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श्री राम भाग ऍम ऍम देव लोग भी जैसे मदोन्मत्त हो रहा था । इस कारण वो मन में विचार करने लगा कि आर्यव्रत की विजय कहाँ से आरंभ करें । विन्ध्याचल पर्वत तक तो उसके राक्षस लूटमार और बाबादीन बजाते रहते थे । विन्ध्याचल से उत्तर की ओर विन्ध्या प्रदेश में नर्मदा के किनारे महेश माटी नगरी पर उसकी दस्ती गई । उसने सुन रखा था कि महेश माटी अमरावती से भी अधिक सुंदर लग रही है । वहाँ की धनसंपदा तो आर्यव्रत की सब लकडियों से अधिक है । इस बात पर विचार करते ही उसके मुंह से लार टपकने लगी । उसने कुबेर से विजित उस परिवार उधर ही घुमा दिया । विशाल पुष्पक विमान में उसके साथ सेना के कई अधिकारी और कई सहस्त्र सैनिक रावण का विचार था कि इंडिया राज्य को जीतने के लिए कितने सैनिक पर्याप्त है । वास्तव में मैं तो अपनी पूर्वजों का है दिखाकर ही महिष्मती नगरी के महाराज अर्जुन से कर प्राप्त करना चाहता था । उसने अपना विमान नर्मदा नदी के तट पर उतार दिया और वहाँ से अपना एक दो महिष्मतीपुरी के राजा के प्रसाद पर भेज दिया । यह दूध मारिच था । उस ने राज प्रसाद के द्वार पर जाकर महाराज से मिलने का अनुरोध किया । द्वारपाल का कहना था महाराज इस समय नहीं मिल सकते हैं । क्यों मैं अपनी रानियों के साथ जल्दी हार कर रहे हैं । इस कारण आज वह नहीं मिलेंगे तो उन को संदेश भिजवा दो । क्या संदेश लंका नरेश रावण जिसने देव लोग को विजय क्या है? नर्मदा के किनारे ठहरे हुए हैं । वह चाहते हैं कि विंध्य प्रदेश के राजा तुरंत उनसे आकर मिले और डेढ पूजा से उनका सत्कार करें । द्वारपाल लेगा । संदेश अभी भी जवाब देता हूँ परन्तु आज उनसे बैठ के संभावना नहीं है । इस पर मार इसने आवेश में कह दिया यदि आज भेड नहीं हुई तो हम आज इस सुंदर नगरी को लोड कर यहाँ पर अपना राज्य स्थापित कर लेंगे । मारीज द्वारपाल को इस प्रकार डरा धमकाकर अपने सेना शिविर में नोट हमारी जब भी शिविर में पहुंचकर रावण को राजा के रानियों के साथ जलविहार करने की बात बता रहा था और रावण इत्यादि उसके जलविहार की कथा को सोच ही रहे थे कि नर्मदा कर्जन चलने लगा । देखते देखते जहाँ वे लोग ठहरे हुए थे, बहस साल पानी से गिर गया । नदी में सामान्य बाढ आई समझ रावण कोई ऊंचा स्थान ढूंढने लगा । रावण और उसके सभी साथी देख रहे थे कि नर्मदा का जल बहने से रुक गया है । मान लो कहीं बांध लगा दिया गया हूँ । चारों ओर जल्दी हो गया था । आधी घडी में ही जल्द इतना अधिक हो गया कि वे तैरने लगी । उनके पास भूमि से नहीं लगते थे । विमान में जल भर गया और मैं उन के योग्य नहीं रहा । रावण की सेना डूबने लगी थी । दबीर सैनिक जिधर जिसको समझ आया भाग खडे हुए और अपनी अपनी जान बचाने के लिए समीर की पहाडियों की ओर तैरकर जाने लगे थे । रावण और मारीज भी तय करते हुए जान बचाने की चिंता में थे की नौकाओं में राजा अर्जुन के सुबह आए और रावण तथा मारीज को बंदी बनाकर राज प्रसाद ने ले गए । महिष्मतीपुरी और राज प्रसाद एक पहाडी पर स्थित था । नगरी के लोग नगर के बाहर राक्षसों के पैर तैयार कर जान बचाने का दृश्य देख रहे थे । जो कोई राक्षस तटपर पहुँच पाता था उसे पकडकर बंदी बना लिया जाता था । रावण और मरीज को बंदी बनाकर राज प्रसान में लाया गया तो वही द्वार बाद जिसे मारीज संदेश देकर गया था अपने स्थान द्वार पर खडा मिला । उसने मरीज को झुककर प्रणाम किया और व्यंग्य से मुस्कुराता रहता मारीज लग जा से गर्दन दवाई समीर से निकल गया । रावण उसके आगे आगे था । दोनों को कारागार में बंदी बनाकर रखा गया है । महाराज अर्जुन से भेंट अगले दिन ही हुई । दोनों बंदियों को राज्यसभा में उपस्थित किया गया । जब दोनों बंदी सामने उपस् थित हुए तो राजा ने लाने वाले से पूछा ये कौन है महाराज? कल ये अपने साथ दो सहस्त्र के लगभग सैनिकों को एक व्रत का । ये विमान में लिए हुए नर्मदा के किनारे पर उतरे थे । इनमें जो यह कुछ छोटे कद का व्यक्ति है । राज प्रसाद के बाहर द्वारपाल से कहने आया था कि वह लंकापति रावण का दूध है, रावण की आज्ञा से आया है और रावण चाहता है कि महाराष्ट्र तुरंत उसके पास भेड पूजा लेकर पहुंचे । यदि नहीं पहुंचेंगे तो ये पूरी पर आक्रमण कर देंगे । पूरी को लोट और यहाँ के राजा को बंदी बना अपने साथ ले जाएंगे तो तुम लंकापति हो । राजा ने दस गरीब से पूछता हूँ दस गरीब अपराधियों की भर्ती सामने खडा क्रोध से लाल पीला हो रहा था परंतु उसके हाथ पीठ के पीछे सुदृढ रसों से बंधे हुए थे । विवस उसने कहा हाँ क्या प्रमाण है नदी के किनारे खडा केंद्र का पुष्पक विमान जो देव लोग की विजय पर मुझे मिला है, उसमें ही केंद्र से प्राप्त कर की वस्तुएं एवं कर की राशि भी है । तो केन्द्र के उस खिलोने को लूटकर तुम समझते हो कि तुम्हारा अधिकार हो गया की सबसे भेंट पूजा प्राप्त करो । रावण चुप रहा । हम चाहे तो तुम्हारे विमान को आधे पल में फोन कर मासूम कर सकते हैं । हम तो तुम्हारे सब साथियों को वहीं अग्नि बाढ से फूल भस्म कर सकते थे । परंतु हमने समझा कि तुम्हारा या किलो ना टूट गया तो तुम रोने लगे और यदि तुम सबको मार डाला तो तुमको दंड नहीं मिलेगा । इस कारण हमने अपने किंचित मात्र प्रयत्न से ही तो मैं बंदी बनाना ही उचित समझा है । तो ये आपने हमें बंदी बनाया है । क्या है तो नदी की बाढ में हमें विवश कर दिया था । नहीं दसवी यह हमारे कुशल अभियंताओं की योजना और सैनिकों की कार्यकुशलता थी । उन्होंने नदी को बहने से रोक दिया था । फिर चाहते तो तुम्हें डूबाकर मार सकते थे । परन्तु हम तो मैं इस प्रकार अपने सामने बंदी बना खडा रहना देखना चाहते थे परन्तु वहाँ तो कोई नहीं था । आपने नदी का प्रभाव रोका कैसे उसे रोकने के लिए हमें जाने की आवश्यकता नहीं । हमारे संकेत मात्र से हमारे उपकरण श्रम कार्य करते हैं । हमारे उपकरण ही मेरे हाथ है । इन की सहायता से हम सहस्त्रबाहु तो मैं मालूम होना चाहिए था कि राजा और जो सहस्त्रबाहु इस राज्य की और आग भी उठाने वाला पच्चीस से उठ सकता है, मेरी यही बढे तो तुम्हारे जैसे सौरभ विजेता को स्वर्गवासी बना सकती है । चुनाव कल रात और आज रात है । खाने पीने को कुछ मिला है अथवा नहीं रावण को उत्तर नहीं दिया । हमारी बोल पडा श्रीमान अम् भी एक विस्तृत देश के राजा है । हमने अपने शोर्य से देव लोग को विजय किया है और हम आशा करते हैं कि हमारे साथ राजाओं कैसा व्यवहार किया जाएगा । ठीक है आप जैसे विमानों के साथ वही व्यवहार करना चाहिए जो आप हमारे साथ करना चाहते थे । आपको तो बंदी बनाकर रखा जाना चाहिए जब तक कि आपके राज्य में से हमें करना प्राप्त हो, कितनी धनराशि चाहिए? सात फोर्टी स्वर्ण मुद्रा और लिखित समा याचिका । उस याचिका में यह शर्त की राक्षस उन्हें विन्ध्याचल पार कर इस राज्य में पाव नहीं रखेंगे । यह हम नहीं देंगे । हमारी सेना के सेनाध्यक्ष राजकुमार इंद्रजीत मेघनाथ इधर से ही लंका लौट रहे हैं और यदि उन्हें यह पता चल गया कि हम बंदी है तो इस देश पर आक्रमण कर देंगे । तब यहाँ की तीन सैनिक बजा दी जाएगी । आने दो वह भी आपकी भारतीय पकडकर बंदी बना लिया जाएगा और फिर आपके ही आगार में रखा जाएगा । तब कर की राशि दोगुनी हो जाएगी । देखो राजा रावण हमारे दो सहस्त्र सैनिकों में से ऍम जल पलायन में डूबकर मर गए और शेष बंदी है । यदि पूर्ण सेना भी साथ होती तो उसके साथ भी यही होता है । यदि अब तोहरे राजकुमार यहाँ आएंगे तो हमारा वंश ही निःशेष हो जाएगा । अभी वही तो चल रहा है । हमारी सम्मति मालूम आपने छूटने का मूल्य दे दो और चल दो । इसके उपरांत बंदियों को पूरा बंदीग्रह डाल दिया गया । यह बात भूमंडल में विख्यात हो गई कि लंकाधिपति को विंध्यप्रदेश के राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन ने बंदी बना रखा है । यह सूचना भी शर्मा आश्रम में भी पहुंची । टैक्सी को जब यह पता चला कि रावन बंदी बना लिया गया है तो वह अपने पति से विनय करने लगी कि उसके पुत्र को छुडाना चाहिए । उसके कार्य ही ऐसे है । इन घृणित कार्यों का फल तो मिलना ही था । इसमें मैं क्या कर सकता हूँ? मुन्नी ने पूछा टैक्सी जानती थी कि राजा और जो मोदी जी का सिर्फ शहर है, सुबह है और कभी कभी गुरु जी से देश लेने आश्रम में आया करता है । इस कारण उसने पति से कहा, भगवन! राजा और जोन आपका शिष्य है । अतः आप राज्य से कहकर अपने पुत्र को छुडवा सकते हैं । ऋषि विषय हुआ, स्वयं विंध्यप्रदेश में गए और उन के कहने पर राजा ने धन की मांग वापस ले ली और उन्हें आक्रमण नहीं करने का लिखित वचन ले रावण आदि को मुक्त कर दिया ।
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