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चुप्पियों के बीच तैरता संवाद मुझे यहाँ आए एक रात और एक दिन हो चुका था । पिताजी के सीरियस होने का ताल पाते ही मैं दौडा चला आया था । रास्ते भर राजीव अजीब से खयाल मुझे आती और डराते रहे थे । मुझे उम्मीद थी कि मेरे पहुंचने तक बडे भैया किशन और मंजिले भैया राज दोनों पहुंच चुके होंगे, पर वे अभी तक नहीं पहुंचे थे । जब की दाल अमान्य तीनों को एक ही दिन एक ही समय दिया था वे दोनों यहाँ से रहते भी नजदीक है । उन्हें तो मुझ से पहले यहाँ पहुंच जाना चाहिए था । रह रहकर यही सब बातें मेरे जहन में उठ रही थी और मुझे बेचैन कर रही थी । मैं जबसे यहाँ आया था, एक एक पल उनकी प्रतीक्षा में काट चुका था । बार बार मेरी आंखें स्वतः ही दरवाजे की ओर उठ जाती थी । मुझे तो ऐसे मौकों का जगह भी अनुभव नहीं था । कहीं कुछ हो गया तो मैं अकेला क्या करूंगा? यही भय और दुश्चिंता मेरे भीतर रह रहकर साहब की तरह फन उठा रही थी । पिताजी की हालत में रत्ती भर भी सुधार नहीं था । कल शाम जब से मैं आया हूँ, उन्हें नीम बेहोशी में ही देख रहा हूँ । अम्मा ने बताया था कि मेरे आने से चार पांच घंटे पहले तक तो उन्होंने दवा वगैरा ली थी । टट्टी पेशाब भी किया था । शरीर में हरकत भी थी किन्तु उसके बाद से न तो आगे खोली हैं ना ही लेना है । अम्मा कई बार उनका पायजामा वगैरह भी देख चुकी थी । तटी पेशाब तक लगता है बंद हो गया है । अम्मा बेहद घबराई हुई थी । उनसे कहीं अधिक मैं बता रहा था । पिताजी को हिला डुलाकर बात करने की मेरी कोशिशें बेकार रही थीं । सारा दिन मैं उन के पास बैठा रहा था । मैंने बैठे कभी लगता अभी पिताजी करवट लेंगे । कभी लगता अभी उनके होठ लेंगे । कभी लगता गर्दन मिलने की कोशिश कर रहे हैं । पर ऐसा मुझे लगता था होता कुछ नहीं था । पूरे घर में सन्नाटे की एक चादर तनी थी । एक दुश्चिंता और चुप्पी की गिरफ्त में हम सब बुरी तरह जख्मी हुए थे । हम लोग आपस में बातें भी करते थे तो लगता था फुसफुसा रहे हूँ । गले से आवाज खुलकर निकल ही नहीं पा रही थी । छोटी बहन पिंकी और छोटा भाई की कल से ही मुझ से बहुत कम बोले थे । उनके चेहरे पर चुप्पियां चस्पा थी । मुझे आश्चर्य हो रहा था की विक्की जैसा शरारती बालक इतना शांत और खामोश कैसे रह सकता है । उसे तो उठते बैठते खाते पीते बस शरारती सोचती थी हम चुप थे । हमारा एक एक पल भर और घबराहट में बीत रहा था । घडी ने शाम के छह बजाय तो मैं पिताजी के पास से उठकर दूसरे कमरे में आ गया । विक्की कोई किताब खोले पढ रहा था । चुपचाप पिंकी किसी पुराने कपडे पर कढाई कर रही थी । बाहर गली में बच्चे खेल रहे थे । हल्का हल्का शोर खुली खिडकी से कूदकर अंदर आ रहा था । शायद आइस पाइस या छुपा छुपी का खेलता । कभी कभी कोई बच्चा हमारे घर से लगे जीने के नीचे छुप जाता था । दूसरा बच्चा उसे ढूंढते हुए जब वहां पहुंचता तो शोर ते जोडता और हमारे घर में सन्नाटे कि तनी हुई चादर हिलने लगती । एक दो बार अम्मा बाहर निकल कर शोर ना करने का इशारा कराई थी । लेकिन बच्चे तो आखिर बच्चे थे । थोडी देर बाद ही उनका शोर फिर सुनाई दे जाता । इस बार अम्मा ने जलाकर उन्हें डाल दिया था । तुमसे कहा ना या शोर ना करो । जब दूर जाकर के लोग अब इधर आई तो और उन्होंने खुली हुई खिडकी बंद कर दी थी । अम्मा की डांट सुनकर बच्चे चुपचाप खिसक गए थे । अब घर के बाहर और भीतर दोनों तरफ एक छुट्टी ही छुट्टी थी । मेरी पीठ में अब दर्द होना आरंभ हो गया था और मुझे नींद भी आ रहे थे । एक रात और एक दिन बैठे बैठे गुजारना और उससे भी पहले एक दिन का रेल का सफर मुझे यू अधलेटे । ऐसा देखकर अम्मा बोली थक गया होगा तो भी थोडी देर लेना चाहिए । कमर सीधी हो जाएगी । अम्मा बहुत पास से बोल रही थी, लेकिन उनकी आवाज मुझे बहुत दूर से आती लग रही थी । थकी थकी सी मैंने अम्मा की बात का जवाब नहीं दिया । बस दोनों हथेलियों में अपना मूडकर मनी मन ईश्वर से प्रार्थना करने लगा था । तभी अम्मा ने पूछा था चाय पीएगा बनाऊँ, कहीं इच्छा नहीं है । मैं कहना चाहता था लेकिन कह नहीं पाया हो । ठेले ही नहीं जैसे हो गए थे जैसे बस शतांश । मैंने अम्मा की ओर नजरें उठाकर देखा था अपनी ओर मेरे देखे जाने को । मेरी सहमती समझकर वह चाय बनाने रसोई में चली गई थी । अब धीरे धीरे मेरे अंदर कुछ खोल रहा था । धैर्य चुक रहा था और बेचैनी बढने लगी थी । मुझे गुस्सा भी आ रहा था । आपने पर नहीं । किशन और राज भैया पार्टी अभी तक ये लोग नहीं आए । क्या उन्हें तार नहीं मिला? इस छोटे से कस्बे में कोई अस्पताल तक नहीं । बस जगह जगह कुकुरमुत्तों की तरह हो गए हुए नर्सिंग होम थे, जहाँ डॉक्टर स्वयं चाहते थे कि उनका मरीज जल्दी ठीक ना उनके लिए डॉक्टरी पेशा है । धंधा है पैसा कमाने का । धंदा बस यहाँ से साठ मील दूर एक सरकारी अस्पताल है । दोनों बडे भाई आ जाते तो पिताजी को वहीं ले जाते हैं । पर नया अकेला उन्हें ऐसी हालत में सोचते ही मेरे तो पसीने छूटने लगते हैं । अम्मा चाय ले आई थी । चाय का प्याला लेते हुए मैं स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख सका । मैंने पूछा किशन और राज भैया को भी तो तार मिल चुका होगा । आई क्यों नहीं? अब तक मेरी आवाज में दल की थी और उसमें खीज और गुस्से का रंग मिला हुआ था । जाने क्या बात है, कोई बात होगी । तार पाकर रुकने वाले तो नहीं है, आते ही होंगे । अम्मा पास बैठकर आहिस्ता आहिस्ता बोल रही थी आजकल घर गृहस्ती छोडकर एकदम निकलना भी तो नहीं होता । हम ना की इस बात से मैं भीतर तक खुल गया था तो निकलना नहीं होता या निकलना नहीं चाहते हैं । क्या घर गृहस्ती उन्हीं की है? मेरी नहीं । सोनू के कल से पेपर शुरू है । निक्की और सुधार भी पिछले हफ्ते से ठीक नहीं है । फिर भी मैं तार पाते ही दौडा चलाया । मेरे भीतर घमासान मचा था, लेकिन मैं घमासान को शब्द नहीं दे पा रहा था । अम्मा मेरे सामने बैठे कुछ सोच रही थी और मैं भी तरी भी तक बन रहा था । दरवाजे पर दस्तक हुई तो मैं ठीक से होकर बैठ गया । पिंकी ने उठकर दरवाजा खोला । किशन और राज भैया में से कोई नहीं था । पडोस वाली रमान दी थी । दिन में भी पडोस एक्का दुक्का लोग पिताजी का हाल पता करने आ चुके थे और अपनी अपनी सलाह लेकर चले गए थे । फॅमिली ने कमरे में घुसते ही अम्मा को संबोधित होते हुए पूछा, बहनजी आप कैसी तबियत है? भाई साहब की उसी तरह बेहोश पडे हैं । आज तो हिलडुल भी नहीं रहे । बस अभी मालिक है । कहते कहते अम्मा की हिचकियां भराएंगे धीरज रखो, बहन कुछ नहीं होगा, सब ठीक हो जाएगा । ऊपर वाले पर भरोसा रखूँ । रम आंटी अम्मा का कांदा थपथपाकर उन्हें धीरज बनाने में अब तो ब्रज भी आ गया है । किशन राज भी आते ही होंगे । सब संभाल लेंगे । दिल थोडा ना करो, हिम्मत रखूँ । कुछ देर असम वाद की स्थिति रही । अम्मा फर्ज की ओर टकटकी लगाए देखती रही और मैं हथेलियां बगल में दबाए अपने को बेहद संजीदा दर्शाने की कोशिश करता रहा । लामा आंटी लगता था अगली बात के लिए शब्द ढूंढ रही थी । एकाएक दीवाल घडी की ओर देखते हुए बोले आप लोगों ने खाना वाना खाया कि नहीं? चलो मैं बनाती हूँ कब तक भूख हो गया भाई साहब, बीमारी तो है, ठीक हो जाएंगे । ऐसे कोई खाना पीना छोड देता है । हाँ बेटा ब्रज मेरे यहाँ कुछ खाले । मेरे जवाब की प्रतीक्षा ना करते हुए वो विक्की और पिंकी की ओर वो खाते हो कर बोले चलो तुम दोनों भी खाती लोग विक्की पिंकी ने एक बार गिरा मांटी की ओर देखा । फिर मेरी और अम्मा की ओर हमारी ओर से कोई प्रतिक्रिया? नपाकर्मी चुपचाप अपने अपने कामों में व्यस्त हो । अच्छा मैं यही भेज देती हूँ । हमारी चुप्पी को देखकर राम आंटी बोली तो अम्मा के मुझसे बोला होगा नहीं बहन क्यों तकलिफ करती हूँ । मेरा तो मन नहीं है और बच्चों के लिए दोपहर का ही बना रखा है । खा लेंगे अच्छा मैं चलती हूँ । मेरी जरूरत पडे तो बोला लेना । बहन कहती हुई रहमान भी चली गई । उनके आने पर हमारे घर की छुट्टियाँ थोडी देर के लिए कहीं तो बन गई थी । उन के जाते ही उन्होंने फिर से पूरे घर को अपने शिकंजे में ले गया था । थोडी देर बाद अम्मा पिताजी के कमरे की ओर चली गई थी । मैंने फिर अपनी डालिए फैला ली थी और आंखे मूंदकर से दीवार से लगा लिया था । पिताजी के शांत चेहरे पर हल्की सी हरकत देखकर अम्मा ने मेरी तरफ देखा है । हाँ, सचमुच पिताजी के चेहरे पर हल्की सी हरकत हुई है । होटों पर कम्पन साफ दिख रहा है । अम्मा उन के करीब हो कर कहती हैं सुनी देखिए आंखे खोलिए भेज आया है इससे नहीं मिल होगे । मैं भी आगे बढकर पिताजी का कमजोर और बेजान सा हाथ अपनी मुट्ठी में लेते हुए कहता हूँ हूँ मैं पिताजी आपका ब्रज ठीक है ना । पिताजी के कांपते होठों से लगता है कि वे कुछ कहना चाह रहे हैं । मैं आगे झुककर कहता हूँ । पिताजी कुछ कहना चाहते हैं कहीं मैं होना आपका बेटा ब्राॅड वे भी आते ही होंगे आप वो एक बार अम्मा की ओर देखते हैं । फिर धीमे से गर्दन को मारकर मेरी ओर टुकडा टुकडा शब्द हवा में कहते हैं अपनी अम्मा की छोटे भाई बहन की देखभाल करना । बेटा इन्हें तुम्हारे सहारे ही बमुश्किल से बोले गए शब्द बीच में ही अपनी यात्रा खत्म कर देते हैं और फिर हम मार होने लगती हैं । मुंबई साडी का पल्लू दबाकर मैं भीतर से कापता हुआ भयभीत साहूकर ढांढस बनाता हूँ आप चिंता ना करें आपको कुछ होगा लेकिन अगले एक्शन हो जाता है पिताजी की गर्दन कोष अम्मा की चीख निकल जाती हैं । पिंकी की रोना चलाना आरंभ कर देते हैं । घर में तनी सन्नाटे की चादर तारतार हो जाती है । मेरे पांव के नीचे से जमीन खिसकने लगती है । अब क्या होगा मैं अकेला घबराहट से मेरा पूरा शरीर का आपने लगता है खुद को ऐसा है । पाकर मैं भी फूट फूटकर रोने लगता हूँ । तभी मेरी नींद टूट जाती है । आज ही घडी अम्मा मुझे कंधे से हिला रही थी । राज्य फॅस हो गया क्या चल बिस्तर लगा दिया है । लेट जाये मैं बैठती हूँ उनके पास सोले कल रात से दूर हो या नहीं । मैं चुपचाप उठा था और कपडे बदलने लगा था । सोने से पहले मैं एक बार पिताजी के कमरे में गया । वे उसी तरह बेहर काट लेते हुए थे । अम्मा ने बताया कि उन्होंने चम्मच से दवा पिलानी चाहिए थी लेकिन दावा गले से उतनी ही नहीं डॉक्टर को बुला लूँ । मैंने अम्मा से पूछा था इस समय वो बुलाने से भी नहीं आएगा । सुबह अपने आप आ जाएगा । फिर भी तेरी मर्जी मैंने साइकिल उठाई थी और उन्हीं कपडों में डॉक्टर के घर पहुंच गया था । अम्मा की बात सही थे, उसने वही दवा देते रहने को कहकर मुझे लौटा दिया था । मैंने पिताजी के नजदीक बार देखी थी । वो चल रही थी मंद मंद मैंने पायजामा टटोलकर देखा गीला था । टांगों पर से कंबल हटाया तो बदबू का तेज बाप का मेरे नथुनों में जबरन घुस गया । मैंने एक बारगी अम्मा को आवाज दी थी और फिर खुद ही उनका पायजामा बदलने लग गया था । अमाने गीला पायजामा उठाया और बाथरूम में डाला आकर बोल तो थोडा सोलह ब्रज देख आंखे कैसे लाल हो रही है । तेरी अम्मा की बात पर मैं चुपचाप उठकर सोने चला गया था । लेते ही मुझे नींद ने अपनी गिरफ्त में ले लिया था और अगले दिन सुबह देर तक मैं सोता रहा था । अम्मा ने जब मुझे जगाया तो घडी में दस पच्चीस हो रहे थे । मैंने उठते ही पिताजी के बारे में पूछा । रात को उनके द्वारा दो बार कपडे गंदे करने की बात अम्मा ने मुझे बताई और बोलिए । आठ बजे मैंने दवा दी थी । टूटकर नहा धो ले । नाश्ता करने और फिर जगह डॉक्टर को बुलाना रोज तो नौ बजे तक खुला जाता था । आज साढे दस होने को आए । ना तो अगर नाश्ता करके डॉक्टर को बुलाने जा ही रहा था कि किशन और राज भैया गए । अम्मा होने देखकर रोने लगी तो दोनों देर से पहुंचने का अपना अपना स्पष्टीकरण देने लगे । किशन भैया सरकारी काम से बाहर गए थे । लौटे तो तार मिला और तभी जल्दी राज्य भैया ने कहा कि तार पर उनका पता गलत था इसलिए तार देर से मिला । मिलते ही गाडी पकडनी । दोनों सीधे पिताजी के कमरे में चले गए थे । अम्मा के पीछे पीछे मैं भी पिताजी के हमले में हो सकता । पिताजी वैसे ही बेहोशी किसी हालत में लेते हुए थे । किशन भैया ने उनका हाथ पकडकर नवजो देखी थी और फिर उनके ठंडे हाथ को अपनी हथेलियों से मलकर गरमाने लगे थे । तभी डॉक्टर आ गया था । किशन भैया ने डॉक्टर से बात की थी । अलग ले जाकर शहर के बडे अस्पताल में ले जाने की बात भी पूछा था । आप लोगों की मर्जी है । वैसे कहकर डॉक्टर ने बात हमारे ऊपर छोड दी थी । डॉक्टर ने इस बार दवा चेंज कर दी थी । मैं दवा लेने बाजार जाने लगा तो किशन भैया मुझे सौ का नोट कमाने लगे जिसे मैंने हाल किसी नानू कर के बाद ले लिया था और साइकिल सब आती थी । किचन में ही आते ही पिताजी की तीमारदारी में लग गए थे । कभी उनके कपडे बदलते, कभी चम्मच से पानी पिलाते, कभी अंडे आप को अपनी के लिए उसे गर्म आने की कोशिश करते । राज्य भैया जब से आए थे, सुस्त लग रहे थे । वो कम बोल रहे थे चेहरे से वो भी मेरी तरह भीतर से घबराए हुए लग रहे हैं । अब मेरी डाॅट वैसे कुछ कम हो गई थी । किसी अनहोनी को अकेले फेस करने का तनाव अब मेरे मस्तिष्क में नहीं रहा था । किशन भैया और राज भैया के आ जाने से मुझे भीतरी बाल मिला था और लगा था अब मुझे चिंता करने की जरूरत नहीं है । दोनों बडे भैया सब कुछ संभाल लेंगे । पैसे भी । वे मुझसे अधिक अनुभव भी थे । उनके रहते मैं कुछ हल्का सा महसूस कर रहा था । विक्की और पिंकी में कोई फर्क नहीं आया था, बल्कि वे अब ज्यादा ही गंभीर और चुप दिखाई दे रहे हैं । बदली हुई दवा से पिताजी की हालत में हल्का सा फर्क हुआ तो उसे मैं नहीं नहीं । अम्मा ने भी चट से पकडने, पिताजी ने मिलकर करवट बदलने की कोशिश की थी । उनके वोटों से लग रहा था वे कुछ कह रहे हैं और शब्द नहीं थे । पिताजी को कुछ नहीं होगा । अब ये धारणा धीरे धीरे बलवती हो रही है । इस परिवर्तन ने मेरे भीतर अब तक दबी छुपी और कुलबुलाती बात को बाहर निकालने की हिम्मत बनाते हैं । दरअसल, जिस रात से मैं यहाँ आया था, उसके अगले दिन से ही मैं सोच रहा था कि किशन भैया राज भैया के आते ही मिला और जाऊंगा । दोनों बडे भाई स्वयं संभाल लेंगे । मुझे अपनी बीमार पत्नी और बच्चों की चिंता सता रही । सोनू के होने वाले पेपर की फिक्र हो रही थी । ऑफिस से भी मुझे छुट्टी इसलिए मिली थी कि तार पहुंचा था, वरना आजकल तो वैसे ही ऑडिट चल रहा है । किशन भैया को दौड दौड कर पिताजी की सेवा कोशिश करते देख मुझे उम्मीद होने लगी थी कि भैया आवश्यक काफी दिनों की छुट्टी लेकर आए । अब जब तक पिताजी कुछ बेहतर स्थिति में नहीं आया जाते, वो नहीं जाएंगे तो बडे भाइयों का वैसे भी ऐसे समय में यहाँ रहना जरूरी है । जाने कब क्या हो जाए एक का एक मुझे अपनी सोच पर लानी होने लगी । क्या उन्हीं का रहना यहाँ जरूरी है? उसका नहीं । लेकिन अगले क्षण लौटने की बात मेरे अंदर उछलकूद करने लगी और मैं अवसर की तलाश करने लगे । अम्मा अधिक बात नहीं कर रही थी । मैं जब भी उन्हें अकेले पाकर अपने दिल की बात करने की चेष्टा करता, मेरी जुबान को न जाने क्या हो जाता है, जैसे उसे उस क्षण लकवा मार जाता हूँ । मुझसे कोई शब्द ही नहीं पूछता । किशन और आज भैया के सामने पढते ही मेरी हिम्मत जवाब दे जाती । दोपहर खाने के वक्त सोचा था, अपनी बात कहते हैं । फिर सोचा इतनी जल्दी ठीक नहीं रहेगा । शाम को कहते हैं रात नौ बजे की ट्रेन है, उसी से लौट जाऊंगा । शाम के साढे चार का वक्त था जब पिताजी को कुछ कुछ होश आया था । उन्होंने मैच में जाती आंखों से हम तीनों को देखा था । हाथों में हल्की सी जुंबिश भी हुई थी । शायद वे हाथ उठाकर हमें प्यार देना चाह रहे थे । बदली हुई दवा असर कर रहे थे । खतरे का ऐसा धीरे धीरे कम होता लग रहा था । पिंकी चाय बना लाई थी और हम सब दूसरे कमरे में बैठ कर चाय पीने लगे थे । चाय पीते हुए मैंने स्वयं को भीतर ही भीतर तैयार किया था । भूमिका स्वरूप अपनी बात भी चलाई । मसलन, अब तो पिताजी की हालत में सुधार हो रहा है । कब लाने की बात नहीं देखती । अब और जैसे मुझे तीन दिन हो गए हैं । यहाँ आए घर पर सुधार । बेटी निक्की भी ठीक नहीं । सोनू के कल से पेपर हो रहे हैं । पता नहीं क्या करके आता होगा आदि । मेरी इस बातचीत को कोई गंभीरता से नहीं ले रहा था । बस चुपचाप सुन रहे थे । मैं एक पल सबके चेहरों की ओर देखता । फिर दिल की बात दिल में ही दबा देता है । कभी कभी मुझे लगता बडे भैया स्वयं भी कहेंगे रज अब मैं आ गया हूँ । सब संभाल लूंगा । तुम चाहो तो चले जाओ, सुधार खेली होगी । ऐसी वैसी बात होगी तो बुला लेंगे तो मैं अम्मा ने मुझे पिताजी के कमरे से आवाज दी तो मैं उठ कर उनके पास चला गया । वो पिताजी के नीचे की चादर बदलना चाह रहे थे । बोली जराई ने थोडा सा ऊपर उठाना मैं नीचे की चादर बदल दूँ । एक बार गई । मैंने बडे भैया को अपनी मदद के लिए बुलाना चाहा, पर अगले ही क्षण मैंने खुद ही पिताजी को अपने दोनों बाजुओं में लेकर ऊपर उठा लिया था और अम्मा ने झट से उन के नीचे की चादर बदल दी थी । अम्मा को अकेले पाकर मेरे अंदर कुछ हिलने डुलने लगा था । अमान्य पिताजी पर कम्बल उडाया और पास बैठकर उनके पैर दबाने लगी तो मेरे मुंह से निकला अम् क्या बेटा पिताजी बस मेरे गले में जैसे कुछ फंसा गया । मुश्किल शब्द निकले । पिताजी ठीक हो जाएंगे तो मैं कुछ दिनों के लिए आप लोगों को अपने यहाँ ले जाऊंगा । हवा पानी बदल जाएगा । मुझे अपने कहे शब्दों पर हैरत हो रही थी क्या मैं यही कहना चाहता था ये ठीक हो ले । पहले अम्मा का कहते कहते गला रुंध आया था । वैसे भी तुम्हारे सेवा कौन है? हमारा तुम ही लोग तो अम्मा के शब्द मेरे मार्ग को छू रहे थे । अंदर तक मैं जानता था ये अम्मा नहीं अम्मा का दर्द बोल रहा था उनको अपने यहाँ ले जाने की बात मैंने उन का दिल रखने क्या उनका हौसला बढाने के लिए कही थी । सच कहूँ तो मैं ये कहना नहीं चाह रहा था । मैं तो अपने लौटने की बात कहना चाहता था । ये तो मैं भी अच्छी तरह जानता था और अम्मा भी की । हम तीनों भाई अपनी अपनी शादी के बाद उन्हें कितनी बार अपने अपने यहाँ नहीं जा पाए । अब मुझे शर्म महसूस हो रही थी । मैं अपनी शर्म को मिटाने के लिए कमरे की दीवारों को यूएई बे मतलब ताकने लगा था । रात को बाजार से सब्जी लेकर लौटा तो बडे भैया अम्मा से कह रहे हैं अम्मा मैं रात की गाडी पकड लेता हूँ । सुबह ऑफिस जॉइन कर लूंगा । दूर से लौटा था तो सीधे जारी आ गया । थारपाकर ऑफिस से छुट्टी भी नहीं ली थी । अब तो पिताजी की हालत में सुधार है । चिंता की कोई बात नहीं है । ठीक हो जाएंगे । भैया बोले जा रहे थे और अम्मा चुपचाप सुन नहीं थी । राज भैया भी जमीन भी बैठे थे । खामोश कमरे में मेरे घुसते ही बडे भैया बोले राज और ऍम ना ऐसी वैसी बात हो तो मुझे खबर कर देना भैया जाना तो मुझे भी था । इस बार राज भैया के होते लेते हैं । आप तो जानते हैं मेरी नौकरी डॅडी है । छुट्टी भी बडी मुश्किल से मिली है । वे लोग मौका देखते हैं अपना आदमी कट करने के लिए । आप यहाँ रहते तो किशन भैया कुछ देर सोच में पड गए थे । राज भैया की बात समाप्त होने पर वो मेरे भीतर भी कुलबुलाहट होने लगी थी । अब तक दबाकर रखी बात बाहर निकलने को उतावली हो रही थी । लेकिन ऐसा मेरी नजरें माँ पत्ते गई । अम्मा जहाँ बैठी थी वहीं स्थिर हो गई थी मूर्ति की तरह काफी देर बाद पहने हुए सन्नाटे को किशन भैया ने थोडा अच्छा तो तुम भी चलो । पिताजी तो ठीक है, इतना घबराने चिंतित होने की जरूरत नहीं । अब हमें भी नौकरी की वजह से जाना पड रहा है । वरना ऐसी स्थिति में हमारा जाने का मन करता बला । फिर मेरी और देखते हुए बोले रज धुन तो यहाँ हुई । पिताजी को दवा वगैरा टाइम से देते रहना । कोई बात हो तो मुझे ताज कर देना । मैं आ जाऊंगा और फिर जेब से रुपये निकालकर मुझे नाम आते हुए बोले रख लो वक्त बेवक्त काम आ जाते हैं । हम अब सुबह नहीं लगी थी । उनकी आंखों से आंसुओं की धाराएं बहने लगी थी । मैं आगे बढकर अम्मा की बगल में बैठ गया था और अम्मा को सांत्वना देने लगा था । हाथ में पकडे रुपयों को देखकर मेरी यहाँ के भी दबदबा गई थी । समझ में नहीं आ रहा था तो पे रख लो या भैया को लौटा दूं । जब थोडी देर तक कोई किसी से नहीं बोला तो किशन भैया उठे और तैयारी कर अम्मा ने पिंकी को आवाज लगाई बेटी पिंकी खाना वगैरा तैयार कर ले । दोनों भाइयों को खिलाकर भेजना रात का सफर है और फिर उठकर पिताजी के कमरे में चलेंगे । शायद वो हमारे सामने रोना ही नहीं चाहती थी । निश्चित ही पिताजी के कमरे में जाकर वो खूब हूँ । किशन और राज भैया को ट्रेन में बिठाकर लौटा तो हम माने । पूछा रज तो छुट्टी लेकर आया होगा । अचानक किए गए अम्मा के इस प्रश्न पर मैं अचकचा गया था । अम्मा के इस प्रश्न के पीछे का दर्द मैं अच्छी तरह से महसूस कर रहा था । हम वहाँ से आके मिलने की मेरी हिम्मत नहीं हुई । पिंकी विक्की के पास बैठे हुए मैंने कहा सोचता हूँ कल सुबह पोस्ट ऑफिस जाकर सुधार को चिट्टी डाल दो की चिंता ना करें । कुछ दिन लग जाएंगे और साथ ही ऑफिस में भी छुट्टी बढाने की अर्जी पोस्ट कर दूँ । अम्मा ने आगे कुछ पूछा मैं कहा फिर वही चुप्पियां हमारे बीच बन गई एकाएक इन छुट्टियों से मुझे खूब होने लगी । पिताजी की बीमारी से हमारे अंदर है घबराहट । दुश्चिंता का होना स्वाभाविक खाले के लगातार चुप्पियों को अपने ऊपर धोडा रहना । मुझे चुप्पियां अनावश्यक लगने लगे । इनके गिरफ्त से बाहर होने की इच्छा हो जाता था कि बर्फ से जमीन चुप्पियां गलकर रह जाए । पूरे घर में सन्नाटे कि तनी चादर तारतार हो जाए । घर में पहली मनमोहन सिंह से निजात में नहीं । इन्हीं सब विचारों में डूबते उतरते हुए मैंने ऐसा विक्की से प्रश्न किया । तेरी पढाई कैसी चल रही है? फिर उसका उत्तर जाने से पहले ही अपने बेटे सोनू के बारे में बताने लगा । हाफ ईयरली एग्जाम में आए उसके नंबरों के बारे में उसके सारा दिन खेलते रहने के बारे में पढाई की ओर ध्यान न देने के बारे में । उसके बाद मैंने अपनी छोटी बेटी निक्की की शैतानियों का जिक्र छेड दिया । पिंकी विक्की सुनकर हंसने लगे । मुझे उनका हसना अच्छा लग रहा था । एक का एक विक्की ने पूछा भैया निक्की कॅाम आती हैं? हाँ, बहुत आ रहे, वो तो डांस भी करती है । अच्छा । पिंकी ने आश्चर्य व्यक्त किया । टीवी पर चित्रहार देखती है तो खूब ऍम टक्कर भैया आज भी तो चित्रहार है, टीवी चला दूँ । विक्की ने सहमते हुए मेरी ओर देखकर पूछा जब पिंकी ने आंखें तरेर घर विक्की को तुरंत डपट दिया तो टीवी की पडी है लोग क्या कहेंगे घर में घर में क्या? पिंकी की बात पर एकाएक में चीखी तो उठा क्या है घर में कोई माता मैं क्या पिताजी बीमार है । दवा दादू चल रही है, ठीक हो जाएंगे । मेरी अनायास थे । दो छोटी आवाज से कमरे का सन्नाटा का आपने लगता है । मैंने जल्दी खुद को सैयद किया और प्यार से धीमे स्वर में बोला तुम लोग खेलों को दो । पढो मैं किसने रोका है? टीवी भी देखो कर ध्यान रहे । पिताजी डिस्टर्ब हूँ उनके आराम में खलल ना पडे बस मेरी बात पर अम्मा ने भी पिंकी विकी की ओर देखते हुए कहा कुछ नहीं हुआ । उन्हें बीमारी तो हैं, ठीक हो जाएंगे । तभी मैंने उठकर टीवी ऑन कर दिया । वॉल्यूम कम नहीं रखा । अम्मा उठकर पिताजी के कमरे में चले गए । कुछ ही पल में स्क्रीन, फोटो, भलाई, चित्रहार आरंभ हो चुका था । पहला ही गाना था अंबावी । पिता जी के कमरे का दरवाजा हल्का सा भिडाकर हमारे बीच बैठी हूँ
Sound Engineer
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