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राजा मान सिंह in  | undefined undefined मे |  Audio book and podcasts

राजा मान सिंह in Hindi

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AuthorRahul Singh Rajput
इंसान के हाथों होने वाले अपराध की सच्‍ची कहानियों को बयां करता यह उपन्‍यास रहस्‍य और रोमांच से भरा है।
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सूर्य साल की ऊंची उच्च पिछडों के पीछे टूट गया । नीली आकाश से नीचे उतरते गहरे अंधकार ने इस सारी वातावरण को ढडरियां । भिंड के घने वनों में गोधरौली तो लगा जैसी कोई चीज नहीं होती है । वहाँ सूर्यास्त के बाद एक दम खाना अंदर का अच्छा जाता है । पुलिस के दूर से बात ही पेड के नीचे बैठे थे । उनकी राय भले बास पडी थी, मुख्य गश्ती दल से बिछुडने के कारण तब हुए अपने आपको न जाने कितनी बार कोर्स चुके थे । अचानक कर्मों की आठ सुनाए थे और उन्होंने अपनी अपनी राय पहले उठाने घनी झाडियों के पीछे से निकल कर दो व्यक्ति उनके सामने धमक है । गौर ऍम सिपाहियों ने बैठक किया । किसान तुरंत उत्तर ऍम दोनों आगंतुकों में से एक बूढा था । साफ सफेद धोती और बंडी पहने था । मुख् पर सफेद दाढी मुझे थी और माधवी पर चंदन की और गले में इन जाप की माला झूठ नहीं नहीं शरीर का रिंदगी हुआ था । उमर को देखते हुए काफी फुर्तीला जवान जाना पडता था । दूसरा काले रंग का रिश्ता पुष्टि योग था । बच्चों यहाँ क्या कर रहे हैं और उस वृद्ध ने पूछा हम मान सिंह को पकडने निकले हैं । सिपाहियों ने बताया क्या महान सिंह वाकई इतना बुरा है अजी हमें इस से क्या लेना देना हमें तो उसे पकडने से मतलब है लेकिन हूँ उससे वृद्धि । किसान ने पूरी उसे पकडने वाले को पंद्रह हजार रुपए का पुरस्कार मिलेगा इसलिए उन दोनों में अधिक उमर के सिपाही ने जब दिया उस वृद्ध की इस तरह ऍम एक अच्छी बस कान से इसकी खून तो हो गए । लगता है तुम लोग सुखी नहीं भला क्या करोगे? और रुपयों का जवान लडकी घर में बैठी हैं उस की शादी करनी है मैं तेरा गरीब आदमी खर्चा कहाँ से उठा और दिन पैसे लिए कोई शादी के लिए तैयार नहीं होता । दाढी वाला व्यक्ति कुछ सोचता खडा रहा । फिर बोला बेटे घर जाकर लडकी की बिहार की तैयारी करूँ इस सप्ताह के खत्म होने से पहले तुम्हें पैसे मिल जाएंगे सिपाही जोर से आज बडा लेकिन उसकी कुछ बोलने से पहले ही भूख काला व्यक्ति आगे बढकर दर्जा जब जानते नहीं हो की तुम राजा मानसिंह से बातें कर रहे हो । सिपाही की हँसी एकदम हम कहीं दोनों का सपोर्ट हैं आपकी एक बार की बन गए धरती जैसे घूमने की उन्हें लगा जैसे साल की लंबी लंबी ऍम पर आगे देंगे वो व्यक्ति उनके सामने खडा मुस्कुराता ना उससे शक्तिशाली व्यक्तित्व के सामने हुए नहीं होगें । उन्होंने हाथ जोडकर सिर्फ चुका थे । कुछ देर बाद जब उन्होंने आंखे उठाएगा तो मान से चला गया था । ठीक एक सप्ताह बाद उसे गरीब सिपाही को अपने कमरे में कपडे का एक थैला मिला । उसे थैले में तीन हजार रुपये आखिरी मानसिक था । किस तरह का व्यक्तित्व था उसे? राजा मान सब क्यों कहा जाता था? चार । प्रदेश में जनता का एक काफी बडा वर्ग उसका नाम सुनते ही भक्ति विभोर क्यों हो जाया करता था । आखिर उसके बारे में ये धारणा क्यों बन गई थी कि वह कभी नहीं पकडा जा सकता हूँ । सत्रह सौ सिपाही थी हिंसा तक आठ हजार वर्गमील के क्षेत्र में उसे पकडने में लगे रहे हैं । उसे पकडने के अभियान में डेढ करोड रुपए खर्च हुए थे । उसे पकडने पर पंद्रह हजार रुपये का पुरस्कार भी था । मान सिंह की कथा अद्भुत और अकल्पनीय है । शब्दों में से शायद समझाया न जा सके । मान सिंह का जन्म अठारह सौ नब्बे में आगरा जिले के एक छोटे से गांव में राठौड खेडा में एक प्रतिष्ठित और संपन्न राजपूत परिवार में हुआ था । गांव में अधिकांश आबादी राठौर वन श्रीराजपूत हो गई थी । युवक मानसिंह गोगांव के पास के जंगल के एकांत में ही आनंद मिलता था । ग्रामीण होने के कारण से खेतों को जोतने होने का काम बहुत अच्छा लगता था । उसके पिता बिहारी सिंह का गांव में बहुत सम्मान था और उन्हें गांव का मुखिया माना जाता था । हालांकि नवाज सिंह मानसिंह से बडा था लेकिन पिता के बाद मान सिंह ने ही सारा कामकाज संभाला । मान सिंह का विवाह छोटी उम्र में ही हो गया था । भिंड जिले के उछल अंतपुर ग्राम के प्रतिशत परिवार में उसके चार लडके हुए हैं । जसवंत सिंह, सुविधा सिंह, तहसीलदार सिंह और गुमानसिंह और एक लडकी की शादी । चौबीस साल की उम्र में वो आगरा डिस्टिक बोर्ड के सदस्य और अपने गांव का मुखिया चुना गया । एक अच्छे नागरिक के रूप में प्रथम महायुद्ध के समय उसने सरकार की खूब सहायता की । उसका जीवन बहुत शांति से बीत रहा था । काफी जमीन होने की वजह से उसकी बहुत आमदनी थी । प्रशस्त ललाट वाला वो लंबा तगडा युवा, फिर झगडा, जगह सफेद ग्राम में कपडे पहन सिर पर ऊंची । पहली बात कर जब डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के सभाओं में ज्यादा था या मुखिया के रूप में चबूतरों पर बैठकर झगडों का अन्याय करता था, तब कौन चाहता था कि एक दिन यही व्यक्ति समाचार के माल से हटकर ऐसा रास्ता अपनाएगा की समाज इससे घटना करने लगेगा हूँ । ये सारे देश में बदनाम हो जाएगा और अपने जीवनकाल में ही दंतकथाओं का नायक बन बैठेगा । मान सिंह तो बडा बनने के लिए ही जन माथा उसका हर परिस्थिति ही कहता है लेकिन उन्नति का मार्ग सरल तो कभी नहीं रहा । समाज का तो यही नियम रहा है कि जब भी कोई व्यक्ति उन्होंने पत्थर पर अग्रसर हुआ तो उसके विरोधी सामने आए हैं । उसे नीचे गिराने के षड्यंत्र चाह रहे हैं । मान सिंह के साथ भी यही हुआ । ऍम किसी धूमकेतु की तरह उसके जीवन को नवस्थापित कर गया । मान सिंह के परिवार का इतिहास बताता है कि किस तरह एक मामूली झगडे ने गंभीर रूप लेकर गांव के शांत जीवन को नष्ट कर दिया । कहीं परिवार मिलकर हैं और बडे पैमाने पर डकैतियां वह खून खराबे हैं जिनके कारण चार राज्यों की जनता वर्षों तक लोग त्रस्त रहे हैं । हाँ, इससे पहले मानसिंह एक अच्छे नागरिक के रूप में खूब उन्नति कर गया । लगभग पंद्रह वर्षों तक ग्राम में समाज में उसका नाम का मनमोहन सिंह के पिता बिहारी सिंह और कल फिर राम में जमीन पर मुकदमेबाजी हो रही थी कि गांव में डकैती हो गए । दल पी राम ने इस मौके का फायदा उठाने की योजना बनाने वो बिहारी सिंह के प्रभाव और मानसिंह की योग्यता से बहुत जुडा हुआ था । उस चार लाख ब्राह्मण ने पुलिस के सामने बयान दे दिया कि उसका शक बिहारी सिंह और मानसिंह पर है । पुलिस को तल्फी राम की बात पर विश्वास हो गया क्योंकि मान सिंह का बडा भाई तो आपसे पहले ही आवारा जिंदगी अपना चुका था । हालांकि चोरी डकेती में उसका कोई आता नहीं था । पुलिस ने जांच शुरू की बाप बेटे दोनों से खूब पूछताछ की । कई बार थाने बुलाया गया । उल्टी सीधी बातें कहेंगे युवक मोहन सिंह का जवान खून ये अपमान ना सका उसके दिमाग में ये ख्याल बन गया की किसी न किसी तरह बदला जरूर लेना है । छोडना नहीं है । पूछताछ के बाद उन दोनों की निर्दोषता सिद्ध हो गई । पुलिस ने उनका पीछा छोड दिया । अब मान सिंह ने कल फिर आराम से बदला लेने की योजना बनाए । उसने अपने बेटों भाई नवाब सिंह, एक संबंधी रूपा और कई मित्रों को इकट्ठा करके उन्हें सौ अट्ठाइस में एक दिन दल फ्रीडम के घर पर हमला कर दिया । तल्फी राम को मान सिंह के इरादों की मानक मिल गई थी । इसलिए वो तैयार था । जमकर लडाई हुई । मानसिंह जीत गया चल । फिर राम की तरफ से कई व्यक्ति मारे गए । बहुत से घायल हुए । बस यही से मान सिंह का जीवन बदल गया हूँ । भूनना मुखिया था न गांव का सम्मानित नागरिक पूरा को मान सिंह के रूप में प्रसिद्ध हो गया । अन्य लोगों के साथ मान सिंह भी गिरफ्तार हुआ । उस पर हत्या का आरोप लगाया गया और आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई । एक मामूली से झगडे की इतनी भयंकर परिणाम नहीं । ये उसका पहला और अंतिम कारावास दर्द था । नवाब सिंह, जसवंत सिंह और उसका भतीजा दर्शन सिंह भाग निकले और लापता हैं । इधर मानसिंह सजा भुगत रहा था । उधर चल फिर हम अपनी हार का बदला लेने का अवसर खोज रहा था । मानसिंह के फरार साथी संबंधी मौका देखकर कभी कभार गांव में अपने घरवालों से मिलने आया कर देते हैं । एक शाम अंधेरा घिरने पर नवाब सिंह अपने साथियों के साथ अपने घर आया । तल्फी राम को खबर मिली तो उसने फौरन हल्ला बोल दिया । दोनों तरफ से गोलियां चलने लगी । लेकिन कोई फैसला होने से पहले पुलिसा पहुंचे । वो चतुर ब्लॅक तो अपने दल के साथ भाग निकला लेकिन नवाब सिंह फस गया । पुलिस के साथ हुई लडाई में मान सिंह का सबसे बडा लडका जसवंत सिंह और ऍम सिंह हमारे नवाब सिंह पकडा गया । मुकदमा चला और हत्या के आरोप में इनसे आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई । पुलिस को खबर देने वाला खेल सिंह मान सिंह का दूर का रिश्तेदार और दल फिर आपका साथ नहीं । उन्नीस सौ बत्तीस में जेल से छूटकर मान सिंह था । तब तक काफी कुछ बदल चुका था । उसके परिवार की प्रतिष्ठा समाप्त हो चुकी थी । गांव वाले उसका सम्मान करने के बजाय उससे आतंकी फिर रहने लगे थे । मानसिंह अब उम्रकैद की सजा गार्ड कर लौटा एक हत्यारा था । जिस समाज में वो कभी अपना सिर ऊंचा करके चलता था वहाँ अब नजरें उठाना भी सबको नहीं था । उसकी इस अपमान के लिए कौन उत्तरदायी था । उसकी सबसे बडे बेटे की मृत्यु का दायित्व किसपर था । तब फिर राम और खेम सिंह और उसने बदला लेने का निश्चय कर लिया । उसने कल फिर राम और खेम सिंह के परिवारों को सताना शुरू कर दिया । इन दोनों के संबंध इतने बिगड गए थे कि पुलिस ने शांति और सामाजिक सुरक्षा के आधार पर दोनों को गिरफ्तार कर लिया । सिंह को तो छोड दिया गया लेकिन मान सिंह को नहीं । इससे उसका क्रोध और अधिक बढ गया नहीं उन्नीस सौ चालीस को उसका पीड और फिर सिक्यूरिटी समाप्त हो गया । इसके बाद चार जुलाई की रात को अपने तीनों के तो रुपए और दूसरे साथियों के साथ उसने दुश्मनों पर हमला बोल दिया । कहा जाता है कि घूमने सिंह ने अभी तलवार से खेल सिंह के दो संबंधियों के सिर कतर दिए । ऍम के परिवार में केवल दो व्यक्ति बच्चे बाकी सब को काट डाला गया । अब मान सिंह के सामने भागने के अलावा और कोई चारा नहीं था । उसे उसके बेटों और साथियों को फरार अपराधी घोषित कर दिया गया बस से । इसके बाद धीरे धीरे मान सिंह के कारनामें बढते हैं । वो भारत के डाकुओं का आदर्श सरदार बन बैठा । समाज से भागने के बाद मान सिंह के सामने ये समस्या आए कि वो क्या करें, कहाँ जाए और कैसे जीवित रहे । आखिर उसने चंबल के दुर्गम बीहडों में अपना अड्डा बनाया । आठ हजार वर्गमील का ये भी है उत्तर प्रदेश, मध्य भारत विंध्यप्रदेश अब मध्य प्रदेश और राजस्थान की सीमाओं को छूते हुए फायदा है । इसमें यमुना, चंबल कुमारी और उनकी सहायक नदियां बहती हैं । सदियों से इन नदियों का पानी यहाँ की भूमि को बुरी तरह ऍम अपना मार्ग बदलता था । इसलिए इस साल क्षेत्र में बहुत बडी बडी खाइयां बन गई हैं । बरसात में हर खाई छोटी मोटी नदी बन जाती है और उस पर पानी आडा तिरछा घूमता हुआ जमीन कटा हुआ मुख्य धारा से मिलता है । इसलिए यहाँ भी घर में कोई रास्ता नहीं है । बस में खाडी, तिरछी पानी और दलदली खाइयों से घिरी पगडंडियां ही आने जाने का एकमात्र साधन है । बबूल की झाडी और घास के अलावा यहाँ कुछ नहीं था, इसलिए आबादी बहुत कम है । कहीं कहीं पे भी हर पांच सौ फुट तक पहुंचे हैं । इतना दुर्गम स्थान होने के कारण यहाँ अपराधी अक्सर छुप जाया करते हैं । खाइयों की प्राकृतिक बनावट ऐसी है कि अगल बगल की खाइयों में छिपे व्यक्ति महीनों एक दूसरे को पता चले बिना रह सकते हैं । किसी जानकार व्यक्ति की सहायता के बिना यहाँ किसी को ढूंढना असंभव है । इसलिए दुर्गमता की करण मानसिंह यहाँ इतने दिनों तक छिप सकने में सफल हुआ । किसी भी घर में मान सिंह के लडके, उसके परिवार के अन्य सदस्य और दूसरे साथी उससे आमिर हैं । इसके साथ ही उत्तर प्रदेश के लिए चरणा और श्यामा, राजस्थान के पृथ्वी, शंकर और धवन, मध्य भारत के सुल्तान लाखन और अमृतलाल तथा विंध्यप्रदेश के प्रताप देवीसिंह ना को सरदार अपने साथियों के साथ मान सिंह के पास आ गए । मान सिंह को सबने अपना सरदार मान लिया और वो राजा मान सिंह राठौड और फैलाने लगा । शुरू शुरू में दल के मुख्य शिखा दल फिर और गेंद सिंह के संबंधी ही रहे हैं । अधिकांश को बडी निर्दयता से मौत के घाट उतार दिया गया । जब खेमसिंह का पोता समाप्त कर दिया गया तो उसके परिवार का नाम मिल गया । धीरे धीरे इन लोगों ने अपनी कार्यवाहियों का क्षेत्र बढाया और ऐसा आतंक फैला दिया की बस लेकिन गरीबों को कभी नहीं बताया । आमिर और पुलिस के जांच शुरू से इनके शिकार बनें । हत्या, डकैती और अमीरों का अपहरण आम बात होगी । इतने बडे दल को रोज मगर की आवश्यकताओं के लिए पैसे की जरूरत पडती थी जिसे वो डकैती हुआ, लूटमार हुआ, डरा धमका कर वसूला करता था । इस तरह उन भी है और दलदली खाइयों । मेडा को मोहन सिंह ने अपना दूसरा जीवन शुरू किया और सुपर में जब उसकी मृत्यु हुई तो उस पर दो सौ से अधिक हत्याओं और कोई एक हजार डकैतियों के आरोप इन पंद्रह सालों में पुलिस से उसकी अस्सी बार मुठभेड हुई और वो हमेशा बच निकला तो गरीब शोषित जनता मानसिंह से वास्तव मिस नहीं करती थी । इसलिए गांव का हर घर उसके लिए छिपने का था और हर ग्रामीण उसका जासूस था, जो उसे हरदम पुलिस की गतिविधियों के बारे में सूचना देता रहता था । आखिर इससे डाकू सरदार में ऐसी क्या आवश्यकता थी कि जिसमें उसे किसानों में इतना लोकप्रिय बना दिया । जब उस की मृत्यु का समाचार प्रचारित हुआ तो बहुत सी अश्रु छलक आए और कई होठ बुदबुदा, राउंड राजा मानसिंह, आनंद युगों तक बने रहे हैं । इससे बात ही रॉबिनहुड में कोई चारित्रिक दोष नहीं था । वो कट्टर निरामिष फौजी था और शराब को छोटा तक नहीं था । उसे सादा जीवन पसंद था । उस की प्रवृत्ति एकदम धार्मिक हैं । उसने हमेशा गरीबों की सहायता के लिए ही अमीरों को लूटा, जबकि माला हमेशा उसके गले में रहती थी । रोज चाहे मौसम कैसा भी हो, सुबह सूर्य निकलने से पहले नदी में नहाकर घुटनों पाने में खडे रहकर मंत्र पाठ करता था और उगते सूर्य को अर्घ्य देता था । उसके बाद काली के मंदिर में जाकर देवी की पूजा करता था । वह कोई हत्या तभी करता जब बिल्कुल वर्ष हो जाता था तो उसने पुलिस के जासूसों की हत्या आएगी क्योंकि दब अपनी सुरक्षा का प्रश्न प्रमुख था । उसने केवल उन्हीं को लोटा जिनके पास सिर्फ फालतू था और फिर उस धन को मंदिरों और स्कूलों के निर्माण पर खर्च कर दिया । बहुत से मंदिरों में कांस्य की बडी बडी घंटियां लडकी हुई हैं, जो मान सिंह ने उन्हें दाल में दी थी । उन पर उसका नाम खुदा हुआ है । उसके बारे में बहुत सी कहानियां प्रचलित है कि कैसे उसने एक गरीब व्यक्ति की लडकी की शादी के लिए गुप्त रूप से पैसा दिया था । वैसे तो खतरा उठाकर हर साल रक्षाबंधन के दिन एक मिस्त्री के बाद जाया करता था क्योंकि एक बार उस स्त्री ने उसे भाई कहकर पुकारा था । हर साल पुलिस की घेराबंदी को चकमा देकर वो बटेश्वरनाथ के मंदिर में कुछ सौ के दिन पहुंचे, ज्यादा था । अक्सर गांव वालों के बीच बैठकर हुक्का गुडगुडाते उनके मुखिया के रूप में बात किया करता था । समझौता इन कहानियों में सत्य की अपेक्षा कल्पना कि रंग करेंगे, लेकिन फिर भी लोगों ने इन्हें बेहिचक स्वीकार किया है । वह इन्हें सकते हैं, मानते हैं और में जब तहसीलदार सिंह पकडा गया तो उसके पास एक डायरी मिली जिससे पता चला कि कभी अगर एक सेल दूध या गेहूँ भी खरीदा गया तो उसका पूरा मूल्य चुका कर ही लिया गया । उस डायरी में दल के प्रति दिन का खर्चा हो रहा था । कभी किसी दुकानदार को इस बात के लिए विवश नहीं किया गया की वो अपने माँ का काम बोले लें । यही कारण था कि उसने लोगों का दिल जीत लिया था । वो जहाँ भी जाता लोग अपनी आंखें बिछा देते थे । उसके सामने हाथ जोडकर खडे हो जाते थे । उसका व्यक्तित्व कब था, छोटा होता नहीं उसके बारे में भिंड मुरैना कि अपराध संबंधी कमेटी ने कुछ महत्वपूर्ण बात कहे थे । मंदिर भारत सरकार ने उन्हें सौ तिरपन में इस कमेटी का गठन किया था । मान सिंह का मामला इस क्षेत्र की विशेषताओं में मुख्य है । कहा जाता है कि उसे कोई चारित्रिक दोष नहीं था । यहाँ के विकली प्रशंसा पूर्ण स्वर में फुसफुसाते हुए उसके लोरो की कहानियां सुनते हैं । मुखबिरों और पुलिस के सिपाहियों को वो तभी माता है जब वे उसका पीछा करते हैं । उन्हें व्यक्तियों का अपहरण करता है जो काफी धनी हैं । अपने को आशीर्वाद देने वाले ब्राह्मणों का सम्मान करता है और कभी कभी जमीदारों को परेशान करता है कि वे उसके मनपसंद कम स्कूल के भवनों के निर्माण में सहायक बने । उसके प्रशंसक अक्सर कहा करते थे कि उसकी डकैती का ढंग बहुत ही गौरवपूर्ण है । राजस्व चुंगी और शिक्षा विभाग के अधिकारियों को वो कभी कुछ नहीं कहता था । वो बेहिचक युवाओं में समृद्ध होता था । हाँ, अब वो लापता हैं, इधर उधर भागता फिर रहा है । इससे सबसे एक बात स्पष्ट होती है कि थोडी चतुराई से कम लेकर निर्माण अपराधों के प्रति उभरने वाले संभाविक इंजन विरोध को भी काम किया जा सकता है । बदला जा सकता है । कमेटी की राह में अपराध के प्रति जनमत का दृष्टिकोण होने वाले अपराधों से अधिक नहीं है तो कम से कम उतना गंभीर तो है नहीं । स्वतंत्रता से पहले अंतर प्रदेशी और अंतरराज्यीय कानूनों की पेचीदी क्यूँकि कारण अपराधियों के लिए एक राज्य में अपराध कर के दूसरे में बाहर जाना बडा आसान था । उनकी रक्षा इसी से हो जाए थे । मान सिंह का तरीका बहुत सीधा साधा था उसके दल की एक छोटी टुकडी किसानों के वेश में नगर में खोलती नहीं । वो इससे तो में रहती थी कि किसी अमीर व्यक्ति का एक लाख डॉलर का मिल जाये तो उसका अपहरण करके उसके घर वालों से एक बडी रकम मांगी जाए । वहाँ से व्यापारियों का अपहरण करके उन्हें उसके बीहन साम्राज्य में ले जाया गया । वहाँ उन्हें अपने घरवालों को ऐसे पत्र लिखने पर विवश किया जाता है कि अगर हमारी खैरियत चाहो तो पत्र वहाँ को इतनी ही रकम दे दो । ऐसे बहुत से मामलों में पुलिस को कोई खबर नहीं मिली । मानसिकता दल बहुत अच्छी तरह संगठित था । हर सदस्य में इमानदारी और दल के प्रति स्वामीभक्ति की भावना कूट कूट कर भरी थी । चरणा मान सिंह के सरदारों में सबसे बैंक करता था लाखन सिंह । ऐसे दारा सिंह और देवीसिंह दूसरे नंबर बंद हैं । वो हमेशा अगली टुकडी का नेतृत्व करता था । कुछ मजबूत लोगों को झाट कर उसने उन्हें गुरिल्ला युद्ध की ट्रेनिंग दी थी और आधुनिक हथियारों का इस्तेमाल सिखाया । ये टुकडी दल के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हुई है क्योंकि ये हमेशा आगे चलकर पुलिस की गतिविधियों पर निगाह रखती थी और पुलिस की किसी भी आकस्मिक हमले का मुकाबला कर के मुख्य दल को भाग निकलने का अवसर दे देते हैं । मान सिंह अपने साथ सुदेव एक अंगरक्षक रखता था । वो किसी भूख है की तरह अपने सरदार के पीछे रहता था । अपराधी ही ओबामा में रहता था और उसके पास एक बन्दों को बरामद हुई जिससे ठीक उसी प्रकार की गोली फायर की जा सकती नहीं । डॉक्टर के पास तीन सौ तीन रायॅल और हथगोले जैसे आधुनिक हथियार थे और वह इनके प्रयोग में दक्षता ऍम सिंह माना हुआ निशानेबाज था । सब हथियार गैरकानूनी तौर पर प्राप्त किये गए थे और ये भारतीय सेना के थे । मान सिंह के एजेंटों ने हथियार जुटाए । पुलिसथानों पर हल्ला बोल कर भी उन्हें प्राप्त किया गया था । उन्नीस सौ पचास तक की स्थिति किए थे की आठ हजार वर्ग मिलके उस बीहर पर मान सिंह का आबाद शासन था । वहाँ की जनता उसे प्यार करती थी । उस पर श्रद्धा रहती थी । आतंकी तिन रही थी उस की हर आज्ञा मानती थी । मान सिंह जिस तरह बेहिचक गांव वालों के बीच बैठ कर बातें किया करता था उसके साथ ही जनता के साथ जिससे ईमानदारी और भाईचारे का व्यवहार करते थे और पुलिस से मुठभेड में उसका दलन जैसी वीरता दिखाता था, उन सबसे मान सिंह को लेकर दंतक करता है । प्रचलित होते देर ना लगी वो नायक बन बैठा हूँ । जनसाधारण की दिल में बसा वो व्यक्ति अपने ढंग का जीवन बिता था । हर व्यक्ति हर समय उससे मिल सकता था । अमेरिका से आए एक हमें है कि पत्रकार को उसका इंटरव्यू लेने में कोई परेशानी नहीं हुई तो उसे मान सिंह का शस्त्रागार भी दिखाया गया । इसके बाद मानसिंह अमेरिका में भी प्रसिद्ध हो गया । उसके द्वारा की गई हत्या है, उसके भीतर सच्ची जाती थी । डकैतियों को दान कार्य समझा जाता था क्योंकि वह दान दिया करता था और जब उन्नीस सौ सैंतालीस में देश आजाद हो गया, मान सिंह का दल सारी रात खुशियाँ मनाता था । उस अवसर पर सरकार ने बहुत से कैदियों को मुक्त कर दिया । उनमें नवाब सिंह था कैसे छूटते ही वो गांव गया, कहीं से बंदूक हथियाई और दल फिर आम के अंतिम दो संबंधियों को मार कर अपने भाई से आ मिला । इन राठौर भाइयों ने ऐसा उग्र प्रतिशोध लिया की तरफ फिर राम और खेम सिंह के वंश में कोई नामलेवा भी ना बच्चा हूँ । जिस व्यक्ति ने मुकदमों में उनके दल के विरुद्ध गवाही थे, मान सिंह ने से निर्ममता पूर्वक समाप्त कर दिया । मजिस्ट्रेटों ऍम को तब की आती है । स्वतंत्रता के बाद हिंडाल्कों का आतंक समाप्त करना अनिवार्य हो गया । लेकिन जब स्थानीय पुलिस इस दिशा में कुछ अधिक नहीं कर सकी तो कई स्थानों पर इस काम के लिए पीएसी के दस्ते तैनात कर दिए गए हैं । लेकिन डाकुओं को पीछा करना और पकडना कोई आसान काम नहीं था क्योंकि वह आधुनिक हथियारों से लैस थे और उनके प्रयोग में दक्षिण थे और फिर मान सिंह जैसे सहयोग नेता का नेतृत्व मिलने के साथ साथ उन्हें गरीब जनता का सहयोग भी प्राप्त था । कई बार सशस्त्र मुठभेडे हुई जिनमें दोनों ओर से लोग मारे गए । इसके साथ ही डाकू दल ऐसे सब व्यक्तियों को मारने पर सुना था जिन्हें वो पुलिस के जासूस समझता था हूँ । निसंदेह ऐसी कई व्यक्तियों को निर्ममतापूर्वक मार डाला । क्या नतीजा ये हुआ कि मुखबिर मिलने असंभव हो गए । गांव वालों ने सहयोग करने से इंकार कर दिया क्योंकि वह मान सिंह की भक्ति करते थे । साथ ही मानसिंह जिस बीहड क्षेत्र में छिपा था उसकी जानकारी न होने की वजह से पुलिस का काम बहुत मुश्किल हो गया और फिर मान सिंह व्यक्तिगत रूप से कभी कभार ही डाक्टरी में जाता था जहाँ राज्य के निश्चित भाग में इंजीनियर डाकोर क्षेत्र में राजा मानसिंह का राज्य का आ जाता था । यदि मान सिंह के दल के अलावा कोई दूसरा डाक्टरल डाॅकृति डालता था तो उसे लूट का कुछ प्रतिशत नजराने के रूप में मान सिंह को देना पडता था । डक्कू सरदार की आय का मुख्य साधन यही नजराना बन गया में अधिकारियों ने मान सिंह को पकडने का काम गंभीरता से करना शुरू किया । अंतरराज्यीय अडचनें दूर करके उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य भारत और विंध्य प्रदेश की सरकारों ने मिलकर पुलिस के सत्रह सौ चुनिंदा जवानों की एक टुकडी तैयार की है । इसका काम केवल डाकुओं का सफाया करना था । ऑपरेशन मानसिंह पूरी तेजी से शुरू कर दिया गया और पुलिस के डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल के अधीन बडी सोच कोशिश से इसका काम आगे बढाया गया । सीआईडी के बहुत से जासूस सादे कमरे में बीहड के आस पास के गांव में फैल कर मान सिंह की गतिविधियों की तो हो लेने लगे तब कोडल भी सत्तर हो गया और उसने भी कई सुरक्षात्मक तरीके अपनानी । डाकू दो दिन से अधिक कही नहीं लिखते थे हमेशा भागते रहते थे । उन्नीस सौ इक्यावन में जासूसों ने खबर दी कि खूंखार चरणा राजा खेडा गांव में अपनी पत्नी से मिलने आएगा । आप क्या था घेरे की तैयारी होगी । चलना अपने साथियों के साथ घर में घुसा ही था कि साठ सिपाहियों ने मकान खेल लिया । इस तरह घर जाने पर डाकुओं ने गोलियां चलानी शुरू करते हैं । पुलिस ने भी जवाब दिया चौबीस घंटे तो ये गोलाबारी अविराम चलती रहे । जब ये देख लिया गया कि डाकू आसानी से हार मानने वाले नहीं है तो और कुमुक मंगाई गई । पीएसी के चार सौ सिपाही आ पहुंचे । गोलियाँ चलती रही । एक और चौदह डाकू थे और दूसरी ओर पुलिस के विशेष रूप से प्रशिक्षित । चार जो जवान लेकिन फिर भी उन्होंने आत्मसमर्पण नहीं किया । अशोक गैस के गोले फेंके गए, लेकिन कोई असर ना हुआ । चरणा हार मानने को तैयार ना हुआ । बहत्तर घंटे बीतने पर फौज की डोगरा सैनिक बुलाए गए । उन्होंने रूप से दो गोले मकान पर डालते हैं । ये काम था उससे खंडहर मकान में नीरव ताज आ गए हैं । मलबे में चौदह डाकुओं के शो तो मिल गए, लेकिन चरणा का पता चला वो बच निकला था । चौदह विश्वासी साथियों ने अपने सरदार को बच निकलने का मौका देने के लिए अपनी जानें होम करते हैं । दो साल बाद उन्नीस सौ तिरपन पुलिस के साथ हुई दस घंटे की लडाई में है और डाकुओं के साथ चलना भी मारा गया हूँ । जानना की मृत्यु से मान सिंह का सबसे विश्वासी सरदार झेल गया ऍम जीने में हुई छिटपुट मुठभेडों में पुलिस ने और बहुत से डाकुओं को घायल कर दिया जहाँ सूसू ने खबर दी कि घायल लोगों को इलाज के लिए चंबल के बार इटावा में ले जाया जाएगा और डाक मान सिंह कुंवर खेर के बिहार में छुपा हुआ है । ये सारा इलाका तुरंत घेर लिया गया और नदी तट पर तथा तीन और स्थानों पर बहरा लगा दिया । दो दिन तक डाकुओं के बारे में कुछ पता नहीं चल सका । घेरा लगा रहा और पुलिस की एक टुकडी धीरे धीरे आगे बढ ही रहे हैं । दोपहर तक वो एक खाई के किनारे पहुंच गए । सिपाहियों ने एक आदमी को चिल्लाते हुए सुना बाबा पुलिस ने हमें घेर लिया है । इस पर किसी वृद्ध असर नहीं होता दिया, सुविधा करना को मार दी और बाकी सब तैयार हो जाए । करना पुलिस का जासूस था जिसे डाकुओं ने पकडा गया था । तभी गोली चलने की आवाज सुनाई दी और सब चुप हो गए । बाद में गन्ना का मित्र शरीर एक लोग ओर पडा मिला । शरीर पर गोली का निशान था । कुछ बात खाई में डॅान और तीन सौ तीन रायफलों से पुलिस कर गोलियाँ चल रही है नहीं सिपाहियों ने भी तुरंत आर्लेकर जवाबी हमला शुरू कर दिया । दोनों ओर से हथगोले फेंके गए । कुछ देर तक थोडा कोने डटकर मुकाबला किया लेकिन पुलिस का परिणाम मारी था । इधर जवान ज्यादा थे । पुलिस के हमले ने डाकुओं को खाई से बाहर आने पर विवश कर दिया । आप भी आना लेते हुए इधर उधर भागने लगे । जब ये इस तरह कर लेते हुए भाग रहे थे तो उनमें से कईयों को पहचान नहीं किया । उनमें से दो मान सिंह और रूपा थी । दोनों डाॅॅ चला रहे हैं । ढाई बजे तक लगातार गोलियाँ चलती नहीं । थोडी देर बाद पुलिस ने देखा कि पांच डाकुओं की है तो पूरी खाई से निकल कर भाग रहे हैं । उनमें से एक लाख घोडी पर सवार था । ये ऍम सिंह था । बाद में उसे पकड लिया गया । उसके पास से पांच सौ बोर की दोनाली बंदूक बरामद भी । वह बचकर भाग नहीं सका क्योंकि पहली छिटपुट झडप नहीं । उसके पैर में चोट आ गए हैं । चलना की मृत्यु ने राजा मानसिंह को कमजोर हो गया जैसे युवराज सिंह की गिरफ्तारी ने उसका दिल तोड दिया । लाखन सिंह का व्यवहार उसे निराश करके लाख और उसका जमाई था । जब वो जेल में सजा भुगत रहा था । तो उसकी पत्नी चांदी किसी से डाकू की ब्रेन में पड गए । महम सिंह को इसकी भनक लगी तो उसका सौ बेमानी मान ने विद्रोह कर उठा । उसने रानी के प्रियतम को मौत के घाट उतार दिया । जब लाखन सिंह लौट कर आया और उसे अपनी पत्नी के दुष्ट चरित्र का पता चला तो उसने अपने ससुराल से संबंध तोड लिया । अलग होकर डाका डालने लगा हूँ मानसिंह तेजी से बुड्ढा हो रहा था । उसके तीन विश्वासी सरदार उससे छीन गए तो उसे अपना भविष्य अंधकार में दिखाई दिया । वो उस गुजार जीवन से ऊब गया था । चोरी, डकैती और रक्तपात से घबरा उठा था । उसका मन चाहता था कि वो आराम की जिंदगी बिताएं । उसका भी घर हो जहाँ वो अपना अच्छे से जीवन बता सके । उसने भारत सरकार को एक स्मरणीय पत्रलेखा उसमें लिखा कि वो हत्यारा नहीं है, उसे डाक्टरो । समझना है अपनी इच्छा से उसने ये सब नहीं किया । परिस्थितियों ने उसे भी वर्ष कर दिया था । अगर सरकार से छमा कर दे तो वो आत्मसमर्पण के लिए तैयार हैं । उसने यहाँ तक कहा कि अगर सरकार दूसरी तथा उसके दल को मुक्त करते तो गोवा को विदेशी शासन के पंजे से छुडाने के लिए तैयार है लेकिन सरकार ने ठीक कदम उठाया । उस पत्र का कोई उधर नहीं दिया गया । मान सिंह के सामने कोई चारा नहीं था । तहसीलदार सिंह गिरफ्तार हो गया । चलना मारा गया और लाखन ने साथ छोड दिया तो बाकी डाकुओं का धीरज जाता हूँ । पुलिस की सफलताओं और रोज की घेराबंदी से उनके दिमाग में ये बात बैठकें की वो जरूर पकडे जाएंगे । अब हर एक को अपनी सुरक्षा की चिंता सताने लगी । दलगत संगठन की भावना धीरे धीरे तो चल ही था और एक एक कर सकते लगे । उन्होंने राजा को ऐसे समय छोडा जिस समय से उन सब की ज्यादा जरूरत है । अंत में केवल अठारह व्यक्ति उसके साथ रहेंगे हैं । जिन्होंने अंत तक उसका साथ दिया । उनमें से उसका बडा भाई नवाज सिंह, सुविधा सिंह और रूपा भी नहीं । निराश मानसिंह घायल शेयर की तरह इधर उधर मरा मरा ऍम जो लोग तहसीलदार सिंह की गिरफ्तारी की उत्तरदायी थे, उन पर उसकी खूब बिजली बनकर टूट पडा । केवल अठारह व्यक्तियों के साथ ही उसने ऐसा तहलका मचा दिया की सत्रह सौ जवान भी कुछ नहीं कर सके क्योंकि रहेंगे उन्हें से चौदह कुछ । डाकुओं ने पुलिस को खबर दी कि मान सिंह मर गया । खबर आपकी दही से मैं राष्ट्र ने चैन की सांस लिया । चलो बता नहीं पता चला कि भरवाना गांव में इसका अंतिम फिफ्टी संस्कार भी कर दिया गया हूँ । सरकारी घोषणा ने भी इस की पुष्टि कर दी । सब प्रसन्न होते हैं लेकिन अभी इससे प्रसन्नता को पाला मार गया खबर मिलेगी । मान सिंह ने एक डाका डाला है वो अभी जिंदा है । मारा नहीं । निराशा अधिकारियों ने इस खूंखार शेर को पकडने की दया दिया फिर से शुरू करते हैं । मध्य भारत के गृहमंत्री दीक्षित ने नवंबर में राज्य विधानसभा में घोषणा की कि अगर एक साल में मान सिंह और उसके दल को समाप्त न किया तो मैं त्यागपत्र दे दूंगा । इस काम के लिए उन्होंने सिपाहियों का एक से दस था तैयार किया । उसमें अधिकांश ये बात बिल्कुल कुत् रखी गई और बडे बडे अधिकारियों को भी मान सिंह की मृत्यु से पहले इसके बारे में कुछ पता नहीं चला । उत्तर प्रदेश सरकार ने मान सिंह को जिंदा या मुर्दा पकडने वाले को पंद्रह हजार रुपए का पुरस्कार देने की घोषणा की । मैं से ये बात बहुत अजीब लगती है लेकिन ये सत्य है कि पुलिस के पास मान सिंह का फोटो रखी थी नहीं था । उस क्षेत्र की सिलसिलेवार खोजबीन करते हुए पुलिस ने फरवरी उन्नीस सौ बचपन में उसे मुरैना जिले में देख लिया । गोलियां चली और कुछ देर बाद गड्डा को पीछे हट गए । वे मेरे पीछे कुछ स्टेनगन छोड हैं । हालांकि मानसिंह घायल हो गया था लेकिन फिर भी वो बच निकला । पुलिस अब तेजी से उसका पीछा कर रहे थे । डाकू दल के दिन प्रतिदिन गतिविधियों की सूचना मिल रही थी और उन के आधार पर पुलिस से आगे बढ रहे थे । अगस्त के पूरे एक सप्ताह तक पुलिसदल पीछा कर दे रहे हैं । सत्रह अगस्त को उसने दल को घेरने की कोशिश की लेकिन असफल रहे । अग्नि शाम तक चंबल के बीहडों से बाहर आने वाले सब रास्तों की नाकेबंदी कर दी गई । इक्कीस अगस्त को मान सिंह भिंड जिले में चला गया और उसे पवाई गांव में देखा गया । कुमारी नदी में बाढ आई हुई थी इसलिए वो दूसरी ओर नहीं आ सकता था । आखिर पच्चीस अगस्त को अंतिम भिडंत हुई है । पुलिस के जासूसों ने खबर दी की मांग सिंह मिल नगर से पांच में दूर भोजापुर गांव के बाद से देखा गया है । ऍफ के तीन प्लाटूनों की एक टुकडी कमांडर चेहली के नेतृत्व में जल्दी कि चिड भरे ऊबड खाबड रास्ते पर चलकर जब ये लोग भोजपुरा के बाहर पहुंचे तो मान सिंह ने उन्हें देख लिया और पहला हुआ घटिया मानसिंग सबसे अच्छा निशा निवास था जमाना हरभजन सिंह की कमांड में सैनिकों की टुकडी ने दामी करूँ और रायफलों से जवाब दिया आधे घंटे की भयंकर गोलाबारी के बाद जिसमें पटाखों की कोई आठ सौ राहुल चलाए, मान सिंह को पूरी लगते हैं वो गिर पडा । तब राजा के शरीर के लिए घमासान युद्ध छिड गया । अपने पिता के शरीर को पुलिस के हाथों से बचाने के लिए सारी सावधानी भूलकर सुविधा सिंह तेजी से आगे मांगा और तुरंत गोलियों से छलनी कर दिया गया । वो तो वो कर अपने पिता के पैरों पर गिरकर घायल रूपा नवाब सिंह हुआ । अन्यता को बच देखें आखिर व्यक्तिका हो गया जिसने पंद्रह वर्षों तक पुलिस को परेशान करना था । उत्तर भारत के सारे समाचार पत्रों ने मुख्य समाचार के रूप में मान सिंह की मृत्यु का विवरण प्रकाशित हुआ हूँ । चारों राज्यों में कुख्यात डाकू की मृत्यु घोषणा के लिए इस्तिहार प्रकाशित किए हैं । मान सिंह और सुविधा सिंह की गोलियों से छलनी शरीर कडे पहरे में भी ऍम खडी मुद्रा में चारपाइयों से बात कर उन्हें प्रदर्शन के लिए रख दिया गया । भिंड और आस पास के जिलों से कोई चालीस हजार भी देखते हैं । बहुत से व्यक्तियों ने राजा को अपनी अंतिम श्रद्धांजलि थी । सत्ताईस अगस्त को ये शरीर ग्वालियर ले जाएंगे । वहाँ लगभग साठ हजार व्यक्तियों ने भी नहीं देखा । मान सिंह को पकडने पर सरकारों ने तीन वर्ष तक प्रतिमाह अस्सी हजार रुपए खर्च किए । वैसे इसमें संदेह है कि मान सिंह ने इससे आधी दौलत भी लूटी होगी । मान सिंह की विधवा ने राठौर खेडा से दावा दायर किया कि इसके पति और पुत्र की मृत्यु शरीर उसे मिलना चाहिए ताकि उनका अंतिम संस्कार किया जा सके । तो तहसीलदार सिंह ने जैसे पिटिशन दायर किया कि उसे अपने पिता के मुखाग्नि संस्कार करने की अनुमति मिलनी चाहिए । मध्य भारत के गवर्नर ने दोनों ही आवेदन अस्वीकार कर दी है । सत्ताईस अगस्त को ही मृत शरीर शमशान घाट ले जाया गया । चारों ओर पुलिस का कडा पहरा था । जब शरीर भस्म नहीं हो गए । पुलिस के जवान खडे हैं । पुलिस विभाग में मान सिंह से संबंधित रिपोर्टों का वजन कोई एक टन है जिनके अनुसार उस पर एक हजार डकैतियों और दो सौ से अधिक हत्याओं के आरोप हैं । वैसे ये कहना मुश्किल है कि जितने अपराधों का आरोप उस पर लगाया जाता है तो उसने उसने किए होगी । मान सिंह के अधिकतर शिकार थे उसका पीछा करने वाले सिपाही, जासूस और बडे बडे रही गरीबों को उसने कभी नहीं बताया । आपने शान के खिलाफ कोई अच्छा काम भी नहीं किया । उन्नीस सौ सैंतालीस में मुक्त होने पर जब नामुराद सिंह उसके पास पहुंचा तो का भी बूढा हो चुका था, दुर्बल था और आंखों से बहुत कम देखता था । वो दल के लिए एक बार बन कर रह गया था । उसने कई बार मान सिंह से कहा कि उसे मारते क्योंकि रोज रोज इतना सफर करना उसके वर्ष का नहीं था । लेकिन मान सिंह ने उसकी बात नहीं मानी थी और आपने निर्मल भाई को बेसहारा नहीं छोडा था हूँ, हूँ नहीं ।

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इंसान के हाथों होने वाले अपराध की सच्‍ची कहानियों को बयां करता यह उपन्‍यास रहस्‍य और रोमांच से भरा है।
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