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आधी दुनिया का पूरा सच - Part 4 in Hindi

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AuthorKavita Tyagi
आधी दुनिया का पूरा सच उपन्यास बारह-तेरह वर्ष की रानी नाम की एक नाबालिग लड़की की कहानी है, जो छतरपुर , मध्य प्रदेश के एक निर्धन परिवार की बेटी है । अपनी माँ की प्रतीक्षा में स्कूल के बाहर खड़ी रानी को उसके ही एक पड़ोसी अंकल उसकी माँ को गम्भीर चोट लगने की मिथ्या सूचना देकर घर छोड़ने के बहाने बहला-फुसलाकर अपनी गाड़ी में बिठा लेते हैं । रानी को जब पता चलता है कि वह अपनी नादानी के कारण फँस चुकी है , तब वह दिल्ली में स्थित एक अंधेरी कोठरी में स्वयं को पाती है, सुनिये क्या है पूरा माजरा| Author : Dr. Kavita Tyagi Voiceover Artist : Shreya Awasthi
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यानी और सामली पर दिन रात हर्षण मई की कठोर दृष्टि का पहला रहता था । मई की अनुपस् थिति में इस कार्यभार का निर्वहन झुग्गी में उपस् थित वैसे लडकी मुंदरी करती थी जो झुग्गी के मध्यभाग में उन्हीं के साथ रहती है । उसके ऊपर मई का विशेष नहीं था । प्रतिदिन संध्या समय में मई उसको विशेष स्वादिष्ट स्थान देकर प्यार से पुकारकर कहती थी मुंदरी ले बेटी खाले । मंत्री बडी गर्व के साथ आगे बढकर मिठाई स्वीकारती और सावली रानी चुप चाप इस दृश्य को देखती रहती । शाम से लेकर रात तक मई से मिलने के लिए कई पुरुष आते थे । जब भी कोई पुरुष आता था तभी मंत्री को बडी इसमें से मई उस पुरुष के साथ झुग्गी के उस भीतरी भाग का ताला खोलकर अंदर भेज देती थी जिसमें सामली और रानी का जाना पडता था कि उपक्रम नित्यप्रति देर रात तक चलता रहता है । यद्यपि रानी झुग्गी के भीतर के रहस्य का अनुमान कर दी थी तथापि अपनी खुली आंखों से अंदर का दृश्य देखकर सबके तथ्य को जानने की उस की प्रबल इच्छा रहती थी । इसलिए बताया ऐसे अवसर की तलाश में रहती थी जब वहाँ मुनरी उपस् थित ना हो और झुंकी का प्रतिबंधित था । खुला हो दुरुपयोग सी एक शाम उसको अपना अभी भी अवसर मिल ही गया जब झुकी के भीतरी प्रतिबंधित भाग का ताला खुला हुआ था और मुनरी शौच से निवृत्त होने के लिए झुग्गी के बाहरी भाग में बनी शौचालय में बंद थी । रानी ने उस षण का लाभ उठाते हुए झुग्गी के प्रतिबंधित भाग के अंदर झांकने का प्रयास किया । तभी बाहर से मई की गरज ने का सर ओवरआॅल टानी टक्कर पीछे हट गई । अगले शिक्षण मई रानी के समक्ष खडी मुस्कुराती भी कह रही थी इसके भीतर जाने की इतनी भी क्या जल्दी है मेरी लाडू अभी तो अच्छी कर ली है मेरी मेरी बुनिया तो ऐसी बस तेरी पंखुडी खुल जाने दे जब फूले की मैं तो मेरी जान की खुशबू दू दूर तलक फैलेगी । बस उस दिन का थोडा सबर रख बहुत बडा त्यौहार करूँ हिस्से जीत सिंग जी इसके भीतर भेजा जाएगा । फिर भी खूब मजा लेता हूँ । कहते हुए मायने खुशी में झूमते हुए रानी को प्यार से बाहों में भर लिया । आजमाई के अनपेक्षित प्यार को देखकर रानी घबरा उठी । वहीं घबराहट उसने सावली की आंखों में भी देखी थी । लेकिन दोनों मान रहे और अपनी अपनी जगह जाकर बैठ गई । दिन सकता । महीना और साल बीत गया जूजू समय बीतता रहा था क्योंकि साल जी की प्रतिमा ही का प्यार बढता जा रहा था । जिस अनुपात में सानी पर माइकल्स नहीं बढ रहा था उसी अनुपात में उसके प्रति मुंदरी की एशिया बढ रही थी । मंदिर ईरानी को भी अपनी प्रतिद्वंद्वी मानती थी । परचों की मई का ध्यान साउली पर अधिक केंद्रित होने लगा था । इसलिए मुनरी की एशिया का केंद्र बिंदु भी सांगली ही बन रही थी । फॅमिली के खाने के लिए होटल से विशेष व्यंजन मंगाती तो मुंदी असर पाकर उन्हें इधर उधर नाली में गिरा देती है । उसमें अतिरिक्त नमक मिर्च डालकर उसे खाने योग्य नहीं रहने देती । मई सोने के लिए कोई नया सूट लेकर आती तो मुनरी असर पाकर कैंची से उसमें छोटा मोटा कट लगा देती । ये जलती हुई बीडी सिगरेट लगाकर सूट को जगह जगह से जला देती । मुनरी सब इसलिए करती थी क्योंकि वह जानती थी कि मुनरी के लिए मई की प्यार के पीछे का सच क्या है । उसके ऊपर भी मायने कभी ऐसा ही प्यार लुटाया था और आज तक लुटाती आ रही थी । कुछ तनावग्रस्त होकर प्रतीक्षा नी यही सोचती रहती थी । फॅमिली को मेरी जगह देने के लिए तैयार कर रहे हैं । तभी तो अब माइक सारा ध्यान सारा क्या साली पर व्यवस्था है । कोई नया कपडा आए तो सोनी के लिए खाने का कोई विशेष व्यंजन आए तो सामने के लिए मंत्री का तो जैसी कोई महत्व ही नहीं रह गया । मुझे ये उपेक्षा कैसे सहन कर सकती थी । अपनी दूज रूस की उपेक्षा से मंदिरी के अंदर विद्रोह पर आपने लगा था माई के प्रति मंदिरी का विद्रोह । भाव इतना बढा कि एक दिन उसने बिस्तर पकड लिया । सुबह से शाम तक ना कुछ खाया पिया और ना ही किसी के साथ किसी प्रकार का कोई संवाद किया । रात के प्रथम पहर में महीने झुग्गी के प्रतिबंधित भाग का ताला खोलकर मंदिर को पुकारा । कुटरी मंत्री जल्दी कर बाबूजी इंतजार कर रहे हैं । ज्यादा देर लगाएगी तो बेकार में बिगडने लगेंगे । मंदिरी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं तो मायने उसके बिस्तर के निकट जाकर उसको झिंझोडकर स्नेहपूर्वक आग्रह किया मुनरी मेरी लाडो कुछ जल्दी जी मेरी तबियत ठीक नहीं है । चल बोल क्या चाहिए तुझे तबियत ठीक करने के लायक जल्दी बोल मुझे कुछ नहीं चाहिए भाई मुझे अकेला छोड दें फिर उसका क्या जो भीतर बैठ है बीस दो सी को जिसका राज कल तेरी मेहरबानी बरस रही मैं जानती हूँ सुन दिल को देख के तरह जी जलता है पर मुंदरी उसकी त्यौहार तक तो सब कुछ तो जी को संभालना है । एक पर उसका त्यौहार हो जाए तो तेरह बोझ कुछ हल्का हो जाएगा । मायने मुंदरी को उसका दायित्व भार समझाते हुए स्नेहपूर्वक संयुक्त मुनरी ऍम अस नहीं । अपने आदेश का तत्काल पालन न होते देख माइक्रो से आग बबूला हो गई और कोने में रखी हुई अपनी रहस्यमई सिंधु की की ओर बढते हुए मुंदरी को चेताया कृत जैसी हरामी लाडियों से निपटना मुझे खूब अच्छी तरह आता है । अब देखना में तेरह क्या हाल करूंगी? मई का रौद्र रूप देखकर साली और रानी भयभीत होती कि न जाने मंत्री के साथ क्या होगा । लेकिन मुंदरी एक्शन का विलंब किए बिना उठकर खडी हो गयी । वो भलीभांति जानती थी की झुग्गी के एक कोने में रखी मई कि सिन दुखी में क्या रखा है? मई सिंधु किसी की ओर क्यों बडी थी और उन बंदी को क्या चेतावनी दे रही थी? फॅमिली और नानी इस सब रहस्यमई बातों व्यवहारों की कोठर तू से एक दम भी की थी । कई माह बीतने के प्रशास एक दिन नितांत अनपेक्षित ढंग से मायने नए सुंदर कपडों का पैकेट लाकर सावली की ओर बढाकर कहा ले लाडू तेरे लायक के आई हूँ । साली ने यंत्रवत थान बढाकर पैकेट ले लिया । मई को इससे संतोष नहीं मिला । पैकेट वापस लेकर अपने हाथ से खोलकर उसमें से सूट बाहर निकाला और सावली के कंधों पर रखकर बोली अच्छा है खूब खबरें ही मेरी लडकी है ना सामने किसी अनहोनी की आशंका से ग्रस्त चुप चाप मई की ओर ताकली । शायद माइक्रो सामने की प्रतिक्रिया अच्छी नहीं लगी थी । क्रोधित होकर बोली बोलती क्यों नहीं घूम ही हो गई है । क्या सूट अच्छा नहीं लगा? मई की डांट से भयाक्रांत सांगली की आंखों से आंसू की बूंदें टपक नहीं लगे । माईने मातृत्व का बाना ओढकर सावली को अपनी सीने से लगा लिया ना रो नानी सिंद्री मेरी लाडो माई के रहती तुझे आंखों में पानी लाने की जरूरत नहीं पडेगी । चुप बिल्कुल चुप कहते हुए माईने । सावली की आंखों का पानी अपनी उंगली के तौर से पहुंचा और फिर इसने ये पूरा उसके सिर पर हाथ रखा । उसी समय झुग्गी में उस अधेड युवक ने प्रवेश किया । जुलाई के आदेश का पालन करते हुए प्राया होटल से खाना लाया करता था । आज उसकी हाथ में अपेक्षाकृत अधिक सामान था । माईने अत्यधिक प्रसन्नतापूर्वक आगे बढकर उसके हाथ से सामान पकडकर उसकी सहायता की और मुनरी को पुकारा । लेरी मंत्री खोल के त्योहार मना इस शुभ घडी के लाये बहुत दिन बाद देखी है । सावली और रानी मुंदरी को खाद्य सामग्री के फैले खोलते हुए देख रही थी । आज अपेक्षाकृत अधिक स्वादिष्ट और कई प्रकार के मीठी नमकीन व्यंजन आए हैं । मुंदरी के खोलते खुलते मायने बीच में आकर कुछ विशेष रंजन के पैकेज उठाते हुए कहा ये मेरी सुंदरी के लिए हैं । आज का त्यौहार मेरी सुंदरी की वजह से और सुंदरी के लिए कहते कहते माईने वो पैकेट सावली की ओर बढाया और झुग्गी के प्रतिबंधित भाग की ओर संकेत करके बोली ले लालू ये ले जाके भीतर रखा सारा तेरह सावली भय भ्रमित सी मौन निष्क्रिय खडी रही । शायद सुन समझ नहीं पाई थी क्योंकि आज से पहले वह सब कुछ विशेष मुंदरी के लिए होता रहा था । सामली की ओर से किसी प्रकार की साडी प्रतिक्रिया ना पाकर माईने पैकेट मुंदरी की ओर बढाते हुए सावली के प्रति इसने का प्रदर्शन करके बहुत प्रसन्नता पूरा कहा । घबरा रही मेरी संदिली सच पहला दिन है ना ले मुनरी तो भी तरह का पर देख तू नहीं इसमें से कुछ भी खोला या खाया तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा । मुंदरी ने मई के हाथों से पैकेट ले लिया और चुपचाप भीतर रखा है । वो बाहर से शान देखने का प्रयास कर रहे थे परंतु यहाँ जिसकी आंखों में पराजय के भाव के साथ साउदी के प्रति केशिया और दिवेश का भाव पहले से कहीं अधिक उमर पडा था । मंदिर के मनोभावों को मई भली भांति समझ रही थी । बोली आज त्यौहार के दिन तेरी सूरत बारह बजे हैं । रानी ने सामली की ओर देखा और संकेत से उसके विहार के बारे में जानना चाहा । जिसकी चर्चा मई कई बार कर चुकी थी लेकिन साली ने आंखों ही आंखों में बता दिया कि उसे कुछ नहीं पता है । रानी मन ही मन अनुमान लगा रही थी होली तो है नहीं क्योंकि होती तो कहीं ना कहीं रंग गुलाल दिखाई पड जाती थी । फॅमिली शायद हो सकती है इसका पता तो रात में ही चलेगा । जिस सबके घरों में दीपक चलेंगे, लोग रंग बिरंगी लडियां लगाएंगे और पटाखे फोडेंगे रात होती होती । रानी को ज्ञात हो गया कि दीपावली का त्योहार भी नहीं । रात का अंधेरा गहरा है तो मई ने नए कपडों का पैकेट मंदिरी को पकडाते हुए कठोर शैली में आदेश दिया चल खडी हूँ सुन्दरी का सोलह सिंगार करके अच्छी तरह साझे सवार के तैयार कर दें आदेश पार्टी ही मुंदरी उठ खडी हुई और सुंदरी को सजा संवारकर तैयार करने लगी । सुंदरी का श्रृंगार करके झुग्गी के बाहर बैठी मई को पुकारकर मुंदरी ने सूचित कर दिया कि सिंदरी तैयार हैं । सूचना पार्टी ही मायने प्रसन्नचित मुद्रा में झुग्गी में प्रवेश किया और सब्जी समृद्ध सामली की बलैया लेकर बोली किसी की नजर ना लगे बडा सोना रूप निखरा है मनमोहिनी सुंदरी का की कहते हुए मायने अपनी उंगली कि पोर्से काजल का छोटा सा टीका साउली के कान के पीछे लगाने का उपक्रम किया । साली पर मई की इतना प्यार लुटाने से एक और मंत्री के सीने पर साहब लोड रहे थे तो दूसरी ओर सउनि के चेहरे पर अब पहले से अधिक है और तनाव दिखाई पड रहा था । मायने उसकी मनोदिशा को लक्ष्य करके प्यार से उसके गालों पर हाथ हिलाकर कहा तेरे लिए आज खुशी का दिन है मैंने खाने की इतनी लजीज सीधे मंगाई है किसके लिए तेरे लिए इतना सुंदरी सूट हरसिंगार का इस सारा सामान सब तेरे ली मनाया अभी रोनी सूरत छोड कर थोडा सा मुस्कुरा ऍम लेकिन सोने के हृदय में इतना है और तनाव था, जिसमें उस कराने की सामर्थ्य शेष नहीं बची थी । मई को अवज्ञा करने वाले लोग पसंद नहीं थी । था । इस बार कठोर मुद्रा में कहा कान खोलकर सुन ली । सुंदरी तो जी मुस्कुराते हुए रहना है । हाँ, एक पल को भी चेहरे से मुस्कराहट गायब नहीं तो सूरत को ऐसी कर दूंगी कि तेरी शक्ल देखने लायक नहीं रहेगी । कोई दूसरा तो तुझे क्या देखेगा? तो खुद को शीशे में देखेगी तो खुद से नफरत करने लगी । माइक कीचेतावनी ने अपना पूरा काम किया । इतना की मई का वाक्य पूरे होने से पहले ही साली ने मुस्कुराना आरंभ कर दिया और तब तक मुझे बुलाती रही, जब तक मैं उसके साथ रहे । ये अलग बात थी कि चाहकर भी उसकी आंखों से पानी नहीं रुक रहा था । मायने उस समय तो उसकी आंखों से बहते पानी को अनदेखा कर दिया था, परन्तु कुछ ही क्षणों प्रांत जिम, झुग्गी के सामने कारा करोगी, मई का सउनि के प्रति अतिरिक्त इस नहीं । उमर पडा मई बोली मेरी लाडो आंखों कि पानी से सारा सिंगर पूछ डालेगी । क्या एक बार मई को अच्छे से मुस्कुराके तो दिखा देंगे? साली को अभी तक को चेतावनी थी जो कुमारी ने कुछ समय पहले दी थी । अच्छा आदेश पार्टी ही किसी अनहोनी से आशंकित यंत्रवत मुस्कुरा दी । इसके बाद मायने सांगली को झुग्गी के प्रतिबंधित भाग में प्रवेश कराते हुए चेतावनी देकर कहा जितनी देर तक उसके साथ रहेगी तेरी आंखों में पानी आया इस चेहरे से मुस्कुराहट टाइप सोच लेना में तेरह क्या हाल करूँ ये कहकर मई ने बाहर से दरवाजा बंद कर दिया । हाँ जी हर देश में भय और व्यवस्था और चेहरे पर कृति मुस्कान लेकर आज सामली का झुग्गी के इस प्रतिबंधित भाग में प्रवेश हुआ था । जिसमें झांकना भी आज से कुछ दिन पहले तक उसके लिए वर्जित था । इधर सावली को लेकर रानी का मन मस्तिष्क भिन्न भिन्न प्रकार की होनी अनहोनी आशंकाओं से भर रहा था । रात गहराने लगी थी किन्तु रानी की आंखों में दूर दूर तक नहीं नहीं थी । रानी की आंखों से नींद खाली उडते देशकर मायने उसको अपने पास झुग्गी के बाहरी खुली भाग में बुला लिया था जहाँ बैठकर मई सिगरेट सुलगा रही थी । ना चाहते हुए भी रानी मई के पास बैठ गई । वहीं पर निराशा के भंवर में डूबी मुनरी चारपाई पर लेटी हुई आकाश को घूम रही थी । रानी ने देखा मायने अपने हाथ में दो दो हजार के नए नए नोटों की कई गड्डियाँ थामी हुई है । मैं एक बार बार उन नोटों को निहारती हुई मुस्कुरा रही है और कोई लोग की तुम बना रहे हैं गीत गुनगुनाते हुए मई में निकट ही रखा एक भिगोना उठाया और उस पर ढोलक की भारतीय थाल बजाते हुए ऊंची सर में गीत गाने लगे । ठीक उसी शन झुग्गी के भीतर से साडी के चीखने का सर्वग्रह । उसके बाद सावनी कर रूदन स्वर निरंतर तीव्र और ऊंचा होता गया । सामने के रूदन का सर इतना ऊंचा हो रहा था । मई भी अपने गीतों का सर उतना ही ऊंचा करती रही थी । रानी यह देखकर आश्चर्यचकित थी कि सामली के रूदन का स्वर सुनकर भी वही के हृदय में दया संवेदना का भाव जाग्रत नहीं हुआ । इसके विपरीत नोटों की गड्डियां देख देख कर मई की आंखों में चमक और चेहरे पर अतीव प्रसन्नता लग रही है । ये देख कर रानी की हृदय में मई के प्रति घृणा उत्पन्न हो रही थी, किंतु उसने अपने मनोभाव को व्यक्त नहीं होने दिया । अगली सुबह रानी बिस्तर से नहीं होता है । उसके हृदय में इतना शोक बढा था । किसने दो दिन तक भोजन नहीं खाया । मई के दो दिन तक बार बार आग्रह करने पर भी उसने कुछ खाने पीने से ये कहकर मना कर दिया किसको अरुचि हो रही है मई को अपनी अवज्ञा से अरिजीत इस लिए माइने रानी को उसी समय तुरंत खाना नहीं खाने पर परिणाम भुगतने की चेतावनी दे डाली । मई की चेतावनी के परिणामस्वरूप किसी अनहोनी से बचने के लिए रानी ने तत्काल भोजन तो कर लिया लेकिन भोजन करते ही रानी को उल्टियां होने लगी । खाने पीने से अरुचि और निरंतर उल्टियाँ होने के कारण वो इतनी दुर्बल हो गई थी । किसको अपने पैरों पर खडा होना कठिन हो रहा था । वो खडा होने का प्रयास कर दी तो चक्कर खाकर गिर पडती । उसकी शोचनीय दशा को देखकर ऐसा ऐसा प्रतीत हो रहा था कि यही हाल रहा तो अगले दो दिन के अंदर उसको इस नरक से अवश्य ही मुक्ति प्राप्त हो जाएगी । मैं ये नहीं चाहती थी किराने के इलाज के चक्कर में कोई नई समस्या उत्पन्न हूँ । लेकिन दुनिया को कुछ हो गया तो मन में ये विचार आते ही मैं घबरा उठे और आपने हानि लाख का विश्लेषण करने लगी । इलाज करा होंगे तो नुकसान केवल तभी होगा जब अस्पताल का डॉक्टर या अन्य कोई डॉक्टर उसको पहचान करिए । संदेह के आधार पर पुलिस को इसके बारे में बताएगा कि मई ने अपनी झुग्गी में किसी लडकी को नजरबंद करके रखा है । पर इलाज न कराने की वजह से दुनिया की जान चली गई तो बहुत बडा नुकसान हो जाएगा । सब कुछ जूठ घाटा और गुणा भाग करके माइंड िलानी का इलाज करने का निर्णय लिया था । उनके निर्णय में विशेष करती थी । उन्होंने रानी को अस्पताल लेकर जाने की जगह किसी स्थानीय डॉक्टर को झुग्गी में बुला कर ही इसका इलाज कराना था । माई के निर्देशानुसार एक स्थानीय झोला छाप जी के सबको झुकी में बुलाकर रेणुका परीक्षण कराया गया । चिकित्सक में सबसे पहले रानी के दुर्बल शरीर पर बडी ही रहस्यमय ढंग से विहंगम दृष्टि डालते हुए कहा बहुत फिलम से सुनती है आपने चलो देखते हैं बच्ची की जान बन जाए तो अच्छा है । तदोपरांत छोला छाप चिकित्सक में रानी की नाडी नाम उसका गहन परीक्षण करके मई को बताया जी घर में खराबी आ रही है । इसी वजह से उल्टियाँ नहीं रुक रही हैं । लगातार उल्टियां होने से शरीर में पानी खत्म हो गया है । पानी की पूर्ति करने के लिए ग्लूकोज की बोतल चढाना जरूरी है और इसके लिए मरीज को भर्ती करना पडेगा तभी इसकी प्राण बचाना संभव है । बनना तो दो दिन के अंदर ऊपर चिकित्सक ने हाथ व आपके सहयोग से संकेत करते हुए कहा डॉक्टर साहब ग्लूकोज चढाना है तो यही पर चाहा तो भर्ती नहीं करेंगे । मायने दृष्टा पूरा कहा ये संभव नहीं । झोला छाप डॉक्टर ने निर्णायक मुद्रा में कहा और जाने के लिए उठ खडा हुआ । चिकित्सक द्वारा रानी के स्वास्थ्य के संबंध में बेबाकी से की गई टिप्पणी सुनकर भी मई विचलित नहीं हुई थी । लापरवाही की मुद्रा में चिकित्सक से बोली डॉक्टर साहब ग्लूकोज ना सही कोई ऐसी दवा ही दे दो जिससे इसकी उल्टियों में कुछ आराम मिल जाएगा । ग्लूकोज के बिना सिर्फ दवाओं से ही ठीक नहीं हो सकेगी भर्ती आप करोगे नहीं । मेरे इलाज के दौरान यहाँ से कुछ हो गया तो मैं ऐसे मरीज नहीं पकडता जिससे मेरा नाम बदनाम और फिर मेरा धंधा ही चौपट हो जाए । मैं चलता हूँ कहते हुए चिकित्सक झुग्गी से बाहर निकल गया । माई के समक्ष गंभीर स्थिति आ खडी हुई । एक और हुआ है दूसरी ओर खाई दुनिया को अस्पताल में भर्ती करूँ तो ये डर की कोई नहीं । आप कितना पढे अस्पताल में भर्ती ना करूँ और इसको कुछ हो जाए तब भी बडा नुकसान सिन्दरी को लाने के कितने दिनों बाद ये एक लडकी हाथ लगी कब से धंधे को बढाने की सोच रही थी और यहाँ जिसकी भी जान के लाले पडे हैं सोचती सोचती माईने बाहर जाती चिकित्सको पुकारा डॉक्टर साहब मेरी लाडो में मेरी जान बसी है इसको बचा लूँ । अब जैसा कहोगे मैं करूंगी । भर्ती करने को कहोगे मैं वो भी करूंगी । ठीक है तो क्लिनिक पर ले आई । मैं वहीं मिलेगा तभी वहीं ग्लूकोज भी लगा देंगे । ये कहकर चिकित्सक चला गया पीछे पीछे रानी को रिक्शे में बैठाकर मई बी झोला चार चिकित्सक की विधि द्वारा निर्धारित मानकों की धज्जियां उडाकर स्थापित किए गए क्लीनिक पर पहुंच गई और रानी को वहाँ पर भर्ती करा दिया गया । रानी तीन दिन तक क्लीनिक में मई की निगरानी में रही । बीच बीच में जब मई नहाने खाने के लिए घर जाती थी माइकल चिरपरिचित अधेड युवक जग्गी रानी पर निगरानी रखता था । चौथे दिन की शाम को चिकित्सक ने मई को बताया मरीज के स्वास्थ्य में अब सुधार है । कल शाम को अपने अपने घर ले जा सकते हैं । आठ दिन तक दवाइयाँ खिलानी पडेगी तभी धीरे धीरे कमजोरी दूर हो सकेगी । डॉक्टर से रानी के स्वास्थ्य में सुधार की सूचना पाकर मायने राहत की सांस ली और बेसब्री से अगले दिन कि शाम के उस शहर की प्रतीक्षा करने लगी जब अपनी दुनिया को वापस झुग्गी में लेकर जाएंगे । कल शाम और आज शाम के बीच में कल का दिन और आज की पूरी रात शेष थी । अंधेरा बढने लगा था । मई को झुग्गी पर आने वाले नये पुराने अतिथियों के स्वागत की चिंता सताने लगी थी । अता रानी की निगरानी का काम जग्गी को सौंपकर मई झुग्गी पर चली गई थी । रानी की निगरानी के दायित्व का गुरु भार अपने कंधों पर धोता हुआ जबकि बहुत जल्दी ही थकान से सुस्त पड गया जो जो रात बढ रही थी क्यों तो जग्गी की आंखों पर नींद का प्रकोप बढता जा रहा था । नींद को भागने के लिए जग्गी ने बीडी का धुआं भी दिया और चाय भी, परन्तु प्रतीत होता था कि नींद पराजित होने वाली नहीं । बार बार उस को नींद की झपकी आती थी और वह हर बार एक लंबी उनसे नींद को पटकनी देने का उपक्रम कर रहा था । रात के लगभग बारह बजे जागती स्टूल पर बैठा हुआ हो गया था । उसी समय रानी को दवाई देने के लिए कमरे में नर्स ने प्रवेश किया । दवाई देने के पश्चात नर्स ने रानी को समाचार पत्र में छपी एक फोटो दिखाकर संकेत करके थी में सर्वे पूछा फोटो तुम्हारी है । रानी ने देखा ये वही फोटो और समाचार था जिसको देख पढकर मई रानी को लाने के लिए अनाथाश्रम पहुंची थी और रानी आश्रम से मुक्त होने के लालच में मई के जाल में फंसी थी । महीनों पश्चात नर्स के हाथ में आज उसी फोटो और समाचार को देखकर रानी थोडी सी भयभीत हो गई । उसने सोचा अभी तो मई से भी मुक्ति नहीं मिली नर्स के रूप में कि कौन सी नहीं मुसीबत आ गई है । ये सोचते ही उसकी आंखों में आंसू झूला का हैं परन्तु स्कीम उसी कोई शब्द नहीं निकला । नर्स ने रानी के मर्म को सहलाते हुए अच्छा मई तुम्हारी माँ है । रानी ने इस बार भी शब्दों में कोई उत्तर नहीं दिया । लेकिन इसके आंखों से टप पकती हुई आसुओं की बूंदों ने बिना बोले ही नर्स के प्रश्न का उत्तर दे दिया था । बाजू में जाना हो तो चलो फिर मैं सोने के लिए चली जाऊंगी । अरब के बाद सुबह ही होंगे । रानी ने इस बार भी कोई उत्तर नहीं दिया । फिर भी नर्स ने रानी को सहारा देकर उठाया और बाथरूम में ली गई । बाथरूम में पहुंचकर रानी के मर्म का स्पष्ट करते हुए नर्स ने पुनः कहा, मैं जानती हूँ मई दूर दराज के इलाकों की भोली भाली गरीब लडकियों को बहला फुसलाकर ले आती है । झुग्गी में उनसे धंदा करवाती सुना है कुछ महीने पहले एक और लडकी को ले आई थी । मई शायद तो नहीं हुआ । रानी ने नर्स के स्टेशन का भी कोई उत्तर नहीं दिया की तो अब उसके आंसुओं का वेट बढ गया था और चेहरा विकृत हो गया था । ऐसा प्रतीत हो रहा था कि अभी उसकी कंट्री से रुलाई फूट पडेगी तो मई की जान से निकलना चाहूँ तो तुम्हारे पास भागने का आज अच्छा मौका है । नर्स ने रानी को उकसाते हुए कहा कैसे इस बाथरूम के पीछे से जाकर एक दरवाजा बाहर सडक पर खुलता है । दरवाजा थोडा सा टूटा हुआ है । उसमें ताला नहीं कर सकता इसलिए उसे रस्सी से बांधा हुआ है । धीरे से खुलकर निकल जाना । मैं रस्सी की गांठ को ढीला कर दूंगी । पर वो रानी ने जग्गी की ओर संकेत करके कहाँ, वो तो कब से घूम रहा है । फॅमिली हो जाएगा । नहीं सोयेगा तो मैं उसको अपनी बातों में उलझा लूंगी तो निकल जाना । ये कहकर नर्स ने अपने ब्लाउज से छोटा सा पर्स निकाला और उसमें से सौ रुपये निकालकर रानी को देते हुए का खेलो अपने पास रखें तुम्हारे पास किराये के लिए पैसे नहीं होंगे । यहाँ से निकलकर थोडी दूर तक सीधे पैदल चलने के बाद स्टेशन की बस मिल जाएगी । वहाँ से रेल में बैठकर चली जाना । रानी ने चुप चाप रुपये अपने हाथ में थाम ले और नर्स के साथ साथ कमरे में वापस आकर अपने बिस्तर पर लेटकर फॅमिली जग्गी से ये कहकर सोने के लिए चली गई कि मरीज को कुछ आवश्यकता पडे तो बुला लेना । मैं बगल वाले कमरे में ही हो रही है । दस बीस मिनट प्रशाद ही जब जग्गी भी नींद के मोहन जाल में फंस गया तब नर्स के बताए हुए मार्ग पर चलते हुए रानी भी मुक्ति के प्रयास में सक्रिय हो गई और क्लीनिक से निकल भागी ।

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आधी दुनिया का पूरा सच उपन्यास बारह-तेरह वर्ष की रानी नाम की एक नाबालिग लड़की की कहानी है, जो छतरपुर , मध्य प्रदेश के एक निर्धन परिवार की बेटी है । अपनी माँ की प्रतीक्षा में स्कूल के बाहर खड़ी रानी को उसके ही एक पड़ोसी अंकल उसकी माँ को गम्भीर चोट लगने की मिथ्या सूचना देकर घर छोड़ने के बहाने बहला-फुसलाकर अपनी गाड़ी में बिठा लेते हैं । रानी को जब पता चलता है कि वह अपनी नादानी के कारण फँस चुकी है , तब वह दिल्ली में स्थित एक अंधेरी कोठरी में स्वयं को पाती है, सुनिये क्या है पूरा माजरा| Author : Dr. Kavita Tyagi Voiceover Artist : Shreya Awasthi
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