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गौरतलब कहानियां (कहानी संग्रह) - रंग बदलता मौसम  in Hindi

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Authorहरप्रीत सेखा, सुभाष नीरव
‘गौरतलब कहानियां’ कहानियों का संग्रह है जिसमें 17 चुनिंदा कहानियां शामिल है। कहानियों की सबसे बड़ी खूबी है कि वे लिसनर्स को निराश नहीं करेंगे। इन कहानियों में समाज, रिश्‍तें, परिवार, सामाजिक संस्‍कर, रूढि़यों, सीख शामिल हैं, जो लिसनर्स को उनसे जोड़ता है। Voiceover Artist: RJ Nitin Script Writer: Subhash Neerav
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रंग बदलता मौसम पिछले कई दिनों से दिल्ली में भीषण गर्मी पड रही थी । लेकिन आज मौसम अचानक खुशनुमा हो उठा था । ज्यादा से ही रुक रुककर हल्की बूंदाबांदी हो रही थी । आकाश काले बादलों से ढका हुआ था । धूप का कहीं नामोनिशान नहीं था । मैं बहुत खुश था । सुहावना और खुशनुमा मौसम । मेरी इस खुशी का एक छोटा सा कारण तो था लेकिन बडा और असली कारण को छोड था । आज रंजना दिल्ली आ रही थी और मुझे उसे पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर रिसीव करने जा रहा था । इस खुशगवार मौसम में रंजना के साथ की कल्पना ने मुझे भीतर तक रोमांचित किया हुआ था । हल्की बूंदाबांदी के बावजूद मैं स्टेशन पर समय से पहले पहुंच गया था । रंजना देहरादून से जिस गाडी में आ रही थी वो अपने निर्धारित समय से चालीस मिनट देर से चल रही थी । गाडी का लेट होना मेरे अंदर खींच पैदा कर रहा था । लेकिन रंजना कि यादव ने इस चालीस पैंतालीस मिनट के अंतराल का एहसास ही नहीं होने दिया । परसों जब दस्तर में रंजना का फोन आया तो सिर से पांव तक मेरे शरीर में खुशी और आनंद की मिलीजुली एक लहर दौड गई । फोन पर उसने बताया था कि वह इस रविवार को मसूरी एक्सप्रेस से दिल्ली आ रही है और उसे उसी दिन शाम को चार बजे की ट्रेन लेकर कानपुर जाना है । बीच का समय वह मेरे संघ गुजारना चाहती है । उसने पूछा था क्या तुम आओगे स्टेशन पर कैसी बात करते रहेंगे ना तो बोला और मैं ना ये कैसे हो सकता है । मैं स्टेशन पर तुम्हारी प्रतीक्षा करता खडा मिलूंगा । फोन पर रंजना से बात होने के बाद मैं जैसे हवा में उडने लगा था । बीज का एक दिन मुझसे काटना कठिन हो गया था । शनिवार की रात बिस्तर पर करवटें बदलते ही बीती कडी चार एक बरस पहले रंजना से मेरी पहली मुलाकात दिल्ली में ही हुई थी । एक परीक्षा केंद्र पर हम दोनों एक नौकरी के लिए परीक्षा दे रहे थे । परीक्षा हॉल में हमारी सीटें साथ साथ थे । पहले दिन सरसरी तौर पर हुई हमारी बातचीत बढकर यहाँ तक पहुंची की पूरी परीक्षा के दौरान हम एक साथ रहे । एक साथ हमने चाय भी दोपहर का खाना भी मिलकर खाया । वो दिल्ली में अपने किसी रिश्तेदार के घर में ठहरी हुई । तीसरे दिन जब हमारी परीक्षा खत्म हुई तो रंजना ने कहा था मैं पेपर्स की थकान मिटाना चाहती हूँ । इसमें तो मेरी मदद करो । पिछले तीन दिनों से परीक्षा के दौरान हम दिनभर साथ रहे थे । अब परीक्षा खत्म होने पर रंजना का साथ छूटने का दुख मुझे अंदर ही अंदर सता रहा था । मैंने रंजना की बात सुनकर पूछे वो कैसे? मैं दिल्ली अधिक घूमी नहीं हूँ । कल दिल्ली घूमना चाहती हूँ । परसों देहरादून और जाऊँ कहते हुए वो मेरे चेहरे की ओर कुछ पल देखती रही थी । मैं उसका आशय समझ गया था । उसके प्रस्ताव पर मैं खुश था । लेकिन एक बार मेरे भीतर कुलबुलाने लगा था । भिखारी के दिन थे । घर से दिल्ली में आकर परीक्षा देने और वहाँ तीन दिन घर में लाया कि पैसे का इंतजाम कर के आया था । मेरी जेब में बचे हुए पैसे मुझे रंजना के साथ पूरा दिन दिल्ली घूमने की इजाजत नहीं देते थे । दिल्ली तो मैं भी पहली बार आया हूँ । इस परीक्षा के सिलसिले में घूमना तो चाहता हूँ पर परिवार कुछ नहीं । कलम दोनों दिल्ली घूमेंगे । बस रंजना ने जैसे अंतिम निर्णय सुना दिया । परीक्षा केंद्र इंडिया गेट के पास था । वो बोले कल सुबह नौ बजे तुम यहीं मिलना यू तो मुझे परीक्षा समाप्त होते ही गांव के लिए लौट जाना था । पर रंजना की बात में मुझे एक दिन और दिल्ली में रुकने के लिए मजबूर कर दिया । मैं पहाडगंज के एक छोटे से होटल में एक सस्ता सा कमरा लेकर ठहरा हुआ था । जेब में बचे हुए पैसों का मैंने हिसाब लगाया तो पाया कि कमरे का किराया देकर और वापसी की । ट्रेन का किराया निकालकर जो पैसे बचते थे, उसमें रंजना को दिल्ली को मना कतई संभव नहीं था । बहुत देर तक मैं उहापोह में गिरा रहा था । गांव लौट जाऊ या फिर रंजना की देख गंद मुझे खींच रहे मुझे रुकने को विमर्श कर रहे हैं और जेब थी गांव लौट जाने को कह रहे हैं । फिर मैंने फैसला किया रुक जाने का फैसला । इसके लिए मुझे गले में पहनी पतली सी सोने की चेन और आपकी घनी अपनी जेब घर जाने का बहाना बनाकर पहाडगंज में बेचनी पडी थी । अगले दिन में समय से निश्चित जगह पर पहुंच गया था । रंजना भी समय से आ गए । बहुत सुन्दर लग रही है । उसका सूट उस पर खूब हम रहा था उसके चेहरे पर उत्साह और उमंग की एक तितली नाच नहीं एका एक मेरा ध्यान अपने कपडों की ओर चला गया । मैं घर से दो जोडी कपडे लेकर ही चला था । मेरी बैंड कमीज और जूते साधारण से थे । मन में हीन भावना रह रहकर सिर उठा लेते हैं । मेरे चेहरे को पढते हुए रंजना ने कहा था तो कुछ मायूस सा लगते हो लगता है तो मैं मेरे संग दिल्ली घूमना अच्छा नहीं लग रहा है । नहीं रंजना ऐसी बात नहीं । मेरे मुंह से बस इतना ही निकला था हम दोनों ने उस दिन इंडिया आगे पुराना केला चिडिया घर को दो मिनार शहर की दोपहर में एक ढाबे पर भोजन किया । सारे समय हस्ती खिलखिलाती रंजना का साथ मुझे अच्छा लगता है । साल भर बाद इंटरव्यू के सिलसिले में हम फिर मिले थे हमने फिर पूरा एक दिन दिल्ली की सडकें ना पी थी । इसी दौरान रंजना ने बताया था कि उसके बडे भाई यहाँ दिल्ली में एक्साइज विभाग में डेप्यूटेशन पर आने वाले हैं । उसने मुझे उन का पता देते हुए कहा था की मैं उनसे अवश्य मिल । कुछ महीनों के बाद मुझे दिल्ली में भारत सरकार के एक मंत्रालय में नौकरी मिल गई । मैं रंजना के बडे भाई साहब से उनके ऑफिस में जाकर मिला था । वो बडी गर्मजोशी से मुझे मिला था । उनसे ही पता चला की नौकरी की ऑफर तो रंजना को भी आई थी और इस दौरान देहरादून के केंद्रीय विद्यालय में बतौर अध्यापक नियुक्ति हो जाने के कारण उसने दिल्ली की नौकरी छोड दी थी । मैं उन्हें अपने ऑफिस का फोन नंबर देकर लौट आया था । मुझे रंजना का दिल्ली में नौकरी ना करना अच्छा नहीं लगा था । फिर भी मुझे उम्मीद थी कि रंजना से मेरी मुलाकात अवश्य होगी । लेकिन रंजना के बडे भाई साहब कुछ समय बाद दिल्ली से चंडीगढ चले गए और मेरे मन की चाबी मेरे मन में ही रह गई थी । ट्रेन शोर मचाते हुई प्लेटफॉर्म पर लगी तो मैं अपनी यादों के समंदर से बाहर नहीं किया । रंजना ने मुझे प्लेटफॉर्म पर खडा देख लिया था । ट्रेन से उतरकर वह मेरी ओर बडी । आज वो पहले से अधिक सुंदर लग रही थी । सेहत भी उसकी अच्छी हो गई थी । सामान के नाम पर उसके पास एक बडा सा आता है कि था और कंधे पर लटकता एक छोटा सा काला । उसने कोहली को आवाज नहीं । मैंने कहा को ले की क्या जरूरत है । पहले पास एक ही तो आता है । मैं उठा लूंगा और मैंने अटैची पक कर दिया था । प्लेटफॉर्म पर चलते हुए रंजना ने कहा मनीष मेरे पास चार पांच घंटों का समय है । कानपुर जाने वाली शाम चार बजे वाली गाडी की मैंने रिजर्वेशन करा रखी है । ऐसा करती हूँ । सामान में यही लॉकप में रखवा देती हूँ और रिटायरिंग रूम में फ्राॅड । फिर हम शॉपिंग के लिए निकलते । ठीक मुझे भी रंजना गए । प्रस्ताव अच्छा लगा । मैं जहाँ रह रहा था वह जगह स्टेशन से काफी दूर थी । वहाँ आने जाने में ही दो घंटे बर्बाद हो जाने दे । रिटायरिंग रूम में फ्राई होने के बाद रंजना ने अटैची को लॉकप में रखवाया और फिर हम दोनों स्टेशन से बाहर नहीं सवा ग्यारह बज रहे थे । मैंने पूछा कि डर चलोगी शॉपिंग के लिए करोलबाग चलते रंजना जैसे पहले से ही तय कर के आए थे । मैंने एक ऑटोवाले से बात की और करोल बाग की टीचर ऑटो में सेट कर बैठी । रंजना की देहगंध मुझे दीवाना बना रहे थे । मैंने जुट के लिए पहले से कुछ छुट्टिया गई हो । टीचर की नौकरी लगता है बाहर आ गई है तो मैं मैं मोटी नहीं ज्यादा नहीं । रंजना ने आंखे तरेरते हुए मेरी ओर देखकर का वो टिना वही पर पहले से सेहत अच्छी हो गई और संदर्भ हो गए । अच्छा पहले मैं सुन्दरनाथ थी । मैंने ये कब का अच्छा बताओ तो मैं मेरी याद आती है । हवा से चेहरे पर आए अपने बालों को हाथ से पीछे करते हुए रंजना ने पूछा बहुत मैं तो तुझे बोला ही नहीं । अच्छा इस पर रंजना की मुस्कुराहट में उसकी मोटी जैसे दातों का रिश् कारा भी शामिल था । तुमने दिल्ली वाली नौकरी के ऑफर क्यों ठुकराई? यहाँ होती तो हम रोज मिला करते । बॅाल मुझे दफ्तर की दिन भर की नौकरी से टीचर की नौकरी बहुत पसंद है । इसलिए जब अवसर मिला वो भी केंद्रीय विद्यालय का । मैं उसे ठुकराना सके । तभी ऑटोवाले ने करोल बाग के एक बाजार में और तो रोक दिया । हम उतर गए ऑटो वाले को । रंजना पैसे देने लगी तो मैंने रोक दिया । पैसे देकर हम दोनों बाजार में घूमने लगे । रंजना कई दुकानों के अंदर गए । सामान उलट पुलट कर देखते नहीं, कीमतें पूछते रही, भाव बनाती रहे । उसे देखकर मुझे लगा रंजना को शॉपिंग का छत तजुर्बा हो । जैसे हमें बाजार में घूमते घंटे से ऊपर हो चुका है । लेकिन रंजना ने अभी कुछ भी नहीं खरीदा । रंजना तो लेना क्या है? उसने मेरी ओर देखा और हल्का समझ पडा । फिर वो उसी दुकान में जा घुसी जहाँ हम सबसे पहले गए थे । वो कपडों की दुकान भी काफी देर बाद उसने दो रेडीमेड सूट खरीदे । पैसे देने लगी तो मैंने उसे रोक दिया । थोडी नानू कर के बाद वो मान गई । मैंने पैसे दिए और सूट वाले पहले पकडे । फिर वो एक और दुकान में गए और तुरंत ही बाहर निकल आई । वो मुझे बाजू से पकडकर खींचती हुई से आगे बढी और एक दूसरी दुकान में जा सकता । उसने दो साडिया पसंद हैं । इस बार उसने अपना बटुआ नहीं खोला । सानिया कीमती थी । मैंने पैसे अदा की और दुकान से बाहर आ गया । बाहर निकल कर लो । शॉपिंग करना कोई आसान काम नहीं । फिर वो फुटपाथ पर लगी । दुकानों पर झुमके, बालियां और नील पॉलिश देखने पूरा बाजार घूम कर उसने दो चार चीजें खरीदी । मैंने घडी की तरफ देखा । दो बजने वाले थे मनीष मुझे जूती खरीदनी । रंजना के कहने पर मैं उसे जूतियों वाले बाजार में लेंगे । पहले उठाए मैं उसके पीछे पीछे एक दुकान से दूसरी दुकान तीसरी और तीसरी चौथी दुकान होता रहा । रंजना के संग घूमना । हालांकि मुझे अच्छा लग रहा था पर मैं एकांत में बैठकर उसके साथ बातें भी करना चाहता था । एंजिना को लेकर जो स्वप्न मैंने देखे थे उनके बारे में मैं उसे बताना चाहता था । मैंने सोचा था रंजना घंटा डेढ घंटा शॉपिंग करेगी । फिलम किसी रेस्ट्रों में बैठकर लंच के साथ साथ कुछ बातें भी शेयर करेंगे । समय मिला तो किसी पार्क में भी बैठेंगे पर मेरी इच्छा पूरी होती नजर नहीं आती थी । रंजना तीन बजे तक सैंडल ही पसंद करते रहेंगे । सेंडल लेकर जब हम सडक पर आए तो उसे जैसे गए कुछ याद हुआ है होकर मनीष एक चीज तो रह गई, क्या सामान उठाए? मैंने पूछा छोटा सा ऍफ लेना । मैं कुछ न बोला । चुपचाप उसके पीछे पीछे चलने लगा । मुझे जोरों की भूख लगी हुई । मैंने पूछा रंजना तो भूख नहीं लगी, कुछ खा लेते हैं । कई बैठकर उसने पहली बार अपनी कलाई पर बंधी घडी की ओर देखा था और समय देकर हर बडा उठी । नहीं नहीं मनीष देर हो जाएगी । साढे तीन बज रहे चार बजे की ट्रेन है । अब बस चलो । यहाँ से ऑटो कर जब स्टेशन पहुंचे चार बजने में दस मिनट रहते थे । उसने फटाफट लॉकप रूम से अपना लिया । रंजना ने छोटा छोटा सामान अपने हाथों में ले लिया था और बोली थी जल्दी करो मनीष कहीं गाडी ने छूट जाए । ट्रेन प्लेटफॉर्म पर लगी हुई थी सामान उठाए में रंजना के पीछे पीछे सीढियाँ चढने लगा मेरी सांस फूल रही थी । एक बार मन हुआ, कोहली को बुला लू लेके दूसरे क्षण अपने इस इरादे को रद्द कर के मैं रंजना के पीछे पीछे चलता रहा । रंजना ने अपना कोच ढूंढा । वह टूटा डिब्बा था । मैंने उसका सारा सामान उसकी सीट के नीचे और उसकी सीट पर रखा है । गोलमाल से अपने माथे का पसीना पूछ रही ट्रेन छूटने में कुछ मिनट ही बाकी थी । मैं डिब्बे से नीचे उतारा । रंजना के लिए पानी की बोतल लेने दवा पानी की बोतल लेकर लौटा तो देखा प्लेटफॉर्म पर खडा एक युवक खिडकी के पास बैठी । रंजना से बातें कर राहत दोनों की पीठ मेरी ओर थी । मैं कुछ फैसला बनाकर पीछे खडा हो गया । उन दोनों की बातें मुझे स्पष्ट सुनाई दे रही थी । मुझे पहचाना मैं राकेश का दोस्त कमल जाके जब आपके घर आपको देखने गया था मैं उसके साथ था तो आप मैं लखनऊ जा रहा हूँ । पिछले डिब्बे में मेरी सीट है । मैंने आपको डिब्बे में चढते देख लिया था । आपके घर जा रही है । कानपुर कौन रहता है वहाँ मेरी मौसी का घरे कानपुर में उनकी बेटी का विवाह है । मेरे घर वाले बाद में आएंगे । मैं कुछ पहले जा रही है । वो कौन है जो आपके साथ आया है वो वो तो बडे भाई साहब का कोई परिचित है । दिल्ली में नौकरी करता है फायदा अपने फोन कर दिया था । बेचारा सुबह से मेरी संघ कुलियों की तरह गूंगा मेरे अंदर जैसे कुछ कांच की तरह टूटा था । मैं तो अपनी दोस्ती को रिश्ते में बदलने के सपने देख रहा था और रंजना ने मुझे दोस्त के योग्य भी नहीं समझा । सिग्नल हो गया था और युवक अपने डिब्बे में चला गया था । मैंने आगे बढकर खिडकी से ही पानी की बोतल रंजना को थमाई और पूछा कौन था मेरे मंगेतर का दोस्त? रंजना ने मुस्कुराते हुए बताया ही था ट्रेन आगे रखने में आगे बढती गाडी के साथ साथ मैं कुछ दूर तक दौडना चाहता था । पर ना जाने मेरे पैरों को क्या हो गया था वे जैसे प्लेटफॉर्म से ही चिपक गए थे । मैं जहाँ खडा था वहीं खडा रहेंगे । धीमे धीमे गाडी रफ्तार पकडते हैं । मेरे रंजना के बीच का फासला लगातार बढता जा रहा था । देखते देखते रंजना एक बिंदु में तब्दील हो करेगा । एक गायब हो गए । मैं बारी कदमों से स्टेशन से बाहर नहीं । मुझे बेहद गर्मी महसूस हुई । इस मौसम को न जाने अचानक क्या हो गया था? सवेरे तो अच्छा वाला और खुशनुमा था पर अब आग बरसा रहा था । क्या वाकई मौसम गर्म था? क्या मेरे अंदर जो आग मच रही थी वो उसका सीखता?

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Sound Engineer

‘गौरतलब कहानियां’ कहानियों का संग्रह है जिसमें 17 चुनिंदा कहानियां शामिल है। कहानियों की सबसे बड़ी खूबी है कि वे लिसनर्स को निराश नहीं करेंगे। इन कहानियों में समाज, रिश्‍तें, परिवार, सामाजिक संस्‍कर, रूढि़यों, सीख शामिल हैं, जो लिसनर्स को उनसे जोड़ता है। Voiceover Artist: RJ Nitin Script Writer: Subhash Neerav
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