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अगले दिन जब गोपी कुमार नागार्जुन कोंडा जा रहा था तो सौजन्या अचानक ही मार्ग में मिल गई । वो एक चट्टान पर बैठी हुई थी और उसके चेहरे पर दुख के चिन्ह थे । जब उस के करीब पहुंचा तो उसने क्रोधित आंखों से उसे देखा । तुम मेरे दुख का मजाक उडाने आया हूँ । मुझे अकेला छोड दूँ । मुझे किसी की सहायता नहीं चाहिए क्या हुआ? उसने पूछा कुछ नहीं मुस्कुराया, तुम्हें कुछ नहीं हो सकता । लेकिन तुम्हारा चेहरा पीडा से सिकुड हो रहा है । क्या हुआ एक छोटा सा कीडा मेरी टांग करा बैठा था । मैंने उसे नोचा और पर ये फेंक कर मार डाला । लेकिन थोडी देर बाद ही मेरी टांग में दर्द होने लगा । अभी सूज गई है और मेरे लिए चलना फिरना भी कठिन हो गया है । वो घुटनों के बल बैठ गया और उसके पापा को देखने लगा । एक छोटा सा सुराख था जिससे खून बह रहा था लेकिन सारा आता हूँ । बुरी तरह सूज गया था । सूजन पर उंगली रखते ही उसके मुंह से कराह निकल गई । उसने आकाश की ओर देखकर उंगली के संकेत करते हुए कहा, जब सूरज वहाँ था, एक घडी बीत गई थी । उसने अपनी छोटी सी पोटली खोलकर एक जडी निकली जो कत्थई रंग के साफ जैसी थी । उसने छोटा सा चिकना पत्थर निकाला और उसे ठीक से गिला कर जडी को उस पर रगडने लगा । फिर जरा सी लुगदी लेकर उसने काटी हुई जगह पर लगा दिए ये क्या चीजें? सौजन्या ने पूछा । इसे सर्पगंधा कहते हैं । ये जड है । नागार्जुन कोंडा के निकट मिली थी । साफ या साहब की जाती के दूसरे जीवों के काटने पर इसे लगाने से बहुत लाभ होता है । मैं इसे सादा अपने पास रखता है । मुझे सापों से बहुत डर लगता है । कितनी देर बाद में चलने फिरने लगूंगी । थोडा समय लगेगा तब तक मुझे यहीं बैठे रहना पडेगा । हाँ, लेकिन तुम मारना चाहूँ तो बैठे रहने की कोई जरूरत नहीं । उठो और चल पडो वो क्रोध से उसे देखने लगी । तुम कहाँ जा रहे हो? नागार्जुन कोंडा क्यों? मुझे वहाँ कुछ काम है वो उत्सुकता से उसकी ओर देखने लगे तो तो मुझे यहाँ के लिए छोड जाओगे । अगर तुम चाहो क्या वहाँ जाना बहुत जरूरी है? हाँ, तब मैं नहीं रोक होंगी । कब तक लौटेंगे शाम तक इतनी जल्दी? हाँ इतनी जल्दी कैसे लौट सकते हो? थोडी देर बाद कोंडा गिरी पहुँच जाऊंगा वहाँ से घोडा लेकर बाकी रह घोडे पर चलूंगा । तुम्हारे लौटने तक यही रहूँ । अगर तुम चाहो तो मैं प्रतीक्षा करूंगी । वो उठ खडा हुआ और उस की ओर देखता हुआ तेजी से आगे बढ गया । सौजन्या उसकी प्रतीक्षा में बैठी रही । उसे भूख लगाई और प्याज के मारे उसका गला सूख गया । उसके पांव की सूजन उतर गई थी और अब दर्द भी नहीं रह गया था । शाम होने तक उठ चलने फिरने लगी और थोडी देर बाद चट्टानों पर चढकर दौड रही थी । अपने कहे अनुसार गोपी कुमार लौट आया । वो साथ में कुछ खाने की सामग्री और पीने का पानी भी ले आया था । उसे देखते ही वो बहुत खुश हुई है । दोनों ने साथ साथ खाना खाया और फिर आराम करने लगे । चंद निकल आया था और उसके पहले हुए प्रकाश में एक अजीब चमक थी । उन दोनों में काफी देर तक कोई बातचीत नहीं हुई । कितनी देर तक यहाँ बैठे रहेंगे? सौजन्या ने पूछा थोडी देर फिर हम कोंडाडू को चल पडेंगे । तुम्हारे पांव का क्या हाल है? चल फिर सकती हूँ । थोडी देर पहले मैं चट्टानों पर खुद रही थी तो मैं खोजना नहीं चाहिए था । दर्द शुरु हो सकता है । मैं बिल्कुल ठीक हूँ । चांदनी में सौजन्या का सौंदर्य देखकर गोपी कुमार के शरीर में सिहरन दौड गई । क्या कराई नागार्जुन कोना में? स्वजन ने पूछा । एक नए प्रकार का पौधा मिला था, उसे दिखाने के लिए गया था । उन्होंने मुझसे कहा है कि वे उसकी जांच करेंगे और बाद में बताएंगे । क्या तुम स्वयं काम नहीं कर सकते थे? मुझे तुम्हारा ध्यान था, नहीं तो मैं वहीं रुक गया होता । सौजन्या की देह हल्की सी बन गई और उसे कुछ अजीब सा महसूस होने लगा । क्या तुम्हें मेरी बहुत चिंता है? बहुत अधिक उसने भर्राए स्वर में उत्तर दिया । सौजन्या को उसका स्वर्ण और आंखों का भाल अच्छा नहीं लग रहा था । उसे कठिनाई महसूस हो रही थी । अब चलें । वो उठ खडी हुई । उसने निकट पहुंचकर सौजन्या के कंधों पर हाथ रखती है । सौजन्य उसने बहुत धीरे से कहा । सौजन्य अचानक भी होती थी । वो बहुत व्यवस्था महसूस कर रही थी । नहीं यहाँ से चलो । उसने कहा । गोपी कुमार ने तेजी से उसे अपनी और घुमा लिया और आलिंगन में बांध कर अपने होट उसके होठों पर रखती है । वो एक शेरनी की तरह अपने को छुडाने का प्रयास करने लगी । लेकिन उसकी राक्षसी पकड इतनी मजबूत थी की छोडा नहीं पाई । वो उसके होठों को दांत से काटने लगा । खून बह निकला । सौजन्या ने छूटने के लिए बहुत संघर्ष किया । पहले उनसे मारती रही और फिर नाखूनों से उसे नोचने लगी । गोपी कुमार के चेहरे का कुछ हाँ उसके नाखूनों में अटक गया लेकिन उसकी पकड ढीली नहीं हुई । फिर उसने गोपी कुमार के छाल के वस्त्र फाडने शुरू की लेकिन वो और समर्थन थी । इस संघर्ष में विजय पाना उसे असंभव लगा । गोपी कुमार ने उसे बुरी तरह जकड रखा था । एक पुरूष जिस तरह अपनी स्त्री को बांध लेता है और प्रेम की अंतिम परिणति तक नहीं छोडता, ऐसी ही उसकी पकडती । इस घटना के बाद गोपी कुमार ने कबीले में सौजन्या को कई बार देखा । वो बाहर नहीं जाती थी । उसकी आंखों में एक अजीब सा भाई समझ आ गया था । वो धीरे धीरे मुरझाती जा रही थी । लगता था जैसे वो कभी नहीं खेल पाएगी । उसे किसी वस्तु में रूचि नहीं रह गई । उस की इस स्थिति से गोपी कुमार बहुत दुखी हुआ और एक दिन उसके पास जा पहुंचा । मैं तुमसे विवाह करना क्या तुम्हारे पिताजी से पूछूँ नहीं? कभी नहीं । विवाह से पहले मैं मरना अधिक पसंद करूंगी । सौजन्या मैं तुम से प्रेम करता हूँ । जो कुछ हुआ है उसका मुझे बहुत दुख है । जाओ, चले जाओ यहाँ से वो लाये । गोपी कुमार अब उदास रहने लगा । लोग उसकी इस स्थिति पर बहुत चिंतित है । लेकिन गौरीनाथ को सब पता था । मैं सोच भी नहीं सकता था की तुम इस प्रकार के आदमी निकलोगे । मुझे तुम पर गर्व है लेकिन गोपी केवल सौजन्य ही क्यों? और लडकियाँ भी तो है । जाओ उन्हें पकडो और भोगू अपने पिता से ऐसी बातें सुनकर उसी घृणा हुआ है । उसे खुद अपने से भी घृणा हो गई और कभी ले के प्रति भी उसके मन में ऐसी भावना थी । तभी एक दिन वो घूमता हुआ नागार्जुन कोंडा जा पहुंचा । हाँ लेकर वो अपने पाप का प्रायश्चित करने लगा । इसके बाद अजंता चला गया । वो अब एक गंभीर व्यक्ति था और उसे केवल रोगी व्यक्तियों को स्वस्थ करने में रूचि थी लेकिन जीवन में उसे कभी खुशी नहीं मिली । बद्री यही मेरी कहानी है । बद्री नारायण ने अपना चेहरा दूसरी ओर भेज दिया । पूरा हो रहा था गोपीय कैसा पाते जिसका प्रायश्चित भी नहीं । लेकिन मैं प्रायश्चित करूंगा अवश्य करूंगा । गोपी कुमार उसे सांत्वना देता रहा । समय सारे घाव भर देगा कहकर वह चला गया । वर्षा ऋतू के समाप्त होने पर प्रेमकुमारी लौटाई और आते ही जीवन बिहार चली गई । बद्रीनारायण को इससे बहुत चोट पहुंची । वो दुखी हो उठा । कुछ समय बाद उसके मन की कडवाहट और भी बढ गई । प्रेम कुमारी की घृणा कम नहीं हुई थी । जब उसने प्रेमकुमारी से मिलने का प्रयत्न किया तो वह मुंह फेरकर चली गई । उसका चेहरा कठोर था और हॉट पीछे हुए थे । बद्रीनारायण ने सांडों वाले चित्र को अंतिम रूप देकर प्रेमियों वाले चित्र पर काम करना शुरू कर दिया । लेकिन उसका हाथ काम नहीं कर रहा था । लगता था जैसे पत्थर की तरफ भारी हो गया हूँ, उसमें हार मानकर चित्र बनाने का विचार छोड दिया । वो प्रेमकुमारी की सहायता लेना चाहता था । लेकिन जब वह उससे कहने गया तो उसने कोई करना दिया । वो आनंद के परित्याग वाले चित्र में परिचारिकाओं, महल के दृश्यों, घोडों और पृष्ठभूमि में हरियाली को चित्रित करने में लगी हुई थी । उसने मरती हुई राजकुमारी को भी चित्रित नहीं किया था । बद्रीनारायण बहुत निराश हो गया । उसने क्षमा भी मांगी और प्रायश्चित करने का वचन भी दिया । लेकिन प्रेमकुमारी ने उसकी बातों पर जरा भी ध्यान नहीं दिया । अब वह एकांत में रहने लगा । उसमें हर किसी से मिलना जुलना बंद कर दिया और बहुत शांत हो गया । चीजों में उसकी रुचि समाप्त हो गई । वो सोच में डूबा निर्जन पहाडियों में भटकने लगा । स्वयं से उसकी घृणा निरंतर बढती जा रही थी । एक दो बार उसके मन में आत्महत्या का विचार भी आया हूँ, लेकिन साहस उसमें नहीं था । फिर उसने अपने को अपनी कोठरी में बंद कर लिया । अंतर के रोग से ग्रस्त वो बिस्तर पर लेटा हुआ चुप चाप सोच में डूबा रहा था । बोझिल दिन लडखडाते हुए कुछ कर रहे थे और तब एक दिन उसकी आंखों में विचित्र कठोरता लौटाई । वो उठ खडा हुआ । उसके जबडे बीचे हुए थे और वह बहुत निर्मम दिख रहा था । चौंधियां देने वाली रोशनी में वो वाघोडा नदी के तट पर खडा हुआ हूँ । उसका चेहरा पीना पडा हुआ था और चेहरे पर थकान के चिन्ह हैं । लेकिन उसकी आंखों में एक दृढ निश्चय था । बिहार का एक भाग उसने अपने लिए चुन लिया । दिनभर वो मचान बनाने में जुटा रहा हूँ । जो भी उसकी सहायता के लिए आया, उसने उसे चिल्लाकर भगा दिया । जब सब सो गए तो दीपक के प्रकाश में उसने चट्टान को छीलकर समतल बना लिया । इतने परिश्रम के बाद भी उसके दृढ निश्चय में कोई कमी नहीं आई । रात बीत गई सूरज निकल आया लेकिन वह थका नहीं, आंखों की जलती वाला मध्यम नहीं पडी । वो बाहर जाकर एक प्याला ले आया और उसमें चिकनी मिट्टी, गोबर आदि डालकर घोल तैयार करने लगा । दोपहर तक घोल तैयार हो गया । कुछ ही लेकर समतल चट्टान पर उसने ये गोल फैला दिया । फिर उसके ऊपर सफी दी की एक परत जमा थी । तब वह रंगों की ओर बढा हुआ । धीरे धीरे समय बीतने लगाओ दिन ढला हूँ । रात हुई । अनेक दिन अनेक राते भी थी । बद्रीनारायण धीरे धीरे सावधानी से चित्र बनाने में लगा रहा है । बाकी रेखाएं मोटी तथा लाल रंग में खींची थी । कमल पर बुद्ध आसीन थे । शांत और करना नहीं ऊंचा मस्तक गहन चिंतन में डूबे हुए भू स्पष्ट मुद्रा में बुद्ध के चारों ओर अनेक लपटी हुई । आकृतियाँ नहीं । स्त्री पुरुषों और पशुओं की आपका उनमें से एक डायन भी थी जिसकी नाक मुडी हुई थी और उसकी आंखें बाहर निकलने को थी । एक राक्षस था जिसका सिर मेढे का था और जो बहुत ही भयानक लग रहा है । सील मछली जैसे चकत्तों और सिर वाला एक डाॅॅ भद्दी आकृति वाला एक योद्धा था जो प्रहार करने के लिए हाथ में तलवार उठाये हुए था । बहस के सिर और मनुष्य के शरीर वाला एक देते था, चौडे हूँ और फटी हुई आंखों वाला एक बोना था । घृणा से सिकुडा चेहरा लिए कठोर मुखाकृति वाला एक सेनाध्यक्ष था हूँ । एक व्याभिचारी पुरुष की आकृति भी नहीं । विकृत आकार वाली एक मनुष्य आकृति थी जो एक स्त्री पर बलात्कार करने को झपट रही थी । एक ओर सात सुंदरियां आंखों में प्रेम का निमंत्रण लिए हुए खडी थी । उनकी आंखों में निर्लज्ज वासना थी और शरीर के उठान आह्वाहन कर रहे थे । उनमें से एक सुरा डाल रही थी और दूसरी तेज के आनंद की ओर संकेत कर रही थी । तीसरी अपने स्तनों को आज से ऊपर उठाये हुए उत्तेजित मुद्रा में नहीं और चौथी अपनी चिबुक पर तर्जनी रखे कटाक्ष कर रही थी । उन स्त्रियों के अंग अंग और हावभाव से वासना जैसे छू रही थी । उन स्त्रियों में पुरुष को जंगली पशु और राक्षस बना देने की क्षमता दिख रही थी । उनमें मसलता थी और किसी को भी भस्म कर देने वाला सौंदर्यता, भारी नितम्बों और उन्नत उरोजों वाली इन स्त्रियों में वासना साक्षात रूप लेती मालूम पडती थी । क्यों की ओर भी अनेक भयानक और भद्दी आकृतियां थी । एक आकृति की नाक नहीं थे और उसके मुंह से एक सांप बाहर निकल रहा था । मार की पूरी सेना वहाँ थी । बुद्ध को सत्य के मार्ग से विचलित करने के लिए उन्हें अनेक प्रलोभन देते हुए दिखाया गया था । लेकिन बुद्ध अपने मौन गंभीरता और ज्ञान के कारण तनिक भी विचलित नहीं हुए । सारी आकृतियाँ बेचैनी से आगे लगती हुई प्रतीत हो रही थी । मार स्वयं भी विचलित था । बुद्ध पर विजय पाने में उसका हर प्रयत्न और सफल हो गया था । बद्रीनारायण एक विक्षिप्त की तरह चित्र पूरा करने में जुटा रहा । किनारों पर लाल रंग भरने के बाद उसने उस पर पूरी मिट्टी की एक हल्की सी परत जमा थी । इस परत में से लाल रंग बाहर छलकने लगा । बाय रेखाओं को उसने कत्थई रंग में एक बार फिर से अंकित किया और साथ ही बिंदु और पत्र भी आंकलित किए थे । इससे चित्र में तीसरा आयाम उत्पन्न हो गया । उसके हाथों में आकर रंग जादुई रूप धारण करने लगे थे । धातु, राग, कुमकुम, हरी ताल, काजल, श्वेत नील, कपोल हरित, पूरा सभी रंगत चमदार और पारदर्शी होकर उभर आए । चित्र में प्रवाह और सजीव थी । किसी तरह की अश्लीलता नहीं, एक गरिमा थी । आध्यात्मिक शक्ति और बहुत टिकता के अद्भुत सम्मिश्रण के कारण रेखाओं में सहज प्रवाह था । बद्रीनारायण ने भोजन और जल ग्रहण करने से मना कर दिया था । वो सोता भी नहीं था । उसके गाल भस् गए थे और हड्डियां भराई थी । आंखें कटोरों में धंस गई थी । बहुत कमजोर और दुबला हो गया था । हर व्यक्ति उसी के बारे में बातें कर रहा था । वो क्यों अपने को मार रहा है? लोग सोचते उसका व्यवहार हर एक के प्रति कठोर हो गया और वह किसी को अपने पास फटकने नहीं देता था । आचार्य विज्ञानानंद बहुत चिंतित होते थे । बीमार वृद्ध आचार्य पद मदद उसकी स्थिति देख भयभीत हो गए थे । प्रेमकुमारी बहुत परेशान थी और घबरा रही थी । बद्रीनारायण सबके लिए एक पहली बन गया था । हर व्यक्ति उसकी ओर है और आश्चर्य से देखता था । वृत्तचित्र पूरा होते ही बद्रीनारायण ठक्कर धरती पर गिर पडा । आचार्य विज्ञानानंद उसे अपने कक्ष में ले गए और दूध तथा फल देकर उसकी सेवा सुश्रुषा करने लगे हैं । बुद्ध बिहार तीर्थस्थान बन गया था । अनगिनत लोग बुद्ध और भयानक प्रलोभन चित्र को देखने के लिए आने लगी । देवपाल का सहारा लिए आचार्य पद मदत भी कुछ चित्र को देखने आए । देखते ही उनके मुंह से निकला है बस जो मैं देखना चाहता था आज देख लिया । निश्चय ही ये एक महान कलाकार की कृति है । देवपाल कहने लगा वो अमिताभ कुछ मरणशील भ्रमों के जलसे उभर शक्ति और विजय के सिंहासन पर । आत्मज्ञान की राजसी मुद्रा में तो मासी हो प्रेमकुमारी चित्र देखकर रोने लगी । बद्रीनारायण को उसके दुर्व्यवहार के कारण दुत्कारा था । वो फिर चालू होती है । उसे चोट पहुंची थी । इस कारण उसने उसे भी चोट पहुंचाई । चित्र देखकर उसे बद्रीनारायण की गहरी चोट का अनुभव हुआ । उस रात उसके पागलपन को कुछ जान गई और अब निराशा को भी । वह समझ के ये सब महसूस करके वो बद्रीनारायण के पास पहुंचे । वो मृतप्राय पढा बच जाएगा । क्या ये जीवित रह पाएगा? उसने आचार्य विज्ञानानंद से पूछा, ये सब इसी पर निर्भर है । स्वयं ये जीवित नहीं रहना चाहता हूँ । बहुत दुखी है । इसे बहुत चोट पहुंची है । वो बद्रीनारायण की ओर देखने लगी । बद्री मुझे बहुत दुख है । मैं फिर शालू होती थी । मुझे क्या कभी क्षमा नहीं करोगे? बद्रीनारायण ने कोई उत्तर नहीं दिया । उसने आंखें खोली और छत की ओर देखने लगा । छत पर बहुत सुंदर बेलबूटे बने हुए थे । बद्री मुझसे गलती हो गई । मुझे क्षमा कर दो । उसके हाँ खिले लेकिन स्वर नहीं फोटा । वो उस की ओर नहीं देख रहा था । उसकी दृष्टि ऊपर छत पर लगी हुई थी । बद्री मैं जान गई की तुमने ये सब क्यों किया? आचार्य पद मदत ने बताया कि यौन भावना ऐसे ही विचलित कर देने वाली भावना है । उसके होट फिर ही लेते हैं, लेकिन कोई शब्द निकला जैसे वह समाधि में हूँ । निरंतर छत की ओर ही उसकी दृष्टि लगी रही । पत्रिका बाद तुम्हारे वर्ष से बाहर की थी । तुम व्यवस्थि मैं जानती हूँ । कोपी कुमार ने मुझे सब कुछ बता दिया । उसने बताया कि मनुष्य अपनी इच्छाओं का बंदी हो जाता है और अपनी इच्छाओं के दमन से दमित पुरूषत्व की यंत्रणा में वो अपने को ही खाने लगता है । उसने अपनी आंखें मूंद ली । केवल उसकी छाती हिलती हुई दिख रही थी । सारे अंग पूरी तरह से शिथिल हैं ।
Producer
Sound Engineer