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वाह वाह ज्योतिंद्रनाथ प्रसाद में फरमाया जवानी की वाहवाही बडे बडे होने की है, जो आकर चली जाए वह जवानी देखी जो जाकर न जाए । वह बुढापा देखा और मसला मशहूर है कि जाने वाले की इज्जत धूम धडाके से होती है और डेरा डंडा डालने वाला सरे आम बेज्जत हो जाता है । वो हमें यौवन मिला, चर्चा हो गई । शौहरत यूरोप में पहुंची, वहाँ के हवाले हमारा स्वागत किया और हिप्पियों का एक डेलिगेशन हमें सु संस्कृत करने । यहाँ नाम का पहला पाठ हमें विरोध का मिला । इसे हमने अपने डेट पर आजमाया । एक दिन डेड बोले, बेटे उनको लाभ में कहते हैं नॉर्ड! ज्योतिंद्र ने कहा, कार्डो में गुलाब है । यूरोपीय मित्रों ने हमारी पीठ जमकर थपथपाई । वाॅरेन युवा राॅड तो मैं अपना सबका जल्द याद कर लेता हूँ । हमें वाहवाही मिलती गई और हम अपने प्रखर बुद्धि से उन्हें परिचित करा दे गए । ज्योतिंद्र में कहा, हम पोशाक पर आए । हमारी कोशिश रहेगी कि शरीर पर वस्त्र है, मगर तन दगा न रहे, इसलिए इस काम में हमारी गलफ्रेंड हमें मात दे गई । वेदो पोशाक के विरुद्ध जेहाद छेडने पर उतार हो गई । लेकिन ऊपर से निर्देश मिला ना नहीं । अभी नहीं । शायद उन्हें अभय था कि वे यूरोपियन की बजाय सीआईएम घोषित कर दिए जाएं । धीरे धीरे रीतिवाद के प्रवर्तकों ने ज्योतिंद्र सरीके युवाओं को अपने ही रंग में जंग डाला । इसके कारण बताए चारों और भूख और झूठ का साम्राज्य हाई । इसमें हमने कुंठा और तनाव को जन्म दिया है । वी ऍम भी नहीं झेल सकता, क्योंकि तुम्हारे यहाँ भी भीषण बेरोजगारी, हाई और ज्योतिंद्र नतमस्तक थे । टिप्णियों ने हमारे विनम्रता का ढोल विदेशों में पीट दिया था । इतनी होने आगे समझाया ये हे पे बात ट्राई ऐसा वैसा आवाज नहीं आई । दुनिया मैं यहाँ एक नोया भरम लाने का धो तक है । इसमें किसी जात का बंधन नहीं किसी समाज और घर का भूटान नहीं । इसकी सबसे बडी विशेषता है कि इसकी अपनी कोई विजेता नहीं । वी आर मॉल फ्री जो दिन जैसे युवाओं ने भी घोषणा की नहीं हम बिहारी है है न भारतीय । हम पृथ्वी पुत्र हैं तो डैड ने कहा हमने प्रतिनिधि की संतान है बेटे तो जो दिन जवाब दिया और ऍम कॉल में बेटा बेटा सुना नहीं हम कोई बंधन बंधन नहीं मानते । आप भी हमारे बाद में पास रख सकते हैं । डाॅ । चकित हो गए । बोले क्या सच तुम बोलो को भी आमंत्रित करते हो जो तीन साल में कहा, हम दुविधा में थे तभी मॉम डैड के पीछे पड गई और इस तरह हमारी वसुदेव कुटुम्बकम की भावना का रसास्वादन करने से हमारे डाॅट वंचित रह गए । ज्योतिंद्र में कहा अब हम पूरे पीछे फॅस के पैंट शर्ट झुके । कंधे पर बैग, बकरा, मार्गा, दाढी सर्वर, घने बाल और जेवरिया पर हरे कृष्णा हरे राम । अब तक यौन शिक्षा एक वर्जित फल थी । हमने इसे तोडकर बाबा धन का अनुसरण किया और जब हमारे पूर्वज विद्रोही तो हम क्यों पीछे जो दिन बोल दे गए । हमें संसार को धुलना था । अस्तु नजार जरूरी था । हमने ढंग से श्री गणेश करने की बात सोची मगर स्टैंडर्ड ले आया और हम रम बोर्ड विस्की की और मुखातिब हुए । जल्द ही हम इसके आदी हो गए । अब हाल यूज था की बोतलों पर बोतलें ढाले जाओ न जाएगी । लेटलतीफी फॅार हमने अभी उन का सहारा लिया था । जय हो चीनी बात चाहूँ कि क्या चीज ढूंढ निकाली । जरा सी ली रही की रंगीन दुनिया की सैर करनी आरंभ कर दी । अब हम अफीम पिकनिक में या तो किसी गार्डन में बडे होते हैं । ये अपने गेराज में ज्योतिंद्र बोले हम सीधे कॉम्पिटिशन में थे । जब ऐसे में हमारे अमरीकी मित्र दावा करते कि पंद्रह वर्षों के भीतर अमेरिका में एक एलएसडी राष्ट्रपति होगा । तब हम भी पिनक में मेज पर घुसे । मार मारकर कहते हैं, अगर क्या दस वर्ष के अंदर भारत में अफीम जी सत्य ना? जो इस मिनी इमरजेंसी का काम बाॅस मगलरों का कोर्ट हासिल कर दिया तो अब अफीम के अभाव में हमारे हालत यू हो गई । लेकिन एक दिन इसका गजब का समाधान निकल आया । हुआ यूं कि कोबरे हमें दस लिया । काजू हम मरे नहीं मत सर, वही लोड हो गया । ज्योतिंद्र आगे बताते हैं, उसके दस में से जो नजर आया, वह मत पूछिए । अब फिल्म से भी बढकर आनंद की प्राप्ति हुई । तब से हम कोबरे पालने लगे और उनसे स्वयं को दस वाकर कई गए । घंटों तक रंग बिरंगे लोगों की सैर करने लगे । विदेशी मित्र दंग रह गए । बोले वाॅल तुमने तो हमें भी मार दे दी । ज्योतिंद्र भूलकर बैलून हो गए कहाँ? आखिर यार किसके है? वहाँ के अखबारों में हमारा नाम हो गया । यहाँ इसलिए नहीं कि सेंसर था, कहते हैं दो बोलो का नशा है वाह वाह में यह नशा सर्जन अगर बोला हम स्वयं को भूल अपनी औकात नजरंदाज कर रहे हैं, जो तीन दिन में आगे कहा, मगर जब से डेमोक्रेसी नाम की किसी दुर्लभ संस्था वो यहाँ बचाने का प्रयास किया गया है तब से हमारे यूरोपीय मित्रों की सारी वहाँ हुआ ही हमारे कुछ राजनीतिज्ञ हम उम्र ले उडे हैं और वह नशा जो सचमुच साहब के दर्ज से भी बढ चढकर था । हम से उतर कर हमारे राजनीतिज्ञों पर चढ गया है । अब हमारी हालत खस्ता है । हमारी रंगीन दुनिया छीन चुकी है भारतीय हमें भारतीय मानने को तैयार नहीं यूरोपियनों को हम स्वीकार्य नहीं पता नहीं कहाँ त्रिशंकु की भांति हम लडके बडे हैं ।