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श्री राम भाग पैंतीस अनुमान को लंका जाने और वहाँ से लौटने में दो मार्च के लगभग लग गए थे । इस काल में तो ग्रीन ने इस किन्दा के नागरिकों व अन्य आस पास के वनवासियों की विशाल सेना तैयार कर लीजिए । जब हनुमान लोड कराया तो वह भी तो ग्रीन के आह्वान पर सेना का जमाव देख चकित रह गया । जबकि इसके ना में इस समाचार ने विस्तार पाया की राजा सुग्रीव राक्षसों पर आक्रमण कर रहा है । राक्षसों के विरोधपूर्ण देश में उत्साह और उत्तेजना आ गई । युवक होता है सेना में प्रवेश के लिए इस किन्दा में पहुंचने लगे थे । अनुमान ने लंका में जो कुछ देखा था और जो कुछ उसने किया था तब श्रीराम को कह सुनाया । जहाँ सीता की दुखी व्यवस्था का सिद्धांत सोना राम की आंखों में अश्रु बहने लगे । वहाँ अनुमान की वीरता की कहानी सुन उनके भुजदंड बढने लगे । लंका आक्रमण में सबसे बडी बाधा समुंद्र की थी । इसी कारण ही रावण और लंका वासियों का मस्त देश के आसमान पर चढा हुआ हूँ । अनुमान का लंका में प्रवेश पा जाना और श्रीलंका को होकर सुरक्षापूर्वक चलाना । लंका निवासियों और रावण के सैनिकों के मन में चिंता उत्पन्न करने वाला तो हाँ, परन्तु रावण और उसके सैनिक है । सोच कर मन को संतोष दे लेते थे कि एक आद व्यक्ति का चोर के भारतीय आना और वहाँ पर कुछ हानि पहुंचाकर चला जाना यह सिद्ध नहीं करता हूँ कि लक्ष्य लक्ष्य राक्षस सैनिकों से युद्ध करने के लिए इतने ही सैनिक लंका में आ सकेंगे । परन्तु रावण के जिसमें का ठिकाना नहीं रहा जब एक का एक पता चला कि आर्यव्रत का दक्षिणी कौन लंका से सेतु द्वारा जोड दिया गया है और एक लक्ष्य के लगभग सैनिक लंका में आप पहुंचते हैं । समुद्र तट के संरक्षकों की जानकारी के बिना श्री राम की सेना सागर पार आ गई । ये है देख रावण की नींद खुली और तुरंत एक युद्ध सभा बुलाई गई । दबा में विभीषण, कुंभकरण, मेघनाथ परस्त, दुर्मुख वजह दस्त निकुंभ रज हनु इंडिया दी । वह रावण के अन्य सभी संबंधी और सेनापति उपस् थित थे । रावण ने बताया कि इस राम ने दो कैसे बाली को मार डाला है और उसके छोटे भाई सुग्रीव को राज्य दिलाकर उसे अपना सहायक बना लिया है । अब राम के उकसाने पर तो गृह सेना लेकर लंका में घुस आया है । होना है कि उन्होंने समुद्र पर देख तू बांध लिया है अब उस की सेना और सैनिक सामग्री लंका भूमि पर आ रही है । रावन ने अपने मंत्रियों को बताया की बीना एक विशाल युद्ध के यह सेना लंका द्वीप के बाहर नहीं की जा सकती है । वो महाराज इंद्रजीत मेघनाथ ने कह दिया मेरा भी प्रॉन्स ओनली जी मैं राम और लक्ष्मण को यमद्वार पहुंचाने का वचन देता हूँ । अंत में विभीषण ने कहा भैया एक बार मेरी भी सुन ले राम एसजीपीए योद्दा और पुरुषोत्तम है, वो है ये है । आप उसे युद्ध में परास्त नहीं कर सकेंगे । नर्मदा की अर्जुन और किस किन्दा के बाली को आप पराजित नहीं कर सके । काम जो उनके सैकडों दोनों अधिक धैर्यवान, बलवान और नीतिवान है उसे आप कैसे पराजित कर सकेंगे? इस कारण मेरी सम्मति माने और सीता को मान प्रतिष्ठा से वापस कर देंगे । आराम से समा यातना कर ले । मैं समझता हूँ कि इससे आपकी कीर्ति में वृद्धि होगी और व्यर्थ की राष्ट्रीय सत्य रोकिंग । इस कथन पर सभा के सब के सब सभासद एकदम बोल उठे । नहीं नहीं यह अपमानजनक होगा । इसका उत्तर इंद्रजीत ने दिया । राम केंद्र से बढ कर सकती और बुद्धि का स्वामी नहीं है । मैंने तो उस इंद्र को भी बांधकर पिताजी के सामने उपस् थित कर दिया था । मैं तो उस समय भी ब्रह्मा की बात मानता नहीं और इंद्रा को बंदीग्रह में डाले रखता हूँ । मेरी सम्मति यह थी कि ब्रह्मा को भी बंदी बना लिया जाए और देवा लोग पर अपना राज्य स्थापित कर लिया जाएगा । परन्तु पिताजी को बोल दे ब्रह्मा पर दया आ गई और इन्होंने शहर जी संधि कर ली । मैं भी यही संबंधित होगा कि इस किस किन्दा वासियों को मार मार कर भगा दिया जाएगा । ये हम से क्या लडेंगे, अपना घर तक बना नहीं सके । वानरो की तरह आनंदराव और सुरक्षों पर बने मचानों पर रहते हैं । इनके द्वारा बनाई सेतु पर अपना अधिकार कर भारत विजय का आयोजन किया जाएगा । पूर्ण सभा में इंद्रजीत और रावण की जयघोष हो गई, परंतु रिलेशन ने लंका के जलने की घटना का स्मरण करा मेघनाथ से पूछा और मेघनाथ! उस समय तुम कहाँ थे? जब एक ही किसके इंदावा सी हमारे नियंत्रण में नहीं आया । मैं वहीं था परन्तु वानर की तरह पूछ फोन कर रहा था । आग लगाकर भाग गया और मैं कुछ नहीं कर सका । युद्ध के मैदान में होता तो बताता है । अरे इंसान है ही नहीं है तो वानर है । हाँ हाँ, वानर है, वहाँ वाॅर्नर है । राम और सुग्रीव वानरों की सेना लेकर आए हैं । कहते हुए रावण के सभी सेनानायक बसने लगे । मेरी चेतावनी सुन लो कि तुम्हारे द्वारा घोषित यही तथाकथित वानर लोग लंका को विनष्ट कर सीता को लेकर चले जाएंगे और तुम मुख देखते रह जाओगे और सात आप उसके चरण स्पर्श कर छमा यात्रा करते फिरेंगे । मुझे अपनी दादी पर संदेह होने लगा कि उसने किस भीरू से आपको गर्म में लिया था । आप हमारी संस्कृति के नहीं हैं । लंका का सुख वैभव आपकी योग्य नहीं है । साथ क्या आप साहब दे रही है । इससे पहले की लगे हिसाब से कुछ कहे आप मेरी सुन ले । लेकिन नाथ ने आगे कहा हमारी विजय के बाद तो आप और आपके परिवार वालों के लिए इस सुंदर और सुप्रभ भूमिका बोर्ड नहीं रहेगा । यदि कहीं इसके विपरीत स्थिति उत्पन्न हुई और अन्य राक्षस भी आपकी भारतीय भेरू तथा दुर्बल से दो तो निश्चित जानो कि राम आपको राज प्रसाद के समूह सूली पर चढा देगा । आप जैसे भाई बंधुओं से द्रोह करने वाले का नए इस राज्यसभा में कोई स्थान रहेगा । नयाराम की चंडाल चौकडी में तब आप की स्थिति विकट होगी । तभी रावण ने भी कहा कि लंका का प्रसाद छोड दो अन्यथा तुम्हारा स्थान कारागर में होगा । विभीषण उठा और चुपचाप राज्यसभा से बाहर चला गया हूँ हूँ ।
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