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बयान इक्कीसवां दूसरे दिन महाराजा जयसिंह दरबार में बैठे हरदयालसिंह से तेज सिंह का हाल पूछ रहे थे कि अभी तक पता लगा या नहीं की । इतने में सामने से तेज सिंह एक बडा भारी कट्टर पीठ पर लादे हुए आ पहुंचे । गठरी तो दरबार के बीच में रख दी और चोकर महाराज को सलाम किया । महाराज जयसिंह तेजसिंह को देख कर खुश हुए और बैठने के लिए इशारा किया । जब तीन सिंह बैठ गए तो महाराज ने पूछा क्यों जी इतने दिन कहा रहे और क्या लाए हो तो तुम्हारे लिए हम लोगों को बडी भारी परेशानी रही । दीवान जीत सिंग भी बहुत घबराए होंगे क्योंकि हमने वहाँ भी तलाश करवाया था । तेज सिंह ने आज क्या महाराज ताबेदार दुश्मन के हाथ में फस गया था । अब बुजुर्ग के इकबाल से छूट आया है बल्कि आती दफा चुनारगढ के तो यारों को जो वहाँ से लेता आया है । महाराज सुन कर बहुत खुश हुए और अपने हाथ का कीमती कडा तेजसिंह कोई नाम देकर कहा यहाँ भी दो यार को महल में चंपा ने गिरफ्तार किया जो कैद किए गए हैं । इनको भी वहीं भेज देना चाहिए । ये कहकर हरदयालसिंह की तरफ देखा । उन्होंने प्यादों को गठरी खोलने का हुक्म दिया । याद उन्हें कंट्री खोली तेज सिंह ने । उन दोनों को होशियार के और प्यादों ने उन को ले जाकर उसी जेल में बंद कर दिया जिसमें रामनारायण और पन्नालाल तेज सिंह ने महाराज शेयर किया । मेरे गिरफ्तार होने से नौगढ में सब कोई परेशान होंगे । अगर इजाजत हो तो मैं जाकर सभी से मिला हूँ । महाराज ने कहा हाँ जरूर तुमको वहाँ जाना चाहिए जाओ मगर जल्दी वापस चले आना । इसके बाद महाराज ने हरदयालसिंह को मार दिया तो मेरी तरफ से तोहफा लेकर तेज सिंह के साथ नौगढ जाओ । बहुत अच्छा है कि हरदयालसिंह ने तौर पे का सामान तैयार किया और कुछ आदमी संग ले तेज सिंह के साथ नौगढ रवाना हुए । चपला जब महल में पहुंची उसको देखते ही चंद्रकांता ने खुश होकर उसे गले लगा लिया और थोडी देर बाद हाल पूछने लगी । चपला ने अपना पूरा हाल खुलासा तौर पर बयान क्या थोडी देर तक सपना और चंद्रकांता में चुहल होती रही । कुमारी ने चंपा की चालाकी का हाल बयान करके कहा कि तुम्हारी शागिर दाने भी तो यारों को गिरफ्तार किया है । ये सुनकर चपला बहुत खुश हुई और चंपा को जो उसी जगह मौजूद थी गले लगाकर बहुत शाबाशी । इधर तेजसिंह नौगढ गए थे । रास्ते में हरदयालसिंह से बोले अगर हम लोग सवेरे दरबार के समय पहुंचते तो अच्छा होता है क्योंकि उस वक्त सब कोई वहाँ रहेंगे । इस बात को हरदयालसिंह ने भी पसंद किया और रास्ते में ठहर गए । दूसरे दिन दरबार के समय ये दोनों पहुंचे और सीधे कचहरी में चले गए । राजा साहब के बगल में वीरेंद्र सिंह भी बैठे थे । तेज सिंह को देखकर इतने खुश हुए कि मानव दोनों जहाँ की दौलत मिल गई हो । हरदयालसिंह ने शुक्कर महाराज और कुमार को सलाम की और जीत सिंह से बराबर की मुलाकात तेज सिंह ने महाराज सुरेंद्र सिंह के कदमों पर सर रखा । राजा साहब ने प्यार से उसका सिर उठाया । तब अपने पिता को पाल आगन करके तेजसिंह कुमार के बगल में जहाँ बैठे हरदयालसिंह ने तोहफा पेश किया और एक पोशाक जो कुंवर वीरेंद्र सिंह के वास्ते लाए थे वो उनको पहनाई जिसे देख राजा सुरेंद्र सिंह बहुत खुश हुए और कुमार की खुशी का तो कुछ ठिकाना ही ना रहा । राजा साहब ने तेजसिंह से गिरफ्तार होने का हाल पूछा । तेज सिंह ने पूरा हाल आपने गिरफ्तार होने का तथा कुछ बनावटी हाल आपने छूटने का बयान किया और ये भी कहा आती दफा वहाँ के दो यारों को भी गिरफ्तार कर लाया हूँ जो विजयगढ में कहते हैं । ये सुनकर राजा ने खुश होकर देर सिंह को बहुत कुछ नाम दिया और कहा तुम अभी जाओ महल में सबसे मिलकर अपनी माँ से भी मिलो उस बेचारी का तो भारी जुदाई में क्या हाल होगा । वहीं जाती होगी बमो जब मर्जी के तेजसिंह सभी से मिलने के वास्ते रवाना हुए हैं । हरदयालसिंह की मेहमानदारी के लिए राजा ने जीत सिंह को लेकर घर बार बर्खास्त किया । सभी के मिलने के बाद तेज सिंह कुंवर वीरेंद्र सिंह के कमरे में गए । कुमार ने बडी खुशी से उठकर तेजसिंह को गले लगा लिया और जब बैठे तो कहा आपने गिरफ्तार होने का हाल तो तुमने ठीक बयान कर दिया मगर छूटने का हाल बयां करने में झूठ कहा था । अब सच सच बताओ तुम को किसने छुडाया? तेज सिंह ने चपला की तारीफ की और उसकी मदद से आपने छूटने का सच्चा सच्चा हाल कह दिया । कुमार ने कहा मुबारक हो । तेजसिंह बोले पहले आपको मैं मुबारकबाद दे दूंगा तब कहीं ये नौबत पहुंचेगी की आप मुझे मुबारकबाद नहीं । कुमार हस्कर चुप रहे । कई दिनों तक तेजसिंह हसी खुशी से नौगढ में रहे मगर वीरेंद्र सिंह का तकाजा रोज होता ही रहा कि फिर जिस तरह से हो चंद्रकांता से मुलाकात करा हूँ ये भी धीरज देते रहेंगे । कई दिन बाद हरदयालसिंह ने दरबार में महाराज से हर्ज क्या? कई रोज हो गए ताबेदार को आए वहाँ बहुत हर्ज होता होगा । अब रुक्सत मिलती तो अच्छा था और महाराज ने भी फरमाया था की आधी दफा तेजसिंह को साथ लेते आना अब जैसी मर्जी हो । राजा सुरेंद्र सिंह ने कहा बहुत अच्छी बात है तो उसको अपने साथ लेते जाओ । ये कह खिलाफ दिवार हरदयालसिंह को दिया और तेज सिंह को उनके साथ विदा किया । जाते समय तेजसिंह कुमार से मिलने आए कुमार ने रोका उनको विदा किया और कहा मुझको ज्यादा कहने की जरूरत नहीं है मेरी हालत देखते जाऊँ । तेज सिंह ने बहुत कुछ दिया और यहाँ सुविधा हो उसी रोज विजयगढ पहुंचे । दूसरे दिन दरबार में दोनों आदमी हाजिर हुए और महाराज को सलाम करके अपनी अपनी जगह बैठे हैं । तेजसिंह से महाराज ने राजा सुरेंद्र सिंह की कुशलक्षेम पूछी जिसको उन्होंने बडी बुद्धिमानी के साथ मैं क्या । इसी समय बद्रीनाथ भी राजा शिवदत्त की चिट्ठी लिए हुए वहाँ पहुंचे और आशीर्वाद देकर चिट्ठी महाराज के हाथ में दे दी । जिसको पडने के लिए महाराज ने दीवान हरदयालसिंह को दिया खत पढते पढते हरदयालसिंह का चेहरा हमारे कुत्ते के लाल हो गया । महाराज और तेजसिंह हरदयालसिंह के मूंग की तरफ देख रहे थे । उसकी रंगत देखकर समझ गए कि खत्म में कुछ बेहद भी की बातें लिखी गयी हैं । खत पढकर हरदयालसिंह ने क्या ये खत तकलीफ में सुनने लायक है? महाराज ने कहा अच्छा पहले बद्रीनाथ के टिकने का बंदोबस्त करो, फिर हमारे पास दीवान खाने में हूँ । तेज सिंह को भी साथ ले आना । महाराज ने दरबार बर्खास्त कर दिया और महल में चले गए । दीवान हरदयालसिंह पंडित बद्रीनाथ के रहने और जरूरी सामानों का इंतजाम कर तेज सिंह को अपने साथ ले कोर्ट में महाराज के पास गए और सलाम करके बैठ कर महाराज ने शिवदत्त का खत्म बनाने का हुक्म दिया । हरदयालसिंह ने खत को महाराज के सामने ले जाकर अर्ज किया कि अगर सरकार खत पढ लेते तो अच्छा था । महाराज ने खत पडा, पढते ही आंख मारे, गुस्से के सुरु हो गए खत्म फाडकर फेंक दी और कहा बद्रीनाथ से कह दो की इस खत का जवाब यही है कि यहाँ से चले जाएंगे । इसके बाद थोडी देर तक महाराज कुछ देखते रहे तब रंज भरी धीमी आवाज में बोले, क्रूर के चुनारगढ जाते ही हमने सोच लिया था कि जहाँ तक बनेगा वह आग लगाने से ना चुकी थी और आखिर यही हुआ है । मेरे जीते जी तो उसकी मुराद पूरी न होगी । साथ ही आप लोगों को भी अब पूरा बंदोबस्त रखना चाहिए । तेज सिंह ने हाथ जोडकर क्या? इसमें कोई शक नहीं कि शिव तब जरूर फौज लेकर चढाएगा । इसलिए हम लोगों को भी मुनासिब है कि अपनी फौज का इंतजाम और लडाई का सामान पहले से कर रहे हैं । यहाँ तो शिवदत्त की नियत तभी मालूम हो गई थी जब उसने यारों को भेजा था, पर अब कोई शक नहीं रहा । महाराज ने कहा, मैं इस बात को खूब जानता हूँ कि शिवदत्त के पास तीस हजार फौज है और हमारे पास सिर्फ दस हजार मगर के अंदर जाऊंगा । तेज सिंह ने कहा, दस हजार फौज महाराज की और पांच हजार फौज हमारे सरकार पंद्रह हजार हो गई । ऐसे गीदड को मारने को इतनी फौज काफी है । अब महाराज दीवान साहब को एक खत देकर नौगढ भेजे । मैं जाकर फौज ले आता हूँ, बल्कि महाराज की राय हो तो कुंवर वीरेंद्र सिंह को भी बुला ले और फौज का इंतजाम उनके हवाले करेंगे । कर देखिए क्या कैफियत होती है दीवान हरदयालसिंह बोले कृपानाथ इस राय को तो मैं भी पसंद करता हूँ । महाराज ने कहा तो ठीक है मगर वीरेंद्र सिंह को अभी लडाई का काम सुपुर्द करने को जी नहीं चाहता । चाहे वो इस फंड में होशियार हो मगर क्या हुआ जैसा सुरेंद्र सिंह का लडका वैसे मेरा भी मैं कैसे उसको लडने के लिए कहूंगा और सुरेंद्र सिंह भी कब इस बात को मंजूर करेंगे । तेज सिंह ने जवाब दिया, महाराज इस बात की तरफ शराबी ख्याल न करें । ऐसा नहीं हो सकता कि महाराज तो लडाई पर जाए और वीरेंद्र सिंग घर पर बैठे आराम करें । उन का दिल कभी ना मानेगा । राजा सुरेंद्र सिंह भी वीर है, कुछ कायर नहीं । वीरेंद्र सिंह को घर में बैठने ना देंगे बल्कि खुद भी मैदान में बढकर लडे तो ताजुब नहीं महाराज जयसिंह तेजसिंह की बात सुनकर बहुत खुश हुए और दीवान हरदयालसिंह को हुक्म दिया तुम राजा सुरेंद्र सिंह को शिवदत्त की कुछ ताकि का हाल और जो कुछ हमने उसका जवाब दिया है वह भी लिखो और पूछो की आपकी क्या राय है? इस बात का जवाब आ जाने दो । फिर जैसा होगा किया जाएगा और खत्म भी तो भी लेकर जाओ और कल ही लौटाओ क्योंकि अब देर करने का मौका नहीं । हरदयालसिंह ने मुझे मके खत लिखा और महाराज ने उस पर मोहर करके उसी वक्त तो दीवान हरदयालसिंह को विदा कर दिया । दीवान साहब महाराज सुविधा होकर नौगढ की तरफ रवाना हुए । थोडा सा दिन बाकी था जब वहां पहुंची सीधे दिवान जीत सिंह के मकान पर चले गए । दीवान जीतसिंह खबर पाते ही बाहर आए हरदयालसिंह को लाकर अपने यहाँ उतारा और हालचाल पूछा । हरदयालसिंह ने सब खुलासा हाल कहाँ? जीत सिंग गुस्से में आकर बोले आजकल शिवदत्त के दिमाग में खलल आ गया है । हम लोगों को उसने साधारण समझ लिया है । है, देखा जाएगा कुछ हर्ज नहीं । आप आज शाम को राजा साहब से मिलेगा । शाम के वक्त हरदयालसिंह ने जीत सिंग के साथ राजस्व महेंद्र सिंह की मुलाकात करने गए । वहाँ ओवर भी बैठे थे । राजा साहब ने बैठने का इशारा किया और हालचाल पूछा । उन्होंने महाराज जयसिंह का खर्च दे दिया । महाराज ने खुद उस चिट्ठी को पढा । गुस्से के मारे कुछ बोलना सके और खत्म कुंवर वीरेंद्र सिंह के हाथ में दे दिया । कुमार ने भी उसको बखूबी पडा । इनकी भी वही हालत हुई । क्रोध से आंखों के आगे अंधेरा छा गया । कुछ देर तक सोचते रहे । इसके बाद हाथ जोडकर पिता से अर्ज किया मुझको लडाई का बडा हौसला है यही हम लोगों का धर्म भी है । फिर ऐसा मौका मिले या ना मिले इसलिए खत्म करता हूँ कि मुझ को खुश हो तो अपनी फौज लेकर जाऊँ और विजयगढ पर चढाई करने से पहले ही शिवदत्त को कैद कर लूँ । राजस्व महेंद्र सिंह ने कहा उस तरफ जल्दी करने की कोई जरूरत नहीं है । तुम अभी विजयगढ जाऊँ । क्षत्रियों को लडाई से ज्यादा प्यारा बाप बेटा, भाई, भतीजा कोई नहीं होता इसलिए तुम्हारी मोहब्बत छोडकर उपमा देता हूँ की अपनी कुल फौज लेकर महाराज जयसिंह को मदद पहुंचाओ और नाम कम हूँ । फिर जीत सिंह की तरफ देख कर फौज में मुनादी करा दो की रात भर में सब लैस हो जाए । सुबह को कुमार के साथ जाना होगा । इसके बाद हरदयालसिंह से कहा आज आप रह जाए और कल अपने साथ ही फौज तथा कुमार को लेकर तब जाए ये उपमा देकर राज महल में चले गए । जीत सिंग दीवान हरदयालसिंह को साथ लेकर घर गए और कुमार अपने कमरे में जाकर लडाई का सामान तैयार करने लगी । चंद्रकांता को देखने और लडाई पर चलने की खुशी में रात की डर गई । कुछ मालूम ही ना हुआ
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