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सोनिया से मुलाकात मेरी आत्मकथा लगभग तैयार थी । कई दिनों की मेहनत से से लिखा था अपनी आत्मकथा में हरसंभव सच्चाई लिखने की कोशिश कर रही थी । आत्मकथा में मौजूद हर एक चरित्र की सच्चाई लिखने की कोशिश की थी । इसमें मैंने काल्पनिकता का सहारा बहुत ही कम लिया था परन्तु ये आत्मकथा कैसी लिखी हुई थी इसके बारे में फैसला तो कोई से पढकर ही कर पाएगा । अब मुझे एक ऐसे शख्स की तलाश थी क्योंकि मेरी किताबनुमा आत्मकथा को पढकर इसके बारे में आपने निष्पक्ष सुझाव दे । पहले तो मैंने इसके लिए शिखा पर विचार किया परन्तु अपनी किताब के पहले पाठक के रूप में मुझे शेखा कुछ ठीक नहीं लगी क्योंकि इस आत्मकथा में ऐसे कई अध्यान थे क्योंकि बहुत ही आपत्तिजनक थे जिसे पढकर शिखा के विचार मेरे बारे में बदल सकते क्योंकि मेरी इस आत्मकथा में पम्मी मौसी के बाद सबसे नकारात्मक चरित्र मेरा था । मुझे डर था कि मेरी इस आत्मकथा को पढने के बाद कहीं शिखा मुझसे मेल झोल बनना कर दी । परंतु मेरी आत्मकथा का विमोचन करना शिखा की मदद के बिना संभव था । यानी मैं अपनी ये आत्मकथा जिसको मैंने किताब की शक्ल दी है उसके बारे में शिखा को बताना ही होगा । लेकिन शिखा को पढने के लिए देने से पहले मैं ऐसे किसी ऐसे शख्स को पढने के लिए देना चाहती थी तो मुझे तो जानता ही हूँ परन्तु मेरी निजी जिंदगी के बारे में न जानता हूँ या फिर बहुत ही कम जानता हूँ । एक का एक मुझे अपनी बचपन की दोस्त सोनिया का खयाल आया । सोनिया मेरे इस किताब को पढने के लिए एकदम सही थी क्योंकि एक तो सोनिया और मैं बचपन के दोस्त थे । हम दोनों बचपन से एक दूसरे को जानते थे । दूसरा मेरी शादी के लगभग दो साल पहले उसकी शादी हो गई थी । सोनिया के शादी के बाद मेरी उससे कोई भी मुलाकात नहीं हुई थी । इसे एक बात संभव थी कि उसे मेरी निजी जिंदगी के बारे में बहुत कम जानकारी हो सकती है और फिर मेरे लिए सोने पर सुहागे वाली बात ये थी कि सोनिया को बचपन से ही साहित्य से गहरा लगाव था । वो एक लेखक बनना चाहती थी । कुल मिलाकर सोनिया को अपनी आत्म गधा पडने के लिए देना मेरे लिए सबसे अच्छा था परन्तु इसमें एक समस्या थी क्योंकि सोनिया से मेरी मुलाकात कई सालों पहले हुई थी । इस वजह से मेरे पास उसका कोई फोन नंबर वगैरा नहीं था जिससे कि मैं उससे संपर्क कर सकती हूँ । लेकिन कहते हैं ना की आवश्यकता अविष्कार की जननी है । सोनिया से संपर्क करने में मेरी मदद फेसबुक ने की । यानी मैंने फेसबुक पर सोनिया को खोज निकाला । हुआ यूं कि मैंने सोनिया के बारे में आपने कई सहेलियों से पता क्या, लेकिन किसी के पास भी उसका किसी प्रकार का कोई संपर्क नंबर वगैरा नहीं था । कभी एक दिन मेरे दिमाग में सोनिया को फेसबुक के जरिए खोजने का खयाल आया तो मैं बिना कोई समय गंवाए सोनिया को फेसबुक पर खोजने की अपनी कोशिश करने लगी और फिर आखिरकार कुछ मेहनत के बाद मैंने सोनिया को खोज निकाला । सोनिया को मैं फेसबुक पर कई वर्षों की बाद देख रही थी । उसकी फेसबुक आईडी के मुताबिक वो एक लेखक बनना चाहती थी और साहित्य से जुडी एक संस्था चला रही थी । ये जानकारी मेरे लिए काफी सकारात्मक थी । मैंने बिना समय बर्बाद किए उसे फेसबुक पर एक संदेश भेजा जिसमें मैंने अपना मोबाइल फोन नंबर लिखा हुआ था और मेरे संदेश भेजने के कुछ ही समय बाद मुझे फोन आया हलो हाँ जी कौन? मैंने फोन पर कहा क्या मेरी बात मुक्ता से हो रही है? फोन करने वाली ने कहा वहाँ मुक्ता बोल रही हूँ आपको अरे पागल में सोनिया बोल रही हूँ सोनिया यार कितने सालों बाद तुम्हारी आवाज सुनने को मिल रही है । तुम यकीन नहीं करोगी कि मुझे तुमसे बात करके कितनी खुशी मिल रही है । तुम कहाँ हो? आज कल क्या करती हूँ? परिवार वगैरह सब ठीक है यार तुम तो सवाल पर सवाल किये जा रही हूँ । ये बताओ तुम भी खूब हाँ मैं बिल्कुल ठीक हूँ । तुम बताओ मैं भी गम बढिया हूँ और सुनाओ कहा रहती हूँ आजकल मैं तो घर पर आई हुई हूँ । फेसबुक पर तुम्हारा सन्देश देखा तो मैं अपने आप को रोक नहीं सकी और तुम से बात करने को फोन कर दिया । यार क्या बच्चों जैसी बात कर रही हूँ ये सब बातों को छोडो मैं तुम से मिलना चाहती हूँ तो आज वो लोग कहाँ पर हो तो बोला तो घर पर हूँ घर पर यार मुझे तो तेरे घर का पता नहीं है सुना है बहुत दूर है यार मैं के के घर पर अच्छा ठीक है ठीक ही नहीं जल्दी से आ जाता । अच्छा बाबा आ रही हूँ आ नहीं रही हूँ अभी अब मैं इंतजार कर रही हूँ । ठीक है तो मैं अभी आई सोनिया से फोन पर बात करने के बाद मैं उसके घर जाने के लिए तैयार होने लगी । में अपने साथ अपने लिखी आत्मकथा भी ले जाने लगी ताकि वो इसे पढकर अपना सुझाव दे सके । कुछ समय के बाद में उसके घर पहुंच गई । आओ जी स्वागत है आपका मेरे खरीब खाने में । सोनिया ने मुझे देखकर खुशी का प्रगटावा करते हुए कहा तो भी रहा तेरे मजाक करने की आदत नहीं बदली । मैंने कहा नहीं यार मैं कोई मजाक नहीं कर रही तो मैं ये नहीं पता कि तुम से मिलकर मुझे कितनी खुशी हो रही है लेकिन ये तुमने अपना क्या हाल बना रखा है वो सब छोड मेरी बात सुन मैं खास काम के लिए तुम्हारे पास आई हूँ खासकर ऍम यार मैंने सुना है तो में लेखक बन गई हूँ और साहित्य से जुडी कोई संस्था चला रही हूँ । हाथ में ठीक सुना है । मैंने कुछ किताबें लिखी हैं और मैं सरस्वती साहित्य अकैडमी के नाम से एक संस्था चला रही हूँ । लेकिन तो मुझसे सबके पूछ रही हूँ वो क्या है ना मुझे तुमसे मदद लेनी है । मदद कैसे मदद? मैंने एक छोटा सा उपन्यास लिखा है । मतलब मतलब कि मैंने कहानी लिखी है और मैं चाहती हूँ कि तुम उस कहानी को पढो और उसके बारे में अपना विचार दो । तुम लिखती हूँ वह तुम तो बडी छुपीरूस्तम निकली अच्छा ये बताओ लिखा क्या है और किस बारे में है? क्या लिखा है और किस बारे में है ये तो मैं नहीं बताउंगी । वहाँ मैंने जो लिखा है वो अपने साथ चाय हूँ । तुम्हे से पढकर खुद ही देखना होगा कि मैंने क्या लिखा है । ये भी ठीक है लेकिन तो मुझे ये बताओ कि तुम इसका करना चाहती हूँ । मेरे कहने का मतलब है कि तो मैं इसको छपवाना चाहती हूँ । अभी मेरी ऐसी कोई योजना नहीं है इसीलिए मैं तुम्हारे पास आई हूँ । मैं तुम्हारी बात समझी नहीं । इसमें न समझने वाली क्या बात है । सबसे पहले तो मैं ऐसे पढो । इसके बाद तुम ये फैसला करो कि ये जो मैंने लिखा है चाहिए छपवाने योग्य है या नहीं क्योंकि कोई भी आपने किसी प्रकार की रचना को बुरा नहीं कहेगा । यहाँ तक कि एक हलवाई भी अपनी बनाई में थाई को कभी बुरा नहीं कहेगा । चाहे वो कितनी भी बुरी क्यों ना हो । इसका फैसला तो कोई दूसरा ही कर सकता है । मेरा तुम्हारे पास आने का यही मकसद है कि तो मेरे उपन्यास को पढो और पढ कर अपनी राय दो । उसके बाद तुम्हारी राय के आधार पर मैं अपना अगला कदम उठाऊंगी । अगर ये बात है तो तुम बिल्कुल सही जगह पर आई हूँ । मेरी सरस्वती साहित्य अकैडमी नए लेखकों का स्वागत करने के लिए हर पल तैयार रहती है और फिर तुम तो मेरी अपनी हूँ । मैं तुमसे इस बात का वादा करती हूँ कि मैं तुम्हारे इस उपन्यास को अपना निजी काम समझकर इसकी समीक्षा पहल के आधार पर करोंगे । कुछ देर सोनिया से बात करने के बाद में वहाँ से वापस अपने घर पर आ गई । घर में आकर में अपनी पिछली जिंदगी के बारे में सोचने लगी । अचानक से मुझे पम्मी मौसी का खयाल आया । वो आजकल कहाँ होंगी? क्या करती होंगी? मुझे याद भी करती होंगी क्या नहीं । मैं सब कुछ सोच ही रही थी कि तभी अचानक से मुझे पता नहीं क्या हुआ । मैं अपना कंप्यूटर चलाकर फेसबुक पर उन्हें ढूंढने लगी । मुझे उससे एक बार मिलना और मिलकर अपने दिल की भाषा निकालने का बहुत मन था । लेकिन मैंने कई वर्षों से उससे मिलना तो दूर, मेरे पास उसकी कोई खबर तक नहीं थी । मैं तो ये भी नहीं जानती थी कि वह जिंदा है, मर चुकी है लेकिन पता नहीं क्यों मुझे विश्वास था कि वह मुझे एक में एक दिन जरूर मिलेंगे । इसी आशा के साथ मैं फेसबुक के जरिए उसे ढूंढने लगी, लेकिन काफी खोज करने के बावजूद भी पम्मी मौसी मुझे नहीं मिली । मैं भगवान से हर पल उसकी सलामती की दुआ मांगने लगी क्योंकि मुझे विश्वास था कि मैं अपने लिखी आत्मकथा के बलबूते एक में एक दिन कामयाब जरूर हो जाउंगी और मैं अपने इस कामयाबी को पम्मी मौसी को जरूर दिखाना चाहती थी । इसका कारण ये था कि पम्मी मौसी ने मुझे और मेरे परिवार को बर्बाद करने में कोई कोर कसर नहीं छोडी थी और मैं उसे ये दिखाना चाहती थी कि उसके रचे हुए षड्यंत्रों के बावजूद भी मैं किसी ना किसी प्रकार कामयाब हो गई हूँ । हाल ही मैंने अपने परिवार को खो दिया है, लेकिन मैंने हार नहीं मानी । कुल मिलाकर में अपने जीवन पर लिखी सच्ची कहानी में पम्मी मौसी के नकारात्मक भूमिका के बारे में समाज को बताकर उन जैसे लोगों से सावधान कराने के बारे में बताना चाहती थी और ये सब उसकी जिंदा रहते हुए संभव था । इसके लिए मुझे उस को ढूंढना बहुत जरूरी था । खर एक तरफ जहां पम्मी मौसी की तलाश जारी थी, वहीं दूसरी तरफ सोनिया को मेरे लिखे हुए उपन्यास को पढने के लिए दिए हुए एक हफ्ते से ऊपर हो चुका था । लेकिन अभी तक सोनिया का इस बारे में कोई फोन वगैरा नहीं आया था । इस वजह से मैं कुछ खबर आई हुई थी । अपने उपन्यास को लेकर मेरे मन में अजीब से खयाल आने लगे जैसा कि वह से पसंद आया भी होगा या नहीं । क्या मैंने उसे निर्मल डर देखा तो नहीं देखा? या फिर क्या वह छपने के योग के भी है या नहीं? ये सब पता करने के लिए मुझे सोनिया से एक बार बात करनी होगी । लेकिन क्या वो मेरे बारे में कुछ गलत तो नहीं सोचेगी? ऍम मैंने हिम्मत करके सोनिया को फोन करके अपने उपन्यास के बारे में पूछने की योजना बताई । मैंने से फोन किया और कहा हलो सोनिया में मुक्ता बात करेंगे । हाँ, मुक्तक क्या हाल है? मैंने पहचान लिया है तो मैं सोनिया ने कहा मेरा हाल बिलकुल ठीक है । तुम अपना सुनाओ । मेरा भी ठीक है । क्या हुआ बहुत धीमी आवाज में बात कर रही हूँ । इस की वजह तुम हो मैं मैं कुछ समझी नहीं । खैर ये सब फालतू बातें छोडो और ये बताओ कि मैंने जो कहा तो मैं पढने के लिए दी थी तो मैं उसके बारे में कुछ नहीं बताया । वही तो मैं कह रही हूँ मेरे धीमी आवाज में बोलने की वजह तुम हो यानी तुम्हारी दी हुई कहानी । मैं कुछ समझी नहीं । तुम आखिरकार कहना क्या चाहती हूँ मैं फोन पर तो नहीं नहीं बता सकती तो जितनी जल्दी हो सके मेरे पास मेरे मायके वाले घर आ जाओ । बोल कर सोनिया ने फोन बंद कर दिया । सोनिया के बाद सुनकर में सुन सी हो गई । मुझे तो समझ नहीं आ रहा था की क्या किया जाए । मेरा रक्तचाप भी घटने लगा । खैर मैंने किसी प्रकार अपने आप को संभाला और जल्द से जल्द सोनिया के घर जाने के लिए तैयार होने लगी । सोनिया का घर मेरे घर से ज्यादा दूर नहीं था । पिछले में आधा घंटा के करीब समय लगता था लेकिन मेरे लिए ये आधा घंटा गुजारने का नाम ही नहीं नहीं रहा था । चुकी सोनिया ने फोन पर मुझ से ज्यादा बात नहीं की थी । इस वजह से मेरे मन में अजीब से विचार आ रहे थे । कुछ समय के बाद में सोनिया के घर के करीब पहुंच गए । सोनिया छत पर खडी मेरा ही इंतजार कर रही थी । मुझे दूर से देखकर उसने मुझे आवाज और ऊपर छत पर आने का इशारा किया । वो मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा रही थी । उसकी मुस्कुराहट देखकर मेरी जान में जान आई । उसके पास उसकी छत पर गई और कुछ देर मिलने और एक दूसरे का हाल चाल पूछने के बाद मैंने उससे कहा क्या ये सब इधर उधर की बातें छोड और सबसे पहले ये बता की तुमने मेरी वो किताब पडी या नहीं कि तुम कैसी बातें कर रही हूँ । तुमने मुझ पर इतना भी विश्वास नहीं किया तो मुझे एक काम करने के लिए होगी और मैं ऐसे नहीं करूंगी । सोनिया ने कहा नहीं ऐसी बात नहीं है । वो क्या है ना । तुम्हारा कोई जवाब नहीं आया था । इसीलिए मुझे लगा कि शायद तुम उसे पढना भूल गई हूँ । नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं । दरअसल बात यह है कि तुम्हारी कहानी पढने के बाद में बीमार हो गई थी और मुझे इलाज के लिए कुछ दिन अस्पताल में दाखिल होना पडा । क्यों क्या हुआ कि तुम अपनी कहानी से पूछ लो कि क्या हुआ? चार सहेलियाँ मत बुझाओ । साफ साफ को की बात क्या है । अच्छा बाबा तो सुना जिस दिन तुमने मुझे अपनी कहानी पडने के लिए दी थी तो मैंने उसी रात वो कहानी पूरी पढ ली थी और इस कहानी ने मेरे दिमाग पर ऐसा असर डाला की मुझे बुखार हो गया । अब ये बुखार कहानी को पढने से हुआ था या फिर ये एकमात्र सहयोग था ये मैं नहीं जानती । लेकिन मुखर इतना तेज था कि उसके अगले ही दिन मुझे अस्पताल में दाखिल होना पडा । मैं वहाँ पूरे तीन दिन तक दाखिल रही । अस्पताल से वापस आकर मैंने तुम्हारी वो कहानी एक बार फिर से बडी और पढने के बाद मैंने अपने एक मित्र जो कि लेखक है और साहित्य की समझ भी रखते हैं, उन्हें पडने के लिए दी । फिर उन्होंने क्या कहा मेरा मतलब की कहानी के बारे में उनके क्या विचार थे । उनके और मेरे विचार एक समान है । क्या यार थोडा सब्र तो करो सब बताती हूँ । ये सब रही मुझसे नहीं हो पा रहा तो मैंने ये पता तुम्हारे फोन बंद करने के बाद मैं यहाँ कैसे पहुंची हूँ । मतलब मैंने क्या कहा था । वैसे तो मैं कुछ याद नहीं है । तुमने मुझे इस अंदाज में अपने घर बुलाया कि मैं तो डर गई सारे रास्ते यही सोचती रहे कि मुझसे कोई गलती तो नहीं हुई है । खैर छोडो इन बेफिजूल की बातों को और ये बताओ की कहानी के बारे में तुम्हारे और तुम्हारे मित्र के क्या विचार है वही तो बता रही थी लेकिन तुम को बोलने का मौका ही नहीं दे रही हूँ । अच्छा अच्छा बोलो में जो कहानी लिखी है वह बहुत ही बढिया है । ये कहानी समाज के लिए अनमोल मोटी के समान है की शिक्षा देने और समाज को एक नई राहत देने के काम आ सकती है । हमारी कहानी सीधा दिल और दिमाग पर असर करती है । इसमें चुंबी गुड है यानी पाठक को लगातार पडने के लिए आकर्षित करती है जो कि पार्ट था किसी एक बार पडना शुरू करता है वैसे पूरा खत्म किए बगैर रह नहीं पाता हूँ । यही कारण था कि तुम्हारी कहानी को पढने के अगले दिन में बीमार पड गई क्योंकि जब मैंने तुम्हारी कहानी पडनी शुरू की थी तो मैंने इसे खत्म करके ही छोडा और सारी रात ठीक से सो नहीं पाई क्योंकि सारी रात कहानी के किरदार मेरे दिमाग में घूमते रहे । कहानी और कहानी के सभी के दास सीधा दिमाग में अपनी जगह बनाने में कामयाब हो जाते हैं जो कि एक लेखक के लिए बहुत ही अच्छी बात है । बहुत बहुत धन्यवाद । मैं तो डर गई थी कि पता नहीं मेरी मेहनत रंग लाएगी या नहीं । तुम इस बात की चिंता मत करो । तुम्हारी मेहनत रंग जरूर लाएगी क्योंकि लेखन में तुम्हें अच्छी खासी पकड बना ली है । लेकिन तुम्हारी इस कहानी को लेकर मेरे कुछ सवाल है । अगर तुम बुरा ना मानो तो क्या तुम से इन सवालों के बारे में पूछ सकती हूँ? हाँ हाँ जरूर इसमें बुरा मानने की क्या बात है? चाहिए तुमारी खानी है । हाँ, काफी हत्या की मेरी जिंदगी से मिलती है यानी की जो कहानी में मुक्ता नाम के किरदार के साथ घटित हुआ है तो तुम्हारे साथ असल जिंदगी में हुआ है । हाँ, ये तो बहुत ही हिम्मत और समाजसेवा वाला काम है । हिम्मत समाजसेवक वो कैसे? मैं कुछ समझी नहीं । अपनी गलती को मान लेना बहुत हिम्मत का काम है और दूसरों को ऐसी गलती न करने के लिए प्रेरित करना बहुत ही बडी समाजसेवा वाला काम है । मेरा यकीन करो तो बहुत ही सही रास्ते पर जा रही हूँ । लेकिन मुझे पता नहीं क्यों यकीन नहीं आ रहा तुम्हारे साथ असली जिन्दगी में ये सब हुआ है तो तुमने अपनी कहानी में लिखा हाँ मेरे साथ ये सब हकीकत में हुआ था और ये सब सच है । मेरे मन में कुछ सवाल है अगर तुम बुरा ना मानो तो क्या मैं तुमसे वह सवाल पूछ सकती हूँ । इसके बारे में मैं तुम से पहले भी कह चुकी हूँ । मेरा ये कहना था की मैं तुम्हारी किसी भी बात का बुरा नहीं मानोगी । तुम जो कुछ पूछना चाहती हूँ बेफिक्र होकर पूछ सकती हूँ । हमने कहानी तो बहुत ही अच्छी लिखी है । बेशक यह एक प्रेरणादायक कहानी है लेकिन तुमने तलाक के बाद के जीवन के बारे में बहुत कम लिखा है क्योंकि बहुत जरूरी था । मेरे कहने का मतलब है कि तुम्हारे तलाक के बाद तुम्हारे जीवन में क्या क्या घटित हुआ । ये सबसे जरूरी हिस्सा था । इसके बारे में तुम्हें बहुत ही कम लिखा है । ऐसा क्यों? क्योंकि मैं जीवन को याद नहीं करना चाहती हूँ लेकिन क्यों क्योंकि ये मेरे जीवन का सबसे बुरा वक्त था । इसे मैं याद करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी । मुझसे ये सब नहीं लिखा जाएगा । क्या मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकती हूँ? वो कैसे तो मुझे इस बारे में बताओ । मैं उसे कहानी के रूप में लिख होंगी । लेकिन लेकिन क्या कुछ नहीं पूछूं? क्या पूछना चाहती हूँ चिको से तलाक लेने के ठीक बाद तुम्हारा क्या रवैया था? मेरे कहने का मतलब है कि उस समय के बाद तुम्हारा व्यवहार कैसा था? तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा था? तुम्हारी मानसिकता कैसी थी यार ये सब बहुत कठिन सवाल है । क्यों? क्या हुआ मेरे लिए ये बता पाना कि उस समय मेरी मानसिक तक कैसी थी या तलाक लेने के बाद मेरे दिल पर क्या गुजरी थी? बहुत ही कठिन है क्योंकि उस वक्त में कुछ न कर पाने की स्थिति में थी । मैं चाहकर भी अपना तलाक रोक नहीं सकती थी क्योंकि जाने अनजाने में मैंने जो पाप किया था वो माफी के काबिल नहीं था । उस आपका सिर्फ प्रायश्चित हो सकता था । लेकिन तुमने कभी अपने पति यानी ठीक से माफी मांगने की कोशिश नहीं की । नहीं तो इसीलिए क्योंकि मेरे बेटे की मृत्यु हो चुकी थी और उसका कारण मैं थी । मैं जानती थी कि इस वजह से चीकू मुझे कभी माफ नहीं कर सकता । इसीलिए मैंने कभी उससे माफी मांगने की हिम्मत तक नहीं की । लेकिन मुझे इस बात की संतुष्टि है के इस घटनाक्रम के सभी दोषियों को किसी ना किसी प्रकार से सजा जरूर मिल गई । भगवान के घर देर है परंतु अंधेर नहीं । सभी ने अपने किए कर्मों की सजा यही भुगत ली है । मैं कुछ समझी नहीं, वो कैसे? इस घटनाक्रम का मुख्य दोषी मेरी माँ और मेरी मौसी थी । माँ को कैंसर हो गया जिससे उनका अंतिम समय बहुत ही कष्टदायक रहा । हमने जो पैसा चीजों से लिया था वो सब उनकी बीमारी को ठीक करने में लग गया और यही नहीं चीजों का दिया वो पैसा अपने साथ हमारी सारी धनसंपदा भी ले गया । यानी हमारे पास भी पैसे के नाम पर कुछ नहीं बचा लेकिन तुम्हारी मौसी का क्या हुआ? मेरे कहने का मतलब है कि उसके बारे में तो तुम्हें कुछ बताया ही नहीं । सोनिया जब किसी पर कोई बुरा वक्त आता है ना तो सबसे पहले वही लोग आपसे दूर भागते हैं जो आपके सच्चे हिमायती होने का दिखावा करते हैं । मौसी भी मेरी सबसे बडी हिमायती कहलाती थी । उसने तो मुझे अपने बेटी बनाया हुआ था लेकिन जब हम पर बुरा वक्त आया तो सबसे पहले वही हमें छोडकर चली गई और ऐसी गए कि आज तक मुझे उसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई कि वो कहाँ है । जिंदा है या मर गई और तुम्हारा एक भाई भी तो ठाना हाँ था । वही एक ऐसा शख्स था जो मेरे तलाक का विरोध करता था लेकिन मैंने कभी उसकी बात नहीं मानी । जिस वजह से वो इस बुरे दौर में हमारा साथ छोडकर चला गया और वह भाभी के साथ अपने ससुराल वालों के पास किराये के घर पर रहने लगा । लेकिन मेरे हिसाब से उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था । वो तुम्हारा भाई था क्या उसे जाने से किसी ने नहीं रोका रोका था । पिताजी ने उसे जाने से रोका था लेकिन उसने कहा पिताजी आप भी दादा जी का घर छोडकर हमारे ननिहाल यानी अपने ससुराल वालों के पास आकर रहने लग गए थे और यहाँ आने के बाद आपने कभी भी अपने माता पिता यानी मेरे दादा और अपने रिश्तेदारों की कभी सुध तक नहीं ली थी । अपने अंतिम समय में दादा जी आप से मिलने के लिए तरसते रहे और आप में माँ के कहने पर एक बार भी उनके पास नहीं गए । ये सब करने के बावजूद आप मुझसे ऐसी उम्मीद क्यों रखते हैं कि मैं आपके पास रहकर आपकी सेवा करूंगा । पिताजी हो तो मैं भी आपका ही बेटा ना और आप ही के नक्शे कदम पर चलूंगा । लेकिन तुम्हारे पिताजी पिताजी को भी उनके किए की सजा मिल गई । यानी कुछ महीने पहले दरगाह से उनकी मृत्यु हो गई । लेकिन उनका क्या कसूर था? मेरे कहने का मतलब है की कहानी में तो मैं कहीं भी अपने पिताजी को कसूरवार नहीं ठहराया । पिताजी का कसूर सबसे बडा ये था क्योंकि उन्होंने चाहकर भी मेरे तलाक का विरोध नहीं किया । मैं कुछ समझी नहीं । पिताजी नहीं चाहते थे कि मेरा तलाक हो और इस बारे में उन्होंने कई बार माँ से बात भी की लेकिन मैंने उनकी एक न सुनी और हर बार अपने ही फैसले करती रही । विश्वकर्मा और मौसी की वजह से मेरा तलाक हुआ था । लेकिन पिताजी के कुछ न कर पाने की वजह से मेरा चीजों से रिश्ता खत्म होने की कगार पर पहुंच गया । कुल मिलाकर पिताजी परिवार के मुखिया थे परंतु वो अपने इस पद का प्रयोग ना कर पाए जिस वजह से हमारा सारा परिवार बर्बाद हो गया । जी तो है क्योंकि जिस घर में और ये अपनी मनमानी करती हैं और अपने पति को ज्यादा अहमियत नहीं देती, उनका हश्र बुरा ही होता है । फैल छोडो इन बातों को अब आगे क्या सोचा है आगे की योजना के लिए ही तो तुम्हारे पास आई हूँ क्योंकि तुमने तो खानी पड ही ली है । अब ये तुम्हें फैसला करना है कि इसका क्या किया जाए और हम इस कहानी को लेकर क्या योजना बनाए । अगर ये बात है तो मेरे पास तुम्हारे लिए बहुत ही बढिया योजना है जिससे तुम्हारी सारी परेशानियां दूर हो जाएंगी । मतलब मतलब सीधा है, इससे तुम्हारा जो मुख्य मकसद है वह भी हाल हो जाएगा और तुम समाज में सिर उठाकर भी जी सबको की और यही नहीं तुम्हारे पैसे की समस्या भी हल हो जाएगी । यानी तुम्हें तुम्हारे जीवन निर्वाह के लिए पैसों की भी चिंता करने की जरूरत नहीं होगी । वो कैसे? वो ऐसे पहले तो हम तुम्हारी इस कहानी को एक उपन्यास के रूप में बाजार में उतारेंगे और मुझे पूरा विश्वास है कि तुम्हारी उपन्यास जरूर बिकेगी और कामयाब होगी । उपन्यास के जरिए तुम अपना पक्ष समाज के सामने रखने में कामयाब हो जाओगी जिससे समाज में तुम सिर उठाकर जी सकोगी और साथ ही तो मैं एक संस्था की शुरुआत भी करोगी जिसका मुख्य उद्देश्य टूट रहे घरों को छोडना होगा । जाहिर है जब तो मैं ऐसी कोई संस्था शुरू करोगी तो तुम्हारे पास इस प्रकार के केसरी आएंगे तो तुम्हारी कहानी से मिलते झूलते होंगे और मुझे विश्वास है कि तुम उन्हें हल करने में कामयाबी हो चाहूँ कि उसके बाद तो उनके इस पर कहानियाँ लिखोगी और उन कहानियों को किताब का रूप देकर छपवा ओकी इससे तुम एक लेखक के तौर पर समाज में अपना स्थान बना सकूँ होगी और अपना जीवन निर्वाह कर सको की क्यों कैसी लगी योजना? योजना तो बहुत बढिया है परन्तु के ऐसा सच में हो पाएगा । क्यों नहीं हो पायेगा? अगर मुझ पर विश्वास है तो तुम्हें अपने आप पर क्यों नहीं? नहीं ऐसी कोई बात नहीं । मुझे अपने आप पर पूरा भरोसा है तो ठीक है । हम आगे की योजना पर काम करना शुरू कर देते हैं । ठीक है, इसके बाद में अपने घर आ गई और उस समय में बहुत खुश थी । मेरा खुश होना जायज भी था क्योंकि मैं मेहनत बेकार नहीं जा रही थी । मैंने जो कहानी लिखी थी तो सोनिया को पसंद आई थी । मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि सोनिया मेरी कहानी की इतनी तारीफ करेगी । खैर उसकी योजना में ठीक थी और मुझे एक मकसद भी मिल गया था । अब मुझे भविष्य के बारे में ज्यादा चिंता करने की भी जरूरत नहीं थी क्योंकि अब मैं एक लेखक के तौर पर अपना भविष्य बना सकती थी । मैं शिखा को भी नहीं भूल सकती थी । यानी मैं अपने इस यात्रा में शिखा को पीछे नहीं छोड सकती थी । भले शिखा से मेरे फोन पर बात नहीं हो पा रही थी लेकिन उसका मैसेज मुझे तकरीबन हर रोज आता था और मैं अपनी हर गतिविधि के बारे में उसे जरूर बताती थी । मैंने उसे अपनी कहानी के बारे में भी जरूर बताया हुआ था और वो मुझ से पडने की जिम भी कर दी थी परन्तु में हर बार यह कहकर मना कर देती थी कि अभी ये कहानी पूरी नहीं हुई है और जिस दिन ये पूरी हो जाएगी उस दिन में उसको पडने के लिए देख होंगे । शिखा को कहानी पडने के लिए ना देने का कारण ये भी था कि मैं उसे कहानी पडने के लिए देने से पहले किसी और को पढाना चाहती थी क्योंकि अगर इसमें कोई गलती हो तो मैं उसे सुधार लोग क्योंकि सोनिया ने मेरी कहानी पढ ली थी और उसमें से अपनी हरी झंडी दिखा दी थी तो अब समय था कि उसे भी अपने इस कहानी को पढने के लिए देने का । मैं अपने इस कहानी के बारे में शिखा के विचार भी जानना चाहती थी । मैं जानना चाहती थी कि शिखा की मेरी कहानी को पढने के बाद कैसी प्रतिक्रिया होगी । इसीलिए मैंने शिखा को फोन किया हलो हाजी शिखर जी क्या हाल है? मैंने कहा हेलो मुख्तयार क्या हाल है? मैं तो ठीक हूँ तुम अपना सुनाओ क्या? मैंने तो मैं पहले भी मना किया था की मुझे ये जी कहकर मत करा करो । बहुत पराया से लगता है । शिखा ने कहा ठीक है बाबा शिखर क्या है? तुम्हारा ठीक है हाँ ये ठीक है ये कुछ अपना सा लगता है और सुनाओ आज कैसे याद आई बस ऐसे ही मैंने जो कहानी लिखी थी ना अब पूरी हो चुकी है तो मैंने सोचा तो मैं बता दूँ वह लेखिका जी बधाई हो तो फिर मुझे पडने के लिए कब दे रही हूँ । उसी के लिए तो फोन किया है कहाँ? तो मैं तो अपने मई के आई हूँ तो मैं तो पता है मैं अपने व्यवस्था के आखिरी चरण में हूँ तो उसी चक्कर में अपने माइके में हूँ । मतलब मैं कुछ समझी नहीं यार । मैंने कौन सा कोई मंत्र वगैरह बोल दिया । वो तो मैं समझ में नहीं आया । हमारे यहाँ रिवाज है कि लडकी अपने पहले बच्चे को अपने माइके में जन्म देती है । जी मेरा पहला बच्चा है और जिस वजह से मैं अपनी गर्भवस्था के आखिरी दिनों में अपने मैं आ गई हूँ । वाह! ये भी ठीक है लेकिन वापस कब आना होगा? वैसे तो बच्चे के जन्म की सवा महीने के बाद वापस आना होता है लेकिन मैं कोशिश करूंगी कि उस से पहले ही वापस चली जाऊं । आखिर अपना घर तो अपना ही होता है । हाँ यार, तुम ठीक कहती हो, आखिर अपना घर तो अपना ही होता है । मैंने कुछ उदास लब्जो में कहा तो ऐसा क्यों कह रही हूँ? दिल छोटा मत करो, ऐसा करो मेरे पास आ जाओ मैं तुम्हारे पास हाँ मेरे पास आ जाओ । एक तो यहाँ कोई है नहीं तो मेरी देखभाल कर लेना । और इन दिनों मेरे पास समय भी काफी है जिससे मैं तुम्हारी लिखी हुई कहानी भी पर लूंगी । तुम ठीक कह रहे हो लेकिन लेकिन क्या? लेकिन अगर तुम्हारी ससुराल यानी चीकू के माता पिता को पता चल गया कि तुम मुझसे चोरी से मुलाकात कर रही हो तो जैसा हम सोच रही हूँ ऐसा कुछ नहीं होगा क्योंकि चीजों की माँ को यानी मेरी सास को पता है कि तो मुझसे मुलाकात करती हूँ और जहाँ तक मुझे विश्वास है ठीक ओके पिताजी को भी इस बारे में जरूर पता हैं तो यानी कि उन्हें इसपर कोई आता नहीं । नहीं उन्हें इस पर कोई एतराज नहीं है । बल्कि चीजों की माँ तो मुझसे अक्सर तुम्हारे बारे में पूछती रहती है । अब तुम ज्यादा बातें करो और मेरे पास यहाँ रहने के लिए आ जाओ । लेकिन तुम्हें तो पता है कि मुझे बच्चों को ट्यूशन पढाना होता है और आजकल तो एक स्कूल में अध्यापिका की नौकरी कर रहे हैं जिससे समय बहुत कम मिलता है । पहले ही ज्यादा दिन रहा सही परंतु एक दो दिन के लिए तो आज ही सकती हो ना । मैं कोशिश करती हूँ कोशिश नहीं करनी । अंडा ज्यादा सोच विचार करना है । जल्दी से तैयार होकर और अपनी वह कहानी वाली किताब लेकर मेरे पास आ जाऊँ । बाकी की बातें मिलकर करेंगे । चलो ठीक है, मैं आ रही हूँ ये हुई ना । बात इसके बाद में शिखा के घर जाने के लिए तैयार हो गई । शिखा का घर में शहर से तीन घंटे की दूरी पर था । कुछ समय के बाद में शिखा के घर पहुंच गई उसका घर पुराने जमाने की याद दिलाता था । यानी शिखा का घर बहुत पुराने जमाने का बना हुआ था । छोटी छोटी और पतली सी ईटों पर मिट्टी के लिए से बनी हुई दीवारें और बडे बडे दरवाजे और उन दरवाजों पर की गई नक्काशी किसी महल की याद दिलाती थी । मैं शिखा से ज्यादा उसके घर को देखने में अपनी रूचि दिखा रही थी । अपने घर को देखकर उसको बनाने में की गई मेहनत के बारे में सोच रही थी और अपने ही खयालों में खोई हुई थी कि तभी शिखा ने मुझे बुलाया और कहा क्या हुआ? कहाँ हो गई? नहीं नहीं कुछ नहीं घर को देख रही हूँ । लगता है अच्छा नहीं लगा ऐसी बात क्यों कर रही हूँ । घर तो मुझे बेहद अच्छा लगाए । यकीन मानो तो ऐसा घर मैंने कभी नहीं देखा । बस अपने पिताजी के चाचा जी यानी मेरे दादा जी से सुना जरूर था क्या सुना था यही कि पुराने जमाने में जो घर थे ऐसे बडे, बडे और आलीशान होते थे । ये तो किसी हवेली की जैसा है । तुम सही कह रही हो, ये किसी समय हवेरी हुआ करती थी । जब मेरे दादा जी की पिताजी पाकिस्तान से आए थे तो वो सब यहाँ आकर रहने लगे थे । उसके बाद से हम यहीं रहते हैं । क्या आप सब पाकिस्तान से आई हूँ? हाँ बंटवारे के बाद हम पाकिस्तान से भारत आ गए थे । खैर छोडे फिजूल की बातों को तुम सुनाओ कैसा चल रहा है । बहुत बढिया अपने अपने मकसद को प्राप्त करने के लिए पहली सीढी तो चढ चुकी हूँ । यानी कहानी तो लिख ली है । अब वह कैसी लिखी है ये जानने के लिए मैं तुम्हारी पास आई हूँ । उसके बाद आगे की योजना पर भी तो विचार करना है ये तो बहुत ही अच्छी बात है । लेकिन तुम्हें अपनी इस कहानी को मुझे पडने के लिए देने के बजाय किसी लेखक को देनी चाहिए थी । लेखक को भी पडने के लिए दी थी । मतलब मेरी एक बचपन की सहेली है जिसका नाम सोनिया है । वो अब एक लेखक बन गई है और सरस्वती साहित्य अकैडमी के नाम से एक संस्था चला रही है । उसको मैंने पढने के लिए दी थी । उसकी प्रतिक्रिया तो सकारात्मक थी । ये तो बहुत ही अच्छी बात है लेकिन तुम हितों पढो तुम्हारी प्रतिक्रिया भी जानना चाहती हूँ । तुम्हारे विचार इस बारे में क्या है? मुझे जानना है । अगर ऐसी बात है तो फिर मैं ऐसे जरूर पढ होंगी । ऐसा करो चाय आ गई है तो जब तक चाहे क्यों ऐसे पढ लेती हूँ । मैंने अपनी कहानी शिखा को पढने के लिए दे दी और मैं चाय पीने लगी । चाय पीते पीते मेरा बिहार शिखा के पास उसके पलंग के नजदीक रख एक डायरी पर पडा । मैंने वह डायरी उठा ली और उसे खोलकर पडने लगी । जी किसकी राय दी है और क्या लिखा है इसमें मेरे पिताजी की डायरी है और इसमें उन्होंने अपनी जीवनी लिखी है क्या में से पढ सकती हूँ? हाँ हाँ क्यों नहीं तुम कर सकती हूँ । इसके बाद में शिखा के पिता के लिखी हुई डायरी पडने लगी । शिखा के पिता की कहानी को छोटे होने के कारण मैंने शिखा से पहले पहली और उसे बंद करके एक ओर रख दिया । क्या हुआ? अच्छी नहीं लगी क्या नहीं ऐसी कोई बात नहीं है । बहुत अच्छी है तो फिर पढना की बंद कर दिया मैंने तो पूरी फॅमिली हुआ । कैसी लगी बहुत बढिया । क्या अंकल जी वी हकलाहट की समस्या से पीडित थे? अच्छा उनकी मृत्यु की जिम्मेदार में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर अपने आप को मानती थी जिसका प्रायश्चित करने के लिए मैंने चीजों से शादी की थी । जी को को भी अगला की समस्या थी । हाँ, बचपन में हकलाहट की समस्या से पीडित था लेकिन बाद में अपनी मेहनत से उसमें समस्या पर काबू पा लिया । हाँ मुझे पता है लेकिन उसने मुझे कभी जाहिर नहीं होने दिया । वहाँ क्लास जैसे किसी समस्या का शिकार है । हाँ, वो कुछ छुपा रुस्तम था । अब देखो ना वो मुझ से कितना प्यार करता था । इसके बारे में उसने कभी भी किसी को नहीं बताया । अच्छा तुम्हें कभी नहीं बताया कि तुम्हारी और चीजों की पहली मुलाकात कब हुई और क्या कारण था जिससे तुमने उसे छोड दिया तो बहुत लंबी कहानी है तो बता दूँ यहाँ कौन सा कोई काम है । हो सकता है कि ये मेरे लिए काम आ सके । मेरी कहानी तुम्हारे किसी काम कैसे आ सकती है? हरी बाबा लेखक हूँ, कहानियाँ धोना मेरा काम है और वैसे भी चीज कुंवर तुम्हारी कहानी के बारे में जानने की मेरी बहुत इच्छा थी । ठीक है तो सुनो । इसके बाद शिखा ने अपनी और चीजों की प्रेम कहानी बचपन में शुरू होकर वहीं खत्म हो गई थी । मुक्ता को सुनाई । इस कहानी का जिक्र चीखों के पहले बाग में किया गया है फाइव यार तुम्हारी इस कहानी पर तो फिल्म बननी चाहिए । अच्छा बातें काम करूँ और मुझे तुम्हारी लिखी हुई इस कहानी को पढने दो । ठीक है पर लोग पैसे कितना पढ लिया है । लगभग आधे से ज्यादा कैसा लगा? सच कहूँ तो बहुत ही अच्छा है । इसे सीख मिलती है उन लोगों को जो शादीशुदा जीवन का व्यापार करते हैं । मेरे आस पास ऐसे कई केस हो रहे हैं । इसमें लोग शादी करते हैं और शादी के कुछ ही महीनों बाद लडकी के पक्ष के लोग लडके के पक्ष पर केस कर देते हैं और कोर्ट कचहरी का डर दिखाकर मोटी रकम ॅ तलाक ले लेते हैं । तलाक लेने के बाद से ही वह अगला शिकार ढूंढने लग जाते हैं । तुम्हारे के इसमें कुछ अलग सा है क्योंकि इसमें तुम ये तुम्हारे माता पिता का चीखों से तलाक लेने का मकसद पैसों की प्राप्ति करना नहीं था । तुम तो अपनी मौसी के बहकावे में आकर ऐसा कर रही थी । इससे तुम्हारी मौसी ने तुम्हारी कहानी में नकारात्मक भूमिका अदा की है । उसने तुम्हारे परिवार को पैसों के सपने दिखाए थे । हाँ तुम सही कह रही हो क्योंकि शादी के पहले दिन से चीजों से लडाई झगडा करने का मेरा मकसद उससे पैसों की प्राप्ति करना नहीं था । बल्कि उसको अपने वर्ष में करके अपने उम्मीदों पर न जाना था । उस समय मैं गलत फैमी नहीं जी रही थी । बच्ची को को अपने वर्ष में करके अपनी उंगलियों पर नाथ मैं चाहूंगी और सारी जिंदगी अपने ससुराल वालों पर राज करोंगे, लेकिन ऐसा मैं नहीं चाहती थी । ऐसा मुझ से करवाया जा रहा था । मैं तो इस रंगमंच किए कठपुतली थी, जिसकी डोर मेरे मायके के कुछ सदस्यों के हाथ में थी । लेकिन जब मुझे आपने कठपुतली होने का एहसास हुआ तब तो बहुत देर हो चुकी थी । मैं अपना सब कुछ गंवा चुकी थी । परिवार के नाम पर मेरे पास कुछ नहीं बचा था तो मैं अकेली पड गई थी । स्वागत तो मेरी मदद ना करती तो मेरी तो जीने की चाय पीना रहती । मैंने तो अपना जीवन कब खत्म कर लिया होता हूँ । लेकिन तुम मेरी जिंदगी में एक फरिश्ते की तरह आई और मेरे जीवन को एक नया मकसद दिया । आपने अपनी मंजिल को पाने के लिए जी जान लगा दूंगी तो बहुत ही ने काम कर रही हूँ । परिवारों को टूटने से बचाना बहुत ही में काम होता है । खैर अब आगे क्या सोचा है वही जो हमने पहले सोचा था वहीं करना है जो मजे की बात यह है कि मेरी सहेली सोनिया जिसे मैंने ये कहानी पडने के लिए दी थी उसकी राय भी आपकी राय से मिलती है । अब में अपनी किताब का विमोचन करूंगी जिसकी जिम्मेदारी सोनिया ने ली है । उसके बाद एक संस्था की शुरुआत कर होंगे जिसका मकसद किसी वजह से टूट रहे घरों, परिवारों और रिश्तों को बचाना होगा । ये हुई ना? बात अच्छा एक बात कुछ हूँ, हाँ बोलो, पारी कैसी है तो वो बडी हो गई होगी । वो भी बहुत बढिया है, अपने स्कूल जाती है बडी हो गई है । क्या मिलना चाहूँगी उससे नहीं अभी नहीं जब तक में अपने मकसद को ना प्राप्त कर लू और समाज में अपना एक मुकाम ना बना लो । जब तक मैं अपनी किताब के जरिए अपनी गलती ना मान लो तब तक मैं उसके सामने नहीं आउंगी । किस मुझे उसके पास जाउंगी । अब तो वह बडी हो चुकी है, सब कुछ समझती है । मैं उसे अपने बारे में क्या और कैसे बताउंगी और अगर कहीं उसने मुझसे कोई सवाल कर दिया जैसे कि मैं उसे क्यों छोड कर गई थी और क्या मुझे उस की याद आई थी तो मैं उसे क्या जवाब दूंगी । आपने उसके साथ आंख नहीं मिला पाऊंगी कोई बात नहीं है । देख लेना एक दिन ऐसा आएगा जब वह खुद तुम्हारे पास आएगी और तुम्हें माँ कहकर बुलाएगी । उस दिन उसे तुम्हें माँ कहने पर शर्म नहीं आएगी बल्कि उसे तुम पर गर्व होगा जिसने तुम्हारी कोख से जन्म लिया है । बस किसी पल का तो मुझे इंतजार है क्योंकि मैं अपनी गलती के कारण अपने हालत तो खो चुकी हूँ, दूसरे को नहीं खोना चाहती हैं । मैं जानती हूँ की उस पर मेरा कोई हक नहीं है परन्तु में उसकी नजरों में गुनाहगार बनकर जीना नहीं चाहती । भले ही वो मुझे मना रहे परन्तु में चाहती हूँ की वो भी मेरी वही इज्जत करें जो से करनी चाहिए । ऐसा जरूर होगा । भगवान ने चाहा तो एक दिन ऐसा जरूर आएगा । भगवान नाम की चीज पर तो मुझे बिल्कुल विश्वास नहीं है तो क्या कह रही हूँ । तो मैं भगवान पर बिल्कुल विश्वास नहीं है पर क्यों बहुत ही अजीब सा विषय है और मैं इस पर कोई बात नहीं करना चाहती हूँ परन्तु में जानना चाहती हूँ भगवान के ऊपर तुम्हारे विचार जानना चाहती हूँ । ऐसी बात है तो सुनो किसी समय मैं बहुत धार्मिक हुआ करती थी । मैंने अपने पास भगवान कृष्ण की बाले का अलावास था जिसको की लड्डूगोपाल भी कहते हैं उसको रखा हुआ था । मैं उसको अपनी जान से ज्यादा प्यार करती थी । उसकी पूजा करती थी । मतलब मेरे लिए वह सब कुछ था । मैं जो से मांगती थी वह मुझे मिल जाता था । फॅमिली मानसिकता ही बदल कर रख दी । वो कैसे कि उन दिनों की बात है जब मैं चीकू से मोबाइल फोन पर बात करती थी । शायद में पता हो या न हो, हमने लगभग तीन चार साल तक मोबाइल फोन पर बातचीत की थी । लेकिन उस दौरान एक बार भी उसने कभी तुम्हारे बारे में जिक्र नहीं किया । खैर उस दौरान भगवान और धर्म के विषय पर हमारी बात अक्सर होती रहती है । या तो मोबाइल फोन पर अपने प्रेमी से बात कर रही हूँ और वो भी ऐसे विषय पर जिसका संबंध प्रेम से दूर दूर तक नहीं । हैरानी की बात है ठीक है, सही था उसमें मेरी सोच को बदलकर रख दिया था । मैं जितनी आस्तिक थी अब उतनी ही नास्तिक हूँ । तो एक उदाहरण के द्वारा बताती हूँ जब मैं क्लास में कोई थोडा मुश्किल टॉपिक पड रही होती है तो आखिर मैं बच्चों से पूछती हूँ कि क्या समझ आ गया आपको मैंने आपको पढाया, कोई बच्चे नहीं बोलता है । इतना तो वहाँ कहते हैं ना, वो ना कहते हैं । इसका मतलब समझ नहीं आया क्योंकि अगर समझ आ गया होता तो कही देते कि उनको समझ आ गया है । मैं सोचती हूँ कैसा हमने बच्चों का लचर चरित्र पैदा कर दिया है तो ये आज तक अपने अंदर ये हिम्मत पैदा नहीं कर पाए कि वह किस चीज को ना कह पाएं । मैं जो मर्जी पढा दो बच्चे कभी सवाल नहीं करते की मैडम जी जो आपने पढाई ठीक है या गलत बच्चों का कोई सवाल नहीं होता, कुछ समझ नहीं आता लेकिन चुप रहते हैं । चाहे उन को बार बार पूछो की समझ आ गया लेकिन चुप रहते हैं तो क्या पूछेंगे हमने । ऐसी आदत उनमें कभी डाली ही नहीं । बचपन से उनको यही सिखाया जाता है की तो मैं कुछ नहीं पता । जो पढाया जाए बस उसी को ग्रहण करूँ । अगर बच्चों ने भूलकर कोई सवाल भी कर दिया तो अध्यापक इसको अपनी बेज्जती समझता है । ऐसे बच्चे से अध्यापक प्रायर दुश्मनी पाल लेते हैं । धर्म में भी सदियों से यही हो रहा है । सदियों से एक ही पाठ पढाया जा रहा है, कोई सकारात्मक परिणाम नहीं लेकिन लोग फिर भी उसी पार्ट को दिन रात दोहराए जा रहे हैं तो इन धार्मिक नियमों को चुनौती नहीं दे सकता । जो चुनौती देगा उसको मार दिया जाएगा तो फिर कोई सवाल कैसे पूछेगा? अगर कोई सवाल नहीं पूछेगा तो जवाब कहाँ से आएंगे? जवाब नहीं आएंगे तो समाज का विकास कैसे होगा? जवाब तो तभी मिलेगा जब कोई नया सवाल उठेगा । धर्म में हर चीज सही है । बस आपको अनुकरण करना है और अनुकरण करने वाला कोई भी बडा काम नहीं कर सकता । वह सिर्फ अपना और अपने परिवार का पेट भरने तक सीमित रहेगा । फिर कोई खोज नहीं होगी । हैरानी की बात तो ये है कि जो धर्म में हो रहा है वहीं आपके स्कूल क्लास में भी हो रहा है । कोई फर्क नहीं है । दोनों में लोगों के सवाल को दबाया जाता है । दोनों में दूसरों के अनुभवों को दोहराने पर जोर दिया जाता है । दोनों में अपने नए नए अनुभव पैदा करने की प्रेरणा नहीं दी जाती है । मैंने बडी गहराई से अध्ययन किया और पाया कि हमारी सारी सीखो पर धर्म की बडी गहरी छाप है । तभी तो कोई भी बच्चा कभी भूलकर भी कोई बडी खोज नहीं कर पाता । कोई अच्छा नेता नहीं पैदा होता है जो हमारे देश को नई दिशा दे पाए । ओलंपिक में पदक तालिका में हम सबसे नीचे होते हैं । धर्म में भी सिर्फ अनुयाई होते हैं और हमारी शिक्षा में भी सभी अनुयायी आई होते हैं । कोई अनुयाई आई कैसे? मैं खोज पैदा कर सकता है । खोज तो वो करेगा जो लहरों के वृद्ध जाएगा । कुछ तो वह करेगा जो हर चीज पर सवाल करेगा । न्यूटन ने जब ग्रेविटेशन का नियम ईजाद किया तो उसके मन में सबसे पहले सवाल ही पैदा हुआ था कि से नीचे ही क्यों गिरता है? लेकिन हमारा तो कोई सवाल ही नहीं है । सवाल क्यों नहीं? क्योंकि सारे सवालों के जवाब हमारे ग्रंथों में लिख दिए गए हैं । जब कोई सवाल बचा ही नहीं जिसका जवाब दिया जाए और अगर आपने गलती से कोई सवाल भी कर दिया तो समझो आपने ग्रंथ होगी तोहीन कर दी । आप किसी धर्म, ग्रंथ या गुरु के बारे में अगर कोई नई चीज कह दो तो आपका समाज में बहिष्कार हो जाएगा । आपको श्लाघा बिल्कुल नहीं होगी । धर्म ही रूल की तरह जड है । जब आपको नई चीज कहने का हक नहीं तो कोई खोज कैसे होगी? हमारे स्कूलों और कॉलेजों में सारे बच्चे कक्षा में भेड बकरियों की तरह बैठे होते हैं । सभी ने बस ज्ञान ग्रहण करना है । दूसरों के सडे गले अनुभवों को अपनी जिंदगी में उतारना है । वास्तव में धर्म, स्कूल, कॉलेजों से लेकर प्यार सेक्स और हमारे धंधे में बुरी तरह समाया हुआ है । इसीलिए लगभग सारे धार्मिक देश पिछडे हुए हैं । अरे बाप रे हम तो बहुत ही बडी लेखिका बन गए हो । मेरे कुछ सवालों का जवाब होगी । हाँ पूछूँ क्या पूछना चाहती हूँ तुम्हारे अनुसार तुम पर जो बुरे दिन आए थे, किसके कारण आई थी । मेरे कहने का मतलब है कि तुम अपने बुरे दिनों के लिए किसको दोषी मानती हूँ । साहिर सी बात है अपनी पम्मी मौसी को, लेकिन मेरे अनुसार जो भी तुम्हारे साथ हुआ वो सब भगवान की मर्जी से हुआ । मैं नहीं मानती । मैं समझती हूँ जो कुछ भी हमारे साथ घटित होता है वह सब उसके ऊपर वाले यानी भगवान की मर्जी से होता है और उसके पीछे कोई ना कोई कारण जरूर होता है । मेरे साथ जो भी कुछ उसके पीछे क्या कारण हो सकता है । अगर तुम पर वो बुरा वक्त नाता तो क्या आज तुम अपनी कहानी लिख कर एक लेखिका बन सकती? अगर तुम पर बुरा वक्त नहीं आता तो क्या तुम्हें अपने पराए की पहचान हो पाती? क्या तुम दुनिया को समझ सकती? नहीं ना । तुम्हारे जीवन में भगवान ने बुरा वक्त इसीलिए दिया क्योंकि वो तुमसे कोई खास काम करवाना चाहता था । मैं कुछ समझी नहीं, अच्छा चलो मान लो । कल को तुम्हारी किताब छप जाती है और तुम समाज में एक लेखिका के तौर पर अपनी पहचान बना लेती हूँ । तुम अपने मकसद में भी कामयाब हो जाती हूँ तो मैं अपनी एक संस्था जो कि तुम्हारा मकसद है उसे भी खोल लेती हूँ । इस वजह से तुम समाज में अपना एक अलग स्थान बना लेती हूँ । जो लोग तुमसे नफरत करते थे, तुम से दूर भागते थे, अब वही लोग तुम्हारे पास आने या तुम से बात करने के लिए तरफ से लगते हैं । यानी उनकी नजरों में तुम इज्जतदार बन जाती हूँ तो इसका सारा श्रेय तुम किसको होगी । जाहिर सी बात है आपने उसी बुरे वक्त को क्योंकि अगर मेरे जीवन में वो बुरा वक्त नहीं आता । मुझे कहानी या उपन्यास वगैरा लिखने की जरूरत ही नहीं पडती । बिल्कुल ठीक तो मेरे अनुसार तुम्हारे साथ जो भी घटित हुआ था या जो भी घटित हो रहा है वो सब भगवान की मर्जी से हो रहा है । हमें भगवान के नाम पर हो रहे धूम और धर्म के नाम पर चल रहे व्यवसाय का विरोध जरूर करती हूँ । मैं किसी व्यक्ति चाहे वो स्त्री और पुरुष उसको भगवान मानने से इनकार करती हूँ और उनकी पूजा करने के खिलाफ जरूर हूँ लेकिन मैं भगवान को मानती हूँ । वो भगवान जो मेरे अंदर है, तेरे अंदर है, हम सभी के अंदर है । मैं मंदिर झांकने की उपेक्षा मान के अंदर झांकने के पक्ष में हूँ । बाबाओं और ऐसे लोग जो अपने आप को भगवान मानकर भोले भाले लोगों का मानसिक और शारीरिक शोषण करते हैं, उनका विरोध करती हूँ । चीजों का भगवान के प्रति जो नजरिया था तुमने उसे सुना और जाना जरूर लेकिन समझा नहीं । वो बचपन से भगवान के नाम पर फैलीन सभी बेबुनियादी बातों का विरोध करता था । वो जादू दोनों या भगवान का नाम लेकर किये जाने वाले पाखंडों का विरोध करता था । लेकिन मैं भगवान पर विश्वास जरूर करता था । उसके अनुसार कोई शक्ति तो हैं । यह संसार को चला रही है, किसी को मानता था बाकी रही धर्म की बात तो मैं हर धर्म की इज्जत करती हूँ लेकिन किसी में अंधविश्वास नहीं करती में हार धर्म में बताई गई बातों को सुनती हूँ लेकिन सुनते समय कानून के साथ साथ दिमाग को भी खोल कर सुनती हूँ । धर्म को लेकर सब का नजरिया अलग अलग है । तुम्हारे नजरिये से अगर कुछ सही है और किसी के नजरिए से वो गलत है । उदाहरण के तौर पर कुछ धर्म के लोग किसी के मरने के बाद उसके मुद्दे शरीर को जला देते हैं, किसी धर्म में जमीन में दफना देते हैं । दोनों अपनी अपनी जगह सही है लेकिन एक दूसरे के नजरिये में दोनों गलत है । लेकिन अगर यही बात मेरे नजरिये से देखी जाये तो दोनों गलत है । क्योंकि आज के दौर में अगर हम किसी के मरने के बाद उसके मोरदा शरीर को जलाने या दफनाने की बजाय उसको किसी अस्पताल में दान कर दी तो ये मुर्दा शरीर मरने के बाद पता नहीं कितने लोगों को नया जीवन दे सकता है । उसके अंदर कितने जरूरतमंद लोगों के काम आ सकते हैं । और रही बात ओलंपिक में पिछड की या हमारे पिछडे जाने की तो इसके कसूरवार भी हम ही लोग हैं । वो कैसे? मैंने हैरानी से पूछा । हम जैसे बेवकूफ लोग धार्मिक स्थलों को बनवायें या उनकी देख रेख और पूजा पाठ पर जितना खर्च करते हैं । क्या हम उसका आधा या आधे का आधा भी अस्पताल, स्कूल या खेल अकैडमी बनवाने में खर्च नहीं कर सकते? नहीं ना । हम जितना दान धार्मिक स्थलों पर देते हैं, क्या उसको छोटा सा हिस्सा भी हम किसी गरीब को मदद करने में दे सकते हैं? किसी जरूरतमंद की मदद करने में खर्च कर सकते हैं? नहीं ना । हम किसी गरीब की मदद जरूर करते हैं लेकिन उस मदद का उद्देश्य मदद करना ये सेवा करना नहीं होता बल्कि समाज में अपनी तारीफ करवाना होता है । किसी गरीब को कम्बल या राशन देकर हम साथ ही अखबार में अपनी फोटो छपवा देते हैं और अगले दिन उस फोटो को सभी को दिखाकर अपनी तारीफ बटोरते हैं । क्या तुम किसी ऐसे शख्स को जानती हूँ? क्या तुमने कभी किसी को ऐसा कहते हुए सुना है कि मैंने किसी गरीब या जरूरतमंद की मदद गुप्त रह कर की है? यानी जरूरतमंद को अपनी पहचान बताए बगैर उसकी मदद की है । नहीं ना । ऐसा नहीं कि लोग ऐसे नहीं होते, परंतु आजकल ऐसे लोग बहुत ही कम होते हैं । पुराने जमाने में लोग अपने घरों के बाहर कुछ पाने के मटकी रख देते थे ताकि कोई प्यासा अगर पानी पीकर अपने प्याज हो जा सके लेकिन वह उन मटको पर अपना नाम नहीं लिखते थे जिससे पानी पीने वालों को ये पता नहीं होता था कि पानी पिलाने वाला कौन है लेकिन फिर भी वो दिल से शुक्रिया अदा करके जाता था । आज के दौर में भी लोग स्वार दैनिक स्थान पर पानी का कोर्स वगैरह लगवा देते हैं परन्तु से पानी के कूलर पर अपना नाम बडे बडे अक्षरों में लिखा देते हैं अब तो बताओ इसमें तो उनका सेवाभाव देख रही हूँ क्या इश्तिहारबाजी या मैं भी ना किन चक्करों में पड गई । बातों बातों में पता ही नहीं चला की समय कब बीत गया । अब तुम कुछ आराम करो और माँ से कहकर रात के खाने का इंतजाम करती हूँ क्योंकि बातों से मन भर सकता है । लेकिन पेट में बाकी की बातें हम फिर समय मिलने पर करेंगे । तुम्हारी बात भी सही है लेकिन हमारी आगे की योजना का क्या होगा? आगे की योजना मतलब आगे की योजना तो साफ है तुम अपने इस कहानी को अपनी सहेली सोनिया को छपवाने के लिए दे दो क्योंकि मैं नहीं चाहती कि तुम उस का साथ छोडकर मेरी सहायता से अपने उपन्यास को छप्पा । उसके बाद हम सभी मिलकर तुम्हारे इस उपन्यास का विमोचन करेंगे । तुम्हारा उपन्यास कामयाब जरूर होगा, इस बात का मुझे विश्वास है । उसके बाद हम तीनों मिलकर एक संस्था खोलेंगे, जिसका उद्देश्य रिश्तों को टूटने से बचाना होगा । शुरुआत में हम तीनों ही इसके सदस्य होंगे । लेकिन जैसे जैसे समय बीतता जाएगा, वैसे वैसे हम और लोगों को अपने साथ जोडते जाएंगे । क्यों ठीक है ना, बिलकुल ठीक है । तुम्हारा साथ हुआ तो मैं अपने मकसद में जरूर कामयाब हो जाऊंगी । क्या अभी भी तो मुझे शक है कि मैं तुम्हारा साथ बीच रास्ते में छोड जाऊंगी? नहीं नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है । मैं तो ऐसे ही कह रही थी । मैं अपने आप पर शब्द जरूर कर सकती हूँ, लेकिन तुम पर कभी नहीं कर सकती । मेरा तुम्हारे सेवा ही कौन ठीक है? वैसे मैं भी मजाक कर रही थी । मुझे तुम पर पूरा भरोसा है । में शिखा के घर दो दिन तक रही और उस दौरान हमें कई बातें की योजनाएं बनाई । इस दो दिन के दौरान हमने एक दूसरे के बारे में काफी कुछ जाना । मुझे शिखा के मकसद के बारे में पता लगा कि उसने चीजों से शादी क्योंकि और कैसे वह दोनों अपने मकसद में कामयाब हुए । उसकी तैयार की कहानी के बारे में पता चला । मैंने भी कई ऐसी बातें उसके साथ साझा की जिसका जिक्र मैं अपने उपन्यास या आत्मगत आप नहीं कर पाई और साथ ही हमने अपनी आगे की योजना पर काम करना शुरू किया । यानी मैंने शिखा के कहने पर सोनिया को अपनी कहानी छपाने के लिए दे दी ।
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