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भारत पांचवां ठीक ओं का आत्ममंथन । मेरे उपन्यास को बाजार में आए हुए लगभग छह महीने हो गए थे । इस दौरान मैंने कई उतार चढाव देखे । उपन्यास को लेकर जहाँ मेरी तारीफ हुई, वहाँ कई जगह पर बहुत आलोचनाओं का सामना भी करना पडा । लेकिन कुल मिलाकर उपन्यास से मुझे अच्छी खासी शोहरत मिल गई और मेरी संस्था भी अपनी शौहरत की बुलंदियों को छूने लगी । कुछ ही महीनों के अंतराल में मेरा और मेरे संस्था का नाम दूर दूर तक फैले लगा । मैंने अपनी बनाई संस्था के माध्यम से कई घरों को टूटने से बचाया, जिससे बहुत ही कम वक्त में मेरी संस्था के नाम का डंका बजने लगा । एक दिन में अपने दफ्तर में बैठी थी और आपने अगले उपन्यास को लिखने के बारे में सोच रही थी । तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी । मैंने जो भी था उसे अंदर आने को कहा । कोई और नहीं बल्कि शिखा थी हरी वह आपने तो अचानक आकर मुझे हैरान ही कर दिया । मैंने कहा हैरान करना तो हमारी आदत है । शिखा ने कहा ये भी ठीक है अच्छा वो सब बाद में पहले ये बताओ कि क्या लोगी । मेरा मतलब है कि कोई चाय ठंडा वगैरह कुछ नहीं । अभी तो कुछ नहीं । हाँ अगर कुछ लेना होगा तो मैं तुम्हें बता दूंगी । शर्मा हूँ बिल्कुल नहीं । शिखा ने मजाकिया लहजे में कहा, ये भी ठीक है अच्छा ये बताओ घर में सब कैसे हैं और मेरे पीकू का क्या हाल है यार पीको का तो तुम पूछो ही मत । बहुत शरारती हो गया है आज कल जब से वो थोडा बहुत रेंगना शुरू हुआ है तबसे तो किसी के हाथ में नहीं आता । अच्छा वो सब छोडो तुम सुनाओ कैसा चल रहा है बहुत बढिया सब कुछ योजना के अनुसार ही हो रहा है । ये तो होना ही था । आखिरकार शुरुआत किसमें की थी? पी को नहीं, तुम सही कहती हूँ । पीको ने आज जिस फेसबुक पेज की शुरुआत की थी, आज उसी के माध्यम से मैं और मेरी संस्था का नाम पूरी दुनिया में कोने कोने में पहुंच गया है । ये तो एक में एक दिन हो नहीं था । अच्छा दीदी एक बात मेरे जहन में कई दिनों से आ रही है । अगर आप चाहे तो क्या मैं आप से पूछ लूँ? क्या बात है बोलो दीदी? क्या चीज को सच में हकलाहट की समस्या थी? अगर थी तो उसने अपनी समस्या पर काबू कैसे पाया था? जी को को हकलाहट की समस्या थी । इस बारे में तो कुछ भी नहीं जानती नहीं । इसके पीछे बहुत से कारण है । एक तो जब मेरी चीजों से मुलाकात हुई तो मुझ से बहुत कम बात करता था या फिर अगर वो कभी बात भी करता था तो आपने समस्या को चाहे नहीं होने देता था । दूसरा शादी के बाद तो हमारी जिंदगी लडाई झगडा करने में ही बीत गई । कभी चीखों को करीब से जानने का मौका ही नहीं मिला । लेकिन जहाँ तक मैंने सुना है चीकू और तुमने शादी के पहले करीब तीन चार साल तक मोबाइल में बातें की थी । हाँ, ये तो सच है और हैरानी की बात भी है । उस समय के दौरान मैंने कभी चीजों की हकलाहट की समस्या पर बिहार नहीं दिया क्योंकि मुझे ठीक ओके जीवन की इस बडी सच्चाई यानी उसके हकलाहट की समस्या के बारे में पता नहीं था । हो भी सकता है क्योंकि जहाँ तक मैं उसे जानती हूँ, उसे समझना इतना आसान नहीं था । उसे जानने के लिए उसके दिल की गहराइयों में उतरना होता था । यानी कि उसके दिल में क्या है या फिर उसके दिमाग में क्या चल रहा है । वो किसी को आसानी से नहीं बताता था । लेकिन आप को तो पता ही होगा कि उसने अपनी हकलाहट की समस्या को कब और कैसे काबू में क्या हाँ पता है । वैसे तो इस बारे में मैंने अपने कई लेखों में जिक्र किया है की चीखों ने अपनी हकलाहट की समस्या पर काबू कैसे पाया? लेकिन जो असल बात थी वह कभी किसी लेख में नहीं लिखी । मतलब मैं कुछ समझी नहीं कौनसी असल बाद यही की चीज को ने अपने हकलाहट की समस्या पर काबू कैसे पाया? अच्छा तुम नहीं जानती । इसके पीछे भी एक बहुत ही दिलचस्प कहानी है जिससे मैंने आज तक किसी को नहीं बताया और न ही अपने किसी लेख में इसका जिक्र किया । क्या कहानी है जरा? मुझे भी तो बताओ यार बता तो लेकिन तुम उस कहानी पर यकीन नहीं करोगी और उस कहानी का मजाक बना होगी । ऐसे क्या बात है इस कहानी में जिस पर मैं यकीन नहीं करूंगी? जम्मू काल्पनिक कहानी है? नहीं, यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं बल्कि चीज को की जिंदगी का अहम राज है जिसे मेरे सेवा और कोई नहीं जानता । चार । सहेलियाँ मत बुझाओ और कहानी बताओ है क्या वो अच्छा तो सुनो । इसके बाद शिखा मुक्ता कोची को के हकलाहट की समस्या को काबू करने के बारे में बताने लगती है । बात उन दिनों की है जब हम अखबारों में छपवाने के लिए हकलाहट की समस्या पर लेख लिखते थे । ये हमारा शुरूआती चरण था । लिखने की जिम्मेदारी मेरी होती थी । लेकिन लिखना क्या है, इस बारे में चीज को मुझे बताता था क्योंकि हकलाहट की समस्या के बारे में वो मुझ से कहीं अधिक जानकारी रखता था क्योंकि वह स्वयं हकलाहट की समस्या को निजीतौर पर झेल चुका था । एक दिन की बात है, मैं और चीकू दोनों बैठे बातें कर रहे थे । बातों बातों में मैंने चीजों से कहा जी, कुछ ही आपने कभी ये नहीं बताया कि आपने अपनी हकलाहट की समस्या का खात्मा कैसे? क्या ये ऐसे सवाल हुआ । बच्ची को ने हैरानी से पूछा, क्योंकि क्या मैंने कुछ गलत सवाल पूछ लिया? यही तो पूछा है कि आपने अपनी हकलाहट की समस्या को खत्म कैसे क्या? तो मैं इस ने कहा कि मेरे हक लार्ड की समस्या खत्म हो गई है । ये समस्या तो मरते दम तक मेरे साथ रहेगी । लेकिन आप तो बिलकुल ठीक बोलते हैं । वो इसीलिए क्योंकि मैंने अपने हकलाहट की समस्या यानी मेरे हक लू महाराज को अपना दोस्त बना रखा है । जिस वजह से मैंने अपनी हकलाहट की समस्या पर काबू कर लिया है । लेकिन जब कभी मेरा वो हक लो महाराज मुझसे नाराज हो जाता है तो मेरी हकलाहट की समस्या फिर से मेरे काबू की बाहर हो जाती है । ठीक हूँ की बात सुनकर में थोडा हैरान थी खासकर उसके दोस्त हकला महाराज के बारे में जानकर तो और ज्यादा ही हैरान थी । मैंने चीजों से उत्सुकता और हिरानी के मिले जुले भाव से पूछा ये हक लो और आज कौन है? अब इन की क्या कहानी है? इस बात पर चीकू जोर जोर से हसने लगा इससे हसने वाली क्या बात है? क्या मैंने कुछ गलत पूछा? मैंने तो तुम्हारे इस हक लो महाराज के बारे में तुम से पहली बार सुना है कौन है? कुछ नहीं चलो आज तो मैं अपने इस हक लो महाराज के बारे में भी बता देता हूँ लेकिन वादा करो की तो मैं इसका जिक्र किसी से नहीं करोगी । वादा तो करती हूँ परन्तु तुम्हारे दोस्त में ऐसी भी क्या बात है जिसका जिक्र में किसी से नहीं कर सकती वो जब तुम उसके बारे में जानो ही तो तो मैं खुद पता चल जाएगा । तो बात ऐसी है जब मेरी उम्र करीब बीस साल के आसपास थी । मेरी हकलाहट की समस्या क्यूँकि तू थी यानि अपनी जवानी के दिनों में भी मैं हकलाता था । अपनी समस्या से निजात पाने के लिए मैंने कई प्रकार के टोटके अपनाए लेकिन सब व्यर्थ साबित हुए । टोटके मतलब कौन पर से टूट के टोटके जैसे किसी तोते का झूठा फल खाना या फिर शशांक हमें रात भर पानी डालकर सुबह उस पानी को पीना और भी जैसे न जाने कई टोटके अपनाए । लेकिन कोई भी टोटका कामयाब हो सका । फिर फिर एक दिन मेरे दादा जी के बचपन के दोस्त मेजर अंकल हमारे घर आए । उन्होंने अगला हट के विषय पर काफी कुछ बताया । मेजर अंकल से हकलाहट के विषय पर जानकारी प्राप्त करने के बाद मेरी समस्या वैसी ही बनी रही । मुझे याद है एक दिन में अपने घर पर अकेला था और मैं अपनी हकलाहट की समस्या के बारे में सोचते लगा । मैं प्लाॅट की समस्या पर आत्ममंथन करने लगा । अपनी समस्या का हल में अपने भीतर ही खोजने लगा । कुछ समय के आत्ममंथन के बाद मैंने पाया कि मेरे भीतर एक कोने में छोटा सा बच्चा दुबक कर बैठा है । मैंने इसे देखा और कहा तुम कौन हो और यहाँ क्या कर रही हूँ । मुझे देखकर उसने कहा मैं ठीक हूँ लेकिन ठीक हूँ तो मैं हूँ । मैंने हैरानी से कहा तुम चीज को नहीं हो तो अनिल हूँ और तुम बडे हो चुके हो । लेकिन मैं बडा नहीं हुआ क्योंकि हक लू महाराज ने मुझे बडा होने ही नहीं दिया । हाँ तुम्हारा अब ये कौन है? धीरे बोलो । उस ने सुन लिया तो वापस आ जाएगा लेकिन मुझे उसके बारे में बताओ तो आखिरकार वहाॅं जिससे तो इतना डर रहे हो और तुम कह रहे हो कि तुम्हारा नाम चीज है । अगर तुम चीज हो तो फिर मैं कौन हूँ? मैं तुम्हारा ये प्रतिदिन हूँ । बस हम दोनों में फर्क बस इतना है कि तुम समय के साथ साथ बडे होते गए और मैं उस हक लू महाराज के डर की वजह से वहीं रुक गया । अब ज्यादा पहेलियाँ मत बुझाओ और जल्दी से हक लो । महाराज के बारे में बताओ वरना मुझे बुरा कोई नहीं होगा । हम बातें कर ही रहे थे कि तभी मेरे पीछे शख्स आकर खडा हो गया । उसका नातो को चेहरा था और ना ही कोई आकार । वह धुंधली परछाई के समान था । पहले तो मुझे कुछ समझ में नहीं आया कि ये कौन है और मैं डर गया । फिर मैंने कुछ हिम्मत जुटाते हुए उससे पूछा आप कौन हैं? मैं वही हक लो मारा जिसका जिक्र छोटा बच्चा कर रहा था, वो तो आप है जिन्होंने इस बिचारे छोटे से चीजों को डराकर रखा हुआ है । इससे बडा ही नहीं होने दिया । जानते हुए छोटा सा बच्चा कौन है? हाँ में सब जानता हूँ, इसके बारे में भी और तुम्हारे बारे में भी तो ठीक है । लेकिन मुझे एक बात तो बताओ । तो मैं हर समय डराते क्यों रहते हो? देखो ना, ये तुम्हारी परछाई यानी मेरा एक शख्स है और ये कहता है कि छोटा इसीलिए रह गया क्योंकि तुमने से बडा ही नहीं होने दिया । ये इसकी गलतफहमी है कि ये मेरी वजह से छोटा रह गया । लेकिन असल में इसकी वजह कोई और है । कोई और है कौन वो तुम लोग, हम लोग ये तुम क्या कह रहे हो? हाई सच है इस छोटे से चीजों की सारी परेशानियों की जड तुम लोग तुम्हारी वजह से आज तक बडा नहीं हो पाया । यहाँ तक कि मेरे जान के पीछे भी तुम ही लोग हो लेकिन बदनाम मैं हो रहा हूँ । हाँ वो महाराज जी आप कहना चाहते हैं सिर्फ खुलकर बताएंगे तुम लोगों से मेरा भी पा रहे ये समाज है तुम्हारे आस पास के लोग जो तुम्हारे बचपन से लेकर जवान होने तक तुम्हारे आस पास रहे जिनमें तुम्हारे माता पिता और तुम्हारे रिश्तेदार भी आते हैं । उनकी नादानियों की वजह से तुम्हारे छोटे से दिमाग में मेरा जन्म हुआ और तुम्हारा ये ऍम छोटा चीज को मुझे डर नहीं लगा और छोटा ही रह गया लेकिन छोटा रह गया और मैं बडा हो गया । तुम सिर्फ शारीरिक तौर पर बडे हुए हो लेकिन तुम्हारे अंदर कहीं न कहीं तो हमारा बचपन का जिंदा है जो मेरे डर की वजह से बढाना हो पाया । लेकिन ये डर मेरे अंदर आया कहाँ से? मैंने बोला तो सबकी जिम्मेदार तुम्हारे समाज है क्या नहीं तुम्हारे आस पास रहने वाले लोग वो कैसे? मैं बताता हूँ तो शायद याद नहीं होगा । ये उन दिनों की बात है जब तुम छोटे से थे । करीब चार साल के तब तुम में अच्छी तरह से बोलना शुरू भी नहीं किया था । उन दिनों एक दिन तुम्हारी बुआ तुम्हारे घर पर आई हुई थी । उसमें तुम से कुछ बात की और तुम बात करते करते कुछ कुछ हकलाने लगे तो तुम्हारी बुआ तुम्हारे इस प्रकार से बात करने पर तुम पर हसने लगी तो मैं बार बार बोलने के लिए उकसाने लगी । तुम ना समझ थे और बुआ के इस रवैये का आनंद ले रहे थे । बुआ की कहने पर बार बार हकलाकर बोल रहे थे । धीरे धीरे तुम्हारे घर के बाकी सदस्य भी तुम्हारे इस प्रकार हकलाकर बोलने का आनंद लेने लगे तो मैं ऐसे मजेदार खेल समझकर बार बार उनकी बात मानते रहे । समय बीतता गया और तुम्हारा ये खेल यानि तुम्हारा हकलाकर बोला अब तुम्हारी आदत में शुमार हो गया । समय के साथ साथ तो और भी अक्ल नहीं लगे जिससे लोग तुम्हारा मजाक उडाने लगे । जब तुम कुछ बडे हो गए तो तो मैं कुछ कुछ समझ में आने लगा कि तुम्हारे हकलाने की वजह से जब लोग हस्ते हैं तो असल में तुम पर हसते हैं और तुम्हारा मजाक बनाते हैं । तो मैं इस खेल में अपनी बेइज्जती महसूस होने लगी । इससे पहले किस्तों में से पूरी तरह से समझ पाते हक लाड की समस्या ने तुम्हारे दिल और दिमाग पर कब्जा कर लिया और उसके कारण होने वाली बेज्जती और शर्मिंदगी के दैन ने इस समस्या को और बढा दिया । तुम्हारे कहने का मतलब है कि मेरी हकलाहट की समस्या का कारण मेरी बुआ और मेरे परिवार के लोग हैं था । काफी हद तक तुम्हारी हकलाहट की समस्या का कारण तो भारत तेज दिमाग है । लेकिन इस समस्या की वजह से तुम्हारा मजाक बनाने वाले तुम्हारे आस पास रहने वाले लोग हैं । फिर चाहे वो तुम्हारी बुआ हो या फिर तुम्हारे परिवार के बाकी के सदस्य । तो मैं ये जानकर चाहे अजीब लगे लेकिन एक बात ये भी सच है कि तुम्हारी हकलाहट की समस्या के बढने का एक कारण तुम्हारे पिताजी भी है । मेरे पिताजी मेरी हकलाहट की समस्या के बढने का कारण कैसे हो सकते हैं? याद करूँ, जब तुम्हें हकलाना शुरू किया था तो पहले तो सभी ने इसे अपने मनोरंजन का साधन बना लिया लेकिन कुछ दिनों के बाद तुम्हारे पिताजी तो वे सही प्रकार से बोलने के लिए कहने लगे । लेकिन तुम सही ढंग से बोलने के बजाय हकलाकर बोलने लगते हैं । तुम्हारी इस प्रतिक्रिया पर जब तुम्हारे पिताजी तुम्हें डाटते तो कोई ना कोई तो में बचा लेता तो वैसे खेल समझते और सही ढंग से बोलने के बजाय जानबूझकर हकलाकर बोलते । समय के बीतने के साथ साथ जब तो वे अपनी गलती का एहसास हुआ, तब तक बहुत देर हो चुकी थी और तुम चाहकर भी सही प्रकार से बोल नहीं पाते थे और इस बार जब तुम हकलाकर बोलते तो तुम्हारे पिता तो में डाल कर सही प्रकार से बोलने के लिए कहते तो तुम सही प्रकार से बोलने की बजाय और भी आगरा में लगते हैं । ऐसा तुम्हारे पिता के दागने की वजह से होता यानि तुम्हारे पिता की डाटकर डर तुम्हारी हकलाहट की समस्या को और भी बढा देता था । तुम्हारी कहने का मतलब ये हुआ कि मेरी हकलाहट की समस्या का कारण मेरे आस पास के रहने वाले लोग हैं । यानी मेरी बुआ जिसने में हकलाहट की समस्या का मजाक बनाया और मुझे हकलाकर बोलने के लिए उकसाया । मेरे पिताजी जिसमें मुझे सही प्रकार से बोलने के लिए डाटा और इसी डांट के डर की वजह से मेरी हकलाहट की समस्या को बढावा मिला नहीं ऐसा नहीं है लेकिन तुम्हारे अनुसार तो ऐसा ही है । तुम्हारी हकलाहट की समस्या का असली कारण तुम्हारा तेज दिमाग है जिस वजह से तुम जल्दबाजी में बोलते हूँ यानी तेज बोलते हो । तुम्हारी मानसिकता ये होती है कि इससे पहले मेरी हकलाहट शुरू हो जाए । मैं अपनी बात को पूरा कर लो । हाँ ये बात तो है हकलाहट कर दे तो मेरे दिमाग में बना रहता है । मैं डरता था की कहीं बात करते समय मैं हकलाने अलग जाऊँ लेकिन मेरे हक लाड के समस्या के कारण अगर मेरा तेज दिमाग है तो इसलिए मेरे परिवार की भूमिका क्या थी? मेरे कहने का मतलब है कि मेरे परिवार या मेरे आस पास रहने वाले लोग मेरी हकलाहट की समस्या के लिए जिम्मेदार कैसे हो गए? इस बात में कोई किन्तु परन्तु नहीं या कोई शक नहीं कि तुम्हारी हकलाहट की समस्या का कारण तुम्हारी हकलाहट की समस्या है । लेकिन तुम्हारी हकलाहट की समस्या को बढाने के लिए तुम्हारे पारिवारिक सदस्य और तुम्हारे आस पास रहने वाले लोग जिम्मेदार हैं जिन्होंने तुमारी अगलाड की समस्या को अपने मनोरंजन का साधन बनाकर तुम्हारी बेज्जती की और तुमने अपनी बेज्जती को महसूस किया जिसके डरने तुम्हारी हकलाहट की समस्या को और भी बढा दिया । मैंने गौर से कहानी को सुना और कुछ देर तक चुप रही । कुछ देर के बाद मैंने शिखा से कहा दीदी सच कहूँ तो मेरे पास शब्द नहीं है कि मैं चीजों के बारे में कुछ बोल सकूँ । सच में उस की इस कहानी से मुझे आत्ममंथन की शक्ति के बारे में पता चला । सच में मजा आ गया, अच्छा बस करो और तुम कुछ देर यहाँ बैठो मैं घर जा रही हूँ दीदी मैं भी घर जा रही हूँ । मुझे कुछ काम है । चीजों का आत्ममंथन भले ही काल्पनिक कहानी है लेकिन उसके हकलाहट की समस्या के असली कारणों या वजह को उजागर करती है । भले ही उसके हकलाहट की समस्या के पैदा होने के पीछे उसका तेज दिमाग या फिर दूसरा कोई कारण था । लेकिन उसकी समस्या को बढावा देने के पीछे ये समाज जिम्मेदार है जिसमें उसकी हकलाहट की समस्या को एक मजाक के तौर पर लिया और इसे अपने मनोरंजन का साधन बना लिया ।
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