Made with in India
श्री राम भाग किस पति के देहांत पर कई को समझ आने लगा था कि उसने क्या भूल करती है । जब भारत ननिहाल से आया और पिता के संस्कार कार्य कर चुका तो कई कई को विधित हुआ कि जिसके लिए उसने राम को वन भेजा है, वह राज्य लेना ही नहीं चाहता हूँ । उसने अपने पुत्र के लिए राज्य मांगा था और इस मांग की प्रतिक्रिया स्वरूप उसके पति की मृत्यु हो गई थी । भारत ने मथुरा और माता के कई को पिता की मृत्यु का दोषी मानता हूँ और अपना राज्य विषय स्वीकार कर दिया और यह निश्चय पुरवासियों तथा माता कौशल्या को बताकर इस घटनाक्रम के लिए छमा मांगी और आश्वासन दिया कि वह श्री राम के पीछे पीछे वन में जाएगा और उन्हें वापस लिए बिना नहीं लौटेगा । कई अपने करते पर लज्जित थी । मैं पुत्र के इस विचार को सुन भारत के साथ बन जाने के लिए तैयार हो गई । भारत जब राम को वन से लौटा लाने के लिए चला तो अयोध्या का पूर्ण मंत्रिमंडल प्रमुख पुरवासी और एक बडा सैनिक दल साहब था । भारत के साथ उसकी तीनों माताएं अंतपुर की अन्य स्त्रियां छोटा भाई शत्रुघन भी गई । इस प्रकार एक विशाल जनसमूह राम को वापस लाने के लिए चल पडा । मार्ग में चलते हुए वे राम की वन यात्रा के चिन्ह देख रहे थे । उन मार्क्स जिन लोगों के सहारे चलते हुए वे सब दलबल सहित भारद्वाज आश्रम पर जा पहुंचे । मुन्नी ने जब भरत इत्यादि को देखा तो पूछ लिया भारत कैसे आए हो मुनीवर पितृतुल्य भाई श्रीराम को वापस ले जाने के लिए और सेना साथ लेकर भगवन भाई राम की अयोध्या वापसी को धूमधाम से सम्पन्न करने के लिए देना लाया हूँ मंत्रियों को साथ इसलिए लेकर आया हूँ की ये युक्ति से और धर्म व्यवस्था से भैया को समझा सके कि उनको अयोध्या लोड चलना चाहिए । अपने कथन को बलयुक्त बनाने के लिए मुख्य मुख्य पुरवासियों को भी साथ लाया हूँ । ऋषि के मन में विश्वास बैठ गया कि राम लोट जाएगा । किसी प्रसन्नता में उन्होंने भारत का उसके सब साथियों सहित आश्रम की ओर से भारी सत्कार क्या भारत राज्य परिवार मंत्रीगणों तथा पुरवासी हो और सेना के खाने पीने तथा रात्रि व्यतीत करने का सर्वोत्तम प्रबंध वही आश्रम में कर दिया गया । इससे सभी जन जो भारत के साथ थे अति आनंदित हो । अगले दिन भारत इत्यादि मुनिजी से चित्रकूट का मार्ग पूछने गए भारत ने सत्कार के लिए ऋषि का धन्यवाद कर दिया । भारत ने कहा भगवन! आपने तो अतिथि सत्कार में राजाओं को भी मात कर दिया है । भारत हम बहुत पसंद है कि तुम अत्यंत धर्मनिष्ठ व्यक्ति हूँ । जहाँ राम के त्याग, तपस्या और वितरण की बात सुन चित्र अतिप्रसन्न हुआ था वहाँ तुम्हारा धर्म के तब तो योग की आवाज से जित पहले से भी अधिक प्रफुल्लित हुआ है । इसी प्रसन्नता के अनुरूप ही हमारे आश्रमवासियों ने ये कुछ श्रद्धा के फूल तो ऊपर बरसाए हैं । मेरा आशीर्वाद है कि तुम्हारे इसने मैं क्या की भावना का उदाहरण युगो युगों तक तो मैं अमर कर देगा, तुम्हारी कामना पूर्ण हो । भारत ने मुनिजी से पूछा । यहाँ से आर्या राम किशोर गए हैं । मुनि जी ने बताया आजकल राम चित्रकूट पर्वत पर रह रही हैं जाओ और उन्हें वापस अयोध्या में ले जाकर राज्य सीन करूँ तुम्हारा कल्याण हो । भारत भारद्वाज मुनि का आशीर्वाद ले चित्रकोट को चल पडा । यमुना पार कर चित्रकोट पर्वत के चरणों में पहुंचे तो विशाल सेना तथा रथो छोडो इत्यादि के चलने से उडती हुई धूल से लक्ष्मण के मन में शंका होने लगी की कदाचित भारत उनकी हत्या करने के लिए वहाँ सेना सहित आया है । वहाँ एक वर्ष पर सडकर सेना के आगे आगे पूरे वंश होगा । ध्वज फहराया जाता । पहचान राम से अपनी आशंका प्रकट करने लगा । राम ने पूछा लक्ष्मण तुम्हे बुरी शंका इसलिए मन में ले आए हो भैया । लक्ष्मण ने कहा ये राजनीति है संसार में सब आप जैसे धर्म का मर्म जानने वाले नहीं है । आपका स्नेह और आदर माता कैकई के लिए कितना था । अपनी एशिया में वह क्या कर गई, यह देखकर मन में शंका उत्पन्न हुई है । देखो लक्ष्मण, मैं तो इसमें कोई चिंता की बात नहीं देखता हूँ । यदि भारत हमें मिलने के लिए आया है तो उचित ही है । यदि हमें वापस ले चलने के लिए आया है तो भी अब मैं उससे राज्य नहीं लूंगा । और यदि तुम्हारी आशंका सत्य है कि वह वन में देश भाव लेकर आया है तो मैं अयोध्यावासियों का इतना और आदर पान चुका हूँ कि उन पर बाण चलाते समय मेरी बाहें निस्तेज और बलहीन हो जाएंगी, भारत का नहीं । मैं सोच भी नहीं सकता । वो पिताजी का उतना ही प्रिय पुत्र जितना मैं रहा हूँ । ऐसा है लक्ष्मण । मुझे तो किसी भी दशा में चित्र में चिंता अथवा ध्यान नहीं देखो । अयोध्या नरेश के आने की शांति से प्रतीक्षा करूँ । लक्ष्मण भाई की युक्ति और मनोज गार सुन सुब कर गया और आने वालों के वहां पहुंचने की प्रतीक्षा करने लगा । एक का एक सुरक्षों के जोर मूड में से मुनि वशिष्ठ तथा अन्य मंत्रीगण निकलते हुए दिखाई दिए । उनके साथ भारत चतरगढ और माताओं को आता देखा तो तीनों आगे बढे और माताओं तथा गुरूजनों के चरण स्पर्श करने लगे । भारत और शत्रुघन आ गया, बडे भाई के चरण स्पर्श करने लगे । माताएं, तथाभारत इत्यादि सब सिस्टम वर्ग तीनों को वल्कल पहने सामने खडे देख ट्रेन और दुख के आंसू बहाने लगे । भारत नहीं जानता था कि किस प्रकार पिता के देहांत का समाचार सुनाएगा । यह बात करने में कठिनाई अनुभव करता हुआ चुप था । जब सब चुपचाप खडे आंसू बहा रहे थे तो मैं ऐसी वशिष्ठ आगे बढ राम की पीठ पर प्यार से हाथ फेरते हुए समाचार देने लगे । राम तुम्हारे पिता महाराज दशरत तुम्हारे वन को चले आने के उपरांत अति दुख अनुभव करते हुए और सिद्धार्थ गई हैं । भारत पिता के देवासन का समाचार पाकर अयोध्या आया । उनका दाह संस्कार तथा अंतेयष्टि क्रिया कर रहे है । अब राज्य विषय के लिए तो मैं वापस अयोध्या ले जाने के लिए आया है । इस शोक समाचार से तो तीनों ही हो रोने लगे । तभी इस शोक मिलन के उपरांत मंदाकिनी के किनारे पहुँच आत्मक दो वही नदी तट पर बैठकर वार्ता लाभ करने लगे । बाद भारत ने आरंभ कि उसने कहा भैया अयोध्या का सिंहासन सोना पडा है, अब आप चलो और उसे सुशोभित करूँ । भारत पिताजी अयोध्या का राज्य तुम्हें दे गए हैं । इस कारण मैं तुम्हें सुशोभित करना चाहिए । सिंगासन यदि अभी तक सोना पडा है तो भूल कर रही हो परंतु भैया अधिकारी तुम हो राज्य अधिकार कैसे प्राप्त होता है? इसके तीन ही उपाय है प्रथम है राजा का पुत्र होने पर उनके द्वारा अभिषेक करने से जीती है राज्य के विद्वानों द्वारा निर्वाचित करने से और तृतीय उपाय है समर में जीतने से तीसरा उपाय तो है नहीं हो सकता नहीं । अयोध्या नगरी महाराजा एक स्वा को के काम से आज तक अजेय रही है । दूसरा उपाय भी वर्तमान परिस्थिति में नहीं चल सकता है । महाराज की मृत्यु से पूर्व की इच्छा कोन अयोध्या का विद्वान स्वीकार करेगा । यहाँ केवल पहला उपाय ही सकते हैं । महाराज ने माता कह गए के पुत्र भरत को अयोध्या का राज्य सौंपा है । भारत तो अयोध्या पर राज्य करो, यही पिताजी की इच्छा थी पिताजी तुमको राज्य के अयोग्य नहीं मानते थे । मेरा अयोध्या के विद्वानों से आग्रह है कि स्वर्गीय महाराज की इच्छा की पूर्ति करे । जब तक तुम्हें वे कोई दोस्त नहीं देखते हैं, उनको स्वर्गीय महाराज की बात माननी चाहिए । यही धर्म व्यवस्था है । मैं पिताजी के दिए वचन को परमात्मा की आगे की तुलना मानता हूँ । इस कारण तुम जाओ और राजसिंहासन को संशोधित करें । श्री राम के युक्तियुक्त एवं धर्मानुसार वाॅ सभी निरुत्तर हो गए । इस पर वशिष्ठ मुनि बोले ये अयोध्या में चलकर विचार कर लेंगे । हम तुम वापस हो । माता का कई जो महाराज से तुम्हारे बन जाने की बात कह रही थी, अब पश्चाताप करती हुई तो मैं वापस ले जाने के लिए साथ ही आई है । अब तुम पर अयोध्या लौटने का प्रतिबंध नहीं है । पर मुझे इस प्रतिबंध माता जी ने लगाएगी कहाँ था? मैं ऐसा नहीं समझता । पिताजी अथवा माता जी ने मुझे या वन में आने की आज्ञा नहीं दी थी । ये है तो पिताजी का वजन था, जो मुझसे नहीं कहते थे । उनका मोन प्रेम वस्था परन्तु वचनबद्धता उनकी इस वचनबद्धता से उनको मुक्त करने के लिए ही मैं यहाँ चलाया हूँ । यह पितृऋण तो मुझे चुकाना ही हैं । माता जी को यदि कुछ वापस लेना है तो पिताजी से लेना । मुझे उन्होंने नया तो वन जाने की आज्ञा दी थी और नए ही मैं उनकी आगे से यहाँ आया हूँ । पिताजी के देहांत के उपरांत मैं उनका वचन भंग करूंगा तो जन्म जन्मांतर तक पाप का भागी बना रहा हूँ । गुरूवर मुझे क्षमा करें । मैं चौदह वर्ष का वनवास काल व्यतीत हो जाने के पूर्व किसी भी नगर में नहीं जा सकता । इस कथन ने बात समाप्त कर दी । सब एक दूसरे का मुख देखते रहेंगे, परंतु भारत विषाद में डूब गया । अपने मन में से हम को और अपनी माँ को सीता राम और लक्ष्मण के कस्ट का कारण मानता था । मैं तो किसी भी सूरत में राजा पर स्वीकार करने को तैयार ही नहीं था । अब आगे बढ राम से उसकी खडाऊ मांगने लगा । उसने कहा भैया ये पादुकाएं मुझे दे दो, इन को किस लिए मांग रहे हो? जब तक आप चौदह वर्ष के वनवास का व्रत पालन का लोड नहीं आते तब तक ये अयोध्या में आपका प्रतिनिधित्व कर राज्य करेंगे । मैं वहाँ पर केवल आपका सेवक बनकर ही रह सकता हूँ और तुम राज्य क्यों नहीं करोगे तो भैया मैंने मैं राज्य पिताजी से प्राप्त कर आपको लौटा दिया है । आप जब तक वहाँ नहीं आती ये राज्य सेन रहेंगी और इनका अनुचर बनकर मैं राज्यकार्य अधिक होगा । इस पर गुरु वासी जी बोल उठे हाँ यह ठीक है । पिता की आज्ञानुसार भारत राज्य स्वीकार किया अभी है । उसे बडे भाई के चरणों में अर्पण कर सकता है । भाई चौदह वर्ष तक आ नहीं सकते । इस कारण भाई के अनुसार तब तक कार्य चलाए । भाई की ये पादुकाएं तब तक अपने स्वामी का प्रतिनिधित्व करेंगी । इस प्रकार भरत और साथ ही वो राम ने लौटा दिया । भारत बडे भाई की पादुकाएं ले अयोध्या लोड गया ।
Sound Engineer