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श्री राम बहुत चौंतीस अनुमान रक्ष पर बैठा यह सब देख रहा था जीता सोई नहीं फॅसा के कथन पर साहस पलट परमात्मा का चिंतन करने लगी । एक का एक उसके मुख से उसके अंतर्मन की वो निकल गई रहत है उठी ये राम बहुत देर हो गयी ग्राउंड अब और सहन नहीं किया जा सकता है । जी ताजी के होने का प्रमाण अनुमान को मिल चुका था । अनुमान को मैं आ गया कि श्री राम ने सीता जी की खोज के लिए चलते समय उसे अपनी एकाउंट ही दे दी थी जिससे अवसर पडने पर राम का दूध होने का प्रमाण दे सके । उसने वहाँ गई थी चीता जी की झोली में फैलती जीता का ध्यान भंग हुआ । अपनी झोली में कुछ गिरते देखा तो उसने उसे उठा लिया है । अंगूठी को पहचान गई और जिसमें करने लगी कि यहाँ से आ गई है । उसने ऊपर रख की ओर देखा तो हनुमान ने अपना परिचय देना उचित समझ बहुत धीमी आवाज में कहा माता मैं श्री राम का दूध हूँ, उन का दूध यहाँ समक्ष आओ चलना तो नहीं खेल रहे देखो जो भी तुम हो मैं एक नि सहाय अबला हूँ । मुझसे टूट और सुनना खेलना उचित नहीं है । अनुमान रख से नीचे उतर आया । आकर उसने सीता के चरणों के समीप की भूमि को छूकर और अपने माथे से लगाकर कहा माता मैंने कभी जोर नहीं बोला और महात्मा की सौगंध पूर्वक यह कहता हूँ कि मैं राम जी का दूध हूँ । उन्होंने इस नगरी पर आक्रमण करने के लिए एक विशाल सेना तैयार कर ली है । बहत जानना चाहते थे कि आप किस स्थान पर? यदि आप कहीं लंका से बाहर है तो वहीं पर आक्रमण किया जाएगा । यहाँ के नागरिकों को व्यर्थ का कस्ट नहीं दिया जाएगा । इसी अर्थ हम बहुत से लोग आपको ढूंढने निकले थे और मेरी नियुक्ति लंका में आपको खोजने की थी । श्री राम ने चलते समय मुझे अंगूठी दी थी जिससे आपको विश्वास दिला सकता हूँ कि मैं उनका दूध हूँ । वैसे मैं अभी अकेला ही आपको यहाँ से बाहर निकालने का या तो कर सकता हूँ परन्तु लाखों राक्षसों से पार पाना आती दुस्तर कार्य होगा और मैं नहीं चाहता की आपके यहाँ होने की सूचना में कोई विलंब हो । मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि आपके यहाँ होने की सूचना पर श्री राम दलबल सहित अतिशीघ्र आएंगे और आपको मुक्त करवाएंगे । ठीक है मैं तो तुरंत त्यागने का विचार कर रही थी । अब फुल है, आशान्वित हो जीने की लालसा करने लगी । सीता ने जाम की अंगूठी अपने पास रख ली और अपनी एक चूडी जो तपस्विनी अनुसैया ने उसे दी थी, काम को पहचान के लिए दे दी । श्री राम उस थोडी को पहचानते थे । सीता ने चूडी देते हुए कहा अब तुम यहाँ से जाओ । यहाँ अधिक काल तक तुम्हारा रहना मुझे से रहित नहीं । यदि तुम्हारा कुछ हो गया तो उस महान कार्य में जिसके नियमित तुम यहाँ आए हो, विभिन्न पडेगा अब तुम जाओ । हनुमान ने पुणे चरणों के समीप की भूमि स्पर्श की और सलांग लगा वाटिका की प्राचीर पर जा पहुंचा । उसी मार्ग से मैं आया था । अब कार्य की सफलता से उत्साहित हो । वह भूख अनुभव करने लगा । राशि पर पहुंचते ही उसकी दृष्टि वालों के उद्यान की ओर चली गई । फल देखकर अनुमान सब कुछ भूल गया । मैं तुरंत उद्यान में फूट पडा और जल्दी जल्दी भिन्न भिन्न प्रकार के फल तोड तोडकर खाने लगा । जो फल कच्चे तथा खट्टे होते है उनको चक्कर एक देता और अन्य फल तोड देता था । इस समय उद्यान के एक पहली की दस्ती उस पर पड गई और उसने हल्ला कर दिया । परिणामस्वरूप उस वाटिका के संरक्षक सैनिक उसे पकडने को लगभग बडे हनुमान ने जब अपने को गिरा हुआ पाया तो एक राक्षस की गजासीन गुमाने लगा और अकेला ही ईसीओ प्रहरियों से लडने लगा । इससे तो और अधिक हमला हुआ वाटिका के बाहर के सैनिक भी नवागन्तुक को पकडने का यत्न करने लगे । भगवान ने अकेले ही अधिकतर सैनिक मार डाले उसको घायल का डाला । इस पर तो नगर का संरक्षक मेघनाथ तो हम इसको पकडने के लिए कई सौ सैनिक लेकर घटनास्थल पर भाव और अब हनुमान बराज इसको पकडा गया । इस समय तक दिन निकल आया था उसे रावण के सम्मुख उपस् थित किया गया । वाटिका के पहले ही नहीं आरोप लगाया है जब दी इंसान के रूप में कोई वाना रात भर इसलिए वाटिका के लक्ष्यों पर वानरों के समान उछल कूद मचाई और फल तोड तोड कर फेंक दिए । जब इसे रोकने के लिए रह गए तो इसने उनमें से कईयों को मार डाला और अनेक को घायल कर दिया है । इस पर पूछना नगर संरक्षक राजकुमार के पास भेजी गई । उसके आने पर यह पकडा जा सका है तुम कौन हो गावं इस व्यक्ति के इतने शोर्य की बातें सुन अति प्रभावित हुआ था । वह हनुमान के अपराध को नहीं देख रहा था है उसके बलिष्ठ शरीर मैं उसके शोर्य की महिमा पर चिंतन कर रहा था । हनुमान ने अपना परिचय दिया और कहा महारानी सीता का समाचार लेने आया था और उन्हें यह कहने आया था की अब उनका उत्तर निकट है । श्री राम का कार्य संपन्न कर वापस जा रहा था की मुझे भूख लगी थी । पार्टी का में फल लगे थे मैंने तोडकर खाई है, कोई अपराध नहीं है । आप के सैनिकों ने मुझे मारना चाहता हूँ । मैं उनसे अधिक बाल का स्वामी था इस कारण मैंने उन्हें मार डाला तो तुम हमारी सेवा स्वीकार कर लो । हम तुम्हारे सोरिया के कार्य से अपनी पसंद है परंतु राजन मैं तो श्री राम का सेवक और आपको शत्रु मानते हैं । इस कारण आप मेरे भी शत्रु वाला सत्रह की सेवा कैसे कर सकता हूँ और दो तुम्हें दंड देना पडेगा । विचार कर लोग हमारा दंड पति भयंकर होगा । महाराष्ट्र ठीक है जी मैं जानता हूँ मैं आपसे दया की यात्रा नहीं कर रहा है और उनको समझ लीजिए कि मैं दूध हूँ और दूध को ठंड नहीं देते, सम्मान देते हैं आपका । मुझे किसी प्रकार का दंड देना आप पर भी भारी हो सकता है । राक्षसराज यदि अपना भला चाहते हो तो महारानी सीता वो श्री राम के पास वापस भेज दो । बाद ही श्रीराम से क्षमा याचना करो । भविष्य के लिए अपना आचरण सुधारने का वजन दो जिससे कि तुम को जीवनदान मिल सके । रावण को क्रोध आ गया । उसने कह दिया तब तो मैं दंड देना ही होगा । हम आप क्या देते हैं कि इस छुद्र जी को आग में जीवित भर शुरू कर दो । रावण किया गया हुई तो अनुमान को जला डालने की तैयारी होने लगी । उसके शरीर पर तेल से भी कोई कपडे वाले जाने लगी । एक का एक अनुमान ने योग से परिपक्व अपने शरीर को ऐसा विस्तार दिया कि बंदर जिससे उसे बंदा हुआ था, फूट गए और मुक्त हो गया । जब तक कोई है समझे कि क्या हुआ होते ही मैं उस वक्त पहले भवन की प्राचीर पर तदुपरान्त छत पर सडकर दैनिकों की पहुंच से दूर हो गया । जो सामान उसे जला देने के लिए एकत्रित किया गया था, उसने उसी से आसपास के बहुत लोगों को आग लगानी आरंभ कर दी । अनुमान के शोर्य और प्राक्रम को तो फॅमिली ही देख चुके थे । अतः उसे बंधनमुक्त दवा देख सभी सैनिक भाग खडे हुए और हनुमान को भवनों और नगर के मुख्य भागों को आग लगाने का अवसर मिल गया । देखते ही देखते स्थान स्थान पर लंकापुरी दो दो कर चलने लगी । लोग और सैनिक आग बुझाने में लग गए और हनुमान सागर किनारे पर पहुंचकर छुपाये रिसर्व अभियान पर झड समुंद्र पार कर आर्यव्रत की मुख्यभूमि जो उडान भरने लगा । अनुमान के साथ ही समुद्र के इस बार अनुमान की प्रतीक्षा कर रहे हैं । जब हनुमान का यान इधर आता दिखाई दिया तो वे उत्सकता से विमान के उतरने की प्रतीक्षा करने लगी । हनुमान ने यान से उतरकर लंका का समाचार दिया तो सब अति प्रसन्न हो । भूत भूत करना हर्ष प्रकट करते हुए अनुमान की जय जयकार करते हुए इसकी निंदा की ओर जल बढ नहीं हूँ ।
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