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भाग - 01 in Hindi

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AuthorNitin Sharma
मधुकर को सभी जीनियस कहते थे और वह था भी। लेकिन जीवन के हर मोर्चे पर वह असफल रहा। एक होनहार इंसान क्‍यों अपने जीवन से हार गया? क्‍या था इसका कारण? टूटा हुआ परिवार, सामाजिक व्‍यवस्‍था, विपरीत परिस्थितियां या खुद? यह उपन्‍यास जीवन के उतार-चढ़ाव और सामाजिक जीवन की सच्‍चाई को बताता है।
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हूँ । आप सुन रहे हैं फॅमिली द्वारा लिखी किताब अनुभव है और मैं हूँ ऍम सुने जो मन चाहिए मधु करने । गौर से रेलवे लाइनों पर बने ओवर ब्रिज की ओर देखा और धीरे धीरे पुल पर चढने लगा । इस प्रकार बुल पर पहले चढना और फिर उतरना बेहतर रहेगा सोचा नहीं क्योंकि चढते समय शरीर की मेहनत करनी पडेगी और उतरते समय आराम से टांगी । बिना परिश्रम के नीचे को दौडती चली जाएगी । शरीर के साथ ही उसका दिमाग भी चढने उतरने में व्यस्त रहेगा । पहले चढने के कष्ट और फिर उतरने के सुख के अतिरिक्त कुछ और सोच ही नहीं सकेगा उसका मस्तिष्क । इस तरह से उसे उन हथौडों से छुटकारा मिल जाएगा जो लगातार पिछले एक घंटे से उसके मस्तिष्क पर पूरे एक से चल रहे थे । साथ ही वह बच जाएगा उन सैकडों सवालों से जो उसके मस्तिष्क में कीडों की तरह जिन रहेगी उसकी आत्मा को कुलबुलाने पर मजबूर कर रहे थे । मधुकर बेचैन हो उठा था । दिमाग में उठे बवंडर से वो छुटकारा चाहता था केवल छुट का दिमाग को राहत देने के लिए शांति की खोज में वो तेज तेज कदम उठाता हुआ पुल पर चढने लगा । चढाई सीधी भी अभी आधी चढाई भी वो नहीं चढा था कि उसकी सांस फूलने लगी हूँ । वो हाफ नहीं लगा और उसे लगा कि वह काफी थक गया है । अब और चाहे ना उसे मुश्किल लगा और उसने बाकी बची चढाई को हसरत भरी निगाहों से देखा । अपनी सांसों पर काबू पाते हुए मातृका पसीना पहुंचते हुए उसने सोचा कि सचमुच ऊपर चढना कितना टेढा काम है । अब ये तो उसके आगे स्पष्ट हो ही चुका था कि वो अब और नहीं चल सकेगा तो वापस चलूँ । उसने अपने आप से पूछा लेकिन ये वापसी की उतराई वो उतराई नहीं थी जिससे कि उसके मस्तिष्क को काम करके उसका फल भोगने का सुख मिलता है । अभी तो वो तो मंजिल को छोडे बिना बीट दिखाकर भाग रहा था । भावना मंजिल से दूर, कर्तव्य से दूर, परिस्थिति से दूर और शायद अपने आप से तो लेकिन ये क्या हूँ ये फिर वही सवाल उभरने लगे जिन से बचने के लिए उसने पुल पर चढने का निश्चय किया था । तो क्या ऊपर चाहूँ और उसने ऊंचाई की ओर देख कर पोल पर चढना उसे अपने लिए असंभव सा लगा । वापस उतरने के विषय में सोचते ही उसका अंतर करण काम कर रहे क्या मधुकर हताश होकर पुल पर लगी रेलिंग के सहारे खडा हो गया । खुल के नीचे रेलवे लाइनों पर गुजरता हुआ रेलवे इंजन जोरों से चीज रेल के डब्बे खडखड करते हुए तेजी से मुझे ये सब मधुकर सामूहि से निहारता । पल भर के लिए उसका मस्तिष्क एंजिन की चीज और डब्बों की खडखड से भाग गया । बस चीख और खडा है मधुकर ने राहत की सांस हूँ और उसने अपनी निगाहें पुल पर जमा देखो हर कोई दौड रहा हूँ आॅल्टर बसें भाग रहे हैं । आदमी पैदल ही भाग रहे हैं । एक बस वो खडा था और चुप चार इस चोर को अपने दिमाग में भर लेना चाहता हूँ जिससे कि उसके अंदर का शोर दबकर रह जाएंगे । हाँ पर ये क्या, कुछ भी तो उसकी मदद नहीं कर रहा था । उसे लगा कि इतने शोर के बावजूद वो कुछ नहीं सुन पा रहा था । थोडा सा भी तो शोर उसके हिस्से में नहीं आया था और उसने महसूस किया कि उसके दिमाग में कुछ दिखने लगा है । उसने घबराकर जल्दी से जेब से सिगरेट निकालकर सुनकर दो गहरे कश लेकर धुएं के बादलों से उसने खुद कुछ पाने की कोशिश की । लेकिन ये बादल तो धोखा था, कुछ ही क्षणों में ये छल मिटकर रह गया । मधुकर नंगा होने पर मजबूर हो गया । दिमाग में कुछ जोरों से रहेगा । मस्तिष्क में बिजली की चमक सी तेजी से कुछ उभरा और मधुकर उसे उभरने से रोकना सका । मम्मी सर्दिया शुरू हो रही हैं और इस साल फिर हमारे पास स्वेटर नहीं । उस दिन बडा बेटा दिनेश सुबह सुबह अपनी माँ से उलझ गया था । हाँ, मैं जानती हूँ शैलजा ने थके स्वर में कहा था और गाँव में जुटे भी नहीं है । गर्मियों में तो विषय चप्पल से गुजारा हो जाता है, लेकिन सर्दियों में यदि चमडे के बूट नहीं तो कैनवस के जूते तो जरूरी है । जानती हूँ मैं । शैलजा ने पहले वाला जवाब दोहरा दिया था । मम्मी एक बात बताओ गी । पूछो हम इतने गरीब क्यों है? हर चार पांच महीने के बाद हमारी बिजली कट जाती है क्योंकि हम बिजली का बिल नहीं चुका सकते हैं । फिर मम्मी अब तो मैं आठवीं पास करने वाला हूँ । नवी श्रेणी से तो फीस भी देनी पडेगी । सुनकर शैलजा होना चाहती थी लेकिन रोक नहीं सकते । शायद इसलिए कि आंसू तो खुश हो चुके थे । वो पिछले कई सालों से रोती रही थी । अब कहाँ तक आंसू बहाती? थोडी देर बाद बोला था । दिनेश मम्मी डैडी सारा दिन तो बाहर रहते हैं, लेकिन करता क्या है? काम की तलाश दिनेश शान भर को चुप हो गया था । लेकिन फिर बोला था मम्मी एक बात करूँ, अभी बाकी है केवल एक तो वो भी कह डालो । शैलजा ने बनावटी मुस्कुराहट पैदा करने की कोशिश करते हुए कहा था, मेरा एक दोस्त है । उसकी माँ के पास स्वेटर बुनने की मशीन है । वो दो दिन में एक स्वेटर बुन लेती है और उसे एक सोचा कि तेरह चौदह रुपये मिल जाते हैं । अच्छा और तुमने मुझे ये सब क्यों कहा? यही क्या तुम चाहते हो कि मैं भी स्वेटर बुना करूँ? पर आपके पास तो स्वेटर बुनने की मशीन नहीं, मम्मी तो और शैलजा की मुझसे गहरी सांस निकल कर रह गई थी । दिनेश भोलेपन से बोल पडा था मम्मी, जब मैं अफसर बन जाऊंगा तो आपको मशीन ले दूंगा । लेकिन भी थे जब तुम अफसर बन जाओगी तो क्या पसंद करोगे कि तुम्हारी मम्मी लोगों के स्वेटर बने तो मम्मी मुझे माफ कर दो । मैंने गलत बात कह दी । कोई बात नहीं । अब और कुछ तो नहीं कहना नहीं तो स्कूल जाओ । दिनेश चला गया था लेकिन मधुकर को समझते देर नहीं लगी थी कि वह चिंगारी हो गया जो धीरे धीरे शैलजा के भीतर सुलगने लगी थी । शैलजा के जहन में उठे अनेक ख्याल उससे छिपे ना रहे थे । वो रोटियां सेकना छोडकर धनवती अंगीठी पर रखें । काले तपते तवे को घुमाने लगी थी और वो खुद उंगलियों में जलती सिगरेट थामे शैलजा को पढने की कोशिश करने लगा था । सोचने लगी थी शायद हो स्वेटर बुनने की मशीन पर योग क्या कहेंगे? लेकिन क्या लोग कुछ नहीं कहते हैं? रिश्तेदार उन्हें जब भी देखते हैं तो उनकी निगाहों में दया और सहानुभूति होती है । शैलजा को इस दया और सहानुभूति से नफरत थी । उसने कभी अपना दुःख किसी पर जाहिर नहीं किया था । किसी को अपना दुःख बेचा नहीं थी तो फिर लोगों की दृष्टि में दया और सहानुभूति क्यों पैदा हो? इसलिए वह स्वेटर बुनना सीखेगी । पर मशीन कहाँ से आएगी और ना मालूम उसकी कितनी कीमत होगी । अब तो उसके पास गहने भी नहीं बचे थे जिन्हें बेचकर वो मशीन खरीद लेती । उसके बच्चों कि पांव में जूते नहीं थे । सर्दी का मौसम दनदनाता रहा और उनके शरीरों पर उन्नीस स्वेटर नहीं होंगी । अच्छा खाना तो केवल एक स्वप्न बन कर रह गया था लेकिन जरूरी चीजों के बिना तो जीना दूभर था । फिर वो किस से सहायता मांगी । सहायता वो भी ठीक से घृणा करती थी लेकिन सहायता भी वो उसकी चाहती थी जो एहसान ना जताए । मधुकर को यह समझते देर नहीं लगी थी कि शैलजा ऐसे किसी भी आदमी को ढूंढ नहीं पाई थी जो बिना एहसान जताए उसकी मदद कर देता हूँ । उस बेबसी की हालत में आंसू खुश हो जाने पर भी शैलजा की आंखों से दो आंसू टपक ही पडे थे । और आज सुबह ही जब मधुकर नुक्कड की नाईक यहाँ से शिव बनवाकर घर में घुसने ही वाला था की बैठक में शैलजा को किसी अपरिचित स्वर में बातें करते सुनकर उसके पांव जीने की आखिरी सीढी पर ही ठिठककर रुक गए । नहीं उसने वहीँ खडे खडे परिचित पर पहचानने की कोशिश की थी है और वह पहचान भी गया । वह शैलजा का भाई था जो अभी अभी अमेरिका से कुछ दिन पहले आया था । शैलजा अपने माँ बाप की एकलौती बेटी और दो भाइयों की लाडली बहन थी । शैलजा के पांव में चुभता हुआ काटा तक उसके भाइयों और माँ बाप को दूर तक बीत जाता था और शैलजा के तो समूचे अस्थित को ही कांटों ने छलनी कर रखा था लेकिन वह रोइनाथी चिल्लाई ना थी क्योंकि उसे किसी की हमदर्दी से घृणा थी । वो अपना दुःख किसी के साथ बांटना नहीं चाहती थी । शहल शैलजा के भाई का स्वर उभरा था हूँ तुम अपने बारे में कुछ सुनना चाहती हो ना । यदि सुना हो तो तो शायद कुछ भी मत सुना हूँ । इस राज को राजी रहने दो तो तुम्हारे चेहरे के एक एक अंक पर मातृ पर, आंखों में आंखों के नीचे तुम्हारा वो जीवन लिखा है जो तुमने काटा है और इस से पढकर में खुश नहीं । जब इस जीवन के बारे में तुम अपनी जबान से कहोगी तो शहर मैं दुकान कहाँ से लाऊंगा जो सुन सकें और वह दिल कहाँ से लाऊंगा जो सुनकर धडक न सकें । कहकर भाई चुप हो गया था । शैलजा ने कोई जवाब नहीं दिया था तो मेरी बहन होना चाहिए । पूछा था भाई जवाब में शैलजा ने शायद सिर उठा लिया था में वर्षों बाद अमेरिका से लौटा हूँ । कितनी इच्छा थी मेरी अपनी प्यारी बहन से मिलने की? मेरी प्यारी बहन तो मुझे वो बताओ जिसे सुनकर में खुश हो जाऊँ । मेरे पास ऐसी कोई बात नहीं हूँ लेकिन तुम को सुनाना नहीं चाहती हूँ और जो सुनाना चाहती हूँ मैं सुनना पसंद नहीं करते हैं । विश्वास करो भैया, मैं ऐसी कोई बात नहीं जानती जो तुम्हें खुश कर सके । तुम्हारा विचार है । जो जीवन मैंने का आता है उसके बाद मेरे पास कोई ऐसी बात बच्ची होगी जो किसी को खुश कर सके । शैलजा का गला जून गया शैलजा ये सच है कि हमें कर से के बाद मिल रहे हैं । भैया ने कहा लेकिन तुम जानती हो कि मैं सादा तुम्हें खुश देखना चाहता था । आज मैंने तुमसे खुशी मांगी तो मेरे दामन में डालने से इंकार कर रही हूँ । अच्छा तो बताओ ऐसी कौन सी बात करूँ जिससे तुम खुश हो सकते हो? शैलजा ने भोलेपन से पूछा था पहली बात तो यही है जिसे सुनकर में खुश हो गया हूँ और दूसरी बात जिसे सुनकर मैं खुश हो सकता हूँ । तो भाई कहते कहते रुक गया था बोलूँ क्या है? दूसरी बात है कि मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ भैया शैलजा लगभग चिल्ला पडी थी और फूट फूटकर रोने लगी थी । न मालूमी आंसू उसमें कितने वर्षों से रोक रखे थे । अच्छा अब मुझे कुछ कर दो । मेरी अच्छी बहन शायद मैं कभी न कहती लेकिन ना मालूम क्यों ऐसा कहने पर विवश हूँ । शहर तुम का हूँ । मैं वो जान कर खुश होंगा है तो ऐसे ही बात लेकिन जो को नहीं कह डाला क्या तो मुझे स्वेटर बनने की मशीन खरीद कर दे सकते हो । मैं तुम्हारी रकम किश्तों में चुकाती रहूंगी । अब तुम्हारी बात में मुझे जहाँ खुशी प्रदान की है तो मुझे कुछ बताया है । वहाँ मेरा दिल को उनकी आंसू होना चाहता है । क्यों तो मिस मशीन पर लोगों के स्वेटर बनोगी । हाँ शैलजा ने धीरे से कहा था उसका भैया चुप हो गया था । मस्तिष्क उसका काम करना भूल गया था । शायद उस की एकलौती प्यार से पहली बहन जो हमेशा रुपये उसे खेली थी उससे आज वो वर्षों के बाद मिला भी तो क्या जानने के लिए किसी तरह बोला था भाई, अब मैं खुश हूँ । बहन यद्यपि में खुश नहीं, हर खुशी खुशी नहीं होती और हर गम गम नहीं होता । कुछ खुशियां हम लाती हैं और कुछ नाम खुशियाँ लाते हैं । शैलजा का जवाब था फिर जो पीछा गई शहल भाई ने चुप्पी तोडी थी हूँ क्या ये स्वेटर बुनने की मशीन मुझसे उपहार समझकर नहीं ले सकती । आखिर मैं तुम्हारा भाई हूँ, मुझसे भी उधर कैसा नहीं भैया आखिर क्यों बस यूँ ही अच्छा मेरे एक सवाल का उत्तर दे सकती हूँ । भैया ने पूछा तो में सहानुभूति, दया और सहायता से आपने घृणा क्यों हैं? इसलिए कि मेरे पति ने अपनी साडी आयु लोगों की दया पगार दी है । शहर जा का जवाब था इससे आगे मधुकर कुछ और न सुन सकता था । उसके कुछ गहरा छुप कर रह गया था और वह दर्द से कराहने पर मजबूर हो गया था । लेकिन उसने जोरों से आपने होठ काट लिए थे और कराहट निकलने नदी थी । उसे सबकुछ घूमता हुआ ऐसा प्रतीत हुआ और उसे लगा था कि यदि उसने बढकर दीवार का सहारा नहीं लिया तो शायद सीढियों से लुढक जाएगा क्योंकि वह शैलजा का पति था । शैल वर्षों खामोश रही थी । शायद पंद्रह वर्ष गुजर गए थे, लेकिन शैल ने कभी उससे कोई शिकायत न की । कभी उससे कुछ मांगा नहीं था और आज उसने अपने वोट खोले भी तो एक बाहर वाले के सामने की उसके पति ने सारी उमर लोगों की दया पर काटती क्यों शैल ने ठीक ही कहा था सचमुच वो सारी जिंदगी दूसरों की दया पर ही दिया है । ये खयाल आते ही मधुकर तेल मिला था और रेलिंग का सहारा छोडकर तेजी से पुल पर चढने लगा वो कुछ नहीं सोचना चाहता था कि क्या गलत है और क्या सही है । उसने सोचने की अपनी सारी ताकत को पुल पर चढने में लगा दिया और उसे हर प्रकार के सोचने से छुटकारा मिल गया । इस बार टांगे नहीं था शायद इसलिए कि वह भीतर से काफी थक गया था । अब टांगे था की भी तो इसका उसे आभास नहीं हुआ । वो पुल पर पहुंच गया लेकिन नीचे उतर कर उसे रुक कर जाना पडा क्योंकि सामने से नारे लगता हुआ चीखता पुकारता । कोई जुलूस आ रहा था । शायद कॉलेज के छोकरे थे जो हडताल कर रहे थे और उनके चेहरे से मधुकर को लगा कि शायद ही किसी को पता था कि वह हडताल क्यों कर रहे थे । बस नारे, शोर, गालियाँ, भगदड । खैर मुझे क्या मधुकर ने सोचा और जरा सडक से हटकर खडा होगा । वो इंतजार करने लगा कि कब जुलूस दूसरी और वो पुल से उतरे । हडताल करने वाले कॉलेज के छुट्टियों में वह कोई दिलचस्पी नहीं ले सकता है । बस बिजली के खंभे से कमर लगाकर खडा हो गया । तब ये जीत उसके सामने आकर रुकी । जीत में से सिर्फ निकालकर कोई जोर से बोला हलो जिनियस, मधु करने चौकर से उठाया और पुकारने वाले को पहचानने की कोशिश की तो वो तो रतन था, लेकिन रतन और एसपी मधुकर ठगा सा रह गया । कुछ समझ नहीं सका, लेकिन परिस्थिति बदला रही थी कि रतन एसपी था । जिस जीत में वह बैठा था वो एसपी की जीत थी और उसके आगे पीछे कई सिपाही और पुलिस अधिकारी थे, जो शायद जुलूस की निगरानी कर रहे थे । अभी मधुकर ये सब सोच ही रहा था कि रतन में फिर पुकारा । अरे क्या पहचाना नहीं तुम टोमॅटो वाला, तुम्हें पहचानने में क्या दिक्कत हो सकती है? रतन ने इस बार फिर उसे जीनियस का और वह हल्के हल्के मुस्कुरा रहा था । मधुकर उसके पास आया तो वह बडे जोश से मिला और मधुकर को अपने पास ही जीत में बैठा लिया । फिर उसके कंधे पर हाथ रखकर मुस्कुराते हुए रतन बोला हूँ कैसे हो? ठीक हूँ मधु करने । धीरे से कहा तो मैं भी का बनेगा, एसपी नहीं । पिछले पांच साल से सीनियर सुपरिटेंडेंट पुलिस हो, मुबारक हो । धन्यवाद । इस शहर में कब आई? पिछले महीने पोस्टिंग हुई थी लेकिन तुम क्या कर रहे हो मत हूँ । जीनियस भी भला कुछ क्या करते हैं क्या मधु करने फ्री की हँसी हसते हुए कहा लेकिन रतन इस हसी में साथ नहीं दे सका । वह गंभीर हो गया था । उसके मुंह से निकल कर रह गया । फिर कुछ दिनों की चुप्पी के बाद रतन बोला मधु सामने उस लडकी को देख रहे हो जो सबसे आगे मधु करने सामने उस लडके को देखा जो कॉलेज के छोकरों के जुलूस का अगवा और रिंगलीडर था । स्पष्ट था की हडताल उसी के इशारों पर हुई होगी । वो पहले नारे लगा रहा था और उसके जवाब में बाकी लडके नारे लगा रहे थे । उसी लडके की ओर रतन का संकेत था । कुछ याद आया मधु रतन ने उसे झंझोड ते हुए पूछा हाँ लडका जीनियस मेरी तरह और मेरी तरह जुलूस की अगवानी कर रहा है और कुछ और भी कुछ इस सारे जुलूस में वो लडका शामिल नहीं है जिससे कल एसपी रतन बनना है । वो तुम्हारी तरह होस्टल के कमरे में दरवाजा बंद किए हुए खिडकियों पर पर्दे डालकर दिन में भी टेबल लैंप चलाकर अपनी मेज पर बैठा पड रहा होगा तुम्हारी याददाश्त की मैं तारीफ करता हूँ अच्छा बोलो कौन सी सिगरेट होगे तो सिगरेट पीने लगे रहते नहीं मैं खुद तो आज भी सिगरेट को छोटा तक नहीं लेकिन तुम तो पीते हो ना हूँ । मेरे पास सिगरेट हैं और मधु करने जेब से चार मिनार की सिगरेट का पैकेट निकाल लिया, जिसे देखकर रतन चौक पडा । तुम तो पांच सौ पचपन ब्रैंड की सिगरेट पीते थे । मधु ये चार महीना इसके जवाब में मधुकर रतन के चेहरे को घोर कर रह गया । आज तो मेरे सामने पहले की तरह पांच सौ पचपन ही हूँ और रतन ने जेब से नोट निकालकर ड्राइवर को पांच सौ पचपन का एक पैकेट लाने का ऑर्डर दिया । मधुकर उसे सिगरेट मंगवाने से रोक नहीं सका क्योंकि चार मिनार उसका ब्रांड नहीं था । अभी तो उस की मजबूरी थी । वो चार मिनार पीता था क्योंकि वह पांच सौ पचपन खरीद नहीं सकता था और उसने रतन को सिगरेट मंगवाने से मना नहीं किया था क्योंकि उसने दूसरों की दया पर जिंदगी गुजार सिगरेट का पैकेट आ गया तो रतन बोला अच्छा मधु, तुम सिगरेट हो । जरा कुछ देर तक इन कॉलेज के छोकरों की निगरानी कर लूँ । कहीं कोई दंगा फसाद न कर दें, फिर घर चलेंगे । रतन की निगाहें जुलूस पर जम गयी थीं । मधुकर जीत की सीट में धंसकर उसने सिगरेट निकालने के लिए पांच सौ पचपन का पैकेट खोलने के लिए हाथ बढाए तो उसके हाथ सर्द होकर रह गए । पांच सौ पचपन के पैकेट पर उसे अपनी बीवी शैलजा का चेहरा उभरा हुआ लगा, जिसकी आंखों में आंसू थे और जो भरे गले से अपने भाई से कह रही थी, मेरे पति ने सारी जिंदगी दूसरों की दया पर काटती है । उसने फिर रत्न से मदद स्वीकार करेगी । मधुकर को अपने आप से नफरत हो गए । उसका रूम रूम ग्लानि से भर उठा और वह पांच सौ पचपन के पैकेट से सिगरेट निकाल कर भी नहीं सकता हूँ । उसने अपनी चार मिनार स्टूडेंट्स उनका है । पहले ही कश्मीर बदला दिया था कि सिगरेट कडवी थी और कडवे । धोनी ने अपने से भी कडवे सवाल को जन्म दे दिया था । आखिर में क्या मधुकर का रूम रूम चीज जीतकर खुद से पूछने लगा था? क्या मैं जीन्स या दूसरों की दया सहायता, सहानुभूति और टुकडों पर पलने वाला एक जानवर? यदि जीनियस स्कूल तो सर्दियों के आने पर भी मेरे बच्चों के पांव में चमडे के जूते क्यों नहीं? उनके बदन पर पूरे कपडे क्यों नहीं है? मेरी बीवी लोगों के स्वेटर बुनने के लिए मशीन उधर क्यों खरीद रही है? और जब मैं पांच सौ पचपन सिगरेट पीना चाहता हूँ तो खरीद क्यों नहीं सकता? यदि मैं दूसरों की दया टुकडों पर पलने वाला जानवर तो मुझे ये महसूस होता है कि मेरे बच्चे सर्दी से ठिठुर रहे हैं । मेरी बीवी आखिर लोगों के स्वेटर क्यों? उन्हें राॅ बन गया और वो कुछ भी क्यों ना बन सका? जब मैं भीक मांगने वाला अधिकारी हैं तो इस वीक में फेंके हुए पांच सौ पचपन के सिगरेट के पैकेट से सिगरेट निकालकर में पी क्यों नहीं पा रहा हूँ? पैकेट पर मुझे आंसुओं में डूबी शैल की निगाहें क्यों दिखाई दे रही है? आखिर में हूँ क्या? मधुकर इसका जवाब चाहता था । उसने सिगरेट के दो तीन गहरे कश लिए और जीत में धुआं फैल गया है । मधुकर को लगा कि ये धूम दीवार बन गया । पतली सी दीवार, उसके और रतन के बीच बाहर उठते हुए जुलूस के नारों और उसके बीच वो सीट में कुछ और धंसकर और अपने में खोकर रहेंगे । वो खुद को टटोलने लगाना अपने अंदर में झांकने लगा था क्योंकि वो जानना चाहता था कि वह क्या है? माँ पीडित होती नहीं, बीडी का करवा दूंगा । जब कमजोर फेफडों को तकलीफ पहुंचाता तो फेफडे विद्रोह कर देते हैं । खासी खांसी और खासी खास्ते खास्ते माँ का बुरा हाल हो जाता था वो खास्ते खास्ते दोहरी हो जाती पानी मांग हूँ । दो घुट पानी कंट्री से उतारती लेकिन खांसी की तीव्र प्रहार में कमी नहीं होती और फांसी जारी रहते हैं । यहाँ तक कि फोन थूक बनकर निकल आता था । व्रत और धोखे कैंसर के लक्षण बीडी मानेका पीनी आरंभ कि थी क्योंकि थी ये तो एक लंबी कहानी शुरू शुरू में जब माँ के पेट में गैस जमा हो जाती थी तो डॉक्टर ने कहा था कि वह दिन में दो तीन सिगरेट पी लिया करें । ये दो तीन सिगरेट एक आदत बन गई थी । बुनियाद, बुरे खानों और बुरी बातों से इंसान प्रेम करता है । मैं जानती थी डॉक्टर कहते थे कि बीडी जहर का असर कर रही है लेकिन मैं उसे छोड नहीं सकती थी । सिगरेट महंगी थी, बाबू जी की आय अधिक नहीं और जब दो तीन सिगरेट दस बारह और फिर अठारह बन गई तो माने सिगरेट का स्थान बिल्ली को दे दिया । बीडी सस्ती थी । अब यदि जो अमीर होते तो माँ अच्छे ब्रांड की सिगरेट पी नहीं, अच्छा भोजन प्राप्त होता । खुला खुला मकान होता हूँ । सुबह और शाम सैर करती, उद्यान होते भूल होते और माँ को कैंसर की बीमारी ना होते । कैंसर माँ को परेशान नहीं करता हूँ और ना ही उसे आभास दिलाता की । अब जीवन के दिन थोडे माँ का रंग पीला हो गया हूँ । आंखें बुझी बुझी थी और समय से पहले बुढापे में उसे आगे हिरासत महातप चालीस के लगभग शायद चालीस से दो साल ज्यादा दे । माँ को फांसी से परेशान देखकर एक बार मधु करने ये बात उससे कह दे दिए माँ जब तुम्हें तकलीफ होती है तो बीडी के पीती हूँ कहाँ स्टार तक ही माने पी की हसी हसते हुए कहा था थे कश तो ना मालूम किसे कहते हैं पर महत्व में कैंसर है वहाँ बेटे कैंसर तो हुआ है । कुछ लोगों का तो जीवन ही कैंसर की भांति होता है और मधुकर उस दिन माँ की कहीं हुई ये बात अच्छी तरह से समझ नहीं सका था क्योंकि उस वक्त उसकी उम्र थी केवल चौदह वर्ष । लेकिन आज तो माँ की कहीं हुई वह बात उसके लिए कोई पहली नहीं । ठीक है कि जिंदगी आदमी के वश में नहीं । लेकिन कुछ बातें मनुष्य जवानी के जोश में कर बैठता है । उस समय को बहुत अच्छी लगती है लेकिन बाद में समय इन्हें गलत साबित कर देता है और समय ने सिद्ध कर दिया था की माँ और बाबू जी का विवाह गलत । वो चार भाई बहन हैं । मधुकर के अतिरिक्त एक भाई और दो बहनें सबसे बडा भाई सत्य था । दूसरे नंबर पर सीमा थी, तीसरा नंबर लगता का था और मधुकर सबसे छोटा था उन चारों को जन्म देने में और गृहस्थी चलाने में माने अपना स्वास्थ्य और खूबसूरती खोली थी मधु करने, खुद माँ को और कई लोगों को कहते सुना था की माँ जवानी में बहुत सुंदर है । सबसे छोटा होने के बावजूद मधुकर जानता था की माँ दूसरे धर्म की माँ ऍम और उसका नाम मरियम वैसे बाबू जी माँ को मेरी नाम से पुकारेंगे जो बाबू जी ने प्रेम विवाह किया गया और धर्म इस विवाह में सबसे बडी रुकावट मधुकर ये भी जानता था कि इस विवाह में बडी बडी अडचनें खडी हूँ । धर्म के नाम पर पत्र की धमकियां भी दी गई और इन धमकियों ने वास्तविकता का रूप धारण कर लिया । लेकिन ये सब हुआ कैसे था माँ और बाबू जी कैसे हो गए थे ये बात को नहीं जाता था । बाबू जी ने कभी किसी को अपने प्रेम की कहानी नहीं सुनाई और अक्सर उसने महसूस किया था की माँ इन सवालों का जवाब देने से कतरा जाती थी । मेरी एक शाम बाबू जी ने माँ से का मैंने सारा जीवन एक ईमानदार आदमी की भांति व्यतीत किया है । ऑफिस में लोग रिश्वत लेते हैं, बिना घूस लिए एक कागज तक दूसरी मेज पर नहीं सरकार मैंने आज तक रिश्वत को छोडना तो दूर लेने की बात तक नहीं सोचता हूँ । हमारे जीवन में सुख और शांति नहीं । भगवान ने हमें क्या नहीं दिया? मान मर्यादा अच्छी पत्नी और हाँ माने तो करते हैं । मैं जानती थी कि बाबूजी को न सुख मिला था और न शांति । यदि मिला होता तो इस तरह ना पूछते हैं हमारे जीवन में सुख और शांति नहीं और मैं ये भी जानती थी कि बाबू जी क्या कहना चाहते थे और उन्होंने कहा नहीं क्योंकि वो चीज उन्हें बिलकुल ही प्राप्त नहीं हुई थी और कुछ नहीं महम मुस्कुरा दी थी । आप अपनी बात स्वयं ही कार्ड दे रहे हैं । क्या आप ये नहीं कहने लगे थे कि धान भी मिला । बाबू जी ने स्वीकार कर लिया था मिला लेकिन उतना नहीं जितने की आवश्यकता थी । मैंने कभी लखपति बनने के सपने नहीं देखी । जो मिला । मैंने शुक्र किया और जो नहीं मिला उसका गिला नहीं किया । राजे गिला क्यों? पर इस क्यों का उत्तर माँ की खांसी के रूप में मिल गया था । बाबू जी को माँ की खांसी ने अहसास कराया था की एक खासी इसलिए दूर नहीं हो सकती क्योंकि अच्छा इलाज नसीब नहीं था और इस खांसी ने इसलिए घर कर लिया था क्योंकि अच्छा भोजन नहीं । माँ खास खास कर हाफ में लगी थी । उसकी सांस झोंकने की तरह चलने लगी थी और बाबू जी उदास हो गए । अपने राष् हैं माने सांसों को संयत करते हुए पूछा था निराज न हो तो क्या हूँ? मैंने एक आदर्श आदमी का जीवन बिताने की कोशिश की । जहाँ तक हो सका किसी की कुछ मदद की है । दुःख में सुख में कभी अच्छा नहीं खाया, कभी अच्छा नहीं पहना मैंने दौलत की कभी पूजा नहीं । पर आज लगता है कि भगवान में हमें पांच तत्व लेकिन छठा तत्व धन है जिसके बिना पांचों तत्व कम नहीं है और आज हर किसी ने दौलत को अच्छा हो तत्व बना डाला है लेकिन किसी को भी मन की शांति तो नसीब नहीं माने । बाबू जी की उदासी को कम करने के लिए दलील पेश किए हमने दौलत को नहीं पूजा लेकिन मेरी की हमें मन की शांति नसीब हुई । बाबू जी ने अपनी निराशापूर्ण निगाहें माँ पर जमा देती है और माँ के पास इसका जवाब नहीं था क्योंकि उन्हें भी तो मन की शांति नहीं मिलती । कभी कभी मैं सोचता हूँ कि तुम्हारे साथ विवाह करके मैंने तुम्हें दुःख के सिवा कुछ नहीं दिया । बाबू जी ने ऐसे कहा था जैसे कि वो अपराधी और मेरे दिल की आवाज । इसके विरुद्ध मैंने बात काटने की कोशिश की थी । नहीं मैं वो जवानी थी और जवानी अंधी होते हैं । उस समय सूरत से प्यार होता है । प्रेम की सेवा हर बाद है, नजर आती है कहाँ है और कहाँ तो भाइयों की लाडली बहन, माँ बाप की लाडली बेटी और पैसे में खेलती थी और अब मुझे किस बात की कमी है । भूख, गरीबी, बलगम यह खून तो ये माने मुस्कुराने की कोशिश की लेकिन वो मुस्कुरा नहीं चाहिए मेरी मैं तो भारत सौंदर्य फिर रख सकता हूँ और इससे आगे मधुकर कुछ नहीं सुन सकता क्योंकि बातें माँ की खांसी में खो कर रह गए । वो साथ वाले कमरे में चलाया था जहाँ बडा भाई सस्ते चारपाई पर लेटा हुआ सिगरेट पी रहा है । उसने धीरे से कहा भाई साहब क्या सत्य ने उसे खा जाने वाली निगाहों से घूमते हुए पूछा था, बाहर माँ और बाबूजी बैठे हैं । उन्हें पता चल जाएगा कि आप सिगरेट पी रहे हैं, चल जाने दे । पता है मैं किसी से डरता नहीं । आज धर्म की बातें आदर्श और मन की शांति खोज रहे पहले जवानी में प्यार से फुर्सत नहीं थी जो क्या से हूँ और सत्य चारपाई से उठकर कमरे में चहलकदमी करने लगता है । साथ ही बडबडाता जा रहा है पर इन्हें हमें भूख को मारने और नंगा रखने का क्या हो गया? जो आज मन की शांति ढूंढ रहा है । इसने पर्म आया था जब वो सिर्फ फॅस में था और बीएस सेकेंड इयर की अमीर घराने की एंग्लो इंडियन लडकी फंसाई । ये आपका ही रचाना था तो कम से कम दो साल तक तो रुक जाता । वो होकर कहीं जाकर कॉलेज में लेक्चरर हो जाता है और माँ की भी हो जाती है कम से कम आज घर में भूख तो तांडव न करती भैया उसने टोकने की कोशिश की थी लेकिन सत्य अपनी धुन में कहीं जा रहा है । जब घर वालों से विद्रोह कर के भूखे मरे तो कलर की करनी पडेगी और अब रख लो उम्र भर कलर की मीडियम । अब आदर्श देखो ना किसी को रिश्वत दे सकता है, नहीं ले सकता है । अफसरों को शराब पिलाकर तरक्की पाना पाप समझता है । पांच साल रिटायर होने में रह गए क्लर्क भर्ती हुआ था । क्लर्की रिटायर होगा सारी उम्र में असिस्टेंट तक नहीं बन सका । लोग डाॅक्टरी तक बन गए तो और सत्य ने कडवाहट से सिगरेट का गहना कहीं किसी से काम निकलवाना हो तो हाथ जोडने पडते हैं हाथ जोडकर रिश्वत ले देकर प्रमोशन लेना तो पास है बीवी को कैंसर से और बच्चों को भूख से मरने देना पडता है । बातें देखो तत्वों की भगवान ने पांच तत्व दिए हैं और छठा तत्व धन है । फिर कमाता क्यों नहीं? धन मन की शांति सडक पर नहीं पडी और सत्य अपनी धुन में कहता गया, न जाने ये सब वो खुद को सुना रहा था या माँ और बाबूजी को, लेकिन चौबीस वर्ष का सत्य मधुकर को उस दिन माँ बाप के विषय में इस तरह उस जडता और बेइज्जती से बोलता हुआ बुरा लगा था । सत्य से उसे कुछ नफरत भी हो गई थी । उसकी माँ और बाबूजी पहला कितने अच्छे हैं । इतने भले बाबू जी भी कभी कोई गलती कर सकते हैं और सत्य नहीं । उनकी अनेक गलतियाँ गिनवा दी थी? नहीं बाबूजी नहीं सकते ही गलत था । पर क्या सत्य उस दिन गलत था? मधु करने अपने आपको कुरेदा और वक्त में साबित कर दिया था कि सत्य गलत नहीं । वास्तविकता मधुकर के सामने समय ने सिद्ध कर दिया था की जवानी ही होते हैं अज्ञान आंखों पर पट्टी बनकर छा जाती हैं । आदमी को कुछ भी दिखाई नहीं देता । प्रेम ही सब कुछ लगता है । ट्रेन भी कौनसा केवल सूरत से प्यार है और माँ भी खूबसूरत है । बाबू जी ने स्वीकार कर लिया था कि माँ का सौंदर्य स्थिर ना रख सकें । क्योंकि उन्हें जवानी गुजर जाने के बाद पता चला था कि माँ का सौंदर्य स्थिर रखने के लिए, उसे कैंसर से बचाने के लिए, घर को भूख से बचाने के लिए सिर्फ प्यार ही काफी नहीं था । तो क्या बाबू जी गलत थी जो उस दिन उसे चौदह साल की उम्र में सही लगे थे । गलत भी तो कहाँ भूल हुई थी । उनसे मधु करने, बालों में उंगलियां फेरते हुए दिमाग पर जोर दिया । सिगरेट चलते चलते हैं, खुद ही बुझ गए थे रत्न अपने काम में व्यस्त हाँ जीत में चार मिनार के धोनी की कडवाहट बाकी थी तो कहाँ की बाबू जी गलत मधुकर के सिर में हथौडा समर इस सवाल नहीं ठीक है कि बाबू जी ने हिंदू रीति रिवाजों से मंत्रों के उच्चारण के बीच माँ से विवाह किया था । लेकिन एक जोडे के विवाह को जो कि अपना निर्वाह करने की भी क्षमता नहीं रखता, उन्हें पवित्र बनाने की अपेक्षा विवाह के समय उच्चारण किए गए मंत्र अपने गुणों को खो दी थी और वो अपनी शक्ति खोकर व्यस्त हो जाती है और मधु करने गहरी सांस एक और माँ खूबसूरत बाबू जी भी कम सुंदर नहीं रहे हैं लेकिन वो दोनों खुबसूरत स्कूलों की तरह खेल नहीं सके । स्कूल अपने सौंदर्य को कैसे धारण कर सकते हैं जबकि उनका उपयोग उस अपवित्र संस्कार में क्या जा रहा हूँ जो कि दो दिवालिया व्यक्तियों को छोडने के लिए किया गया हूँ ताकि वह अयोग्य असमर्थ मूल्य ही और बेकार संतान को पैदा करके उसे भूखा और नंगा मरने पर मजबूर करेंगे । मधुकर उलझ कर रहे हैं तो बाबूजी गलत हाँ गलत है और वो खुद उनकी अयोग्य समर्थ संतान था जिसके बच्चों के गांव में चमडे के जूते तो दूर ऍम झूठे भी नहीं जबकि सर्दियाँ दनदनाती हुई आ चुके हैं । जिसकी बीबी ने उसे ये कहा था कि तुमने सारी उम्र लोगों की दया पर कार्ड । मधुकर का मन कसैला होकर रह गया । संध्या को समय पर खाना तैयार हो गया । उनके घर रात का खाना सात बजे खा लिया जाता । सत्य और दिनों की तरह उस दिन भी शायद मेरी बाबू जी नहीं । वहाँ से कहा जी सत्य आज भी खाने के समय घर नहीं आया, अभी आ जाएगा, आज आएगा । लेकिन मुझे इस लडके की लक्षण बिल्कुल पसंद नहीं है । यह आशा के बिल्कुल विपरीत साबित हो रहा है । अभी बच्चा है, बच्चा है । पच्चीस वर्ष की उम्र होने को आई राष्ट्रीयकृत बैंक में क्लर्क सात सौ रुपए महावार कमाता है । ओवर टाइम गलत कभी फूटी कौडी भी दी है उसने और बाबू जी पिंजरे में बंद शेर की भांति चहलकदमी करना है । आज इस बात का फैसला होकर रहेगा । थोडी देर बात हो किस बात का माने चौकर हूँ सत्य का हूँ । ऍफ सहन नहीं कर सकता है तो हर रोज दस ग्यारह बजे लौट है । बैंक में ओवर टाइम लगता है । ओवर टाइम नहीं मेरी उसने शराब पीनी शुरू कर दी है । शराब नहीं नहीं सत्य ऐसा नहीं कर सकता हूँ । अब तो माँ बनकर उसकी हरकतों पर पर्दा मत डालों बनने की चेष्टा ना करो । तुम उसकी करतूतों पर पर्दा नहीं डाल सकती । आज हुआ है तो देखना मैं क्या करता हूँ । जवान बेटा है जवानी का मतलब ये नहीं कि खानदान का नाम दोनों दें । घर का सारा खर्चा मेरी आय में चलता है और इलाज साहब सारा रुपये शराब पर खर्च कर रहा है और ना मालूम कौन कौनसी बुराइयाँ है उसमें घर में जवान बहनें हैं, इनका विवाह करना है और सत्य को जरा भी होश नहीं । बाबू जी दो घंटे तक इंतजार करते रहेंगे । आखिर सत्य आ गया आ गए साहबजादे बाबू जी की आवाज कर दीजिए जी कहाँ से आ रहे हो ओवर टाइम लगाकर गहराई डराना सत्य थोडा हिचकिचाए वो बाबू जी के पास नहीं जाना चाहता था सुना नहीं सत्य आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सका । बाबू जी ने सत्य के मुँह के पास अपना मूल्य जा कर के सुना ये किस चीज की वो है पान की बाबू जी जी के झूठ बोलते शर्म नहीं आती सत्य के पास इसका जवाब नहीं है तो तुम ने आज फिर शराब थी और दो साल से बिना नागा पीकर घर आती हूँ । सत्य चुप रहा हूँ । जवाब दो मैं कुत्ता नहीं जो हूँ मेरे पास कोई जवाब नहीं हूँ तो मेरे पास है कहकर बाबू जी ने पूरे एक से सत्य के गाल पर थप्पड है । सत्य जवान था लेकिन बाबूजी का हाथ मजबूत और भारी था इसलिए वह चकरा गया । तो ये है आपका जवाब नहीं ये है कहकर बाबू जी ने दूसरा थप्पड रसीद कर दिया । इसलिए सुनी क्या कर रहे हैं? मान ने बीच बचाव करने की कोशिश मेरी चुप हो जानता हूँ कि मैं क्या कर रहा हूँ घर में जवान बहने बहने योगे और इससे नौकर हुए कितने वर्ष हो गए । इन वर्षों में इसने घर में क्या दिया है तो तुम्हारी तरफ कहाँ जाती है? ओवर टाइम करते हो तो वो रुपया कहा जाता है । सत्य फिर भी चुप रहा । अब चुप क्यों हो? बोलते क्यों नहीं है? तो आप क्या जवाब चाहते हैं? सत्य ने जवान खोली वहाँ मेरे पास कोई जवाब नहीं ये मेरा जवाब है । तो ये है तोहरा? जवाब बाबूजी उससे में आप ऐसे बाहर हो रहे हैं । उन्होंने आगे बढकर डंडा उठा लिया । ये आप क्या कर रहे हैं? जवान बेटे से इस प्रकार बात नहीं करते । माँ बोलती हूँ बडे बडे नालायकों को सीधा किया है । मैं जानता हूँ ऐसे लोगों का इलाज कहकर उन्होंने डंडा मार लेकिन डंडा सत्य के हाथ में आ गया । उसने बार रोक बाबू जी क्या बोल रहे हैं? मैं स्कूल में पढने वाला बच्चा नहीं हूँ । मैं आपसे अधिक शक्तिशाली आप काम आते हैं तो मैं भी काम आता हूँ । आप क्लर्क है तो मैं बैंक का क्लर्को कहकर सत्य ने झटका दिया और डंडा उसने झटककर फिर वो खुद दोनों बहनें सीमा और लता दरवाजे में सहमे । खडे नहीं अब बाबू जी के पास लडाई के लिए कोई हथियार नहीं बचा था । बहने और वो वो जो सहमे खडे थे अब सहमे हुए नहीं थे । आज तक बाबूजी का जो प्रॉपर आतंक उनके मस्तिष्कों पर अंकित था वो मिल गया । बाबू जी के आदर्शों की तो मानव मौत ही हो गई । उनका अपना बेटा इस प्रकार का निकलेगा ये उनके वहम में भी नहीं था । वो इस हार को आसानी से स्वीकार करने को तैयार नहीं हो सकते । मैं ये सब तुम्हारी वजह से तो मैं आंखे मूंद रखी । आज देख लिया कि बेटा कितना फरमाबरदार निकला । मैं कहता हूँ ये मेरा हो नहीं नहीं ऐसी बात नहीं मानी । कमजोर स्वर में विरोध किया गया । सत्य डंडा फेंककर कमरे में चला गया था और बाबू जी परेशानी से टहल रहे थे । अब आप भी लेना चाहिए कब तक इस प्रकार परेशान होते रहेंगे । परेशान मेरा तो अस्तित्व खत्म हो गया । मेरे तो सपने ही टूट गए । सारी आशाएं धूल में मिल गई । मैं तो कहता हूँ कि ऐसी औलाद से बेऔलाद भला और सत्य ने विद्रोह कर दिया था । मधु करने, नई सिगरेट जलानी । बाबूजी परेशान थे । उनके सपने टूट गई नहीं क्योंकि सत्य ने विद्रोह कर दिया था । लेकिन बाबू जी कितने गलत थे । जब उन्होंने माँ पर लांछन लगाया था कि सत्य मेरा ही नहीं, जबकि वास्तविकता ये थी कि सत्य एकदम से उनका खून था । बाबू जी को अपनी आशाएं धूल में मिल जाने का अफसोस था, लेकिन उन्होंने मरते दम तक शायद ये जानने की कोशिश नहीं की थी कि आखिर उनके सपने क्यों टूटे? उनका तो समूचा जीवन आदर्शवादी था । फिर सत्य ने विद्रोह क्यों किया था? मधु करने सिगरेट का कश लिया और सोच में हो गया ।

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मधुकर को सभी जीनियस कहते थे और वह था भी। लेकिन जीवन के हर मोर्चे पर वह असफल रहा। एक होनहार इंसान क्‍यों अपने जीवन से हार गया? क्‍या था इसका कारण? टूटा हुआ परिवार, सामाजिक व्‍यवस्‍था, विपरीत परिस्थितियां या खुद? यह उपन्‍यास जीवन के उतार-चढ़ाव और सामाजिक जीवन की सच्‍चाई को बताता है।
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