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श्री राम भाग बत्तीस दोनों भाई शबरी द्वारा बताई दिशा की ओर चल पडे । उन्हें कुछ अधिक दूर नहीं जाना पडा हूँ । पंपापुर के तट पर तुम फ्री अपने कुछ साथियों के साथ वन के स्थगन भाग में रहता था । वास्तव में तो गरीब छुपकर वन में रह रहा था और किसी परिचित व्यक्ति से मिलता नहीं था । जब भी कोई अपरिचित व्यक्ति बन में आता तो वह अपने किसी साथी को भेज उसका परिचय प्राप्त कर लेता था । अनुचित व्यक्ति अथवा संदिग्ध गतिविधियों वाले व्यक्तियों को उसका भेजा दूत मिथ्या मार्ग पर डाल देता हूँ । इसी प्रकार रामलक्ष्मण से परिचय हुआ । दोनों भाई वन में सुग्रीव की तो लेने के लिए भटक ही रहे थे कि एक पति और दसवी और हस्त पुष्ट शरीर वाला वनवासी उन के समीप आया और प्रश्न भरी दृष्टि से उनके मुझ पर देखने लगा । लक्ष्मण ने उससे सुग्रीव के विषय में जानने के लिए पूछा वीर पुरुष! हम राजा सुग्रीव की खोज में घूम रहे हैं । उस वनवासी ने उत्तर देने के स्थान पर प्रश्न पूछ लिया, आप कहाँ से आ रहे हैं? आपको यहाँ के रहने वाले प्रतीत नहीं होते । उत्तर लक्ष्मण नहीं दिया । हम तपस्विनी शबरी के आश्रम से आ रहे हैं । देवी सबरी ने अपना शरीर छोडने से पूर्व हमें बताया है कि राजा सुग्रीव इसी वन में पंपापुर के तट पर कहीं रहते हैं और वही हमारा कार्य सिद्ध करने में समर्थ है और आपका क्या कार्य? यह मेरे बडे भाई अयोध्या पुरी के महाराज दशरथ के बडे सुपुत्र है । यह पिता के वचन का पालन करने के लिए चौदह वर्ष के लिए वनवास कर रहे हैं । इनके धर्म पत्नी साथ ही थी दो माह हुए उनका किसी ने अपहरण कर लिया हमें तपस्विनी शबरी ने बताया है कि उनका अपहरण लंकाधिपति रावण ने किया है और उससे माता जी को छुडाने के लिए सुग्रीव हमारी सहायता करने का सामर्थ्य रखते हैं । इस पर उस वनवासी ने जब का राम के संस्पर्श किए और कहा महाराज आपके वनवास का पूर्ण बताना हम जानते हैं । रावण के घृणित कार्य के विषय में भी हमें एक घटना वर्ष पता चल गया । लगभग दो महापुर एक स्त्री का अपहरण एक विमान में क्या जा रहा था जो ये राम राम कहती हुई मिलाद कर रही थी । हमें भूमि पर बैठे देख उसने कुछ भूषण उतारकर विमान से नीचे फेंक देती हूँ । उन भूषणा को देख कर ही हम अनुमान कर रहे थे कि वह माता सीता है हूँ । हमने ही तपस्विनी शबरी को यह घटना बताई थी और वह कह रही थी कि आप माता सीता को ढूंढते हुए इधर अवश्य आएंगे तो हम आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं और आप कौन है? आपका उच्चारण अति शुद्ध है । आपकी बजा सुद्ध देवभाषा और आपका व्यवहार एक आर्य के समान आमने प्रश्न किया महाराज मेरा नाम हनुमान मैंने मैं ऐसी अगस्त है कि आश्रम में शिक्षा मैं युद्ध विद्या प्राप्त की है । मैं उसी ने मुझे भी मान आदि उडाने का प्रशिक्षण देवताओं से दिलवाया था । उनसे वार्ता लाभ करते करते मुझे शुद्ध देवभाषा आ गई । मैं अपने राजा बाली के व्यवहार से रूस हो किस किन्दा छोड बाली के छोटे भाई तो ग्रेजी की सेवा में आ गया हूँ हमारा विचार बाली के स्थान पर अंग्रेजी को यहाँ पर राजा बनाने का । उसके लिए हम सेना तैयार करने की सोच रहे हैं परन्तु सेनाओं के युद्ध से गृह युद्ध आरंभ हो जाएगा । एक ही जाति के घटक परस्पर एक दूसरे की हत्या करेंगे । इसका विकल्प भी है । राम नहीं रहा हूँ क्या अब तीनो कम लक्ष्मण और हनुमान गहन वन में एक कंधार की ओर चलते हुए वार्ता कर रहे हैं । जब हनुमान ने प्रश्न किया हूँ कि गृहयुद्ध का विकल्प क्या है? तो राम ने कह दिया दोनों भाइयों में वंद । यूँ अनुमान इस सुझाव पर गंभीर हो गया । उसने केवल इतना कहा मैं आपको दुगरी जी से भेंट कराने के लिए ले चल रहा हूँ । है सो जाओ आप ऍम तो ग्रेट जी को ही दें । एक कंधार के द्वार पर एक वो दस युवक तीन अन्य साथियों के साथ बैठा था । अनुमान को वनवासियों के देश में दो दसवीं व्यक्तियों को लेकर आते थे तो गरीब समझ गया । उसे शबरी का कथन समझ आ गया कि श्रीराम अपनी पत्नी की खोज में अपने भाई के साथ यहाँ आएंगे और उसकी सहायता करेंगे । उसने आगे बढ राम के चरण स्पर्श किए तो राम ने उसे उठाकर गले लगा लिया । जब अतिथि सत्कार हो चुका है तो सुग्रीव ने उन भूषणा को दिखाया जो विमान पर अपहरण की जाती । सीता ने इन की वो कहते थे राम ने सीता के भूषण पहचाने तो सुग्रीव ने कहा इस क्षेत्र में रावण के अतिरिक्त अन्य किसी के पास ऐसा विमान नहीं है । अतः इन बॅाल इस्त्री का अपहरण करने वाला ऍम विचारनीय बात ही है कि वह श्रीलंका में ले गया है । हुआ उसने इसी क्षेत्र में कहीं छुपा कर रखा है । यदि उसने कहीं इधर ही रखा है तो सीताजी को छुडाना अधिक कठिन नहीं होगा । यदि वह लंका में दुर्ग के भीतर पहुंच गई है तो फिर लंका विजय करनी पडेगी और लंका विजय के लिए एक राज्य की शक्ति ही चाहिए । वो व्यवस्था में आपको किसी राज्य से गठबंधन करना होगा । इतना कहकर सुग्रीम ना अपनी समस्या का वर्णन कर दिया । सुग्रीव ने बताया इस किन्दा राज्य फोर पूर्व दक्षिण पठार में फैला हुआ था । परंतु बाली ने तो पूर्वक राज्य करने के लिए पठार के पश्चिम समुद्र तट के साथ एक सौ योजन थोडी पट्टी रावण को देखकर उससे संधि कर ली है । रावन ने इसके प्रतिकार में इस किन्दा राज्य को लंका निर्मित वो मिला सामग्री व्यस्त प्रचूर मात्रा में देने का वचन दिया था । सैनिकों का असर इस बहुत मिला । सामग्री के कारण अत्यंत ब्रस्ट होता जा रहा है । इस कारण उस वर्ष और रजा में विद्रोह हुआ था । इसका कारण देना का अत्याचार है । विद्रोह उग्र हो गया । रजा और सेना में छुटपुट झडपें आरंभ हो गई । मैं भाई वाली को समझाता था सेना में अनुशासन व्यक्ति इस कारण बाली ने समझा । ये प्रजा में उत्पन्न पद्रह मेरा हाथ है । मुझे प्रसाद में बंदी बना दिया गया और मेरी पत्नी तारा हो उस ने अपने रनिवास में रख लिया । मैं तो प्रसाद से भागने में सफल हो गया हो परंतु तारा को उसकी भारिया के रूप में वहीं रहना पड रहा है । कई मित्रों द्वारा उसके करोड संदेश मुझे मिलते रहते हैं । मुझे अपनी मृत्यु का ध्यान नहीं है परन्तु चाहता हूँ की बाली के हाथों मरने से पूर्व अपनी पत्नी को एक बार स्वतंत्र वैश्या करवा लूँ । मेरे ये साथ ही कह रहे हैं कि मुझे प्रजा में विद्रोह का नेतृत्व करना चाहिए और स्वयं राजा होने की घोषणा कर देनी चाहिए । मैं यह जानता हूँ आपकी सामान्य भले नागरिक मेरे शासन को पसंद करेंगे परंतु सैनिकों को जो विशेष सुविधाएं मिली हुई है उनके लोग में सैनिक बाली का पक्ष लेंगे तो मुझसे द्वंद युद्ध में क्यों नहीं ललकारते? राम ने पूछा मुझसे अधिक बलशाली है परंतु उन युवा हूँ, संयम भी हो और ईश्वर भर तो है । तुम को परास्त नहीं कर सकता । आपने उसे देखा नहीं । रावण कितना विशालकाय ऍम अत्यंत बलशाली है । वह भी बाल में उसे हीन सिद्ध हुआ था । एक बार वाली जब सागर तट पर उपासना कर रहा था तो रावण उसे बंदी बनाने के विचार से उसकी हो रहा है । बाली ने उसे अपनी बगल में दबा लिया और तब तक दबाए रखा जब तक कि उसकी उपासना समाप्त नहीं बल्कि अतिरिक्त बाली सम्मोहन विद्या का ज्ञाता है । उसकी आंखों में ऐसी सकती है कि उससे आज मिलने वाला श्रियम् शक्ति हो जाता है । इस पर भी मैं समझता हूँ कि विजय कुमारी होगी तो ग्रीव इससे प्रोत्साहित प्रतीत होता था । यद्यपि वह अपनी दुर्बलता का अनुमान लगाकर करता था । बाली की पूर्ण खता राम ने वन में देशों से सुनी थी, अतः उनके मन में एक संकल्प बन रहा है तो ग्रीन को उत्साहित करते हुए राम ने कहा देखो भाई, मैं यही कह सकता हूँ कि निर्बल के बलराम और था । आप अपना बाल मुझे देंगे । हाँ राम ने मुस्कुराते हुए कहा यह संभव है क्या? सुग्रीव संशय व्यक्त करते हुए पूछा दृढसंकल्प हो तो कुछ भी असंभव नहीं । राम का विचार था कि एक से अधिक पत्नियां रखने वाला अवश्य दुर्बल से होगा । उसने सुग्रीव को उत्साहित किया और तो गरीब अपने साथियों के साथ इस किन्दा को चल पडा । राम और लक्ष्मण भी उसके साथ तो गरीब के साथ ही जयघोष करते हुए इसकी निंदा में पहुंचे तो सहस्त्रों की भीड एकत्रित हो गई । सुप्रीम ने बाली के प्रसाद के समूह खडे हो भाई को ललकारा । बाली के सेवक ने सुग्रीव को कहाँ भी बाली उससे अधिक बलवान है और मतलब ये भारतीयों से मार डालेगा परन्तु सुग्रीव कह दिया क्योंकि वह अपनी पत्नी की रक्षा नहीं कर सकता है । इस कारण लांसर युग जीवन से मर जाना अच्छा समझता है । बाली माल युद्ध के लिए तैयार होकर निकल आया । यह विचार करने लगा था कि इस कांटे को सदा के लिए निकाल दे तो ही ठीक है । तो ग्रीव के मन में विश्वास हो चुका था कि वह धर्म का पक्ष ले रहा है । इस विश्वास से अपने में अपूर्वा बाल का संचार अनुभव करता था । प्रजा जो दोनों भाइयों में युद्ध देखने एकत्रित हो गई थी । मन में सुग्रीव की विजय की कामना करती थी परंतु मोन क्योंकि सुग्रीव की विजय में संदेह था वो बाली के क्रोध से भी डरते थे । दोनों भाइयों में युद्ध हुआ । यद्यपि सुग्रीव ने आशातित सोरी है और बाल का प्रदर्शन किया और अंतू युद्ध में बाली की असीम शक्ति के आगे वह फसाड खा गया । बाली ने तो उसे पूरे बाल से पांव की ठोकर हमारी और सुग्रीव को मारने लग का तो गृहभूमि से उठा और दूर खडे राम की ओर भाग निकला । उसे बहुत सा देख बाली अपने विजय की घोषणा करने लगा । दुबरी श्री राम के बाद जाकर दीन स्वर में बोला प्रभु! निर्बल की सहायता के लिए राम का बाल नहीं आया । श्री राम ने उसे प्रेरणा देते हुए कहा देखो सुग्रीव तुम्हारा बडा भाई हाफ रहा, उसका बाल चीज हो रहा है और तुम अभी भी स्वस्थ हो । घबराओ नहीं । एक बार पूरा ललकारो तुम दोनों भाइयों की रूप राशि एक समाज है । राम पहचान नहीं सका कि वह अपना बाल किसको देख तो गए । राम की बात सुन उनका मुफ्त देखता रह गया । राम ने अपने गले की पुष्पमाला उतार सुग्रीव के गले में डालते हुए कहा तुम जैसे पहनकर युद्ध कर और अब राम तुम दोनों में तुमको पहचान सकेगा और बाल तुम डाल देगा । सुग्रीव उत्साहित हो । लोड चुके बाली के निवास के बाहर जाकर उसे पुनर ललकारने लगा । पाली क्रोधित हो अपने निवास के बाहर आकर तो ग्रीन की ओर लगता । दोनों अपने दांव लगाने लगे । अचानक तो ग्रीस फैसला तो बाली ने सुग्रीव को उठा लिया । जैसे ही मैं सुप्रीम को भूमि पर पटकने वाला था कि राम ने अपना धनुष कंधे से उतारा और बांछडा बाली के हर देवस्थल को लक्ष्य बना छोड दिया और एक स्थान पर लगा और बाली मारना आसान हो भूमि पर गिर पडा । बाली के भूमि पर गिरते ही सुग्रीव ने हर चीज से घोषित कर दिया भगवान राम की जय हो । खरदूषण और उनके फॅार राम और लक्ष्मण की विजय का समाचार विख्यात हो चुका था । अतः राम का नाम सुनते ही सैनिक घबराये हुए । वहाँ से भागने के लिए सेना से त्रसित रजाबी तो ग्रीन के साथ श्री राम की जय का उद्घोष करने लगी । राम ने उसी समय के सर ले सुग्रीव को तिलक देते हुए इसकी निंदा का राजा घोषित कर दिया । बाली ने अपने अनुचर को भेज राम को बुला लिया । राम मर रहे प्राणी की अंतिम इच्छापूर्ण करने के लिए उसके समीप जा खडा हो । बाली ने पूछा तुम फोन हो, मैं अयोध्या नरेश महाराजा दशरथ का पुत्र राम होगा । तुम यहाँ इसलिए आये हो आया तो था रावण द्वारा अपनी ऐसा पत्नी को ढूंढने परन्तु यहाँ मैं तुम्हारे द्वारा अन्याय और अत्याचार होते देख तुम्हारे भाई की सहायता के लिए आया हूँ तो बोर हो । यदि तुम अपनी बहारिया को छुडवाने के लिए मुझे कैसे तो मैं रावण को उसे मुक्त करने के लिए विवस कर देता हूँ परन्तु भले मनुष्य जब तुम से हम अपने भाई की पत्नी का अपहरण किए हुए हो तो कैसे मैं आशा कर सकता हूँ कि तुम मेरी फॅमिली का उद्धार करना चाहोगे । बाल लेने का तुम धर्मात्मा बने करते हो । भला यह कहाँ का धर्म है कि दो व्यक्तियों में हो रहे बंद युद्ध में तुम हस्तक्षेप करूँ और फिर सुबह कर एक की हत्या कर दो । राम ने बाली के लांछनों का समाधान करने के लिए कहा । बाली धर्म की शिक्षा वह दे सकता है जो धर्म का पालन करता हूँ । अभिप्राय यह है कि अधर्माचरण करने वाले को दंड देना भी धर्म होता है । तुम राजा होते हुए भी अपने भाई की पत्नी को बलपूर्वक अपनी पत्नी बनाकर रखे हुए थे । राजा धर्म व्यवस्था रखने के लिए होता है । यदि वह अधर्माचरण करने लगे तो महापापी होता है तो तुम महापापी थे । तुम्हें दंड देना आवश्यकता मुझे विश्वास है । राम ने आगे कहा कि मैंने किसी प्रकार का अधर्म नहीं किया । तुम दोनों में युद्ध सामान साधनों से नहीं था । किसी कारण से तुम्हारे सस्ती तो ब्रीफकेस अस्त्रों से श्रेष्ठ थे । मैंने तो उसके हीन शस्त्रों की पूर्ति ही की है । देखो वाली यह शरीर और इन्द्रियाँ साधन ही है । भाग्यवश सुग्रीव तुम जैसा सुदृढ शरीर भी नहीं रखता । मैंने उसकी इस न्यूनता को ही पूरा किया है । परंतु या बलवान और ऍम रखना क्या इस बात का सूचक नहीं कि मुझे यहाँ का राजा होना चाहिए । तुम्हारी बात का तात्पर्य है हुआ कि जिस प्रदेश में एक भी बलशाली राक्षस रहने लगे तो उसे वहां का राजा घोषित कर देना चाहिए नहीं वाली । यह सोच दूषित है । राजा का राज्य न्याय, दया भाव और धर्म का सूचक होना चाहिए । साधन और शक्ति तो उन न्यायाधी धर्मों के पालन में सहायता देने के लिए है । तुम अपने बलवान शरीर से अन्याय युग राज्य कर रहे थे । बाली निरुत्तर हो गया और अपने आपको स्मरण करता हुआ देख त्याग कर गया ।
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