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Ep17 - Salam Fatuha in Hindi

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682 Listens
AuthorJyotindra Prasad
समाज में व्याप्त हर क्षेत्र के बारे में ज्योतिंद्र नाथ प्रसाद के व्यगात्मक विचार... Author : ज्योतिंद्र प्रसाद Voiceover Artist : Harish Darshan Sharma
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सलाम पदों हा प्रिय श्रोताओं प्रधानमंत्री अपने दिल्ली को भले ही तीसरी सदी में ले जाएँ । ज्योतिंद्रनाथ प्रसाद क्या फतुहा अठारह शताब्दी नहीं हो जाएगा? यहाँ के लोग नरेंद्र मोदी के नहीं बल्कि महात्मा गांधी के भक्त हैं । कई वर्षों बाद प्रशासन ने यहां की सडकों की मरम्मत क्या यहाँ के इंजीनियर, ठेकेदार और नेता कई टन काॅरीडोर रोडा ईद पर धर खा गए? श्रोताओ हाफ मानेंगे की अब खाने के अन्य नहीं तो लोगों का नए सर्किट पदार्थो भी और रोक करना खाद्य समाधान के हाल में शुभसंकेत है । वैसे कहते तो यही है कि इंजीनियर, ठेकेदार और नेताओं की जाती ही ऐसी है कि इन है यही सब कुछ खाकर जीवन निर्वाह करना पडता है । जातिवादी बिहार में इस जाती को साधु महात्माओं की जाती जो कंदमूल, फल, फूल और ग्रस्त जो अनाज खाते हैं, से कहीं ज्यादा श्रद्धा की दृष्टि से देखा जाता है । खाने भी नहीं । बात से तो लगता है कि हम रोबोटों से भी आगे बढ गए हैं । इस मसले की पैदावार से देश के भविष्य के प्रति आशा बदलती है । यह सोचकर कि शताब्दी पुराना पुल इतना जर्जर हो चुका है कि वह किसी भी क्षण ट्रैफिक को लिए दिए नदारद हो सकता है । सरकार ने वर्षों पूर्व बने पुल का निर्माण कार्य ठप कर दिया । लाखों रुपयों की लागत पर एक डायवर्जन बनाने का हुक्म दिया । काम के बदले अनाज की योजना इंजीनियर, ठेकेदारों और नेताओं के भूख प्याज को नजर में रखकर बनाई जाती है । डायवर्जन एक दिन में ही बैठ गया । ज्यादा ही कम थी सरकार को इंजीनियरों की भूख प्याज का जरा भी अनुमान में था । नया पुल निर्माण और डाइवर्जन लाने के बाद भाई लोग पुराने पुल पर नजर गडाए हुए हैं । फुल बनता रहा है, टूटता रहा है । भूख को खाना मिल रहा है, बहुत दूर है । अस्पताल के डॉक्टर दवा खा रहे हैं । अस्पताल में इनके लिए आपको और कोई भी मारी नहीं मिलेगा । स्वस्थ आदमी यहाँ नहीं की जरूरत नहीं करता । उसे मालूम है कि एक बार यहाँ आया नहीं कि संक्रामक रोग घर पकडा । जोशी जी चाहे आपको मालूम नहीं कि भदोरा प्रखंड एक ऐसा प्रखंड है जहाँ अधिकारियों का तबादला पुरस्कार समझा जाता है । यहाँ के ग्रामीण बाढ में नहीं डूबते बल्कि अधिकारी गोदा खाते हैं और रिलीज प्राप्त करते हैं । यह अलग बात है कि बीडीओ साहेब निलंबित हो जाते हैं । भदुआ एक औद्योगिक क्षेत्र है । यहाँ के कल कारखानों में कच्ची शराब का भी अपना महत्व है । स्कूल और ट्रैक्टर जैसे सार्वजनिक उद्योगों को रोड कर दारू जैसे कुटीर उद्योग को फलने फूलने से महात्मा गांधी के भारत का सपना पूरा हुआ दिखता है । नरेंद्र मोदी के भारत में स्कूटर, ट्रैक्टर कारखाने के कर्मचारी अन्यत्र कर रहे हैं । भला ऐसे करमवीर और कर्मनिष्ठ नौकर दुनिया में और कहा मिलेंगे । यह सरासर गलत आरोप है कि वे कारखानों के पार्ट पुर्जे बेचकर अपने बीवी बच्चों की परवरिश करते रहे हैं । तो होता हूँ ज्योतिंद्र की इस बात पर गौर फरमाएं अगर लोग सार्वजनिक उद्योगों की ईद उखाडकर देशी शराब के उद्योग धंधों में लगा रहे हैं तो इसे मोहन दास कर्मचंद गांधी की आत्मतुष्टि ही होगी । नरेंद्र मोदी जी इक्कीसवीं सदी के आदमी है । महात्मा गांधी बीस शताब्दी के इंसान थे । दोहरा इस से भी आगे शताब्दी में जाए यह काम गौरव की बात नहीं है, छोटा हूँ । आपको कई ऐसे लोग मिले होंगे जो भारत की प्राचीन गाथा कहते नहीं थकते और कई तो उसकी प्राचीनता लौटाने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने पर तुले हैं । हाँ, तो ऐसे महापुरुषों से खाली नहीं जो कई सभा समितियों के पदों पर विराजमान होकर काॅस्ट आ बहुत ध्यानम् की योगमुद्रा में इस कस्बे को जनरल एसके सिन्हा प्रस्तावित पाटलीपुत्र में पिरो देना चाहते हैं । इनकी कार्यपद्धति और जीवन शैली से तो यही लगता है कि इन्हें नौकरी और अब सरीफ दोनों से वितृष्णा है । जाहिर है कि ऐसे समाजसेवियों का खर्च वर्ष भी समाज ही वहन करता होगा । समाज नहीं नहीं, खेत खलियान, मार मकान और धन धान्य से पूर्ण कर अपने को धन्य मान लिया है । धन्य है वसुंधरा । ऐसे सबूत पाकर कपूर भी धन्य है । ऐसी वसुंधरा पाकर चौदह हूँ । नरेंद्र मोदी विदेशी निवेश पर ज्यादा जोर देते रहे हैं । उनका यह देशी विदेशी चक्कर समझ में नहीं आता । यहाँ समझ में आता है कि कई विदेशी चीजें हमारे यहाँ बनकर देशी का खिताब पा रही है और कई स्वदेशी वस्तुएं तस्करों के फजल से विदेशी कहलाकर धडल्ले से बिक रही है । यहाँ देशी देशी नहीं हो सकीं । प्रदेश ही रही, लाना है हम पर की इतनी तरक्की करने के बावजूद भी कायदे की अपनी शराब ने बना सके । रूस ने दुनिया को वोट कर दिया । फ्रांस नाॅलेज और इसी तरह कई नामीगिरामी देशों ने कुछ मैं कुछ अपना एक राष्ट्रीय पे दिया । पर हमने क्या दिया अगर फतुहा राष्ट्रीय जरूरत की तरह ठहरा में ही कुछ आजाद करने के चक्कर में है तो समस्त भारत को इसका शुक्रगुजार होना चाहिए । आशा है श्रोताओं की यह वार्ता आपकी सेहत बनाए रखेगी ।

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समाज में व्याप्त हर क्षेत्र के बारे में ज्योतिंद्र नाथ प्रसाद के व्यगात्मक विचार... Author : ज्योतिंद्र प्रसाद Voiceover Artist : Harish Darshan Sharma
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