Made with  in India

Buy PremiumDownload Kuku FM
Part 5 in  | undefined undefined मे |  Audio book and podcasts

Part 5 in Hindi

Share Kukufm
197 Listens
Authorबालिस्टर सिंह गुर्जर Gurjar
जिम्मेदारी किसकी? Voiceover Artist : Maya Author : Balistar Singh Gurjar Producer : Kuku FM Voiceover Artist : Maya S Bankar
Read More
Transcript
View transcript

आप सुन रहे हैं कुछ कोई फिल्म आरजेएम आया के साथ सुनी जब मन चाहे जिम्मेदारी किसकी लेखक, बाली स्तर सी गुज्जर भ्रष्टाचार से भ्रष्टाचार तक धर्म एक प्रकार से वो चीज है जो की हर प्राणी को जीवन जीने की कला सिखाती हैं । आदिकाल से लेकर वर्तमान तक जितनी भी काम होते आए हैं, वो भी कहीं ना कहीं किसी एक धर्म विशेष में बंद कर ही होते आए हैं । चाहे कोई अच्छा काम हो, चाहे कोई पूरा कर हर काम का, किसी ने किसी धर्म से जरूर ही कुछ न कुछ संबंध होता हैं । यदि हम आज कोई अच्छा काम करते हैं तो वहाँ हमारा एक अच्छा धर्म होता है । इससे ठीक विपरीत यदि हम कोई पूरा कर्म करते हैं तो वहाँ भी हमारा एक धर्म अथर, राक्षसी प्रवृत्ति का धन अवश्य ही होता है । धर्म संबंधी मामलों में आज के समय में यदि हम ज्यादा से ज्यादा गहराई में चले जाएँ तो पूरे विश्व में हिंसक घटनाएं तुरंत ही घटित होने लगती हैं । सभी धर्म के लोग अपने अपने धर्म को ही सही ठहराते हुए एक दूसरे पर कीचड उछालने लगते हैं । फिर इसका अंततः यही परिणाम होता है की राजनीति भी धर्मों के मसले में अपनी राय देने लग जाती हैं । राजनीति जब धर्म संबंधी मसलों में की जाने लगती हो तो वहाँ धर्मों की परिचर्चा और भी ज्यादा होने लगती हैं । हर तरफ पूरा का पूरा माहौल गरमाने लग जाता है । इसीलिए ऐसी स्थिति में विश्व शांति कायम रखने के उद्देश्य से यही कहना उचित हो जाता है कि जहाँ धर्म की परिचय दिया होने लगे, वहाँ किसी भी प्रकार की राजनीति को बीच में नहीं लाना चाहिए । इसलिए ऐसी स्थिति में विश्व शांति कायम रखने के लिए उस उद्देश्य के लिए यही कहा जाना उचित होगा कि जहाँ धर्मों की परिचर्चा होने लगे, वहाँ किसी भी प्रकार की राजनीति को बीच में नहीं लाना चाहिए । पूरे विश्व में ज्यादा से ज्यादा लोग किसी ने किसी धर्म को अवश्य ही मानते हैं । ऐसी स्थिति में हर राजनयिक कई करते होना चाहिए कि कभी भी किसी भी धर्म के ऊपर भडकाऊ किसमें के भाषण नाते इसके ठीक वितरि । ये पूरे मानव समाज की जिम्मेदारी मुख्य रूप से होनी चाहिए कि जब भी कोई राजनीतिज्ञ किसी भी धर्म पर गलत तरीके से अपनी राय दी तो उसकी बातों को नजरअंदाज कर दिया जाए । उस राजनीतिज्ञ का बहिष्कार जरूर किया जाए । धर्मों के ऊपर राजनीति करने वाले राजनीतिज्ञ वास्तव में वह राजनीति ये होते हैं जो कि वोट बैंक वाले सिद्धांतों को अपनाते हैं और एक राजनेता की कुर्सी पर विराजमान होते हैं । राजनीति करने का सिद्धा सा मतलब यही होता है कि सभी लोगों को समान दृष्टि से देखा जाए न कि जाति वर्ग, समुदाय के लिए दृष्टि से देखा जाए । यही एक श्रेष्ठ राजनीति का आदर्श गोल होता है । आज अगर धर्म की को रीतियों के कारण किसी को कोई क्षति पहुंचती है तो ये हमारा कर्तव्य होना चाहिए कि हमें अपने आप में बदलाव लाना होगा । विश्व का कोई भी धर्म खराब नहीं होता, अगर खराब है तो सिर्फ हमारी सोच । धर्म एक और जहाँ इंसान को प्यार के बंधन में मानता है वहीं दूसरी ओर हमें मानवता का रास्ता भी ली खाता है । इसीलिए धर्म सिर्फ इंसानों का ही नहीं होता, अन्य जीव जंतुओं का भी होता है । अगर हम अपने धर्म का ठीक ढंग से अवलोकन करें, कहाँ में किसी भी धर्म में कोई भी पूरी थी दिखाई नहीं देगी । इसीलिए ये कहना उचित ही होगा कि हमारी सोच की को रीतियां मानव समाज के धर्मों और जातियों की कोरिंथिया बन जाती हैं । आज के समय में धर्मों के कारण बढते अत्याचारों को मद्देनजर रखते हुए अब तक कम से कम हमारे ये जिम्मेदारी होनी ही चाहिए कि हमें अब अपनी सोच को मानवता भरी सोच में बदल देना चाहिए । तभी इस संसार में हर इंसान के लिए खुशियाँ संभव हो पाएगी । भ्रष्टाचार मान लो, आज के समय तक कडवा यथार्थ हैं या फिर आज के समय की मांग हैं । सरकारी अस्पताल हो या प्राइवेट अस्पताल का दिल्ली वीरू जो पट्टी हो या सांसद का वातानुकूलित कक्ष, शिक्षा ग्रहण करने वाला विद्यार्थी हो । चाहे शिक्षा देने वाला शीर्षक हो, गंगा का पवित्र जल हो, चाहे क्षीर समुद्र का खारा पानी, मानव हर तरफ भ्रष्टाचार का नारा ही गूंजता रहा हो । ऐसा है कुछ वर्तमान में हर किसी को प्रतीक हो रहा है क्योंकि इससे आज कोई भी अछूता नहीं रहा है । सरकारी कर्मचारी से लेकर निजी व्यवसाय तक हाईकोई भ्रष्टाचार में लिप्त थी नजर आता है । अब सवाल यह उठता है कि जब हर कोई भ्रष्टाचारी है, चाहे सरकारी कर्मचारी हो, चाहे निजी व्यवसाय हो तो फिर भ्रष्टाचार की मार झेल कौन रहा है? अगर हम इसके उत्तर के रूप में कहें कि भ्रष्टाचार की मार आम जनता झेल रही हैं, तब भी हम कहीं न कहीं गलत साबित हो सकते हैं । अगर आम जनता भ्रष्टाचार की मार झेलती रही होती है । फिर तो कहीं ना कहीं से तो भ्रष्टाचार की आवाज सकती, लेकिन यहाँ पर सब कुछ स् इंसान भरी स्थिति में नजर आता है । मानो ईश्वर नहीं तो सबका गूंगा बना दिया है या थे । भ्रष्टाचार की मार झेलने वाला ही खुद भ्रष्टाचारी है । ऐसा ही कुछ आज प्रतीत हो रहा है । फिर ये कैसे कह सकते हैं कि आम जनता भ्रष्टाचार को जेल रही हैं? ऐसी स्थिति में तो फिर यही कहा जाना चाहिए कि न तो कहीं भ्रष्टाचार है, न कहीं भ्रष्टाचारी हैं । अगर कुछ है तो बस यही है कि हम भ्रष्टाचार का नारा लगाकर यूँ ही देश की छवि खराब करने पर उतारू हो रहे हैं । अब सोच तो वहाँ और अधिक होने लगता है, जब विश्व मंच पर भ्रष्टाचार की सूची में विश्वगुरु कहलानेवाले भारत का नाम भी दिखाई देने रहता है । ऐसी स्थिति में तो हमारी ऐसे बुरी स्थिति हो जाती है कि हम चाहते हुए भी भ्रष्टाचार संबंधी बातें किसी अन्य देश के नागरिक से नहीं कह सकते, क्योंकि हम विश्वगुरु में निवास करने वाले नागरिक है और भ्रष्टाचार की सूची में हमारे भारत देश का जो नाम जुडा है, आज भारत की स्थिति है । जो भी हो, चाहे रिश्वत देने वाला भ्रष्टाचारी हो या फिर रिश्वत लेने वाला भ्रष्टाचारी हो, हमें से कोई फर्क पडता हो चाहे न पडता हो, लेकिन भारत की भ्रष्टाचारी हालत जब अन्य देश के लोग देखते हैं तब जरूरी भारत नामक शख्स पर बहुत ज्यादा फर्क पडता होगा । क्योंकि भारत जब की छवि पूरे विश्व में विश्वगुरु के नाम से दर्ज है, ऐसी स्थिति में अन्य देश यही सोचते होंगे कि भ्रष्टाचार जब स्वयं भारत में हो रहा है, फिर हमें भी इस मार्ग पर चलना होगा । इस में हमें कोई संकोच नहीं करना चाहिए । इनकी भारत हमारा गुरु है और गुरु के आदर्श पर चलना हमारा फर्ज है । लोगों को ऐसी बातें मजाक लगती होगी, लेकिन हकीकत यही कहती है कि चाहे मानव समाज के उच्च आदर्शों, चाहे विज्ञान का विकास सभी की सफलता का मार्ग भारत की शिक्षा से ही संभव हो सकता है । फिर अगर विश्व के कोई देशों में यदि भ्रष्टाचार है तो उनसे हमें कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए, क्योंकि उन्हें शिक्षा देने वाले हम सभी भारतवासी हैं । अगर हम चाहते हैं कि विश्व मंच पर भ्रष्टाचार बंद हो जाए तो ये काम बहुत ही आसान है । अगर हम भ्रष्टाचार बंद कर दें तो पूरा विश्व भ्रष्टाचार से मुक्ति पा जाएगा क्योंकि हम विश्वगुरु ठहरे जब रश टाचार से मुक्ति पा सकता है क्योंकि हम जो आदर्श तथा जो शिक्षा हम विश्व को देंगे वहीं शिक्षा पूरा विश्व ग्रहण करेगा । एक बहुत पुरानी कहावत इस प्रकार से हैं कि अगर एक तालाब में एक गंदी मछली हो तो वह पूरे तालाब को गंदा कर देती है । मान कर चलिए अगर तालाब की सारी मछलियां मिलकर उस गंदी मछली को ही तालाब से बाहर निकाल दी तो कैसा रहेगा । निश्चित ही पूरा का पूरा तालाब ही गन्ना होने से बच जाएगा । यही कहना उचित होगा ना, लेकिन बाद यही तक सीमित नहीं है । अगर एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर सकती हैं तो इसका सीधा सा मतलब यही हुआ कि ताला के अन्य मछलियों को भी उससे कोई परेज नहीं और सारी मछलियां एक गंदी मछली का साथ देने के लिए तैयार है । तभी तो तालाब गन्ना हो रहा है ना और सहयोग भी पूरा मिल रहा है । ऐसी स्थिति में यही कहना उचित होगा की अगर बुराई से किसी को कोई आपत्ति ही नहीं है तो सभी बुराई से सहमती होंगे क्योंकि बुराई कितनी भी बडी क्यों न हो उसे सिर्फ एक छोटी सी अच्छाई ही मिटा सकती है । अगर मैं जरूरी ऐसी सोच में पड गए होंगे कि जब छोटी सी सच्चाई तथा अच्छाई की किरण बडी से बडी बुराई को मिटा सकती है तो फिर ये भ्रष्टाचार, रूपये बुराई अभी तक मीडिया क्यों नहीं? क्या कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाला है ही नहीं? अब यदि हम ये कहें कि कई बार तो भारत में भ्रष्टाचार के खेला आवाज उठाई गई थी, फिर भी भ्रष्टाचार क्यों नहीं मिलता? लेकिन अफसोस यही है कि इतनी आवाजें भ्रष्टाचार के खिलाफ उठी और उसका परिणाम आज क्या हुआ? भ्रष्टाचार कम तो नहीं हुआ लेकिन बढा जरूर । फिर क्या उन उठने वाली आवाजों में सच्चाई नहीं थी? या फिर वह सब एक विज्ञापन ही था? यही प्रश्न हमारे मन में बोल सकता है । जब बडी से बडी बुराई एक छोटी सी छोटी अच्छाई की किलकारी से मिल सकती है । तब फिर ये भ्रष्टाचार तो फिर ये भ्रष्टाचार इतनी आवाजें उठने के बाद भी क्यों नहीं रहा? यही तो चिंता का विषय है कि किसी बीमारी का जब इलाज किया जा रहा हो और वो बीमारी ठीक होने की बजाय और भी ज्यादा बढने लगती है । एक और जहां भारत सरकार भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए करोडों रुपये दाब रही है वहीं दूसरी ओर भ्रष्टाचार और भी ज्यादा अमीर हो रहा है । ऐसी स्थिति में यही कहा जा सकता है कि क्या भारत सरकार को अपने सर्वे में ये नहीं देखता कि भ्रष्टाचार बढ रहा है या घट रहा है क्योंकि इतना धन बेवजह भ्रष्टाचार रोकने के नाम पर व्यय किया जा रहा है । अगर यही तरीका सही है तो फिर ये विश्वास करना ही पडेगा की इस तरह भ्रष्टाचार मिलने वाला नहीं है लेकिन भारत जरूर मिल जाएगा । अगर हम आदिकाल या प्राचीनकाल के समय के मनीषियों की बात करें तो हम पाएंगे कि उस समय भ्रष्टाचार का नाम तो कोई जानता ही नहीं था और ना ही कोई पहचानता था । असल में उस समय के मानव की सभ्यता सिर्फ मनुष्य के नैतिक मूल्यों पर आधारित थी और नैतिकता उनकी पहचान हुआ करती थी । यही कारण था कि प्राचीनकाल में न तो कोई भ्रष्टाचार था और न ही अन्य प्रकार की कोई कोरी दिया थी । अगर हम भ्रष्टाचार पर थोडा सा गौर करें तो हम पाएंगे कि जब मनुष्य को आवश्यकता से अधिक धन अर्जित करने की लत लग जाती हैं तब वहाँ मनुष्य अपने आचारों का उल्लंघन करने लगता है और उसकी बेईमान एसे धन अर्जित करने की लत भ्रष्टाचार कहलाने लगती है । वहाँ नैतिकता का तो कोई मूल्य ही नहीं रह जाता । ऐसी स्थिति में नैतिकता का झाड होने लग जाता है । वैसे भी इंसान के हिरदय रुपये मंदिर में सिर्फ एक ही चीज रह सकती है या तो अच्छाई या फिर बुराई एक रिश्वत लेने वाला व्यक्ति । ये ठीक तरह से जानता है कि मैं रिश्वत लेकर गलत काम कर रहा हूँ । लेकिन वह चाहते हुए भी वहाँ कुछ नहीं कर सकता है क्योंकि उसने अपने दिल और दिमाग में भ्रष्टाचार नामक बुराई को जस्थान दे कर रखा है । ठीक इसी तरह रिश्वत देने वाला भी सब कुछ जानते हुए भ्रष्टाचार की सूली चढ जाता है । यही कारण है कि भ्रष्टाचार ने आज अपने पैर हर तरफ फैला रखे हैं । उदाहरण के तौर पर अगर हम अपने देश का रुपया गैरकानूनी रूप से स्विस बैंक में जमा कर सकते हैं तो वह काला धन रूपी भ्रष्टाचार हुआ और अगर हम व्यापारी हैं तथा हम अपने उत्पाद एमआरपी से अधिक मूल्य पर बेचते हैं तब भी हम भ्रष्टाचारी लिस्ट में ही शामिल हुए । कहने का तात्पर्य यही है कि गैर जिम्मेदारी से कमाया गया धन भ्रष्टाचार ही कहलाता है । यही कारण है कि आज भ्रष्टाचार की मैं नीजि व्यवसायी से लेकर सरकारी दफ्तर तक आती हैं और इसका कान जिम्मेदार नहीं है । इसके बारे में किसी को कुछ अच्छे भी पता नहीं है । ये आज की एक कडवी हकीकत है । किसी भी देश को ठीक से संचालित करने के लिए वहाँ की शासन प्रणाली अति महत्वपूर्ण मानी जाती है । लेकिन जब शासन प्रणाली ही भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाए तो वहाँ या तो सरकार भ्रष्टाचारी हैं या फिर जनता । यही कहना उचित होगा इसके कई प्रत्यक्ष उदाहरण ना में देखने को मिलते हैं । जब रेलवे स्टेशन पर हम टिकट लेने जाते हैं और हमारा टिकट अगर नौ रुपये का है । हाँ, वो टिकट अधिकतर स्थिति में निश्चित थे । दस रुपये में मिलता है ऐसी स्थिति में अगर टिकट काटने वाला भ्रष्टाचारी है और वो हम से एक रूपया खुलने न कहने के कारण बहाना बनाकर वापस नहीं करता तो हम भी अपनी शान के खाती एक रूपया उससे वापस नहीं मांग लेती । हम सोचते हैं कि एक रुपये से हमें कौन सफर पडने वाला है । एक रुपया तो हम भी कार्य को विधान देते हैं । यहाँ दो बाते सामने आ जाती हैं । पहले तो ये के टिकट काटने वाला सरकारी कर्मचारी तो भ्रष्टाचारी है ही साथ में दूसरी तरफ हमने और उसके हौसलों को पंख लगा दिए हैं ताकि वह एक रुपया हर इंसान से रोजाना लेकर एक दिन में हजार रूपये गैर जिम्मेदारी से कम मानसकि । अब हम के हैं कि भ्रष्टाचार बहुत ज्यादा है तो क्या हम सही है? ऐसी स्थिति में हम सरकारी कर्मचारी को भ्रष्टाचारी कहेंगे या फिर अपने आप को इसका जवाब शायद ही किसी के पास हो सकता है । हमें अपनी जिम्मेदारी का अंदाजा तो उस समय भी लग जाता है जब रेलवे स्टेशन पर मिलने वाली उदाहरण के रूप में आठ रुपये की चाय हम बिना संकोच दस रुपये में खरीदी लेते हैं थे । ऐसी स्थिति में हम ये कैसे कह सकते हैं कि सामने वाला भ्रष्टाचार पहला रहा है । हमारा भी उसमें शामिल होना नहीं है । अगर हम जो चीज नौ रुपये की है उसको केवल नौ रुपये में ही खरीद रहे हैं तथा दस रुपये देने के बाद हम सामने वाले से एक रुपया मांग भी रहे हैं । तब जरूर ही हम ये कह सकते हैं कि हाँ भ्रष्टाचार अब नहीं है । कहने का सीधा सा मतलब यही है कि अगर सामने वाला भ्रष्टाचारी है और अगर हम अपनी जिम्मेदारी ठीक तरह से निभा रहे हैं तो फिर वहाँ भ्रष्टाचार यानी कि भ्रष्ट आचार नहीं होता । वहाँ तो सिर्फ हमारी जिम्मेदारी ही दिखाई देती है । अगर भ्रष्टाचारी भ्रष्टाचार फैलाने की सोचता है, वो कहीं न कहीं हमारी लापरवाही को नजर अंदाज करते हुए ही सोचता है । जब तक हम ढोल में ढंग का नहीं मारते तब तक ढोल की आवाज भी नहीं आती थी । इसी तरह से यहाँ ढोल का संबंध भ्रष्टाचारी से हैं और हमारा संबंध डंग कैसे हैं? जब हम अपनी जिम्मेदारी ठीक से निभाएंगे तभी भ्रष्टाचार मिक सकेगा वरना ढोल में ढंग का पडता रहेगा और भ्रष्टाचार यु ही बढता रहेगा । सरकारी कर्मचारी चाहे छोटा हो या फिर बडा, ये सभी की जिम्मेदारी बनती है कि वे अपना उत्तरदायित्व थी, ढंग से निभाएं ताकि हमारे देश में आने वाले विदेशी पर्यटकों को लगे कि वास्तव में भारत महान है, अगर मान कर चलिए हम सरकारी कर्मचारी हैं और ये भी हम अपनी जिम्मेदारी का ठीक ढंग से निर्वाह कर रहे हैं तो निश्चित थी भारत में न तो भ्रष्टाचार रहेगा, अन्ना ही भ्रष्टाचारी रहेंगे । असल में बात यही है कि जब तक हमारा शासन अपनी जिम्मेदारी थी, तरह से नहीं निभाएगा तो फिर आम जनता तो नियम तो रही या थे । इसके विपरी आम जनता चाहे तो वह भी भ्रष्टाचार को मिल जा सकती है । बस जरूरत है तो सभी को अपनी अपनी जिम्मेदारियों को ठीक तरह से निभाने की । जब तक चालीस ताली नहीं बचेगी तब तक आवासी उत्पन्न नहीं होगी । वैसे ही भ्रष्टाचार की समस्या के समाधान के लिए कोई वैज्ञानिक तरीका तो है ही नहीं । नहीं हो सकता है कि भ्रष्टाचार एक प्रकार से नैतिकता पर आधारित होता है या फिर हम ये कहें कि हमारी मानवता ही भ्रष्टाचार को परिभाषित करती हैं । अगर हमारी मानवता अच्छी है तो फिर भ्रष्टाचार है ही नहीं । आज अगर हम भ्रष्टाचार संबंधी वार्ताएं करते हैं तो हम बडे आश्चर्य में ही पढते हैं कि ऐसा कल योगी भ्रष्टाचार शायद ही कभी उत्पन्न हुआ होगा । हम भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जितनी भी वार्ता करना चाहे उतनी ही कम है । क्योंकि आज तो सभी जगह भ्रष्टाचार है । चाहे राजनीति हो, शासन प्रशासन व्यवस्था हो, रेलबस, परिवहन, अस्पताल, कोर्ट कचेहरी हो, पुलिस मुक्तिधाम, शराब का ठेका व्यवसाई चाहे स्कूल ही क्यों न हो, हर तरफ भ्रष्टाचार रूपी दानव मौजूद हैं । शायद यही वजह रही होगी कि कभी कभी मीडिया और फिल्मों का सेंसर बोर्ड भी इससे पीडित नजर आता है । अगर किसी एक जगह भ्रष्टाचार हो तो हम उसका समाधान में निकाल सके । लेकिन यहाँ तो आपको छह भ्रष्टाचाररोधी हैं और तौर जिस मंच विशेष पर भ्रष्टाचार रूपी वार्ता हो रही होती है वह मंच मीटर भ्रष्टाचार से पीडित नजर आता है । फिर हम बच कहाँ जाते हैं और फिर कैसे इस भ्रष्टाचार, रुपये दानों का नाज कर पाएंगे? जब हर तरफ ये मौजूद हैं जिसमें आज मानवता तक का नाश कर दिया हो, उसका तो सिर्फ एक ही उपाय है कि हमें अपने विचारों को बदलना होगा तथा आवश्यकता से अधिक धन अर्जित करने की अपनी प्रवृत्ति को त्यागना होगा और मानवता तथा नैतिकता के गुणों को अपने हिरदय में लाना होगा । तब जाकर भ्रष्टाचार रूपी दानव देश और दुनिया को छोड पाएगा । अन्यथा ये आज इतना क्रूर बन चुका है कि इसके कारण कोई भूख खर्च होता है तो कोई निर्दोष होते हुए भी अपराधी बन जाता है । कोई आठ आठ होता है तो कोई भारत नामक शब्द पर सस्ता है । अगर हम चाहते हैं कि पूरा विश्व इससे स्वतंत्र हो जाए तो सबसे पहले हमें इसे मिटाने की शुरूआत करनी होगी और ये शुरुआत अपने देश यानि कि भारत देश से ही करनी होगी क्योंकि भारत आज खुद इससे बहुत पीडित है तो फिर बाकी देश तक पीडित है ही । अगर भारत भ्रष्टाचार से मुक्त हो जाएगा तो आप निश्चित ही मानी कि पूरा विश्व इससे मुक्त हो जाएगा क्योंकि दुनिया भारत के आदर्शों पर चलती हैं । अगर हम बुरे हैं तो दुनिया भी पूरी होगी । अगर हम सही है तो दुनिया भी सही ही होगी । भला हम विश्वगुरु जब है ।

Details

Voice Artist

जिम्मेदारी किसकी? Voiceover Artist : Maya Author : Balistar Singh Gurjar Producer : Kuku FM Voiceover Artist : Maya S Bankar
share-icon

00:00
00:00