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14. Janakputri Ka Swayamwar in Hindi

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11 K Listens
AuthorNitin
श्री राम Producer : Saransh Studios Author : गुरुदत्त Voiceover Artist : Ramesh Mudgal
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हूँ । श्री राम भाग चौदह राजनीति जो से हम कभी राजा थे, कुशल योद्धा थे और आपने तब केबल से राजऋषि पद को प्राप्त हुई थी । दोनों भाई उनके पास एक वर्ष से अधिक रहे । वहाँ रहते हुए उन्होंने नए केवल राक्षसों से वास्तविक संघर्ष का मूल कारण भी जाना । वर्ग यह की रक्षा की, राक्षसों का ब्लॅक वोटा देखी और उनसे युद्ध करने का ढंग से खाते हैं । राजनीति से अनेक प्रकार के शस्त्रों के प्रयोग का ढंग से राम और लक्ष्मण अभी सिद्धाश्रम नहीं थे । जब ये समाचार मिला कि विधेयक के महाराज जनक अपनी पुत्री का विवाद सितंबर द्वारा कर रहे हैं । देश विदेश के राजा निकला के जनकपुरी में पहुंच रहे थे । इस सूचना से ऋषि विश्वामित्र के मन में एक विचार उत्पन्न हुआ और उन्होंने राम को का राम अब तुम्हारे लोटने का समय आ गया । हम लौटते हुए जनक पूरी चलेंगे वहाँ क्या है गुरु जी महाराज जनक की पुत्री का स्वयंबर हो रहा हूँ । मिथिला नरेश एक व्रत याग्रस् रहे हैं उसकी अगर में दूर दूर से आए राजपुरुष वो विद्वान ऋषि लोग पस्थित होंगे हमें भी चलना चाहिए । काम लक्ष्मण तथा सिद्धाश्रम के बहुत से मुनि मिथुला को चल पडे । मिथिलापुरी कुछ जाते हुए मार्ग में विश्वामित्र, राम, लक्ष्मण और सिद्धाश्रम के मुनियों के साथ मैं सीख गौतम के आश्रम के समीप से नहीं उस आश्रम का सौंदर्य देखो । राम और लक्ष्मण मुग्ध हो गए । राम ने मुनिश्रेष्ठ से पूछा फिर ओवर ये आश्रम इतना सुन्दर है परंतु निर्जन क्यों पडा है? क्या यहाँ कोई नहीं रहता हूँ? राजनीति जी विश्वामित्र ने उत्तर दिया है आज हम महर्षि गोदम का किसी समय यहाँ चहल पहल रहती थी । मैं उसी के धर्म और ज्ञानयुक्त प्रवचन सुनने के लिए दूर दूर से लोग आते थे । कोई न कोई न देश यहां डेरा डाले रहता हूँ । है आजकल सोना बडा इसपर भी वर्षों से यहाँ एक प्राणी रहता है ऍम ऐसी की पत्नी अहिल्या मैं यहाँ नहीं आती इस कारण अब यहाँ कोई नहीं था और माताजी यहाँ अकेली क्यों रहती हैं । जब पति से शापित बात ये है हुई कि उन दिनों जब आश्रम में चहल पहल रहती थी । एक दिन देवेंद्र गौतम ऋषि के दर्शन करने ऋषि कहीं गए हुए थे । केंद्र ने ऋषि पत्नी को देखा तो उस पर मोहित हो गया गहलोट हो गया परन्तु उसके मन में पाप समझ आ गया । इस पर गौतम ऋषि कासा देश बनाकर उन्हें आश्रम में चला गया । आश्रमवासियों ने उसको गोतम रुचि ही समझा और जिस किसी ने भी उसे देखा उन्हें ऋषि समझ आदर और सरकार से आज जोड नमस्कार करने लगा । आश्रमवासियों से ऋषि ही समझा जाने पर आश्वास्त हो केंद्र देशी की कुटिया में चला गया और ऋषि पत्नी के सामने जा खडा हुआ । ऋषि पत्नी उसे पहचान गई और बोली राजन आपने है छात्र देश किस लिए बनाया है और इस देश में आप यहाँ किस कारण आए हैं? केंद्र इस पतिव्रता स्त्री से पहचाना जाने पर चेंपा परन्तु उसने कह दिया सुंदरी मैं तुम पर मोहित हो गया हूँ और तुम से प्रेम करने लगा हूँ । ऋषि पत्नी केंद्र को अपने पर मुझे देख अपने सौंदर्य पर करूँ करती हुई स्वयं देवराज पर मोहित हो गई । केन्द्र के वहाँ से विदा होने से पूर्व ऋषि वहाँ पहुंच गए । उनके पहुंचने का अभी किसी को पता नहीं चला था परन्तु रिची ने केंद्र को छात्रों देश में अपनी कुटिया में देख लिया । नहीं आती ग्रुप हो गए । उन्होंने इंद्र के भोजन में ऐसी ओर साडी मिला दी जिससे मैं नपुंसक हो गया । साथ ही केंद्र को श्राप दिया कि उस दिन के पश्चात मस्त विश्व में कहीं भी किसी भी कारण से केंद्र की पूजा नहीं होगी । केंद्र वहाँ से भागा और सीधा देव लोग में पहुंचा और अश्विनीकुमारों से आज तक अपनी चिकित्सा करवा रहे । मैं ऐसी द्वारा दिए गए । आपको भी अब समझ ऋषि और मुनियों ने लागू कर दिया । जब केंद्र चला गया तो ऋषि ने पत्नी से पूछता हूँ तुम पहचान नहीं सकी इस दूर को ये है दूसरे व्यक्ति जो स्वयं को देवराज कहता है देश बदलकर धोखा देने यहाँ आया था । कृषि बदलने का उत्तर था । पहचान गई थी स्वामी परन्तु में इनके मोदी से प्रभावित हो उनसे ब्रेन करने लगी थी । अब गौतम पत्नी को पश्चाताप लगने लगा । इस कारण मैं अपने पति से क्षमा मांगने लगे । ऋषि तो उसे मृत्युदंड देना चाहते थे परन्तु उसको पश्चाताप करते देख केवल उसका त्याग मात्र ही क्या? इस घटना को कई वर्ष बीत गए । तब से ऋषि यहाँ से दो कोर्स के अंतर पर आपने नवीन आश्रम में रहते हैं और उनकी बडी त्यागता पत्नी यहाँ रहती है । मेहसी के दर्शन करने वाले अब नए आश्रम में जाते हैं तो ये है आश्रम सोना रहता है । मैं समझता हूँ कि वह अपने आप से बढकर राष्ट्रीय कर चुकी है परन्तु मेहसी वो तब आयु में मुझसे बडे हैं । मैं उनको समझा नहीं सकता । रामलक्ष्मण इस तथा वो सुन पति दुखी हुई । राम ने राजनीति से पूछा गुरुजी, उस माँ के दर्शन कहाँ होंगे? वह बहुत दुखी है । यहाँ मैं उसकी वाणी सुनने वाला कोई है नहीं । कोई उनसे बोलने वाला वर्षों से अकेले इस निर्जन आश्रम में अपनी भूल का गोर प्रायश्चित करती हुई मैं एक शिला सामान हो गयी । विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को उसी आश्रम के एक कोने में बनी एक कुटिया में ले गए । वहाँ एक अति दीन चीन तपस्विनी आसन पर शोक मुद्रा में पत्थर वक्त बैठी हुई । राम ने उस दुखी स्त्री को देख झुककर नमस्कार किया और कहा माँ! मैं अयोध्या नरेश दशरथ का पुत्र राम हूँ । मेरे योग्य सेवा बताई । अहिल्या इस सहानुभूतिपूर्ण ऍम राजकुमारों का मुख देखती रहेगी । वो कुछ कहना सके । उसकी आंखों में पश्चाताप क्या शुरू गिरने लगे? विश्वामित्र ने उसके मन की गया था के विषय में राम को कहा नहीं । ऐसी गोथॅर्ड अस्या पर भी संतोष प्रतीत नहीं होते । गुरूजी उनको एक बार कहकर तो देखें कि आप समझते हैं की माताजी प्रायश्चित करके पापमुक्त हो चुकी हैं । विश्वामित्र को एक बात सोची । उन्होंने अपने एक साथी मुन्नी को महर्षि गौतम के आश्रम में कहलवा भेजा की ऋषि विश्वामित्र आए हैं और ऐसी गौतम के दर्शन की अभिलाषा करते हैं । विश्वामित्र ने यह भी कहलवा भेजा की उनके साथ इस वन को राक्षसों से मुक्त करने वाले ऍम उधारी अयोध्या नरेश चक्रवती महाराज दशरथ के पुत्र राम और लक्ष्मण भी महर्षि के दर्शन पाने की प्रार्थना कर रहे हैं । बात बन गई महर्षि गौतम आए । आते ही उन्होंने विश्वामित्र को प्रणाम करके है दिया भगवान मैं दूसरे आश्रम में रहता हूँ मैं जानता हूँ । विश्वामित्र ने कहा मैं आज से पूर्व जब भी आप से मिला हूँ तो इसी आश्रम में मैं यहाँ ही आपके दर्शन की अभिलाषा रखता था । आपने यहाँ कर अत्यंत फिर बाकी है फॅार सी राजकुमार राम आपसे कुछ निवेदन करना चाहते हैं । राम लक्ष्मण ने मैं उसी को तुमको परिणाम क्या ऋषि राम की ओर देख उसे आशीर्वाद दिया और कहा राजकुमार बताओ क्या चाहते मैं आपसे एक कृपा का प्रार्थी हूँ, कुछ मांगना चाहता हूँ परन्तु इस आश्रम को सोना देख अति दुखी हूँ । मांगों राजकुमार मेरे वर्ष में हुआ तो बच्चे तो भगवान माताजी क्षमा के योग्य और प्रायश्चित कर चुके है । मोनी वो चरण तक राम का मुख देखते रहे गए । राम ने ऋषि पत्नी की ओर संकेत कर कह दिया इनकी देनी व्यवस्था देखो भगवान आप दयालु हैं अब इन पर भी दया करिए । गौतम ने राम की ओर देख कर कह दिया मस्तू परमात्मा सबका कल्याण करेंगे । ऊं सामने आगे बढ ऋषि के चरण स्पर्श की और ऋषि पत्नी का हाथ पकडकर उसे आसन से उठाते हुए कहा माता जी! परमात्मा का धन्यवाद करिए । आपकी तपस्या सफल हुई । महर्षि जी ने साथ वापिस ले लिया । अहिल्या उठी और ऋषि के चरण स्पर्श करने के लिए जो की तो रिजी ने पत्नी को उठा उसके सिर पर हाथ रख धूंधी हुई वाणी से आशीर्वाद देते हुए कहा अब मैं इस आश्रम में आ गया हूँ और यही रहूंगा । राजऋषि विश्वामित्र नाम लक्ष्मण तथा अन्य तपस्वियों ने मैं ऐसी गौतम ऋषि पत्नी के आतिथ्य में कुछ दिन व्यतीत किए । इस प्रकार ऋषि पत्नी के उद्धार को मान्यता मिल गई । वैसे राजऋषि विश्वामित्र के साथ श्री राम को मिला हूँ ।

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श्री राम Producer : Saransh Studios Author : गुरुदत्त Voiceover Artist : Ramesh Mudgal
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