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बयान तेरवा तीन बहर रात गुजर गई । उनके सब दोस्त जो बेहोश पडे थे वो भी होश में आए । मगर अपनी हालत देख देखकर हैरान लोगों ने पूछा आप लोग कैसे भी खुश हो गए और दीवान सब कहाँ है? उन्होंने कहा एक गंदी इतने बेचने आया था जिसका इंटरेस्ट सुनते सुनते हम लोग बेहोश हो गए । अपनी खबर ना रही । क्या जाने दीवान साहब कहाँ है? इसी से कहते हैं कि अमीरों की दोस्ती में हमेशा जान की जोखिम रहती है । अब कानून बैठते है कि कभी अमीरों का सामना करेंगे । ऐसी ऐसी ताजुब भरी बातें हो रही थी और सवेरा होने ही वाला ही था कि सामने से दीवान हरदयालसिंह आती दिखाई पडे । जाॅन श्री तेजसिंह बहादुर थे । दीवान साहब को आते देख सभी ने घेर लिया और पूछने लगे आप कहाँ गई थी? दोस्तों ने पूछा वो नालायक गंदी कहाँ गया और हम लोग बेहोश कैसे हो गए? दीवान साहब ने कहा वो चोर था, मैंने पहचान लिया । अच्छी तरह से उसका इतना नहीं सोऊंगा । अगर सुनता तो तुम्हारी तरह मैं भी बेहोश हो जाता हूँ । मैंने उसको पहचानकर पकडने का इरादा किया तो वह भागा । मैं भी गुस्से से उसके पीछे चला, लेकिन वह निकल ही क्या अब सबसे इतने मेलॉडी में आप क्या कुछ भोजन कर लीजिए? सब की सब घर में भूखे बैठे हैं । अब तक सभी का वक्त होते हुए ही गुजरा । दीवान साहब ने कहा अब तो सवेरा हो गया । भोजन क्या करूँ? मैं थक गया हूँ । सोने को जी चाहता है । ये कहकर पलन पर्चा लेते । उनके दोस्त भी अपने घर चले गए । सवेरे तय वक्त पर दरबारी पोशाक पहन गुप्त रीति से ए आर का बटुआ कमर में बांध दरबार की तरफ चले । दीवान साहब को देख रास्ते में बराबर दो पत्ती लोगों में हाथ उठने लगे । वो भी जरा जरा से । महिला सभी के सलाम ओं का जवाब देते हुए कच्चे हैरी में पहुंचे । महाराज अब नहीं आए थे । तेजसिंह हरदयालसिंह की खसलत से वाकिफ थे । उन्हीं के मामूल के मुताबिक वह भीतर बार के दीवान की जगह बैठ काम करने लगे । थोडी देर में महाराज भी आ गए । दरवार में मौका पाकर हरदयालसिंह धीरे धीरे अर्ज करने लगे । महाराजाधिराज ताबेदार को पक्की खबर मिली है कि चुनारगढ के राजा शिवराज सिंह ने क्रूर सिंह की मदद की है और पांच यार सात करके सरकार से बेहद भी करने के लिए इधर रवाना किया । बल्कि ये भी कहा है कि पीछे हम भी लश्कर लेकर आएंगे । इस वक्त बडी मुसीबत आन पडी है क्योंकि सरकार में आजकल कोई तैयार नहीं । नाजिम और अहमद थे सो वे भी क्रूड के साथ है बल्कि सरकार के यहाँ वाले मुसलमान भी उसी तरफ मिले हुए हैं । आजकल वीएआर जरूर सूरत बदलकर शहर में घूमते और बदमाशी की फिक्र करते होंगे । महाराज जयसिंह ने कहा कि है मुसलमानों का रंग हम भी बेठ अब देखते हैं फिर हमने क्या बंदोबस्त क्या? धीरे धीरे महाराज और दीवान की बातें हो रही थी कि इतने में दीवान साहब की निगाह एक चोपदार पर पडी जो दरबार में खडा छिपी निगाहों से चारों तरफ देख रहा था । मैं गौर से उसकी तरफ देखने लगे । दीवान साहब को गौर से देखते हुए पास वो चौपदार चौकन्ना हो गया और कुछ समझ आ गया । बात छोड कडक के दीवान साहब ने कहा पकडो चौबदार को उपमा बातें ही लोग उसकी तरफ पढे लेकिन वह सिर पर पैर रखकर ऐसा भागा के किसी के हाथ नहीं लगा । तेजसिंह जहाँ भी तो उसे आर को जो चोपदार बन के आया था पकड लेते । मगर इन को तो सब काम बल्कि उठना बैठना भी उसी तरह से करना था जैसे हरदयालसिंह करते थे इसलिए वो अपनी जगह से ना उठे । वो यार भाग गया जो चोबदार बनाया था । जो लोग पकडने गए थे वापस आ गई । दीवान सा हमने कहा महाराज देखिए जाॅर्ज किया था और जिस बात का मुझको डर था वो ठीक नहीं । महाराज को ये तमाशा देखकर खौफ हुआ । जल्दी दरबार बर्खास्त कर दीवान को साथ ले तकलीफ में चले गए । जब बैठे तो हरदयालसिंह से पूछा हाँ जी अब क्या करना चाहिए और स्पष्ट क्रूर ने तो एक बडे भाई को हमारा दुश्मन बनाकर उभारा है । महाराज शिवदत्त की बराबरी हम किसी तरह भी नहीं कर सकते हैं । दीवान साहब ने कहा महाराज में फिर करता हूँ कि हमारे सरकार में इस समय कोई तैयार नहीं । नाजिम और अहमद थे । सौ क्रूर जी की तरफ जा मिले यारों का जवाब बिना यार कि कोई नहीं दे सकता । वे लोग बडे, चालाक और फसादी होते हैं । हजार पांच सौ की जान ले लेना । उन लोगों की आप कोई बात नहीं है । इसलिए जरूर कोई ईमानदार ए आर मुकर्रर करना चाहिए । पर ये भी एका एक नहीं हो सकता । सुना है राजा सुरेंद्र सिंह के दीवान का लडका तेज सिंह बडा भारी आर निकला है । मैं उम्मीद करता हूँ कि अगर महाराज चाहेंगे और तेर सिंह को मदद के लिए मांगेंगे तो राजस्व रेंद्र सिंह को देने में कोई हर्ज होगा क्योंकि वे महाराज को दिल से चाहते हैं । क्या हुआ अगर महाराज ने वीरेंद्र सिंह का आना जाना बंद कर दिया । अब भी राजस्व रेंद्र सिंह का दिल महाराज की तरफ से वैसा ही है जैसा पहले था । हरदयालसिंह की बात सुन के थोडी देर महाराज गौर करते रहे । फिर बोले तुम्हारा कहना ठीक है सुरेंद्र सिंह और उनका लडका वीरेंद्र सिंग दोनों बडे लाया की इसमें कुछ शक नहीं कि वीरेंद्र सिंह वीर है और राजनीति भी अच्छी तरह जानता है । हजार सेना लेकर दस हजार से लडने वाला है और तेज सिंह कि चलाकी में भी कोई फर्क नहीं । जैसा तुम कहते हो वैसा ही है । मगर मुझे उन लोगों के साथ बडी ही बीमार रहती हो गई है जिसके लिए मैं बहुत शर्मिंदा हूं । मुझे उन से मदद मांग के शर्म मालूम होती है । इसके अलावा क्या जाने उनको मेरी तरफ से रंज हो गया हो था । तुम जाओ और उनसे मिले । अगर मेरी तरफ से कुछ मलाल उनके दिल में हो तो उसे मिटा दो । ओवर तेज सिंह को लाओ तो काम चले । हरदयालसिंह ने कहा बहुत अच्छा महाराज, मैं खुद ही जाऊंगा और इस काम को करूंगा । महाराज ने अपनी मुहर लगाकर एक मुक्तसर चिट्टी अपने हाथ से लिखी और अंगूठी की मुहर लगाकर उनके हवाले किया । हरदयालसिंह महाराज सुविधा हो अपने घर आए और अंदर जलाने में ना जाकर बाहर ही रहे । खाने को वहाँ ही बनवाया, खा पीकर बैठे और सोचने लगे कि चपला से मिलके सब हाल पहले तो जाए । थोडा दिन बाकी था जब सप्लाई एकांत में ले जाकर हरदयालसिंह ने सब हाल कहाँ और वह चिट्ठी भी दिखाई । महाराज ने लिखती थी चपला बहुत ही खुशी हुई और बोली हरदयालसिंह हमारे मेल में आ जाएगा । वो बहुत ही लायक है । अब तुम जाओ इस काम को जल्दी करो । चपला तेजसिंह की चालाकी की तारीफ करने लगी । अब वीरेंद्र सिंह से मुलाकात होगी की उम्मीद दिल में हुई है । नकली हरदयालसिंह नौगढ की तरफ रवाना हुए रास्ते में अपनी सूरत असली बनाना
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