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बच्चों मैं दावे के साथ कह देता हूँ कि तुम में से कोई पास नहीं हो सकता है । मास्टर जी ने क्लास में प्रवेश करते ही कहा था सर्दियों की शुरुआत थी और ये नवी क्लास का कमरा था । छात्रों ने एक दूसरे को देखा था और सबके साथ मधुकर भी मंद मंद मुस्कुरा दिया था । ये नारा सुनने के वो सब अब व्यस्त हो चुके हैं । ऊपर से हस रहे हैं सब इनकी बेशर्मी तो देखो मैं कहीं देता हूँ दम लोग दो साल में भी नौवीं पास नहीं कर सकते हैं । मास्टर जी ने धीरे से मुस्कुरा कर कहा वो सभी जानते थे कि मास्टरजी हमेशा इसी तरह चाहते थे । उनका मतलब होता था कि ट्यूशन शुरू कर अभी तक शायद केवल दो ही विद्यार्थियों ने ट्यूशन रखी थी । पचास रुपए प्रति विद्यार्थी के हिसाब से सौ रुपये मासिक चार सौ पच्चीस रुपए मासिक वेतन यानी की कुल पांच सौ पच्चीस रुपए मासिक आएगा भला । इस महंगाई के जमाने में इस आय में एक अध्यापक का निर्वाह हो सकता था । वार्षिक परीक्षा मार्च में होती थी । वो अक्टूबर का महीना चाहिए और अभी तक केवल दो ट्यूशन । यदि आप ट्यूशन नहीं रखेंगे तो सीजन गुजर जाएगा और सीजन में ही तो असली आय होती थी । अक्टूबर से मार्च तक यानी की छह मास कम से कम दस छात्र ट्यूशन रखें, तब उनका काम चल सकता था । वैसे दो दो शिफ्टों में मास्टरजी ट्यूशन पढाते थे । अर्द्धवार्षिक परीक्षा आरंभ होने वाली थी । मास्टर जी को नब्बे प्रतिशत छात्रों को फील करना होगा । तब जाकर बीस छात्र टेंशन रखेंगे । प्रतिवर्ष मास्टर जी किसी प्रकार करती थी । सीधी उंगली से यदि की नहीं निकलता था तो वह टेढी उंगली से कम लेते थे । फिर मास्टरजी जानते थे कि कौन कौन छात्र खाते पीते । घर आने के लडकी थी और ट्यूशन की फीस चुका सकते हैं । हाँ, तो आज कहाँ से पढाना मास्टर जी ने पूछ रहे थे । उन्होंने जवाब में पांच का नाम बता दिया था । पर उस दिन मास्टरजी बढाने के मूड में नहीं । वो क्लासरूम से निकलकर बरामदे में टहलते हुए सिगरेट पीने लगे हैं । उनके साथ ही पिछले दरवाजे से कुछ छात्र निकलकर बाहर चले गए । कुछ छात्र मास्टर जी के अंदाज में ही नकल करते हुए बातों में सिगरेट पीने चले गए । इन सिगरेटों को खरीदने के लिए उन्होंने घर से पैसे चोरी कर लिया और जो चोरी नहीं कर पाए थे वो या तो अपने दोस्तों की ही सिगरेट से कश्मीर थी या फिर स्कूल के पानी पिलाने वाले नौकर से भी ले लेते थे । जो घर से जेब खर्च चलाते थे वो मैटिनी शो देखने खिसक जाते थे और इस सबका मास्टर जी को कुछ पता नहीं चलता । यदि पता चलता भी तो वह कोई कार्यवाही नहीं करते थे । बोलते खुश होते थे कि छात्र जितना कम पढेंगे उतनी ही उन्हें अधिक ट्यूशन ही मिलेंगे । लडके आपस में बातें करने लगे थे और फिर धीरे धीरे इन बातों ने शोर का रूप धारण कर लिया था । मास्टर जी को विवश ऊपर अधूरी सिगरेट छोडकर क्लास में आना पड गया था । उन्होंने लडते स्वर्ग में कहा वो बंद करो और अपना पांच याद करते कौन सा पाठ मधु करने हिम्मत करके पूछ लिया जो कल पढाया था सर, आपने तो कल भी नहीं पडा था । एक शरारती लडकी ने आवाज किसी के लिए तो मैं कहता हूँ कि तुम पास नहीं हो सकते । मुझे तुम्हारी यही हरकतें पसंद नहीं देख लेना । सारी क्लास फेल होगी । सारी क्लास कोई भी पास नहीं होगा । ऍम हार्थ वार्षिक परीक्षा आरंभ होने को है और परिणाम सामने आ जाएगा । सर अब बढाएंगे नहीं है तो हम पास कैसे होंगे? उसी की ही तरह एक गरीब विद्यार्थी ने कहा मैं नहीं पढा था या तुम्हारा पढाई में जी नहीं लगता । सच बताओ इस समय तो फिल्मों के बारे में बातें नहीं कर रहे थे । वो सब निरुत्तर हो गए । देखा मैं सब जानता हूँ तो उन सब फिल्म में हीरो और हीरो बनने के सपने देखते हो । पढाई में तो जी ही नहीं लगता है बस फिल्मों की बातें चाहिए । वो सब धीरे धीरे मुस्कुरा रहे हैं । इशारों और कनखियों से बातें कर रहे थे आप को श्रद्धा जो छात्रों के रुपय में एक शिक्षक के प्रति होती है वो मास्टर जी के प्रति न उसके विजय में थी और ना ही किसी और छात्र के हृदय । फिर मास्टर जी भी तो वह शिक्षक नहीं थे जो श्रद्धा के पात्र होते हैं । मास्टर जी ने स्कूल में कुछ नहीं पढाया था । अब वो छात्र जिनके माँ बाप अमीर थे जो ट्यूशन के पैसे दे सकते थे । उन्होंने तो अपनी कमी ट्यूशन रखकर पूरी कर ली गई । लेकिन जो गरीब माँ बाप के बच्चे थे जो ट्यूशन नहीं रख सकते थे आखिर उन का क्या भविष्य था और मधुकर दूसरी श्रेणी के छात्रों में आता था । घर में दाल रोटी मुश्किल से चलती थी । वो ट्यूशन कहाँ से रखता है और हिसाब के सवाल की तरह बिल्कुल स्पष्ट था कि मधुकर का कोई भविष्य नहीं था । वक्त ने इसे सही सिद्धू भी कर दिया था । ट्यूशन रखने की छात्र को जरूरत का पडती है । आखिर हर रोज क्लास में उपस् थित होने वाला छात्र ट्यूशन रखे हैं कि मधु करने बिखरी हुई कडियों को जोडने की कोशिश की । मधुकर को ट्यूशन से नफरत थी । वो शिक्षक ही क्या जिसने अपने छात्रों पर इतनी मेहनत न की हो की वो ट्यूशन के बिना पास हो जाएगा । असली शिक्षक वो होता है जो कमजोर छात्रों को स्कूल के समय के अवकाश के उपरांत पढाता है । ट्यूशन तो बेईमानी एकदम से इस बात का सबूत है कि शिक्षक ने क्लास में कुछ नहीं पढा है । तभी उसके छात्रों को ट्यूशन रखनी पड रही है और उसे ट्यूशन का धंधा बिल्कुल पसंद नहीं था । या तो इसलिए कि ये बेमानी थी और या फिर इसलिए कि वह खुद ट्यूशन नहीं रख सकता था । फिर अध्यापक का जीवन तो तत्व त्याग का होता है । रुकी सूखी खाना, मोटा पहनना और ऊंचे विचार रखना, यही शिक्षा की सफलता का चिन्ह है । अध्यापक तो आदि से अंत तक आदर्शवादी होता है तभी बच्चों पर अच्छा प्रभाव पडता है और यदि शिक्षक ही आदर्शवादी न हो तो बच्चे भी शिक्षा से विमुख हो जाते हैं और उसे जो अध्यापक मिला था वो चार सौ पच्चीस रुपए में गुजारा नहीं कर सकता था । वो बढाने के समय में बरामदे में जाकर सिगरेट होता था । वो बाथरूम में घुसकर सिगरेट पीने वाले लडकों को डांटा नहीं था । नहीं स्कूल से भागकर मैटिनी शो देखने वाले छात्रों को दंड देता था क्योंकि उसे ट्यूशन कमानी थी । वो धन का पुजारी था । मधुकर के पास ट्यूशन रखने के लिए पैसा नहीं तो मास्टर ने स्कूल में कुछ बढाया नहीं था । शिवज्ञान आदमी का सबसे बडा दुश्मन है और अध्यापक आदमी को श्रग ज्ञान के अंधकार से निकालकर ज्ञान की रोशनी दिखाता है । लेकिन उसे ऐसा अध्यापक नहीं मिला हूँ । उसने जिंदगी में गलती पर गलती किए एक भूल के बाद दूसरी भारी भूल की थी क्योंकि वह अज्ञानी था । उसके अध्यापक ने उसे ज्ञान नहीं दिया था । ये थी उसकी प्रारंभिक शिक्षा और मधुकर अंदर से काफी ठक्कर रहेंगे । उसे लगा कि वो टूट चुका है । फिर कॉलेज में आ गया था कॉलेज की अपनी एक अलग दुनिया । यहाँ कोई भी लेक्चरर किसी भी छात्र में कोई दिलचस्पी नहीं लेता था । सभी आती और लेक्चर देकर चले जाते हैं । वो न किसी विद्यार्थी से कोई सवाल पूछते थे और नहीं किसी से ही पूछते थे कि वह घर पर पडता है या नहीं । यदि पडता है तो क्या पडता है? हाँ, सबको एक एक ट्यूटर मिला हुआ था और शनिवार को ट्यूटोरियल लगते हैं । इस पीरियड में कोई छात्र अपने टीचर से संबंध बढाना चाहे तो बढा सकता था । उसके ट्यूटर थे अंग्रेजी के लेक्चरर रमन साहब । रमन साहब भी अजीव व्यक्तित्व के स्वामी उनकी बाई टांग में पोलियो हो गया था । बचपन है इसलिए उनकी चाल में लंगडा हट कद उनका अधिक लंबा नहीं था । यही कोई पांच फुट चार इंच । वैसे उनके नए नक्ष काफी देखे थे । शनिवार को उनका ट्यूटोरियल था लेकिन वह काफी थके थके नजर आ रहे हैं । पांच सात मिनट बाद ही वो बोले थे आज मेरी तबियत ठीक नहीं है । किसी ने कुछ पूछना हो तो पूछ लो वरना मेरी ओर से छुट्टी है । अब इसके पास था कुछ पूछना ट्यूटोरियल तो केवल खानापूर्ति सभी जवानी के दरवाजे पर खडे थे । उन्हें छुट्टी मिल जाए इससे अधिक और क्या चाहिए । लडकी उठकर जाने लगे थे जब वो भी जाने लगा तो उसे रमन साहब ने रोक लिया । सभी लडके चले गए तो उसके चेहरे पर निगाहें जमाते हुए उन्होंने पूछा तुम्हारा नाम क्या है बैठे? हालांकि रमन साहब उम्र में कोई अधिक बडे नहीं थी जो उन्हें बुजुर्ग समझा जाता हूँ । मुश्किल से कोई छब्बीस सत्ताईस साल की उम्र होंगे । लेकिन उनका उसे बेटा कहकर पुकारना बहुत अच्छा लगा । उन्होंने उसे प्यार से पका रहा हूँ । उसे प्यार दिया था । प्यार जिसके लिए वह पडता था । जो से माँ बाप से नहीं मिला था । मधुकर उसके मुंह से मंत्र वक्त निकल गया । बहुत अच्छा नाम है बेटा । कॉलेज के गेट के बाहर जो पनवाडी की दुकान है उसे एक पैकेट सिगरेट ले आना जरूर पनवाडी को कह देना की । रमन साहब ने सिगरेट मंगाई और वो बिना कोई जवाब दिए सिगरेट लेने दौड पडा था । आखिर रमन साहब ने उसे बेटा कहाँ है? अब तो उनके लिए अपना सिरकटा सकता था । गेट तक जाकर सिगरेट लाना क्या बात है । उसके लौटते ही उन्होंने बिना कुछ पूछे जल्दी से सिगरेट जलाकर दो दिन कश् करने से नीचे उतार दिया है । उसने महसूस किया था कि अब रमन साहब की तबियत सुधर दी जा रही है । कमरे में धुंआ फैल गया था और उस हुए में उसकी आंखे तेल मिलने लगी थी । आंखें खोले रखकर देखते रहना उसे कठिन लग रहा था । रमन साहब बढ बढाने लगेंगे । ये ऍम बिकने लगे । वो लगता ही हैं जो फिल्म खाते हैं । मैंने भी कई बार सोचा है की अपील शुरू करता हूँ लेकिन अभी और शराब का मेल नहीं ऍम और शराब का मिल हैं । दिन में छह सात सिगरेट चरस के रूप में पढते हैं और शाम को इतना हुआ विस्की भी जरूरी है । फिर जरा रुककर उसी की ओर देख कर बोलें ऍम तुम खडे क्यूँ बैठ जाओ । उस तक पकाकर बैठ गया था वो फिर कहने लगे अब महंगाई की भी हद हो रही है । इधर विस्की भी दिन प्रतिदिन महंगी होती जा रही है । पहले आठ रुपये का पहुँचा मिलता था अब बारह रुपये का हो गया ऍम ये सब तो यही चलता रहेगा । हाँ हूँ तुम में अपना क्या नाम बताया था । मधुकरी उसने दोहरा दिया था । हाँ तो मधु साहब अब आप अपने बारे में कुछ बताइए, आपके डेडी क्या करते हैं? आप के भाई बहन कितने हैं, आपको कॉलेज कैसा लगा और कोई दिक्कत हो तो निसंकोच कहूँ । रमन साहब प्यार के साथ उसे जब भी दे रहे थे, इतनी जब तो उसे उसकी बहनों ने भी नहीं है । फिर वो उसके बारे में सुनना चाहते थे । वो उनकी निगाहों में सहानुभूति का पात्र नहीं । वो महत्वपूर्ण आज तक उसे किसी ने नहीं सुना था । जो भी उसे चुका था वो उसके अंतर करन को बींधकर रह गया था । रमन साहब ने उसका दर्द जानना चाहा था । वो सिसक पडा था । उसने उनको अपनी सारी कहानी सुना दी थी । उन्होंने कहा था और वह बडे ध्यान से उसे सुनते रहे थे । सन्ता अंत में वो बोला था मैं अंग्रेजी में कमजोर हूँ । क्या आप मुझे अपने फालतू समय में अंग्रेजी पढा सकते हैं और मैं आपको ट्यूशन नहीं दे सकता हूँ । अब तो मैं किसी चीज की कमी नहीं रहेगी । मैंने तुम्हारे बारे में सब जान लिया मुझे तुम अपना एक हमदर्द दोस्त समझो । दोस्त सर उसमें चकित होकर पूछा था हाँ दोस्त क्या तुम इसलिए चौंक गए कि मैं लेक्चरर है और तुम स्टूडेंटों या हम में उम्र का फर्क है इसलिए हम में दोस्ती नहीं हो सकती । जी हाँ, लेकिन जरा अपनी उम्र बताना सत्रह साल कर क्या तुम केवल सत्रह साल के हो और वह उलझ कर रह गया था? जान नहीं पाया था वो कि रमन साहब क्या पूछना चाह रही थी । फिर खुद ही अपनी बात स्पष्ट करते हुए बोले अरे मधु, जिंदगी को इतना अधिक करीब और गहराई से देखने के बाद ही तुम खुद को सत्रह साल का समझ रहे हैं । जितना अनुभव तुमने प्राप्त किया है वो तो मैं सत्रह की बजाय इक्कीस साल का साबित कर रहा है । उसे रमन साहब की बात सही लगी नहीं क्योंकि उस वक्त वो नहीं सोचता था जो सत्रह साल की उम्र में लडका सोचता है । उसके दिमाग में अंतर्द्वंद था । इच्छाएं थोडी थोडी नफरत थी जो थी और उसकी सोचने की शक्ति अपनी उम्र से चार साल आगे थी क्योंकि ये सब उसे माँ बाप से विरासत में मिला था । वो अनुभवशाली पुरुष जान पडता ना वो रमन साहब का दोस्त का हो या चाहे था, स्टूडेंट हो गया । उसका अपने घर में बिलकुल मन नहीं लगता था । आखिर किया था घर में जो उसे वहाँ बांधता । वो कॉलेज के बाद का अधिकांश समय रमन साहब के फ्लैट पर व्यतीत करने लगा । फ्लैट दो काम रोका था । पहले कमरे में कुर्सियां और किताबों की रैक थी । ये कमरा लाइब्रेरी का वातावरण प्रस्तुत करता था । दूसरे कमरे में एक दीवान एक्सॅन साहब विवाहित है । एक शाम को पहले कमरे में बैठा पड रहा था और रमन साहब दूसरे कमरे में दीवान पर लेते हुए चरस के सिगरेट ठीक रहे थे । चरस की दुर्गंध उसके नथुनों तक भी आ रही थी । पर अब वो इस दुर्गंध का अभ्यस्त हो चुका था और नहीं अब इसके धुएं से उसकी आंखें बिच में चाहती थी । अब अक्सर वही उन्हें पनवाडी के यहाँ से चरस की सिगरेट ला कर दिया करता था । क्या में भीतर आ सकती हूँ दरवाजे पर एक नारी के स्वर्ण है उसे चौंका दिया जी उस लिए सब बताकर जवाब दिया मुझे रमन साहब से मिलना है । उस और अपने भीतर आकर कहा । तभी भीतर के कमरे से रमन साहब की आवाज को मधु उन्हें भीतर भेज दो । उसने औरत को अंदर का रास्ता दिखा दिया । दूसरे कमरे के दरवाजे में खडे होकर मुस्कुराते हुए वो बोले, क्या में अंदर आ सकती हूँ? अहोभाग्य रमन साहब ने खडे होकर स्वागत किया । सोफे की ओर संकेत करके बोले बैठे ही नहीं, धन्यवाद कहकर जिम्मी बैठ गई । हालांकि मधुकर दूसरे कमरे में बैठा था । साथ ही चरस की दुर्गंध भी फैली होगी । लेकिन इस सबके बावजूद उसके नथूने सेंट की सुगंधि से भर गए । तभी उसने देखा कि रमन साहब ने उठकर दोनों कमरों के बीच के दरवाजे पर पर्दा खींच दिया । वो अपनी उत्सुकता रोक नहीं सका और सोचने पर मजबूर हो गया कि आखिर कुछ न कुछ तो विशेष भीतर वाले कमरे में घट रहा है । वरना पर्दा खींचने का मतलब आखिर क्या है? वह विषय उसके शरीर में चीटियाँ सी रहने लगी । वो छिप छिप कर लता दीदी के प्रेमपत्र पढा करता था और उसने दीवार से कान लगाकर लता और ट्रेन की बातें भी सुनी थी क्योंकि वो सब भी देख लिया जाए । जो भीतर हो रहा था वो खुद को रोक नहीं सका । परदे की ओट में खडा होकर भीतर वाले कमरे में झांकने लगा । उसने बडे होर्से रिमी को देखा । रिमी का रंग ये हुआ था लेकिन उसके नये नक्ष बहुत ही थी । बडी बडी आंखें खुला, मस्तक लम्बी देखी ना हम । एक साधारण लडकी की तरह उसके होट सारा मोटे नहीं मुझे देर तो नहीं हुई । अपना बाॅस पर रखते हुए रिमी ने पूछा तो मैं ये फ्लैट ढूंढने में तो कोई दिक्कत तो नहीं हूँ । रमन साहब ने जवाब देने की बजाय उल्टा सवाल किया ही नहीं । मुझे एक मिनट के लिए भी इंतजार की तकलीफ नहीं उठानी पडती है तो पूरे सात बजे आई हूँ । मैंने तो आपको फोन पर ही बता दिया था कि मैं समय की पाबंद हूँ, पर मुझे यकीन नहीं था कहकर रमन साहब हस्ती है क्या एक गिलास पानी मिल सकता है? जिम्मी ने पूछा इतनी गर्मी तो नहीं लेकिन मेरा गला सुख रहा है । पानी तो है लेकिन सफेद नहीं कहकर । रमन साहब ने मेज के नीचे हाथ बढाकर विस्की की बोतल निकाल दिया । एक गिलास पानी मिल जाता तो ठीक था । ये भी पानी ही तो है । कहकर रमन साहब खाली गिलासों में विमॅन । रिमी ने जवाब नहीं दिया बल्कि जवाब में बैठ खोलकर छोटा सा शीशा निकालकर स्वयं को देखने लगी । तुम्हारा में का बिलकुल ठीक है ये वन रमन साहब ने मुस्कुराकर ॅ उन्होंने बोतल मेज के नीचे रख दी और अब उनके हाथ में सोडा सोडा डालकर दिल्ली की ओर गिलास बढाते हुए बोले पिलो ये ये मेरे लिए है । जिम्मी ने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा । लेकिन उसे लगा था की जमीने बनावटी आश्चर्य प्रकट किया था । हम क्या समझते हैं? लेकिन मैं तो इसकी नहीं पी थी । ऍम मैंने जिंदगी में गलत सोचा भी है और गलत कदम भी उठाए हैं । लेकिन इसके विपरीत में जानता हूँ कि आदमी मेरे लिए अपरिचित नहीं । क्या मतलब आप शौक रखती है, आप कैसे कह सकते हैं? मेरा विश्वास है । लोग गिलास उठाते हो, कहकर रमन साहब ने अपना गिलास उठा लिया लेकिन लेकिन बाकि बातें बाद में होंगी । बातें करने के लिए सारी शाम पढे पर मैंने कहा था कि मैं अधिक देर नहीं रुक सकेंगे । याद है मुझे करिए विस्की का प्रोग्राम । मैं तो अपने छोटे भाई के बारे में पूछने आई थी जो अंग्रेजी में बहुत कमजोर है । क्या आप उसे ट्यूशन पढा देंगे? वो हमारे लिए सिरदर्द बना हुआ हूँ । मैं जिंदगी के हर पहलू पर विस्की पीने के बाद बात करता हूँ । बातें करने के लिए सारी शाम पढेंगे । अभी आज से गला सुख रहा है और आप ने भी बताया है कि आपको भी प्यास लगी हुई है । इलाज वोटों से लगाइए फिर बातें शुरू करेंगे । आश्चर्य मैंने तो ये सोचा भी नहीं था तो आप क्या सोचना है? गिलास और मैं तुम्हारी आज्ञा की प्रतीक्षा कर रहे हैं । क्या हर शाम को यही प्रोग्राम होता है? हाँ हाँ, इधर सूर्यअस्त होता है । उधर मैं उधर होता हूँ । अब आप अधिक न तरसाइए । जिम्मी ने गिलास उठाकर होठों से लगा लिया और एक घूंट भरकर गिलास में इस पर रखते हुए मैं तो बिलकुल नहीं पीती । अब आपने विवश किया तो अलग बात है क्या रोज जिसकी पीते हैं? जी हाँ तनख्वा में गुजारा कैसे होता है? विस्की की बोतल चालीस रुपये में आती है सात सौ रुपए वेतन एक दो ट्यूशन कर लेता हूँ और और क्या मैं स्टूडेंट्स के लिए सस्ती कुंजियां, दायरें और गुटके लिखता हूँ यानी की ऍम ये सवाल जवाब के रूप में होती हैं और इनमें सीधे उन्हीं सवालों के जवाब होते हैं जो परीक्षा में पूछे जाते हैं । छात्रों को अपनी पाठ्यपुस्तक पढकर सवालों के जवाब तैयार नहीं करने पडते हैं । इन गाइडों से उन्हें बने बनाये जवाब मिल जाते हैं । स्टूडेंट्स ने बडे चाव से खरीदते हैं । फ्राइडे हाथों हाथ बिक जाती हैं और इससे मुझे हजारों रुपये की सालाना कमाई होती है जिससे विस्की खरीदी जाती है । इन गाइडों का छात्रों पर क्या असर पडता है? रिमी ने दूसरा घोल भरते हुए पूछा छात्र कमजोर हो जाते हैं । उन्हें ये तो पता होता ही है कि बने बनाए जवाब गार्डों में मिल जाते हैं । पिछले न तो वो क्लास रूम में ही जो कुछ लेक्चरर पढाता है उसे ध्यान से सुनकर नोट करते हैं और ना पाठ्यपुस्तक पढ कर कुछ सोच कर अपना जवाब तैयार करने की कोशिश कर रही है । गाइडें उन्हें अपाहिज बना देती । वो कुंजियों का सहारा लेते हैं । उनकी अपनी सोचने समझने की ताकत खत्म हो जाती है । वो काम से जी चुराने लगते हैं और कहकर रमन साहब ने गिलास खाली कर दिया और क्या? रिमी ने पूछा ये जो कॉलेजों में आए दिन हडतालें तोड फोड उपद्रव होते हैं ना? इन की एक वजह यह गाइड भी है । इन गाइडों की वजह से न तो उन्हें क्लासरूम में पढने की जरूरत महसूस होती है और ना लाइब्रेरी में जाकर घंटों जवाब तैयार करने के लिए ढेर सी पूछ सकें । पढनी पडती है उनके पास वाल तो समय ही समय होता है । अब खाली दिमाग कुछ ना कुछ तो करेगा ही । या तो नशा करेंगे, सिनेमा जाएंगे, जुआ खेलेंगे और जब हर चीज से बोरियत महसूस होने लगेगी तो हडताल कर देंगे । जब इन गाइडों का सर इतना बुरा है तो आप नहीं लिखना क्यों नहीं छोड देते क्योंकि मुझे इसकी हर शाम चाहिए और एक बोतल चालीस रुपये में आती है । आपको इसकी छोड दीजिए । ये सेहत और पैसे दोनों की दुश्मन है इसकी मैं छोड नहीं सकता । क्यों? क्योंकि विस्की एक धोखा है, फरेब है और हर और सफल नाकामयाब आदमी को जिंदा रहने के लिए किसी ना किसी फरेब की जरूरत अवश्य महसूस होती है । वो धोखा उसे जिन्दा रखता है नहीं तो वो आत्महत्या कर लेगा । आपको असफल कैसे हैं? केवल मैं ही नहीं मिस्टर अपने देश में अध्यापक चाहे वो कॉलेज का हो या स्कूल का, वो व्यक्ति बनता है जो सफल आदमी होता है । मैं तो अध्यापकों को नाकामयाब व्यक्तियों के नाम से पुकारता हूँ पर क्यों? अब देखो प्राइमरी स्कूल में बच्चों को एक जेबीटी का कोर्स पास कर के अध्यापक पढाता है लेकिन जानती हो जेबीटी का कोर्स करके प्राइमरी स्कूल में मास्टर कौन लगता है? रिमी ने निगाहें रमन साहब के चेहरे पर जमा दी थी जिन्हें दसवीं पास करके नंबर थोडे होने की वजह से या तो कॉलेज का अधिक खर्च न उठा पाने से दाखिला नहीं मिल पाता वो जेबीटी करके प्राइमरी स्कूल के अध्यापक लग जाते हैं । इसी तरह जो बी । ए थर्ड डिविजन में करते हैं, जिन्हें सेकंड क्लास न होने की वजह से एम । ए । में दाखिला नहीं मिल पाता वो बीएड कर के हाई स्कूल में अध्यापक लग जाते हैं और कॉलेज में लेक्चरर कौन लगते हैं बताता हूँ रमन साहब सिगरेट सुलगाकर जो योग्य और होशियार लडके होते हैं वो तो प्री मेडिकल या इंजीनियरिंग के बाद मेडिकल या इंजीनियरिंग कॉलेज में जाकर डॉक्टर या इंजीनियर बन जाते हैं । जो डॉक्टर और इंजीनियर नहीं बन पाते वो बीए या बीएससी करके ऍम करते हैं और वो सब ये लेक्चरर बनने के लिए नहीं करते । वो आॅक्सी इसलिए करते हैं कि जब तक वह डिग्री लेंगे तब तक इक्कीस साल के हो जाएंगे और फिर आईएसआई आईपीएस में कम्प्लीट करके डीसी टेस्टी बनेंगे । अब आईएएस तो केवल एक साल में सौ बनते हैं । जो असफल हो जाते हैं वो नाकामयाब । पेट भरने के लिए लेक्चरर लग जाते हैं । कमाली रिमी के मूड से निकल गया लेकिन ये सच है । अब तो में देखो शुरू से अंत तक अध्यापक वही व्यक्ति है जो किसी ना किसी तरह से अपने जीवन में आज सफल व्यक्ति रहा है । फिर किसी भी व्यक्ति का अध्यापक बनना उद्देश्य नहीं होता अपितु अध्यापक बनना तो उसकी एक मजबूरी है । अब भरने के लिए कुछ ना कुछ तो चाहिए ही । आत्महत्या तो नहीं की जा सकते हैं । मुझे ही देख लो मेरा उद्देश्य तो आई एस । ऑफिसर बनने का था लेकिन बन नहीं सका तो लेक्चरर हो गया । याने की कॉलेज में दाखिला लेना बी । ए । के बाद एम । ए । में दाखिला लेना और आईएएस बनना तो मुश्किल है लेकिन अध्यापक बनाना आसान और बहुत आसान है । पर जानती हो तो एक अध्यापक का करता हूँ और उत्तरदायित्व रमन साहब ने पैड बनाते हुए हो । आप ही बताइए । स्टाॅक जो हर क्षेत्र में कल का भविष्य होते हैं उन्हें कल के लिए हर हथियार से लैस करना ही अध्यापक का कर्तव्य विद्यार्थी तो कच्ची मिट्टी होते हैं । अध्यापक के कुम्हार की तरह उन्हें किसी भी तरह का बना सकता है । चाहे मटका बना लो या हुक्का पीने की चिलम । अब एक आदमी जो खुद असफल है वाला वो और उनको क्या सफल बना सकता है । जब उसके खुद के सपने साकार नहीं हुए तो औरों के सपने क्या साकार करेगा और रमन साहब ने एक ही क्लास में गिलास खाली कर दिया है । मिस्र में में पहले तीन पैग जरा तेजी से समाप्त क्या करता हूँ । आप अपने पैर बनाती रहना नहीं, मैं तो बिलकुल भी नहीं पीती । मैं तो केवल आपका साथ भर दे रही हूँ और आप एक तो भी चुकी जवाब में रिमी मुस्कुरा दी और दूसरा पैर तैयार करने लगी तो मैं कह रहा था जिंदगी में खुशी और सफलता की निशानी तीन बातें बात कर खाना, दूसरों के प्रति सहानुभूति और अपने यहाँ पर संयम अध्यापक । क्योंकि कुमार की तरह होता है कच्ची मिट्टी । छात्रों के समूचे अस्तित्व पर इन तीन बातों को अंकित करना उसका फर्ज बन जाता है । लेकिन जब ये तीनों बातें उसके खुद के जीवन में कोई स्थान नहीं रखती हूँ । जब लोग खुद अपने उद्देश्य में असफल हैं तो वो स्टूडेंट्स को क्या देगा? अध्यापक स्वयं सफल और खुश नहीं । यही वजह है कि हर स्वीडन की जबान पर दो शब्द हर समय तकिया कलाम की तरह चढे रहते हैं । हो गया और फ्रस्टेशन रमन साहब फिर सिगरेट के कश लेने लगे । लेकिन हर कोई आईएस क्यों बनना चाहता है? आखिर अध्यापक बनने का उद्देश्य रखने में क्या बुराई है? जबकि अध्यापक भविष्य का निर्माता हैं । इसकी भी दो वजह है । जिम्मी यदि सुनकर बोर हो तो सुना सकता हूँ नहीं, मैं भी व्हिस्की पीने के बाद ढंग के विचार सुनना पसंद करते हैं । तो सबसे पहले इसमें दो राय नहीं कि जितना महत्वपूर्ण नाजुक उत्तरदायित्व अध्यापक के कंधों पर होता है । अध्यापक के हाथों में राष्ट्र का भविष्य होता है । लेकिन जहाँ आईएएस अफसर को नौकर चाकरों से युक्त लम्बा चौडा बंगला बिना किराये के मिलता है । हाँ बेचारी अध्यापक को किराया देने पर भी अच्छे महल्ले में कमरा तक नहीं मिलता । नौकर चाकर तो एक सपना है, आईएएस अफसर को कार मिलती है, जीत मिलती है । अध्यापक के पास एक साइकिल तक रखना एक मुसीबत है और जो अध्यापक की तनख्वा और समाज में इज्जत है वो तुमसे छिपी नहीं । लेकिन लेक्चरर को जो नए ग्रेड मिले हैं वो तो बहुत अच्छे हैं । अच्छे रमन साहब ने हल्के से हस कर रहे हैं और साथ ही पीएचडी भी तो जरूरी कर दी गई है और यूनिवर्सिटियों में जिस तरह सिफारिश और हाथ जोडने से पीएचडी मिलती है वो शायद तुम्हें मालूम नहीं । कहने को तो पीएचडी तीन साल की पर पांच साल से पहले किसी को मिलती है डिग्री अब तुम बताओ एम ए के बाद पांच साल पीएचडी पर लगाने वाले लेक्चरर को नया ग्रेड कैसा लगेगा और अध्यापक बनने का उद्देश्य न रखने की दूसरी वजह क्या है? धान की तलाश क्या मतलब मैं श्रेमी आज हर आदमी धन के पीछे भाग रहा है । प्रत्येक व्यक्ति फ्रिज चाहता है, चाहे फ्रिज में रखने के लिए दो दिन की बासी दाल हो और पानी की बोतलें ठंडी की जाती है । यदि पानी की बोतलें ठंडी करनी है तो इसके लिए साठ रुपए का आइस बॉक्स खरीदी दो ढाई हजार का फ्रीज खरीदने की क्या जरूरत है? लेकिन धन की दौड और भेड चाल का चोली दामन का साथ है और कहकर रमन साहब ने अपना गिलास उठाकर एक घूंट भरते हैं और क्या ये अध्यापक भी तो आदमी ही है । ये बेचारे बेकुसूर । पता नहीं हर आदमी ये क्यों सोचता है कि अध्यापक भूखे मरे, आधा पेट खाएँ तन्ना झाकें तभी वे आदर्शवादी अध्यापक बन सकते हैं जैसे अध्यापक मानव नहीं । टेलीनॉर रेशम मखमल केवल औरों की जागीर और अध्यापक के अंदर इच्छाएं अभिलाषाएं जन्म नहीं लेती और मान नहीं उभरते आकांक्षाएं मर चुकी ये धोखा कब तक चल सकता है? अध्यापक कब तक मूर्ती बन सकते हैं और इसीलिए आप हर शाम विस्की देते हैं ।
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Sound Engineer