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श्री राम बहुत अडतीस जब राम की सेना लंका के द्वारों पर प्रहार पर प्रहार कर रही थी और द्वार अति सुदृढ होने पर भी वानर सेना के निरंतर दिन रात के प्रहारों से टूटने फूटने लगे तो युद्ध विषय पर विचार करने के लिए रावण ने सभा बुलानी । सभा में रावण ने कहा पूरी का उत्तरी द्वार जर्जर हो गया है और समाचार है कि किसी भी समय वानर सेना उधर से नगर में घुस आएगी । एक बार शत्रुसेना नगर में घुस आई तो फिर लंका छोड भागना पडेगा । नगरवासी नवीद हैं और मुझे यह है कि राम की सेना को देखते ही ये लोग उसकी जय जयकार करने लगेंगे । राजस्थान का कहना था महाराज यह नागरिकों का दोस्त नहीं है । नागरिक एक व्यक्ति जिसे हम वानर कह रहे थे द्वारा गठित विनाश को देख चुके हैं और जब सहस्त्रों की संख्या में वैसे ही वानर नगर में वहीं कुछ करने लगे जो एक वानर कर गया है तो फिर कौन अपने पक्ष को प्रबल मानेगा । हम से भूल हुई है कि हमने इसे उपद्रव के पश्चात जीवित छोड दिया । इस पर मेघनाथ ने का उस समय हमने यतन तो किया था कि उसे जीवित जला डालेंगे परन्तु उसको जलाना हमारे ही विपरीत सिद्धू हुआ था । हम तो उसे जला नहीं सके । इसके विपरीत उसने ही लंका को फोन करने का प्रयत्न किया था । रावण ने इस विवाद को बंद करते हुए कहा, भूत के विषय में जो विचार करते रहते हैं, वे सदा विफल होते हैं । पीछे को देखने वाले आगे नहीं चल सकते हैं । परन्तु नाराज अपने अनुभव से जो लाभ नहीं उठाते हैं, वे भविष्य को भी बना नहीं सकते । और नीति भी यही कहती है कि जो भविष्य में दूर तक नहीं देखता होकर खाकर गिर पडता है । रावण इस प्रकार काल्पनिक सिद्धांतों पर बहस करना नहीं चाहता था, है । वर्तमान संकट को डालना चाहता था । इस कारण उसने उतावली में पूछ लिया, रहस् तुम बहुत बुद्धिमान माने जाते हो । इस संकट को टालने गा, कोई उपाय बताओ? इस पर फॅसने हाथ जोडकर कहा, महाराज, मैं उपाय बताने के लिए यह पृष्ठभूमि तैयार कर रहा हूँ । मेरा ये कहना है कि लंका छोडकर भागने के स्थान पर यह अच्छा होगा कि लंका द्वार पर छह पता का फहरा दी जाएगी । क्या अभिप्राय है तुम्हारा? मेरा अभिप्राय यह है ये राम से संधि कर ली जाए, सीता को वापस कर दीजिए और उनको अपनी वानर सेना लेकर लंका द्वीप छोड जाने की शर्त रख दीजिए तो पराजय स्वीकार कर लू महाराज, यह पराजय नहीं होगी । आप उन्हें अपना सांस्कृतिक कार्य चला सकेंगे । हमें सुग्रीव से उन्हीं शर्तों पर संधि कर लेना चाहिए जिस पर उसके भाई वाले ने की थी । आप लोग नहीं मानेंगे । रावण ने कहा, महाराज, यदि आप योजना में तथ्य समझते हैं तो आज्ञा करिए । मैं यात्रा करता हूँ । रावण एक्शन तक विचार करता रहा । फिर एक का एक भवों पर क्योरी चढाकर बोला, एक बार संदीप चर्चा आरंभ हुई तो राक्षसी मेरे विरुद्ध हो जाएंगे । आता है, इसका प्रश्न ही नहीं उठता । इस पर मेघनाथ बोल उठा, महाराज, मेरी सम्मति है कि कल से नगर से बाहर निकलकर युद्ध किया जाएगा । इससे नागरिकों के व्यतीत होने से सेना प्रभावित नहीं होगी । सेना लडेगी और नागरिक जीतने वाले की प्रतीक्षा करेंगे । वे तो जीतने वाले के गले में उस मालायें डालने के लिए सादा तैयार रहते हैं । ठीक है, ऐसा ही हो । रावण किया गया हो गई और मंत्रीगण कुछ कह नहीं सके । इस पर भी सैनिक वर्ग पसंद था । वास्तव में लंका में सैनिक राज्य को ही राम और वानरो ने आक्रमण द्वारा चुनौती दी थी । जितने भी असैनिक मंत्री थे, वे राम से मैत्री कर लेने के पक्ष में थे परन्तु चली सैनिक वर्ग की उनका नेता रावण था जिसकी प्रभुता उसके कुशल सैनिक होने के कारण थी । जब यह दोस्ती हो रही थी । मंदोदरी सीता से मिलने आई हुई थी । सीता पूर्व अशोक उसके नीचे आसन बिछाए बैठी थी, उसके केस बोले थे और वह परमात्मा का चिंतन कर रही थी । मंदोदरी को देख सीता ने हाथ जोडकर नमस्कार किया और उसे समीप आसन पर ही बैठने का निमंत्रण दे दिया । सुनाओ बहन कैसी हो मंदोदरी ने पूछ लिया रीजन से आज का समाचार सुन मैं शीघ्र ही महारानी का आती थी और छोडने की आशा कर रही हूँ । क्या बताया है फिर जुटाने यही कि लंका पुरी चारों ओर से गिरी हुई है । पूरी का उत्तरी द्वार घमासान युद्ध क्षेत्र बना हुआ है । उसने यह भी बताया है की रक्षा सैनिकों के शवों से पूर्ण मार्ग भर गया है और वे पांच सौ जिन परफाटक टिके हैं, तेरह गए हैं । सब भाषा कर रहे हैं कि कल यदि वानर सेना ने उन्हें दरवजा से आक्रमण किया तो नि संदेह द्वारा टूट जाएगा और वानर लंकापुरी में प्रवेश कर पीता रहा जाएंगे । फ्री जेठ कह रही थी कि लंका के इतिहास में लंका की पराजय जीते बार होने वाली है । एक बार पहले भगवान विष्णु ने लंकापुरी पर आक्रमण किया था तो यहाँ प्रचंड अग्नि का प्रकोप हुआ था । उस अग्नि से बचने के लिए राक्षस भागकर पाताल देश में चले गए थे । अब भी वैसा ही होगा, परन्तु इस बार राक्षस भागकर पाताल देश में नहीं जा सकेंगे । उस समय विष्णु अकेले थे और राक्षसों के भागने के कई मार्ग खुले थे । इस बार लंका को श्री राम के सेनानायकों ने घेर रखा है और यहाँ से लोग भाग कर लंका से बाहर कहीं नहीं जा सकेंगे । मंदोदरी पूछ लिया परन्तु क्या दुर्ग टूट जाएगा और रामविजय ही होंगे । जब से हैं, लंका को फोन करने वाला परम वीर हनुमान यहाँ से हो कर गया है । तब से मुझे विश्वास होता है श्रीराम के सैनिकों की जीत होगी और मैं अपने उचित स्थान पर पहुंच सकू । मंदोदरी चुप रही । वह चिंतित प्रतीत होती थी । सीता ने पुणे कहा, मुझे दुख है कि आपके पति देव की पराजय हो रही है परन्तु होना ही था । इसमें मुझे संदेह नहीं था । कारण ये है कि सत्य और धर्म की सदैव विजय होती है । यदि संदेह था तो इस बात का कि मैं इस कलेवर में पति दर्शन पास होंगी अथवा नहीं । अब इसमें भी संदेह नहीं रहा । इस परिवर्तित परिस्थिति में तुम्हारे जीवन की रक्षा हमारा कर्तव्य हो गया है । एक राक्षस स्कूल की स्त्रियों के मन में सब आ गया है कि यदि सीता से किसी प्रकार का दुर्व्यवहार किया गया तो उसका प्रतिकार उसी रूप में लंका के राज्य परिवार की सभी स्त्रियों से लिया जाएगा । उस तरह का परिणाम यह है हुआ है ये ऍम स्कूल की अधिकांश महिलाओं ने मेरे पास आकर कहा है कि जब तक वर्तमान युद्ध का अंत नहीं होता तब तक सीता का किसी प्रकार का सिस्टम हो । उनको अपने मरने और अपने को कस्ट दिए जाने का भय सता रहा है । यहाँ राक्षसों द्वारा अपराध महिलाओं से किया गया दुर्व्यवहार देख चुकी है । अतः वे नहीं चाहती कि विजिट सेना उनके साथ भी उसी प्रकार का व्यवहार करें । सीता मुस्कुराकर चुप रह गई बात मंदोदरी नहीं आगे चलाई उसने कहा, मैं अपने मरने से नहीं डरती । मैंने स्त्री धर्म के विपरीत कभी कुछ नहीं किया । मेरे कारण ही मेरी प्रिया दासी और सकी त्रिजटा सदैव तुम्हारा मनोबल उच्च रखने का प्रयास करती रही है । अपनी सामर्थ्यानुसार पति देव को भी सन्मार्ग पर आरूढ रखने का यतन क्या है? इस कारण मैं जानती हूँ मेरा शेष जीवन प्रभु भक्ति में और अगला जन्म सुखकारक होगा परन्तु हमारे परिवार की अन्य स्त्रियां ऐसा कुछ नहीं समझती । वे इसी जन्म को मानती है और इसके सुख दुख के भोग के विषय में ही सोचती है । इस कारण उन्हें मरने का और वह भी बहुत कस्ट पाकर मरने का विषय है । वो चाहती है कि मैं तुम्हारी तब तक रक्षा करो जब तक राक्षसों की पूर्ण विजय नहीं हो जाती । और यदि हमारी विजय नहीं होगी तो राम के यहाँ पर तुम उसको सुरक्षित फोड दी जाएगी । और महारानीजी सीता ने पूछ लिया आपको अपनी राक्षस विचारधारा पर विश्वास नहीं है । नहीं मेरी माँ देव लोग की रहने वाली थी और मेरे युवा होने तक मैं उसके पास रही है । उसकी शिक्षा का ही प्रभाव है कि मुझे जीव के अगर अमर होने पर विश्वास है, मेरे देवर डिविजन भी ऐसा ही मानते हैं है । अपने भाई को छोड तुम्हारे पति की चरण में चले गए हैं । मुझे विश्वास हो रहा है कि विजय राम की सेना की होगी । रात सेना के साथ कुछ भी हो परन्तु मैं मानती हूँ के राक्षस स्त्रीवर्ग की स्त्रियों की मान मर्यादा राम के सैनिकों के हाथ में भली भारतीय सुरक्षित है, उनको इसके लिए नहीं करना चाहिए ।
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