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के पैरों का सफर शिव प्रसाद एका एक बम की तरह फट पडे । क्रोध से उनका दुबला पतला शरीर कांपने लगा । सामने नीचे फर्श पर दीवार से पीठ टिकाए उनकी बेटी सुषमा जिसे वह प्यार से बेटी कहकर बुलाते थे, बैठी थी और उनके आगे किताबें गाडियाँ बिखरी पडी थी । आपका तमतमाया चेहरा और गुस्सा देखकर वो काम नहीं दफ्तर से लौटे । अभी उन्हें कुछ ही देर हुई थी । एकाएक उन्हें क्या हो गया? बेटी समझ नहीं पाई पादा अधिक देर भी नहीं लगी उसे तापा के गुस्से का कारण जानने में अब वो अपना सिर्फ घुटनों में छिपाकर रो रही थी । पति के चीखने चिल्लाने की आवाज जब पत्नी के कानों में पडे तब वो रसोई में थी और उनके लिए चाय का पानी चला रही थी । दौड कर बैठक में आई तो देखा पति बेटी पर बुरी तरह गरज बरस रहे थे तो ये गोल खिलाए जा रहे हैं । पढाई लिखाई के बहाने इश्कबाजी हो रही है । प्रेमपत्र लिखे जा रहे हैं । क्यों बोलती? क्यों नहीं उनका जी हो रहा था बढकर लगाए दो चार हाथ लगा दे । अक्ल ठिकाने पर हारते हुए वह दूर खडे खडे ही चिल्ला दे रहे हैं । यही सब रह गया था । देखने को बुढापे में बाप की इज्जत बट्टा लगाने जा रही है । साइड जाती अब उन्होंने अपनी नजरे बेटी पर से हटाकर पत्नी पर खडा दी तो मैं भी कुछ खबर है क्या हो रहा है घर में क्या करती रहती है सारा दिन पत्नी हक्का बक्का थी । इससे पहले कभी उसने पति को इस प्रकार गुस्से में नहीं देखा था । बाहर के लोग जब तो तू करने लगेंगे तभी तो मैं पता चलेगा देखो देखो तुम्हारी लाडली बिटिया क्या गुल खिला रही है और उन्होंने कागज का एक पुरजा पत्नी को बढा दिया । स्कूल की कॉपी के लाइनदार पन्ने पर लिखा यह प्रेम पत्र था जो शिव प्रसाद को स्वस्थ हाथ जब वे मीडिया की एक किताब उठाकर उसे यूज ही उलटने पलटने लगे थे । पत्र पढकर भीतर एक बाबू का सा उठा था । आपका हो सा काबू से बाहर हो गया था और वो मिट्टी पर बरस पडे थे । पत्र पढकर पत्नी भी आगबबूला हो गए हे भगवान इज्जत में टीमें मिलने को तैयार है और वे बे खबर है । वो लडकी की ओर शेरनी की तरह जब थी उसका दायां हाथ लडकी के खुले हुए बालों की ओर तेजी से बढा । बालों के खींचते ही लडकी की जोर से चीख निकल गए । सुबह शाम शृंगार पट्टी करने का राज अब समझ में आया है । तभी कहूँ हर समय आईने के आगे से महारानी का मुख हटता क्यों नहीं था? हाथ में लडकी के बालों का गुच्छा अभी भी था और लडकी अपने बालों को माँ के मजबूत आज से छुडाने का भरसक प्रयत्न कर रही थी कम्बखत को ज्यादा ही जवानी चली है देश का फितूर जग जाने कब से चल रहा है नाटक । काफी देर तक पति पत्नी दोनों बारी बारी से लडकी पर बसते रहे । शिव प्रसाद बंद होते तो पत्नी शुरू हो जाती है । कभी दोनों अपनी किस्मत को कोसने लगते हैं । बडी लडकी की परेशानी अभी खत्म भी नहीं हुई । दूसरी एक और आफत खडी कर रही है माँ बाप के सिर पर रात को देर तक शिव प्रसाद सो नहीं भाई बस करवटें बदलते रहे । दिमाग में ढेरों बातों का जमघट मचा था । एक बात आती थी एक जाती थी । कितना प्यार करते रहे हैं वो अपने बच्चों से बेटी से तो कुछ अधिक की लगा रहा है उनका । पर उनके अधिक लाड प्यार का ही नतीजा है । पांसी की चारपाई पर पत्नी में रह रहकर करवटें बदल रही थी । शायद उसे भी नींद नहीं आ रही थी । शिव प्रसाद पत्नी की ओर करवट बदलकर धीरे से बोलेंगे । जाग रही हो गया ही पत्नी ने हुंकारा वाला कौन है ये लडका शिव प्रसाद भी कल से थे जाने अरे वही तो नंबर गली की लक्ष्मी का बेटा जिसका पति जिसका पति पिछले साल एक्सीडेंट में मारा था । पत्नी का उत्तर सुनते ही शिव प्रसाद लेते लेते जैसे एकदम से उछल पडेंगे । ठाकुर की लडकी का नीच जात के लडके से प्रेम ही बागवान यही सब दिखाना था । फिर काफी देर तक ना पत्नी बोली नवे एक सन्नाटा सा तना रहा । दोनों के बीच सन्नाटे की इस दीवार को तोडा । पत्नी नहीं बहुत देर बाद मैं तो गांव जल्दी से कोई लडका वर्ड का ढूंढो । इसके लिए चुनाव पढाई लिखाई और करो इसका भी दिया कुछ न होने का इस बीएपीएसए लडकी आज से निकलती दिखती है । शिव प्रसाद कुछ नहीं बोले सिर्फ सुनते रहेंगे । उन्हें लगा पत्नी ठीक कह रही है लडकी का ब्याह कर देना ही उचित है । ज्यादा डील भर्ती तो इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी । कहीं वो दिखाने के लायक भी नहीं रहेंगे । आज का लडकियाँ क्या कुछ न कर नहीं अगले दिन ही साल में कभी कबार दो चार रोज की छुट्टी लेने वाले शिव प्रसाद ने अपने दफ्तर में इकट्ठी पंद्रह दिन की छुट्टी ले ली । लडकी के लिए लडका ढूंढना है तो घर से बाहर निकलना ही होगा । जात बिरादरी में लडका तलाशना कोई आसान काम है । आजकल बडी लडकी के लिए कहाँ कहाँ हमारे मारे नहीं भटके थे । कभी उत्तर तो कभी तक हैं कभी पूरा तो कभी पश्चिम जहाँ कहीं से कोई खबर मिलती दौड कर पहुंच जाते थे । वहाँ किन किन रिश्तेदारों संबंधियों के पास नहीं गए थे वो अब फिर वैसे ही दौड धूप करनी ही होगी ना । और पूरे पंद्रह दिन उन्होंने दौड धूप की यहाँ गए वहाँ गए । इधर गए उधर गए सब तरफ दौडे भागे जहाँ जहाँ जा सकते थे गए । लेकिन इतनी दौड धूप के बाद भी तो कहीं बात बनती नजर नहीं आ रही थी । इतनी ही लडके देखे कभी घर बार ठीक नहीं तो कभी लडका नहीं जब जल्दबाजी में लडकी कोई में तो नहीं धकेल नहीं है । बडी लडकी की बारी कितना ठोक बजाकर नाते रिश्तेदारों से पूछताछ कर रिश्ता तय किया था । उस वक्त वे लोग वैसे नहीं लगे थे । पचास हजार से बात चल कर पैंतालीस हजार पर तय हो गई थी । पत्नी के पास जो थोडे बहुत गहने थे सब तोडवाकर बेटी के लिए नए बनवा दिए थे । उन्होंने अपने फंड से फाइनल विड्रॉ के रूप में पच्चीस हजार रुपए निकाला था । बाकी का चार रूपया सैंकडा पर पकडा था जो अभी तक उधर नहीं पाया है । शादी के दो तीन महाबाद ही से लडके वाले अपनी औकात पर आ गए थे । हम फेरे में लडकी से उम्मीद की जाती की लौटते वक्त वो मायके से कुछ ना कुछ साथ लाएगी और फिर शुरू हो गया हूँ कुछ न लाने के एवज में याद नाम प्रताडनाओं का दौर पिछले दो सालों में किस किस तरह नहीं सोचा गया । उनकी बेटी को पिछले कुछ महीनों से बेटी के लगातार दर्द भरे पत्र रहे थे । उनके पास आंसू भी गए । बेटी के पत्र पढकर वे तिलमिला जाते हैं । भीतर ही भीतर जैसे कुछ टूटता चला जाता है । ये आवाज हो से में गालियाँ बकने लगते हैं ये साले भेडिये पर वो खुद को बहुत असहाय बातें क्या कर सकते हैं । कई बार जाकर खुद बात की । हाथ पैर जोडे पर वे तो चिकने घडे है । असर ही नहीं होता । उल्टा उनकी बेटी को और यातनाएं देनी प्रारम्भ कर देते हैं । कमीने भुक्कड ये चाहिए वो चाहिए । रुपयों का पेड लगा है हमारे घर में जैसे जब जहाँ ज्यादा दिला दी हो जाती है बाद उनके भी बेटी तो पता चलता पराई लडकी को सोचने का कभी कभी तो बहुत घबरा उठते हैं तो कुछ पता नहीं कल क्या हो जाए । अखबार पढते हैं तो दहेज के लालच में बहु को जिंदा जला दिए जाने की खबरें उन्हें बुरी तरह का पा जाती हैं । कहीं उनकी बेटी भी शादी बिहा के नाम पर खुलेआम व्यापार हो रहा है । लडकों के मनचाहे दाम लगा रहे हैं । पचास हजार साठ हजार सत्तर हजार सुनते ही शिव प्रसाद को पसीने छूटने लगते हैं । कहाँ से करेंगे वो इंतजाम इतने रुपयों का रिटायर होने में पांच छह वर्ष है । कुछ सालों में तीसरे लडकी भी विवाहयोग्य हो जाएगी । कौन देगा इतना कर्ज? ईश्वर गरीब को इस जमाने में लडकी न दें । इस बीच बिट्टी माँ को चकमा देकर दो बार अपने प्रेमी से मिल चुकी है । इस पर कमरा बंद करके उस की हड्डियाँ से की है डंडे से । लेकिन लडकी अब भीड होती जा रही है । बाहर का उस पर जैसे कोई असर ही नहीं हो रहा है । कॉलेज जाना बंद कर दिया गया है । उसका शिव प्रसाद के कहने पर पत्नी सारा दिन लडकी पर नजर रखती है तो क्या कर रही है? कहाँ देख रही है, क्या पढ रही है? पत्नी ये सब बडे चौकस होकर देखती है । लडकी को भी माँ को तंग करने में मजा आ रहा था । अब वो जानबूझ कर कभी इस कमरे में जाती तो कभी उस कमरे में बाथरूम में घुसते दो घंटा घंटा लगाकर बाहर निकलते । कभी घर से बाहर निकल कर खडी हो जाती और बेवजह मुस्कुराने लगती । माँ भी तरी बेहतर तिलमिलाती रहती । बेटी के हरकतों से परेशान होती रहती और कल अपनी रहती है । शिव प्रसाद दस्तर जाने से पहले पत्नी को हिदायत देकर जाते और लौटकर दिन भर के किस्से पत्नी के मुझसे सुनकर परेशान और दुखी होते हैं । इन दिनों उनका रक्तचाप भी बढने लगा है । कल रात सोए हुए उनकी आंखें खोली तो उन्होंने देखा लडकी अपने बिस्तर पर नहीं है । वोट है और पत्नी को जगाया । दोनों कमरे देखें । बाथरूम वगैरह देखा लडकी कहीं नहीं थी । दोनों घबरा गए । बुरी तरह उन्हें अपनी इज्जत तारतार होती नजर आई । थोडी ही देर में लडकी पिछवाडे से घर के अंदर घुसी और चुपचाप अपने बिस्तर पर जाकर लेट गए । पति पत्नी दोनों गुस्से में डाल पीस तरहे लडकी को कुछ नहीं कहा । उन्होंने रात के समय शोर शराबा करना उचित नहीं था । इसके बाद दोनों रात भर सो नहीं पाए । पूरी रात जागकर पहरा देते रहे । शिव प्रसाद की परेशानी बढती ही जा रही थी । हर समय वो खोए हुए और परेशान से रहने लगे । दफ्तर में काम में मन नहीं लगता नतीजतन गलतियाँ होती है और साहब से डांट फटकार सुनते घर लौटकर बात बात पर पत्नी पर झुंझला पडते कुछ भी खाने पीने को जीना करता । भूख जाने कहाँ गायब हो जा रही थी उनकी अव्वल तो उन्हें नींद ही नहीं आती । अगर आती भी बुरे बुरे सपने आने लगते हैं सपने में कभी उन्हें दिखाई देता उनकी बडी लडकी आग की लपटों से घिरी है और बचाओ बचाओ चिल्ला रही है । वो सामने खडे हैं और बेटी को बचा नहीं पा रहे हैं । कभी उन्हें दिखाई देता वो जबरन बेटी की शादी कहीं और कर रहे हैं । बारात आने को है । सभी तैयारियां पूरी हो चुकी है । फिर अचानक हाहाकार मच जाता है । उनकी बेटी पंखे से लटक कर आत्महत्या कर लेती है । इस प्रकार के सपने देख वह घबरा कर उठ जाते हैं । उनका पूरा शरीर पसीने पसीने हो जाता । फिर पूरी रात उन्हें नींद ना दी । साफ तेज तेज चलती रहती है और वो उठकर पानी पीते रहते हैं । आज भी उनकी नींद आंखों से कोसो दूर हैं । उनकी सोच का पहिया तेज गति से घूम रहा है । क्या करें क्या न करें कि अधेड बुन चल रही है उनके भीतर वो देख रहे हैं कि लडकी बेशर्म होती जा रही है । दिन बदिन मोहल्ले में कानाफूसी शुरू हो गई है । उनकी बेटी को लेकर जात बिरादरी में लडकी की शादी करने की उन की तमाम कोशिशें रेत की दीवार साबित हो रही हैं । उनके बूते से बाहर है बिरादरी में शादी करना । अगर कर्जा पकडकर कर भी दी तो क्या गया रहती है की बेटी सुखी रहेगी तो क्या जात बिरादरी से बाहर लडकी की शादी कर दें उस नीच गैर जात के लडके से लोग क्या कहेंगे नाक कट जाएगी बिरादरी में सब तू तू करेंगे पर जात बिरादरी में करने से भी तो क्या फायदा बिरादरी में ही तो की थी बडी लडकी की शादी कितना खर्च करके विज्ञा मिला सेवाएं दुख और परेशानी के कहाँ चले जाते हैं सभी रिश्ते नातेदार जब लडकी को दहेज के लालच में तरह तरह से परेशान किया जाता है उसकी हत्या कर दी जाती है या फिर आत्महत्या करने को विवश कर दिया जाता है । तब कहाँ होते हैं? बिरादरी के लोग कौन साथ देता है तब आगे बढकर कौन लडकी के माँ बाप के दुःख को अपना दुःख समझकर आवाज उठाता है । ऐसे जुल्म के खिलाफ कोई नहीं समझाता । भूखे भेडियों को जाकर कोई नहीं करता । उन्हें जात बिरादरी से बाहर कोई नहीं करता उन पर तो तू जाने कितनी देर तक उनके जहन में सवालों के बवंडर उठते रहे । उन्होंने उठकर समय देखा रात्रि के बारह पच्चीस हो रहे थे यानि दूसरा दिन शुरू हो गया था । उन्होंने उठकर पानी पिया और फिर बिस्तर पर आ गए । पत्नी भी जाग रही थी ऐसा शिव प्रसाद ने पूछा तुमने देखा है लक्ष्मी का लडका कैसा दिखता है? वह पत्नी इस प्रश्न पर उनके चेहरे की ओर देखने लगी । वो हत्प्रभ थी उनके प्रश्न पर देखने में अच्छा है । पत्नी ने धीमी आवाज में कहा पर पर क्या ऍर जात का है तो क्या लडका अच्छा हो तो शिव प्रसाद को लगा एका एक उन का सर ऊंचा हो गया है । नया सी गली मोहल्ले वाले क्या कहेंगे? नाक नाक कटेगी और अगर लडकी लडके के साथ भाग गई तो क्या बची रहेगी ना देख लोग बिरादरी में बडी धूम टू होगी । होने दो । बिरादरी वाले धुंधु करते हैं तो करने दो, अब कौन सा साथ दे रहा है । दहेज ना जुटा पाऊंगा तो क्या बेटी कुमारी बैठे रहेगी जात बिरादरी में बडी लडकी की शादी करके नहीं देखा तो नहीं । शिव प्रसाद बोले जा रहे थे । पत्नी चुप रही, कुछ न बोली । पति कुछ गलत तो नहीं कह रहा उसकी आंखों के आगे बडी लडकी का पीला जर्द चेहरा घूम गया । भेडियों के हाथ बिहारी लडकी अब कोई नाते रिश्तेदार सामने नहीं आता । कोई नहीं समझाता । उन्हें जात बिरादरी के लोगों को साफ सुन गया है । जैसे हे भगवान मेरी लडकी की रक्षा करना । वो मन ही मन प्रार्थना करने लगी । शिव प्रसाद पत्नी की चुप्पी को मौन स्वीकृति समझ बोले थे तो ठीक है कल चलेंगे दोनों लक्ष्मी के घर अब सोचा और उन्होंने उठकर बत्ती बुझाई और बिस्तर पर लेट सोने का उपक्रम करने लगे ।
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