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आप सुन रहे हैं कुक वासन आरजेएम आया के साथ सुनी जब मन चाहे जिम्मेदारी किसकी लेखक बालिस्टर सी गुज्जर दुष्टता से जीम हत्या तक आज की शिक्षा से हम भलीभांति परिचित है कि किस तरह शिक्षा का अस्तित्व मिट रहा है । ये विश्व हकीकत है कि शिक्षा किसी भी देश के विकास के लिए जितनी जरूरी होती है उतनी ही मानव के विकास में भी अहम योगदान देती है । इसीलिए ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपने बच्चों को वही शिक्षा ग्रहण करने दें जो की उनकी इच्छा है तथा बाजार में उपलब्ध उचित शैक्षणिक संस्थानों का चुनाव करके ही शिक्षा संबंधी निर्णय ले । झूठे विज्ञापन लुभावने प्रचार एक और जहाँ हमारे जेब पर भारी पड सकते हैं, वहीं दूसरी ओर विद्यार्थी वर्ग का भविष्य भी खतरे में डाल सकते हैं । वहाँ मानवता को जरूर ठेस पहुंचती होगी जहाँ निर्दोष जीव जंतुओं को अपने स्वार्थ के लिए मानव द्वारा बाली की भेंट चढा दिया जाता है । ये है सास तो हर किसी को होता है कि हमारे शरीर में जान है । हमारे दो आंखे हैं, दोपहर है, दो हाथ हैं । त्यारी अंग हमारे पास मौजूद है । अगर हमारे शरीर के किसी भी अंग में पीडा उत्पन्न हो जाती है तो हम उसका तुरंत ही उपचार करा लेते हैं तथा स्वस्थ होने पर स्वयं को भाग्यशाली समझकर ईश्वर को धन्यवाद देते हैं । यही हाल समस्त जीव जंतुओं का भी होता है । यदि हम किसी पी जेडे में कैद आकाशीय पंची को छोड देते हैं उस समय वो पाँच थी भी स्वयं को भाग्यशाली समझता होगा और अपने मन की अंतरात्मा से ईश्वर को जरूरी धन्यवाद देता होगा । यदि हम किसी पीजी दे में कैद अक्षय पंची को छोड देते हैं उस समय वो पंची भी स्वयं को बहुत भाग्यशाली समझता होगा और अपने मन की अंतरात्मा से ईश्वर को जरूरी धन्यवाद देता होगा । आज से लगभग सथ्यू त्रेतायुग जैसे युगों में जितना महत्व मानव जाति को दिया जाता था उतना ही महत्व समस्त प्राणी वर्ग को भी दिया जाता था । फिर वो प्राणी चाहे विशेष जलचर हो, चाहे थलचर आकाशीय प्राणी हो या जंगली जानवर । हर प्राणी मानव जाति के लिए विशेष महत्व रखता था । उस समय मनुष्य वर्ग अपने प्राणियों का इस तरह से खयाल रखते थे कि उन का दाना पानी से लेकर उपचार तक का खयाल रखा जाता था । इसका साक्षात उदाहरण हमें आज भी कई जगहों में देखने को मिलता है कि कई लोग सुबह के समय कुत्तों को डबल रोटी तो आदि खिलाते हुए दिख जाते हैं तो कई लोग अपनी छतों पर पक्षियों के लिए दाना पानी की व्यवस्था करते हैं । कई तरह के मामले में हमें ये भी देखने को मिलता है कि बहुत से लोग अपने जन्मदिन या किसी शुभ अवसर पर अपने घरों में पिंजरे में बंद आकाशीय पक्षियों को हमेशा के लिए पिंजरे से बाहर निकाल देते हैं । यही कारण है कि प्राचीन मानवीय सभ्यता सभी जीव जंतुओं को समान महत्व देती थी और इसका असर आज भी हमें कई जगहों पर दिखाई देता है । ये बात उन सभी बातों से भिन्न है जहाँ पृथ्वी पर मानव अपने स्वार्थ हित से कार्य क्या करते हैं । जैसे अगर हम पर वार किया जाता है तो हमें उसकी चोट का तुरंत एहसास होने लगता है । यही हाल अन्य जीव जंतुओं का भी है । जब हमारे कुछ पूरी तीपूर्ण रीति रिवाजों के कार्य हमारे द्वारा किसी जंगली जानवर पर वार किया जाता है तो उन्हें भी दर्द का एहसास जरूर होता होगा, क्योंकि अगर मानव में जान मौजूद हैं तो अन्य प्राणियों में भी जान होती है । ऐसी स्थिति में यही कहा जा सकता है कि जानवरों पर क्या व्यवहार जरूर ही मानव जाति को अभिषाक देता होगा क्योंकि ये क्रिया तो स्वयं मानव भी करता है । यदि हम किसी के साथ अन्याय करते हैं तो वो हमें वरदान तो देता नहीं । अगर कुछ देता ही है तो वह सिर्फ अभिशाप । आज हम कोई अपराध करके यदि जेल में कैद काटते हैं तो उस समय हमें जेल की चारदीवारी में रहकर ऐसा है, कुछ महसूस होता होगा । मानव अब तो हमारा संपूर्ण जीवन ही बर्बाद हो गया है । यहाँ हमारा कुछ न कुछ अपराध जरूर होता है । किंतु जब हम किसी बाजार आकाशीय पंची को एक पीजे गन्ने बंद कर देते हैं तो उस समय उसके दिल पर भी क्या बीतती होगी? क्या कभी हमने ये सोचा है पंची अपनी उडान भरकर हमारे चाहों और चहक फैलाकर हमारा मनोरंजन करते हैं । आज उन्हीं पक्षियों से हमने अपने स्वार्थ की खाते उनकी स्वतंत्रता को भी चीन लिया है । कलयुग में जीवहत्या कोई नई बात नहीं है । ये तो आजकल सामान्य सी बात हो गई है कि सरे आम जंगली जानवर का मांस भरे बाजार में बेचा जाता है और इस से किसी को कोई भी आपत्ति महसूस नहीं होती है । ये असल में हमारी मानसिकता के कारण ही संभव हो गाता है अन्यथा किसी में इतनी हिम्मत नहीं है कि कोई चींटी को भी मार कर दिखा दें । आज हम देखते हैं कि बाजार में जिस तरीके से जी हत्याएं की जा रही है उससे कई ज्यादा बहत्तर हालत मानव प्राणी की होती हैं । किस तरह आजकल मारा की हत्या कर दी जाती है और पूरा समाज इसे यूँ ही देखता रह जाता है । इसी वजह से हमारी मानसिकता अब ये बन चुकी हैं कि जब हम स्पष्ट आंखों से मानव हत्या को देख सकते हैं तो फिर जी हत्या को देखना तो हमारे लिए बहुत छोटी सी बात हो जाती है । कलयुग का झांसा देकर हमारी आवाज आज जिस तरीके से बंद पडी हुई है और हम में से जो लोग अन्याय को होते देख रहे हैं उन्हें की थी उन लोगों की तरह है जो किसी अन्याय, ये अपराध से समझौता कर लेते हूँ । कुछ अच्छे लोग भी शायद यही कहते नजर आते हैं कि जब किसी को कुछ आपत्ति नहीं है तो फिर भला मैं क्यों फटे में टांग अडा हूँ । आज हमारी इसी मानसिकता के कारण जीवों पर लगातार अन्याय बढता जा रहा है और अब तो इससे मानव भी अछूता नहीं रहा जिसका अगर मानव समाज ने बेजुबान जीवों पर अपराध शुरू किया है ठीक उसी तरह का अपराध मानव के साथ भी तो हो रहा है । हम कहाँ तक बच सकते हैं? यहाँ तो हर तरफ हिसाब बराबर ही नजर आता है । जैसे यदि हमने किसी पाँच ईको पिंजडे में बंद करने का तरीका निकाला है तो वहीं हमने इंसान को भी तो जेल रूपी पिंजडे से अलग नहीं रखा । अगर हम आज कई जंगली जानवरों की हत्या होते हुए देख रहे हैं तो वहीं मानवों की भी तो हत्याएं हमारे सामने मौजूद है । यदि हमें जीवों की हत्या से कोई आपत्ति महसूस नहीं होती है तो फिर हमें मानवहत्या ऐसे भी तो कहाँ आपत्ति महसूस होती है । मामला खैर जो भी है आखिर हिसाब तो बराबर ही हुआ ना । अगर अपराध और अन्याय की मार, जंगली, पर्श, विपक्षी आदि झेल रहे हैं तो ऐसा ही कुछ अन्याय मानव समाज के साथ भी तो हो रहा है । यह प्रकृति का नियम ही है । यहाँ पर हर चीज का एक आनुपातिक संतुलन का होना बेहद जरूरी है । यदि पृथ्वी पर मानव समाज कम हो जाता है और अन्य प्राणियों का वर्ग बढ जाता है तो भी प्रकृति का संतुलन बिगड जाएगा तथा यदि अन्य प्राणियों का अनुपात मानव समाज के अनुपात से कम होता है तब भी प्रकृति का संतुलन बिगड जाता है । इसीलिए इस पृथ्वी पर होने वाली घटनाओं में कुछ न कुछ हिस्सा तो प्रकृति का भी जरूर होता है । यहाँ हमें यही देखने को मिलता है कि एक और हमें यदि जंगली जानवरों को मार रहे हैं तो वहां प्राकृतिक घटनाएं हमें भी तो मारने में संकोच नहीं करती । यही कारण है कि प्राचीन प्राकृतिक संतुलन में और वर्तमान के प्राकृतिक संतुलन में बहुत ज्यादा अंतर हमें दिखाई देता है । प्राचीन सभ्यता यही दोहराती है कि उस समय का मानव जिन जिन प्राणियों का अपने हित के लिए इस्तेमाल किया करता था, चाहे फिर वो बैल हो, बकरी हूँ, तोता हो, चाहे सर्फि क्यों न हो, हर प्राणी पर सामान दया भाव भी खाता था और हर प्राणी के प्रति मानवों की करुणा मानवता की दृष्टि से हुआ करती थी । किंतु आज का माहौल तो ऐसा हो गया है मानो लोगों ने जीवहत्या को अपने धर्म में भी जगह दे रखी है और पूरे मानव समाज को शर्मसार करने में कोई कसर नहीं छोडी । जब बात यही तक सीमित नहीं रहती तो मानव ने जीवों पर सबसे बडा जलन तो उसके मांस को अपना व्यवसाय बनाकर ही क्या है? आज की जिंदा हकीकत था में यही सीख देती है कि जो जन और शारीरिक चेष्टाएं ईश्वर ने यदि मानव को दी है तो वहीं सुख सुविधाएं ईश्वर ने अन्य प्राणियों को भी प्रदान कर रखी है । इसीलिए यही कहना उचित होगा कि वे बेजुबान प्राणियों पर अन्याय करके न सिर्फ हम अपने आप को शर्म भी न करते हैं, बल्कि हम उस ईश्वर को शर्मिंदगी महसूस कराने में भी कोई कमी नहीं छोडते हैं । जी क्या है और राजनीति आज के समय में विश्व भर में ज्यादा से ज्यादा देशों का भविष्य राजनीति पर ही निर्भर है । ऐसी स्थिति में यही कहा जा सकता है कि जो भी राजनीति हमारे देश में की जा रही है, यदि वो राजनीति देश किताब है तो जरूर ही वह देश सभ्य नागरिकों का देश कहलाएगा । और यदि इसके विपरीत जिस किसी देश में स्वार्थरहित से कोई राजनीति की जाए तो वहाँ इसका जरूर ही बुरा प्रभाव देखने में आता है । चाहे किसी भी देश की राजनीति क्यों हो, हमेशा ही उस देश में मौजूद हर प्राणी को मद्देनजर रखते हुए ही जानी चाहिए । आज हम देखते हैं कि कई नेता लोग जानवरों पर भी राजनीति करने लगते हैं, होता ऐसा ही कुछ है कि यदि सरकार द्वारा किसी जानवर को मारने पर प्रतिबंध लगा दिया जाए तो अन्य नेता इसका विरोध करने लग जाते हैं । पक्ष विपक्ष में बहस होनी शुरू हो जाती है । कई नेता जानवरों को मारने पर प्रतिबंध लगाया जाए इसके पक्ष में दिखाई देते हैं तो कई नेता इसके विपक्ष में दिखाई देते हैं । हर नेता अपनी अपनी राय तो इस तरीके से रखता है । मानव पूरी पृथ्वी के संचालनकर्ता स्वयं ये ही है । इसके ठीक विपरीत यदि किसी व्यक्ति की संदिग्ध हालातों में मृत्यु हो जाती है तब वहाँ भी राजनीति होने लगती है । ऐसी स्थिति में हम ये कैसे कह सकते हैं कि हमारे राजनीति के सभी नेता उचित निर्णय करते हैं, होना हूँ । जब भी कोई बात पक्ष विपक्ष की आती हैं वहाँ पर कुछ नेताओं को हम सही ठहरा सकते हैं तो कुछ को गलत । जनता द्वारा जो भी नेता चुना जाता है हमेशा ही उसका कर्तव्य देश के हित को लेकर ही होना चाहिए । लेकिन आज जब हम ये देखते हैं कि देश के अंदर बिकने वाले जानवरों के मांस के ऊपर भी राजनीति होने लग जाती है । कलयुग के संसार में आज तक किसी भी नेता द्वारा जानवरों पर होते अत्याचारों पर उचित प्रतिबंध नहीं लगाया गया । वजह है तो सिर्फ एक ही वोट बैंक सिद्धांत । आज अगर हम अपने स्वार्थ ठीक से राजनीति करते हैं तो इससे किसी का भी भला होने वाला नहीं । ना तो हमारा और न ही हमारे देश की जनता का । फिर जानवरों पर तो अत्याचार होता ही रहेगा जो की पूरी तरह से अनुचित है । इस बात से हम भलीभांति परिचित है । इस पृथ्वी पर सबसे ज्यादा बुद्धिमान प्राणी केवल मनुष्य है । फिर ये हमारा कर्तव्य होना चाहिए कि हम किसी भी अन्य प्रकार के प्राणी की हिंसा न करके अपने बुद्धिमान होने का उचित परिचय दे । यही हमारी जिम्मेदारी कह अलानी चाहिए कि यदि हम अन्य प्राणियों में सबसे ज्यादा बुद्धिमान है, उनकी हिंसा न करके उन का खयाल रखना होगा । उनको अपने मित्र की तरह सम्मान देकर नर्सेज हम मानवता का गौरव बढाएंगे बल्कि ईश्वर को भी ये दिखा देने में कोई कमी नहीं छोडेंगे की इस कलयुग में भी मानवता जिंदा है ।
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