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श्री राम हाँ सोलह देवताओं और ऋषियों को इन सब घटनाओं से विश्वास हो गया था कि रावण के समान भगवान योजना तैयार हो गया परन्तु दोनों में युद्ध की घोषणा किस प्रकार हूँ और जोर बाली द्वारा बंदी बनाए जाने के बाद रावण कितना बहन भी था कि वह वालों से संघर्ष करने के लिए तैयार नहीं होता था । मैं तो मान लो वो धमचक का राक्षस संस्कृति में विस्तार चाहता हूँ । मैं समझता था कि जब मानव धर्मविहीन हो जाए या सांसारिक सुख भोग लीन हो जाए अथवा बलहीन हो जाए तब इन को परास्त करना सुगम होगा । इसी कारण उसने मानवों के धर्म के चालक ऋषि वहशियों के आसनों को नष्ट करने के लिए अपने भाई घर के अधीन चौदह ऍम भेजे हुए थे । रावण की इस योजना का प्रथम विरोध सिद्धाश्रम में राम द्वारा हुआ था । ताडका और सुबह हूँ बाहर डाले गए थे । राक्षण सेना अधिकांश मारी गई और शेष भाग गई थी । मारीज भी भाग गया था । इस समाचार से तो रावण और भी डर गया था मानो से सीधा संघर्ष नहीं करना चाहता था । अकेले रहने वाले ऋषि मुनियों अथवा अन्य मानवों के पास राक्षस स्त्रियाँ भेज देता था । वे स्त्रियां उनसे विवाह करने की अभिलाषा करती थी जो विवाह के लिए तैयार हो जाते थे । वे राक्षस संस्कृति की संख्या बढाने में सहायक होते थे । जो राक्षस स्त्रियों से विवाह करना ए स्वीकार कर देते थे उनको राक्षस मारकर खा जाते थे । राय लोग इस दूसरी श्रेणी में ही आते थे । यह प्रक्रिया बहुत धीरे धीरे चलने वाली थी । इससे राक्षस प्रसन्न नहीं थे और देवता हताश होते जाते थे परंतु कोई उपाय नहीं था । इस समय एक ओर घटना घटी । राजा दशरथ के मन में वानप्रस्थ आश्रम में जाने की अभिलाषा जाती थी । उन्होंने मंत्रियों और चीजों को भुलाकर अपना विचार बताया और यह प्रस्ताव रख दिया कि राम को युवराज पद पर असीन कर दिया जाए जिससे धीरे धीरे राज्य का भार उस पर डाल ऍम वानप्रस्थ आश्रम की तैयारी में लग जाएगा । सब मंत्रियों और ऋषियों ने इस विचार की सराहना की और इस शुभकार्य के लिए दिन नियत कर दिया गया परन्तु देवताओं का कार्य इन सब से चलने वाला नहीं था । कौशल राज्य गंगा के उत्तर में था । गंगा को पार कर दक्षिण की ओर कई छोटे छोटे राजा थे । उसके बाद यमुना थी । यमुना से बाद बीहड वन प्रदेश था और उसके बाद विन्ध्याचल था । विन्ध्याचल के दक्षिण की ओर उपद्रवी राक्षस रह रहे थे । प्रजा भाग भाग कर उत्तर के राज्य में आ रही थी । वहाँ की वो में उपजाऊ थी परंतु जनसंख्या कम थी । सोशल राज्य में तो अभी इसका प्रभाव नहीं हो रहा था । अतः राम का रावण से कभी भी आमना सामना होने की संभावना नहीं थी क्योंकि रावण अब लंका के बाद बहुत कम निकलता था । इस कारण देवता समझने लगे कि रावण और ऍम की पराजय का जो आयोजन ब्रह्मा ने किया है, सफल हो जाएगा । रावण को लंका का राज्य प्राप्त किए पच्चीस वर्ष के लगभग हो चुके थे और जो उपद्रव दक्षिण आर्यव्रत में मजा आ रहा था उससे प्रदेश गुजर रहा था और राक्षसी प्रवृत्ति और संस्कृति बढ रही थी । यह चर्चा केंद्र ने नारद मुनि से चलाई । नारद ने कहा था कि भारत का भ्रमण कर के आ रहा है तो इंद्र ने पूछ लिया तो राम रावण का युद्ध कब होगा । रावण अब द्वंद युद्ध नहीं करेगा । बाली द्वारा पकडे जाने के उपरांत उसे साहस नहीं हो रहा है कि वो किसी से भी द्वंद युद्ध करें । अतः रावण तो दोनों युद्ध करेगा नहीं हाँ राम उसे ललकारें ऐसे हुए बिना नहीं रहेगा । कैसे होगा यह युद्ध दोनों एक दूसरे से सात आठ सौ कोर्स के अंतर पर है । उसके लिए मैं या तो कर रहा हूँ । इस अर्थ में अयोध्या गया था और वहाँ एक पास हैं का आया हूँ । मुनि जी क्या पासा फेंक आए हैं । इंद्र ने उत्सकता से पूछ लिया बताने का नहीं है । मैं ऐसा समझता हूँ कि उस साल से राम फॅस देश में पहुंच जाएगा और तब दोनों मुख्य पुरुषों का आमना सामना हो जाएगा । यह वैसा ही होगा जैसे कि विष्णु भगवान् का युद्ध माल्यवान की सेना से हुआ था । परन्तु विष्णु के पास तो गरूड और सुदर्शन चक्र था । राम के पास ऐसे साधन है नहीं, ये साधन आपके पास है । आप उसे राम को देंगे है । आपको किसने का कहा तो किसी ने नहीं । मैं अपने मन में विचार कर रहा था की आपसे कहूँ कि आप इन शस्त्रों को राम को दे दे । नहीं मुनिजी ये साधन तो भगवान की उपाधि प्राप्त व्यक्ति के ही काम आ सकते हैं । अब क्या कमी रह गई है राम को भगवान घोषित करने में आप अम्मा जी से कहकर राम को भगवान की उपाधि से विभूषित करा दें । ऐसा करने की सामर्थ्य बमबाजी में है । अच्छा मैं विचार करूंगा । केंद्र उत्तर दिया कम से कम आप ब्रह्मा जी से इस विषय पर चर्चा तो करें
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