को लालच भरी निगाहों से देख कर बोला, क्या मैं पान खा सकता हूँ? मैं जानता हूँ कि पकडे गए अपराधी को कौन होगा जो पानी खिलाएगा, लेकिन इससे कम से कम मेरे प्यास बुझ जाएगी । ब्योमकेश ने एक बार मुझे देखा, फिर डिबिया से दो पांच निकालकर उसके मूह में रख दी है । पान चबाते हुए प्रफुल राय बोला, धन्यवाद तो तुम चाहो तो शेष दो पान खा सकते हो । ब्योमकेश ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि वहाँ व्यग्रता से चारों ओर देख कर पुलिस का इंतजार कर रहा था । तो थोडी दूर से मोटरसाइकल की आवाज सुनाई दी । प्रफुल राय बोला पुलिस भी अब आने को है इसलिए अब तो तुम मुझे जाने ही न दोगे । ब्योमकेश ने कहा मैं तो मैं कैसे जाने दे सकता हूँ । प्रफुल राय एक बार पागलों की तरह हंस कर फिर बोला तो तुमने मुझे पुलिस को सौंपने का निर्णय कर ही लिया है और नहीं तो क्या? ब्योमकेश बाबू, तुम शायद भूल गए कि एक तीव्र बुद्धि का व्यक्ति भी भूल कर सकता है तो मुझे पुलिस को सौंप नहीं पाओगे और लडखडाकर वहाँ जमीन पर गिर पडा । इतने में एक मोटरसाइकल बढ बढाते हुए आकर रुक गई । पुलिस की वर्दी में एक अफसर कूद कर आ गया । उसने पूछा क्या हुआ मर गया? प्रफ्फुल राय ने बडी मुश्किल से आंखें खोली और बोला वाह क्या बात है आप शायद पुलिस चीज हैं लेकिन सर आने में देर कर दी । मुझे पकडा नहीं पाएंगे । ब्योमकेश बाबू अच्छा होता कि आप भी पान खा लेते हैं । हमारी यात्रा साथ साथ ही होती है । अपने पीछे आप जैसा बुद्धिमान व्यक्ति को छोड जाऊँ । यहाँ मेरे बर्दाश्त के बाहर है । हंसने की नाकाम कोशिश करने के बाद प्रफुल रायने आंखे बंद कर ली और चेहरा निष्प्राण हो गया । इसी बीच एक ट्रक लोड पुलिसदल आ पहुंचा और स्वयं कमिश्नर हथकडी लेकर आगे बढा । दब तक ब्योमकेश मृत व्यक्ति की जांच करके उठ खडा हुआ और बोला हथकडी की जरूरत नहीं । अपराधी फरार हो गया है । दूसरे दिन ब्योमकेश और मैं अपने ड्राइंग रूम में बैठे थे । खिडकी से आती ताजा हवा और प्रकाश से कमरे के वातावरण में एक ताजगी थी । ब्योमकेश के हाथों में साइकल की घंटी थी जिसे वहाँ मनोयोग से देख रहा था । मेज पर एक खुला लिफाफा पडा हुआ था । ब्योमकेश घंटे के कवर को खोलकर उसके यंत्रों का मुआयना कर रहा था । कुछ देर बाद वहाँ बोला कमाल का दिमाग था । कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है कि इतना लाजवाब यंत्र कोई आविष्कार कर पाएगा । यहाँ स्प्रिंग इसे देख रहे हो । कितना शक्तिशाली पावर! यही असली यंत्र है । कितना छोडा किंतु कितना खतरनाक और जानलेवा और यहाँ देख रहे हो यहाँ छोटा सा छेद । यही बंदूक का काम करता था और यहाँ है घंटी बजाने का ट्रिगर यहाँ दो काम करता था शूट करना और घंटे बजाना । अर्थात उसको घुमाने पर वहाँ छोटा दिन निकल कर अपने निशाने पर लगेगा और साथ साथ घंटी बजेगी । लोग समझेंगे घंटे बजे पर उधर गोली चली । घंटी की आवाज स्प्रिंग के आवाज को छुपा लेती थी । याद है हमने चर्चा भी की थी । एक आवाज दूसरी आवाज को छुपा सकती है । लेकिन जो दुर्घंध फैलती है, वहाँ कैसे छिपेगी? उसी दिन मुझे उस व्यक्ति के प्रखर मस्तिष्क का आभास हो गया था । मैंने पूछा एक बात बताओ, तुमने यह कैसे अनुमान लगाया कि शरीर में काटे का सरगना और ग्रामोफोन पिन का हत्यारा एक ही व्यक्ति है? ब्योमकेश ने कहा, पहले मैं यह जान नहीं पाया, लेकिन धीरे धीरे मेरे मस्तिष्क में ये दोनों एक होते गए । देखो शरीर में कांटे वाला क्या कह रहा है? वह स्पष्ट रूप से कहता है कि यदि आपके सूख और शांति में कोई व्यवधान है तो वहाँ उस से छुटकारा दिला देगा । जाहिर है इसके बदले में उसे मोटी रकम नहीं होगी । यद्यपि ज्यादा काम का कहीं जिक्र नहीं किया जाता है, किंतु यहाँ भी तय है कि वहाँ यहाँ काम कोई दयापूर्ण में या परोपकार वर्ष के खाते में नहीं करता । और अब दूसरी और देखो, जितने भी लोग मारे गए, वे सभी किसी के सुख में काटे बने हुए थे । मैं मरने वालों के रिश्तेदारों पर उंगली उठाना नहीं चाहता, क्योंकि जिस तथ्य को साबित नहीं किया जा सकता । उसका जिक्र भी फिजूल होता है । लेकिन कोई इस बात को नोट किए बिना नहीं रह सकता है कि जितने लोगों की हत्या हुई, वे निःसंतान थे और उनके धन संपत्ति को पाने वाला कुछ केसों में उनका भतीजा या दामाद था । क्या आशु बाबू और उनकी रखैल इस तरीका किस्सा हमें संकेत नहीं देता कि उन दोनों का दिमाग किस दिशा में काम कर रहा था । तो यहाँ स्पष्ट हो जाता है कि यद्यपि ये दोनों के शरीर में काटा और ग्रामोफोन बिन देखने में तो अलग अलग दिखाई देते हैं, पर दोनों एक साथ फिट भी हो जाते हैं । जैसे गुलदस्ते के दो टुकडे उसके गोल छेद में थोडे प्रयास के बाद आसानी से फिट बैठ जाते हैं । एक दूसरी बात जो शुरू में ही मेरे मस्तिष्क में घट की थी, वह थी पहले के नाम और दूसरे के काम में समानता । एक और शरीर में काटे का वर्गीकृत विज्ञापन और दूसरी और काटे जैसी वस्तु के रह है में घुसने से मारते लोग । क्या तो मैं एहसास नहीं होता की दोनों में कहीं समानता है । मैंने उत्तर दिया, शायद लगाओ, पर मुझे उस समय कुछ सुनाई नहीं दिया । ब्योमकेश ने व्यग्रता से सिर हिलाते हुए कहा, यहाँ सब कुछ जमा करके एक एक घटते जाने की प्रक्रिया से बिलकुल स्पष्ट हो जाता है । इसका एहसास मुझे आशु बाबू का केस लेने के बाद ही हो गया था । समस्या केवल अपराधी की पहचान की थी और यहीं आकर प्रफुल राय का प्रखर मस्तिष्क सामने आ गया । उसकी चालाकी बेमिसाल थी । जिन लोगों ने हत्या के लिए पैसे दिए, वे तक नहीं जान पाए कि वहाँ कौन है और यहाँ काम वो कैसे करता है । उसकी तुरुप चाल यही थी कि वह कैसे अपने को पर्दे में छुपा रखें । मैं नहीं जानता है कि मैं कभी उसका पता लगा भी सकता था, जब तक कि वह खुद चलकर मेरे घर में नहीं आया । देखो, इसको इस प्रकार समझो । जब तुम उसके आमंत्रण पर लैंप पोस्ट पर खडे थे तो तुम्हारे आचरण से उस को कुछ संदेह जरूर हुआ था । फिर भी उसने जुआ खेला और वहाँ पत्र तुम्हारे पॉकेट में पहुंचाया और अपना संदेह मिटाने के उद्देश्य से तुम्हारा पीछा भी किया । लेकिन जब तुम आधे कल करते का चक्कर लगाकर घर में उसे तो वह जान गया कि तुम मेरे ही दूध हो । वहाँ पहले ही जानना आया था की आशु बाबू का केस मेरे हाथ में आ गया है । इसलिए उसे पूरा विश्वास हो गया कि मुझे सब कुछ पता चल गया है । उसकी जगह कोई और होता तो वहाँ अपनी योजना छोडकर भाग खडा होता है । हिन्दू विपुल राय अपनी अतिशय जिद के कारण मेरे पास आया ताकि वहाँ पता कर सके कि मैं कितना कुछ जानता हूँ और शरीर में काटे के केस में क्या करना चाहता हूँ । यहाँ करके वहाँ कोई जोखिम नहीं उठा रहा था, क्योंकि मेरे लिए यह पता करना असंभव था कि शरीर में कांटे के और ग्रामोफोन पिन दोनों रहस्यों का प्रणेता वही है । और यदि मैं जान भी लेता तो भी मैं किसी भी सूरत में उसको अपराधी नहीं ठहरा सकता । लेकिन उसने यहाँ आकर एक भूल कर दी । वो क्या है? वहाँ यहाँ कल्पना नहीं कर पाया कि उस सुबह मैं उसका ही इंतजार कर रहा था क्योंकि मैं यह जान गया था कि इन सबकी जानकारी लेने के लिए वहाँ मेरे पास जरूर आएगा । तो तुम जान गए थे तो तुमने पकडवाया क्यों नहीं? अब देखो कर रहे हो ना? बोरडम जैसी बात जीत यदि उस समय मैं उसे पकडवा देता तो मेरी सारी मेहनत बेकार जाति क्योंकि मेरे पास ऐसा क्या कोई सबूत था जिसके बल पर मैं उसे हत्या का अपराधी ठहरा सकता था । मेरे पास उसे पकडने का एक ही रास्ता था वहाँ था की मैं उसे रंगे हाथ पकडूं और यही मैंने किया । जरा सोचो हम लोग सीने पर प्लेट बांधकर रात में क्या करने गए थे । जो भी हो मेरे से बात करके प्रफुल राय जान नया की । मुझे अब सब कुछ पता लग चुका है । केवल यह नहीं जान पाया कि मैंने उसके मस्तिष्क को पढ लिया है । उसने फैसला कर लिया कि मुझे अब जिंदा छोड देना उसके लिए खतरनाक है और इसलिए उसने मुझे उस रात रेसकोर्स की सडक पर चलने के लिए आमंत्रित किया । वहाँ जान गया था मैंने उस दिन तुम्हें भेजकर उसे जो बच्चा दिया था इसलिए इस बार मैं स्वयं ही जाऊंगा तो भी एक बात को लेकर उसके मन में अब भी संजय था कि मैं अपने सात यदि पुलिस लिया हूँ तो इसलिए जाते समय उसने पुलिस का जिक्र किया था और जब उसने देखा की पुलिस की बात को लेकर मैं क्रोधित हो गया तब उसे इतना हो गया कि पुलिस नहीं आएगी और मान ही मान उसने मुझे मत मान लिया । बेचारा नटवर लाल एक छोटी सी चूक में फंस गया । इसका सोंग उसने मरते समय प्रकट भी किया और माना कि उसे मेरे प्रखरता को कम नहीं आंकना चाहिए था । एक अंतराल के बाद ब्योमकेश बोला क्या तो मैं याद है । जब आशु बाबू पहली बार यहाँ आए थे तो मैंने उनसे पूछा था की उन्होंने अपने सीने में झटका लगने के समय क्या कोई धनिया आवाज सुनी थी? उन्होंने कहा था कि साइकल की घंटे उस समय मैंने उस बात पर अधिक गौर नहीं किया । यही एक बडी पहली थी जो सोचने का नाम नहीं ले रही थी । लेकिन जब मैंने शरीर में कांटे का पत्र पढा तो तुरंत उसका हल मिल गया । तुम्हारे प्रश्न के उत्तर में मैंने कहा था कि मुझे पत्र में केवल एक ही शब्द मिला है, वहाँ है बाइसिकल । आश्चर्य होता है कि मैंने साइकल पर पहले क्यों नहीं ध्यान दिया । दरअसल आज जब मैं सोचता हूँ तो मुझे साइकल के अतिरिक्त कुछ दिखाई नहीं देता हूँ क्योंकि इतनी आसानी से निशंक हत्या का अन्य कोई उपाय संभव ही नहीं है । आप सडक पर चल रहे हैं । एक साइकल सवार सामने से आता है । वहाँ आपको एक और हो जाने के लिए घंटे बजाता है और चला जाता है । आप सडक पर गिर जाते हैं या कहो मर जाते हैं । कोई भी व्यक्ति साइकल सवार पर संदेह नहीं करता क्योंकि उसके दोनों हाथ हैंडल को पकडे थे, वहाँ हत्या कैसे कर सकता है । इसलिए दूसरी बार कोई उसे देखता भी नहीं कि वहाँ कहाँ गया । केवल एक बार तो मैं याद हो । पुलिस ने अपनी चौकसी दिखाई थी । पिछले शिकार केदार नंदी की मृत्यु पुलिस मुख्यालय के सामने लालबाजार क्रॉसिंग पर हुई थी । जैसे ही हुए सडक पर गिरकर मारे पुलिस ने सभी ट्रैफिक जाम कर दिया और घटनास्थल पर उपस् थित प्रत्येक व्यक्ति की जांच और तलाशी ली गई । लेकिन पुलिस को कुछ नहीं मिला । मैं समझता हूँ प्रफुल राय भी वहाँ भीड में मौजूद था और उसकी भी तलाशी ली गई । उसने मान ही मंड यहाँ का भी लगाया होगा क्योंकि किसी पुलिस सिपाही के दिमाग में साइकल की घंटी को जांच नहीं का प्रश्न ही नहीं होता । इतना कहकर ब्योमकेश घंटे को हाथ में लेकर बडे चाव से निहारने लगा । इतने में हवा का एक झोंका आया और मेज पर रखा लिखा था उडकर मेरे पापा के पास गिर गया । मैंने उसे उठाकर मेज पर रखते हुए कहा तो पुलिस कमिश्नर महोदय का क्या कहना है और बहुत कुछ क्यूंकि बोला । पहले तो उन्होंने पुलिस और सरकार की ओर से धन्यवाद दिया है और बाद में प्रफुल राय की आत्महत्या पर शोक प्रकट किया है । यद्यपि उससे उन्हें तो खुशी ही होनी चाहिए थी क्योंकि इससे सरकार का सारा श्रम व खर्च बच गया । जरा सोचो उस पर मुकदमा चलाने और फांसी चढाने में कितना श्रमशक्ति और खर्चा हो जाता है । जो भी हो एक बात पक्की हो गई है कि जल्दी ही सरकार की ओर से मुझे पुरस्कार मिल जाएगा । कमिश्नर साहब ने कहा है कि उन्होंने मेरे पेटिशन को तुरंत कार्रवाई करके अनुमोदन करने की सारी व्यवस्था कर ली है । प्रोफोइल राय की लाश की पहचान अभी नहीं हो पाई है । जो ऍप्स के कर्मचारियों ने लाश देखकर इंकार कर दिया कि यहाँ व्यक्ति प्रफुल राय है । उनका प्रफुल राय इस समय काम के सिलसिले में जैसोर गया हुआ है तो यह स्पष्ट है कि हत्यारा प्रफुल राय का नाम प्रयोग मिलाता था । उसका वास्तविक नाम क्या है, यहाँ भी पता नहीं चला है । खैर मेरे लिए तो वही प्रफुल राय है और अंत में कमिश्नर में एक दुख का समाचार दिया है । यहाँ घंटी मुझे पुलिस को दे देनी होगी क्योंकि अब यहाँ सरकार की संपत्ति हो गई है । मैंने हस्कर कहा तुम तो मुझे लगता है, इस घंटे के दीवाने हो गए हो । तुम देना नहीं चाहते हैं । क्यों है ना? यही बात ब्योमकेश ने भी हसते हुए कहा, यह सही है । यदि सरकार मुझे दो हजार के पुरस्कार के बदले में यहाँ घंटी देते तो मुझे खुशी होगी । लेकिन फिर भी मेरे पास प्रफुल राय की एक यादगार है । वो क्या है? क्या तो भूल गए वहाँ दस रुपये का नोट मैं उसे जड जाऊंगा । वो रुपये मेरे लिए अब हजार रुपये से भी ज्यादा का है । ब्योमकेश ने जाकर घंटे को अपनी अलमारी में रखा और ताला लगा दिया । वहाँ जब वापस आया तो मैंने पूछा ब्योमकेश अब तो बताओ बिल्कुल सच सच बताना । क्या तुम जानते थे कि पान में जहर था? ब्योमकेश कुछ क्षणों तक चुप रहा । फिर बोला देखो जानकारी में और अज्ञान के बीच का कुछ भाग अनिश्चयता होता है, जिससे हम संभावना का क्षेत्र कह सकते हैं । फिर कुछ देर बाद बोला क्या समझते हो? क्या यह उचित होता? यदि प्रफुल राय की मृत्यु एक साधारण अपराधी की तरह होती है? मैं नहीं समझता । इसके विपरीत उसका अंत बहुत मौजूद था । उसने यह दिखा दिया कि हाथ पैर बांधे एक अपराधी के रूप में भी उसने कितने सहज रूप से मृत्यु का वरण किया । क्या वहाँ काम कलाकार था? मेरे पास इसका कोई उत्तर नहीं था क्योंकि एक सत्यान्वेषी के मन में आपने अपराधी के लिए कब और कहां प्रशंसा और सहानुभूति पैदा होती है? इस दुर्गम मार्ग की कल्पना करना मेरे लिए आसान नहीं था । ऍम आवाज सुनते ही हम दोनों ने उत्सुकता से आगंतुको देखा । ब्योमकेश के नाम रजिस्टर्ड पत्र था । उसने पत्र लेकर खोला । उसके हाथ में एक रंगीन शीट दिखाई थी जिसे उसने मुस्कुराते हुए मेरी और बढा दिया । मैंने देखा आशु बाबू की ओर से भेजा गया एक हजार रुपये का चेक था ।

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ब्योमकेश बक्शी की रहस्यमयी कहानियाँ writer: सारदेंदु बंद्योपाध्याय Voiceover Artist : Harish Darshan Sharma Script Writer : Sardendu Bandopadhyay
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