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22. Chitrakoot in Hindi

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9 K Listens
AuthorNitin
श्री राम Producer : Saransh Studios Author : गुरुदत्त Voiceover Artist : Ramesh Mudgal
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श्री राम भाग बाइस चित्रकोट का वन अति सुन्दर और बारह मास विकसित होने वाले उस फोन से लगा रहता था । मन्दाकिनी नदी में जल बिहार करते हुए वन पश्चिम अति लुभाए मान दृश्य प्रस्तुत करते थे । सीता अयोध्या को विस्मरण करने लगी थी । वहाँ साधु संत महात्मा थे । ये सब इन तीनों से हेलमेल रखने लगे थे । चीता को भी वहाँ का वातावरण और वहाँ रहने वाले साधु संत ऋषि अनुकूल ही प्रतीत होते थे । कमी थी एक ऋषि आश्रम था । उसके एक कुलपति भी थी । वह एक ऋषि थे । प्राय मध्यांतर कुलपति राम की कुटिया के बाहर आ जाते थे और राम तथा लक्ष्मण उनसे अनेक विषयों पर वार्ता लाभ किया करते थे । एक दिन कुलपति उस बस्ती का इतिहास बता दिया । कुलपति ने कहा हम यहाँ लगभग दो सौ करानी है । यहाँ से पूर्व हम दंड कार्ड में रहते थे । वह राक्षसों ने उधम मचाना आरंभ कर दिया तो हम उस को छोड पूर्व में इस और आगे लंकापुरी में रावण के सिंगासन रोड होने से पूर्व तपस्वी लोग दक्षिण के नीलगिरि पर्वत तक फैले हुए थे । रावण के लंका का राजा बनने के साथ ही हमें वह क्षेत्र खाली कर देना पडा । राम पहले में उन दिनों किस केंदा में एक वन में रहता था । वहाँ बाली नाम के एक राजा ने अपने भाई सुग्रीव की पत्नी को बलपूर्वक आपने अंतपुर में रख लिया और जब उसने सुग्रीव की हत्या करने का या टन क्या? तो सुग्रीव मैं उसके कुछ साथी राजधानी छोड वन में जाकर रहने लगे । बाली सुग्रीव को ढूंढता रहता है । उसके सैनिक वन वन तो ग्रीन की खोज करते हैं और इस खोज में वनवासी ऋषि मुनियों को कस्ट देते हैं । मैंने मैं स्थान छोड दिया । जब पंचवटी में पहुंचा तो रावण के सैनिक अगस्त देने लगे । दायक उन्होंने इस क्षेत्र को सुरक्षित देख यहाँ से लेयर यहाँ रहते हुए हमें पांच वर्ष के लगभग हो चुके हैं । अब राक्षस लोग इधर भी बढ रहे हैं । पिछले वर्ष महिष्मती के राजा अर्जुन का देहांत हो गया है और रावण को उसके साथ हुई संदीप से मुक्त हो गया । समझ उसके राज्य में भी राक्षसों को भेज रहा है तो अर्जुन का पुत्र उनको रोकता नहीं । बात यह है कि राक्षसों की नीति अब युद्ध करने की नहीं है । तेरा तो सेना युद्ध करती है परन्तु ये राक्षस लुक छिपकर युद्ध करते हैं । रात के समय अस्त्रशस्त्र ही लोगों पर आक्रमण कर देते हैं । एक परिवार पर पचास पचास आज हम रखते हैं उनके स्त्रीवर्ग को पकडकर ले जाते हैं । शेष परिवार की हत्या अगर उनका मांस खाते हैं, राज्य इसमें कुछ नहीं कर सकता । तभी राजा की सेना इधर आती भी है तो ये राक्षस भागकर जंगलों में घुस जाते हैं । सैनिक निर्जन स्थान को देख लोट जाते हैं । राक्षसों की नीति यह है कि वे यहाँ एक के कुटिया पर रात के समय आक्रमणकर्ता उसमें रहने वालों को मारकर दिन निकलने से पूर्व भाग जाएंगे । आप तो जानते ही है कि वन में हम सब एक स्थान पर इकट्ठे होकर रहना नहीं चाहते । इससे हमारे ध्यान में ऐ सुविधा रहती है और हमारे पूजा पाठ में देखना पडता है । एक बात और है, वह यह कि एक ही स्थान पर इकट्ठे होकर रहना चाहे तो भी तब तक नहीं जा सकते जब तक पक्के मकान, मार्ग और मलमूत्र को बाहर निकालने का प्रबंधन हो जाएगा । इससे आश्रम और बस्ती तो पुनर नगर के तुल्य हो जाएगा । हम लोग नगरों को छोड वन में इसी कारण आए हैं कि नगर का जीवन हमारे जब तब में बाधा डालता है, राम मुनियों के दृष्टिकोण को समझने लगे थे । वे लोग ब्रह्मण स्वभाव रखने के कारण राज्य निर्माण नहीं कर सकते । बडे बडे नगरों में यदि सुविधाएँ हैं तो सुविधाएं भी है । ये महानुभव उन सुविधाओं से बचने के लिए वन में कुटिया बनाकर रह रहे हैं । प्रत्येक परिवार ने एकांत पाने के लिए दो चुटिया बना रखी है । राम को गंभीर विचार में मग्न देख उन पति ने कह दिया, वन के मुनि लोग कुछ ऐसा विचार कर रहे हैं कि वे इस स्थान को छोड जाए और यमुना के किनारे पर जाकर रहना आरंभ करते हैं । हमारी समझती है कि आप भी हमारे साथ चलते हैं । राम ने कह दिया और यदि इन राक्षसों को यह विदित हो गया कि अब हम वहाँ निवास करते हैं तो वे वहाँ से भी हमें भगा देने का यत्न करेंगे । इस प्रकार भागने वालों के लिए तो कोई भी स्थान सुरक्षित नहीं दिया जाएगा । यदि स्थान बदलने पर भी इनने शास्त्रों का बहुत बना रहता है तो यहाँ से चले जाने में कोई तथ्य नहीं तो क्या किया जाए? आप महाराज भारत को लिख दे कि यहाँ पर एक सेना भेजते तभी हमारी रक्षा हो सकती है । देखिए, भगवान राम ने कुलपति को अपना निश्चय बता दिया । मैं भारत को यह नहीं लिख होगा क्योंकि यह महिष्मती राज्य का क्षेत्र जैसे एक म्यान में दो तलवारें नहीं संभाल सकती । वैसे ही यदि कोई भी दूसरे देश का राजा यहाँ सेना भेजेगा तो एक प्रदेश में दो सेनाएं एक साथ नहीं रह सकती । अब है दो आर्य सेनाओं में मैं कारण युद्ध हो जाएगा । इस कारण भारत यहाँ सैनिक कार्यवाही नहीं करेगा । मैं आप लोगों की भारतीय हाँ मोक्षमार्ग की खोज में नहीं आया हूँ । इस कारण मैं यहाँ से पलायन नहीं करूंगा । मेरी प्रवर्ति ऐसा करने को कहती भी नहीं । अब मैं यहाँ ही रहूंगा । मैं समझता हूँ कि हम दो भाई ही तो दो सौ राक्षसों का सामना कर सकते हैं, यह मैं जानता हूँ । आप अपने बल और तेज से सौ दो सौ क्या एक दो सहस्त्र को भी बता सकते हैं? परंतु आपके रहते राक्षस इधर आएंगे ही क्यों? तपस्वी लोग तो वन में फैसलों को उस तक फैले हुए हैं । इतना है कुलपति मोल हो गया । वन में रहने का ढंग कुछ ऐसा था की एक कुटिया दूसरी कोटिया से तो थाई मिल के अंतर पर थी । समीप समेत रहने की उन में रूचि नहीं थी । परिणाम होता था कि रात के समय एक परिवार की कठिनाई का दूसरे को पता भी नहीं चलता था । तीन चढने पर यदि कोई उस फुटिया की ओर जाता तो उसे पता चलता कि वह उजडी हुई है और उसके वासी मारपीटकर समाप्त किए जा चुके हैं । इस पर भी राम की सोच है थी कि भाग कर जहाँ जाएंगे क्या ये निशान सर वहाँ नहीं पहुंच जाएंगे । नए भी आए तो उनके लोड ने के बाद इन मुनियों का क्या होगा इस विषय पर लक्ष्मण से भी चर्चा हुई हूँ । लक्ष्मण ने कहा भैया यह सुनकर मेरे भुजदंड इनने शास्त्रों से जूझ ने के लिए व्याकुल हो रही मेरे वार्ड इनका रख देने की लालसा कर रही हैं । इस पर राम ने का लक्ष्मण तो मेरे मन की भावनाओं को ठीक समझे हो, बुराई से भागने पर बुराई पीछा करती है और भागते हुए को पराजित करने में सफल हो जाती है । इस कारण मैं यहाँ से भाग नहीं रहा परंतु मैं एक और पार्ट भी पढा हूँ । वही है कि आक्रमण करने वाले की प्रतीक्षा करने भी दूर बोलता है है । उसके द्वारा आक्रमण करने की प्रतीक्षा करने के स्थान पर अधिक उचित होगा कि उस पर आक्रमण कर दिया जाए और उसे समाप्त कर दिया जाएगा । सुरक्षा में लडने के स्थान पर आक्रमण करना अधिक ठीक है । परंतु भैया हैं कहाँ देखो लक्ष्मण पंचवटी से कुछ अंतर पर रावण के रिश्ते में एक भाई हर ने एक जन स्थान बसाया है । उसमें राक्षस सेना रहती है । हमें वहाँ ही चलना चाहिए । परंतु भैया क्या हम इन अस्त्र शस्त्रों से जो हमारे पास है, एक सैनिक जनपद को विजय कर सकेंगे और फिर बिना सेना की सहायता के ये है बात विचारणीय है । कुलपति ने कुछ दिन पूर्व ही बताया था कि दंड कार्ड में सरभंग नाम के एक ऋषि रहते हैं । उन्होंने उस युद्ध में भाग लिया था जिसमें विष्णु ने लंका राक्षसों से खाली कराई थी । उनके कार्य से प्रसन्न हो भगवान शिव ने उन्हें सुरक्षा के लिए कुछ दिव्यास्त्र दिए थे जो विष्णु के सुदर्शनचक्र के तुल्य घातक तो नहीं परन्तु उससे कम भी नहीं । उनमें से कुछ शास्त्र तो अत्यंत ही घातक माने जाते हैं और देखते ही देखते नगरों को समाप्त कर सकते हैं । मैं किसी अब हो चुके हैं और उन दिव्यास्त्रों के लिए तो पात्र की खोज में है । लक्ष्मण के भुजदंड फडकने लगे और उत्तेजना में उठ खडा हुआ और बोला तो भैया चलो यहाँ व्यर्थ में समय नष्ट करने से क्या लाभ है? राम ने सीता की ओर देखा तो उसने भी सहमती से सिर्फ खिला दिया । तब दोनों भाइयों ने अपने अस्त्रशस्त्र उठाए और तीनों दंड कार्ड की ओर चल पडे । वन में पगडंडियों पर आगे आगे राम पीछे लक्ष्मण और बीस में सीता दक्षिण की ओर बढने लगे ।

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श्री राम Producer : Saransh Studios Author : गुरुदत्त Voiceover Artist : Ramesh Mudgal
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