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34. Pahla Kadam in Hindi

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795 Listens
AuthorRohit Verma Rimpu
After the sad demise of Chiku, his legacy had to be taken forward. More light had to be thrown on the problem of stammering. Voiceover Artist : Raziya Khanum Author : Rohit Verma Author : Rohit Verma Rimpu Producer : Theremin Studios Voiceover Artist : Razia
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आप सुन रहे हैं कोई फिल्म कहानी का नाम है चीकू । थ्री मुक्ता का प्रायश्चित जिसको लिखा है रोहित वर्मा विम पुणे और आवाज आती है । रजिया खानम ने कुकू ॅ सुने जो मन चाहे शुरुआत पहला कदम मुझे अपने गुनाहों का प्रायश्चित करना था जिसके लिए मुझे चीजों के बताए रास्ते पर चलना था । लेकिन समस्या ये थी कि मुझे ये नहीं पता चल रहा था किस काम की शुरुआत कहाँ से करनी है । इसीलिए मैंने आत्ममंथन करने का विचार किया लेकिन फिर भी कोई रास्ता नजर नहीं आया । काफी सोच विचार के बाद मैंने शिखा से मिलकर इस समस्या के हल के बारे में बात करने की ठानी । जिसके तहत एक दिन मैंने शिखा को फोन किया । हेलो जी क्या मेरी बात और शिखर जी से हो रही है? मैंने कहा हाँ मैं सीखा बोल रही हूँ । आप बोल रहे हैं सिखाने का जी मेरा नाम उगता है । मैंने कहा वो वहाँ मुक्ता जी कहीं क्या हाल है आपका? शिखा ने कहा जी बहुत बढिया है, आप सुनाइए कैसी है? मैंने कहा जी बिल्कुल बढिया, कहीं मैं आप की क्या मदद कर सकती हूँ? शिखा ने पूछा जी मुझे आप से सलाह लेनी है जिसके लिए मैं आप से मिलना चाहती हूँ । फिर डरते हुए कहा हाँ बोलो क्या बात है । डाॅ । शिखा ने कहा जी मैं आप से मिलकर कुछ बात करना चाहती हूँ । मैंने कहा ठीक है । मैं कुछ देर में सेंटर में जा रही हूँ । वहाँ जाइए । कुछ देर के बाद में शिखा के क्लीनिक पहुंची । शिखा का क्लिनिक जो कि पहले चीजों का क्लीनिक था । अब उसको शिखा चला रही थी लेकिन वो सिर्फ हकलाहट की समस्या से परेशान लोगों को ही देखती थी । जब मैं लेने के अंदर पहुंची तो लेने के सामने वाली दीवार पर चीखों की एक बडी सी फोटो लगी हुई थी जिसपर फूलों का हार था । चीजों की फोटो देखकर मैं बहुत ही भावुक हो गई । चीफ की फोटो को देखकर मुझे चीखों की बात याद आ गई । जम्मू से लडाई झगडा करती थी तो वो मुझ से कहता था कि तुमने मुझे जितना बताना है सादा लो क्योंकि आज तुम्हारा समय है । लेकिन मेरी एक बात याद रखना मेरा समय आएगा तो वह समय नहीं होगा, दौर होगा और इस दौर में तो मुझे हर पल याद करोगी लेकिन उस वक्त मैं तुम्हारे पास नहीं आऊंगा बच्ची को कि यादव में कोई हुई । अभी शिखा ने मुझे आवाज लगाई क्यों? मुक्ता जी क्या हुआ? कहाँ हो गई? कुछ नहीं । मैंने चौंकते हुए कहा तो फिर आओ अंदर आओ । मुक्ता नहीं कहा । शिखा के कमरे में चली गई । कुछ देर के मेल मिलाप के बाद शिखा ने मुझे बैठने के लिए कहा । उसके सामने बैठ कर में ऐसे महसूस कर रही थी जैसे कि मैं उसकी बहुत बडी । कोई मुझे हूँ । मैं सिर झुकाकर उसके सामने बैठी हुई थी । यही सोच रही थी कि शिखा से बात करने की शुरुआत कैसे की जाए । तभी शिखा ने मुझसे कहा हाँ तो मुक्त जी क्या बात है? बोलो मैं आप की क्या मदद कर सकती हूँ? जी वो बात बात ऐसी है कि मैंने कुछ पढते हुए कहा हाँ बोलो क्या बात है, डरो नहीं । शिखा ने कहा मुख ताजी बात कहाँ से शुरू करो ये समझ नहीं आ रहा है । बस मैं इतना कहना चाहती हूँ की मुझे अपने किए पापों का प्रायश्चित करना है । इसी के सिलसिले में में आपसे कुछ सलाह मशवरा करना चाहती हूँ । मैंने कोई झिझक और घर के मिले जुले भाव के साथ कहा थे तो बहुत ही बढिया बात है की तो मैं इस बात को महसूस करती हूँ कि तुम पास क्या है? और अब इसका प्रायश्चित भी करना चाहती हूँ । और रही बात सलाह मशविरे गी तो मैं तुम्हारी हर संभव मदद करने के लिए तैयार हूँ । सिखाने का बहुत बहुत धन्यवाद । शिखर जी बहुत उम्मीदें लेकर आपके पास आई हूँ । अब आप ही है जो मेरी मदद कर सकती हैं । मैंने कहा इसमें धन्यवाद वाली क्या बात है तो मेरा फर्ज है और फिर दूसरों की मदद करना और उनकी समस्याओं का हल करना । मैंने अपने पति से ही तो सीखा है । इसके बाद बहुत समय के लिए हम दोनों खामोश हो गए । शायद वो मेरे कुछ बोलने का इंतजार कर रही थी । परंतु मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं बातचीत को आगे कैसे बढा हूँ । कुछ देर चुप रहने के बाद मैंने शिखा से कहा, तो क्या आप मेरी मदद करेंगे? जी बिल्कुल, इसमें ना मानने वाली कोई बात नहीं है तो एक अच्छा काम करने जा रही हूँ । मगर शायद तो में एक बात नहीं जानती है । शिखा ने कहा क्या हुआ? मैंने हैरानी से पूछा । यही की यह काम इतना आसान नहीं है जितना तुम सोचती हूँ । मैं जानती हूँ । मैंने कहा इससे पहले की मैं बात को कुछ आगे बढाती । कभी किसी ने शिखा के कमरे का दरवाजा खटखटाया कौन है? शिखा ने पूछा लेकिन बाहर से कोई आवाज नहीं आई । कुछ समय के बाद शिखा ने फिर पूछा तो बाहर जो भी था उसने धीरे से दरवाजा खोला और वो कोई और नहीं बल्कि मेरी कोख से जन्मी मेरी परी थी तो धीरे धीरे अपनी माँ यानी शिखा के पास आ रही थी । फॅस कि ओ एक तक देखे जा रही थी से पहचान पाना मुश्किल हो रहा था क्योंकि अब वह बडी हो गई थी । लेकिन मेरे जहन में उसका वो चेहरा अब भी ताजा था जब मैं उसको छोड कर गई थी । मैं उसकी ओर देखे जा रही थी । अभी शिकांतो पारी को मेरी ओर करते हुए कहा बेटा आप ने इन को नमस्ते किया । नहीं ना गन्दी बात चलो नमस्ते बोलू परन्तु हैं कौन परिणी मासूमियत से शिखा से मेरे बारे में पूछा परिचय इतना कहते ही शिखा मेरी ओर देखने लग गई और मैं उससे नजरे मिलने के लायक ही नहीं थी । मैंने अपनी नजरें नीचे कर ली । उस समय मेरी जो मनोदशा थी उसे शब्दों में बयां कर पाना संभव था । वो पल था जब मैंने अपने आप को गुनाहगार महसूस किया और मैं गुनाहगार होते हुए अपनी सजा को भुगत रही थी । एक सजा ही तो थी कि मैं अपनी कोख की जन्मी अपनी बेटी को बेटी नहीं कह सकती थी तो मेरे सामने थी और मेरे बारे में पूछ रही थी । लेकिन मैं उससे ये नहीं बता सकती थी कि मैं उसकी माँ हूँ । ऍम झुकाए बैठी हुई थी । तभी शिखा ने मेरी मनोदशा को भाग लिया और उसने पारी को कहा बेटा ये तेरी बडी माँ है । बडी माम मतलब पर इसमें हैरानी से पूछा हूँ बेटा मेरी पक्की वाली सहेली है । इस प्रकार तेरी बडी माँ हुई ना? शिखा ने पर ये को समझाने की कोशिश करते हुए कहा, पक्की वाली सहेली मतलब ॅ पर मैंने कहा हाँ फॅालो जाओ, उनके पास जाओ नमस्ते बोलो शिखा ने का । शिखा के कहने पर पारी मेरे पास आई और मुझे नमस्ते कहने लगी । लेकिन मुझे इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं उसे अपने गले लगाकर उसकी नमस्ते का जवाब दे सकूं । तुरंत वहाँ से उड गई और वहाँ से जाने लगी शिखा को शायद मेरा ये व्यहवार बहुत अजीब लगा लेकिन उसने मुझे रोकना ठीक नहीं समझा । अपने घर वापस आ गई और कुछ देर आराम करने के लिए बिस्तर पर लेट गई । इंसान जब अकेला होता है तो उसके पास चिंतन करने के लिए बहुत समय होता है कि वो समय होता है जब आपको अपनी गलतियों का एहसास होता है । लेकिन तब उन गलतियों पर केवल पश्चताप भी कर सकते हैं । उन्हें सुधारने के लिए समय निकल चुका होता है । चीखों के क्लिनिक में शिखा की रजामंदी में मैं अपनी बेटी को गले नहीं लगा पा रही थी । इसका क्या कर रहा था? क्या मैं अपने आप को गुनाहगार महसूस कर रही थी? बहुत समय तक वहाँ लेती रही और अपने दिल और दिमाग के साथ काफी बहस बाजी करने के बाद मैंने फैसला किया कि जब तक मैं अपने गुनाहों को स्वीकार करके उनका पश्चित अपना कर लो, अब तक मैं अपनी बेटी के सामने नहीं जाउंगी और साथ ही साथ मेरे ऐसे गुनाह करने के पीछे जिन जिन लोगों का हाथ है उनको समाज के सामने लाकर बेनकाब जरूर करेंगे । अपने दिल और दिमाग के साथ बहस बाजी में व्यस्त थी तभी दरवाजे की घंटी बजती है । मैं जाकर दरवाजा खोलती हूँ तो सामने शिखा को खडा पाती हूँ । शिखा को सामने देखकर में बहुत हैरान हो जाती हूँ । क्या हुआ जो हैरानी से मुझे क्या देख रही हूँ, सिखाने का नहीं कुछ नहीं । मैंने कहा क्या मुझे अंदर आने के लिए नहीं होगी? शिखा ने मजाकिया लहजे में मुझसे कहा, हाँ अंदर हूँ । मैंने उससे अंदर आने के लिए कहा क्या हुआ तो वहाँ से ऐसे क्यों नहीं आई? शिखा ने मुझसे पूछा कुछ नहीं बस ऐसे ही मैंने कहा । फिर भी कोई तो बात होगी जो अपनी बेटी से मिले बगैर वहाँ से चली आई । तुम चाहती तो अपने बेटी को मिल सकती थी । उसे प्यार से अपने पास बुलाकर गले लगा सकती थी । परन्तु तुम तो वहाँ से ऐसे चली है जैसे कि सिखाने का । जैसे कि कोई अपराधी अपना प्राप्त करने के बाद भागता है । मैंने कहा अपराधी कि तुम अपने साथ नया शब्द क्यों जोड रही हूँ? मारा कि तुम से गलती हुई है । सबसे होती है इंसान । गलतियों का ही तो पतला हैं लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि तुम इस प्रकार अपने आप को अपराधी मानकर सारी अपनी किये । उस अपराध की सजा का तीन हूँ । राष्ट्रीय नाम की कोई चीज होती है याद नहीं । अगर तुम प्रायश्चित करने में विश्वास रखती हो तो उसे जरूर करूँगा । तुम उसे अपने आगे वाले जीवन का हिस्सा बना लो क्योंकि राष्ट्रीय थे एक मात्र विकल्प है जो तुम्हें और तुम्हारी आत्मा को किसी अपराधमुक्त व्यक्ति जैसा अनुभव करा सकता है । सीधी सीधी बात करो तो अगर तुम अपना सारा जीवन उन लोगों को सही रास्ता दिखाने में लगा दो क्योंकि अपनी शादीशुदा जिंदगी की अहमियत और जिम्मेदारियों को भूलकर वेट के अहम और अहंकार के कारण एक दूसरे को नीचा दिखाने पे तुले हुए हैं और किसी के बहकावे में आकर अपना शादीशुदा जीवन नर्क के समान बना रहे हैं । फिर चाहे वो कोई भी हूँ क्योंकि ये बातें पति और पत्नी दोनों पर समान रूप से बैठती है । मेरे खयाल से अगर इस प्रकार का कुछ करो तो ये तुम्हारे द्वारा कि अपराधों का सबसे बडा आप राष्ट्रीय साबित होगा । और अंत में ये आखिरी बात ये सब करते हुए तुम किसी भी तरह की गलानी शर्मिंदगी महसूस मत करना । क्योंकि हो सकता है तुम्हारा जन्म ही से काम के लिए हुआ हूँ क्योंकि अगर तुम भगवान में विश्वास रखती हो तो तुम्हें तो पता ही है ना कि ये सब उसी भगवान की मर्जी से हो रहा है क्योंकि हो सकता है भगवान तुम्हारे माध्यम से टूटे हुए परिवारों को जोडने का काम करवाना चाहता हूँ । शिखा ने कहा शिखा की बात सुनकर में खामोसी हो गई । उसकी बातों को ध्यान से सुन रही थी । उसकी बातें मेरे जिंदा शरीर की मर चुकी आत्मा में नई ऊर्जा के संचार का काम कर रही थी । उसकी बातों से मेरी मानसिक परिस्थिति में जो बदलाव आ रहे थे, उस को शब्दों में बयां कर पाना संभव था । मैं एक तक उसकी ओर देखे जा रही थी और अपने ही खयालों में उलझी हुई थी कि तभी शिखा ने मुझसे कहा क्या हुआ? क्या सोच रही हूँ क्या मैंने कुछ गलत कहा? लगता है मेरी कहीं हुई बातों का तो बुरा मान गई हूँ । अगर ये सही है तो मुझे माफ कर देना नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है । मुझे तुम्हारे किसी भी बात का बुरा नहीं लगा । बल्कि मैं तो ये सोच रही थी कि जो तुम कह रहे हो क्या वो संभव हो सकता हूँ । मैंने उससे कहा क्या मतलब हमारे कहने का मतलब क्या है? ऐसा क्या है जो संभव नहीं हो सकता हूँ तो में खुद पर विश्वास होना चाहिए तो ये संभव संभव जैसी बातें तो में मामूली से लगने लगेंगे । वो कहते हैं ना, हाल लो तो जीत है और मान लो तो हार लेकिन मुझे बात नहीं समझ जा रही है जब तुम्हें प्रायश्चित करने का मन बना लिया है क्योंकि अच्छी बात है हित में डर किस बात का लग रहा है । मेरे कहने का मतलब है कि तुम अंदर किस बात से रही हूँ । शिखा ने कहा मैं किसी से नहीं कर रही हूँ बल्कि दुविधा में हूँ । मैंने कहा दुविधा कैसे दुविधा शिखा ने कहा ये है कि जो कुछ तो में अभी कहा या यूं पहलों के जो कुछ तो मैं समझाया उसे कैसे, किस तरह से और कैसे शुरू करूँ । मैंने कहा बस इतनी सी बात है । अरे यार कोई बात हुई अरे भगवान पर भरोसा रख तो तुम्हारी योजनाओं को जीवंत रूप देने के लिए मुझसे मिलवा सकता है । क्या वो आगे का रास्ता बताने में तुम्हारी मदद नहीं कर सकता हूँ । मेरी बात सुनो तुम से जोश और होश इन दोनों से कम लेकर अपने गंतव्य की ओर निकल पडो बाकी रही रास्ते की बात तो पहाडों पर जब बर्फ पिघलकर प्रशाल पानी की धार का रूप लेकर समंदर की ओर निकलती है ना तो वो अपना रास्ता खुद ब खुद बनाती चली जाती है और अंत में वो समुंद्र में आम मिलती है । ठीक इसी तरह अगर तुम्हें भी बिना किसी हिचकिचाहट से अपने मकसद को हल करने के उद्देश्य से अपने गंतव्य की ओर आगे बढना होगा । तुम्हारा मकसद में एक है और तुम्हारा इरादा मजबूत होगा तो तुम्हें तुम्हारी मकसद में कामयाब होने से कोई दुविधा तुम्हारा रास्ता नहीं रोक सकती और बाकी रही तुम्हारे मकसद की शुरुआत की तो उसके बारे में भी कोई ना कोई रास्ता जरूर निकल आएगा । सिखाने का चलो भी ठीक है जैसा तुम का । मैंने शिखा की बात स्वीकारते हुए कहा, ऐसे ढीली से बाद में क्यों बोल रही हूँ । जोर से बोलो अपने आप में विश्वास रखो तो मैं कर सकती हूँ । मुझे देखो गर्भवती हूँ, फिर भी भाग दौर कर रही हूँ । जाका तो कर सकती हूँ । मैंने आश्चर्य से पूछा । हाथ इसमें यू हैरान होने वाली क्या बात है? पांच महीने से गर्भवती हूँ । शिखा ने का क्या? तो सच बोल रही हूँ तो तुमने बहुत ही अच्छी खबर सुनाई । अगर आप चीज होता तो कितना खुश होता हूँ । क्या उसको इस बारे में पता था? मैंने उससे पूछा चीखों को इस बारे में पता था या नहीं, इसे बता पाना मुश्किल है क्योंकि उसके कुछ बातें मेरे समझ के बाहर थी । शिखा ने कहा, समझी नहीं । अगर तुम कहना चाहती हूँ । मैंने हैरानी से पूछा मैं बताती हूँ हूँ कि जब ठीक ओके कैंसर होने के बारे में हमें पता चला तो हम उसकी दोबारा जांच करवाने के लिए उसे दिल्ली के बडे अस्पताल लेकर गई । हाँ, डॉक्टर ने उसके कैंसर होने की पुष्टि कर दी की खबर सुनकर में बेहोश हो गई । मुझे चीकू की माँ डॉक्टरों ने संभाला और एक कमरे में ले जाकर मेरा इलाज करने लगे । मेरे इलाज के दौरान उन्हें मेरे गर्भवती होने का पता चला । ये हमारे लिए बहुत ही अजीब सी हालत थी । हमें समझ में नहीं आ रहा था की क्या किया जाए । क्योंकि एक तरफ जहां चीजों के कैंसर होने की डॉक्टरों ने अपनी मुहर लगा दी थी तो हम सबके लिए दुखदायी खबर थी । वहीं दूसरी तरफ मेरे गर्भवती होने की खबर से हम सब खुश थे । अस्पताल के कमरे में जब मेरे पास बैठी मेरी सास यानी चीखों की माँ को इस बारे में पता चला तो वो खुशी से झूम गई और वहीं पर खुशी से शोर मचाने लगी । मैं उन्हें इस तरह खुश देकर मुस्कुरा रही थी कि तभी वो अचानक जोर जोर से रोने लगी । मैंने उन्हें चुप करवाया परंतु मैंने चुप नहीं करवा पाई । मैं उनके रोने का कारण जानती थी । मुझे उनकी मानसिक दशा का अंदाजा हो चुका था क्योंकि वो एक माँ थी और कुछ देर पहले इस माँ को अपने बेटे की बीमारी के बारे में पता चला था । वो बीमारी जिसका कोई इलाज नहीं था । इस माँ का बेटा मरने के कगार पर था और दूसरी तरफ इस माने अपने बेटे के दोबारा पिता बनने की खबर सुनी थी क्योंकि उसके लिए बहुत ही खुशी की बात थी लेकिन हम इस खुशी के बारे में चीजों को नहीं बताना चाहते थे । शिखा ने कहा, लेकिन क्यों तुम ठीक हो को इस बारे में क्यों नहीं बताना चाहती थी । मैंने हैरानी से पूछा चीजों को कैंसर था इसके बारे में डॉक्टरों ने पुष्टि कर दी थी । इसका सीधा मतलब था कि उसके पास समय बहुत कम था । डॉक्टरों के अनुसार उसके पास एक साल का समय था लेकिन असल में कैंसर की समस्या का पता चलने के साढे चार महीने के बाद उसमें इस दुनिया को अलविदा कह दिया था तो उसके कैंसर होने की पुष्टि हुई तो साथ ही डॉक्टरों ने ये भी कह दिया था जिसके जीवन के बहुत ही कम दिन बचे हैं और उन बचे हुए दिनों को आप कैसे खर्च करते हैं, आप पर निर्भर करता है । यानी एक रास्ता ये है कि उन दिनों को डॉक्टर और अस्पताल में खर्च करके अपना पैसा और चीजों की कीमती समय बर्बाद हो सकता है या फिर इनके बच्चे हुए कीमती समय को परिवार के साथ बिताकर इस प्रकार खर्च कर सकते हो कि इन्हें अपने मरने का कोई सोचता हूँ । यानी वो अपने इन दिनों में ही पूरा जीवन जी । डॉक्टर की कहीं ये बात हमें ठीक लगे और हमने ये फैसला किया कि हम चीजों को घर ले जाएंगे और उसके बच्चे हुए दिन खुशियों से भर देंगे और उसके जीवन के अंतिम दिनों में उसे अस्पताल ले आएंगे सिखाने का । लेकिन मुझे एक बात समझ नहीं आई । मैंने कहा वो क्या? शिखा ने हैरानी से पूछा अगर डाक्टरों ने ठेकों की जिंदगी का समय एक साल के आसपास बताया था तो वो इतना कम समय में कैसे दुनिया छोड गया? मैंने कहा मौत एक अटल सकते हैं और एक में एक दिन सभी को मरना है । लेकिन जब ये पता चल जाए कि उसकी मौत जल्द ही होने वाली है, व्यक्ति हर पल मारता है । चीजों के साथ भी ऐसा ही हुआ । शिखा ने कहा, तुम्हारे कहने का मतलब है की चीज को मौत के डर से गया था । नहीं ऍफ नहीं था । मैं उसे अच्छी तरह जानती हूँ । वो एक मजबूत इंसान था, डरने वालों में से नहीं था । वो एक सकारात्मक सोच का मालिक था । मैंने कहा हाँ बिल्कुल ठीक कह रही हूँ । चीज को वास्तव में एक मजबूत मानसिकता का मालिक था । परन्तु तुम मेरे कहने का मतलब नहीं समझे । जी को अपने जीवन से संतुष्ट था । उसके अनुसार उसने अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लिया जिसे उसने अपने जीवन के दिनों में ही तय कर लिया था । अपने आखिरी दिनों में जब हम उसे लेकर अस्पताल गए तो उसने इलाज करवाने से साफ मना कर दिया । डाक्टरों से यही कहता था कि वह से ठीक करने की कोशिश ना करें क्योंकि वो ठीक नहीं हो सकता हूँ और ये सच्चाई वो जानता था । शिखा ने कहा लेकिन ये तो आत्महत्या करने जैसी बात हुई । पच्चीस को ऐसा क्यों करेगा? मैंने हैरानी और उत्सुकता के मिले जुले भाव से पूछा हाँ तुम सही कह रही हूँ, आत्महत्या थी लेकिन सीखो के नजरिए से अगर तुम सोचोगी तो आत्महत्या नहीं बल्कि कुदरती मौत थी । सिखाने का मतलब मैंने हैरानी से पूछा । बच्ची को ने अपने अंतिम दिनों में अपना इलाज करवाना बंद कर दिया था और डॉक्टरों को हिदायत दी थी कि वो उसका सिर्फ इतनी देखभाल इलाज करे जिससे कि उसका अंतिम सफर यानी मृत्यु कष्टदायक न हो । हमारे बार बार पूछने पर उसने मुझसे कहा, मुझे पता है कि मैं मरने वाला हूँ और इस सच्चाई को कुछ टाल नहीं सकता हूँ । मेरी जमा की हुई जमा पूंजी और धन दौलत से प्राप्त ताकते सहायता मेरी मृत्यु को कुछ दिन तक ताल जरूर सकती है पर उनको इतना नहीं जितना वो चाहता है । परन्तु ऐसा करने से वह जमा पूंजी जो मेरे बाद मेरे परिवार के काम आ सकती है वो खर्च होगी । मैं नहीं चाहता ऐसा हूँ । मेरा इलाज करके आम जिंदगी जी पाना अब असंभव है । तो क्यों ना मैं सच को स्वीकार करूँ उसी गलत मत समझना । मैं ये आज सभी के भले के लिए कह रहा हूँ । मेरे जाने के बाद मेरी बच्ची हुई धन डॉलर तुम्हारे जीवन यापन के काम आएगी और फिर में मान नहीं रहा तेरा तो केवल शरीर मरेगा तो आप सबके दिलों में हमेशा जिंदा रहूँगा । सिखाने का सच में ठीक उन्हें ऐसा काम किया है जिससे वो सबके दिलों में जिंदा रहेगा । लेकिन तुम ने उसे अपने गर्भवती होने की बात क्यों छुपाई? मैंने पूछा हूँ ठीक को एक संतोषजनक रूप से मृत्यु की गोद में सो रहा था । यानी वो अपने जीवन से पूरी तरह संतुष्ट था और अगर मैं उसे ये बता दे दी कि मैं गर्भवती हूं तो उसे अपनी संतान को देखने की इच्छा होती है, जो कि नामुमकिन थी । अंतिम समय में उसे अपनी संतान को ना देख पाने का मलाल जरूर होता हूँ और मैं ऐसा नहीं चाहती थी । सिखाने का तो क्या उसे इस बारे में पता नहीं चल सका । मैंने पूछा पता चल गया था । शिखा ने कहा हो कैसे? मैंने हैरानी से पूछा । एक दिन उसने में दवाइयाँ देखती थी सिखाने का । फिर मैंने उत्सुकतावश पूछा । फिर वो एक चुप हो गया और मैंने उसे समझाते हुए कहा मैं जानती हूँ तो मैं इस समय क्या महसूस कर रहे हो गई परंतु उसमें मैं क्या कर सकती हूँ? फिर मैंने अस्पताल वाली सारी घटनाओं से बता दी सिखाने का फिर उसने क्या किया? मेरे कहने का मतलब है की चीज को फिर से पिता बनने वाला है । ये खबर जानने के बाद उस की क्या प्रतिक्रिया थी? मैंने पूछा तो चुप सा हो गया था । जब मैंने उसे संतावना दी तो उसने कहा था कि मुझे किसी संतावना की जरूरत नहीं है । मेरी किस्मत में जो कुछ लिखा है वही हो रहा है । तो अगर भगवान ने मेरी किस्मत में हमारी संतान का मूवी देखना लिखा होगा तो जरूर होगा । जो हो रहा है उसे मैं रोक नहीं सकता हूँ । शिखा ने कहा, और फिर कुछ देर बातें करने के बाद शिखा वहाँ से चली गई और मैं फिर से अकेली पड गई । इंसान जब अकेला पड जाता है तो उसके पास अपने आप में अपने को ढूँढने के लिए काफी समय होता है क्या की थी और अपने इस अकेलेपन के लिए जिम्मेवार नहीं थी । मैं अपनी जिंदगी के उन सुनहरे दिनों के बारे में सोचने लगी जो दिन मैंने चीखों के साथ बताए थे । मेरी जिंदगी के सुनहरे दिनों में से एक थे परन्तु किस्मत में मेरे साथ कुछ और ही खेल खेला था । खैर अब उन दिनों के बारे में सोच सोचकर समय गंवाने वाली बात है । हो सकता है कि भगवान ने किसी खास काम को करने के लिए मुझे चुना हूँ जिसके लिए मेरे लिए ये दिन देखने जरूरी हूँ परन्तु खास काम क्या हो सकता था । मैं बार बार अपने आपसे सवालात कर रही थी और जवाब को अपने अंदर से खोज निकालने की कोशिश कर रही थी । अपने आप से सवाल करना मैंने चीजों से सीखा था तो हमेशा कहता था कि जब भी आप किसी समस्या में पड जाओ तो समस्या से निपटने के लिए जो हाल है वो तो मैं किसी मंदिर से नहीं बल्कि तुम्हें अपने मन के अंदर से मिलेगा । में बार बार अपने आपको सवाल कर देखी थी और जवाब ढूंढने की कोशिश कर रही थी लेकिन जवाब नहीं मिल रहा था । लेकिन मुझे अपने आप पर विश्वास था इसका जवाब मुझे एक ना एक दिन जरूर मिलेगा । अकेली थी और इंसान जब अकेला पड जाता है तो उसके पास सोचने समझने के पर्याप्त समय होता है । मानो या ना मानो उसके जीवन का सबसे सुनहरा समय होता है क्योंकि यही वह समय होता है जो इंसान को अपने और अपनों में छिपे गैरों की पहचान करवाता है । यही वह समय होता है जब इंसान अपने आप को पहचान पाने में सक्षम हो जाता है । मैं अपने सुनहरे समय में अपनी पिछली जिंदगी के बारे में सोचने लगी और जिंदगी से अपने और उनमें छिपे गैरों के बारे में सोचने लगी मेरे लिए उनकी पहचान कर पाना ज्यादा मुश्किल नहीं था । वो शायद इसीलिए के मेरे जीवन के मुश्किल दिनों ने रिया आँखों की रोशनी और भी बढा दी थी और साथ ही साथ मेरे दिमाग की सारी नसें को खोल कर रख दिया था जिससे मेरे लिए अपनों गैरों की पहचान कर पाना अब सबसे ज्यादा आसान हो गया था । खैर अब समय कुछ कर दिखाने का था और अपनी पिछली जिंदगी से सबक लेकर और की हुई गलतियों से मिले कलंक को मिटाने का था और फिर शिखा का साथ मेरे साथ था ही मैं उस पर भरोसा कर सकती थी । मैं उसकी मदद से अपने ऊपर लगे कलंक को मिटा सकती थी । परन्तु कैसे ये सब बातें सोचने और कहने के लिए तो ठीक थी लेकिन इन बातों को हकीकत में लाना बहुत मुश्किल था । शिखा के मेरे साथ और मेरे मजबूत इरादे से मेरे जीवन में नई ऊर्जा का संचार हुआ था । ऊर्जा से भरपूर थी, कुछ कर दिखाने की मन में ठान ली थी परन्तु इस ऊर्जा का इस्तेमाल कैसे करना है, इसके बारे में पता ही नहीं था । ऐसे सोचते सोचते कितना समय निकल गया, पता ही नहीं चला । अच्छे खासे भी कई दिनों से बातचीत नहीं हुई, जिससे मुझे कुछ शंका से होने लगी । मुझे लगने लगा कि जैसे शिखा मुझे अनदेखा कर रही है तो मेरी बात को अनसुना कर रही है की नहीं कि मैंने उससे बातचीत करने की कोई कोशिश नहीं की । मैंने बहुत कोशिश की लेकिन हर बार वह कोई न कोई बहाना बनाकर उससे दूरी बना लेती थी । मैं घबरा गई थी क्योंकि मेरे मकसद की कामयाबी में साथ देने वाली वो अकेली लडकी थी । मैं अपने दिल की बात सिर्फ उसी से करती थी । कई दिनों तक जब शिखा से मेरी मुलाकात नहीं हुई तो मेरे मन में उसके प्रति नकारात्मक विचार आने शुरू हो गए । मेरे दिमाग में उसके खिलाफ गलत हारना ने जन्म ले लिया । लेकिन ये सब मेरे गलत फहमी थी । एक दिन शिखा का खुद फोन आया । उसने कहा हेलो मुक्ता जी, क्या हाल है पहचाना शिखा बात कर रही हूँ, बाहर शिखा दे दी । मैं बिलकुल ठीक हूँ और फिर आपने एक ऐसे सोच लिया कि मैं आपको पहचान नहीं पाऊंगी । मैंने अपने गुस्से को काबू में करते हुए शिखा की बात का जवाब दिया और सुनाओ क्या चल रहा है? शिखा ने पूछा, कुछ खास नहीं दीदी पर समय को जैसे तैसे धक्का दे रही हूँ । मैंने कहा वो भी ठीक है । अच्छा चलो ये सब बातें छोडो और ये बताओ की क्या आप अभी मेरे पास आ सकती हूँ । शिखा ने कहा हाँ दीदी से पूछने वाली क्या बात है अब जब चाहिए मैं अभी आती हूँ । वैसे बात क्या है? मैंने पूछा कुछ नहीं बस मिलने का मन हो रहा था । बहुत दिनों से मुलाकात नहीं हो पाई । मन उदास था और फिर तुम्हें भी कोई फोन नहीं किया । सोच मैं ही फोन कर लूँ । अच्छा चलो वो सब छोडो अगर आना है तो जल दिया हूँ । शिखा ने कहा जी बस पंद्रह मिनट में आई ये कहकर में शिखा के पास उसके क्लीनिक में जाने के लिए तैयार होने लगी और कुछ ही समय में मैं क्लिनिक पहुंच गई । हेलो जी क्या हाल है? शिखा ने मेरा स्वागत करते हुए कहा जी मैं बिल्कुल ठीक हूँ, आप सुनाओ कैसे हो? मैंने पूछा मैं भी बिल्कुल ठीक हूँ । आओ बैठो और सुनाओ क्या चल रहा है जिंदगी में आज कल शिखा ने पूछा कुछ खास नहीं है बस जैसे पैसे दिन काट रही हूँ । खैर वो सब छोडो पहले आप बताओ की क्या मुझे कोई नाराजगी है? मैंने कहा नाराजगी मतलब मैं कुछ समझी नहीं सिखाने कहा । अब काफी दिनों के बाद मुझे मिल रही हूँ । मैंने आपसे फोन पर भी बात करनी चाहिए, लेकिन वो भी नहीं हो पाई । तो मैंने ऐसे महसूस किया जैसे आप मुझ से दूर रहने की कोशिश कर रही हूँ । अगर कोई नाराजगी गलत फहमी है तो आप अभी बता दूँ क्योंकि नाराज की और गलतफहमियों का सफर जितना लंबा होगा, वापसी में उतनी ही देर होगी । मैंने कहा नहीं, जैसे तुम समझ रही हूँ, ऐसी कोई बात नहीं । हाँ, कुछ गलत फहमियां मेरे परिवार वालों को हो गई थी । इस वजह से उन्होंने मुझे तुमसे मिलने झूलने से मना कर दिया था । शिखा ने बताया, गलतफहमियां, ऐसी गलत फहमियां और फिर तुम्हारे परिवार वालों ने मुझसे मिलने के लिए क्यों मना कर दिया था? मैं तो उनको जानती भी नहीं थी । मैंने हैरानी से पूछा मेरे परिवार वालों से मेरा मतलब है मेरे साथ ससुर या नीची को कि माता पिता हूँ और उन को तो तुम अच्छी तरह से जानती हूँ और शायद वो गलत फहमियां क्या थी, इसके बारे में भी तुम जानती हूँ । मेरे ख्याल से अब इस विषय पर ज्यादा बात करना ठीक नहीं । कुछ और बात करते हैं शिखा ने कहा, हाँ मैं समझ सकती हूँ मैं उनकी मानसिक दशा को अच्छी तरह जानती हूँ । उनकी जगह अगर कोई और भी होता तो यही करता हूँ । मैं उन सबकी गुनहगार हूँ और फिर मेरे गुनाहों की सिर्फ सजा हो सकती है । जो की मैं भोग रही हूँ । माफी नहीं हो सकती हैं क्या? मैं तुमसे एक सवाल पूछ क्या? तो मैं इसका दिल से जवाब होगी । मैंने कहा हाँ! हाँ पूछूँ । बेज पूछूँ, आखिरकार तो मेरी बडी बहन के समान हूँ । शिखा ने का क्या मेरे द्वारा की गई गलती का कोई प्रायश्चित नहीं? क्या मैं सारी उम्र अपनी की हुई गलती की सजा भुगती रहूंगी? क्या मैं समाज में सिरोंचा करके नहीं जी सकती है? क्या ऐसा संभव है? मैंने कहा ऐसा क्यों संभव नहीं? ऐसा हो सकता है अगर मेरी योजना के मुताबिक चलो सिखाने का योजना कैसी योजना मैंने उत्सुकतावश पूछा । मैंने तुम्हारे लिए एक योजना बनाई । अगर टोमस योजना के मुताबिक चलो तो समाज में सिर उठाकर ही नहीं बल्कि अपने लिए समाज में अलग मुकाम बना लोगे । शिखा ने कहा तो कैसे? मेरा मतलब की क्या योजना है? मैंने उत्सुकतावश पूछा हरे आराम से आज कोई भागी थोडी नहीं जा रही हूँ । पहले कुछ खा पी लेते हैं । फिर बात करते हैं । उसके बाद थोडी लंबी है तो आराम से बात करते हैं सिखाने का जैसे तुम जाऊँ परन्तु बात किया है जरा जल्दी बता दूँ । मैंने कहा क्यों? क्या हुआ? काफी जल्दी में हूँ । कहीं जाना तो नहीं है? शिखा ने पूछा नहीं नहीं मुझे कहीं जाना नहीं है । तुम पहले बात बताओ क्या है? मैंने अपनी बात पर थोडी जोर देते हुए कहा अच्छा बाबा तो सुनो । जब तुम अस्पताल में चीजों को आखिरी बार मिलने आई थी तो चीज को की माने तुम्हें देख लिया था उन्होंने इस बारे में चीकू के पिता से बात फिर तुम को लेकर चीखों के परिवार में बातचीत होने लगी । शायद उनको तुम्हारा अच्छा नहीं लगा । लेकिन इससे पहले की इस बात को आगे बढाते चीकू ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया और उन सबका ध्यान तुम से हटकर चीजों की ओर लग गया । हम सब चीकू की मृत्यु के हम में डूब गए थे, जिस वजह से चीखों के परिवार में तुम्हारा जिक्र होना बंद हो गया । लेकिन जब तो मुझसे मिलने चीखों के क्लिनिक में आई तो इस बात की भारत चीखों की माँ को लग गई । उसके बाद उन्होंने मुझे तुमसे मिलने के लिए मना कर दिया । तुम्हें लेकर मेरे और चीकू की माँ के बीच बहुत बहसबाजी हुई क्योंकि कई दिनों तक चलती रही । इस बहस बाजी में मैं एक तरफ और दूसरी तरफ चीखों के परिवार वाले थे । शिखा ने कहा, और मेरे बारे में वो क्या बातें करते थे? मेरे कहने का मतलब है कि मेरे बारे में चल रही बहस । बाजी का विषय क्या था? मैंने शिखा की बात को करते हुए कहा भारी बारे में उनकी सोच सकारात्मक नहीं थी और रही बात बहसबाजी के विषय की । उसके बारे में तुम खुद समझदार हो । तुम खुद जानती होगी तुम्हे लेकर क्या बात हो सकती है । शिखा ने कहा हमें समझ सकती हूँ, लेकिन मैं कर नहीं कह सकती हूँ । जो कलम मेरे माथे पर लगा है उसमें कैसे बता सकती हूँ । मैं ये कलंक लेकर मरना नहीं चाहती हूँ । मैं चाहती हूँ कि मरने से पहले मैं इस कलंक को पूरी तरह धो दूं । मैंने कहा इस बात की तुम चिंता मत करो । भगवान ने चाहते ऐसा ही होगा । खैर काफी दिनों की जद्दोजहद और बहसबाजी के बाद आखिरकार जीत मेरी हुई । शिखा ने कहा जी तुम्हारी मतलब । मैंने हैरानी से पूछा हाँ, मेरी जीत हुई क्योंकि जब मैंने तुम्हारा पक्ष उनके सामने रखा यानी तुम्हारी कहानी उन्हें सुनाई तो उन का दिल पसीज गया और उन्होंने मुझे तुमसे मिलने की इजाजत ही नहीं दी बल्कि तुमसे मिलने की भी इच्छा प्रकट की । सिखाने का तुम सच कह रही हूँ, मजाक तो नहीं कर रही हूँ । मैंने पूछा हाँ बिल्कुल सच कह रही हूँ । मैं मजाक करूंगी । शिखा ने कहा, फिर मैंने पूछा फिर क्या फिर मैंने तुम्हारे मकसद के बारे में सोचा चीजें कैसे पूरा किया जा सकता है । लेकिन कई दिनों तक इसका कोई हल नहीं निकला क्योंकि तुम्हारा मकसद तो साफ था कि तुम अपना सारा जीवन शादी शुदा लोगों के जीवन में आने वाली कठिनाइयों को दूर करने में लगा होगी । लेकिन इसकी शुरुआत कैसे करनी है? ये समस्या थी क्योंकि तुम्हारी शुरुआत पर ही तुम्हारे सारे मकसद का दारोमदार टिका था । इसकी शुरूआत ऐसी होनी चाहिए कि समाज का देहांत खुदबखुद तुम्हारी और आकर्षित हो जाएगा । फिर मुझे इसका हल चीजों से मिला । शिखा ने कहा ठीक से मिला मैं कुछ समझी नहीं । मैंने हैरानी प्रकट करते हुए पूछा हूँ । हाँ चीकू से मिला । मैं जब भी किसी प्रकार की किसी समस्या में फंस जाती हूँ तो मैं आंखे बंद करके चीजों से समस्या के हल के बारे में पूछती हूँ । चीज को इस प्रक्रिया को आत्ममंथन करना कहता था, जिसमें हम अपनी किसी भी समस्या का हल अपने आप में से खोजते हैं । खैर कई दिनों की जद्दोजहद से तुम्हारी समस्या का हल मिल गया । शिखा ने कहा, क्या हाल है वो? मैंने उत्सुकतावश पूछा तो उन्हें अपना मकसद पूरा करने की शुरुआत ऐसे करनी होगी जिससे कि समाज का ध्यान तुम्हारी ओर आकर्षित हो जाएगा । लोगों के बीच तुम्हारी पहचान हूँ । इसके लिए तो मैं अपनी आत्मकथा लिखनी होगी । सिखाने का आत्मकथा मैंने हैरानी प्रकट करते हुए पूछा हाँ, आत्मकथा मेरी बात ध्यान से सुनो और समझने की कोशिश करूँगा तो मेरी कुछ बातों का जवाब दो । तुम हर चीज को दोनों एक दूसरे से प्यार करते थे । सच है नहीं । शिखा ने कहा, थाई सच है । मैंने कहा तुम दोनों दिन का ज्यादातर समय मोबाइल पर बात करते हुए बताते थे चेवी सच है । शिखा ने पूछा हाँ, ये भी सच है । मैंने कहा तुम दोनों एक दूसरे के बिना रह नहीं सकते थे । इसका प्रमाण है कि तुम दोनों ने अपने परिवार की मर्जी के बगैर घर से भागकर शादी की थी । ये भी सच है शिखा ने कहा, हाँ इसमें कोई शक नहीं है । मैंने धीमी आवाज में कहा तो फिर ऐसा क्या हुआ था कि शादी के बाद अचानक से सब कुछ बदल गया । तुम्हारे व्यवहार में अचानक से बदलाव क्यों आया हूँ तो इसके बारे में सोचा नहीं ना, शिखा ने का नहीं । मैंने कहा कोई बात नहीं । मैं बताती हूँ तुम्हारे परिवार में आए बदलाव के पीछे तुम्हारी कुछ रिश्तेदार हैं दिन के कहने पर या जिन के नक्शे कदम पर चलकर तुमने चीज हूँ और उसके परिवार के साथ इस प्रकार का बुरा व्यवहार किया । कुछ ऐसे रिश्तेदार जिनकी हाथ की तुम कठपुतली सी बन कर रह गई थी क्योंकि तुम्हें अपने घर में बैठकर तुम पर नियंत्रन कर रहे थे । ऐसे रिश्तेदार ही किसी की शादी शुदा जीवन में जहर खोलने का काम करते हैं कि कोई भी हो सकते हैं । किसी मामी, चाची, बुआ क्या फिर मौसी? तुम ने अपनी आत्मकथा में इन्ही मंदिरा रुपये रिश्तेदारों को बेनकाब करना है । मेरे हिसाब से तो मेरा इशारा समझ गई हूँ । शिखा ने का हाँ बिल्कुल समझ गई हूँ । क्या करना है कि मुझे पता चल गया है । लेकिन उसके बाद मेरे कहने का मतलब है की आत्मकथा लिखने के बाद क्या करना है । मैंने पूछा आत्मकथा लिखने के बाद हम उसे किताब की शक्ल देंगे और इस किताब को प्रकाशित करेंगे । इससे तो में हर प्रकार का फायदा मिलेगा । शिखा ने कहा हूँ फायदा जैसे मैंने पूछा किताब को प्रकाशित करने से तो तुम्हारा काफी नाम हो जाएगा जिससे तुम्हें समाज में सिर उठाकर जीने में मदद मिलेगी । दूसरा किताब की बिक्री से तुम चार पैसे कमाल होगी जो कि तुम्हारे जीवन यापन में मदद करेंगे । तीसरा तुम्हारे मनमंदिर रुपये रिश्तेदारों को सजा भी मिल जाएगी जो तुम्हारा घर बर्बाद करके अपने घर में आराम से अपना जीवन यापन कर रहे हैं । सिखाने का ये हुई ना बात अब ऐसा ही होगा । हिरासत ठीक रहेगा । मैं सही करूंगी । शिखा की बात सुनकर में खुशी से उछल पडी । मेरी आंखों में एक अजीब सी चमक थी । मैं उस वक्त में जो महसूस कर रही थी उसे बयां कर पाना नामुमकिन । कुछ देर बातें करने के बाद मैं वहाँ से अपने घर की ओर चल पडी । लेकिन इस बार मेरे कदमों में एक अलग ही जोश था में तेजी से कदम बढा रही थी और फिर घर आकर में अपनी आत्म कथा लिखने की तैयारी करने लगी ।

Details

Sound Engineer

After the sad demise of Chiku, his legacy had to be taken forward. More light had to be thrown on the problem of stammering. Voiceover Artist : Raziya Khanum Author : Rohit Verma Author : Rohit Verma Rimpu Producer : Theremin Studios Voiceover Artist : Razia
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