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अजंता - 3.1 in  | undefined undefined मे |  Audio book and podcasts

अजंता - 3.1 in Hindi

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AuthorMixing Emotions
जीवन का लक्ष्‍य क्‍या है? इस सवाल ने उपन्‍यास के मुख्‍य पात्र बद्रीनारायण को बहुत ज्‍यादा विचलित कर दिया था। प्रेम कुमारी का प्‍यार और आचार्य का वात्‍सल्‍य भी बद्रीनारायण की बेचैनी को कम नहीं कर सका बल्कि दिन ब दिन यह बढ़ता ही गया। बद्रीनारायण खुद को अजंता के भित्ति चित्रों के निर्माण में खुद को झोंक देता है। उसे लगता है कि उसने जीवन का लक्ष्‍य पा लिया। क्‍या सच में बद्रीनारायण ने जीवन का लक्ष्‍य पा लिया था?
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बद्रीनारायण फुटकर साथ हो लिया । दोनों ने वाघोडा पार की और गांव की तरफ पढ नहीं चलते । चलते अचानक गोपी ने कहा पदरी तुम हर समय क्या सोचते रहते हो? बद्री नारायण ने उसके चेहरे की तरफ देखा और फिर कुछ रुककर कहने लगा कोई खास बात नहीं यूपी एक अजीब सी उलझन मन में रहती है, बहुत सोचने की कोशिश करता हूँ लेकिन समझ में नहीं आता कि क्या बात है । इसीलिए उलझन और अधिक बढती जाती है और एक बोझ सामन में गिरने लगता है । गोपी कुमार ने कहा बजरी क्या तुम से पहले कभी कोई अपराध हुआ है? बद्रीनारायण उसकी बात सुनकर जरा सा मुस्कुराया और बोला नहीं गोपी, ऐसी कोई बात नहीं है । अपराध मेरा कोई है तो यही कि मैं अपने आप से कभी संतुष्ट नहीं हो पाया । क्यों? ऐसी क्या बात है? बस यही मैंने बहुत समय व्यक्त करवा दिया । जो समय मुझे चित्रकला में लगना चाहिए था उसमें मैं स्त्रियों के साथ विलास करता रहा । गोपी कुमार के चेहरे पर मुस्कुराहट उभर आए । वो कहने लगा बद्री तुम भी प्रभु घोष की तरह हो । वो भी सितारों की गति देखने की बजाय स्त्रियों की चंचल आंखों में उलझे रहे हैं । आखिर वो अपने आप से इतना हताश हुए कि अपना सब कुछ छोडकर भाग खडे हुए । तुम भी इसी तरह भाग कर आए हो गया । हाँ इसी तरह तो यहाँ आकर पहुंचा हूँ । बद्री नारायण ने उत्तर दिया । गोपी कुमार ने कहा तुम पहले क्या करते थे? सुनना चाहते हो? हाँ बताओ । गोपी कुमार ने कहा बद्रीनारायण अपनी कहानी सुनाने लगा । मेरे पिता वैद्य थे । उनके पास काफी धन था और मैं उनका एकलौता लडका था । शायद यही कारण रहा होगा जो मैं शुरू से ही हर काम में उनकी इच्छाओं के विरुद्ध ही रहा हूँ । मैं उनकी हर बात को काटता रहता था । ये बात नहीं की मुझे और उनमें एक दूसरे के लिए प्रेम नहीं था । लेकिन हमारे विचार आपस में मिलते नहीं है । किस बारे में? गोपी कुमार ने पूछा । वो चाहते थे कि मैं उन्हीं की तरफ ऍम । वो हमेशा मुझ पर यही जोर देते हैं कि मैं सुश्रुत और चरक की मिसाल बनकर दिखाऊँगा । लेकिन मैं इस काम को बहुत ना पसंद करता था । मुझे चित्रकार और शिल्पी बनने का शौक था । मैंने जब ये बात उनसे कहीं तो उन्होंने साफ इंकार कर दिया और कहने लगे कि ये फैसला करना । माता पिता का काम होता है कि अपने बच्चों को क्या काम सिखा है । लेकिन मैं मैं भी अपनी धुन का पक्का था । मैंने उन्हें बता दिया की मैं चाहे मर जाऊं लेकिन दवाइयाँ खर्च करने और नाडिया देखने का काम कभी नहीं करूँगा । जरा सांस लेकर बद्रीनारायण ने अपनी बात फिर जारी रहेगी । मेरे पिता ने बहुत बार मुझे समझाने की कोशिश की की चित्रकला शौक के लिए चाहे कर ली जाए लेकिन धंधे के तौर पर तो कुछ और ही करना पडता है । वो कहते थे कि चित्र और मूर्तियां बनाना कोई बडा काम नहीं है और इस काम में तो कोई बिरला प्रतिभाशाली व्यक्ति ही चमक सकता है । मुझे विश्वास था कि मेरे अंदर प्रतिभा है इसलिए मैं उन्हें तर्क देता कि मैं अच्छे से अच्छे विद्यालय में ये कला सीखूंगा और जरूर सफल होगा । लेकिन उन्हें ये बात समझ में नहीं आती कि मुझ पर चित्रकार बनने की धुन क्यों सवारे । वो पूछते कि इस काम में ऐसी क्या खास बात है जो वैद्यक में नहीं । मैं उन्हें समझाता कि मनुष्य सिर्फ मांस और रक्त का पुतला नहीं होता जैसा कि वो उसे देखते थे । मेरी नजर में मनुष्य का शरीर एक मंदिर की तरह था जिसमें आत्मा का वास है । वैद्यक सिर्फ इस शरीर का दोष देखती है और उसे दूर करने की कोशिश करते हैं जबकि चित्रकार की दृष्टि इससे गहरी उतरती है और आत्मा की परख करती है । वैद्यक सिर्फ शरीर का रोग दूर करती है लेकिन काला चरित्र को बलवान बनाती है और मनुष्य के मन को वास्तविक आनंद का परिचय देती है । लेकिन वो मुझसे सहमत हो सके और एक दिन मेरी जिससे तंग आकर उन्होंने कह दिया कि मैं चाहूँ तो कहीं भी जाकर काला सीख सकता हूँ । मगर इसके बाद मेरे और उनके बीच पिता पुत्र का संबंध नहीं रहेगा । मेरी माता ने मुझे बहुत समझाया बनाया लेकिन मैं कला की साधना करने का दृढ निश्चय कर चुका हूँ । अपने घर में मेरे लिए हर तरह का सुख था, आराम था लेकिन मेरे पिता के इस दो टूक फैसले के बाद मेरे सामने घर छोडने के अलावा और कोई मार्ग नहीं रह गया था । अगर मुझे अपना आदर्श पूरा करना था तो उसके लिए आवश्यक था कि इन सब सुख सुविधाओं का मैं क्या करता हूँ । इसलिए मैंने घर को आखिरी बार पिता कहीं और उज्जयनी चलाया तो तुमने उज्जैनी के प्रसिद्ध विश्वविद्यालय से कला की दीक्षा ली है । गोपी कुमार ने पूछा हाँ मैं घर से कुछ रुपये लेकर चला था, जो मेरे लिए बहुत काफी थे । मुझे विश्वविद्यालय में प्रवेश मिल गया । वहाँ पांच साल तक रहकर जितना कुछ सीखा जा सकता था, मैंने सीख लिया । शायद मेरे हाथ में भी अच्छी सफाई आ गई थी, जो मुझे राज महल में भित्तचित्र बनाने का काम सौंप दिया गया । लेकिन यहीं से फिर मेरे जीवन में एक परिवर्तन आना शुरू हो गया हूँ । गोपी कुमार है उत्सुकता से पूछा है क्यूँ? ऐसी क्या बात ही वहाँ स्त्रियाँ राज महल में एक से एक सुंदर स्त्रियां थी । उन के रूप यौवन ने मुझे बरबस आकर्षित कर लिया । पहले पहले तो मैं उत्सुकता से इस खेल में रूचि लेने लगा था हूँ । लेकिन फिर मुझे भोगविलास में आनंद आने लगा । कुछ समय के बाद ये मेरी आदत बन गई और मेरे अंदर यहाँ तक घर कर गई । किस तरी संघ के बिना मेरे लिए जीना कठिन हो गया? मुझे साथ साथ शराब और जो की भी लग पढ नहीं । मेरे चित्र अच्छे थे और उनकी बहुत प्रशंसा होती थीं । लेकिन मेरी जिंदगी विलासिता के दलदल में डूब की जा रही थी । आखिर एक दिन मैं इस सब से पूरी तरह हो गया । मुझे ऐश्वर्या के जीवन से घृणा हो गई और मैं चुप चाप वहाँ से भाग लिया । कहाँ के वहाँ से गोपी कुमार ने पूछा कुछ नहीं कह सकता हूँ । बस घूमता रहा है । निरुद्देश्य कभी यहाँ कभी वहाँ जी में आता तो कहीं कुछ काम कर लेता हूँ । कभी पत्थर की मूर्ति गर्दी तो कभी किसी छोटे से मंदिर में कोई प्रतिमा बना दूँ । बस इसी तरह दिन गुजरते रहे लेकिन एक अजीब सी बेचैनी थी जो मुझे हर जगह घेरे रहती नहीं । मैं अपनी पुरानी जिंदगी छोड आया था लेकिन वो अभी तक मेरा पीछा कर रही थी । मैं अपनी सिद्धकी को पूरी तरह बदल नहीं सकता था । उस सीमा तक तो नहीं लेकिन थोडी बहुत अब भी ये आदतें मेरे अंदर बाकी थी और इस कारण मुझे अपने आप से और अधिक घृणा होती जा रही थी । आखिर एक दिन मैंने ये तय कर लिया कि मैं वन में जाकर रहूंगा और वहीं अपने जीवन का शेष समय बिताऊंगा । मैं साधु सन्यासी तो नहीं बनना चाहता हूँ लेकिन अपना जीवन बदलना जरूर चाहता हूँ । मैं चाहता था कि हलचल भरे संसार से दूर जाकर कुछ दिन एकांत में रहूँ और अगर फिर मेरे मन को शांति मिल जाए तो किसी शहर में लौटकर चित्रकला में अपना जीवन लगाना । इसी इरादे से मैं पहाडों की ओर जा रहा था और तभी भटक कर यहां पहुंचा है । उसकी बात खत्म होने पर गोपी कुमार बोला बद्री, तुम्हारी कहानी बडी अच्छी है । शायद तुम्हारे मन की उलझन का कारण भी यही है कि तो अभी अपने जीवन में स्त्री का अभाव महसूस करता हूँ । लगता है कि तुम ने कभी किसी स्त्री से प्रेम नहीं किया । बद्री नारायण ने कहा प्रेम नहीं किया मैंने तो बहुत सी स्त्रियों के साथ प्रेम क्या है? दिन रात उनके शरीर से खेलता रहा हूँ । तुम कहते हो प्रिया नहीं क्या? खूबी कुमार ने शांत भाव से उत्तर दिया यह प्रेम नहीं सिर्फ ऍम इस से बहुत भिन्न होता है । प्रेम मन से होता है, शरीर से नहीं नहीं ऐसा प्रेम मैंने कभी नहीं किया । इसके बाद दोनों चुप होकर अपने अपने विचारों में डूबते उतरते रहे हैं । गांव पहुंचकर उन्होंने तेल आदि लिया और वापसी में एक अन्य रास्ते लौटे । मठ काफी दूर था कि तभी उन्हें प्रेमानंद मिल गया । बद्रीनारायण को देखते ही प्रेमानंद बोला पथरी तो कहाँ थे । मैं सब जगह ढूंढा रहा हूँ । हम गांव से तेल लेने गए थे तो अब कहाँ जा रही हूँ । बद्रीनारायण नहीं । उसकी तरफ देखते हुए कहा, मैं बेलफल तोडने जा रहा हूँ तुम चलो के साथ । प्रेमानंद ने कहा चलो चलते हैं, फॅारेन के साथ चलेंगे । बद्रीनारायण ने गोपी कुमार से कहा लेकिन गोपी कुमार को लौटने की जल्दी नहीं तो बोला नहीं बजरी, तुम लोग जाओ हूँ । मुझे वापस लौटकर अभी बहुत काम करना है । इतना कहकर गोपी कुमार उनसे अलग हो गया और मठ की ओर चल दिया । बद्री और प्रेम दोनों एक नाले की दिशा में चले गए । तुम्हारे ख्याल में बेल के वृक्ष कहाँ होंगे? बद्री ने प्रेमानंद से पूछा मुझे एक जगह पता है में वहीं जाया करता हूँ । आजकल बेल पक गए है । तुम खाओगे तो पसंद करोगे । प्रेमानंद ने उत्तर दिया चलो देखते हैं । बद्री नारायण ने कहा । प्रेमानंद ने बद्रीनारायण के चेहरे को कुछ ध्यान से देखते हुए कहा क्या बात है, तुम्हारा चेहरा क्यों लाल हो रहा है? गोपी कुमार तुम्हें अपनी कहानियां तो नहीं सुना रहा था? बद्री नारायण ने कहा नहीं तो वो कहानियाँ भी सुनाता है । प्रेमानंद बोला अक्सर यही करता है । देखने में ही वो सीधा साधा लगता है, लेकिन उसके किससे सुनो तो पता चलेगा कि वो कितना रंगीन व्यक्ति रहा है । तुम उससे क्या बातें करते रहे । मैं उसे अपने जीवन के बारे में बता रहा था कि यहाँ आने से पहले मैं कहाँ था । बद्री ने कहा बद्री मैं भी तुमसे ये पूछना चाहता था तो मैं कभी किसी से प्रेम क्या है? मेरा मतलब है कि किसी स्त्री से तुम स्त्रियों की संगत में बहुत रहे हो और प्रेमानंद उत्सुकता से बद्री के चेहरे की तरफ देखने लगा । बद्री ने फौरन से उत्तर दिया, नहीं प्रेम, आज तक किसी स्त्री से मुझे इतना लगाव नहीं हुआ कि मैं उसे प्रेम कैसे? ऑस्ट्रिया तो सिर्फ पुरुष के आनंद के लिए होती है । प्रेमानंद धीरे से हंसा और बोला स्त्रियों के मामले में तुम्हारे विचार बहुत कट्टर है । अगर तुमने किसी से प्रेम किया होता तो ऐसी बात न कहते हैं हूँ । पदरी नारायण ने कहा छोडो स्त्रियों की बातों और बेलफल की तरफ ध्यान लगा हूँ । दोनों चुप चाप आगे चलने लगे । लेकिन दो कदम के बाद ही अचानक बद्रीनारायण ने प्रेमानंद से पूछा प्रेम क्या तुमने कभी किसी से प्यार किया है? प्रेम ने चलते चलते जमीन में पडी एक टहनी उठाई और कहा नहीं किसी से नहीं । लेकिन मैं स्त्रियों के बारे में तुम से अधिक जानता हूँ । स्त्रियों की समझ बहुत गहरी होती है । बद्रीनारायण हसने लगा और बोला गेम तुम भी अच्छी, वो हमेशा कोई न कोई अनोखी बात निकालकर लाओगे । प्रेमानंद भी मुस्कुराने लगा और बद्रीनारायण को उसकी मुस्कुराती हुई आंखें बहुत खूबसूरत लगी । वो उस पहाडी नाले के पास जा पहुंचे, जहां बेल के रिश्ते एक और ढलान पर एक छोटी सी झोपडी दी, जिस के चारों ओर चारदीवारी बनी हुई थी । इस चारदीवारी के अंदर खूबसूरत वाटिका नहीं है, जिसमें आम, बेल, अमरूद और पपीते के वृक्ष पर फल भरे हुए थे । एक और केले के पेड जिनके पीछे क्यारियों में सब्जियाँ होगी हुई है । संतरे और अनार के भी बृक्ष थे । बेल वृक्षों पर पीले पके हुए बेल लटक रहे थे, जिन्हें देखकर मुझे पानी भर आता था । इस वाटिका को देखकर बद्रीनारायण ने प्रेमानंद से पूछा हूँ प्रेम ये तो किसी की वाटिका है । तुम इस घर में रहने वालों से परिचित हो । हाँ, तो फिर अंदर से बुलाओगे, किसी को नहीं चोरी करोगे नहीं तो फल कैसे लोगे तोडकर घर के मालिक कुछ कहेंगे तो कहेंगे क्या? कुछ भी नहीं । अजी व्यक्तियों

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जीवन का लक्ष्‍य क्‍या है? इस सवाल ने उपन्‍यास के मुख्‍य पात्र बद्रीनारायण को बहुत ज्‍यादा विचलित कर दिया था। प्रेम कुमारी का प्‍यार और आचार्य का वात्‍सल्‍य भी बद्रीनारायण की बेचैनी को कम नहीं कर सका बल्कि दिन ब दिन यह बढ़ता ही गया। बद्रीनारायण खुद को अजंता के भित्ति चित्रों के निर्माण में खुद को झोंक देता है। उसे लगता है कि उसने जीवन का लक्ष्‍य पा लिया। क्‍या सच में बद्रीनारायण ने जीवन का लक्ष्‍य पा लिया था?
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