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45. Ghar vapsi in Hindi

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AuthorRohit Verma Rimpu
After the sad demise of Chiku, his legacy had to be taken forward. More light had to be thrown on the problem of stammering. Voiceover Artist : Raziya Khanum Author : Rohit Verma Author : Rohit Verma Rimpu Producer : Theremin Studios Voiceover Artist : Razia
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भाग सातवाँ घर वापसी मुक्त मैडम कहाँ हो गई? शिखा ने कहा कहीं नहीं बस यही लेखिका जी किसी कहानी के बारे में बाद में सोचना पहले घर चलो हाँ बस जा रही हूँ आपने नहीं मेरे घर चलो वो क्यों? मैंने हैरानी से पूछा क्योंकि इससे पहले में आज तक शिखा के घर नहीं गई थी । वो क्यों का क्या मतलब है? आज तुम्हारी बेटी का जन्मदिन है, घर में पार्टी रखी है । लगता है तो मुझे भूल चुकी हो । कैसी बातें कर रही हूँ दीदी फिलहाल मैं उसे कैसे भूल सकती हूँ । मैं सांस लेना भूल सकती हूँ लेकिन अपने बेटे को कभी भी नहीं भूल सकती । मुझे उसकी जनधन के बारे में पता है । इसीलिए मैंने भी अपने घर में मोहल्ले के बच्चों के बीच एक छोटी सी पार्टी रखी है । तुम्हारी पार्टी कैसी भी हो लेकिन जिसका जन्मदिन है वह तो मेरी पार्टी में है ना तो आओ और मेरे घर उसी पार्टी में चलो दीदी आपका कहना भी ठीक है लेकिन आप मेरी मजबूरी तो समझ सकती है ना । मैं वहाँ नहीं आ सकती है । वो तो ये बात है रुक । मैं अभी इसका इंतजाम करती हूँ । सिखाने तुरंत अपना मोबाइल फोन निकाला और चीजों की माँ को फोन लगा दिया । आपने बोला था ना कि आज पारी के जन्मदिन की पार्टी में मुक्ता को अपने साथ जरूर लाना हाँ बोला था क्यों? तो मैं क्या पूछ रही हूँ जी को की? माँ ने कहा वो इसीलिए क्योंकि वो आने से मना कर रही है । क्यों पुरानी घिसी पीटी बातों में उलझी है मैं कैसे जाऊँ? लोग क्या कहेंगे क्या सोचेंगे वगैरा वगैरह । बात करवा जरा मेरी ठीक है करवाती हूँ शिखर मेरी चीजों की माँ से बात कराने के लिए मोबाइल फोन मेरी ओर कर रही थी लेकिन मैं बात करने से मना कर रही थी लेकिन शिखा के बार बार जोर डालने पर कुछ देर में मैंने मोबाइल फोन पकड लिया और चीज की माँ से फोन पर बात करने लगी । हलो मैंने बात करने की शुरुआत तो कर दी थी लेकिन मेरी आवाज में डर और कपकपी थी जो शायद उसी पछतावे के कारण थी जिसका बोझ मैं आज तक हो रही थी । हलो वहाँ मुक्ता जी क्या कोई नमस्ते या चरणवंदना वगैरह कुछ नहीं बोलोगी । ये सुनते ही मैं जोर जोर से रोने लगी । मेरे इस प्रकार की रोने की वजह को बयान कर पाना मुश्किल था । लेकिन तभी मैंने अपने आप को कुछ काबू में क्या और उनकी बात का जवाब देने लगी । किस मुझसे करूँ मैं क्यों? क्या ये भी कोई पूछने वाली बात है? बेटी आपने मुसी कर दे माने बाद को हंसी में टालते हुए कह दिया जिससे मैं कुछ मुस्कुराने लगी । अच्छा वो सब छोड और जल्दी से शिखा के साथ आ जाते । पर्रिकर जन्मदिन है और एक घटना है नहीं, आज नहीं । फिर कभी आज भी तो मेरी बात नहीं मानेगी । ये सुनकर में अपने आप को काबू नहीं कर पाई और जोर जोर से रोने लगी । शिखा ने मुझे गले लगाया और चुप कराने लगी । कुछ ही देर के बाद माँ ने फिर से मुझसे कहा माना कि अब मेरा तुम पर कोई हक नहीं है लेकिन कहीं ना कहीं थोडा बहुत तो हर बच्चा होगा । तो उसी हक के चलते क्या तुम कुछ नहीं कह सकती? हाँ, अब ऐसा मत बोलिए । मुझ पर आपका पूरा हक है मेरा भेल जानता है आज भी आपको और आपके परिवार को जो कभी मेरा ससुराल था उसे कितना चाहती हूँ? अच्छा अभी फिल्मों वाले डायलॉग बनकर और जल्दी से शिखा के साथ आ जाओ । माननीय कहकर फोन बंद कर दिया । अ शिखा मेरी और देखने लगी वो मेरी आंखों में मेरी हार ढूंढ रही थी । फिर क्या सोचा है जाना है? नहीं जाना । शिखा ने कहा, पता नहीं पता नहीं इसका क्या मतलब हुआ । मतलब की पता नहीं जाना है या नहीं जाना । ये कैसे जवाब हुआ जाना है या नहीं जाना है । क्या तुम किसी दुविधा में हूँ? अगर तुम्हारे दिल में कोई ऐसी ऐसी बात है तो? बोल दो, नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है लेकिन इतने सालों के बाद उसे परिवार के पास जाना और उसी घर में जाना जहाँ में कभी तुम समझ सकती हो ना कि मैं क्या कहना चाहती हूँ । देखो मुक्ता जो बीत गया, सुब बीत गया, उसे भूल जाओ । वर्तमान में तुम क्या हूँ और भविष्य में तुम्हें क्या क्या है तो उसके बारे में सोचूंगी । तुम्हारे ऊपर भगवान की खास के पास है क्योंकि अगर ऐसा न होता तो आज तुम जिस मुकाम पर हो मना पहुंच पाती । लेकिन एक बात को तो मैं कभी भी भूलना नहीं चाहिए कि आज तो मैं जिस मुकाम को हासिल किया है जिस मंजिल को पा लिया है और तुम आज जिस शौहरत को पाकर नई जिंदगी जी रही हो, उसका सारा श्रेय तुम्हारे बीते हुए दिनों को जाता है । तुम्हारी बीती हुई जिंदगी को जाता है । सोचु अगर तुम ऐसा कुछ नहीं करती या फिर यू पहलों कि अगर तुम्हारे जीवन में ऐसा वैसा कुछ घटित ना होता तो सोच के आज तुम एक सफल लेखिका होती और एक और बात शायद तुम्हारे मन में अभी वो बात होगी की चीखों के परिवार वाले तुम्हारे बारे में क्या सोचते होंगे या फिर तुम किस मुँह से उनका सामना करोगी? तो मेरी बात सुनो । तुम्हारे उपन्यास के लिखने से लेकर उसके छपने तक एक एक गतिविधि के बारे में उनको पता है और यही नहीं उन सभी ने तुम्हारे उस उपन्यास को पढा है जिसके बाद उस सभी की मानसिकता तुम्हारे प्रति काफी बदल गई है । वो कई दिनों से तुम से मिलना चाह रहे थे । दरअसल तरीके जन्म दिन को मनाने का प्रोग्राम पिताजी ने खास तुम्हें बुलाने के लिए बनाया हुआ है । अब ये इधर उधर की बातें छोडो और अपनी बेटी के जन्म दिन को मनाने की तैयारी करूँ । और हाँ मुझे पता है कि तुम्हारे अंदर अब एक लेख लिखा भी मौजूद है जिस वजह से बम भावनाओं में कुछ ज्यादा ही बह जाती हूँ । इस बात का क्या मतलब हुआ । मतलब ये कि जब तुम पारी के सामने आओगी तो भावनाओं में बहकर रोना धोना शुरू ना कर देना । क्योंकि तुम अब उसे नहीं जानती । वो बहुत शरारती हो गई है और सवाल बहुत पूछती है और अगर उसने तुमसे तुम्हारे रोने का कारण पूछा तो तुम्हारे पास उसका जवाब नहीं होगा । क्या वो सच में ही शरारती है? हाथ उन्हें विश्वास नहीं होगा तो बहुत शरारती है । ठीक है मैं समय पर पहुंच जाऊंगी । घर का पता मालूम है की बता दूँ सिखाने मजाकिया लहजे में कहा मैडम रास्ता जरूर भट्ट की थी लेकिन मंजिल का पता आज भी मालूम है । वाह पक्की लेखिका बन गए हो । खैर हम तुम्हारा शाम को इंतजार करेंगे । शिखा के जोर लगाने और माँ के बार बार कहने पर मैं इस चीज को के घर परी के जन्मदिन के प्रोग्राम पर जाने के लिए राजी हो गई । मैं अपने घर की ओर चल दी । रास्ते में मुझे खयाल आया कि मुझे अगर अपनी बेटी के जन्मदिन पर जाना है तो मुझे उसके लिए कोई तोहफा जरूर लेना होगा । मैंने तोहफा लेने के लिए अपनी गाडी बाजार की ओर घुमा दी । मैं अपनी गाडी बाजार में खडी करके उसके दरवाजे बंद कर रही थी कि तभी पीछे से आवाज आई, बेटी मेरी बात सुनो होगी । मैंने तुरंत उस आवाज की दिशा की ओर अपना मूड किया । मेरे सामने एक स्वस्थ और खूबसूरत औरत खडी थी जिसकी उम्र लगभग पचास साल के आसपास होगी । मैंने उससे कहा जी आई टी बोली क्या काम है? बेटी मुझे कुछ रुपयों की जरूरत है क्योंकि मुझे दिल की समस्या है और डॉक्टर ने इसका इलाज ऑपरेशन करना बताया है लेकिन मेरे पास पैसे नहीं है । अगर तुम दस, बीस या पचास रुपये की मदद कर सको तो भगवान तुम्हारा भला करेगा । दिखने में तो पहले घर की लगती थी लेकिन जिस प्रकार वो मुझ से पैसों की मांग कर रही थी मेरे दिमाग में शक पैदा कर रही थी । हो ना हो वो औरत जरूर झूठ बोल रही थी । लेकिन मुझे कुछ जल्दबाजी थी जिस वजह से मैंने उसे कुछ रुपये देकर उस से अपना पीछा छुडा लिया । उसके जाते ही मैंने जल्दी से अपनी गाडी को ताला लगाया और पैदल ही बाजार की ओर चल पडी । कुछ देर खरीदारी करते हुए मैं खिलोने की दुकान पर पहुंची । मैं दुकान के अंदर खिलोने देख रही थी कि तभी एक जानी पहचानी आवाज में मेरा ध्यान खींचा । मैंने पीछे मुडकर देखा तो मेरे पीछे वही औरत खडी थी जो अपने इलाज के लिए मुझसे पैसों की मांग कर रही थी । इससे पहले कि मैं उससे कुछ बात करती, वहाँ के दुकानदार ने उसे बुरा भला कहकर वहां से भगा दिया । मुझे दुकानदार बर्ताव अच्छा नहीं लगा और मैंने उससे कहा, भैया जी, आपको उनसे ऐसे नहीं बोलना चाहिए था । किसी भी वही चीज औरत अभी अपने इलाज के लिए पैसे मांग रही थी । वो दीदी लगता है आप इसके बारे में नहीं जानती तभी उसे अपनी सहानुभूति दिखा रही है । मैं कुछ समझी नहीं । कौन है वो दीदी? उसका नाम शकुंतला है और वह हर रोज यहाँ बाजार में आती है । सारा दिन बाजार में घूमती रहती है और यहाँ आते जाते लोगों से कोई न कोई बहाना लगाकर पैसों की मांग करती रहती है । लेकिन ऐसा क्यों करती है? मेरा मतलब है कि इसके परिवार में से कोई बीवी कोई ऐसी वैसी औरत है । ये बहुत ही अमीर घर से संबंध रखती है । वह क्या है ना । आपने तो कहावत सुनी ही होगी कि कुत्ते को भी हजम नहीं होता । वहीं इसके साथ हुआ तुम्हारी बात कुछ समझने सर, खुलकर बताओ दीदी । ये यहाँ फांसी के किसी गांव में रहने वाली थी । कहते हैं उसके परिवार की वित्तीय स्थिति कुछ ठीक नहीं थी । इसके पिता खेती बाडी करके बहुत मुश्किल से परिवार का पेट पालते थे । ये दिखने में सुंदर थी और किस्मत की भी ठीक थी जिससे इसकी शादी हमारे यहाँ शहर के अमीर घराने में हो गई । शादी होते ही इसकी दुनिया बदल गई । चारों तरफ पैसों की कोई कमी नहीं थी । सब कुछ सही चल रहा था । लेकिन शादी के कुछ ही महीनों के बाद इस ने अपने ससुराल वालों पर दहेज उत्पीडन और मारपीट जैसे झूठे इल्जाम लगाने शुरू कर दिए । सारा शहर जानता था कि सच क्या है लेकिन हमारा भारतीय कानून लडके पक्ष की सुनता ही नहीं जिससे इसके ससुराल वालों को कुछ दिन जेल में गुजारने पडे । कहते हैं जेल से आने के बाद इसके ससुराल वालों ने भी इसके माइक्रो वालों से कानूनी लडाई लडना शुरू कर दी क्योंकि कई वर्षों तक चलती रही ससुराल वाले तो पैसे वाले थे इस वजह से उन्हें कुछ फर्क नहीं पडा । लेकिन इस लंबी कानूनी लडाई में इसके मायके वालों का सब कुछ बिक गया तो इसके माता पिता या परिवार वाले अब कहाँ है दीदी सच कहूँ तो उनके बारे में ज्यादा कुछ नहीं पता पर सुना है कि पिता दिल के दौरे से मर गए और माँ किसी लंबी बीमारी के बाद चल बसी हूँ । तो इसके केस का क्या बना तो दीदी अभी तक चल रहा है । ऍम वगैरह है ना । इसका एक बेटा है लेकिन इसके ससुराल वाले उसे मिलने नहीं देते । मेरी दुकान में कई बार आया है तुम क्या सोचते हो? कसूर किसका हो सकता है अब दीदी इसके बारे में तो भगवान ही जानता है कि कसूर किसका था । लेकिन एक बात मैं जानता हूँ । अगर ये औरत अपनी जगह सही होती है और अगर इसका कोई कसूर नहीं होता तो आज यहाँ अधिकारियों के जैसे भीगना मांगती, कुछ देर बातें करने के बाद में वहाँ से वापस आ गई और पारी के जन्मदिन के प्रोग्राम के लिए जाने लगी । रास्ते में मैं उस औरत के बारे में सोच रही थी, मेरे जहन में घर कर रही थी । मैं उसे खोलने की कोशिश कर रही थी, लेकिन उसे भुला नहीं पा रही थी । शायद इसकी वजह मेरा बीता हुआ समय था । मेरी और उस औरत की कहानी में ज्यादा अंतर नहीं था । हम दोनों की कहानी में फर्क था तो बस इतना कि मैंने समय रहते अपनी गलती का एहसास कर लिया था और उसका पश्चताप करने के लिए अपने आप को मानसिक तौर पर तैयार कर लिया था । कुछ ही समय में मैं चीखों के घर यानी आपने पहले ससुराल के नजदीक पहुंच गई । जैसे जैसे में घर के और करीब पहुंच रही थी मैं डरने लगे । मैं कुछ देर रुकी और चीजों के घर जाने या न जाने के बारे में सोचने लगे । काफी देर तक सोच विचार करने के बाद मैंने यह फैसला किया की कुछ भी हो जाए मुझे जाना तो होगा लेकिन मुझे डर भी लग रहा था । डर इस बात का नहीं था कि लोग क्या कहेंगे बल्कि डर इस बात का था की परीक्षा सामना में कैसे करूंगी । क्योंकि पारी को लेकर मेरे मन में कई प्रकार के सवाल थे वो ये कि वह मुझे क्या कहकर पुकारेगी? क्या वो मुझे आंटी कहेगी या फिर मौसी या फिर माँ रहेगी तो मुझे माँ तो नहीं कहेगी क्योंकि माँ तो शिखा को कहती है और मौसी तो वह किसी को नहीं कहती होगी क्योंकि शिखा की कोई बहन नहीं है । यकीनन मुझे आंटी कहेगी । एक औरत के लिए वो कैसा पल होता होगा जब चाहकर भी अपनी जन्म दी हुई और रात को ये ना बता सके कि उसमें ही उसे जन्म दिया है और वही औलाद उसके साथ अजनबियों जैसा व्यवहार करें । यकीनन मेरी जिंदगी का वो पल बहुत ही बुरे पलों में से एक होगा जब मेरी बेटी परी मुझे आंटी कहकर पुकारेगी । खैर ऐसे और भी कई प्रकार के सवाल मेरे मन में भूचाल ला रहे थे और इसी मन की उथल पुथल को साथ लिए मैं शिखा के घर की ओर जा रही थी । मैं अपनी गाडी में थी, किसी में खुद चला रही थी । मैं चीजों के मोहल्ले की उन गलियों से निकल रही थी जिन गलियों में मैंने वहाँ से चले जाने के बाद कभी कदम नहीं रखा था या यू पहलों के कभी उन रास्तों से गुजरने की हिम्मत तक नहीं हुई थी । लेकिन आज कुछ अलग था क्योंकि आज मुझे उन गलियों से गुजरने पर शर्म या संकोच वगैरह नहीं हो रहा था, बल्कि मैं शान से वहाँ से गुजर रही थी, जिसकी वजह शायद मेरा उपन्यास था, जिसके जरिए मैंने अपने किए का पश्चाताप किया था । यानी मैंने चीजों की इच्छा पूरी कर दी थी और मैंने अपना प्रायश्चित कर लिया था । खैर कुछ ही देर में मैं बच्ची को के घर के बाहर पहुंच गई । गाडी से उतरी और चीकू के दरवाजे के पास जाकर खडी हो गई । मैं कुछ हिचकी जा रही थी जिससे घबराहट का होना स्वाभाविक था लेकिन फिर भी मैंने हिम्मत करके दरवाजे के पास लगी घंटी बजाई । कुछ समय के बाद दरवाजा खुला और दरवाजे पर एक छोटी सी बच्ची थी जिसने सफेद रंग के परियो जैसे कपडे डाले हुए थे । वो पडी थी मेरी बेटी परी परियो जैसी कपडों में उस सच में पर ही लग रही थी । मैं एक तक उस की ओर देख रही थी । समय मानो जैसे थम सा गया था । कुछ समय के बाद करिए । मुझसे कहा आपको किस से मिला है? कौन हैं आप? लेकिन मैं तरीके सवाल का जवाब नहीं दे पा रही थी । मैं उसकी ओर एक तक देखे जा रही थी । मेरी आंखों में आंसू थे या आँसू मेरे पश्चाताप के आंसू थे । ये वो समय था जब मैंने खुद को बहुत ही बेबस और लाचार पाया । क्योंकि मैं अपनी बेटी को बता नहीं पा रही थी कि मैं कौन हूँ और उस से मेरा क्या रिश्ता है । मैं चाहकर भी उसे गले से नहीं लगा पा रही थी । पारी बार बार अपना सवाल दोहराया जा रही थी लेकिन मैं अपनी नजरें झुकाए एक मुजरिम की तरह अपनी बेटी के सामने खडी थी । कुछ देर के बाद चीजों की मई और उसने मेरी ओर देखा । उसी समय वह आगे बढी और मुझे अपने गले से लगा लिया । उनके गले से लगाते ही में फूट फूटकर रोने लगी । जी को की माँ मुझे चुप करवा रही थी लेकिन मैं चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी । मैं चाहकर भी अपना रोना नहीं रोक पा रही थी । कुछ समय के बाद वो मुझे अंदर लेकर आई और अपने पास बिठा लिया । हाँ, मुझे माफ कंडो मैं आप सबकी गुनहगार हो । मुझे पता है मैंने जो पास किए हैं तो माफ करने के लायक नहीं है । लेकिन फिर भी अगर हो सके तो मुझे माफ कर दो । मैं रोते हुए चीजों की माँ से माफी मांगने लगी । बेटी पहले तो तुम रो मत और चुप हो जाओ और रही बात माफ करने की तो मैंने तुम्हें उसी दिन कर दिया था जब तुम्हारी लिखी किताब पडी बेटिंग तुम नहीं जानती तो मैं कितना ने काम किया है । तुमने अपने गुनाहों का प्रायश्चित करना था और तुमने कर लिया । अब तुम रो कर अपना और हम सभी का दिल मत दुखाओ । उठो और देखो तुम्हारे सामने नई जिंदगी तुम्हारा इंतजार कर रही है । सच में एक नई जिंदगी मेरा इंतजार कर रही है । जब मैंने आंखें खोलकर सामने देखा तो परी और पी को मेरे सामने खडे थे । इन दोनों के साथ साथ मेरी जिंदगी का नया मकसद मेरे सामने था । मेरे लिए इस पल को बयान कर पाना बहुत मुश्किल था कि पाल मेरे लिए कुछ ऐसा था जैसे मेरी डूब रही कश्ती को किनारा मिल रहा था । मेरी घर वापसी हो चुकी थी । मेरा मकसद आज पूरा हो चुका था । मैंने अपने गुनाहों का प्रायश्चित कर लिया था । काली, अंधेरी और तूफानी रात के बाद एक नया खुशनुमा सवेरा मेरा इंतजार कर रहा था ।

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After the sad demise of Chiku, his legacy had to be taken forward. More light had to be thrown on the problem of stammering. Voiceover Artist : Raziya Khanum Author : Rohit Verma Author : Rohit Verma Rimpu Producer : Theremin Studios Voiceover Artist : Razia
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