Made with  in India

Buy PremiumDownload Kuku FM
गौरतलब कहानियां (कहानी संग्रह) - गोष्ठी in  | undefined undefined मे |  Audio book and podcasts

गौरतलब कहानियां (कहानी संग्रह) - गोष्ठी in Hindi

Share Kukufm
678 Listens
Authorहरप्रीत सेखा, सुभाष नीरव
‘गौरतलब कहानियां’ कहानियों का संग्रह है जिसमें 17 चुनिंदा कहानियां शामिल है। कहानियों की सबसे बड़ी खूबी है कि वे लिसनर्स को निराश नहीं करेंगे। इन कहानियों में समाज, रिश्‍तें, परिवार, सामाजिक संस्‍कर, रूढि़यों, सीख शामिल हैं, जो लिसनर्स को उनसे जोड़ता है। Voiceover Artist: RJ Nitin Script Writer: Subhash Neerav
Read More
Transcript
View transcript

गोष्ठी वो चाहकर भी उसे मना नहीं कर सके । जबकि मदन के आने से पूर्व वह रेड मन से तय कर चुके थे कि इस काम के लिए साफ साफ हाथ जोड लेंगे । कह देंगे मदन ये काम उनसे ना होगा । उन्हें क्षमा करो । वैसे वह गोष्ठी में उपस् थित हो जाएंगे । जरूरत होगी तो चर्चा में हिस्सा भी लेंगे । पर पर्चा लिख पाना उनके लिए संभव ना होगा । और वह कोई आलोचना क्या? समीक्षक भी तो नहीं है । क्या इतना ही सब कुछ था उनके भीतर भीतर से उठे इस प्रश्न से वो बच नहीं पाए । उन्हें अपने आपको टटोलना पडा । केवल यही बातें जहन में नहीं थी । कुछ और भी था । एक अहम भी । लब्धप्रतिष्ठित कथाकार करुणाकर को हिंदी सहायताएं में कौन नहीं जानता है । दो सौ से अधिक कहानियाँ लिखी है उन्होंने दस कहानी संग्रह और छह उपन्यास छप चुके हैं । उनके अब तक उन जैसा वरिष्ठ लेखा के एक नवोदित लेखक की कहानियों पर गोष्ठी में पडने के लिए पर्चा लिखे भी यही काम रह गया है । क्या ऐसे अधिक तकलीफ उन्हें गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे शख्स यानी डॉक्टर भगवन से थी? डॉक्टर भगवन के पिछले इतिहास को करुणाकर बखूबी जानते थे । डॉक्टर भगवन की साहित्य में देख ही क्या है? अवसरवादिता उनमें कूट कूट कर भरी पडी है । जाटू कालिता और तिकडमों के बाल पाल यूनिवर्सिटी में हिंदी विभाग के हेड और कुछ एक पुरस्कार और सलाहकार समितियों के सदस्य बने बैठे हैं उस पर दम ये कि उनसे बडा साहित्यकार विद्वान कोई है ही नहीं । तो ऐसे व्यक्ति की अध्यक्षता में एक नए लेकर की पुस्तक पर पर्चा पढेंगे नहीं । लोगों को कहने का अवसर मिलेगा कि करुणा कर चुके गया है । इसलिए अब आलेख पाठों पर उतर आया है । गोष्ठियों में जाना वो वैसे भी पसंद नहीं करते हैं । पिछले दो तीन वर्षों से तो गोष्ठियों में आना जाना छोडी रखा है । तीन दशकों की अपनी सहायता की यात्रा में उन्होंने इन गोष्ठियों को बहुत करीब से देखा है । पूर्वाग्रह युक्त चर्चा होती है वहाँ या फिर उखाडने जमाने की राजनीति । अधिकांश वक्ता तो लेखक की पूरी पुस्तक पढकर ही नहीं आती और बोलते ऐसे हैं जैसे उनसे बडा विद्वान या साहित्य पार्टी है ही नहीं । एक गुटका लेखक दूसरे गुट के लेखक को नीचा दिखाने की कोशिश में रहता है । रचना पर बात न होकर रचनाकार पर बातें होने लगी हैं । रचना पीछे छूट जाती है और रचनाकार आ गया जाता है । ये तमाम बातें थी जो उनके दिमाग में घूम रही थी । चक्करघिन्नी सी पत्नी को भी वह अपना निर्णय बता चुके थे । पत्नी की राय इसपर भिन्न थी । उनका मत था कि अगर वह मदन की पुस्तक पर चर्चा नहीं लिखना चाहते तो वह कोई बहाना बना दे । कह दे कि वह बहुत व्यस्त हैं, गोष्ठी में नहीं पहुंच सकते या फिर कह दें के उन्हें कहीं और जाना है । उसमें वो पत्नी की राय से सहमत नहीं हुए । बोले बहाना क्यों बना हूँ? स्पष्ट कह देने में क्या हर्ज है? पर्चा लिखने के लिए मैं ही रह गया हूँ । क्या बहुत मिल जाएंगे जो खुशी खुशी पर्चा लिखने को राजी हो जाएंगे । लेकिन क्या वह स्पष्ट मना कर पाए? नहीं, ऐसा चाहकर भी नहीं कर पाए । मदन आया, आते ही उनके चरणस्पर्श किए । उनके ही नहीं उनकी पत्नी के भी बैठने के पश्चात जो ले में से निमंत्रण पत्र का प्रूफ निकालते हुए वो बोला भाई साहब मैंने आपका नाम साधिकार आलेख पाठ में दे दिया है । ये देखिए और निमंत्रण पत्र का प्रौं उनकी ओर बढा दिया । लेकिन मदन वो अपना वह के पूरा भी नहीं कर पाए थे की मदन बीच में ही बोल उठा देखिए भाई साहब एक ही जनपद के होने के नाते मुझे छोटे भाई को इतना अधिकार तो आप देंगे । मुझे पूरा विश्वास है आप तो जानते ही हैं गोष्ठियों में लोग केस पूर्वाग्रह से बोलते हैं । नए लोगों को तो बढते देखी नहीं सकते । एक आती हैं जो कृति को पूरा पढकर बोलते हैं । नए लोगों के प्रति आपके हृदय में जो है जो भावना है वो आज कितने अग्रज और वरिष्ठ लेखकों में कहीं करूणाकर इसपर निरुत्तर हो गए । थोडा रुककर मदन उनकी पत्नी की ओर देखते हुए बोला अभी जी हम तो भाई साहब को ही अपना गुरु मानते हैं । कॉलेज टाइम सही, इनकी कहानियों के फैन रहे हम एक कथाकार जो गत तीन दशकों से निरंतर लिख रहा है वो नए लेकर की कहानियों पर कुछ लिखे । ये तो एक लेखक को अपना सौभाग्य ही समझना चाहिए ना । क्यों भाभी जी बात की पुष्टि के लिए मदन ने उनकी पत्नी के चेहरे पर अपनी दृष्टि कुछ एक पल के लिए स्थिर कर दी । लेकिन प्रत्युत्तर में जब वह चुप नहीं कुछ बोली नहीं तो उसने अपनी नजरे वहाँ से हटा ली है । मदन के आने से पूर्व उसके भीतर क्या कुछ उमड घुमड रहा था । लेकिन अब मौनधारण किये बैठे थे । हो मदन ही बोले जा रहा था और वह सुन रहे थे चुपचाप अब देखिए ना ये जो संख्या है ना जो मेरी पुस्तक पर गोष्ठी करवा रही है । उसके सचिव महोदय निमंत्रण पत्र का मसौदा देखकर बोले कि भाई इसमें से कुछ नाम हटा दो तो भाई साहब हमने भी स्पष्ट कर दिया कि चाहे कोई नाम उडा दो पर करूणाकर जी का नाम नहीं करने देंगे, चाहे गोष्ठी हो चाहे न हो । इस बीच उनकी पत्नी उठकर रसोई घर में चली गई । चाय का पानी रखने वो चाय बना कर लाये तो मदन फिर शुरू हो गया भाई साहब गाडी का भी इंतजाम हो गया है । आपको ले भी जाएगी और छोड दी जाएगी । अरे नहीं मदन मैं आ जाऊंगा बहुत देर की चुप्पी के बाद वो बोल पाएंगे नहीं भाई साहब! गाडी का इंतजाम तो मैंने कर लिया है । बाबा साहब तैयार रखियेगा कहाँ बसों में धक्के खाइएगा कुछ देर बाद मदन हाथ जोडकर उठ खडा हुआ जाने के लिए पैसा उसे कुछ स्मरण हुआ या रोककर बोला गोष्ठी के पश्चात अपना लेख मुझे दे दीजिएगा । साहित्य सरोकार में छपने के लिए सुरेंद्र को दे दूंगा । रात का खाना खाने के बाद वह मदन की पुस्तक लेकर बैठ गए तो उस तक दो तीन दिन पहले ही मिल गई थी । इस सूचना के साथ की इस पर उन्हें आलेख पाठ कराना है । लेकिन सेवाएं उलट पलट देखने के वो एक भी कहानी नहीं पढ पाए थे । आप तो पर्चा लिखना था तो उस तक बढकर करुणाकर बेहद निराश हुए तो एक कहानी को छोड कर एक भी कहानी उन्हें झूठ नहीं पाएंगे । लेखक ने अपनी कहानियों में कोई नई बात नहीं कही थी । जो कत्थे उठाए थे उन्हें पूर्ववर्ती लेखक पहले ही बहुत खूबसूरत ढंग से उठा चुके थे । कहानी आज की कहानी धारा में कहीं भी टिकती नजर नहीं आई थी । उन्हें किसी किसी कहानी में शिल्प को लेकर उन्हें लगा मानव लेखक ने अनावश्यक कुश्ती की हूँ । जिन दो एक कहानियों ने उन्हें हुआ था, वे अपने अंत को लेकर कुछ मार्मिक हो गई थी । हिंदू अपनी बुनावट में पार्ट नहीं कम बोझिल अधिक लगी थी । दो एक दिन असमंजस और दुविधा की स्थिति में रहे । वो करेगा एक उन्होंने निर्णय ले लिया । क्या जरूरी है कि ये कमजोर किताब पर मेहनत की जाए? नहीं, वो पर जा नहीं देखेंगे । पत्नी का कहना दूसरा था उनके विचार में उन्हें एक बार वायदा कर लेने के बाद पर्चा वश्य लिखना चाहिए । उसने अपना महत्व दिया । कहानियाँ आपको जैसी भी लगी हैं आप वैसा ही लिखी । खराब तो खराब, अच्छी तो अच्छी आबाद नहीं लिखेंगे तो मदन को बुरा लगेगा । कितना आदर करता है आपका? उन्होंने अपने निर्णय पर पुनर्विचार क्या? उन्हें लगा? पत्नी भी कहती है । उन्हें वैसा ही लिखना चाहिए जैसी कहानियां होने लगी हैं । इसमें लेखक का ही भला है । कहानी की समृद्ध परंपरा का उल्लेख करते हुए आज की कहानी धारा में मदन की कहानियों की पडताल करनी चाहिए । उन्हें और उन्होंने ऐसा ही किया । उन्होंने रचना को सामने रखने की कोशिश की । रचनाकार को नहीं । गोष्ठी के दिन वह तीन बजे ही तैयार होकर बैठ गए । गोष्ठी चार बजे से प्रारंभ होनी थी । साढे तीन तक गाडी को आ जाना चाहिए था । वो तब तक तैयार किए गए आप को एक बार बैठकर पडने लगे । टाइपिंग में रह गई । अशुद्धियों को ठीक करते रहे । आलेख पांच एक पेज का हो गया था लेकिन उन्हें लगता था की उन्होंने अपनी बात खुलकर आलेख में कहती है । एक एक कहानी के आज आप गए थे वो साढे तीन हो रहे थे और गाडी अभी तक नहीं आई थी । वोट कर बाहर गेट तक देखने गए और फिर लौटकर कमरे में आकर बैठ गए । पंद्रह मिनट और बीते तो उन्हें बेचैनी होने लगी । तभी एक स्कूटर बाहर आकर होगा । एक दुबला पतला सा युवक अंदर आया और बोला करुणाकर जी मैं आपको लेने आया हूँ । गाडी का क्या हुआ? उन्होंने पूछा गाडी अध्यक्ष को लेने गई है इसीलिए मदन जी ने मुझे आपको लेने भेज दिया । चलिए चले देर हो रही है । उन्होंने अपना झोला उठाया और स्कूटर के पीछे बैठ गए । चार बज चुके थे लेकिन धूप में अभी भी तेजी थी । गोष्ठी निर्धारित समय से एक घंटा देर से शुरू हुई । अध्यक्ष के आ जाने पर गाडी से डॉक्टर भवन के साथ मदन भी उतारा । प्रसन्नचित सा पहला पर्चा करुणाकर जी का ही था । पर्चा पडने में उन्हें कोई पंद्रह मिनट लगे । कुल में आकर उनके पर्चे का सार ये था कि आपने समग्र प्रभाव में संग्रह की कहानियां पाठक को प्रभावित करने में असमर्थ है । कहानियाँ एकरस और उबाऊ तो है ही, लेखक के सीमित अनुभव संसार का भी परिचय करती है । यथार्थ को पकडने वाली लेखकीय दृष्टि, जीवन और समाज सापेक्ष नहीं है । कथ्यों में विविधता का अभाव है और भाषा शिल्प के स्तर पर संग्रह की कहानियां बेहद कमजोर है । कई कहानियां अपनी संरचना तक में बिखर गई और वे बेहद आप्रासंगिक भी लगती है । गत तीन चार वर्षों में लिखी गई इन कहानियों को पढते समय लेखक की लेखनी में कोई क्रमिक विकास या बदलाव दृष्टिगोचर नहीं होता, बल्कि सभी का आनिया फार्मूलाबद्ध और एक ही ढर्रे पर नहीं कहानियाँ लगती है । कुल मिलाकर नए लेकर का ये पहला संग्रह लेखक के प्रति कोई उम्मीद नहीं । जगह तक अंत में अपने पर्चे में उन्होंने आशा व्यक्त की थी कि लेखक आने वाले समय में अपने अनुभव को व्यापक बनाएगा और बेहतर कहानियाँ लेकर ही पाठकों के समक्ष उपस् थित होगा । दूसरा पर्चा गीतांजली का था । अपने पर्चे में गीतांजलि नहीं, करूणाकर के पर्चे के ठीक उलट बातें लिखी थी । लेखक की कहानियों को प्रेमचंद की परंपरा से जोडते हुए ये सिद्ध करने की कोशिश की थी कि लेखक अपने समाज, अपने परिवेश से कहीं गहरे जुडा है और वह जीवन के जटिल से जटिल होते जाते यथार्थ को ईमानदाराना ढंग से अभिव्यक्ति प्रदान करने में समर्थ हुआ है । कहानियों को बेहद पठनीय बताते हुए गीतांजली ने रेखांकित करने की चेष्टा की थी कि लेखक आपने पहले ही संग्रह से नए कहानीकारों में एक अलग ही पहचान बनाता दिखता है । करुणाकर पर्चे को सुनकर दंग रह गए । वो लेखक की कहानियों पर पर्चा था कि लेखक आंख मूंदकर स्तुतिगान कहानियों को श्रेष्ठ बताने के पीछे जो तर्क दिए गए थे वे बेहद लचर, बचकाने और पोटले लगे । आलेख पाठ के बाद चर्चा का दौर आरंभ हुआ । वक्ताओं की सूची में पहला नाम डॉक्टर वर्मा का था जो मूलता कभी थे लेकिन आलोचना में भी खासा दखल रखते थे । डॉक्टर वर्मा ने गीतांजलि के पर्चे पर अपनी सहमती प्रकट करते हुए दो चार बातें कहानी का और उसकी कहानियों के पक्ष में और जोडी और आग्रह किया की इन कहानियों को वर्तमान सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिपेक्ष में भी देखा जाए । लेखक को बदलते परिवेश के प्रति जागरूक और सचेत बताते हुए डॉक्टर वर्मा ने जोर देकर कहा कि लेखक अपनी कहानियों के जरिए यथार्थ की ताहों तक पहुंचने की कोशिश करता हुआ दिखाई देता है । कहानियां पठनीय ही नहीं, प्रमाणिक और विश्वसनीय भी हैं और पाठकों को बांधे रखने तथा उन्हें कहीं गहरे तक छूने में समर्थन अंत में करुणा करके पर्चे को खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि बडे और स्थापित लेखकों को नए लेखकों के प्रति संकीर्ण और संकुचित नजरिया नहीं रखना चाहिए । चर्चा के दौरान हर चर्चाकार नहीं करना करके पर्चे को एक सिरे से खारिज किया और मदन की कहानियों को श्रेष्ठ बताया । कई वक्ताओं ने तो यहां तक कहा कि करुणाकर जीने कहानी को लेकर जो पैमाना बना रखा है, उसी पैमाने से वो सभी की कहानियों को ना आपने की कोशिश करते हैं । यही वजह है कि उन्हें दूसरों की कहानियां कमजोर और खराब लगती है । एक अन्य वक्ता का विचार था कि करूणाकर जी ने जिन मापदंडों की अपने पर्चे में चर्चा की है, उनकी अपनी कहानियां उन पर पूरी नहीं उतरती । तो फिर नए लेखकों से वो क्या आशा कर सकते हैं? एक वक्ता का कथन था की कितने आश्चर्य की बात है । एक लेखक अपनी तीन दशकों की कथा यात्रा में कोई क्रमिक विकास करता दिखाई नहीं देता । वहीं लेकर कैसे किसी नए लेखक की दो तीन वर्षों के दौरान लिखी गई कहानियों में क्रमिक विकास तलाशने लगता है । सारी चर्चा लेखा की कहानियों पर ना होकर, करुणा करके पर्चे के इर्द गिर्द ही सिमट कर रह गई थी । हर चर्चा का प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से उनके पर्चे की कडी आलोचना कर रहा था । लगता था गोष्ठी कहानी संग्रह पर ना होकर करुणा करके पर्चे पर रखी गई हूँ । तभी एक वक्ता ने बोलने की अनुमति मांगी । करुणा करने उसकी ओर देखा और चौक पडे हैं । ये तो अरुण है । एक जमाना था । दोनों धुंआधार लग रहे थे और छप रहे थे । दोनों में कहानी लिखने की होड लगी रहती थी । दोनों कहानियों पर जमकर घंटों बहस करते थे । अरुण कह रहा था, मुझे अफसोस है कि मेरे पूर्ववर्ती वक्ता लेखक की कहानियों पर ना बोल कर व्यक्तिगत छींटाकशी और आरोप आदि लगाने में ही अपना समय बर्बाद करते रहे । कहानियों पर शायद मैं बोली नहीं सकते थे । मेरे पास लेखक की पुस्तक नहीं थी । सिर्फ गोष्ठी की सूचना अखबार में पढकर चला आया था तथा मदन की कहानियों पर राय तो नहीं दे सकता । पर हाँ, यहाँ ये वर्ष कहना चाहूंगा कि किसी कहानी रचना पर सभी एकमत हो संभव नहीं है । फिर भी किसी के मध्य तथा विचार से असहमती यदि को रखता है तो उसे अपनी सहमती शालीन ढंग से उचित और ठोस तर्क देकर ही व्यक्त करनी चाहिए और एक साहित्यिक गोष्ठी की गरिमा को बनाए रखना चाहिए । अरुण के बाद कोई वक्ता शेष नहीं था । अध्यक्ष महोदय ने लेखक को उसकी पहली कथा कृति के प्रकाशन पर बधाई और आशीर्वाद दिया तथा कहा कि लेकर की कहानियां इस बात का प्रमाण है कि वह अपने समय और समाज के प्रति बेहद जागरूक है । लेखक में एक समर्थ कथाकार की पूरी संभावना निहित है । करूणाकर के पर्चे का उल्लेख किए बिना उन्होंने कहा कि कुछ वरिष्ठ लेखक नए लेखकों की कहानियों पर बोलते हुए ये भूल जाते हैं कि वह भी कभी नये नये लेकर की पहली कृति में ही वो सभी कुछ पाना चाहते हैं जो मैं अपने पूरे लेखन में नहीं दे पाते हैं । उनकी मंशा नहीं, लेखक को उत्साहित और प्रेरित करने की नहीं वरन निरुत्साहित करने के अधिक होती है । हिन्दू एक नए और समर्थ लेखक को ऐसी आलोचना की चिंता ना करते हुए सतत रचनाशील रहना चाहिए । गोष्ठी की समाप्ति पर जलपान की व्यवस्था हो गई थी । सभी दो दो तीन तीन के ग्रुप में इधर उधर छिटक कर खडे हो गए थे और आपस में बातें करने लगे । अरुण और करुणा करे कोने में खडे थे । कई वर्षों बाद मिले थे दोनों इस समय उनकी बातचीत का विषय डॉक्टर भवन है तो मैं मालूम है करुणा कक्ष डॉक्टर भुवन कल अभिनंदन ग्रंथ छापने की योजना चल रही है । चाय का गुड भरते हुए करुणा करने फुसफुसाते हुए कहा हाँ, यही तो रह गया है और उस योजना में मदन जैसे लोग सक्रियता से जुडे हैं । अपने पीछे शिष्यों की भीड जुटाए रखना और उन्हें अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना तो इन्हें खूब आता है । रोड करुणा करने । खाली प्याला एक ओर रखते हुए कहा एका एक उनकी दृष्टि कुछ दूरी पर खडे मदन और गीतांजलि पर चली गई । समीर भी साहित्य सरोकार का संपादक सुरेंद्र खडा था । बहुत अच्छा बचा लेगा । अपने सुरेंद्र गीतांजली की तारीफ कर रहा था । जी शुक्रिया गीतांजलि ने मंद मंद मुस्कुराते हुए ये कहानियां भी बहुत अच्छी लगती हैं । अभी हाल ही में इनकी एक बेहद अच्छी कहानी सत्ययुग में छपी है । बडी होगी आपने मदन बीच में ही बोला था नहीं नहीं पढ पाया सत्युग देखता नहीं दिनों सुरेंद्र ने उत्तर दिया आप साहित्य सरोकार के लिए कहानी भेजी ना कहानी भी भेज देंगे । पहले आप इन गाये पर्चा तो चाहती है । साहित्य सरकार में मदन ने गीतांजलि को बोलने का अवसर ही नहीं दिया । जरूर जाऊंगा पर्चे की कॉपी और पुस्तक की एक प्रति भिजवा देना । तभी मदन को डॉक्टर भवन ने बुला लिया । अच्छा मदन हम चले मदन होने गाडी तक ले गया । डॉक्टर भवन का बायां हाथ मदन के कंधे पर था । गाडी में बैठने से पूर्व बोले मदन तुमने अपनी पुस्तक साहित्यश्री पुरस्कार के लिए समिट क्या नहीं जी, अभी नहीं काम करोगे भाई अंतिम तिथि में बस पांच छह दिन तो शेष है । आज कल में समेट कर दो । अरे भाई तुम युवाओं के लिए ही तो ये पुरस्कार है । हम लोग नहीं करोगे तो क्या हम घोडे करेंगे? डॉक्टर भगवन को मिलाकर जब मदन लौटा तो उसकी नजर एक कोने में खडे करुणाकर पर पडी वो उनके समीप जाकर होता । आप कुछ देर रुकिए भाई साहब, गाडी अभी दस पंद्रह मिनट में लौटेगी तो आपको नहीं भाई मेरी चिंता छोडो मैं चला जाऊंगा । करूणाकर जी का स्वर्ण ठंडा था ऐसे कैसे हो सकता है भाई साहब? मदन ने जोर देकर उन्हें रोकने का प्रयत्न किया तभी समीप खडा अरुण बोला करुणाकर तुम बात खत्म कर के आओ । मैं बाहर सिगरेट लेता हूँ तब तक और वहाँ से हट गया तो थोडी देर की बात है भाई साहब अरुण के जाते ही मदन फिर करुणाकर जी को मनाने नहीं नहीं जब तक गाडी का इंतजार करूंगा तब तक तो बस भी मिल जाएगी । मुझे तुम चिंता ना करो । अरुण मेरे साथ है चढा देगा बस में कहते हुए वो धीमे धीमे उसको ढक भरने लगे जिस ओर अरुण गया था । उनके हटते हुए मदन को कुछ लोगों ने घेर लिया था और उसे गोष्ठी के सफल होने की बधाई देने लगे थे ।

Details

Sound Engineer

‘गौरतलब कहानियां’ कहानियों का संग्रह है जिसमें 17 चुनिंदा कहानियां शामिल है। कहानियों की सबसे बड़ी खूबी है कि वे लिसनर्स को निराश नहीं करेंगे। इन कहानियों में समाज, रिश्‍तें, परिवार, सामाजिक संस्‍कर, रूढि़यों, सीख शामिल हैं, जो लिसनर्स को उनसे जोड़ता है। Voiceover Artist: RJ Nitin Script Writer: Subhash Neerav
share-icon

00:00
00:00