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आप सुन रहे हैं को को एफ एम पर सुभाष नीरव द्वारा लिखित कहानी है और तलब कहानी मैं हूँ ऍम आपको को ऐसे सुनी जो मनचाहे देखते हैं । डाॅ । वे दिन मेरी बेकारी के दिन थे । मैं इंटर कर चुका था और नौकरी की तलाश में था । माता पिता मुझे और आगे बढाने में अपनी असमर्थता प्रकट कर चुके थे । घर में मुझसे बडी दो बहने थी रे मिला और शानदार विमला जैसे तैसे हाईस्कूल कर चुकी थी लेकिन शांत आठवीं जमात से आगे ना बढ सकें । माता पिता वैसे भी लडकियों को आगे बढाने के पक्ष में कतई नहीं थे । उनका विचार था की अधिक पढी लिखी लडकियों के लिए अपनी बिरादरी में वर ढूंढने में काफी मुश्किलें आती हैं । दोनों बहनें घर के काम काज में माँगा हाथ बटाती थी । उन दोनों की बारियां बंधी थी । सुबह का काम विमला देखती थी । शाम का शानदार बीच बीच में माँ दोनों का साथ देती रहती थी पडोस के और पडा आंटी से विमला सिलाई कढाई सीख चुकी थी और शांत अभी सीख रही थी । विदायक सरकारी फैक्ट्री में वर्कर थे । फैक्ट्री में सुबह आठ बजे से लेकर शाम पांच बजे तक वो लोहे से कुश्ती लडते और शाम को हारे हुए योद्धा की भांति घर में घुसते । पिछले एक साल से फैक्ट्री में ओवर टाइम बिल्कुल बंद था । ओवर टाइम का बंद होना फैक्ट्री के वर्करों पर गाज गिरने के बराबर होता था । केवल तनख्वाह में जैसे तैसे ही खींच खासकर महीना निकलता । हमारे घर की आर्थिक स्थिति ठीक ना थी बल्कि दिन ब दिन और चरमराती जा रही थी । ऊपर से जवान होती लडकियों और बेकार बैठे लडकी की चिंता ये दोनों कारण थे जिसके कारण पिता दिन रात परेशान रहते हैं । चिंता में उनका स्वास्थ्य बिगडना जा रहा था । धीरे धीरे उनके शरीर पर से मास गायब हो रहा था और हड्डियाँ उभरने लगी थी । वो नौकरी से रिटायर होने से पूर्व दोनों लडकियों की शादी कर देना चाहते थे । ऐसी स्थितियों में उनकी नजर मुझ पर टिकी थी और वह कहीं भीतर से आशान्वित भी थे कि उनका बेटा एक विकट स्थिति में उन का सहारा बनेगा और उनके कंधों पर पडे बोझ को कुछ हल्का करेगा । मैं उनकी आंखों में तैरती अपने प्रति उम्मीद की किरण को नाउम्मीदी के अंधेरे में तब्दील नहीं होने देना चाहता था । इसीलिए मैं उस समय किसी भी तरह की छोटी मोटी नौकरी के लिए तैयार था लेकिन नौकरी पाना इतना आसान नहीं था । बेगारी के मरुस्थल में भटकते हुए मुझे एक साल से भी ऊपर का समय होने जा रहा था । पर कहीं से भी उम्मीद की हल्की सी बी किरण दूर दूर तक नजर नहीं आती थी । मेरे सामने जो बडी दिक्कत थी वो ये कि घर पर कोई अखबार नहीं आता था । पडोस में मैं किसी के घर बैठ कर अखबार पढना नहीं चाहता था । दरअसल मैं हर उस सवाल से बचना चाहता था जिसे हर कोई मुझे देखकर मेरी तरफ उछाल देता था । क्यों कहीं लगे या भी यूँही ये सवाल का नकारात्मक उत्तर देते हुए मुझे हीनता का बोध पैदा हो जाता है और मुझे लगता है मैं एक बेकार, आवारा, फालतू, निकम्मा लडका हूँ जिसे आपने बुढाते बात पर जरा भी तरस नहीं आता । उस जैसे लडके तो ऐसी स्थिति में माँ बाप का सहारा बनते हैं और एक मैं हूँ कि अखबार के लिए मैं सुबह नौ दस बजे तक घर से निकल पडता । दो किलोमीटर की दूरी पर बने पनवाडी के लोगों पर पहुंच चलते हुए अखबार उठाता एक पर हिंदी का अखबार देखता तो दूसरे पर अंग्रेजी का अखबार कोई दूसरा पढना होता तो मुझे इंतजार भी करना पडता । अखबार में से सिचुएशन वैकेंट के कॉलम देखता, कागज पर नोट करता हूँ और पोस्ट ऑफिस जाकर एप्लीकेशन पोस्ट करता । ठीक इन्हीं दिनों पिता का परिचय लादे शाम से हुआ था । राधेशाम ठेकेदार था जो सरकारी गैरसरकारी कारखानों से तरह तरह के ठेके लिया करता था । संसद के विभाजन में पिता लाहौर के जिस गांव से अपना सब कुछ गंवा कर भारत आए थे, राधेशाम भी उसी के आसपास के इलाके का था । यही कारण था कि पिता उसमें दिलचस्पी लेने लगे थे और एक दिन राधे शाम को अपने घर पर ले आए थे । जी जब हमारे सरकारी क्वार्टर के बाहर आकर रुकी तो वो माल लेके बच्चों के लिए कौतूहल का विषय थी । आज पडोस वालों के लिए आगे बढकर देखने की चीज खैरातीलाल और उसके घर के बाहर जीत पिता ने राधेशाम से अपने बच्चों का परिचय कराया था । ये है मेरी दोनों लडकियाँ विमला और शांत और ये है मेरा बेटा सुशील अभी पिछले साल इंटर किया है । सेकंड डिवीजन में राधेश्याम ने बंद गले का कोट पहन रखा था । पहले में मफलर सर पर रोजेदार डोभी कुल मिलाकर वो हमारे लिए आकर्षण का केंद्र था । पिता ने सुनाते हुए खासकर मुझे और माँ को कहा था अरे इनकी बहुत सी फैक्ट्रियों में जान पहचान है । ठेकेदारी का कारोबार है इनका । लाहौर में जिस गांव में हम लोग रहते थे, उसके पास के गांव में थे । इनके पिता जी यानी राधेशाम अपनी बिरादरी का आदमी है । पिता ये कहना चाहते थे । इसके बाद जैसा कि प्रायः होता, पिता उन दिनों की यादें ताजा करने लगे थे । सन सैंतालीस के विभाजन के दहशत ज्यादा किस्से सुनने लगे थे कि कैसे वे लोग अपनी सारी जमीन जायदाद, रुपया, पैसा, मकान आदि छोड छोड कर कटी हुई लाशों के ढेरों में छिपते धू धूकर जलते माहौल लोग गलियों में से डर डर कर भागते निकलते प्यास लगने पर छप्पडों यानी पोखरों का गंदा पानी पीते जान बचाते किसी तरह हिंदुस्तान में घुसे थे । उनका अंदाजे बयां ऐसा होता है कि हमारे रोंगटे खडे हो जाते हैं । दूसरी बार जब राधेशाम घर आया तो पिता ने अपने मन की बात कहती है आपकी तो जान पहचान है जी, कहीं किसी फैक्ट्री में अंडा धोना हमारे सुशील को इंटर पास है, हाँ करूंगा मैं बात आप चिंता ना कर रहे हैं । राधेश्याम ने दिलासा देते हुए गा अरे अपने को नहीं लगाएंगे तो किसी लगवाएंगे आप फिक्र ना कर रहेगी । जहाँ गांव में लगवा दूंगा । बस फिर क्या था पिता की दिलचस्पी इरादे शाम में बढ गई । जिस दिन उन्हें मालूम होता वो फैक्ट्री आया है । वो उसे जबरदस्ती अपने साथ घर ले आते हैं । इस प्रकार राधेशाम का आना जाना हमारे घर में बढने लगा था । अब वह जब कभी फैक्ट्री आता सीधा हमारे घर पहुंचता चाहे पिता घर पर होते ये ना होते । पिता की अनुपस्थिति में राधेशाम जब भी हमारे घर में घुसता, पूरे घर में चहल पहल शुरू हो जाती है । घर में तेल घी ना होने पर पडोस से मांग तुम कर प्याज की पकौडियां चली जाती जायेंगे कब उठाकर? राजेश शाम को पकडाने के लिए दोनों बहनों के बीच होड लग जाती है । मार आधी शाम से अपना ही घर समझो । कहती रहती खाने का वक्त होता तो जबरन खाना खिलाया जाता है । वोट कर जाने लगता तो बहने उससे थोडी देर और रुकने का इसरार करने लगती है । पिता जी आ जाए तो चले जाइएगा और राधेशाम कई कई घंटे हमारे यहाँ बिताकर लौटने लगा । इस बीच कई महीने बीत गए राधेशाम हमारे यहाँ आता ठहरता, गपशप करता और खा पीकर चला जाता हुआ था तो बहनों के चेहरे खिल उठते हैं और जाता तो उन्हीं चेहरों पर उदासी के रंग टूट जाते । पिता उससे बहुत उम्मीद लगाए बैठे थे । हर रोज वो सोचते आज वो आएगा और कहेगा मैंने सुशील के बारे में पहला फैक्ट्री में बात कर ली है । कल से उसे भेज दो होता । इसके उलट आदेशा माता इधर उधर की बातें करता । खस्ता हजार आता खा पीकर चलता बनता । जितनी देर वो घर पर रुकता, पिता की आंखें और कान उसी की ओर लगे रहते हैं । पिता की बेसब्री का बांध टूट रहा था । आखिर उन्होंने हिम्मत कर एक बार फिर राधेशाम से मेरे बारे में बात की तो जैसे सोते से ज्यादा था । अरे मैं तो भूल ही गया । आपने भी कहा याद दिलाया । राधेशाम कुछ सोचते हुए बोला आप फिक्र ना करेगी । अब आपने याद दिलाया है तो इसे कहीं ना कहीं जरूर आना दूंगा । इसके बाद उसने खाना खाया और चला गया । पिता इतने भर से फूलकर गुब्बारा हो गए थे । काफी देर तक वो हमारे सामने उसका गुडगान करते रहे और फिर पूरा एक महीना राधेशाम दिखाई नहीं दिया । एक दिन दोपहर के समय हमारे क्वार्टर के बाहर जी बात कर चुकी शांत दौड कर बाहर निकली । देखा राधेशाम था तो उसके हाथ में एक पैकेट था जिसे लेकर शांत झूमती हुई । भीतर दौड गई थी । क्या है मेरी प्रश्न को उस नहीं सुना कर दिया था । वो पैकेट विमला के हाथ में था । रिन्दा के चेहरे पर भी खुशी के भाव गहराये थे । मैं ठीक सा उठा क्या है इसमें तो मैं क्या कुछ भी हो । अंकल हमारे लिए लेकर आए हैं और तो मैं कल जलन होती है । शांत ने पलट घर मेरी की का जवाब दिया । मुझे उसे ऐसी उम्मीद करता ही नहीं थी । आज तक वह मुझसे ऊंची आवाज में नहीं बोली थी । मैं कुछ और कहता है कि बीच में मैं आ गई । आ रहे कुछ नहीं है । दोनों की साडिया हैं । इसमें मैंने मंगवाई थी । अब तक चुप बैठक आदेशा में गाये । खाते हुए बोला अहमदाबाद गया था, लौटते वक्त सोचा लेता जाऊँ सस्ती हैं । फिर मेरी और मुखातिब होते हुए बोला तो हमारे लिए भी पैंट शर्ट देखी थी पर सोचा मालूम नहीं तो मैं कौन सा रंग पसंद है इसीलिए नहीं ला सका । अबकी बार जाऊंगा तो पूछ कर जाऊंगा । शाम छह बजे तक वो हमारे घर पर रहा । अहमदाबाद की बातें बताता रहा । माँ और बहनें तन्मय होकर उसकी बातें सुनते रहेंगे । पिता के फैक्ट्री से लौटने का वक्त हुआ तो राधेशाम उठकर जाने लगा । माने का उन के आने का वक्त हुआ है तो आप जा रहे हैं । इतने दिनों बाद आए हैं । उन से मिलकर ही जाते हैं । लादे शाम को रोकना पडा । कुछ ही देर बाद पिता आ गए । वो तपाक से उनसे मिला और उनके कुछ बोलने से पहले ही अपने अहमदाबाद चले जाने की बातें करने लगा । पिता चुपचाप उसकी बातें सुनते रहेंगे । कुछ बोले नहीं । मैंने उठकर पहले ही दूसरे कमरे में चली गई थी और माँ रसोई में जाएगा । पानी चढाने लगे थे । कुछ क्षणों तक कमरे में चुप्पियों का बोलबाला रहा होगा । एक राधेशाम ने खोला । अगले हफ्ते फीरोजाबाद आगरा जा रहा हूँ । वहाँ की कई फैक्ट्रियों में मुझे काम है । सुशील के लिए बात करूंगा । पिता अभी भी चुप थे । वो सुन रहे थे । बस सुशील को साथ लेता जाऊंगा । आमने सामने बात हो जाएगी । राधेशाम मेरी ओर देखकर बोला कभी आगरा गए हो । ताज देखने की चीज है । इस बार ने उसे भी देख लेना हूँ । मेरे मन में ताजमहल देखने की इच्छा पिछले कई सालों से थी । कॉलेज की ओर से दूर गया था । छात्र छात्राओं का सब ने सौ सौ रुपए मिले थे । मैं सौ रुपयों के कारण न जा सकता था । इधर ही कहीं देखते तो अच्छा रहता है । इतनी दूर पिता के मुझ से काफी देर बाद बोलते होते थे । लगता था जबरन आवाज को भीतर से बाहर धकेलने की कोशिश कर रहे हैं । आ रहे भाई साहब एक दो साल उधर कर लेगा । कुछ एक्सपीरिएंस हो जाएगा तो इधर किसी अच्छी फैक्ट्री में लगवा दूंगा । आप फिक्र क्यों करते हैं? उस दिन में बहुत खुश था । एक दिन पहले ही मैंने अपनी इकलौती पैंट शर्ट धोकर प्रेस कराकर रख ली थी और दिनों की अपेक्षा उस दिन में बहुत जल्दी उठ गया था और नहा धोकर तैयार होकर बैठा था । पिता के फैक्ट्री चले जाने के तुरंत बाद राधेशाम पहुंचा था । कुछ देर बैठने के बाद उसने आवाज लगाई अरे भाई तुम लोग जल्दी तैयार हो जाओ नहीं तो लौटने में देर हो जाएगी । मैं तैयार था और आदेश आ मुझे देख चुका था, लेकिन उसका तुम लोग मुझे हैरान करने लगा । थोडी देर में सारी स्थिति साफ हो गयी । शांत और बिमला तैयार होकर बाहर निकल आई थी । मेरा सारा उत्साह का एक ठंडा पड गया । मेरी इच्छा कपडे उतारकर फेंक देने की हुई । बहनों की ऐसी मुझे अंदर तक चुभ रही थी । राधेशाम की चालाकी पर मुझे गुस्सा आ रहा था । मेरी और पिता की अनुपस्थिति में राधेशाम और बहनों के बीच जरूर कोई खिचडी पकती है । मुझे नौकरी दिलाने नहीं । इस बहाने विमला और शांत के साथ मौज मस्ती के उद्देश्य से जा रहा था । वो कोई नहीं जाएगा । मैं न शांत, न विमला मैं जीतकर कहना चाहता था पर चीख मेरे अंदर ही तरफ अडाकर दम तोड गयी । माँ को भी शायद इस बारे में अधिक जानकारी नहीं थी । दोनों लडकियों को तैयार हुआ देख उसने पूछा तुम दोनों कहाँ चली? तैयार होकर राधेशाम उठकर आगे बढाया । बोला बच्चियाँ हैं आज देखने की उत्सुकता होना स्वाभाविक है । बच्चों में इस बारें सुशील के संग ये भी घूम लेंगे । आग्रह कहाँ रोज रोज जाना होता है वो तो ठीक है पर इन से पूछे बिना मैं कैसे लडकियों को भेज सकती हूँ । ये फिर कभी चली जाएंगे । अभी तो आप सुशील की नौकरी के लिए जा रहे हैं । जाने कहाँ कहाँ, किन किन फैक्ट्रियों में जाना रुकना पडेगा आपको । अब सुशील कोई ले जाइए माँ की बात पर आदेश शाम भीतर ही भीतर मन मसोसकर रह गया था । ऐसा उसके चेहरे से लग रहा था । बहनों के चेहरे लटक गए थे । लटके हुए चेहरे लिए वह पैर पटकती हुई अंदर दौड नहीं थी । क्षण भर को गमी जैसा वातावरण बन गया था । राधेशाम चुप था । मैं दुविधा में थी । मैं खुश भी था और नहीं थी । चालू राधेशाम ने मेरी और देख कर कहा और जीत में जा बैठा । जी स्टार्ट हो चुकी थी लेकिन मैं अभी भी माँ के पास असमंजस की स्थिति में खडा था । माने पल्लू से बने हुए रुपये मुझे धम आए और कहा रख लें जरूरत पड जाती है । कभी कभी मैं चुपचाप जाकर जीत में बैठ गया । मेरे बैठते ही जीत झटके से आगे बढ गयी । दोपहर का समय था जब फिरोजाबाद के फैक्ट्री में हमारी जीत पूरे रस्ते न राधेशाम मुझसे बोला था ना मैं राधेशाम से जीप से उतरकर वो सीधे फैक्ट्री में जा घुसा था । मैं वहीं जीत में बैठा रहा । कोई घंटे के बाद वो फैक्ट्री से निकला । मुझे अब कुछ कुछ भूख प्यास लगाई थी जी तो फिर सडक पर दौड रही थी । आधे घंटे के सफर के बाद जी फिर एक फैक्ट्री के बाहर हूँ की मुझे उतरने का इशारा हुआ । मैं उधर कर राधेशाम के पीछे हो लिया फॅार मुझे बिठा वो फैक्ट्री में घुस गया । बीस पच्चीस मिनट बाद राधेशाम लौटा तो बेहद खुश नजर आ रहा था । मैंने सोचा नौकरी की बात पक्की हो गई लगती है । शायद रिकॅार्ड बैठे एक आदमी से उसने हंस हंस कर बातें की और फिर उसे लेकर फैक्ट्री से बाहर बने खोखे पर चाय पीने लगा । रिसेप्शन के शीर्षक के दरवाजों के पास मैं उन्हें चाय पीता देखता रहा । दोनों को चाय पीते देख मेरी भूख व प्यास एका एक तेज होती थी । वहाँ से निकलने के बाद जी फिर दौड रही थी सडक पर राधेशाम । अब कोई फिल्मी गीत गुनगुनाते हुए मस्ती में जीत चला रहा था । एक का एक बोला मालूम है अभी हम जिस फैक्ट्री में गए थे उस फैक्ट्री से मुझे नए डेढ लाख का मुनाफा होने जा रहा है । ये मेरा अब तक का सबसे बडा ठेका होगा । उसके चेहरे पर रौनक थी । वो किसी फिल्म में हीरो की तरह जीत चला रहा था । झूमता गाता सिटी बजाता सरकार से हवाईजहाजों में इस्तेमाल होने वाली कांच की छोटी चिमनियों का ठेका मिला है । एक लाख चिमनियों का ये फैक्ट्री बनाने को तैयार हो गई है । प्रति चिमनी फैक्ट्री का ढाई रुपए खर्च होगा । साढे तीन में मुझे देगी । मैं उसे सरकार को पांच में दूंगा । यानी एक लाख चिमनियों पर नेट, डेढ लाख का लाभ । उसकी खुशी का कारण अब मुझे छुपा नहीं था । उसकी खुशी के पीछे मेरी नौकरी आदि की कोई बात नहीं थी । ये तो उसके ठेके में हो रहे मुनाफे की बात थी । मेरी नौकरी की बाबा तो उसने कोई बात भी की होगी । इसमें मुझे संदेह हो रहा था । राज शाम के अनुसार अब हम आगरा के बहुत नजदीक चल रहे थे । ऐसे पूर्व रास्ते में एक छोटी फैक्ट्री में राधेशाम ने मेरी नौकरी की बात की थी । मैंने जब फिलहाल कोई वैकेंसी नहीं होने पर खेद प्रकट किया था, साथ ही भविष्य में जरूरत पडने पर बुलाने का आश्वासन देते हुए मेरे पार्टिकुलर सादी रख लिए थे । हमारी जी आप एक बार फिर एक फैक्ट्री के बाहर हूँ कि इस बार राधेशाम भीतर घुसा तो दो घंटों से भी अधिक समय लगाकर बाहर निकला । जीत में बैठे बैठे उसका इंतजार करते । मैं तंग आ गया था । इसी बीच मैंने फैक्ट्री से बाहर बने हैंडपंप से पानी पिया था और वक्त काटने के लिए इधर उधर चहलकदमी करता रहा था । पानी पीने के बाद मेरी भूख तेज हो गई थी । सुबह हल्का सा नाश्ता करके ही चला था । मैं पास ही ढाबे नुमा एक दुकान थी । सोचा दादी शाम के बाहर निकलने से पहले कुछ खा लूँ । पैसे तो थे ही मेरे पास मगर तुरंत ही जाने क्या सोचकर मैंने अपने इस विचार को झटक दिया । दरअसल मैं भीतर से मैं भी था कि कहीं राधेशाम बाहर निकल आए और मुझे खाता हुआ न देख ले । मैं जीत में बैठ गया और अपना ध्यान इधर उधर उलझाने लगा । लेकिन ये सिलसिला अधिक देर तक न चला । रोक के मारे मेरे सिर में हल्का हल्का दर्द शुरु हो चुका था । तमिल आधे शाम बाहर निकला । शाम के साढे चार का वक्त हो रहा था । तब जीप में बैठे हुए राधेशाम बोला इस फैक्ट्री का मैनेजर बाहर गया है । होता तो तुम्हारी बात पक्की थी, अपना यार है । साथ साथ पढे हम जी स्टार्ट कर वो होता तो मैं ताज दिखा दे । फिर लौटते हैं । बहुत देर हो जाएगी नहीं तो रात ग्यारह से पहले नहीं पहुंच पाएंगे । मैं चुप था । ताज देखने की इच्छा ने थोडी देर के लिए मेरी भूख को कम कर दिया था । कुछ किलोमीटर चलने पर ही ताज देखने लगा था । राधेशाम बोला वो देखो ताज कितना सुन्दर लगता है । दूर से ऐसा लगता है जैसे कोई खूबसूरत सफेद परिंदा आकाश में उडने को तैयार बैठा हो है ना मैं उत्सुकता भरी नजरों से ताज देखने लगा देख लिया । अब यहीं से लौट चलें क्यों राधेशाम जीत धीमी करता हुआ बोला मुझे लगा मेरी सारी उत्सुकता का किसी ने जैसे हाथ बढाकर बेरहमी से गला घोट दिया हूँ । फिर कभी आएंगे सभी तो देखेंगे । करीब से ग्रुप में देखने में कुछ और ही मजा है । जी तो रुक गई थी ज्यादे शाम की आके मेरे चेहरे पर स्थिर थी । शायद वो मेरी प्रतिक्रिया जानने की कोशिश कर रहा था । नहीं, मैं तो आज ही ताज देखकर जाऊंगा । इतने नजदीक पहुंचकर में बिना देखे नहीं जाऊंगा । मैं हैरान था । मेरे गले से ये सब कैसे निकला? मेरा चेहरा तना हुआ था । आगे अभी भी ताज को देख रही थी । राधेशाम ने बिना कुछ बोले जीप सडक पर दौडानी आरंभ कर दी थी । कोई आधे घंटे बाद हम ताज के बाद थे । जी पार्कर राधेशाम बोला मैं यही ठहरता हूँ तो मैं आधे घंटे में देख दाग कर रहा हूँ । मैं यहीं पर मिलूंगा । ठीक है मैं अपनी अंतडियों में तेजी से चूडी की तरह कुछ घुमडता हुआ महसूस कर रहा था । भूख और सिर दर्द की वजह से खूबसूरत देखने वाला ताज अब मुझे कताई अच्छा नहीं लग रहा था । हनुमान ने भाव से मैं ताज की ओर बढा । दूर से खूबसूरत सफेद परिंदे सा देखने वाला ताज मुझे अब किसी विशाल सफेद देते ऐसा लग रहा था उसकी चारों में ना रहे । मुझे लंबी लंबी बाहों के समान लग रही थी । एक औरत की लाश को अपने चंगुल में फंसाए बहत्तर फस रहा था । लगता था सिर की नसे भात पडेंगे पेड के अंदर ियों में ढल हो रही थी । मैं इस देते के सारे से खुद को जल्द ही बाहर निकाल लाया । बाहर निकल कर देगा । राधेशाम कहीं नहीं था । जीत भी खाली थी । लोगों के आते जाते हो जाऊँ में मैं राधेशाम को ढूंढता रहा था । कुछ देर तक भूख और सिर दर्द के कारण मुझे चक्कर आ रहा था । लगता था किसी भी क्षण गिर पढूंगा हेगा । एक मुझे सामने कुछ दूर पर बने रेस्तरां के बाहर बिची एक बैंच पर राधेशाम पूरियाँ खाता दिखाई दे गया । वो जल्दी जल्दी मोन चला रहा था । ठीक इसी क्षण मैंने अपने भीतर ऊपर से नीचे चींटी जाती तेजाब के धारको महसूस किया । मैं अधिक देर वहाँ खडा नहीं रह सका । मेरा मन जैसे तैसे बस गडकर पहुंचने को हो गया । शुभलता माने चलते समय कुछ रुपये मेरी जेब में डाल दिए थे ।
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