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Chapter 2

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अंतर्द्वंद्व जावेद अमर जॉन के पिछले उपन्यास ‘मास्टरमाइंड' का सीक्वल है। मास्टरमाइंड की कहानी अपने आप में सम्पूर्ण अवश्य थी पर उसकी विषय-वस्तु जो जटिलता लिये थी उसे न्याय देने के लिये एक वृहद कहानी की आवश्यकता थी और प्रस्तुत उपन्यास उसी आवश्यकता को पूर्ण करने हेतु लिखा गया है। writer: शुभानंद Author : Shubhanand Voiceover Artist : RJ Hemant
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अंतर्द्वंद क्यूँ कुछ ज्यादा ही चाहकर भी बुलाई नहीं जाती हूँ । कभी कभी हम खुद को किसी दूसरे इंसान के इतना करीब महसूस करते हैं कि उसके जाने के बाद भी हर पल उसके अपने पास होने का एहसास होता रहता है । लखनऊ में बारिश का मौसम था आए गए मतलब बे मतलब बारिश हो रही थी । अभी शाम को अचानक हुई बारिश से एक तरफ लोग सेर पर किसी आसरे की तलाश में भाग दौड रहे थे और दूसरी तरफ सीक्रेट सर्विस का एजेंट अमर वर्मा अपने खयालों में खोया बारिश में भीगता हुआ पैदल चला जा रहा था । आज एक महीना बीत चुका था । खाली के मास्टरमाइंड प्लैन को असफल हुए हैं । आज एक महीना हो चुका था उस दिन को जब देश की खातिर सीक्रेट सर्विस राॅक सीबीआई और इंडियन आर्मी ने संयुक्त होकर देश के खिलाफ रची गई अब तक की सबसे बडी आतंकवादी साजिश को नेस्तेनाबूत किया था । साथ ही आज एक महीना हो चुका था पुनीत सानी धीरज नहीं की और रिंकी सेन्को मरे हुए हैं । रेंकी अमर की आंखों के सामने उसका मनमोहक चेहरा घूम गया । वो एक रॉ एजेंट थी जो अमर का प्यार बन गई थी । उसे अपना सोलमेट मानने लगी थी । पर चेस्टेन उस प्यार का इजहार उसने अमर से क्या वही दिन नियति में उसका आखिरी दिन साबित हुआ आपने? सिरफिरे भाई पुनीत साहनी को खुद अपने हाथों से मारने के अपराधबोध से बोझिल उस लडकी ने अपना पिस्टल खुद अपनी कनपटी पर लगाकर ट्रिगर पर दबा दिया था । क्यों? क्या तुमने ऐसा आखिर क्यों किया का ऐसा ना हुआ होता? तो आज हम दोनों साथ होते हैं क्या? कुछ नहीं हो सकता था । जिंदगी में हम साथ मिलकर अपना अपना मिशन पूरा कर सकते थे । किसी मिशन में भले ही तुम्हें कुछ हो जाता तो शायद इतना हम न होता, जितना तुम खुद अपनी जान देकर गई हो । कैसे एक बार के लिए भी तुम्हारे हाथ नहीं हिचके तो एक बार भी तुमने नहीं सोचा कि तुम्हारे भाई के अलावा भी अब तुम्हारी जिंदगी में कोई और है, उसका क्या होगा? वो कैसे जिएगा? तो मैं तो जाने से पहले आखिरी शब्द तक नहीं बोले । मेरी तरफ एक आखिरी बार देखना भी जरूरी नहीं समझा । अगर देखा होता ना तो शायद तुम ऐसा सेल्फिश कदम कभी नहीं उठाती । अब जब चली ही गई हो, अब जब चले ही गए हो तो अभी बार बार मेरे खयालों में मेरे सपनों में आकर ये बोलने का क्या मतलब है कि मैं अपना ख्याल रखना और तुम्हें फूल जाऊँ । ये तुम्हारे लिए आसान था, पर मेरे लिए नहीं हो पा रहा है । मैं ये सोचने के लिए मजबूर हूँ कि क्या वाकई तुम मुझसे प्यार करती थी या सिर्फ मेरा दिल बहलाने के लिए ऐसा बोल दिया था? नहीं । अमर ने याद किया सोहनगढ माइंस के बाहर बिताये उन लोगों को जब रिंकी ने अपने प्यार का इजहार किया था और ये कहा था कीअमर उसका सोलमेट है । इसमें कोई शक नहीं सोचते सोचते अमर अपने घर पहुंच गया । उसने मेन गेट खोला तो हमेशा की तरह बिंगो दुम हिलाते हुए उसका स्वागत करने लगा । अमर ने धीरे से एक बार उसकी पीठ सहलाई और फिर अन्दर की तरफ बढ गया । बिंदु असंतुष्टि से उसको जाता देख पूंछ हिलाते हुए ऍम करने लग अमर अंदर पहुंचा । इमरती लाल ने उसके बुझे हुए चेहरे पर नजर डाली । उसे सब पता था जावेद और जॉन ने उसे सब बता दिया था और खास हिदायत दी थी कि अमर पर नजर रखे उसका खयाल रखें क्योंकि अमर जॉन के कई बार आग्रह करने के बाद भी उसे घर में आकर रुकने नहीं दे रहा था । वो निरंतर यही बोलता रहा कि उसे एकांत चाहिए । इसे एक महीने के दौरान वो ऑफिस भी नहीं गया था । चीफ अभय कुमार ने उसे ब्रेक लेने को कहा था । खाना लगाने बाबू इमरती लाल ने पूछा नहीं मन नहीं, दोपहर में बहुत खा लिया था । कहाँ बहुत खा लिए थे । दो रोटी ही तो खाए थे । थोडा तो खालो तुम्हारी पसंद की मखनी दाल और चावल बनाया है । नहीं सही में मूड नहीं बाबू मूड के लिए थोडी न खाते हैं । देखो अब थोडा बियर पी हो तो खाना भी खा लो वरना नुकसान करेगा । अमर ने मुस्कुराकर उसे देखा और कहा अच्छा ठीक है । लगा दो । खाना खाने के बाद अमर बैठक में पहुंचा । उसे याद आया । एक बार रिंकी उससे वहाँ पर सिगरेट मांग रही थी । उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई । वो उस कमरे में पहुंचा जोकि रिंकी का उसके घर में परमानेंट कमरा बन गया था । उसकी नजर टेबल पर गई जहाँ रिंकी का लेपटॉप और उसके अनगिनत उपकरण रखे थे । कितनी सहजता और कम्फर्ट के साथ वो इस कमरे में रहती थी जैसे बचपन से ही रह रही हूँ । अमर के चेहरे पर मुस्कान आ गई । वो पलंग पर जाकर बैठ गया । फिर कुछ सोचते हुए तकिया लगाकर लेट गया और चादर ओड ली । जैसे कि वो रिंकी कोर्स बैठ पर महसूस करने लगा । अमर ने आंखें बंद कर ली । न जाने के उसके चेहरे पर मुस्कान थी । रिंकी की मीठी यादें उसके मन को गुदगुदा रही थी । हमारे ऍम कोई प्यार से उसका नाम तो कर रहा था अमर हमारे अमर ने आंखें खोली तो उसने पाया रिंकी उसके बगल में बैठ पर बैठी थी और उसने लैप्टॉप अपनी गोद में रखा हुआ था । दुबली पतली प्यारी सी स्कूल गाल जैसी देखने वाली जिनकी जिसके चेहरे पर मुस्कान और मुस्कान के कारण गालों में गड्ढे दिखाई देते थे । तुम मेरे बेटा क्यों हो रही हूँ? उसने पूछा अमर ने हैरानी से उसे देखा, वह सब पकाकर पीछे हो गया । क्या हुआ जिनकी खेल खिलाकर हस्ती मैं कुछ दिन बाहर क्या थी? तुम्हें मेरे कमरे पर कब्जा कर लिया । ये कैसे हो सकता है? अमर उठ खडा हुआ ऍर इनकी हँसी तुम यहाँ कैसे हो सकती हूँ तो तुमने क्या सोचा था इतनी आसानी से मुझ से पीछा छुडा लोगे कहकर उसने लैप्टॉप साइड में रखा और सरककर उसके पास आ गई । अपनी बाहें अमर के गले में डालकर वो उसकी आंखों में देखने लगी । मैं जिंदा हूँ पर सिर्फ तुम्हारे लिए मुझे कुछ समझ नहीं आना । मैंने अपनी आंखों के सामने तो मैं मारते अमर आगे वाक्य पूरा न कर सका । उसके होट फड फडा उठे वो संस्था पर मैं अभी भी जिंदा हूँ सिर्फ तुम्हारे लिए । प्लीज मुझे छलावे में मत रखो । मेरी सपने से निकल जाओ मैं तो मैं भूल जाना चाहता हूँ । सच में तुम यही चाहते हो । अमर उससे नजरे नहीं मिला सका । अच्छा ठीक है । मैं तुम्हारी सपनों में आना छोड देंगे । पर तो में कुछ करना होगा क्या? नूर के बारे में और पता करो तो अभी तक समझ नहीं पाए कि मरते वक्त मैं कितने बडे सदमे में थी । अपनी जान से प्यारे भाई की असलियत जानकर विश्वास नहीं कर पा रही थी कि ये हकीकत है या कोई सपना । इसलिए उस वक्त मैं कुछ और नहीं सोच सकें । मेरा भाई एक हैवान बन चुका था । मुझे इतनी हिम्मत नहीं थी कि उसे अरेस्ट होते हुए कोर्ट में खडा देख सकूँ । उस वक्त में खत्म हो चुकी थी । मैं मानती हूँ मैंने तुम्हारे साथ गलत किया । स्वार्थी हो गयी तो तुम्हारे ऊपर क्या बीतेगी? नहीं सोच सकी मुझे उसके लिए माफ कर दो । प्लीज इस तरह डिप्रेशन में रहने की जगह वो काम करो जो मैं ना कर सकें । पुल के बारे में और पता लगा हूँ । मुझे यकीन है अपना देश अभी भी भारी खतरे में हैं । ठीक है अमर उसकी आंखों में झांक रहा था । पर क्या तुम वापस नहीं आ सकती? काशी मुमकिन होता पर अब तो मुझे प्रॉमिस करो कि तुम ये काम करोगे? अमर ने बेमन से सिर हिलाया । अच्छा अब सो जाओ । अब मैं तो मैं परेशान नहीं करूंगी । वो उसे एक तक देखता रहा । फिर अचानक ही रिंकी कहीं गायब हो गई । क्या अमर नींद से उठा इतनी बढिया और गहरी नींद उसे एक महीने बाद आई थी । वो पूरी तरह से फ्रेश महसूस कर रहा था । उसने कमरे में चारों तरफ देखा पर दिन की कहीं दिखाई नहीं । अलविदा वो मन ही मन बोला । उसने महसूस किया कि वह दुखी नहीं था । उसकी यादे उसके जहन में अभी भी ताजा थी । पर अपने अंतर्मन से अब वो आंदोलित नहीं हो रहा था । वो मुस्कुराते हुए बैठ से उठा और पूरे जोश के साथ उसका दिन चालू हुआ । कुछ देर में गाना गुनगुनाते हुए वह शिव बना रहा था । उसे इस तरह देखकर इमरती लाल की खुशी का ठिकाना नहीं रहा । इतने समय बाद लगातार उसे चुप और उदास देखते देखते उसका मन भी खट्टा हो गया था । का बात है बाबू, आज तो बहुत ही खुश हो और सुबह सुबह कहाँ की तैयारी है । अरे ऑफिस जाना है इतना दिन हो गया । जाने कितना काम पेंडिंग हो गया होगा । चलो जल्दी से नाश्ता बना तो बहुत भूख लगी है । मैं यहाँ कराता हूँ । इमरती लाल बहुत खुश हुआ । उसने फटाफट ला जवाब आलू के पराठे बनाए जिन्हें चाव से खाकर अमर घर से निकला । आधे घंटे के अंदर वो सीक्रेट सर्विस के ऑफिस पहुंच चुका था । हाथ में कार की चाबी न चाहते और कोई गाना गुनगुनाते हुए वो तेजी से ऑफिस में प्रवेश हुआ । पर वहाँ के माहौल में कुछ अजीब सा सन्नाटा महसूस करते ही वह ठिठककर रुक गया । उसने चारों तरफ देखा, सभी लोगों से ही देख रहे थे और फिर काफी लोग उठकर खडे हो गए और एक एक करके धीरे धीरे सभी ताली बजाने लगे । अमर मुस्कुराया और सभी की तरफ देखकर सिर झुकाने लगा । ऍम भीनी मुस्कान के साथ फिर वो अपनी डेस्क पर पहुंचा । कुछ ही देर में श्रीनिवासन उसके पास पहुंचा हूँ और हाथ मिलाते हुए गर्मजोशी के साथ बोला ऍम, फॅमिली और क्या हाल? चाल सब ठीक ऍम आपको काफी मिस कर रहे थे हम लोग । आप के बिना तो ऑफिस में कोई रौनक नहीं रहता है । अच्छा आते ही मेरी खिंचाई शुरू हो गई । सर हम कहाँ का खिचाई कर सकता है? आप कौन सा रबर बैंड आपको की जा जाएगा और आप किस से चले जाएगा? वा श्री निवास क्या बात कही है चलो इसी बात पर काफी हो जाएगा । बिल्कुल अमर सर आप तो जब से ऑफिस नहीं आया हमारा तो कॉफी पी नहीं छूट गया । अब इतना भी मत को यार अच्छा अमर ने खडे होते हुए कहा । और फिर दोनों पैंट्री की तरफ बढ गए । वहां पहुंचकर दोनों ने कॉफी मशीन से अपने लिए कॉफी बनाई और वहीँ खडे होकर धीरे धीरे गर्म कॉफी की चुस्की लेने लगे । और क्या चल रहा आजकल ऑफिस में चीफ खाएँ और मेरी जान जावेद की दरें आप किसी के कॉन्टेक्ट में नहीं गया । नहीं मैंने तो कई दिन से फोन वोन सब बंद करके रखा हुआ था । आॅडर सेंसर यह काफी मुश्किल समय आप के लिए अमर कुछ पल शून्य में घूमता रहा । फिर बोल कोई नहीं हर किसी की लाइफ में मुश्किल समय आता ही है । जावेद ने भी कितनी मुश्किलें झेली हैं पर देखो अब इतने सालों बाद उसे कुछ आशा की किरण तो नजर आई । उसकी फैमिली शायद जिंदा है और ये कितनी खुशी की बात है ऍम और आजकल जावेद और जॉनसर उसी सिलसिले में लगा हुआ है । आज भी दोनों लापता फ्लाइट तीन सौ एक के जांच पडताल के चक्कर में निकला हुआ है । दो । वाइसी

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