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आप सुन रहे हैं कॅाम आरजेएम आया के साथ सुनी जब मन चाहे जिम्मेदारी किसकी लेखक बालिस्टर सी गुज्जर दुश्य ताकि हर दुष्कर्म ये तो हम पूरे विश्वास के साथ ही कह सकते हैं, चाहे इंसान कितना भी लापरवाह क्यों ना हो, लेकिन जब उसके लव जिहाद लेकिन जब उसके लव जिहाद की शिकार होने की बात सामने आती है तो उसके रोंगटे जरूरी खडी हो जाते होंगे । क्योंकि लवजी यार नामक बीमारी ऐसी उपजी है कि इसका असर सभी पर समान रूप से समान मात्रा में और समान अनुपात नहीं होता है । तभी तो कई समझदार व्यक्ति इसके चंगुल में आसानी से फंसते नजर आते हैं और आपने समझदार होने का अफसोस करते हुए नजर आते हैं । इसलिए इन सभी लव जिहाद, रुपये निष्कर्षों को ध्यान में रखकर इसको मिटाना हर किसी की जिम्मेदारी हो गई है । ये तभी मिल सकता है जब हर नागरिक इसको मिटाने की शपथ लेगा । दुष्कर्म का होना यही साबित करता है कि दुष्कर्मी ने अपना मानव तथा ईश्वरीय रूप त्याग दिया है । उस समय जरूर ही ईश्वर को ठेस पहुंचती होगी, जब मानव ईश्वर को पूरी तरह से अपने हिंदी से बाहर निकाल देता है और राक्षसी प्रवृति का स्वरूप अपने हिंदी में संजय लेता है सर्वत्र रमन्ते देवता हा । इस नामक वाक्य का नियमित उच्चारण करने वाला प्राणी जब इसके विपरीत कोई कदम उठाता है, वह अन्याय की हर हद को पार करता हुआ नजर आने लगता है । आज टेलीविजन समाचार पत्रों के माध्यम से ऐसी कई घटनाएं हमारे सामने उपस् थित होती हैं जिनको सुनने मात्र से मानवता शर्मसार होती है । कभी कभी तो हमें ऐसा सुनने को मिल जाता है जब कभी राक्षसी जाती नहीं भी नहीं किया हो और वही कुछ आज का भौतिकवादी मानव करने पर उतारू हैं । हमारी श्वास तो उस समय और भी ज्यादा फूलने लगती है जब हमारा समाज एक अपराधी को कोई सजा नहीं देता हूँ और ऐसे काम लगातार होते रहें । समाज ऐसे कर्मों को बढावा भी देता रहा हो । मारा के साथ साथ ईश्वर को भी ठेस पहुंचाने वाला कर दुष्कर्म आज हर तरफ अपने पैर जमाने के लिए अग्रसर ही नजर आ रहा है । इसके जरिये हमें इतनी मजबूत नजर आने लगी है । मानव अब उसकी जडों को काटने वाला कोई भी इस दुनिया में बचा ही नहीं । यदि किसी पेड की गढ इतनी घातक हो कि वह पूरी मानव समाज को शर्मिंदगी महसूस कर आए तो ऐसी स्थिति में उन जडों का नामोनिशान में जाना अनिवार्य तो होता ही है । हिंदू यहाँ कि परिस्थितियां कुछ दिन नजर आती है । पूरी समाज, पूरे समाज को शर्मसार करने वाला दुष्कर्मी चंद सरकारी कागजी नियमों में पाँच जाता है और कुछ ही पलों की सजा काटने के बाद अपना मन हो । चेहरा फिर से मानव समाज को दिखाने लगता है । कैसे दुष्कर्म मिल सकता है? अच्छा कहा यही जा सकता है कि अगर दुष्कर्मी को रिहा कर दिया जाए तो इससे दुष्कर्म तो मिलेगा ही नहीं, लेकिन मानवता जरूर मिल सकती है । पूरे विश्व में भारत को नीचा दिखाने वाली नई दिल्ली की निर्भया कांड वाली घटना आज भी यही दर्शाती है कि भारत के लोग अब राक्षसी प्रवृत्ति को ही महत्व देने लगे हैं । निर्भया कांड जिस तरीके से हुआ था, उससे भले ही भारत रोया हो या नहीं रोया हो, लेकिन ये हकीकत माननी पडेगी की इस घटना ने पूरे विश्व को जरूर रुला दिया था । ये कोई नहीं बात नहीं है कि अब भारत में भी ऐसी कई घटनाएं घटित होने लगी हैं जिस पर भारत चुप रहता है । हिंदू बाकी देश जरूर ही भावुक होते हैं । हम आज विश्व को जिस तरीके से अपना परिचय दे रहे हैं, वह बडा ही शर्मसार करने वाला है । हमारे समाज के शिक्षा वास्तव में अब इतनी कमजोर हो गई है कि अब मानव हवस के पुजारी बंदे जा रहे हैं । शाह यही कारण रहा होगा कि कई संत महात्माओं पर भी दुष्कर्म के आरोप अब साबित हो रहे हैं कि हम इस तरीके से अपना अस्तित्व बचा पाने में कामयाब हो सकते हैं । किसी भी हाल में तो क्या हर हाल में हमारी दुर्गति ही होगी? अगर यही सब होता रहा तो नारी को देवी का दर्जा देने वाला भारतीय समाज आज इतना क्रूर हो गया है कि शायद ही हमने कभी इसका अंदाजा भी लगाया होगा । पहले यही मान्यता विद्यमान थी कि जहां नारी की पूजा होती है, वहां ईश्वर भी विद्यमान रहते हैं । किन्तु आज तक सब कुछ भी प्रदीप ही नजर आ रहा है । जो दुर्दशा महिला वर्ग की आज के समय में हो रही है, ऐसी दुर्दशा कभी भी नहीं नहीं । जिस नारी को पूरी सृष्टि की जननी माना जाता था, आज वही नारी अपने आप में यही पछतावा कर रही है कि अब मैं ऐसे किस योद्धा भोजन दू मुझे इन शैतानों से मुक्ति दिला सके । आज के सरकारी नियम भी कुछ ऐसे पैदा हो गए हैं कि जिनसे हमें कोई आपत्ति भी महसूस नहीं होती हैं । चार पांच पन्नों के एक अध्याय वाला सरकारी कानून हर अपराधी को सरकारी तरीके से सजा लेता है, भले ही वो मानवता के लिहाज से न्याय हूँ । हो महत्व सिर्फ यही चलता है कि अगर कोई नाबालिग दुष्कर्मी क्रूरता की चाहे कितनी भी हदों को बार क्यों न कर दें, उसकी सजा को हमेशा बाल सुधार का नाम देखकर माफी किया जाता है । क्या हम ये भूल जाते हैं कि कोई भी क्रूर अपराध कभी होता है जब हम समझदार हो चुके होते हैं फिर वहाँ उसे कोई फर्क नहीं पडता है कि अपराधी बालिग है या नाबालिग । ऐसे ही कुछ विसंगतियां हैं जहाँ में लगातार शर्मसार कर दिया रहे हैं तथा हम चुपचार अपनी जुबान बंद किए बैठे रहे जाते हैं । इसका परिणाम यही होता है कि अपराध करने वाले बिना संकोच किए किसी भी हद को पार कर जाते हैं और अपनी क्रूरता की हद से पूरे मानव समाज को ये आखिर दिखा ही देते हैं कि हम वास्तव में कलयुग में ही जीवन यापन कर रहे हैं और एक तरह से अन्याय को भी साथ ही साथ सहन भी कर रहे हैं । वैसे तो निर्भया कांड जैसी ऐसी कई घटनाएं घटित होती हैं, जिनका हमें कुछ पता भी नहीं चल पाता । कितने जो घटनाएँ हमारे सामने उभरकर आती है, हमें सिर्फ उसी के बारे में पता चलता है । दुष्कर्म रुपये चाहे कैसे भी घटनाएं क्यों हूँ, वो जरूरी हमें नीचा दिखाने वाले ही होती है । इसलिए ये हमारा काम से काम करते होना चाहिए कि हम ऐसी घटनाओं को रोकने का प्रयास करें ताकि आज ही नारी अपना जीवन खुशहाली से जी सके और फिर से उसकी खोई हुई गरिमा उसे वापस मिल सकें । अगर हम वास्तव में नारी समाज को न्याय दिलाना चाहते हैं तो हमें हमारे समाज के अंदर छिपे हुए दुष्कर्मी का बहिष्कार करना ही होगा, तभी इस जगत की जनानी सुखी रह सकती है । हमें सभी राक्षस रूपी दुष्कर्मियों का नाम और निशान इस दुनिया से मिटा नहीं होगा । तभी हमारा समाज एक खुशहाल पूर्व जीवन जी सकें ।
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