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बयान हम पहले ये लिख चुके हैं कि महाराज शिवदत्त के यहाँ जितनी तैयार है सभी को तेजसिंह पहचानते हैं । अब तेज सिंह को या जानने की फिक्र हुई कि उनमें से कौन कौन शहर आए हैं । इसलिए दूसरे दिन शाम के वक्त उन्होंने अपनी सूरत भगवान दत्त की बनाए, जिसको ते खाने में बंद कराएंगे और शहर से निकल जंगल में इधर उधर घूमने लगे पर कहीं कुछ बताना लगा बरसात का दिन आ चुका था । रात अंधेरी और बदली छाई थी । आखिर तेज सिंह ने ठेले पर खडे हो कर सब फील हो जाएगा । थोडी देर में तीनो यार मैं पंडित जगन्नाथ जो सी के सीजन वहाँ पहुंचे और भगवान दत्त को खडे देखकर बोले क्या जी तो नौगढ गए थे ना? क्या क्या खाली क्यों चले आए? तेज सिंह ने सभी को पहचानने के बाद जवाब दिया तो वहाँ तेज सिंह की बदौलत कोई कार्यवाही न चली तो उन लोगों में से कोई एक आदमी मेरे साथ चले तो काम बने बनना अच्छा हम कल चलेंगे तुम्हारे सर आज चलो महल में वही कार्रवाई करें । तेज सिंह ने कहा था अच्छा चलो नगर मच को इस वक्त भूक बडे जोर की लगी है । कुछ खालू तो काम में जी लगे तो उन लोगों के पास कुछ हो तो लाओ । जगन्नाथ ने कहा पास में जो जो कुछ है, बेहोशी मिला है, बाजार से जाकर कुछ लाओ तो सब कोई खा पीकर छुट्टी करें । भगवान ने कहा अच्छा एक आदमी मेरे साथ चलो । पन्नालाल साथ हुए दोनों शहर की तरफ चलेंगे रास्ते में । पन्नालाल ने कहा हम लोगों को अपनी सूरत बदल लेना चाहिए क्योंकि तेजसिंह कल से इसी शहर में आया है और हम सभी को पहचानता भी है । शायद घूमता फिरता कहीं मिल जाए । भगवान रखने ये सोचकर कि सूरत बदलेंगे तो रोगन लगाते वक्त शायद ये पहचान जवाब दिया कोई जरूरी नहीं । कौन रात को मिलता है भगवान के इनकार करने से पन्नालाल को शक हो गया और गौर से इनकी सूरत देखने लगा । मगर रात अंधेरी थी, पहचान नहीं सका । आखिर को जोर से जब फील बजाई शहर के पास आ चुके थे यार लोग दूर थे जब फिल सुनना सकें । तेजसिंह भी समझ गए कि इसको शक हो गया । अब तेरी करने की कोई जरूरत नहीं है । छठ उसके गले में हाथ डाल दिया । पन्ना लाल ने भी खंजर निकाल दिया । दोनों में खूब जोर की भिडंत हो गई आखिर को तेज सिंह ने पन्ना को उठा के दे मारा और मुश्किल कस बेहोशकर कंट्री बांध ली तथा पीठ पर लाद शहर की तरफ रवाना असली सूरत बनाए । डेरे पर पहुंचे एक कोटरी में पन्नालाल को बंद कर दिया । और पहले वालों को सकता जीतकर आप उसी कोठारी के दरवाजे पर पलंग विश्वास हो रहे हैं । सवेरे पन्नालाल को साथ ले दरबार की तरफ चले । इधर रामनारायण बद्रीनाथ और ज्योतिषी जी राह देख रहे थे कि अब दोनों आदमी खाने का सामान लाते होंगे मगर कुछ नहीं । यहाँ तो मामला ही दूसरा था । उन लोगों को शक हो गया कि कहीं दोनों गिरफ्तार ना हो गए हो । मगर एक ख्याल में नहीं आया कि भगवान दत्त असल में दूसरे ही कृपानिधान थी । उस रात को कुछ नहीं कर सके, पर सवेरे सूरत बदलकर खोज में नहीं । पहले महाराणा जयसिंह के दरबार की तरफ चले देखा कि तेजसिंह दरबार में जा रहे हैं और उसके पीछे पीछे दस पंद्रह सिपाही कैदी की तरह पन्नालाल को लिए चल रहे हैं । उन्हें आरो ने भी साथ ही साथ दरबार का रास्ता पकडा । तेजसिंह पन्नालाल को लिए दरबार में पहुंचे । देखा कचेहरी खूब लगी हुई है । महाराज बैठे हैं वो भी सलाम कर अपनी कुर्सी पर जा बैठे कैदी को सामने खडा कर दिया । महाराज ने पूछा यहाँ तेजसिंह किसको लाए हो? तेज सिंह ने जवाब दिया, महाराज उन पांचों यारो में से जो चुनारगढ से आए हैं, ये गिरफ्तार हुआ है । इसको सरकार में लाया हूँ जो इसके लिए मनाते हो तो किया जाए । महाराज गौर के साथ खुशी भरी निगाहों से उसकी तरफ देखने लगे और पूछा तेरा नाम क्या है? उसने कहा मक्कार खाओ ऍम महाराज! उसकी टाई और बाद पर हस पडे हुक्म दिया बास । इससे ज्यादा पूछने की कोई जरूरत नहीं । सीधे कैद खाने में ले जाकर इसको बंद करो और सख्त पहरे बैठा हूँ । उपमा बातें ही । प्यादों ने उसे आर के हाथों में हथकडी और पैरों में बीजी डाल दी और कैद खाने की तरफ ले गए । महाराज ने खुश होकर तेज सिंह को सौ पीना में दी । तेज सिंह ने खडे होकर महाराज को सलाम किया और अशरफिया बटुए में रखी है । रामनारायण बद्रीनाथ और जोत्शी जी भेज पतले हुए दरबार में खडे ये सब तमाशा देख रहे थे । जब पन्नालाल को कैद खाने का उपमा हुआ पे लोग भी बाहर चले आए और आपस में सलाह कर भारी चला कि किनारे जाकर बद्रीनाथ ने तो तेज सिंह की सूरत बनाई और रामनारायण और जो देशी जी प्यारे बनकर तेजी के साथ उन सिपाहियों के साथ चले जो पन्नालाल को कैट खाने की तरफ लिए जा रहे थे । पास पहुंचकर बोलेंगे ऍम इसमें लाया की आर के लिए महाराज ने दूसरा हुक्म दिया है क्योंकि मैंने आज किया था कि कैदखाने में इसके संगी साथी इसको किसी ना किसी तरह छुडा ले जाएंगे । अगर मैं आपको अपनी हिफाजत में रखूंगा तो बेहतर होगा क्योंकि मैंने ही से पकडा है और मेरी हिफाजत में ये रहे भी सकेगा । तो तुम लोग इसको मेरे हवाले कर ज्यादे तो जानते ही थी कि इसको तेज सिंह ने पकडा है । कुछ इंकार न किया और उसे उनके हवाले कर दिया । नकली तेज सिंह ने पन्नालाल को ले जंगल का रास्ता लिया । उसके चले जाने पर उसका हालत करने के लिए प्यार फिर दरबार में लौट आए । दरबार उसी तरह लगा हुआ था । तेज सिंह भी अपनी जगह बैठे थे । उनको देख प्यादों के होश उड गए और अर्ज करते करते रुक गए । तेज सिंह ने इनकी तरफ देकर पूछा क्या क्या बात है उसे यार को कह कर आए ना प्याज ऍम जी उसको तो उसको तो आप ने हम लोगों से ले लिया । तेजसिंह उनकी बात सुनकर चौंक पडे और बोले मैंने क्या किया है? मैं तो तब सी सी जगह बैठा हूँ । यादव की जान डरता । जबसे सूप कही तो जवाब न दे सके । पत्थर की तस्वीर की तरह जैसे के तैसे खडे नहीं । महाराज ने तेज सिंह की तरफ देकर पूछा क्या हाँ क्या हुआ तेज सिंह ने क्या महाराज लोगों का कसूर नहीं यार, लोग ऐसे ही होते हैं । बडे बडो को धोखा दे जाते हैं । इन लोगों की क्या बिसात है? तेज सिंह के कहने से महाराज ने उन प्यादों का कसूर माफ किया मगर उस ए आर के निकल जाने का रंग तेर तक रहा । बद्रीनाथ वगेरह पन्नालाल को लिए हुए जंगल में पहुंचे । एक पेड के नीचे बैठकर उसका हाल पूछा । उसने सब हाल कहा । अब इन लोगों को मालूम हुआ कि भगवान दत्त को भी तेज सिंह ने पकड के कहीं छिपाया है । ये सोच सभी ने पंडित जगन्नाथ से कहा आप कमल के जरिए दरिया आप कीजिए कि भगवान दत् कहा है ज्योतिषी जीने रमल पडेगा और कुछ गेंद बनाकर कहा पेशक । भगवान दत्त को भी तेज सिंह ने ही पकडा है और यहाँ से दो कोर्स दूर उत्तर की तरफ देखो । हमें कैद कर रखा है । ये सुन सभी ने उसको का रास्ता लिया । ज्योतिषी जी बार बार रमल फेंकते और विचार करते हुए उस खो खो तक पहुंचे और अंदर गए । जब उजाला नजर आया तो देखा सामने फाटक है मगर ये नहीं मालूम होता था कि किस तरह खुलेगा ज्योतिष ऍम और सोच कर कहा ये ऍम के साथ मिला हुआ है और रमल ऍम में कुछ काम नहीं कर सकता । इसके खोलने की कोई तरकीब निकाली जाए तो काम चले । लाचार वे सब उसको हम बाहर निकल आए और तैयारी के फिक्र करने लगे ।
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