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बयान चौदह नौगढ और विजय गढकर आज पहाडी है जंगल भी बहुत भारी और खाना है नदियां चंद्रप्रभा कर्मनाशा घूमती हुई इन पहाडों पर बहती है जहाँ पूजा खोहर दर्रे पहाडों में बडे खूबसूरत गुजरती बने हुए हैं, पेडों में साथ हूँ तीन विजयसार नहीं कोरिया को आजा पे यार जितना आसन आदि के पेड है । इसके अलावा पारिजात कि पेट भी है मेल भर इधर उधर जाइए तो घरे जंगल में पाँच जाइएगा । कहीं रास्ता ना मालूम होगा कि कहाँ से आए और किधर जाएंगे । बरसात के मौसम में तो आज अभी कैफियत रहती है । कोर्स भर जाइए, रास्ते में दस नाले मिलेंगे । जंगली जानवरों में बारह सिंघम जीता भालू, तेंदुआ, चिकारा, लंगूर, बंदर वगैरह के अलावा कभी कभी शेयर भी दिखाई देते हैं मगर बरसात में नहीं । क्योंकि नदी नालों में पानी ज्यादा हो जाने से उनके रहने की जगह खराब हो जाती है और तब भी ऊंची पहाडियों पर चले जाते हैं । इन पहाडों पर है रन नहीं होते मगर पहाड के नीचे बहुत से अधिक पडते हैं । परिंदों में तीतर, बटेर आदि की अपेक्षा मोर ज्यादा होते हैं । गरज की ये सुहावने पहाड अभी तक लिखे मुताबिक मौजूद है और हर तरह से देखने के काबिल फॅसने जो चुनारगढ से क्रूर और नाजिम के संग आए थे । शहर में ना आकर इसी दिलचस्प जंगल में मई क्रूर के अपना डेरा जमाया और आपस में राय हो गई कि सब अलग अलग जाकर तैयारी करें तथा जब जरूरत हो जंगल जब फील बजा कर इकट्ठे हो जाया करें । बद्रीनाथ ऍफआईआर ओ में सबसे ज्यादा चालाक और होशियार था । ये राय निकली कि एक दफा सब कोई अलग अलग भेस बदलकर शहर में घुस तार बार और महल के सब आदमियों तथा क्लॉडियो बल्कि रानी तक को देख के पहचान आए तथा चाल चलन दस बीस का नाम भी याद कर लिए जिससे वक्त पर तैयारी करने के लिए सूरत बदलने और बातचीत करने में फर्क ना पडे । इस राय को सभी ने पसंद किया । नाजीम ने सभी का नाम बताया और जहाँ तक हो सका पहुँच नवाब ही दिया । वे आईआर लोग तरह तरह के भेज बदलकर महल में भी घुस आए और सब कुछ देखभाल आए । मगर तैयारी का मौका चपला की होशियारी की वजह से किसी को ना मिला और उनको तैयारी करना मंजूर भी ना था । जब तक की हर तरह से देखभाल नहीं थे जब वे लोग हर तरह से होशियार और वाकिफ हो गए तब तैयारी करना शुरू किया । भगवान दत्त चपला की सूरत बना नौगढ में वीरेंद्र सिंह को फंसाने के लिए चला । वहां पहुंचकर जिस कमरे में वीरेंद्र सिंह थे उसके दरवाजे पर पहुंच पहले वाले से कहा जाकर कुमार से कहो कि विजयगढ से चपला आई है । उसमें आ देने जाकर खबर दी । कुछ रात गुजर गई थी । कुंवर वीरेंद्र सिंह चंद्रकांता की याद में बैठे तबियत से युक्तियां निकाल रहे थे । बीच बीच में ऊंची सास भी लेते जाते थे । उसी वक्त चोपदार ने आकर और क्या पृथ्वीनाथ विजयगढ से सप्लाई है और डीओटी पर खडी है क्या होता है? कुमार चपला का नाम सुनते ही चौंक उठे और खुश होकर बोले उसे जल्दी उसे जल्दी अंदर ला हूँ । मैं मुझे चपला हाजिर हुई । कुमार चपला को देख उठ खडे हुए और हाथ पकडकर अपने पास बैठाकर बातचीत करने लगे । चंद्रकांता का हाल पूछा । चपला ने कहा अच्छी है सेवायें आपकी याद के और किसी तरह की तकलीफ नहीं है । हमेशा कहती रहती है कि बडे बेमुरव्वत है । कभी खबर भी नहीं लेते की जीती है या मर गई । आज खबर आकर मुझ को भेजा है और ये दो नाश पार्टियाँ अपने हाथ से छील काटकर आपके वास्ते भेजी है तथा अपने सिर की कसम भी है कि इन्हें जरूर खायेगा । वीरेंद्र सिंह चपला की बातें सुन बहुत खुश हुए । चंद्रकांता का इश्क पूरे दर्जे पर था, धोके में आ गए भले बुरे की कुछ तमीज न रही । चंद्रकांता की कसम कैसे टालते झट नाशपाती का टुकडा उठा लिया और मुझसे लगाया ही था कि सामने से आते हुए तेजसिंह दिखाई पडेगी । तेज सिंह ने देखा कि वीरेंद्र सिंग बैठे हैं । देखते ही आग हो गए । ललकारकर बोले खबरदार मूवी में मत डालना । इतना सुनते ही वीरेंद्र सिंग रुक गए और बोले क्यों किया है तेज? सिंह ने कहा मैं जाती बार हजार बार समझा गया, अपना सिर मार गया मगर आपको ख्याल ना हुआ । कभी आगे भी चपला यहाँ आई थी आपने क्या खाक पहचाना की ये चपला है या कोई यार । बस सामने रंडी को देख मीठी मीठी बातें सुन मजे में आ गए । तेज सिंह की खिडकी से नरेंद्र सिंह तो शर्म आ गए और चपला के मूंग की तरफ देखने लगे । मगर नकली चपला से ना रहा गया बस हो चुकी थी । छठ खंजर निकालकर तेजसिंह की तरफ दौड नरेंद्र सिंह भी जान गए कि ये यार है उसको खंजर ले । तेजसिंह पर दौडते देख लपक कर हाथ से उसकी कलाई पकडी, जिसमें खंजर था । दूसरा हाथ कमर में डाल उठा लिया और सिर से ऊंचा करना चाहते थे कि फेंके जिससे हड्डी पसली सब चूर हो चाहे तेज सिंह ने आवाज भी था हाँ पटक नामक मर जाएगा यार लोगों का काम यही है छोड दो मेरे हवाले करो । ऍम कुमार ने धीरे से जमीन पर पटक कर मुश्किल बांध तेज सिंह के हवाले किया । तेज सिंह ने जबरदस्ती उसके नाक में दवा ठूस बेहोश किया और कंट्री में बांध किनारे रख पाते करने लगे तो सिंह ने कुमार को समझाया और कहा देखिए हो गया तो हो गया मगर अब धोखा मत खाइएगा । कुमार बहुत शर्मिंदा थे इसका कुछ जवाब न दे । विजयगढ का हाल पूछने लगे । तेज सिंह ने सब खुलासा ब्यौरा कहा और चिट्ठी भी दिखाई जो महाराज जयसिंह ने राजस्व रेंद्र सिंह के नाम लिखी थी । कुमार ये सब सन और चिट्ठी दे एक उछल पडे । हमारे खुशी के तेज सिंह को गले से लगा लिया और बोले अब जो कुछ करना हो चलती कल डालो । तेज सिंह ने कहा था देखो सब कुछ हो जाता है कब राव मात्र इसी तरह दोनों को बात करते । तमाम रात गुजर गई सवेरा होने ही वाला था । जब तेजसिंह उसपे आर की गठरी पीठ पर लादे उसी तरह खाने को रवाना हुए, जिसमें अहमद को कैट कराए थे तो खाने का दरवाजा खोल अंदर गए, टहलते टहलते चश्मे के पास जाने के लिए देखा कि अहमद नहर के किनारे सोया है और हरदयालसिंह एक पेड के नीचे पत्थर की चट्टान पर सिर झुकाए बैठे हैं । तेज सिंह को देखकर हरदयालसिंह उठ खडे हुए और बोले हैं कि और तेजसिंह मैंने क्या कसूर क्या जो मुझको कैद कर रखा है? तेज सिंह ने हस्कर जवाब दिया अगर कोई कसूर किया होता तो पैर में बेटी बडी होती । जैसा कि अहमद को आपने देखा होगा, आपने कोई कसूर नहीं किया । सिर्फ एक देना रोक रखने से मेरा बहुत कम निकलता था । इसलिए मैंने ऐसी बेहद भी कि माफ कीजिएगा । अब आपको एक तैयार है कि चाहे जहाँ जाए मैं ताबेदार विजयगढ में नहीं ईमानदार हिसाब पसंद सेवायें आपकी कोई नहीं है इसी सब अब से मैं भी मदद का उम्मीदवार । हरदयालसिंह ने कहा सुनो तेजसिंह! तुम खुद जानते हो कि मैं हमेशा से तुम्हारा और कुंवर वीरेंद्र सिंह का दोस्त हूँ । मुझको तुम लोग खेत मत करने में कोई हर्ज नहीं । मैं तो आप हैरान था कि दोस्त आदमी को तेज सिंह ने क्यों किया? पहले तो मुझको ये भी नहीं मालूम हुआ कि मैं यहाँ कैसे आया । मार के आया हूँ या जीते जी पर अहमद को देखा तो समझ गया कि ये तुम्हारी करामा अच्छा ये तो कहूँ मुझको यहाँ रखकर तुम ने क्या कार्रवाई की और अब मैं तुम्हारा क्या काम कर सकता हूँ । तेज सिंह ने कहा मैं आपकी सूरत बनाकर आपके जलाने में नहीं गया । इससे आप खाकर जमा रहेंगे । हरदयालसिंह ने कहा तुमको तो मैं अपनी लडकी से ज्यादा मानता हूँ अगर जलाने में जाते भी तो किया था है हाल का तेल सिंह ने महाराज जयसिंह की चिट्ठी दिखाई । हरदयालसिंह के कपडे जो पहने हुए थे उनको दे दिए और अब खुलासा हाल कहकर बोले अब आप अपने कपडे सहज लीजिए और ये चिट्ठी लेकर दरबार में चाहिए । राजा से मुझको मांग लीजिए जिससे मैं आपके साथ चलो नहीं तो ए आर जो चुनारगढ से आए हैं विजयगढ को कारण कर डालेंगे और महाराज शिवदत्त अपना कस्बा विजयगढ पर कर लेंगे । मैं आपके सन चलकर उन्हें आरोप को गिरफ्तार करूंगा । आप दो बातों का सबसे ज्यादा ख्याल रखिएगा । एक ये कि जहाँ तक बने मुसलमानों को बाहर कीजिए और हिन्दुओं को रखिए । दूसरा ये कि कुंवर वीरेंद्र सिंह का हमेशा ध्यान रखे और महाराज से बराबर उनकी तारीफ कीजिए जिससे महाराज मदद के वास्ते उनको भी बुलाएंगे । हरदयालसिंह ने कसम खाकर कहा, मैं हमेशा तुम लोगों का क्या हुआ? जो कुछ तुम ने कहा है उससे ज्यादा कर दिखाऊंगा । तेज सिंह ने तैयारी की, कंट्री खोली और एक खुलासा बीडी उसके पैर में डाल तथा तैयारी का बट हुआ और खंजर उसकी कमर से निकालने के बाद से उसमें ले आए । उसके चेहरे को साफ किया तो मालूम हुआ कि वह भगवान तैयार होने के कारण चुनारगढ के समय आपको तेजसिंह पहचानते थे और वे सब लोग भी उनको बखूबी जानते थे । तेज सिंह ने भगवान दत्त को नहर के किनारे छोडा और हरदयालसिंह को साथ ले खोल के बाहर चले दरवाजे के पास आए हरदयालसिंह से कहा की मेहरबानी करके मुझे ज्यादा थे कि मैं थोडी देर के लिए आपको फिर ऍम तो खाने के बाहर होश में ले आऊंगा । हरदयालसिंह ने कहा इसमें मुझको कुछ हर्ज नहीं है । मैं ये नहीं चाहता की इस तरह खाने में आने का रास्ता देख ये तुम ही लोगों का काम है । मैं देख कर क्या करूँ तेरसिंह हरदयालसिंह को बेहोश करके बाहर ले आए और होश में लाकर बोले अब आप कपडे पहन लीजिए और मेरे साथ उन्होंने वैसा ही किया । शहर में आकर तेजसिंह के कहे मुताबिक हरदयालसिंह अलग होकर अकेले राजस् रेंद्र सिंह के दरबार में गए । राजा ने उनकी बडी खातिर की और हाल पूछा । उन्होंने बहुत कुछ कहने के बाद महाराज जयसिंह की चिट्ठी दी जिसको राजा ने इज्जत के साथ लेकर अपने वासी जीत सिंह को पढने के लिए दिया । चीज सिंह ने जोर से खत पडा । राजा सुरेंद्र सिंह चिट्ठी पढ कर बहुत खुश हुए और हरदयालसिंह की तरफ देखकर बोले मेरा राज्य महाराज जयसिंह का है जिसे चाहे बुला रहे मुझे कोई हर्ज नहीं । तेजसिंह आपके साथ जाएगा । ये कहे आपने वजीर जीत सिंह को हरदयालसिंह की मेहमानदारी का उस नदियाँ और दरबार पर खास दीवान हरदयालसिंह की मेहमानदारी तीन दिन तक बहुत अच्छी तरह से की गई जिससे मैं बहुत खुश हुए । चौथे दिन विमान साहब ने राजा से रुखसत मांग । राजा ने बहुत कुछ दौलत जवाहरात से उनकी विदाई की और तेज सिंह को बुला समझा । बुझाकर दीवान साहब के संग क्या बडे सात सामान के साथ ये दोनों विजयगढ पहुंचे और शाम को दरबार में महाराज के पास हाजिर हुए । हरदयालसिंह ने महाराज की चिट्ठी का जवाब दिया और सब हाल के है । सुरेंद्र सिंह की बडी तारीफ जिससे महाराज बहुत खुश हुए और तेज सिंह को उसी वक्त खिला सम्मान देकर हरदयालसिंह को खत्म दिया । इनके रहने के लिए मकान का बंदोबस्त कर और उनकी खातिरदारी और मेहमानदारी का पहुँच अपने ऊपर समझौते दरवार उठने पर दीवान सा तेज सिंह को साथ ले विदा हुए हैं और एक बहुत अच्छे कमरे में डेरा दिलवाया । नौकर और पहले वाले तथा प्यादों का भी बहुत अच्छा इंतजाम कर दिया जो सब हिंदू थे । दूसरे दिन तेजसिंह महाराज के दरबार में हासिल हुए दिवाल हरदयालसिंह के बगल में कुर्सी उन के वास्ते मुकर्रर की गई ।
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