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आचार्य ने प्रेमानंद को आदेश दिया प्रेमानंद ने बताना शुरू किया कला का पहला अंग है रूप भेज । इसके अनुसार वस्तु के आकार, रूपरेखा और आकृति का ज्ञान होता है । दूसरा अंग है प्रमाण । यह वस्तु को न्यायसंगत सिद्ध करता है । इससे अगला अंग भाव है, जिसके अनुसार कला के द्वारा वस्तु का सार व्यक्त होता है । चौथा अंग लावन्या हैं, जो रूपरेखा की सौंदर्य भावना को प्रकट करता है । पांचवां सदृश्य हैं जिसके अनुसार वस्तु के सत्य को पूर्णता मिलती है और अंतिम अंग वाणिक हैं, जिसके अनुसार कला कि प्रत्येक कृति अपनी सम्पूर्णता में अपने समस्त वन खंडों से अधिक विशेष और महत्वपूर्ण होती है । छह जो अंग बताने के बाद प्रेम ने झुककर आचार्य को प्रणाम किया है और फिर अपने स्थान पर बैठ गई, आचार्य ने अपना भाषण फिर शुरू किया । आप लोगों ने छह सुने हैं, इनमें तीसरा अंग भाव है । इस विषय में मैं कहना चाहता हूँ कि आपका कला में अभी ये अंग बहुत कमजोर है । आपको चाहिए कि आप अपने आस पास फैली हुई प्रकृति में डूब जाये । चारों ओर फैले हुए विशाल पर्वतों, घने वृक्षों, कल कल बहती नदी, नीलेश, शांत आकाश अर्थात सभी वस्तुओं को आप अपने मन की आंखों से देखें और उनके सौंदर्य को अपने हृदय से भरने का प्रयत्न करें । कहीं कोई सुंदर दृश्य या कोई रम्य स्थल देखें तो आपके मन में इतनी संवेदना होनी चाहिए कि आप स्वयं को पूरी तरह से भूल कर उस दृश्य के सौंदर्य में डूब जाए । वस्तु के साथ इस तरह का संबंध कलाकार के मन में वस्तु का सही भाव उत्पन्न करता है । कला की साधना के लिए यह समझना आवश्यक है की कला हृदय और मान के योग से उपजती है । काला से मानव मन का विकास होता है और सारे समाज का संस्कार होता है । काला मानव समाज की सुंदर भावना की अभिव्यक्ति है । कलाकार मनुष्य के हृदय के एक समूह भाव को प्रकट करता हैं । यही उसका सबसे बडा करता है । उदाहरण के लिए अगर तुम किसी फूल का चित्र बना रहे हो तो तुम्हारे चित्र में फूल का केवल बाहरी रूप सौंदर्य ही व्यक्त नहीं होना चाहिए, बल्कि उसका भाव यानि उसका आंतरिक सौंदर्य दिखलाना ही तुम्हारा वास्तविक उद्देश्य हो, तभी तुम्हारी साधना सफल मानी जाएगी । आचार्य ने और दिनों की तुलना में आज कुछ अधिक समय लिया था । अपना भाषण समाप्त करते हुए उन्होंने कहा, अच्छा, अब आप लोग जा सकते हैं, मेरी कही हुई बातों से अगर किसी के मन में शंका उपजती हो तो वो मुझसे पूछ ले । आज का पांच यहीं समाप्त होता है । ये कहकर उन्होंने बद्रीनारायण की ओर संकेत क्या? बद्रीनारायण तुम जरा ठहर जा रहा हूँ । मैं तुम से कुछ जरूरी बातें करना चाहता हूँ । सब भिक्षु चले गए तो आचार्य बद्रीनारायण की ओर देखते हुए कहने लगे बच्ची नारायण कल शाम प्रेम मेरे पास आई थी । मुझे पता लगा है कि तो उसके साथ बहुत अन्याय कर रहे हो । यहाँ हर एक व्यक्ति को इस बात का पता है की प्रेम लडकी है फिर भी सब उसके साथ लडकों, सही व्यवहार करते हैं । वो इस बात से बहुत दुखी थी कि उसके लडकी होने के कारण तुम उस से नाराज हो गया हूँ क्या उसका कहना है कि उसके मन में तुम्हारे प्रति बहुत मित्रता की भावना है । वो तुम्हारी इस कठोर व्यवहार के कारण अपने काम में मन नहीं लगा पाती है । अब तुम बताओ क्या वाले हैं? आचार्य वो एक स्त्री है और मैं स्त्रियों को बिल्कुल पसंद नहीं करता हूँ । उसका स्त्री हो ना तो अपने आप में कोई बुरी बात नहीं । मित्र बनने के लिए इस बात को इतना महत्व देने की क्या आवश्यकता है और फिर ये स्थान तो ऐसा है जहां करोड और ऍम सी को मन से निकालकर हम आपस में एक दूसरे की मित्र बनकर रहते हैं । हमारे समाज में किसी को भी दूसरे से कोई नाराजगी नहीं रखनी चाहिए । बस मैं यही बात तुम्हें समझाना चाहता हूँ । लेकिन बाकी सब तुम्हारी इच्छा है जैसे तुम ठीक समझौता करूँ । ये तुम्हारी निजी बात है । इसमें मुझे कोई दखल नहीं देना है । बद्रीनारायण क्षण भर के लिए खामोश रहा और मन ही मन आचार्य की बातों पर विचार करता रहा है । फिर एक का एक निर्णय पर पहुंचकर धीरे से बोला आचार्य आपने जो कहा है वो ठीक ही है । मैं उसी के अनुसार चलने की कोशिश करूँ । बद्रीनारायण बाहर आ गया । पहाडी के बराबर से घूमता हुआ वो उधर आ निकला जहाँ वेंकन्ना खडा सुस्ता रहा था हूँ । तुम्हारा इंतजार कर रहा था । बोलता हूँ जरा अपनी छेनी और हथौडी तो देना वेंकन्ना ने हजार उसे पकडा दी है । वो मचान पर चढा । फिर उसने कहा सूट के लिए एक गोलाई बनाऊँ या दोहरी दोहरी बना हूँ ताकि ऐसा लगे की हाथ किसी को माला पहना रहा हूँ । वेंकन्ना ने उत्तर दिया तुम्हारी कल्पनाशक्ति बडी तेज हैं । ऊपर आ जाओ और ये देखो कि मैं कैसे कर रहा हूँ । वेंकन्ना ऊपर मचान पर पहुंच गया । बद्रीनारायण के पास बैठा मंत्रमुक्त साहब उसे कम करते हुए देखता रहा है । दार के ऊपर पूरी धारी खेल जाने पर वह सुंदर दिख रही थी । मंत्री अब मैं अच्छी तरह जान गया हूँ की ये धारियां कैसे खींची जाती है । अंगुलिमाल बिहार में हाथियों के साथ इसी तरह धारियां खीचेंगा । फिर वे दोनों नीचे उतर आए । वेंकन्ना कोई परेशानी की बात नहीं ये तो अपने आप भी कर सकते हैं । इतना कहकर बद्रीनारायण वहाँ से चल पडा । थोडी देर में ही वो कोंडाली बिहार के सामने था । भीतर घुसते ही उसकी निगाह प्रेम पर पडी । वह घर छोडकर जाते हुए एक भिक्षु का विशाल चित्र आंकने में लगी हुई नहीं आहत होते ही वो पीछे की तरफ मुडी तो मैं अपने काम में मन लगना चाहिए । मैं ऐसा नहीं कर सकती । मन लगाने की बहुत कोशिश की लेकिन मजबूर थी क्या तुम अभी मुझसे नाराज हो? बद्रीनारायण के साथ वो एक चट्टान पर बैठी थी । उसका चेहरा पीला पडा हुआ था और दुखी नजर आ रही थी । तुम क्या चित्रित कर रही हूँ मैं आनंद के गृहत्याग का और उसकी याद में तडप कर मर गयी । उसकी पत्नी का चित्र बना रही हूँ । तुमने राजकुमारी की आकृति को अभी तक बनाई नहीं । दूसरे चित्र की रूपरेखा बहुत ही कोमल आती है । रेखाओं को जरा और अधिक गहरा करो । रेखाओं को गहराई रखूंगी । और हाँ, आनंद की रूपरेखा तुम से मिलती जुलती होगा । प्रेम का स्वर थोडा कोमल हुआ आया था । लेकिन मैंने तो किसी राजकुमारी को छोडकर संसार का त्याग नहीं किया । एक दिन तुम भी किसी को अपने पीछे से शक्ति छोड कर चले जाओगे । वो मुस्कुराया और बोला तुम्हें प्रेम उसके चेहरे की तरफ देख रही थी । उसने कहा मैं तुम्हारा प्रेम नहीं मानती, केवल तुम्हारी मित्रता चाहती हूँ । अगर मैं चला गया तो क्या तुम मेरे बिना मैं लडकों की कह नहीं सकते? फिर बिहार में घूमता हुआ है तो जातक कथाओं के चित्र देखने लगा । कलाकार चित्र बनाने में जुटे हुए थे और मूर्तिकार मूर्तियां गढने । उन्हें देखते हुए वो आगे बढ रहा था । अचानक हल्के से एक ख्याल उसके दिमाग में आया । फिर धीरे धीरे ख्याल आकार लेने लगा और उसकी आंखों में कहीं से रोशनी की एक किरण चमकी । उसने इधर उधर देखा । दीवारों पर से फिसलती हुई उसकी निगाह पश्चिम की ओर चली गई । वो रोशनी अजीब तरह से गिर रही थी और पीछे वाली दीवार पर अनेक छाया कृतियां बन रही नहीं । उसने अपने कपडों के भीतर से एक छोटी सी छह नहीं निकली और चट्टान को छिलने लगा । तुम्हारी कुछ मदद करो बद्री । प्रेम ने पूछा नहीं तुम अपने काम में लगाओ । फिर वो बाहर निकल गया और भित्ति चित्र बनाने के लिए आवश्यक सामग्री लिया । दोपहर तक रंगों के प्याले, गिलहरी की पहुंच के बालों से बनी तूलिका आदि तैयार हो गए । रूपरेखा उसने लाल रंग में आपने शुरू की है । रेखाएँ सहजता से बहती हुई खूनी, थोडी और आगे निकल गए । थोडी देर में ही दीवार पर एक लडकी का रेखाचित्र था उसी कुमारी लडकी का जिसे उसने पिछली रात देखा था और जिस से गाना सुना था । रेखाओं के साथ साथ उसने पूरे रंग की पट्टी खींची और फिर चित्र में रंग भरना शुरू किया । अब लडकी की आंखों में चंचलता उतर आई और होठों में रस भराया । उसके बालों को बूत कर बेनी बना दी गई । वक्ष ऐसी उभर आए जैसे कामनाएँ धडक रही । गले में एक हार लटक रहा था । बद्री नारायण ने उसके बाएं हाथ में एक दर्पन पकडा दिया । दूसरा हाथ चेहरे की ओर उठा हुआ था । शरीर के हर अंग को आंकने के बाद बद्रीनारायण को लगा कि चित्र में जाना गई । जैसे लडकी धीरे धीरे सांस ले रही हूँ । उसके काटते हुए वक्ष की आंच और कामना कोड आंखों कि मानवता वो खुद महसूस करने लगा । अब उसके बालों में रंग भरने बारीक पलकों को वो बडी कोमलता से और बहुत ध्यान से बना रहा था । तभी अचानक उसके हाथ से तो ली का फिसल गई । बद्रीनारायण भय से ठीक उठाऊँ स्त्री के माथे पर एक काली लकीर खींच गई थी जिसमें चेहरे को एकदम बदसूरत बना दिया था । वो गुस्से में काम था । उससे सहन नहीं हुआ और उसकी फडफडाते हुए होट बुदबुदाए पूरे का पूरा चित्र मिटा देना ही ठीक रहेगा । चित्र को मिटा देने के लिए वो सफेद ही लेने बाहर निकला । प्रेम कुछ रंग घोट रही थी । जो है वो तेजी से उसके पास से गुजरा । वो डर और अच्छे से उसकी तरफ देखने । कुछ ही देर में वो सफेद ही लेकर वापस बिहार की ओर लौटा और प्रेम के पास से गुजर गया । बद्री प्रेम ने पुकारा कोई जवाब न पाकर उसके पीछे पीछे भीतर आ गई । दीवार पर लडकी का चित्र थे । वो खडी की खडी रहेगी कितना सुन्दर चित्र हैं उसके मुक्त आंखों में आश्चर्य का भावना क्या कर रहे हो? उसने पूछा । देखती नहीं चित्र खराब हो गया । गुस्से में उसका स्वर्ण ठीक की सीमा तक पहुंच गया था । निराशा से उसकी आवाज भर्रा गई । नहीं, चित्र खराब हो गया । उसने दोहराया क्या खराब हो गया । उसने परेशान सुर में पूछा निकल जाओ यहाँ से मुझे अकेला छोड दो बद्री प्रेम उसकी वहाँ पकडते हुए बोली जल्दबाजी ठीक नहीं बताओ तो क्या बिगड गया है? माथे की तरफ देखो बालों के पास हादसे तुलिका फिसल गई थी क्या? तो मैं चेहरे पर वो गन्ना निशान नहीं दिखाई दे रहा । कितना बंदा दिख रहा है? रिकॉर्डिंग उत्तेजना भरी आवाज में प्रेम चीखी । देखो बद्री! वो कितना सहज दिख रहा है । ऐसा लगता है जैसे हवा के झोंके से बाल बिखर गया हूँ और एक लट उडकर चेहरे पर आ गई हूँ । इसका इस निशान को लत बना दूँ । लेकिन बद्रीनारायण गुस्से से कम रहा था । जलती निगाहों से चित्र को घूरता हुआ बोला तुम भी बना दो, ठीक है प्रेम बोली थोडी देर बाद दोनों उस चित्र को देख रहे थे । श्रृंगार कक्ष में स्त्री दोनों ने साथ ही साथ चित्र की दूसरी बातें भी खाकी सेविकाएं कक्ष पृष्ठभूमि शाम हो गई थी । चित्र पूरा हो चुका था । दोनों संतुष्ट थी । प्रेम चित्र सचमुच बहुत सुंदर बनाएं । हाँ, वो थोडी उसका चेहरा अब बद्रीनारायण की तरफ था । उसकी आंखों में आंसू चमक रहेंगे । उस ने मुस्कुराते हुए कहा तुम्हारे विचार कितने सुन्दर है? मंत्री काश मेरे पास भी इतने सुन्दर विचार होते । बद्री के होठों पर भी रोक ही सी मुस्कान थी । अपने हाथों से उसने प्रेम के आंसू पहुंचती है । मेरे विचार संदर नहीं थे । मैं कामुक स्त्री का चित्र बनाना चाहता था । एक ऐसी स्त्री का चित्र जिसके अंग अंग से वासना टपक रही हूँ, लेकिन चित्र में वो नहीं आ पाया । एक सौ मिस्त्री का चित्र ही उभरा जो इस दुनिया से परे एक सपनीली दुनिया की चीज बन गई । पता नहीं ऐसा क्या हो गया क्योंकि तुम्हारे विचार बहुत सुंदर है । थोडी देर वो खामोश खडा रहूँ । प्रेम तुमने जो कुछ किया है, उसके लिए मैं बहुत बहुत आभारी हूँ । अब तो मुझसे नाराज नहीं हो । पता नहीं उस बात को भूल जाऊँ । इस घटना के बाद कुछ दिनों तक दोनों ने मिलकर श्रृंगार कक्ष में स्त्री वाले चित्र को पूरा किया । इस बीच दोनों एक दूसरे के बहुत नजदीक आ गए । ये चित्र आचार्य पद मदत को दिखाना चाहिए क्या कहेंगे? वैसे देख कर प्रेम ने पूछा पहले से ही अनुमान मत लगा होगा । हम उन्हें बुलाएंगे । देखिए वो क्या कहते हैं । अगले दिन में अपने गुरु के पास पहुंचे और उन्हें चित्र दिखाने के लिए अपने साथ लाए । बद्रीनारायण कहने लगा ये श्रृंगार करती हूँ । इस तरीका चित्र हैं तो इसमें एक तरीके कमरे की कुछ अंतरंग बातें दिखाई गई, लेकिन कहीं अश्लीलता नहीं है । आचार्य पद मदत मुस्कुराते हुए बोले चित्र कुछ अधिक अंतरंग है । अचानक ही वह चुप हो गए । फिर कुछ देर बाद बोले हैं ये बाल यह लग तुमने कैसे बनाई हूँ । क्या क्या ये ठीक नहीं है? बद्री नारायण ने कुछ भेज के चाहते हुए पूछा हूँ नहीं ये ऐसा लगता है कि जब वह बाल समाज रही थी । हवा का एक झोंका आया और बिखरे हुये वालों को सही जगह पहुंचाने को जी नहीं चाहता हूँ । ये प्रेम ने किया है । बद्री नारायण ने कहा आचार्य पद्मा दत्त ने दोबारा चित्र पर नजर डाली । लडकी की भव्य आकृति, सपनीली मोहता और शांत मुद्रा पर उनकी दृष्टि अटक नहीं है । उसमें मसलता थी लेकिन साथ ही सुरूचि भी अनुराग का भाव था । लेकिन सौम्यता में बंधा हुआ उस पर केवल आश्चर्य ही किया जा सकता हूँ । सुंदर बहुत सुंदर है । आचार्य की निगाहों में प्रशंसा थी मैं खुश हूँ । मेरा विश्वास है तो तुम दोनों स्थान को अनेक सुंदर कलाकृतियों से सजाते हो गए । लेकिन आपका विश्वास आचार्य हमारा क्या ठिकाना हूँ? कम मृत्यु आ जाए । ठीक है, लेकिन काला जीवित रहती है । हमारे मर जाने के बाद भी तो बहुत समय तक जीवित रहती है । आगे आने वाले लोग इन चित्रों के आंकने वाले कलाकारों को नहीं जान पाएंगे । लेकिन उन्हें देख कर उन्हें खुशी होगी और वे इन चित्रों से प्यार करेंगे । तभी तुम बहुत धर्म स्वीकार क्यों नहीं कर लेते? लेकिन बद्री ने बौद्ध धर्म स्वीकार करने से मना कर दिया । इसके बाद वे विदा होकर वाघोडा के तट पर आ गए, जहां उसने और प्रेम ने स्नान किया । फिर दोनों प्रेम के घर गए और वहाँ से चाहते हैं ।
Producer
Sound Engineer