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chapter 20 in Hindi

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AuthorNitin Sharma
अंतर्द्वंद्व जावेद अमर जॉन के पिछले उपन्यास ‘मास्टरमाइंड' का सीक्वल है। मास्टरमाइंड की कहानी अपने आप में सम्पूर्ण अवश्य थी पर उसकी विषय-वस्तु जो जटिलता लिये थी उसे न्याय देने के लिये एक वृहद कहानी की आवश्यकता थी और प्रस्तुत उपन्यास उसी आवश्यकता को पूर्ण करने हेतु लिखा गया है। writer: शुभानंद Author : Shubhanand Voiceover Artist : RJ Hemant
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वर्तमान समय हिमाचल प्रदेश अमर बॉलकनी में ही खडा था । उस वक्त हो गया जब उसे होटल के ठीक सामने सडक के किनारे एक खास व्यक्ति दिखाई दिया । उसे वो खास इसलिए लगा क्योंकि उसकी दृष्टि बार बार चोरी छिपे अमर कि होटल की तरफ जा रही थी । उसने भूरे रंग का स्वेटर पहना हुआ था और कानून और गले को ढकने के लिए मफलर बांध रखा था । अमर को साफ लगा कि वहाँ किसी और के कारण से नहीं बल्कि होटल की निगरानी करने की नियत से ही खडा है । ऐसा उसे अपनी ट्रेनिंग और तजुर्बे से पता करना बडी बात नहीं थी । वो व्यक्ति अखबार पढने का नाटक कर रहा था जब की उसका ध्यान पूरी तरह अखबार में नहीं था । चोरी छिपे वो बार बार होटल की तरफ देख रहा था । आखिर ये चाहता क्या है? मेरी निगरानी कर रहा है या किसी और की पता करना देगा । अमर कमरे में लौट आया । उसने जैकेट पहनी और पिस्टल उसकी जेब में छिपा ली । कमरे की लाइट ऑन छोडकर वो बाहर निकल आया । वो होटल से नीचे उतारा और सामने से निकलने की जगह पीछे किचन की ओर से निकलकर बगल वाली इमारत के प्रांगण में कूदकर आ गया । फिर उस इमारत से बाहर निकलने लगा । उसे यकीन था कि उस व्यक्ति की नजर होटल पर ही होगी । मुझे सावधानी बरतते हुए इमारत से बाहर निकला और सडक पर आ गया । सडक की दूसरी तरफ उसे पूरे स्वेटर वाला अभी भी दिखाई दे रहा था । अमर विपरीत दिशा में आगे चला गया और फिर सडक पार कर के उस तरफ आ गया जिस तरफ पूरे स्वेटर वाला था । वो सावधानी से उसकी तरफ चलने लगा । उसे देखा भूरे स्वेटर वाला अब विपरीत दिशा में जा रहा था । अमर भी तेजी से उसके पीछे चलने लगा । दोनों तेजी से चल रहे थे । दौडने की कोशिश कोई भी नहीं कर रहा था । फिर अचानक नकाबपोश ने परीक्षा हुआ है और उसमें बैठकर रिक्शा वाले को कहीं जाने का निर्देश दिया । तब तक अमर भी दौड कर वहां पहुंचा और जबरन रिक्शा के अंदर बैठा । रिक्शा वाले और पूरे स्वेटर वाले दोनों ने हैरानी से उसे देखा और रिक्शा मैंने पहले देखा था । अमर बोला देखा होगा और मैं पहले बैठ गया तो मतलब वो पूरे स्वेटर वाले ने धमकी भरे स्वर में कहा, चलो कुछ दूर जाना है । आधे पैसे मैं घुमा रिक्शेवाले ने पलटकर भूरे स्वेटर वाले को देखा उसने अनमने भाव से अमर को देखा । रिक्शा वाले को सहमती दी । रिक्शा आगे बढ गया । दोनों विपरीत दिशा में बाहर देख रहे थे । कुछ ही पल बाद अमर ने पूछा किसी ढूंढने आए थे क्या? वो अमर की तरफ पडता ऍम पर नजर रखे हुए थे । कौन बोला तो तुम्हारी आंखें तुम हॅूं क्यों? फालतू मुझ से बढ रहा हूँ । मैं कौन हूँ? वो तो तुम जानते ही हो गए पर तुम कौन हो ये भी तो मुझे पता होना चाहिए । कहते हुए अमर ने अपना पिस्टल निकाला और आराम से जांच पर रख लिया । बहुत ये क्या है जो बुरी तरह से चौका पहली बार देखा है । अचानक ही उसने अमर पर कोहनी से प्रहार किया और चलते रिक्शा से ही कूद गया । अमर दर्द से चीजों को था । वो इसके लिए तैयार नहीं था । होने का जबरदस्त प्रहार उसके चेहरे पर हुआ था । उसका पिस्टल नीचे गिर गया था । उसने उसे उठाया । तब तक रिक्शा वाले ने ब्रेक लगा दिए थे । अमर तेजी से बाहर निकला । रिक्शा चालक में पिस्टल देख लिया था इसलिए वह फिर वहाँ रुका नहीं हूँ । पूरे स्वेटर वाला रिक्शा से कूदकर रास्ते पर गिरा जरूर था और उसके बाद वह फुर्ती के साथ उठा और दौडते हुए एक गली में प्रविष्ट हो गया था । अमर भी सडक पार करते हुए उस गली की तरफ थोडा गली के अंदर पहुंचने पर अमर को व्यक्ति कहीं दिखाई नहीं दिया । कभी गली के अंत की तरफ से कूदने की आवाजाही अमर दौड कर उस तरफ पहुंचा । गली के अंत में एक छह फीट ऊंची दीवार थी । अमर उस पर चढ गया । दूसरी तरफ कुछ दे रहा था और एक का दुख का अंडरकंस्ट्रक्शन इमारतें थी । वो सावधानी के साथ उस तरफ उतर आया । मुख्य सडक से आने का रास्ता काफी आगे दिखाई दे रहा था । इतनी जल्दी तो वो उस तरफ से भाग नहीं पाया होगा । उस तरफ काफी धूल मिट्टी थी । शायद कंस्ट्रक्शन के कारण अमर की नजर नीचे गई । उसे तलाशती कदमों के निशान की पर वहाँ अनगिनत निशान थे । शायद दिन में उस तरफ काम करने वाले मजदूरों की वो नीचे झुक कर निरीक्षण करने लगा । बारीकी से देखने पर उसे एक तरफ की धूल कुछ हवा में उडती नजर आई । उस दिशा में एक मकान दिखाई दिया जो अंधेरे में डूबा हुआ था । अमर सीधे न जाते हुए छिपते हुए घूमकर मकान के पीछे जा पहुंचा । फिर पीछे घूमते हुए उस की खिडकियों के पास जा खडा हुआ ताकि अगर अंदर कोई हो तो उसे आहट मिल सके । किसी तरह का संकेत ना मिलने पर उसने जमीन से जितना गोलपत्थर उठाया अपना पिस्टल साधा और घूमते हुए सामने की तरफ आ गया और फिर दबे पांव दरवाजे की तरफ पडने लगा । उसने मुख्यद्वार को धीरे से धकेला तो पाया वह खुला हुआ था । शायद वो एक वीरान पडा मकान था जहाँ कोई सालों से नहीं रह रहा था । अमर ने पत्थर लिया और फिर मकान के फर्श पर अन्दर की तरफ लोड करा दिया । वो तेज आवाज करते हुए अंदर लुढकता चला गया और उसी समय हम दौड कर बाहर की तरफ भागा और रोड में छुट गया । दूसरे ही पल अमर की चाल काम आए । मकान से उसका विरोधी दौडते हुए बाहर आया जैसे कि अमर ने चाल चली थी । शायद उसे लगा के अंदर कोई बम लुढकाया गया है । उस पर नजर पडते ही अमर ने उस पर हमला कर दिया । उसने विरोध करना चाहा उसके हाथ में भी पिस्टल था । अमर ने पहले उसका हाथ झटक कर उसे गिराया और फिर जमकर उसकी धुनाई की । जब बेहाल होकर जमीन पर गिर गया तब अमर ने पूछा बोल कौन है तो केस विराट में था । किसने भेजा था तो वो चुप चाप जमीन पर पडा रहा । अमर ने उसे ठोकर मारी फिर झुककर उसकी जेब टटोलने लगा । उसने विरोध किया तो फलस्वरूप उसके मुंह पर एक सबर दस्त कोनसा रसीद क्या जेब से कुछ रुपये और रसीदों के सिवा कुछ नहीं मिला । बोलना शुरू कर अगर पुलिस के सामने ही बोलने वाला है तो ये भी सही है । अगर पुलिस के सामने ही बोलने वाला है तो ये भी सही है मैंने क्या किया है? जो मैं पुलिस रुपये वो निर्भीक स्वर में बोला । एक पल को अमर भी सोच में पड गया । आखिर वह सिर्फ उसके होटल के बाहर खडा निगरानी कर रहा था । जासूसी भी एक जुर्म होता है । अगर दूसरे देश के खिलाफ की जाए मैं महसूस नहीं । अब इसका फैसला तो पुलिस ही करेगी । फिर अमर उसे लेकर उस तरफ की गली से होते हुए मुख्य सडक पर पहुंचा । वो अभी किसी रिक्शा या टैक्सी की रह ही देख रहा था कि अचानक उसे अपने पीछे किसी का आभास हुआ ऍम सर्द लहजे में आवाज आई किसी को पता भी नहीं चलेगा । चलो अब अपना रिवॉल्वर अपनी जेब में रखो । अमर ने अपनी पिस्टल जो छिपाकर मफलर वाले के पेट में लगा रखी थी, को आज्ञाकारी ढंग से अपनी जेब के हवाले कर लिया । अगले ही पल उसके सिर पर पीछे से जबरदस्त प्रहार हुआ । वह चकराकर नीचे जा गिरा । अमर को जब होश आया तब सडक सुनसान पडी थी तो अपने सिर को सहलाते हुए उठा चोट हो गई । सही लीड मिली थी पर हाथ से निकल गयी । पर अब ये तो साफ हो गया है कि यहाँ बहुत बडी साजिश चल रही है और ये लोग नहीं चाहते कि मैं उसकी तह तक पहुंच । मैं सौम्या के घर गया । पुलिस स्टेशन गया हॉस्पिटल गया । यानी इस दौरान मुझ पर इन लोगों की नजर थी और वो मेरे हर कदम पर नजर रख रहे थे । सोचते हुए अमर उठा । उसने अपने कपडे झाडे और धीरे धीरे होटल की तरफ चल दिया । उसने जैकेट की जेब में हाथ डाला । पिस्टल मौजूद थी । गनीमत है कि पिस्टल लेकर नहीं जैकेट की दूसरी जेब में उसे कुछ कागज महसूस हुए । उसने उन्हें निकाला । उसे याद आया कि कुछ रुपये और कागज मफलर वाले की तलाशी में उसे मिले थे । उसने रुपये वापस जेब में डालें और एक एक करके कागजों को देखना शुरू किया । दो । रेस्ट्रॉन्ट के खाने के बिल थे । वो मंडी के ही रेस्ट्रॉन्ट थे । फिर उसे एक बस का टिकट दिखाई दिया । वो धर्मशाला से मंडी का तीन दिन पहले का टिकट था हूँ । सौम्या भी दिल्ली से धर्मशाला गई थी और ये भी स्पेशल मिशन पर । धर्मशाला से यहाँ इस साजिश की जडें धर्मशाला तक फैली है । उसे कागज और मिला । वो धर्मशाला के किसी आश्रम में दिए दान की रसीद थी । जासूस तरीके लोगों का आश्रम में क्या काम लगता है, वहाँ जाना ही पडेगा ।

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अंतर्द्वंद्व जावेद अमर जॉन के पिछले उपन्यास ‘मास्टरमाइंड' का सीक्वल है। मास्टरमाइंड की कहानी अपने आप में सम्पूर्ण अवश्य थी पर उसकी विषय-वस्तु जो जटिलता लिये थी उसे न्याय देने के लिये एक वृहद कहानी की आवश्यकता थी और प्रस्तुत उपन्यास उसी आवश्यकता को पूर्ण करने हेतु लिखा गया है। writer: शुभानंद Author : Shubhanand Voiceover Artist : RJ Hemant
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