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कुमारी बीना शर्मा बडे ही रहस्यमय ढंग से ना बताओ गई और उसके गूम होने के चौथे रोज उसके चाचा किदार शर्मा को अपनी भतीजी की हत्या के इल्जाम में गिरफ्तार कर लिया गया । उस समय बिना शर्मा की उम्र केवल बीस वर्ष थी और वो अपने चाचा की थी । भावक तत्व नहीं रहती थी, चाचा हैं, अभी तक कुंवारे थे और उनकी उम्र अडतालीस वर्ष थी । मैं लोग एक घने जंगल में दो फल नाम की दूरी पर बने एक बंगले में है । आपने दो नौकरों के साथ रहते थे । इस बात का पता नहीं लग पा रहा था कि आखिर ऐसी क्या बात हो गए हैं जिससे कि चाचा को अपने भतीजे की हत्या करनी पडी । कुछ महीने पहले जब बीना शर्मा के मामा उससे मिलने के लिए उस मकान में गए थे तो केदार शर्मा वहाँ से चुपचाप खिसक आए थे और बाहर सडक के किनारे खडे होकर उनका इंतजार कर दे रहे थे । जब बीना की मामा उस से मिलकर लौटे तो किदार शर्मा ने उन्हें रास्ते में रोककर कडी शब्दों में फिर कभी ना आने की चेतावनी दी । वो अपनी एकमात्र भतीजी पर कडी निगाह रहते थे और उन्होंने उसे बाकी के सभी रिश्तेदारों से एकदम अलग रखा था । बीना को माँ देने के पीछे के राज शर्मा का एक बडा देख था क्योंकि शादी से पहले बिना की मृत्यु हो जाने पर उसकी सारी जायदाद का मालिक उन्हें ही होता था । केदार शर्मा पर अपनी भतीजी की हत्या करने के इल्जाम में चलाए जाने वाले मुकदमे नहीं । शहर में असाधारण सनसनी फैला दी । दो दिन की सुनवाई में केदार शर्मा के खिलाफ एक जबरदस्त मुकदमा तैयार हो गया था । बहुत से गवाह ने निम्रलिखित कहानी अदालत को सुनाई । कुमारी बीना शर्मा पंद्रह वर्ष की थी जब उसके पिता की मृत्यु हुई । वो एक उद्योगपति था । उसकी लाखों की ज्यादा कि मालिक उस की एकमात्र संतान बीना बनी । छोटे भाई केदार शर्मा को बिना का अभिभावक और उसकी वसीयत का एक्सॅन होना था । वसीयत में आगे लिखा था कि बिना के शादी के दिन किताब शर्मा का अभी भी वक्त तो समाप्त हो जाएगा और वो स्वयं ही पूरी ज्यादाद कि मालिक हो जाएगी । और अगर एक शादी से पहले ही बीना की मृत्यु हो जाती है तो सारी जायदाद का मालिक एक किताब शर्मा और उसके उत्तराधिकारी हो जाएंगे । बीना की मृत्यु के बाद केदार शर्मा बिना के पास रहने चलाया जब केदार शर्मा अपनी भतीजी के पास रहने है । या तो कुछ रिश्तेदारों ने भी ना गोल इशारा भी किया था कि उसका उसके साथ रहना उचित नहीं है । इसी तरह तीन साल बिना किसी खास घटना की उम्र है बिना अठारह वर्ष की थी । उस की शादी के लिए बहुत से प्रस्ताव है लेकिन केदार ने सबको यह कहकर ठुकरा दिया कि लडका बीना की योगी नहीं है और वह स्वयं अपनी भतीजी के लिए कोई अच्छा हुआ तलाश कर रहे हैं । इन परिस्थितियों से ये परिणाम निकला कि केदार शर्मा भी ना की शादी करने के पक्ष में नहीं था । इसके विपरीत जब कोई व्यक्ति उससे बिना की शादी के बारे में बात छेडता था तो वो उस पर नाराज हो जाता था । एक रोज शाम को वह समय से पहले घर लौट आया और उसने बिना को बाग में एक युवक से सटकर खडे देखा । वो लोग अपनी बातों में इतने डूबे हुए थे कि उन्हें अचानक उसकी वहाँ जाने का पता भी नहीं चला । वो तेजी से उनके पास आ गया और कडी आवाज में बिना को घर के अंदर चले जाने का खुद को दिया बिना चली गई । फिर उस नौजवान से पूछताछ की गई बसंतकुमार उसका नाम था । उसने अभी अभी इंटेंसिटी से डॉक्टर की परीक्षा पास की थी । वो बिना से शादी करना चाहता था । बिना भी राजी थी वो दोनों पिछले कई अब तो उसे आपस में मिल रहे थे । चाचा को पता चला तो उसकी आंखों में खोल बनाया । उसने बसंत कुमार को डाट फटकार करने का दिया और साथ ही धमकी दी कि फिर कभी इधर का रुख किया तो खैर होगी । इससे घटना के एक सप्ताह बाद केदार ने जंगल के किनारे एक मकान किराए बाल ले लिया और बिना तथा दो नौकरों के साथ तो वहाँ रहने चला गया । सभी ओर बेतरतीब झाडियां और ऊंचे सघन पेडों से घिरा हुआ था । मकान से दो फर्लांग की दूरी पर पश्चिम दिशा में एक घना जंगल था । इस मकान में आने के थोडे दिन बाद ही पीना लापता हो गई । उसकी तलाश की पता चला कि गूम होने वाले दिन वो अपने चाचा के साथ जंगल में गई थी । लेकिन जब वो लौट तो अकेला था बिना उसके साथ नहीं । इससे घटना की केवल एक दिन पहले डॉक्टर बसंत कुमार को उसके पास देखा गया था । नौकरियों में से एक नहीं शपथ लेकर कहा कि उसके गूम होने वाले मनोज दिन बीना ने डॉक्टर बसंतकुमार के साथ शादी करने के दृढ निश्चय की घोषणा कर दी थी और इसके उत्तर में उसके चाचा ने बडे जोरदार शब्दों में इस शादी का विरोध किया था । एक ग्रामीण बुढिया ने कसम खाकर कहा कि जिस दिन वह युवती लापता हुई उस दिन मैं जंगल में लकडी बीनने गई हुई थी और शाम को लगभग पांच बजे जब अपने घर लौट रही थी तो मेरे गांव में कहीं से ये शब्द बडे मुझे मत मारो चाचा मुझे मतलब तभी बहुत ही नजदीक बंदों की आवाज और उसके साथ ही एक औरत की चीज सुनाई दी जो पूरे जंगल में को छुट्टी थी । इसके बाद वो बडी तेजी से वहाँ से भाग गई थी । ये सब बात थी जो इस्तगासे से अभियुक्त केदार शर्मा के खिलाफ मुकदमे में प्रमाण शुरू पेट की थी । हत्या का उद्देश्य स्पष्ट था और परिस्थित जन्म प्रमाण भी मौजूद थे । इन सब बातों ने केदार का संबंध अपनी भतीजी की हत्या से जोड दिया लेकिन पुलिस की पूरी पूरी कोशिश के बावजूद बिना की लाश प्राप्त नहीं की जा सके । ऐसा लगता था कि डॉक्टर बसंतकुमार भी हत्या के दिन या उसके आसपास ही लापता हो गया था । अब अभियुक्त की बारी थी की वो अपने सफाई में कुछ कहे । उसने सफाई देने के लिए मुकदमे में कोई वकील नहीं किया था । उसने कहा था कि आपने सच्चाई और मेरे गुना ही साबित करने के लिए मुझे किसी की मदद नहीं चाहिए । मेरी सहायता तो ईश्वर ही करेगा जो सब कुछ जानता है । इस वजह से उसने अपने पक्ष में कोई गवाह भी पेश नहीं किया था । उसने राहत सर में कहा कि उस दिन वो बिना के आग्रह करने पर जंगल में उसके साथ घूमने गया था । उन्होंने वहाँ क्या किया था या किससे विषय पर बात चीत की थी । ये सब बनाने के लिए तैयार नहीं था । उसने अपनी बात को आगे बढाते हुए कहा कि हमारे बीच जो कुछ हुआ जो बातचीत हुआ एकदम घरेलु और व्यक्तिगत थी । बाद में जब भी लोग घर लौट रहे थे तो बिना सुक्ति से उसके पीछे पीछे आ रही थी और जैसे ही वो हुई उसने उसे जंगल में चारों को तलाश किया लेकिन वो कहीं नहीं मिली । उसने भर रहे हुए गले से अपनी बात खत्म करते हुए कहा कि उसे पता नहीं की भी रात इस समय कहाँ है । क्या उसके साथ क्या कुछ गुजर रही हैं । ये ही वो बाते थी जो अभियुक्त अच्छा जाने, अपनी सफाई के तौर पर कहीं और उसकी सफाई, एकदम सत्य और असम बहुत कहकर रद्द कर दी गई क्योंकि बिना कि बहुत से होने वाला फायदा बहुत शक्तिशाली कर रहा था । जब किदार शर्मा को फांसी की सजा सुनाई गई तो उसका लम्बा तगडा जिसमें तरह से घट गया और उसके दिमाग की नसें जिससे पडने लगी । बडी बडी आंखि एक और दूसरी ओर घुमाने लगी और अंततः चर्च पर जाकर ऍम नहीं नहीं मैं अपनी भतीजी की हत्या नहीं, मैं उसे प्यार करता था । मैं उनसे प्यार करता था हूँ । इससे पहले वो अपना हुआ के खत्म कर पाता से अदालत के कटघरे में से हटाकर वापिस जेल भेज दिया गया था । एक हफ्ते बाद जब केदार शर्मा ने मृत्युदंड के विरूद्ध कोई अपील नहीं की तो उसे फांसी दे दी गई और उसकी लाश लेने वाला कोई नहीं था । इसलिए जेल के अधिकारियों ने उसकी अंतिम क्रिया कर दिया । किदार शर्मा को फांसी दिए जाने के बारे में दिन बिना बाल चंद्रा एक्शन लौटी तो सभी लोग आश्चर्यचकित रहेंगे । बिना के साथ डॉक्टर बसंत कुमार भी था । अधिकारियों को ये जानकर बडा धक् गलत । अगले एक मेघना आदमी को फांसी दे दी गई थी । पता चला की गवाह होने जो कुछ कहा था वो सब सच था । बिना युवक डॉक्टर के प्रेम में पड गई थी और उसने उसके समक्ष शादी का प्रस्ताव रखा था । नहीं जाने क्योंकि दार शर्मा को डॉक्टर पसंद नहीं है इसलिए उसने उस शादी पर आपत्ति बिना की अरुणाय विनय, क्रोध और झगडों ने उसके चाचा को इस शादी के मामले में और अधिक कठोर ही बनाया । जब वे लोग जंगल के पास वाले मकान में आपकी रहने लगे तो उसके लापता होने के एक दिन पहले डॉक्टर उससे मिला और उन दोनों ने मिलकर ये फैसला किया कि अगले दिन शाम को दूसरे शहर आना चाहिए और वहाँ जाकर शादी करते हैं । जंगल के किनारे बने एक टूटी के मकान में अगले दिन मिलना किया गया । उस दिन दोपहर के खाने के बाद उसने खुद ही चाचा से कहा कि जंगल में घूमने चले हैं । चाचा बडे बेमन से माना था । शाम को वो लोग जंगल में यूँ ही इधर उधर घूम रहे थे तो उसने बीना से कहा कि बसंत से शादी करने की बात है, छोटे हैं । काफी बहस के बाद उसने कुछ गर्मी के साथ कहाँ था । मैं अपना फैसला कर चुकी हूँ । अगर उससे शादी नहीं करती तो ये मेरी मौत होगी इसलिए मुझे मत मारो चाचा पूछे हो । जैसे ही उसने ये शब्द कहे का नजदीक से जोर से बंदूक रखने की आवाज आए । इससे बिना के बहुत से चीज हो गई और फिर थोडी ही देर बाद पेडों के बीच से अपने हाथ में एक जिंदगी चिडिया लडका ये आधा एक शिकारी दिखाई दिया । उसने अभी अभी अपनी बंदूक से एक की चिडिया मारी थी । केदार और बिना जब लौट रहे हैं तब निश्चित मिलन स्थल के नजदीक पहुंचने पर बीना ने चाचा को आगे चले जाने दिया और खुद खिसककर निश्चित स्थान पर पहुंच गई । जहाँ डॉक्टर पहले से ही इंतजार कर रहा था फिर वो दोनों एक दूसरे शहर चले गए थे । वहां पहुंचकर वो एक मकान में रुके और उसी दिन उन लोगों ने अपेक्षा नहीं करें और लगभग एक हफ्ते में वे हम वो तो प्रमोद के लिए यात्रा पर निकल पडे और हनीमून के तौर पर उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों की यात्रा की । जब वे अपनी यात्रा से लौटे तो उन्होंने उस दुर्भाग्य के बारे में सुना जो उनकी लापरवाही और प्रमाण के कारण उन के चाचा पर टूट पडा था । बिना नहीं सकते हुए कहा, मेरा चाचा तो मुझे ज्यादा खरोच भी नहीं मार सकता था । वो मुझे अपनी सगी बेटी की तरह प्यार करता था हूँ ।
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