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श्री राम बहुत इकतालीस इस दिन से दो मासलपुर जब अभी तू बंदा जा रहा था तो लंका विजय पर संदेह प्रकट किया जा रहा था । इस कारण जब पूर्ण ऍफ नेतृत्व विनाश को प्राप्त हो गया तो संदेह करने वालों को यह स्वाॅट ही दिखाई दे रहा था । इस पर भी यह वस्तु स्थिति थी । रावण की मृत्यु हो चुकी थी । राम ने युद्ध भूमि पर ही विभीषण का राजतिलक कर दिया था । श्री राम की सेना में बहुत और संतोष के ढोल बजाए जा रहे थे । इन सब उत्सवों पर गिरी राम की पक्ष की सेना में प्रसन्नता से नाराज रंग हो रहे थे । इस समय एक का एक सेना के हाथ पर तुषार पड गया । उन सेना में यह समाचार फैल गया कि सीताजी के सतित्व पर राम ने संदेह क्या? इस कारण सीताजी पति के इस संदेह के प्रति रूप अग्नि में जीवित होने जा रही है । यह विख्यात हो गया कि लक्ष्मण को राम का आदेश हुआ है कि सीता के लिए चीता तैयार करते हैं और लक्ष्मण आंखों से विदाल आंसू बहाता हुआ जीता सजा रहा है । लक्ष्मण को ही जीता सजाने की आज्ञा हुई थी । इस कारण इस शोभनीय कार्य में कोई दूसरा सहायक नहीं हो रहा था और इसमें समय लग रहा था । चीता के और राम खडे थे और दूसरी ओर सीता खडी थी । दोनों के मुख पर रजमुद्रा बनी हुई थी । इस दुखद घटना का समाचार लंका में भी पहुंचा और वहाँ के शेष निवासी बी सीता को चिता में बस होते देखने के लिए आ रहे थे । यह समाचार विभीषण को मिला । मैं इस समाचार को सुनते ही रथ पर सवार हो चीता के चारों और खडे विशाल जनसमूह में से मारक बनाता हुआ राम और सीता के बीच में खडा हुआ । उसने हाथ जोड राम को नमस्कार कर कहा तब यह क्या हो रहा है मैंने राम ने गंभीर भाव से कहा । देवी सीता से कहा है कि लंका में यह बात विख्यात हो रही है कि आप के भाई रावण ने इसको पतित कर दिया है । इस लांछन का स्पष्टीकरण देने के स्थान जीवी थी । जीता में बस हम होना पसंद करती है अतः इसके कहने पर ही यह जीता बन रही है । परन्तु महाराज यह बात मित्र है । यह देवी सीता को कहना चाहिए । राम विभीषण से कुछ रोज में कहा आप ये विपरीत व्यवहार कर रही हैं । आपको देवी सीता पर इस प्रकार का लांछन लगाने वाले को कहना चाहिए कि वह इस लांछन का प्रमाण देख आप को अपनी अर्धांगिनी जिसकी परीक्षा अब चौदह वर्ष के वनवास में कर चुके हैं, पर श्रद्धा और विश्वास करना चाहिए । राजा विभीषण राम ने दृढता से कहा यह मेरा निजी व्यवहार है । इसमें आपको हस्तछेप करना नहीं चाहिए । पति पत्नी में विवाद निजी व्यवहार नहीं हो सकता । यह है दो व्यक्तियों में झगडा है और ये राजा के न्यायाधिकरण का विषय है । आपने ही मुझे यहाँ का राजा बनाया है और मैं यहाँ अपना अधिकार मानता हूँ कि इस मामले में हस्तक्षेप का रूप मैं आपको यह स्वीकृति नहीं दे सकता कि आप किसी को आत्महत्या के लिए प्रेरित करें । राम सोनू आपने रावण पर विजय पाई है । इसका यह अर्थ है कि यहाँ रक्षा संस्कृति समाप्त हो गई है । अब यहाँ वैदिक धर्म व्यवस्था लागू हो चुकी है । इस देश का राजा नहीं हो और मैं आदेश देता हूँ कि चीता बनानी बंद कर दी जाएगी । लक्ष्मण यदि तुम्हें कर्म आगे करोगे तो मैं तुम्हें बंदी बनाकर लंका के न्यायाधीश के समूह उपस् थित किए जाने की आज्ञा दे दूंगा । परन्तु राजा विभीषन राम ने कह दिया, मेरी आज्ञा के विरुद्ध आज्ञा देकर तो मुझसे भी युद्ध करोगे क्या? हाँ राम पहले सीता को मुक्त कराने के लिए अब युद्ध कर रहे थे । अब उन की रक्षा के नियमित मैं युद्ध कर होगा परन्तु पराजित सेना का विजयी सेना से युद्ध हो सकेगा क्या नहीं यह विजयी सेना मेरी ओर से आपके विरुद्ध लडेगी । इस विषय में धर्म मेरी ओर है और हनुमान ने हाथ जोडकर का । मेरे सब सैनिक उससे युद्ध करेंगे जो माता सीता पर किसी प्रकार का संदेह करता है । रिलेशन राम ने कहा, यहाँ लंका में तुम्हारा राज्य हैं और किस किन्दा में सुग्रीव का? परन्तु यह तो अयोध्या में जाना चाहेगी वहाँ तुम लोग इसकी रक्षा कैसे कर सकोगे? राम रिविजन का कहना था, हम माता सीता वो यहाँ से तब तक जाने नहीं देंगे जब तक उनकी सुरक्षा के प्रति हम आश्वास नहीं होंगे । हम किसी भी सूरत में किसी निरपराध की हत्या होते नहीं देख सकते हैं और एक सौ तीस आदमी के लिए हम सब अपने प्राणों का फोन करने के लिए तैयार है । इस विवाद को समाप्त करने के लिए सुग्रीव ने कहा, प्रभु अयोध्यावासियों को विश्वास कराना देवताओं का कर्तव्य है । जब तक वो ऐसा नहीं करते हम आपको और माता सीता को अयोध्या नहीं जाने देंगे । इस समय आकाश में विमानों की गडगडाहट सुनाई देने लगी और सब की दृष्टि आकाश की ओर चली गई । केंद्र वरुण, शिव और ब्रह्मा तथा अन्य कई देवगढ विमानों से उतर राम के सामने आ कहने लगे । राम चीता सूर्या के समान उज्ज्वल और सतित्व के ओर से दे । देखते हैं, मान है और तुम व्यर्थ में लोक निंदा से डरते हो । इस तपस्विनी पर किसी प्रकार का लांछन नहीं लग सकता । देखता हूँ की इस घोषणा पर बोर्ड विजयी सेना और लंका निवासियों में माता सीता की जयजयकार होने लगी । ब्रह्मा ने कहा बेटी सीता! तुम श्रीराम से छोटी हो, अतः तुम पति के चरण स्पर्श करूँ । मैं घोषित करता हूँ कि तुम कमल समान निर्मल और निर्दोष हो जीता । ब्रह्मा किया गया । मान चरण स्पर्श करने को झुकने ही लगी थी कि श्री राम ने उसे रोककर कहा, सीटें! मुझे एक पल के लिए भी तुम्हारे सतीत्व पर संदेह नहीं हुआ है तो हमारा स्थान मेरे पास में है, चरणों में नहीं । जनसाधारण के बीच तुम्हारी प्रतिष्ठा के लिए ही मुझे देवताओं की साक्षी की आवश्यकता थी । आज के बाद युगो युगों तक सीता को साथ ही के रूप में याद किया जाएगा । अकेले राम का तो कोई महत्व नहीं । राम का महत्व तो चीता के राम से ही है । श्री राम और सीता के इस मिलन पर सभी नाथ नास्कर हर्ष प्रकट करने लगे । ब्रह्मा ने वहां से विदा होते हुए कहा, जाम तुम्हारे वनवास की अवधि समाप्त हो चुकी है । रावण का वध हो चुका है । अब तो मैं अयोध्या की सुध लेनी चाहिए ।
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