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आप सुन नहीं ही कुकर फिल्म आरजेएम आया के साथ से नहीं जो मेन चाहे जिम्मेदारी किसकी लेखक बालिस्टर सी गुज्जर गिरते नैतिक मूल्य जब मानव के हिरदे में किसी मोह के कारण लालच का भाव जगह बना लेता है, वहाँ उसके नैतिक मूल्य गिरने लगते हैं । आज हमारे आस पास कई समस्याएं ऐसी मौजूद है जिनका कार्य सिर्फ मानव के गिरते नैतिक मूल्य अथवा गिरती हुई नहीं देखता है । जैसे अगर कोई भ्रष्टाचारी है तो भ्रष्टाचार एक बुराई है । जब कि जिन कारणों से भ्रष्टाचार एक रिश्वत लेना होता है, वहाँ वो अपनी नैतिकता को जरूरी खो बैठता है । नैतिकता के कारण उपजी हुई कई बुराइयां आज सभी जगह हमें दिखाई देती हैं । चाहे गांव का इंसान हो या फिर शहरी मानव हो । आज जिस कदर हर इंसान ने अपने नैतिकता को गंवाया है, उसका साक्षात परिणाम हमारे सामने उपस् थित हैं । रिश्वत खोरी, मिलावट, धोखाधडी, आरी सभी वह कुरुनियान है जमानों में नैतिकता की कमी के कारण उत्पन्न हुई हैं । शायद यही वजह रही होगी कि भ्रष्टाचार ने अपने पैर सब एक जगह प्रसार रखे हैं । इससे अब कोई भी अछूता नहीं रहा । पहले ग्रामीण समाज के लोगों को सभी नागरिक होने का परिचय दिया जाता था, क्योंकि उनके आदर्श ही कुछ ऐसे हुआ करते थे जिनसे मानव समाज का कल्याण ही होता हूँ । किन तो आज की ग्रामीण स्थिति को अगर हम गौर से देखें तो हमें उसके हमें उसमें भी कुछ न कुछ पूरी दिया नजर आने लगेगी । अब तो यही कहना उचित होगा की बदलती हुई दुनिया का असर इतना व्यापक है कि अब इस से कोई भी अछूता नहीं है । चाहे शहरी नागरिक हो, याद है ग्रामीण व्यक्ति सभी पर कलयुग कर सामान नेतृत्व आसानी से देखा जा सकता है । लालच का जो जादू आज ज्यादातर परिस्थितियों में हर किसी के सर चढकर बोल रहा है उसका घातक परिणाम यही हो सकता है कि हमारी सभ्यता का हम लगातार राज करते जा रहे हैं । यू तो कहने को कई बातें ऐसी हो सकती है जहाँ में एक सभ्य नागरिक बनाती हो । हिंदू जो आदर्श बातें हैं वो यही हैं कि जब हमारे हिंदी में मोहग्रस्त विचार प्रवेश कर जाते हैं तब हमारे हिरदे की सारी अच्छाइयाँ स्वतः ही नष्ट हो जाती हैं । ये इसी का परिणाम है कि लालच के भाव ने व्यापारी वर्ग को भी लालची बना दिया है और मिलावट जैसी कई घटनाएं हमें दिखाई देने लगी है । हमें दिखाई देने लगती है । इसका अंजाम फिर यही होता है कि जो लालच का भाव रखता है वह तो भ्रष्ट है ही साथ ही साथ वह अन्य लोगों के जीवन पर भी अपना प्रभाव डालता रहता है । ये हम सब अच्छी तरह से जानते हैं कि आजकल जितना महत्व धन दौलत को दिया जाता है उतना महत्व किसी भी चीज को नहीं दिया जाता । क्योंकि इस समय हमने अपनी मानसिकता को बुरी तरह से प्रभावित कर रखा है और हम लगातार ज्यादा से ज्यादा संपत्ति के चाह में अपने आदर्श मूल्यों को भूलते जा रहे हैं । यदि कोई दूध वाला दो दो पानी की मिलावट करता है तो हम यही कहते हैं कि जरूर ही दूध वाले की मानसिकता ज्यादा धन कमाने की हो गई है । तभी तो वो हमें मिलावटी दूध दे रहा है तभी तो हमें भी तभी तो वहाँ मैंने तभी तो वहाँ में मिलावटी दूध दे रहा है लेकिन बाद यही तक सीमित नहीं है । एक तरफ जहां मिलावट करना नैतिकता के राज के अंतर्गत आता है, वहीं दूसरी ओर अवैध रूप से अर्जित किया हुआ धन भी नैतिकता के रांस के अंतर्गत ही आता है । अगर हम किसी को अपना काम निकलवाने की खातिर रिश्वत देते हैं तो वहाँ रिश्वत लेने वाले की और रिश्वत देने वाले की दोनों की ही नैतिकता का मूल्य गिराया लोली गिर जाता है । दोनों की ही नैतिकता का मूल्य गिर जाता है । गिरते नैतिक मूल्य आज हमें यही शिक्षा लगातार देते रहते हैं कि अगर इसी तरह से हम अपने कर्तव्यों के प्रति लाभ परवाह होते जाएंगे तो आने वाले समय में हम मानव कहलाने के लायक भी नहीं बचेंगे । जब हम कोई गलत रास्ता, अपने स्वार्थ हितों के कार्य अपनाने लगते हैं तो वहाँ हमारा मानव धर्म स्वता ही नष्ट हो जाता है और हम उस श्रेणी में आ जाते हैं, जहाँ धोखाधडी का खेल जाता हूँ । धोखाधडी का खेल चलता हूँ । वजह सबसे बडी यही है कि यदि हम अपने मानवीय कर्तव्यों का पालन न करके अपने स्वास्थ्य की खाते अपना जीवन बिताते हैं तो उसका असर अन्य लोगों पर भी होने लगता है तथा फिर मैं बुराई हर तरफ तथा फिर में बुराई हर तरफ धीरे धीरे फैलने लगती है । ये इसी का परिणाम है कि धान ली आज हर तरफ की जा रही हैं, क्योंकि इससे पहले कभी भी मौजूद नहीं थी । आज हमें पद पर पर ऐसे लोग मिलते जाएंगे जो सिर्फ पैसों की खाते जो सिर्फ पैसों को ही ज्यादा महत्व देते हूँ और आवश्यकता से ज्यादा धन अर्जित करने की खाते रे झूठ और फरेब तक का खेल खेलते नजर आने लगती हूँ । वास्तव में ये ऐसे लोगों की मानसिक बुद्धि का ही कारण है कि ज्यादातर लोगों में यह भावना व्याप्त हो जाती है कि जब तक हमारे पास पर्याप्त मात्रा में संपत्ति मौजूद नहीं होगी तबतक हमें कोई सम्मान भी नहीं देगा । ये इसी का परिणाम है कि आम जनता के साथ धोखाधडी न सिर्फ आम आदमी कर रहा है बल्कि बडे से बडे राजनेता और प्रशासनिक अधिकारी वर्ग भी इससे अछूते नहीं है । अब बार यही आप की नहीं । अब बात ये आती है कि जब सभी आवश्यकताएं ज्यादा से ज्यादा धन अर्जित करने पर निर्भर है तो फिर ज्यादा से ज्यादा धन हम सभी के सामने क्यों नहीं अर्जित करते हैं । इसलिए हम झूठा दिखावा दिखाकर मानवता को बदनाम करते हुए नजर आते हैं । मान लो यदि हम भ्रष्टाचारी है तो हमें सभी के सामने रिश्वत लेनी चाहिए । फिर किस लिए हम चोरी छुपे रिश्वत लेकर स्वयं अपने आप को लज्जित करते हैं । यदि हम किसी चीज में मिलावट करते हैं तो हमें सभी के सामने मिलावट करनी चाहिए ना ताकि लोगों को पता तो चल सके कि हमने अपने नैतिक मूल्यों को इस तरह से गिरा दिया है कि मानव अब धन के आदि हो गए हो । ये हकीकत है कि यदि हम कोई भी काम सभी के सामने करते हैं तो उसमें हमारी कोई बेईज्जती नहीं होती हैं । किन के फिर सभी को हमारी आदत कर पता चल जाता है । फिर हम में से कोई कुछ कहता भी नहीं है । अगर हम अपने मन में बेईमानी का भाव रखते हैं तो हमें इसका प्रदर्शन सरेआम करना चाहिए । तभी अन्य लोगों को पता तो चले कि बेईमानी का परिणाम क्या होता है । इसमें हमें सबसे बडा फायदा यही होगा कि हमारी बेईमानी को देखकर हमारे मनुष्य वर्ग में छुपे हुए कई बेईमान व्यक्ति समझ सकते हैं । कहने का सीधा साहब यही है कि यदि हम अपने समाज को एक आदर्श समाज यदि फिर से बना सकते हैं तो सबसे पहले हमें अपनी खोई हुई नैतिकता को वापस लाना होगा तथा अपने कर्तव्यों का पालन ठीक ढंग से करना होगा, तभी ये संभव हो पाएगा । अन्यथा कोई भी पूरी थी ऐसी नहीं है जो घटती हो । अगर हम किसी भी बुराई को मिटाना चाहते हैं तो हमें उसको रोकना होगा । तभी वह रुक सकती है । अन्यथा फिर बुराई तो एक प्रकार से मानव के विनाश का कारण तो होती ही है । नैतिक मूल्य राजनीति एक इंसान के लिए जो चीज उसके ऊचित चरित्र के लिए जरूरी है वह है उसके नैतिक मूल्य । यदि किसी व्यक्ति विशेष में ऊचित संस्कार नहीं हो तो व्यक्ति अक्सर ही गुरु तीपूर्ण होगा । मानव की नैतिकता एक और जहां उसके अंदर मानवता का निर्माण करती है वहीं दूसरी ओर उसे दयावान भी बनाती है । यह निश्चित है कि नैतिकता से परिपूर्ण हर व्यक्ति इस संसार के हर प्राणी को सम्मान दया भाव से देखता है । आज हम देखते हैं कि कई लोग इतनी बेईमानी पर उतारू हो जाते हैं कि जरा से लालच के चक्कर में अपना ईमान तक बेच डालते हैं । ये कोई नई बात नहीं है कि कई बडे से बडे सरकारी कर्मचारी भी अपना ईमान चंद रुपयों की लालच में बेच देते हूँ । लालच के भाव के कारण अपना ईमान दांव पर लगाने वाले वास्तव में वो लोग होते हैं जिनमें नैतिकता की कमी पाई जाती हो । जब की नैतिकता से परिपूर्ण व्यक्ति तो अपनी जिम्मेदारियों को उच्च प्रकार से निभाता हुआ आया है । वर्तमान में राजनीति में भी हमें कहीं कहीं नैतिकता की कमी दिखाई देने लग जाती हैं । जब की राजनीति जैसी चीज तो हमेशा ही नैतिकता युक्त होनी चाहिए । आज हम देखते हैं कि कई राजनेताओं पर भ्रष्टाचार जैसे कई घिनौने आरोप लग जाते हैं और जांच पडताल होने पर वह सही भी सिद्ध हो जाते हैं । ऐसे परिस्थितियों में हम कैसे कह सकते हैं कि हमारे देश की राजनीति एक साथ छवि वाली राजनीति है । ये स्पष्ट सच्चाई ही मानी जानी चाहिए कि यदि हमारे देश का हर राजनीतिज्ञ ईमानदार होता तो आज हमारा देश विकास की उन बुलंदियों पर होता जहाँ तक आज तक कोई नहीं पहुंच पाया हो । भारत जैसे सोने की चिडिया कहलाने वाले देश में धान की तो शुरू से ही कमी नहीं थी । बस अगर जरूरत भी तो सिर्फ देश के हर राजनीतिज्ञ को अपनी प्रतिष्ठा का उचित परिचय देने की परन्तु हुआ क्या? वा यही कि हमारे देश को अन्य लोगों ने तो कम लूटा लेकिन अपने अपनों ने ही सबसे ज्यादा क्षति पहुंचाई है । वजह थी कि हम अपनी नैतिकता को भूलकर अपने देश को ही लूटने में जुट गए । जो राजनीति देश के लोगों को ऊंचा उठाने के लिए की जानी चाहिए थी, वहीं राजनीति देश के लोगों को झुकाने के उद्देश्य से की गई जबकि एक राजनेता का धान तो अपने देश का गौरव बढाने का होता है न कि देश को लूटने का । ये आज भी कोई नई बात नहीं है कि कई राजनीति ये देश हित से हटकर देश में ही देश का पैसा लूटने के आरोप में पकडे जाते हो । आज अगर हम राजनीति के हिसाब से ही यदि सन राजनीति के हिसाब से ही यदि देश का विकास करना चाहते हैं तो हमें अपनी नैतिकता का उचित परिचय देते हुए एक साफ छवि वाला राजनयिक बनना होगा तभी इस देश की जनता का और देश का विकास होना संभव है । इस बात का तो समय भी साक्षी है कि जब तक मानव अपनी नैतिकता और आदर्श मूल्यों को अपने हिरदय में संजोय रहा तब तक हर समाज और देश सुखी रहा । किन्तु जब मानव अपने कर्तव्यपालन से दूर होता गया और अपने मानवीय मूल्यों को खोता गया, तब तक इसका परिणाम यही हुआ कि हमारी नैतिकता लगातार गिर दी गई । इसीलिए ये हमारा कर्तव्य होना चाहिए कि हमारे अंदर जब मूल्य मानव के लिए अति आवश्यक होते हैं वो तो होने ही चाहिए जैसे कि नैतिकता अथवा मानवी, नैतिक मूल्य
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